हमर मात्रिक
हमर मात्रिक सिंघिआ ड्योढ़ी अछि । हमर नाना स्वर्गीय रामप्रसाद झा कमे बएसमे स्वर्गवासी भए गेल रहथि । हमर नानी स्वर्गीया उत्तमा ओजाइन जीवन भरि वैध्व्यक डंस सहैत रहि गेलीह । हमर माए हुनकर एकमात्र संतान रहथिन । हुनके मुँह देखि जीवि गेलीह । मुदा माएक बिआह बहुत जलदी (नओ वर्षक बएसमे) कए देल गेलनि । साल बरिक भीतरे हुनकर द्विरागमन सेहो भए गेलनि । एमहर हमर बाबाक सेहो एकहिटा संतान,हमर पिता(स्वर्गीय सूर्य नारायण मिश्र) रहथि । हमर दाइ बहुत सिनेहसँ अपन पुतहुक पालन केलथि । कहाँदनि कतेको साल धरि माए अपन नैहर नहि गेलीह । हमर दाइ अड़ि जाथिन । हमरा ई नहि बूझएमे अबैत अछि जे एतेक कम बएसमे माएक बिआह कए देबाक कोन धरफरी रहैक? तखन तँ बिना पिताक संतान रहबाक कारण जे भेल से भेल । कहाँदनि हमर नानी बहुत विरोध केने रहथि । ओ चाहथि जे अखन बिआह नहि होइ । मुदा हमर पितिऔत नाना स्वर्गीय बौएलाल जा नहि मानलखिन । माएक भाइ(कंसी गामक) सेहो सएह विचारक रहथि । सभक कहब जे बर बहुत संपन्न छैक । एहन नीक बिआह नहि टारल जा सकैत अछि । फेर ओहि समयमे कमे बएसमे बेटीक बिआह होएब कोनो नव बात नहि रहैक , ओना तँ होइते रहैत छल । बिआहक समयमे माए चौथामे पढ़ैत छलीह । बस ओतबे पढ़ि कए रहि गेलीह । हमर पिता ओहि समयमे बाइस वर्षक रहथि । वाटसन इसकूल मधुबनीक छात्र रहथि । गेनखेलीमे पारंगत रहथि । पारिवारिक स्थिति बहुत मजगूत रहनि । हमरसभक परबाबा(स्वर्गीय गुमानी मिश्र) इलाकाक प्रतिष्ठित जमींदार रहथि । कुलमिला कए इएल लगैत अछि जे बहुत संपन्न परिवारमे माए आ बाबूक जन्म भेल रहनि । बिआहक बादो ओ सभ बहुत दिनधरि संपन्नताक आनंद उठओने रहथि ।
हम पहिलबेर मातृक बाबूक संगे दरभंगा बाटे गेल रही ।
दरभंगा धरि बससँ गेलाक बाद ट्रेन पकड़ने रही । हमर ओ ट्रेनक पहिल यात्रा छल । पहिल
बेर ट्रेनमे चढ़बाक आनंदमिश्रित आश्चर्यसँ अभिभूत रही । ओहि समयमे टेक्टारि टीसन
नहि बनल रहैक । तेँ मोहम्मदपुर उतरि पिंडारुछ बाटे पैरे-पैरे हम आ बाबू मातृक
पहुँचल रही । बीच-बीचमे जहन थाकि जाइ तँ बाबूसँ पुछिअनि-“आब कतेक दूर
छैक ?”
“ओएह जे इजोत देखा रहल अछि ने,सएह छैक । आब कनीके दूर अछि ।”
-से कहि ओ हमरा कोरामे लए लेथि । मातृक पहुँचलापर
हमर जबरदस्त स्वागत भेल छल । नानीक प्रसन्नताक तँ अंते नहि छल । ओही आङनमे हमर
पितिऔत नाना स्वर्गीय जीबछ झा रहथि । हुनकर परिवारमे सभगोटे हमरा बहुत रास टाका
गोर लगाइ देने रहथि । प्रात भेने आओर फरिकेन सभक ओहिठाम सेहो गेल रही । हमर
नानागाममे सभ संपन्न छलाह । बड़काटा दरबाजा छल । अफसोचक बात जे दरबाजाक हमर अपन
नानाक हिस्साबला भागमे पोस्ट आफिस खोलि देल गेल रहैक ।
हमर समय ओतए बहुत नीकसँ बीतल । किछु दिनक बाद हम बाबूक
संगे अड़ेर डीह वापस भए गेल रही । तकर बाद एकबेर आओर हम मात्रिक गेल रही । ताबे
टेक्टारिमे रेलक अस्थायी ठहराव(हाल्ट) भए गेल रहैक । ओहि समयमे हमर नानीक सासु आ
दियादनी जीविते रहथि । तकर बाद हम ओतए नहि जा सकलहुँ । आब तँ तकर साठि सालसँ बेसी
भए गेल होएत । कहि नहि आब ओहिठामक की हाल अछि?
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