मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शनिवार, 27 अप्रैल 2019

अनंत से अनंत की ओर


अनंत से अनंत की ओर

इतनी विविधताओं से भरा हुआ यह संसार आश्चर्यों से लबालब भरा हुआ है । हम सोच नहीं पाते हैं कि आखिर यह सब कैसे हुआ ,इस सबके पीछे कौन है? कौन है वह जादूगर जो नित्य सौंदर्यमयी प्रातःकाल की रचना करता है । कौन हमें पृथ्वी पर चतुर्दिक फैले सुंदर हरितिमा का दर्शन करने का अवसर प्रदान करता है? दूर-दूर तक फैले हुए समुद्र कहाँ से आए? बात यहीं तक होती तो क्या कहना था ? अनंत व्रह्मांड में फैले हुए असंख्य ग्रहों,नक्षत्रों का निर्माता कौन है? कहते हैं हमारे सूर्य से भी हजारों गुना बड़े-बड़े सूर्य अंतरिक्ष में विद्यमान हैं । और वह ब्लैक होल (काला धब्बा) क्या है जिसके पास जाते ही कोई भी ग्रह,नक्षत्र साबूत नहीं बच पाता, उसी में सदा-सर्वदा के लिए समा जाता है?

हमारी पृथ्वी इस व्रह्मांड का एक बहुत ही लघुतम अंशमात्र है । व्रह्मांड कहाँ तक फैला हुआ है और इस में क्या-क्या है इसका सही-सही आकलन अभी भी कोई नहीं कर सका है । हजारों-लाखों प्रकाश वर्ष दूर अनेक तारा मंडलों को देखा जा सका है । पर वहीं अंत नहीं है । वैज्ञानिक  कहते हैं कि व्रह्मांड निरंतर बढ़ता जा रहा है । अनंत से अनंत की ओर यह यात्रा मानवीय सोच से परे है । क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस असीम व्रह्मांड के मौलिक  स्वरूप का दर्शन भी विज्ञान अभी तक नहीं कर सका है । मनुष्य की आयु इस तुलना में कहाँ ठहरती है? फिर भी हम छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं ।

देखने,सुनने,और समझने की हमारी शक्तियों की अपनी सीमाएं हैं । विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि जो आस्तित्व में है, सब कुछ दृष्य हो, यह जरूरी नहीं है । हम एक सीमा के अधीन ही सुन सकते हैं,देख सकते हैं । कुत्ता मनुष्य से दस हजार गुना ज्यादा घ्राण शक्ति रखता है । कई जीव हमसे ज्यादा सुन सकते हैं,देख सकते हैं । फिर भी हम कई बार अड़ जाते हैं कि हम जो देखते हैं वही प्रमाणिक है । शृष्टि में जो चीजें हैं उनमें से बहुत कम हम देख पाते हैं । हमारी ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति सीमित हैं । लेकिन जो चीजें हम देख रहे हैं,सुन रहे हैं उनको भी ठीक से समझ नहीं पाते हैं । इसके कई कारण हो सकते हैं । जैसे कि मोहवश हम अपनोंके मृत्यु से उद्विग्न ,दुखी हो जाते हैं । परंतु ऐसा ही अज्ञात लोगों के मरने से नहीं होता है । एक ही प्रकार की घटनाएं अलग-अलग से अपना प्रभाव छोड़ती हैं तो इसलिए कि हमारा  दृष्टिकोण एक जैसा नहीं रहता है। हम निष्पक्ष नहीं रह पाते हैं ।

स्वभाविक रूप से जीवन यात्रा शुरु होकर मृत्यु के बाद स्वतः समाप्त हो जाता है । अगर ऐसा नहीं भी होता है,और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता ही है तो उसमें हमें करने के लिए क्या रह जाता है? प्रकृति का नियम समस्त जीव-जन्तुओं पर समान रूप से स्वतः लागू होता है । हम चाहकर भी उसके अपवाद नहीं बन सकते हैं। फिर हमें क्या करना चाहिए? जीवन को ईश्वर का वरदान समझ कर प्रकृति के साथ संयोजन करते हुऐ आनंदपूर्वक जीवन विताना चाहिए । इसके लिए जरूरी है कि हम सकारात्मकता से जुड़ें और और अपने सोच में नकारत्मक तत्व जैसे क्रोध, घृणा ,प्रतिशोध को स्थान नहीं दें । इस तरह हम इस छोटे से जीवन को सुख,शांति के साथ  बिता सकते हैं,संतुष्ट रह सकते हैं ।

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