मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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रविवार, 14 अप्रैल 2019

अमरता का संदेश


अमरता का संदेश



इस दुनिया में हम जन्म लेते हैं,जीते हैं,और मर जाते हैं । सबाल है कि जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद हम कहाँ थे? सायद कहीं भी नहीं-यह एक आसान उत्तर हो सकता है । हम जन्मे,फिर बढ़े और बढ़ते-बढ़ते  युवावस्था, प्रौढ़ावस्था  से गुजरते हुए वृद्धावस्था में पहुँच गए । इसके बाद एक दिन अकस्मात हमारी मृत्यु हो जाती है । हमारा पूरा-का-पूरा शरीर  जस-का-तस रह जाता है । पर क्या है जिसके नहीं रहने से या चले जाने से हमारा शरीर व्यर्थ हो जाता है। चल-फिर नहीं सकता,बोल नहीं सकता,कुछ भी महसूस नहीं कर सकता है । इतना ही नहीं, अगर उसे थोड़ी देर वैसे ही छोड़ दिया जाए तो उस से ऐसा भयानक दुर्गंध आना शुरु हो जाता है कि अपने लोग ही उसे उठा-पुठाकर  श्मशान घाट ले जाकर जलाने के लिए विवश हो जाते हैं ।

यह सब अकस्मात नहीं होता है । जन्म से मृत्यु पर्यंत हमारे शरीर में  निरंतर परिवर्तन होता रहता है । परंतु कभी भी, भूल से भी हमें यह नहीं लगता है कि हम वह नहीं रहे जो कल थे ,जबकि परिवर्तन का यह सिलसिला अनवरत,बिना किसी अपवाद के चलता रहता है । कई बार जब हमारे मित्र,परिचित काफी दिनों के बाद मिलते हैं तो वे हमारे शरीर में हो रहे परिवर्तन को तुरंत तार जाते हैं लेकिन नित्य-प्रति देखने बाले लोग इसे महसूस नहीं कर पाते  या तब करते हैं जब हम में कोई भारी गड़बड़ी हो जाती है । मसलन ,जब कोई बिमार हो जाता है तो कई बार हमारे रूपरंग में बहुत परिवर्तन हो जाता है । तब लोग इस पर अपनी प्रतिकृया देते हैं । लेकिन सत्य यही है कि जो आज हैं ,वह कल नहीं होंगे और एक दिन यह शरीर  प्राणरहित होकर व्यर्थ हो जाएगा। तब कोई क्षण भी इसे रखना उचित नहीं समझेगा । फिर भी हम इस शरीर को ही सर्वस्व मानकर जीवन भर परेशानी में पड़े रहते हैं , यही विडंवना हैहमारे दुख का कारण ही यही है कि हम सत्य को स्वीकारना नहीं चाहते हैं और जो कुछ है ही नहीं उसके पीछे पड़े रह जाते हैं ।

मनुष्य ही नहीं,समस्त जीव-जन्तु में जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनवरत चलता रहता है । अंतर सिर्फ इतना है कि हम तरह-तरह के वैज्ञानिक अविष्कारों से अपने और दूसरों के जीवन को प्रभावित करते हैं जबकि प्रकृति में विद्यमान अन्य प्राणी नैसर्गिक रूप से जो कुछ होता है,उसे होते देखते रहते हैं,सब कुछ जैसा जो है वह भोगते हैं। इस तरह बेहतर वुद्धि और विद्या उपार्जित कर मनुष्य ने एक तरह से समस्त पृथ्वी को अपने मुठ्ठी में करने का प्रयास किया है । उसके इसी स्वभाव के कारण दुनिया एक विशाल कारागार में तबदील हो गई है । वे सभी जीव-जन्तु जो आजाद रहने के अभ्यस्त हैं, किसी भी प्रकार से प्रकृति के व्यवस्थाओं में छेड़-छाड़ नहीं करते हैं,मनुष्य निर्मित विपदाओं से घिरे रहते हैं । उदाहरणस्वरूप, हमने चिड़ियाखाना बनाकर उनमुक्त विचरण करने बाले पंक्षियों,जानबारों को सीमाओं में रहने के लिए विवश कर दिया है। हमने ऐसा क्यों किया है? संभवतः इसीलिए कि हम इस शृष्टि के समस्त संपदाओं का अपने तात्कालिक स्वार्थ के लेए अधिक-से-अधिक दोहन कर लेना चाहते हैं । हमारा यह स्वार्थ ही इस दुनिया को नर्क बना दिया है । सो तो जो है सो है, परंतु हमें क्या वह सब हासिल हो गया है जिसके लिए हमने ऐसा किया है? उत्तर है, विल्कुल नहीं । हम पहले से कहीं अधिक दुखी-संतप्त जीवन जी रहे हैं । हो भी क्यों नहीं? तालाव के जल में जहर घोलकर आप उस में से अमृतपान की उमीद कैसे कर सकते हैं ?

ईश्वर ने हमें वुद्धि दी है । सोच-विचार करने का सामर्थ्य दिया है ।  लेकिन इसका उपयोग हमने कैसे किया है? हमने एटम बम बना लिया है । अंतरिक्ष में भयानक युद्ध करने की क्षमता अर्जित  करने के लिए प्राण-प्रण से प्रयास किया जा रहा है । हमारे अंदर की निषेधात्मकता इतना सर्वव्यापी हो गया है कि हमें अपने आप से  डर लगने लगा है । हम चारो तरफ भयानक युद्धोन्माद पैदा करने में लगे हुए हैं । यह सब इसलिए कर रहे हैं क्यों कि हम सोचते हैं कि सायद इस तरह हम सुरक्षित हो सकेंगे । पर ऐसा भी कभी हुआ है क्या?

हम बहुधा मृत्यु के बाद की चिंता करते रहते हैं । इस से कभी कुछ प्राप्त हुआ है क्या? न हुआ है, न होगा । मृत्यु के बाद जो होना है उस पर किसी का कुछ वश नहीं है । लेकिन जीवन में जो हो रहा है उसके बारे में हम सोच सकते हैं। विचार कर निर्णय ले सकते हैं । अच्छे-बुरे का हमें ज्ञान हो सकता है । अपने स्वार्थ में अंधा होकर दूसरों को कष्ट देना कम कर सकते हैं । लेकिन ऐसा होता कहाँ है? हम व्यर्थ के आडंवर में समय बिता देते हैं । खुद भी अशांत रहते हैं और दूसरों का जीवन भी नर्क कर देते हैं।

समस्त शृष्टि के प्रति अपने कर्तव्य की भावना से अभिभूत होकर जब हम जीना सीखेंगे तभी हमारे मन में आनंद का विकास होगा । हम प्रकृति के साथ एक लय में होंगे । सभी जीव-जंतु हमारे अपने हो जाएंगे । हम अपने अधिकार को दूसरों पर थोपना भूल जाएंगे । फिर मृत्यु के बाद हमें स्वर्ग की कल्पना नहीं करनी होगी । यहीं ,इसी जीवन में हम स्वर्ग का सुख भोग सकेंगे। फिर मृत्यु स्वयं अमरता का संदेश दे जाएगी । हम सद -सर्वदा के लिए मुक्त हो जाएंगे।

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