पुनर्मिलन
ओकरामे प्रतिभाक
कतहुँसँ अभाव नहि छलैक। पूरा गाम ओकर यशगान करबाक लेल तत्पर छलैक। नीक, सुन्दर, सुशील आ मेघावी छल
अरूण। माय और बापक कोनो स्मृति ओकरा नहि छलैक। जीबनक प्रत्येक डेग ओ लड़ि कए आगा
बढ़ल छल। अपमानक अलावा समाजसँ ओकरा किछु प्रतिदान नहि भेटल छलैक मुदा ओ ओकरे, प्रेरणाक आधार बना
जीबनमे विजयश्री प्राप्त करबाक हेतु कृतसंकल्पित छल। ओकर जन्मसँ लऽ कऽ अखन धरि
जतेक घटना घटल छलैक सभ स्वयंमे एकटा वृतान्त छल।
प्रतिभा जेना ओकरा
प्रकृतिसँ पुरस्कारक रूपमे भेटल होइक। बच्चेसँ छात्रवृत्ति ओकरा भेटय लगलैक। शिक्षक
लोकनि एक पृष्ठ पढ़ावथिन्ह तँ ओ दू पृष्ठ स्वयं पढ़ि लैत छल। ओकर प्रतिभासँ सभ
क्यो दंग रहैत छलाह। यद्यपि ओकरा रास्ता देखौनिहार क्यो नहि छलैक, ओ स्वयं जेना सभ
किछु जनैत हो, की करक चाही, ककरासँ की बाजक चाही
आ की करी जाहिसँ आबयबला समय नीक हो इत्यादि से ओकरा खूब नीकसँ बूझल छलैक। हाई
स्कूलक परीक्षा प्रथम श्रेणीसँ पास केलक आ पूरा राज्यमे प्रथम स्थान ओकरा प्राप्त
भेलैक। कालेजक शिक्षा प्राप्त करबाक प्रबल आकंक्षा ओकरा छलैक मुदा आर्थिक परिस्थिति
अति दुखद छलैक। गामपर घराड़ीटा बाँटल छलैक। माय, बाप, भाय, बहिन ककरो कोनो सहारा नहि
छलैक।
थाकल, ठेहिआयल, ओ दरिभंगा महराजक
राजधानीक महल सभमे घुमि रहल छल। पैरमे पनही नहि, देहपर एकटा नीक कपड़ा नहि, मुदा अपनापर तेज, स्वभावमे सौम्यता ओ
व्यवहारक नम्रता अनेरे लोकक ध्यान ओकरापर आकृष्ट कए लैत छल।
संयोगसँ चौधरीजी
रिक्सासँ उतरलाह आ अरूण हुनका नमस्कार केलक। अरूणक प्रतिभाशाली मुखमण्डल देखि ओ
चकित भए गेलाह। चौधरीजीक धिया-पुताकेँ पढ़यबाक काज ओकरा भेटि गेलैक। हुनकासँ
ज्येष्ठ सन्तान उर्मिला नवम् वर्गमे पढ़ि रहल छलीह। देखयमे खूब सुन्दरि, स्वभावसँ विनम्र ओ
प्रतिभामे अद्वितीय। उर्मिलाकेँ देखितहि अरूणकेँ ठकविदरो लागि गेलैक। जेना पूर्व
जन्मक संगी रहल हो। उर्मिलाक पढ़ाईमे अद्भुत प्रगति भेलैक। अरूण सेहो प्रशन्नचित्त
अपन गाड़ी आगा पढ़बय लागल। मुदा एक दिन बड़ विचित्र घटना घटलैक। अरूणक सभटा स्वप्न
देखिते-देखितेमे भंग भए गेलैक। उर्मिला स्कूल गेलैक आ ओहिठामसँ लौटितहिँ दर्द-दर्द
कऽ चिचिआय लगलैक। कतेको ओझा-गुनी, डाक्टर-वैद्य अयलैक मुदा ओकरा कोनो सुधार नहि भेलैक।
हालत बदतर होइत गेलैक आ ओ प्रात: होइत-होइत निष्प्राण भए गेल। सौंसे गर्द चढ़ि
गेल। दुर्भाग्य ओकरा ओतहुँ संग नहि छोड़लकै।
उर्मिलाक आकस्मिक
निधनसँ ओकर सपना सभ छिन्न-भिन्न भए गेलैक। अरूणकेँ आब एकहुँ दिन ओतए रहब असम्भव भए
रहल छलैक। ओ चुप-चाप ओतएसँ खसकल। पैरे-पैरे दरभंगासँ समस्तीपुरक रास्तामे ओ बहुत
दूर आगा आबि गेल छल। पाकरीक गाछतर छाहरिमे बैसल। कण्ठ जरि रहल छलैक। कतहु पानिक
दर्शन नहि छलैक। थाकियो नीक जेना गेले छल। बैसल कि आँखि लागि गेलैक। सुतले-सुतल ओ
स्वर्ग लोकक परिभ्रमण कए रहल छल। उर्मिला अत्यन्त प्रशन्न मुद्रामे ओकरा नमस्कार कए
रहल छलैक।
“आ अरूण तों। बड्ड नीक
छेँ तूँ। तोरे ताकि रहल छियौक। जहियासँ एतए एलहुँ एकहु दिन चैन नहि अछि। दिन-राति
बस तोरे खोज छौक। आ जल्दी आ। देख हम कतेक परेशान छी। देख हमर कण्ठ जरि रहल अछि।
हमर हृदयक पियास कण्ठ तक पहुँच रहल अछि। एक गिलास पानि दे। अरूण पानि दे। कनी सुन।”
कहि नहि ओ की की कहैत
रहि गेलैक। अरूण किछु नहि बजलैक आ धीरे-धीरे वो नेपत्ता भए गेल। अरूणक निन्न सेहो उचटि
गेलैक। मुदा ताधरि किछु नहि रहि गेल छलैक।
अरूणक अन्तर्मनमे
दिन-राति ई सपना घुमैत रहैत छल। उर्मिलाक स्नेहिल व्यवहारक अमिट छाप ओकर हृदयसँ
मेटने नहि मेटा रहल छल। सैह सभ गुनधुनमे वो आगा बढ़ैत रहल।
समस्तीपुर टीशन बहुत
करीब आबि गेल छलैक। रेलगाड़ीक चलबाक आबाज कान तक पहुँचि रहल छलैक। मिथिला
एक्सप्रेस लागल छलैक। दौड़ल दौड़ल ओ टीकस कीनलक आ गाड़ीमे कहुनाक ठूसा गेल। गाड़ी
झिक-झिक करैत छलैक। एक कदम आगा बढ़ैक, दू कदम पाछा बढ़ैक आ ठामहि ठाढ़ भए जाइक। आगू घुसकैत-घुसकैत
गाड़ी रूकि गेलैक। ड्राइभर साहेब चाह पीबैत छलैक कि गार्ड साहेब हरी झंडी देखौलकै
आ गाड़ी स्पीड धय लेलकैक। छक-छक-छक- छ......। अरूणकेँ बैसबाक जगह भेटि गेल रहैक।
बगलमे एकटा महिला सहयात्री ओकर, दूटा बच्चा, एकटा अधबयसू पुरूष आ कहि ने के के सभ….?।कलकत्ता जाएबला
गाड़ीक समय विशेषता ओहि गाड़ीमे छलैक। आधासँ आधिक यात्री नौकरीक खोजमे महानगरीक
प्रयाण कए रहल छलाह। बरौनी जक्सनसँ गाड़ी आगा बढ़ि गेल छलैक। ओकरा फेर आँखि लागि
गेल छलैक। फेर आबि गेलैक उर्मिला। एहिबेर आर व्यथित आर अधिक करूण स्वरमे निवेदन
करैत एक तरफा अपन मोनक बात ओ कहैत गेलैक।
“अरूण। अरूण।हम नहि
रहि सकब। हम नहि रहि सकब एसगर अरूण। देख हमर की हाल भेल अछि। देहक आभा झूस पड़ि
रहल अछि। अरूण चल,
हमरे गाम चल, मुदा...। मुदा...।
मुदा....।”
गाड़ी सरपट आगा बढ़ैत
गेल। आसनसोल स्टेशन करीब आबि गेल छल। गाड़ी टीशनपर रूकल आ बहुत रास यात्रीक चढ़ब ओ
उतरब सुनि ओकर निन्न उचटि गेलैक। सपना एकबेर फेर सपना भए गेलैक।
दोसर दिन साँझमे वो
कलकत्ता शहर पहुँचि गेल। मुदा रस्ताक सपना ओकर माथासँ हटि नहि रहल छलैक। कलकत्ता
शहरक नाम बड़ सुनने छल। मुदा कतय जाए? ककरा ताकए? कुनु ठौर ठेकान नहि रहैक। आगा बढ़ल जाए। चारूकात
बंगला भाषाक सोर। चलैत-चलैत थाकि गेल। ताबतमे सकल आबाज ओकर कानमे पहुँचलैक। अरूण
अकचका गेल-
“ई तँ उर्मिलाक आबाज
लागि रहल अछि!”
आश्चर्यचकित ओ ऊपर ताकए
लागल। किछु देखा नहि रहल छलैक। ताबतमे फेर वैह आबाज-
“डरा नहि। हमहीं छी-
उर्मिला, तोहर चिंर परिचित
संगीनी। देख हम कतेक परेशान छी। तोरा पाछू-पाछू बिहारि जकाँ गाड़ीक संगे आबि रहल
छी। मुदा घबरो नहि। हम तोहर किछु नहि बिगारबौक। आखिर हम तोहर विद्यार्थी छियौक ने।
हे ले। दस हजार रूपया। एहिसँ तोरह काज
चल जेतौक ने? बाज! बजैत किएक नहि छेँ?”
अरूण अपन आगामे नोटक
पुलिंदा सभ देखि कए गुम रहि गेल। फेर वैह आबाज-
“उठा। जल्दी उठा।
लुच्चा, बदमास आबि रहल छौक।
अच्छा तँ हम जा रहल छी।”
अरूण झट दए रूपयाकेँ
फाँड़मे राखि लेलक। राखिते देरी मनमे उठलै- एतेक रास रूपया कतयसँ अनलक उर्मिला?
नाना प्रकारक प्रश्न
अरूणक मनमे उभरि रहल छलैक। संगे डरो भए रहल छलैक। मुदा पासमे टाका आबि गेलासँ
हिम्मत सेहो बढ़ि गेल छलैक। एतेक आसानीसँ ओकर आर्थिक समस्याक समाधान भए जेतैक से
वो सपनोमे नहि सोचने छल। टांग तेज ओ मोन सुस्त भए रहल छलैक। आगामे एकटा होटल नजरि
अयलैक। होटलक रूम नम्बर पाँचमे ओ डेरा ललेक। बेस थाकि गेल छल। विश्राम करबाक तीव्र
आवश्यकता छलैक। कपड़ा-लत्ता खोललक। हाथ-पैर धोलक। घंटी बजबैत नौकर दौड़लैक। मीनू हाथमे
दए देलकै आ किछु-किछु पूछय लगलैक। मुदा बंगला बजैक। अरूण किछु नहि बुझलकै। नोकरबा
तमसा कऽ चल गेल। अरूण स्नान कयलक आ कपड़ा-लत्ता पहीरि कहि नहि कतेक गाढ़ निन्नमे
सुति रहल।
उर्मिला फेर हाजिर।
अरूणकेँ भेलैक जेना क्यो ओकरा उठौने चल जाइत होइक। ओ चुप-चाप सन देखि रहल हो। बहुत
दूर एकटा झीलक कातमे ओकरा राखि देलकै। बहुत काल धरि ओ सभ कहि नहि की की गप्प सप
करैत रहल। ओ कहैत रहलैक-
“अरूण, तूँ बड़ नीक लोक
छेँ। तोहर स्मृति एक क्षणक लेल हमर मोनसँ नहि जाइत अछि। सून, एकटा काज करऽ। हमरे
संगे चल। तोरा सभ किछु भेटतौक।”
पता नहि आर की की ओ
कहैत रहलैक....।
भोर होमए पड़ छलैक। अरूणक
आँखि खुजलैक तँ ओ आश्चर्यचकित भए गेल। ओकर कमरामे उर्मिलाक वैह वस्त्र राखल छलैक
जे वो मरबासँ किछु पूर्व पहिरने छल। वोहि वस्त्रकेँ ओ हटौलक तँ आर आश्चर्यचकित भए
गेल। बहुत रास हीरा-जबाहरात ओतए राखल छलैक। अरूण परेशान छल जे ई सभ की भए रहल छल।
देखिते-देखिते मेवो कड़ोर पति भए गेल छल। सभ सामानकेँ वो सावधानीसँ रखलक आ चुप-चाप
होटलसँ प्रस्थान कए गेल।
मास-दू-मासक अन्दरमे
वो एकटा नीक होटलक मालिक भए गेल। दस-बीस नोकर-चाकर ओकर आगा-पाछा करैत छलैक।
प्रतिदिन हजारो रूपया कमाई ओ करैत छल।
छह मासक भीतरेमे ओ
गाममे १० बीघा जमीन कीनलक आ इलाकाक संमपन्न व्यक्तिक रूपमे प्रतिष्ठित भए गेल।
अरूणक समय देखिते-देखिते साफ बदलि गेलैक मुदा ओकरा खूब नीक जकाँ बूझल छलैक जे एकर
एक रहस्य की छलैक। ओ जखन कखनो एकान्त होइत कि उर्मिलाक छाया ओकर सामनेमे उपस्थित भए
जयतैक। अस्त-व्यस्त,भाव
विह्वल, उर्मिलाक आकर्षक
मुद्रामे आह्वान देखि अरूण स्तब्ध रहि जाइत छल...।
ओहि दिन अरूणसँ नहि
रहल गेलैक आ पूछि बैसलैक-
“उर्मिला, एतेक परेशान कियैक
छेँ? हम तोरा संगे कोना भए
सकैत छी? हम जीवित छी। तों
शरीर मुक्त छेँ। हमरा तँ शरीर चाही।”
उर्मिला ई गप्प बड़
ध्यानसँ सुनलकै। वो बेर-बेर बजैत रहलैक-
“हमरा तँ शरीर चाही।
हमरा तँ शरीर चाही।”
आ ठहाका मारि कए हँसय
लगलैक।
अरूण डरा गेल।
उर्मिला ओतएसँ गायब भए गेलैक।
अरूणक बियाह एकटा
संपन्न परिवारक सुन्दरि कन्यासँ भए गेलन्हि। कनियाँक द्विरागमन बेश धूम-धामसँ
वियाहक ९ दिनक भीतरे संपन्न भेलैक। पूरा भरल-पूरल परिवारमे आबि ओ कनियाँ बेश
प्रशन्न छल। रातिमे अरूण जखन ओकरासँ भेँट करए गेलाह तँ ओकर आबाजमे आश्चर्यजनक
परिवर्तन देखि दंग रहि गेलाह। ओ कनियाँ हँसल आ हँसिते रहल-
“नहि चिन्हलौं हमरा..! हम छी उर्मिला।
अहाँक पुरान संगीनी। अहाँ तँ हमरा बिसरि गेलहुँ मुदा हम अहाँकेँ नहि बिसरि सकलहुँ।
हमरा शरीर नहि अछि आ अहाँकेँ तँ शरीर चाही। मुदा अहाँई गप्प नहि बुझलहुँ जे शरीर
सीमित अछि। मोनक कोनो सीमान नहि अछि। छोड़ू ई क्षुद्र शरीरकेँ। आउ। अयबे करू। मौन
भऽ जाउ।”
गाममे सौंसे हल्ला भए
गेलैक। अरूणक शरीर चेतनाशून्य पड़ल छल। नवकनियाँ ओकरा देखि-देखि कानि रहल छलीह।
कतेको डागडर, वैद्य, ओझा, गुनी आँगनमे पथरिया
देने छलाह। मुदा अरूण नहि उठल। ओ मौन भऽ गेल छल। शरीरक सीमानसँ ऊपर उठि गेल छल।
उर्मिला अरूणक मोन एकाकार भऽ गेल।
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