मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीमे स्वागत

 

मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीमे स्वागत

‍१० मार्च २०२४ कए हमसभ गुवाहाटी स्थित अपन डेरापर वापस जाइत रही कि आदरणीय श्री कामेश्वर चौधरीजीक फोन आएल। गप्प-सप्पक क्रममे हम कहलिअनि जे गुवाहाटीमे छी। ओ तुरंत कहैत छथि-

“प्रेमकान्त चौधरीजीसँ संपर्क केलिअनि कि नहि?”

हुनकर नाम हमरो सुनल रहए। गुवाहाटीमे मैथिलीक पुरान खाम्ह छथि ओ। मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक स्थापक अध्यक्ष रहथि आ एक्कैस वर्ष धरि ओहि पदपर रहलथि। अखनहु पूर्वोत्तर मैथिल पत्रिकाक संपादक छथि। फोनपर सेहो एकाध बेर हुनकासँ गप्प भेल अछि। तेँ हुनकासँ भेंट तँ करबाक छलहे। मुदा सोचने रही जे पहिने चेरापुंजीसँ घुमि आबी। तकर बाद ई सभ कएल जेतैक। ताहि हेतु ‍१३,‍१४ अप्रैलक समय हम रखनो रही। फेर भेल जे अपन कार्यक्रमक जनतब पहिनेसँ दए देबनि तँ बढ़िआँ रहत। हम ह्वात्सअपपर अपन कार्यक्रमक जनतब हुनका देलिअनि। ओ तुरंत उत्तरो देलनि।

तेरह अप्रैलक भोरे सबाआठ बजेक आसपास आदरणीय श्री प्रेमकान्त चौधरीजीक फोन आएल-

“अपनेक कोना की कार्यक्रम अछि?”

“अखन तँ हम अपन ग्रामीणक ओहिठाम जाएब। ओहिठामसँ लौटलाक बाद   खाली रहब। काल्हि सेहो भरिदिन खालीए छी।”

“अपनेक ग्रामीणक की नाम छनि?”

“रत्नेश्वर मिश्र”

“ओ हमरा जनैत छथि कि नहि?”

“जनिते हेताह।”आ से बात सही निकलल। प्रेमकान्त चऔधरीजीकेँ ओ नीकसँ जनैत छथिन। ओएह नहि,अपितु गुवाहाटीमे रहनाहर साइते केओ मैथिल हेताह जे हुनकर नाम नहि सुनने होअए। तकर कारण हुनकर मैथिली-मिथिलासँ प्रेम थिक । हुनकर स्वभावसे बहुत मिलनसार अछि। ई सभ बात हमरा तखन बेसी नीक जकाँ बुझाएल जखन ‍१४ अप्रैलक दुपहर बारह बजेक आसपास हमरासँ भेंट करए ओ हमर सीपीडब्लुडी अतिथिगृह अएलाह। बेस नमगर-पोरगर धुआ ,गोर वर्ण  आ आकर्षक छवि। देखितहि लागल जेना कतेक दिनसँ परिचित होथि। हमसभ सोझे अपन कोठरी संख्या तीनमे चलि जाइत छी। प्रेमकान्तजी अपन विजिटिंग कार्ड देलनि। ओहिमे वर्णित हुनकर योग्यता ,अनुभव देखि चकित रही। सम्मान  आ पुरस्कारक  तँ जेना हुनकापर वर्षा भेल छनि। अतिथिगृहमे चाहक हेतु पहिनेसँ कहने रहिऐक।  ओ सभ चाह अनबो केलक ,मुदा मीठ आ दुध बला चाह प्रेमकान्तजी  पिबैत नहि छथि। ओकरा हुनका हेतु   बिना दूधक चाह अनबाक हेतु कहलिऐक। प्रेमकान्तजी  ओकरा स्वयं असमिआमे नीकसँ बुझा देलखिन जे केहन चाह बनेबाक छैक। से सभ सुनि कए जे ओ गेल से गेल। आधा घंटासँ बेसीए समय बीति गेल। हमरा बहुत संकोच भए रहल छल। मुदा कएले की जाइत? ताबेमे ओकरा चाह अनैत देखलिऐक। प्रेमकान्तजी  चौल करैत कहलखिन-

“पत्ती आनए चाह बगान चलि गेल छलह की?”

ओ लजा गेल,किछु उत्तर नहि दए सकलनि, चाह राखि कए चलि जाइत रहल। एहि बीच हमसभ अनेक विषयपर गप्प-सप्प करैत रहलहुँ। प्रेमकान्तजीक चाह सठि गेल छलनि। हमसभ तँ  चाह पहिने पिबि लेने रही। आब भोजनक समय भए रहल छलैक। अतिथिगृहक भोजनालयसँ भोजन करबाक आग्रह कएल जा चुकल छल। हम प्रेमकान्तजी केँ सेहो भोजन करबाक निवेदन केलिअनि। बहुत मोसकिलसँ ओ ताहि हेतु तैयार भेलाह। हमसभ संगे-संगे भोजन केलहुँ। आब करीब दू बाजि रहल छल। प्रेमकान्तजीकेँ कार्यालय जेबाक छलनि। हमसभ हुनकासँ गप्प-सप्पमे ततेक आनन्दित रही जे फराक हेबाक मोन नहि होअए। मुदा हुनका तँ जेबाक छलनिहे। आखिर हुनका बिदा केलिअनि। जाइत-जाइत ओ कहैत गेलाह जे साँझमे हुनकर कार्यालयमे मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक बैसार हेतैक। ओहिमे अपने दुनूगोटेकेँ अएबाक अछि।

हमसभ बहुत आतुरतासँ साँझक प्रतीक्षा कए रहल छलहुँ। अपन माटिसँ एतेक फटकी रहिओ कए गुवाहाटीमे प्रेमकान्तजी आ  हुनकर मैथिल मित्रलोकनि मैथिली-मिथिलाक झंडा फहरओने छथि से बहुत महत्वपूर्ण बात थिक। साँझमे छओ बजे हमसभ जीएस रोडपर एबीसी पुलिस प्वाइंट लग प्रेमकान्तजीक कार्यालय पहुँचलहुँ। प्रेमकान्तजी  पहिनेसँ ओतए छलाहे। मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय श्री सत्य नारायण साहुजी सेहो उपस्थित रहथि। सत्य नारायणजी बहुत योग्य व्यक्ति छथि। ओ पंजाब नेशनल बैकमे महाप्रबंधक( जीएम) क पदसँ सेवानिवृत्त भेल छथि। अपन सेवाकालमे ओ कतेको महत्वपूर्ण पदसभपर रहल छथि। आसाम ग्रामीण विकास बैकक अध्यक्ष सेहो रहल छथि। एहन सुयोग्य व्यक्तिसँ भेंट होएब निश्चित रूपसँ बहुत भाग्यक बात छल। ओहिठाम आठ-दसगोटे मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक वर्तमान आ भूतपूर्व अधिकारी लोकनि कार्यक्रममे भाग लेबाक हेतु आएल रहथि । हुनकासभसँ सेहो परिचय भेल। असलमे ‍१४ अप्रेलक चौबीस सालपूर्व मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक स्थापना भेल छल। आइए ओकर स्थापना दिवस छल। एतेक दिनसँ बहुत रास परेसानीक अछैत ई संस्था निर्वाद रूपसँ चलि रहल अछि से गौरवक बात थिक। संस्थाक गतिविधिपर आदरणीय प्रेमकान्तजी आ   आदरणीय सत्यनारायणजी अपन-अपन बात रखलनि। आनो गोटे सेहो अपन विचार देलनि। ओही बीचमे ओ सभ हमरा दुनू बेकतीक पाग आ दोपट्टा पहिरा कए हार्दिक स्वागत केलनि। स्मृति चेन्ह सेहो देलनि। कार्यक्रममे हमहूँ अपन साहित्यिक यात्राक बारेमे बजलहुँ। चाह-पान भेलैक। फोटो घिचल गेलैक। तकर बाद सभगोटे बेरा-बेरी ओहिठामसँ बिदा भेलहुँ। प्रेमकान्तजी हमरा अतिथिगृह धरि छोड़ि देलनि। जाइत-जाइत कहलथि-

“हम भोरे फेर आएब। अपनेक हेतु किछु उपहार रखने छी। आबए काल बिसरा गेल।”

हम बहुत मना केलिअनि । मुदा भोरे साते बजे ओ फोन केलथि-

“हम दस मिनटमे आबि रहल छी। कनी रूकि जाएब।”

हमसभ हबाइ अड्डा जेबाक हेतु तैयार रही। मुदा हुनकर आग्रह टारब संभव नहि बुझाएल। कनीके कालक बाद ओ हाथमे एकटा झोरा लेने आबि गेलथि। हुनकर स्नेहपूर्ण उपहारकेँ सम्हारि कए रखलहुँ।कनी काल हमसभ गप्पो केलहुँ।आब समय समाप्त भए रहल छल। हुनकासँ बिदा लेब अनिवार्य भए गेल छल। अस्तु,हमसभ टैक्सीपर बैसि गेलहुँ। प्रेमकान्तजी हमरासभकेँ प्रणाम केलनि। कहि नहि सकैत छी कतेक आत्मीय आ भावपूर्ण छल हुनकर व्यवहार। किछु तँ विशेषता हुनकामे छनिहे जे एतेक लोकप्रिय छथि,सेहो एतेक दिनसँ। अंत-अंत धरि ओ हमरासभक लगीचमे रहलथि। टैक्सीपर बहुत दूर धरि बढ़ि गेल रही। मुदा प्रेमकान्तजीक प्रेमपूर्ण व्यवहारसँ अभिभूत रही,आनन्दित रही। मोनमे एकटा संतुष्टि भाओ छल जे हमरसभक ई यात्रा माता कामाख्याक असीम अनुकंपासँ बहुत सफल आ आनन्ददायक रहल।

18.04.2024

(कामाख्या यात्रा प्रसंगक एक अंश,,,) 

क्रमशः,,,


 










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