मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

मतभेद आ समाधान


मतभेद आ समाधान



प्रकृतिक समस्त आयाममे समन्वय स्वभाविक रूपसँ देखबामे अबैत छैक । इएह कारण छैक जे एतेक भारी शृष्टि एतेक दिनसँ एना निर्वाध रूपसँ चलि रहल अछि । एतेक ग्रह-नक्षत्रसभ निरंतर अपन काज करैत रहैत छथि । किओ ककरोसँ कखनो टकराइत नहि छथि । एकटा हमसभ छी जे अकारण एक-दोसरसँ टकरेबाक मौका तकैत रहैत छी । परिणाम अछि जे आइ यत्र-तत्र-सर्वत्र अशांति पसरि गेल अछि। दुनियाँक देशसभ बम बना-बनाक बैसल छथि । जापानपर कहिआ एटमबम खसल  तकर विनाशक दृष्य अखनोधरि ओहिठामक लोक नहि बिसरि सकल ।  लाखो निर्दोष लोक मारल गेलाह ।  विनासक विभीषिका एहि हद धरि घातक छल जे पेटक वच्चासभ जन्मसँ पहिनहि मरि गेल आओर जे जन्मल से जन्मजात विकलांगताक शिकार भए गेल । शहर-के -शहर वर्वाद भए गेल । ई सभ किएक भेल? मात्र किछु लोकक अहंकारक हेतु । किछु अतिमहत्वाकांक्षी ,घमंडी लोकनि विश्वविजेता बनबाक स्वप्न लए विश्वक विनासक कारण बनि गेलाह । कहू,केहन निकृष्ट काज भेल? दोख एटमबमक नहि छल । ओही उर्जाक उपयोग रचनात्मक काजमे कएल जा सकैत अछि । परुमाणु उर्जाक अक्षय श्रोत साबित भए सकैत अछि,भइओ रहल अछि । अस्तु,कोनो शक्तिक हम कोन तरहेँ उपयोग वा दुरुपयोग करैत छी,एहीपर सभटा बात निर्भर करैत अछि ।

आपसी समझ आ संयमक अभावक परिणाम जहिना राष्ट्रसभ भोगि रहल छथि तहिना गाम-गाममे व्यक्ति-व्यक्तिक अहंक टकरावसँ उतपन्न समस्यासभ विकराल रूप ग्रहण कए लेने अछि । गामघरसँ अगुता कए लोकसभ शहर अएलाह ,जाहिसँ शांतिसँ जीवि सकी । मुदा कहबी छैक जे गेलहुँ नेपाल कर्म गेल संगे। शहरोमे लोकक प्रवृति तँ ओएह रहि गेल । लोक बेगर्ते आन्हर छथि । ई नहि बुझैत छथि जे जखन सभकिछु विषाक्त भए जेतैक तँ ओ कोना बचताह ? यत्र-तत्र बैमानीक वर्चस्व भए गेल अछि । कोनो उपायसँ टाका हेबाक चाही । मुदा एहि टाका सँ हेतेक की? दबाइ कीनब से नकली निकलि जाएत,इलाजमे हेराफेरी होएत,वच्चाकेँ इसकूलमे मास्टर पढ़ाओत नहि,ओकरा अलगसँ ट्युसन चाही । एहि तरहेँ एकटा दुष्चक्रमे संपूर्ण समाज फँसि गेल अछि । राष्ट्रसभमे सेहो सएह हाल अछि । सभ एक-दोसरकेँ डरा रहल छथि । ई नहि बुझैत छथि जे काल्हि भेने हुनकोसंगे एहिना होएत ।

जतए मनुक्ख रहत ततए विवाद रहबे करत कारण इहो जीवनक अंग थिक। मतभेद स्वाभाविक थिक,जनतांत्रिक समाजक अनिवार्यता थिक मुदा तकरा  सही सर्वमान्य समाधान ताके लेब सेहो जरूरी अछि। जँ हमरासभकेँ शांतिसँ जीबाक अछि,जँ विकासक गतिकेँ आगू बढ़ेबाक अछि आ अपन  समय आ उर्जाकेँ व्यर्थक बातमे नष्ट नहि करबाक अछि तँ दोसरक परिस्थिति आ आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखए पड़त । मनुक्खक जीवनक मूल्य तखने बूझल जा सकैत अछि ।

आइ-काल्हि अधिकांश समस्या संवादहीनताक कारण उतपन्न भए रहल अछि । लोक एक-दोसरसँ गप्पे तखने करैत छथि जखनकोनो समस्या ठाढ़ भए जाइत अछि । ई ओहिना भेल जे जखन बरिआती दरबाजापर आबि गेल तँ चललहुँ कुमहर रोपए । आपसी गप्प होइते अछि एहि ले जे हम एक-दोसरकेँ बुझी । मुदा ताहि हेतु उचित माहौल होएब जरूरी अछि,इहो आवश्यक अछि जे हम पूर्वाग्रहरहित होइ । हमर माथ स्वतंत्रतापूर्वक बातकेँ ग्रहण करबाक स्थितिमे हो । आब जखन झगड़ा भइए गेल तखन गप्प शुरु करबैक तँ ओतेक नीक परिणाम नहि भए सकैत अछि जे कि अन्यथा होइत । गप्प-सप्प जखन होइत रहैत छैक तखन कोनो समस्या अएबो करत तँ ओकर समाधान नीक माहौलमे भए सकैत अछि । अखन की होइत अछि? कनीकोटा समस्या भेल कि गोली चलि जाइत अछि । निश्चय ई बहुत शोचनीय स्थिति अछि ।

कएबेर लोक लकीरक फकीर भए जाइत छथि । एकटा नहि अनेक एहन उदाहरण भेटत जे लोक बहुत छोट-छोट बातपर अड़िअल रूखि धए लेलेथि । परिणाम विस्फोटक भेल । एकबेर भाइ-भाइमे पैतृक संपत्तिमे बटबारा लए कए विवाद बढ़ि जाइत अछि । किओ पाछू हटबाक हेतु तैयार नहि होइत छथि । परिणामतः जे नहि हेबाक चाही से होइत अछि । मानि लिअ जे कोनो घर दूतल्ला अछि आ दुनू भाइ नीचलेक भाग चाहैत छथि ,तखन की समाधान हेतैक? ककरो-ने-ककरो तँ पाछा हटए पड़तैक । कै बेर जखन एहन  परिस्थितिमे दुनू पक्ष अड़ि जाइत छथि तँ लोक तमासा देखैत अछि आ घर वर्वाद होइत अछि । एहिसँ वचबाक एकमात्र  उपाय इएह भए सकैत अछि जे अधिकारकेँ बिसरि समस्याक समाधान कएल जाए जाहिसँ साँपो मरि जाए आ लाठिओ नहि टूटए ।

समस्याक समाधान होइ ताहि हेतु जरुरी थिक जे हम दोसरक बातकेँ निष्पक्ष भए ध्यानसँ सुनी । ओकर परिस्थितिक विचार करी आ एहन उपाय ताकी जे दुनू पक्षक बात रहि जाए । एहन नहि लागए जे किओ ई सोचथि जे हुनकर बात सुनले नहि गेल किंवा सभ एकहि दिस भए गेलाह । कहक माने जे समस्याक समाधान एहन हेबाक चाही जे कालक्रममे आपसी सहृदयताकेँ बढ़ाबए, हृदयकेँ विकसित करए, ने की सकुंचित कए दिअए । तकनीकी आधारपर जँ न्यायलयसँ हम जीतिओ जाएब तैओ कै बेरि हारि जाइत छी ।  जेना महाभारतक युद्ध भने  पाण्डव जीति गेलाह मुदा तकर बाद बाँचले की जाहिपर राज करितथि आ राज करैत के? एहि विजयसँ ततेक दुख उतपन्न भेल जे किओ कहिओ सुखी नहि रहलाह आ पाण्डवसभ तँ जीवैत स्वर्गारोहणपर चलि गेलाह। राज नहि भोगि सकलाह ।

हमसभ अपन शक्तिक सही उपयोग कए सकी ताहि हेतु शांतिपूर्ण वातावरण जरुरी अछि । से तँ तखने संभव अछि जखन छोटमोट बातमे हमसभ नहि ओझराइ । जे समस्या सामने आबि जाइत अछि तकर न्यायपूर्ण समाधानक प्रयास करी । जँ एक डेग पाछा गेलासँ बात बनि जाइत अछि,अपन आदमीसँ संवंध मजगूत होइत अछि, तँ से करक चाही । भए सकैत अछि जे तत्काल हमरा घाटा लगैत हो मुदा दीर्घकालमे हम कै गुना बेसी लाबान्वित अनुभव कए सकैत छी । छोटसन एहि जीवनकेँ हम जेना बिता ली । बात-बातपर विवाद ठाढ़ कए लड़ैत-लड़ैत मरि जाइ वा सहनशीलताक परिचय दैत एकदोसरकेँ समावेश करैत जीवन यात्राकेँ शांतिपूर्ण ढ़ंगसँ विता ली,ई हमर सोचपर निर्भर करैत अछि । सही कहल गेल अछि जे'त्येन त्यक्तेन भुन्जीथा'

कोनो जनतांत्रिक समाजमे असहमतिक स्वरकेँ सुनबाक आ ताहिपर वाजिव विचार करबाक गुंजाइस होएब जरुरी अछि । ताहि हेतु हमरा सभमे पर्याप्त सहनशीलता हेबाक चाही । कोनो जरुरी नहि अछि जे अहाँ दोसरक बात मानिए लिअ मुदा सुनि तँ लिऔ जे ओ की कहए चाहैत छथि । भए सकैत अछि जे अपन बात कहिए देलासँ हुनका संतोख भए जानि आओर ओ सोचथि-जे चलू हमरो बात सुनल गेल  किंवा ओहिमेसँ किछु एहन तथ्य बाहर होअए जे समस्याक समाधान कए सकए । तेँ मतभेद अछि तँ कोनो बात नहि मुदा मनभेद नहि हेबाक चाही । सही नेत रहत तँ समाधान हेबे करत । तखने समरस आ सुखकर समाजक रचना संभव होएत । सारांश ई जे आपसी समस्याकेँ आपसमे मिलिजुलि कए समाधान कए ली ने की बातकेँ बतंगर कए ली । तखने सुख-शांति स्थापित भए सकैत अछि ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें