आशीष अनचिन्हार
ओहि समयमे हम भुवनेश्वरी
मंदिरमे दर्शन कए निकलि रहल छलहुँ। करीब साढ़े चारि बाजि रहल छल। हमर फेसबुकपर
पोस्ट कएल गेल कामाख्या भगवती मंदिर लगक फोटो देखि अनचिन्हारजी फोन केलथि-
“फेसबुकपर
देखलहुँ जे अपने कामाख्यामे छी।”
“आइए गुवाहाटी
पहुँचलहुँ। कामाख्या भगवतीक दर्शनक बाद भुवनेश्वरी मंदिरमे दर्शन कए बाहर निकलि
रहल छी।”
“बहुत
प्रसन्नताक बात। कतए रुकल छी?”
“गुवाहाटी स्थित
सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे।”
गप्प-सप्प भइए
रहल छल कि फोन कटि-कटि जाइ। पहाड़ी सभक कारण नेटवर्क वाधित भए जाइत छल।
“बेर-बेर फोन
कटि रहल अछि। डेरा पहुँचैत छी। फेर गप्प करब।”
गप्पेक क्रममे ओ
कहलनि जे भुवनेश्वरी मंदिर दरभंगा महराजक बनाओल छनि। साँझमे डेरा पहुँचलाक बाद हम
अपन पता हुनका ह्वात्सएपपर पठा देलिअनि। ओ तुरंत लिखैत छथि-
“हम अस्सी
किलोमीटर फटकी रंगियामे रहैत छी। तथापि अपनेसँ भेंट करबाक हेतु उत्सुक छी। की पता फेर
एहन अवसर कहिआ भेटत ?”
“हमरो अपनेसँ
भेंट करबाक बहुत इच्छा अछि। हम चौदह तारिख भेंट-घाँटेक हेतु खाली रखने छी।ओहिसँ
पूर्व चेरापुंजी,शिलांग जेबाक अछि।”
“अच्छा अहाँ
ओमहरसँ वापस होउ। प्रयास करब जे हमसभ बीचमे कतहु भेंट करी। ”
तकर बाद फोन कटि
गेल। हम चेरापुंजीसँ लौटलाक बाद तेरह अप्रैल कए अनचिन्हारजीसँ भेंट करबाक हेतु हम
मोने-मोन कार्यक्रम बनबिते रही कि हुनकर फोन आएल-
“हमरासभक भेंट
नहि भए सकत। अचानक कार्यालयमे किछु जरूरी काज आबि गेलैक अछि। ताहिमे रविओ दिन व्यस्त कए देलक अछि ।”
की कहितिअनि?
तकर बाद बड़ी काल धरि मैथिलीसँ जुड़ल विषयसभपर हमसभ चर्च करैत रहलहुँ। विदेह
पत्रिकामे हुनकर अनेक सालसँ कएल जा रहल योगदानक चर्च तँ भेबे कएल। निश्चित रूपसँ
अनचिन्हारजी कतेको सालसँ विदेह पत्रिकाक माध्यमसँ आदरणीय श्री गजेन्द्र
ठाकुरजी आ हुनकर अन्य सहयोगी लोकनिक संग
बहुत महत्वपूर्ण काज कए रहल छथि। मैथिली गजलक क्षेत्रमे हुनकर योगदानक चर्च होइते
रहैत अछि। एमहर आदरणीय गजेन्द्रजी आ हुनकर श्रीमतीजीसँ जुड़ल साहित्यिक विषयपर ,प्रीति
कारण सेतु बान्हल, नामसँ पुस्तक संपादित केलनि अछि। एहन सृजनशील आ मैथिलीप्रेमीसँ
भेंट कए बहुत नीक लगैत। मुदा कोनो बात नहि। ओ स्वस्थ रहथु,एहिना सक्रिय आ सृजनशील
बनल रहथु। आइ ने काल्हि भेंट हेबे करतैक। ओहुना विदेहक माध्यमसँ तँ हमसभ निरंतर
संपर्कमे रहिते छी।
१७ अप्रैल २०२४
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