मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 24 मई 2018

घमंड


 घमंड 


जीवनमे बहुत रास अनुभव होइत रहैत अछि। नित्य किछु ने किछु एहन घटना घटित होइत अछि जे हमर आँखि खोलि सकैत अछि मुदा से होइत कहाँ अछि ? हमसभ नियतिवस चलिते जा रहल छी,सोचि नहि पबैत छी जे हम एना किएक कए रहल छी ?  ई बात प्रायः सभ जनैत अछि, जे जन्मल अछि से मरत। मृत्यु अवश्यंभावी अछि,तथापि हमसभ सोचैत रहैत छी जे हम तँ अहिना रहब । युधिष्ठिर द्वारा यक्षकेँ देल गेल एहने प्रश्नक उत्तर एखनो ओहिना सार्थक अछि जहिना ताहि समयमे रहल होएत। आखिर एना कोना होइत अछि जे हम  सद्यः घटित होइत घटनाक प्रति अनजान बनल रहि जाइत छी आओर एकदिन  सभ किछु एतहि छोड़ि कए सभदिनक हेतु एहि दुनियाँसँ आँखि मुनि लैत छी ।
आखिर किछु तँ छैक जे मनुक्ख मात्रकेँ निरंतर ओझरौने रहैत अछि । हम निरंतर अपन आस्तित्वक रक्षाक हेतु संघर्षशील रहैत छी। हम जे कहैत छी से लोक मानए,हमर महत्व बुझए एवम् हमर श्रेष्ठत्वकेँ स्वीकार करए। एहिसभक पाछा हमर घमंड प्रमुखतासँ मुखरित होइत रहैत अछि। जीवनसँ लए कए मृत्यु पर्यंत हमरा लोकनिक व्यवहारकेँ  पाछा ई तत्व विद्यमान रहैत अछि । हम जाने-अनजाने दोसरसँ अपनाकेँ श्रेष्ठ साबित करबाक फेरमे पड़ि अपन जीवनकेँ तँ  अशांत केनहि रहैत छी ,संगहि दोसरोकेँ तंग कए दैत छी कारण एहन स्वार्थमूलक सोचसँ व्यक्तिक अहंमे टकराव उतपन्न होइत अछि आओर लोक अपनाकेँ पैघ देखेबाक प्रयासमे दोसरकेँ छोट साबित करए लगैत अछि । परिणाम होइत अछि ,व्यर्थक अनवरैत चलैत अन्तरद्वंद ।
मान -सम्मान , प्रतिष्ठाक लिप्सा मनुक्ख मात्रमे ततेक बलबती रहैत अछि जे ओ कोनो हालातमे ताहि हेतु किछु करए हेतु तैयार रहैत अछि । लोक हमरा बुझए,मान्यता दिअए,हम समाजमे देखगर लोकमे गनल जाइ,एहि समस्त भावनाक पाछा जँ देखल जाए तँ ओकर घमंडे काज करैत रहैत अछि। एहन घटना नित्य-प्रति देखएमे अबैत अछि जे कतेको गोटे बेबजह अनकर मामलामे टांग अरबैत रहताह । जेना कि ओ चैनसँ रहिए नहि सकैत छथि। एहन आदमी हेतु इहो कहल जा सकैत अछि जे ओ अपन चालिसँ लाचार छथि । कोनो,ककरो बात उठल कि ओ अपनाकेँ ओहि बीचमे ठाढ़ कए देताह। तरह-तरहक ब्यर्थ उदाहरण दैत रहताह जाहिसँ ई कहुना सिद्ध होउक जे हुनके टा सभबातकेँ बुझए अबैत छनि किंबा ओ जे कहैत छथि सैह व्रह्मसत्य थिक । एहन आदमीकेँ अहाँ की कहबैक? “एकोहं द्वितीयो नास्ति" --एहि तरहक सोच कोना कारगर भए सकैत अछि ?
हमर गाममे एकबेर श्राद्ध भोज होइत रहए। एकटा प्रतिष्ठित व्यक्तिक देहावसान भए गेल छल । अपना जीवन कालमे ओ खूब संपत्ति अर्जित कएलाह । संघर्ष करबामे हुनकर सानी नहि भेटि सकैत अछि । तखन तँ मृत्यु सभक होइत अछि से हुनको भए गेलनि । अपने जीवनमे लीखसँ लाख करबाक पुरषार्थ हुनकामे भगवान देलखिन । मृत्युक बाद लोकसभक आग्रह जे जबार होउक,एतेक संपत्ति अरजि कए गेल छथि । मुदा से तँ नहि भेलैक , गामे लए कए भोज हेबाक निश्चय भेलैक । संयोगसँ हमहूँ हाले मे सेवा निवृत भेल  रही आ गामे पर रही। भोज खेबाक हेतु गेलहुँ तँ देखैत छी एकटा हमर ग्रामीण ,जे भरि जिनगी बाहर कमाइत रहलाह, घरक दरबाजाकेँ गछारि कए ठार भेल छथि,गरजि रहल छथि,बारंबार चेता रहल छथि जे एक-एक कए लोक अन्दर जाथि । हुनकर चिकरब-भोकरब ततेक प्रखर चल जे अनेरे  ककरो ध्यान हुनका पर पड़ि जाइत छल । एवम् प्रकारेण हुनका अपन महत्वक प्रदर्शन करबाक आ ताहिसँ संतुष्टिबोध प्राप्त करबाक पर्याप्त अवसर भेटलनि । जँ ओ नहि चिकरितथि,किंवा घरक केबार धए ठाढ़ नहि रहितथि,लोक अपने अबैत   जाइत ,तैओ भोज भए जैतैक,प्रायः बेसी नीकसँ होइतैक कारण ओ तँ अनेरे केबारकेँ पकड़ि चिकरि कए महौलकेँ गड़बड़ा रहल छलाह,मुदा हुनका तँ देखेबाक रहनि जे ओ एतेक महत्वपूर्ण व्यक्ति छथि,सबके कस्तन कए रहल छथि,हुनके आज्ञासँ लोक भोज खाए अन्दर जाएत नहि तँ ओतए बबाल भए जाएत । बिचारि कए देखबैक तँ एकरा व्यक्ति विशेषक घमंडक अतिरिक्त किछु आओर नहि कहल जा सकैत अछि।
की पैघ,की छोट सभ क्यो कतहुँ  ने कतहुँ,कहुना ने कहुना घमंडक चपेटमे पड़िए जाइत छथि। शास्त्र-पुराणसभमे सेहो कतेको एहन प्रसंगक वर्णन अछि जाहिमे एक सँ एक संत महात्मा,देवी-देवता एकर  प्रकोपमे पड़ि गेलाह । महाभारतमे एहि संवंधमे बहुत मार्मिक घटनाक वर्णन अछि । एकबेर हनुमान बूढ़ बानरक रूपमे भीमके रस्तामे बैसि गेलाह । भीम हुनका अपन नांगरि हटेबाक हेतु कहलखिन  कारण हुनका जल्दी जेबाक रहनि मुदा ओ बानर टस सँ मस नहि भेल, उल्टे व्यंग करैत कहलकनि जे जखन अहाँ एतेक बलवान थिकहुँ तँ नान्हिटा हमर नामगरिकेँ उठाए किएक नहि आगू बढ़ि जाइत छी ? भीमकेँ ई बात बहुत अनर्गल बुझेलनि आओर ओ ओहि बूढ़ बानरक नांगरिकेँ हटबएमे लागि गेलाह,सभ प्रयत्न कए थाकि गेलाह मुदा नांगरि ठामहि रहल । हारि कए भीम कहलखिन जे अहाँ साधारण बानर नहि छी,के छी से सत-सत बाजू । तखन हनुमानजी अपन भेद खोलि कहलखिन जे हम आहीँक भाए हनुमान छी । भीम बहुत लज्जित भेलाह आ हुनकासँ घट्टी  मानलथि । एहि तरहेँ हनुमानजी हुनकर घमंडकेँ चकना चूर केलाह । कहक माने जे घमंड एकटा एहन व्याधि थिक जे अनेरे हमरा लोकनिक आँखिपर पट्टी लगा दैत अछि आ हम सत्यकेँ देखितहुँ ओकरासँ फराक रहि जाइत छी ।
घमंड किम्वा अहंकेर टकरावसँ कतेको  लोकनिक पारिवारिक जीवान नर्क भए जाइत अछि । हम ककरासँ कम ? हमरा ई कहलक,ओ कहलक,हम ओकर बात किएक सहबैक, एहने-एहने छोट-छोट बात केँ पकड़ि कए लोक धए लैत छथि जाहिसँ आपसी प्रेम ओ विश्वास नष्ट भए जाइत अछि ,बात ततेक बढ़ि जाइत अछि जे संवंध विच्छेद धरि भए जाइत अछि । जौँ एहन समयमे क्यो बुझनिक होथि,एक डेग पाछा भए जाथि,हारि मानि लेथि तँ बहुत रास परिवार खंडित हेबासँ बँचि सकैत अछि,बहुत रास धीया-पुताकेँ पारिवारिक आश्रय बनल रहि जाएत एवम् परिवारमे समन्वय,शांति बनल रहत । मुदा ई बात बुझब आ बुझिओ कए व्यवहारमे आनब कै बेर बहुत मोसकिल भए जाइत अछि कारण क्यो अपन अहंकेँ छोड़बाक हेतु तैयारे नहि होइत अछि । परिणाम सामने अछि । नान्हिटा टेल्हकेँ माए-बापक बीच कलहक दृष्य देखए पड़ैत छैक। बच्चासभ घरक वातावरणसँ तंग भए घरसँ भागल-भागल रहए लगैत अछि आ गलत संगतिमे पड़ि कए कै बेर नशेड़ी भए जाइत अछि । सोचए बला बात हछि जे माए-बापक व्यर्थक अहंक कारण एहन वच्चाक भविष्यक संगे कतेक अन्याय होइत अछि ?
एहन नहि अछि जे कमे पढ़ल-लिखल लोक घमंडक प्रदर्शन करैत छथि अपितु एक सँ एक विद्वान ओ पैघ-पैघ लोकमे एकर व्यापक प्रभाव देखएमे अबैत अछि । जे जतेक पैघ तकर घमंड ततेक विनासकारी भए सकैत अछि । इराकक राष्ट्रपति सद्दाम ओ अमेरिकाक राष्ट्रपति बुशके बीच जे एतेक भारी युद्ध भेल तकर पाछु की छल ? महज अहंक टकराव ? जहिना गाम-घरमे मूर्ख लड़ैत अछि तहिना ओ सभ आपसमे ताधरि लड़ैत रहलाह  जाधरि सद्दामक विनाश एहि हदधरि नहि भए गेल जे ओ अपन प्राणोसँ हाथ धोलक । बादमे पता चलल जे ओकरा लगमे कोनो रासायनिक हथियार नहि छल जकरा आधार बनाए इराकपर अमेरिका आक्रमण केलक । कार्यालयमे अधिकारी लोकनि कए बेर अहं पर चोट पड़लापर अधीनस्त कर्मचारीकेँ तबाह करबाक कोनो ब्योंत बाम नहि जाए दैत छथि । बदली कएदेब.काजसँ हटा देब आ ताहुसभसँ संतोष नहि भेलनि तँ नौकरीसँ मुअत्तल कए देब सामान्य बात थिक। जे ततेक पैघ अधिकारी तिनक अहंसँ ततेक बेसी सावधान रहब जरुरी थिक । काज करी वा नहि करी मुदा हुनकर सलामीमे कोनो कमी नहि हेबाक चाही । जँ से भेल तँ अहाँक भगवाने मालिक ।
असलमे घमंडी व्यक्ति भीतरसँ असंतुष्ट होइत छथि । हुनका लगैत रहैत छनि जेना सौँसे दुनियाँ हुनका पाछा पड़ल अछि,जेना क्यो हुनका संगे न्याय नहि कए रहल अछि ,एहि तरहक फिजुल बातसभ हुनकर मोनमे बैसल रहैत हछि जाहि कारणसभ हुनकर व्यवहार स्वयं असंतुलित भए जाइत अछि किंवा लोकसँ बहुत बेसीक अपेक्षा रखैत अछि । परिणाम  होइत अछि जे ओ बात-बात पर लोक सभसँ मरए-कटए हेतु तैयार रहैत छथि । सोचबाक बात थिक जे एहन लोककेँ शांति कतएसँ भेटि सकैत अछि आ "अशांतस्य कुतो सुखम्" ? एहि तरहक अशांत प्रवृतिक लोकमे घमंड भरल रहैत अछि । जाहिर अछि जे एहम लोक आस-पासकेँ लोककेँ तरह-तरहसँ कष्ट पहुँचबैत छथि । अपने तँ दुख कटिते छथि दोसरोक जीवनकेँ नर्क कए दैत छथि।
घमंड कतेको कारणसँ भए सकैत अछि आ कए बेर तँ बिना कोनो औचित्यकेँ  स्वभाववश सेहो लोक घमंडी भए जाइत अछि। एहन उदाहरण अहाँकेँ कतेकोठाम देखबामे आएत । हमरा गाममे एकटा भिखमंगा कहिओ काल अबैत छलाह । यद्यपि ओ भिख चाहैत छलाह मुदा हुनक बाजबाक चहटिसँ क्यो नहि कहैत जे ओ भिखमंगा थिकाह । असलमे ओ पहिने बहुत धनीक छलाह मुदा कालक्रमे गरीब भए गेलाह । जमीन -जायदाद बिका गेलनि । कहबी छैक जे जौर जड़ि गेल मुदा एंठन अछिए । सैह गप्प छलैक ।
महाभारत मे खिस्सा अछि जे द्रोपदीकेँ अपन सौंदर्यपर बहत घमंड रहनि आओर गाहे -बगाहे ओ एहि कारणसँ कतेको शत्रु बना लेलीह। परिणामसभकेँ बुझल अछि । मामला द्रोपदी चीर हरणधरि पहुँचि गेल । की -की तमाशा ने भेल । भयानक युद्ध भेल आओर समस्त परिवार विनाशकेँ सीमानधरि पहुँचि गेल । कहक माने जे घमंड चाहे जिनका होनि,आओर जाहि कोनो कारणसँ होनि,एकर परिणाम  खराबे होइत अछि ।
घमंड एकटा मानसिक रोग थिक जे मनुक्खकेँ सत्यक दर्शन करएसँ ओहिना रोकि दैत अछि जेना सीसीमे कोनो वस्तुकेँ पैसबासँ ठेपी । घमंडी व्यक्ति एक हिसाबे आन्हर होइत अछि जे  मदांध भए सही विचारकेँ कदापि नहि सुनैत छथि । एहने मानसिकता रावणकेँ रहैक जाहि कारणसँ घरहंज भए गेलैक , सभ किछु नष्ट भए गेलैक । मेघनाद सन बीर ओ तेजस्वी संतानसँ हाथ धोअए पड़लैक,कुंभकरण सन भातृभक्त भाए मारल गेलैक,विभीषण घर छोड़ि भागि गेलाह। सभ ओकरा बुझबैत रहलैक ,एहि हद धरि जे मंदोदरीक कथन धरिकेँ ओ सौतिआ डाह कहि अपमानित केलक । परिणाम सभकेँ बुझल अछि । अस्तु,घमंड सर्वथा त्याज्य थिक ।
जँ बिचारिक् देखल जाए तँ एहि दुनियाँमे कोनो तरहेँ पार पाएब आसान नहि अछि । पढ़ले देखू तँ एक सँ एक विद्वान छथि। आइन्सटाइन,सेक्सपीयर,कालीदास,राधाकृष्नन,कतेको नाम अछि,ककर नाम लेब ,ककर छोड़ब,पन्नाक पन्ना भरि जाएत । धनिकमे गिनती करब तँ गनिते रहि जाएब । एहिना पद,सौंदर्य,वुद्धि सभ तरहेँ एकसँ एक लोक एहि संसारमे भेलाह आआोर छथिहो । तखनो जँ क्यो कथुक घमंड करैत छथि तँ की करबै? हँसबे करबै ने ? अस्तु ,विनम्र होएब सबसँ नीक ऐश्वर्य अछि जे सही कही तँ भाग्यवाने लगमे होइत अछिः

बरसहि जलद भूमि निअराए,

नबहि यथा बुध विद्या पाए ।

विनम्रता विद्वताक परिचायक थिक । जरुरी अछि जे सही ज्ञान प्राप्त कए स्वभावमे विनम्रताकेँ आनल जाए आओर घमंडसँ मुक्ति पाओल जाए,जाहिसँ जीवन सुखमय होएत ।


सोमवार, 21 मई 2018

Life beyond sixty



Life beyond sixty

A report released in April 2016 said that the number of citizens over the age of 60 jumped 35.5 per cent — from 7.6 crore in 2001 to 10.3 crore in 2011.This is also a record high since 1950 and is almost twice the rate at which the overall population grew. In the same period — 2001 to 2011 — India’s overall population grew by 17.7 per cent, according to official figures. The number of Indians over the age of 60 has hit an all-time high, accounting for 8.6 per cent of the country’s 121-crore population, according to latest official figures.

“The trend clearly reveals that ageing will emerge as a major social challenge in the future.” 

With increasing longevity, the requirements of aged persons are also changing. Many senior citizens are now living alone as their children are settled abroad or are living in far off places and cannot therefore, provide any physical assistance which most of them require at this stage. Some of them develop depression due to isolation and complete lack of psychological and physical support from their relatives. We, therefore, need to introspect seriously about the emerging trends so that we can live a happy retired life.

 We were born a small child. Our parents brought up us with lot of love and affection. They made a lot of sacrifice to send us to schools and colleges and helped us to be what we are. But the parents who brought up us with so much love and affection have now grown old. It is disappointing to find parents craving for justice from their own children. Their life and property are unsafe in the hands of those whom they had nourished throughout. The problem is more acute among the rich and the affluent. They are ready to spend over their parents but do not have time to care for them. We can find many aged persons from affluent families languishing in the elder’s home. The aged parents from the lower income group have greater emotional protection. They respect their parents and take their advice in the family matters. Despite economic hardship, they find time and money to serve their parents. The situation is mostly different in affluent families. 
The first and foremost requirement is a healthy life. It is essential for people of all ages. But it is a great asset for senior citizens. We may avoid illness by developing healthy habits. Regular consultation with Doctors and proper medication is a must. Besides a balanced diet also helps in maintaining good health. It is not important how long we live. But we should live a healthy and self-dependent life. If we are physically incapacitated, we become a liability for our relatives. Nobody has time to attend the ill and incapacitated persons. Even rich and affluent persons, who are physically unfit, are left out at senior citizen homes.
To have a respectful retired life, one should be physically and financially self-dependent. Good health and physical fitness is essential for happy life. We may enjoy our money only as along we are physically fit. Otherwise it will be of no use. Therefore, we should undertake regular exercise. The type of exercise may vary from man to man depending upon his health conditions.
Deteriorating health conditions are major hazard for senior citizens. Our health system is not conducive to the requirements of the elderly persons. Although rules are there in place to give them preferential treatment so that they do not have to stand in que, but this is hardly practiced. I myself had to fight several times to get this facility while standing in que at CGHS counters. I even filled application under RTI to elicit legal provisions and their implementation being done at the CGHS counters. I got replies from several CGHS centres in Delhi, but its implementation was always challenged by other visitors who would not wait rather fight with the elderly persons if they get out of turn treatment.
One day I had gone to book a registered post at the Lajapat Nagar post office. I saw an elderly person requesting the counter clerk to book his post out of turn as he was a senior citizen. This led to lot of quarrels with other customers who would not buzz. I tried to support the man fighting for the right thing but even the postal authorities remained passive and did not listen to the genuine request of the elderly person who ultimately had to wait for about half an hour to get his work done.
Everybody who is young must grow old. There is no alternative to this. But we can certainly make a difference by adopting right attitude. The first and foremost requirement for a happy life is self-satisfaction. We must thank God for whatever we have got in our life. We may thank him for gifting us with children who are self-dependent by now, for good houses that we have built and even for good health that we possess. 
We keep on earning throughout our life. This is the time when we can enjoy our hard-earned money. There are people who keep saving money even when there is hardly time left to utilize them. Many of them are heard saying that they did not have avenue to spend. If that is so, we may gift away a portion of our wealth for the welfare of the poor and needy persons. Keeping money just locked in the bank brings nothing except interest. If we can spend additional money and resources for the public welfare it may give us lasting peace of mind.

Property, name, fame and the entire material things which we have acquired during our life time are bound to go. Everybody who came to this world ultimately died without any exception. We are also in the same que. It does not mean that we should stop doing anything and everything and sit idle waiting for death to come. That will be too much, but we must not forget the ultimate truth of life. If we just keep in mind and weigh for options before us in crucial moments of life, we shall not only be in peace with ourselves but will also do a lot of good to humanity. Unfortunately, we cling to the past and try to regain something already lost. We should get rid of useless material possessions and live with the minimum so that the journey back to home is without riders. We need to learn and understand sayings from Kabirdas-“jas ko tas dhar dinhi chadariya”. 
The problem with us is that we get attached with every small thing that we come across during the long journey of life with the result that such things instead of adding to happiness in our life become a source of trouble. We remain mentally involved in protecting things which are sure to go. This disturbs peace of mind. The question is:” What should be done then?” The answer lies within us. We should try to hand over authority to the next generation at the right moment. I quote a verse in Sanskrit:
Prathame naarjitam vidya,dvitiye naarjitam dhanam,Tritiye naarjitam dharmam,chatirtham kim krisyate””meaning thereby that  one should acquire education till the age of twenty-fifth earn livelihood/wealth till the age of fifty, then should  involve in welfare measures, religious work otherwise nothing can be done at the end?
Life has its own circle. Every child grows to become adult and ultimately becomes an old man before he leaves the world. Very few people are not lucky and may die young or even earlier. We are lucky that way to be able to live long. But we must not forget that there is no exception to death. The best solution for something which cannot be changed is to accept it. That should be the case with life and death. We must accept it and live happily. Persons growing old should develop detachment with things around.
We must develop faith in God. A person who believes in Him will be free from fear of any kind. Fear of death or for that matter eventualities of life which are not of our liking vanishes once we integrate ourselves with God. We are never alone! He is always there to guide us during difficulties of life. Fearlessness gives tremendous strength. It brings out our hidden energy and makes us feel strong.
You have been struggling throughout . Now it is time to relax  and enjoy little time that you have at your possession in engaging with yourself. Your hobbies and personal interests should dominate your daily routine. No need to put alarm in the clock. No need to put too much restriction on what to eat and what not. Even if it means slight stomach disorder, do not mind. Please go ahead with menu of your choice. After all, what is the purpose of living too long, if we do not enjoy it!
We can live meaningful life even beyond sixty. We can involve ourselves in welfare work as per our test and capacity. There are many such avenues. Persons interested in teaching can hold free classes to educate the poor children living in slums. The Government hospitals provide another venue for serving the ailing persons . Many patients and their wards keep moving here and there for want of appropriate knowledge about facilities available at the hospital. We may utilize our time and resources to help such needy persons. These are only a few examples but individuals can find much more depending upon their nature, and situation.Such activities besides keeping us engaged, also provide self-satisfaction. We must keep ourselves socially involved and adopt an optimistic attitude  .Above all,we must integrate ourselves with well being and happiness of others. This will make our old age really worth living!

शुक्रवार, 18 मई 2018

भोरसँ साँझ धरिक भूमिका


भोरसँ साँझ धरि भूमिका

१२ नवम्बर २०१६ (कार्तिक शुक्‍ल त्रयोदशी)क साँझ सात बजे हमर वयोवृद्ध चौरानबे वर्षीय माता दयाकाशी देवीक देहावसान भए गेल। ओ जाँघक हड्डी टुटि गेलाक कारण पछिला दू बर्खसँ कष्टमे छली। नाना प्रकारक उपचार भेल परन्तु ओ पछिला तीन माससँ लगातार गड़बड़ाइते गेली आ अन्ततोगत्वा कालक अपराजेय हाथे हुनक प्राण देह छोड़ि देलक। ओहि समयमे हमहूँ ओहीठाम रही। हुनकर देहावसानक बाद मोन ततेक दुखी ओ अशान्त भए गेल जकर वर्णन असम्भव। लगभग चारि मास धरि राति-राति भरि निन्न नहि भेल।  
कहिओ काल भोरुपहरमे आँखि लगैत छल, ओहो थोड़बे कालक लेल। सगर राति ओहिना माने टकटकीए-मे...। सम्पूर्ण दिनचर्या अस्तव्यस्त भए गेल। निःशव्द रातिमे जागल माथमे बितल बात सभ सिनेमाक रील जकाँ उभरैत रहैत छल। एहन मानसिक स्थितिसँ उवरबामे एहि आलेख सबहक सहारा भेटल। मोनक बात सभ लिखैत गेलहुँ। सालक साल मोनमे गरल बात सभकें निकलबाक रस्ता भेटलैक।   
शुरूक २५-२६ वर्ष हम गामेमे वा गामक आसेपासमे रहलहुँ। पछाति भारत सरकारक केन्‍द्रीय सचिवालय सेवामे नौकरी भेलाक बाद दिल्ली ओ गामक बीच तारतम्य बैसाएब ओ बनौने रहब, क्रमश: कठिन होइत चलि गेल। यद्यपि गामपर पू. माएकेँ रहबाक कारण गाम आबा-जाही निरन्तर बनल रहल।  
ओना, लगभग चालीस बर्खक बाद आब दिल्ली घर जकाँ भए गेल अछि। बच्चा लोकनि अहीठाम छथि। सभ सुविधा अहीठाम अछि, सेवा निवृत्तिक पश्चातो ओहिना व्यस्तता बनले अछि। दिल्लीमे एतेक दिन रहलाक बादो गाम-घरक उद्वेग तऽ अबिते अछि। 
हमर समस्त आलेखक प्रथम पाठक हमर पत्नी श्रीमती आशा मिश्रक एहि साहित्यिक कॄतिमे अभूतपूर्व योगदान अछि। हुनकर निष्पक्ष सुझावसँ बहुत मदति भेटल। प्रत्येक आलेखके ओ ध्यानसँ पढ़लथि एवम् ओहिमे गुणात्मक सुधार केलथि, जाहिसँ एहि आलेख सभकेँ सही दिशा भेटल।  
डा. विनय कुमार चौधरीजी, आर.एम.कॉलेज सहरसाक समाजशास्त्र विभागक प्रोफेसर छथि, हमर अभिन्न मित्र, शुभचिन्तक छथि। सहरसामे रहि कतेको सामाजिक काजसँ जुड़ल छथि। अनेको पोथीक लेखक छथि। हुनकर प्रेरणादायी मार्गदर्शनसँ एहि पुस्तकक प्रकाशनमे बहुत योगदान भेटल।  
श्री उमेश मण्डलजी (बेरमा, निर्मली) घनघोर परिश्रमक संग एहि पुसतकक हस्तलिखित पाण्‍डुलिपि सभक स्वच्छ प्रति प्रस्तुत केलाह। एहि लेल हुनका आशीर्वाद।  

अन्तमे, माता-पिताकेँ हार्दिक श्रर्द्धांजलि एवम्‍ समस्त श्रेष्ठजनकेँ सादर प्रणाम करैत ई पोथी अपने लोकनिक सम्मुख प्रस्तुत करैत अपार हर्ष भए रहल अछि।











रबीन्द्र नारायण मिश्र



ग्रेटर नोएडा



२६.९.२०१७


गुरुवार, 17 मई 2018

पंक्षी और मानव


पंक्षी और मानव



ये पंक्षीगण,

फरफराते पंख अपने,

नहीं है कुछ भी उनके पास,

अट्टालिकाएँ या बैंक में खाता



न ही कोई करता इनकी परबाह,

न कोई कह उठता बाह बाह

जब वे अपने कलरव से,

चतुर्दिक भर देते उत्साह



सुनाकर नित मधुरिम संगीत,

कर देते सब को मस्त ,

और स्वयं भी रहते हैं अलमस्त।



और हम, पता नहीं क्यों ?

हमेशा रहते अस्त -व्यस्त,

अकारण चिंतित शोक संतप्त ।

सोचने में भी करते लाज,

कि क्या है,

उस मस्ती का राज ?



१.५.१९८३

अनुत्तरित प्रश्न ???






अनुत्तरित प्रश्न ???



आमंत्रित हुआ हूँ,मैं बार-बार

उत्तर देने के लिये,

वही प्रश्न-

जो है गूढ़ और गंभीर

श्रिष्टि के आदिकाल से,

जिस पर चल रहा है विवाद,

और समाधान आजतक हो नही सका



प्रश्न हे आज भी अनुत्तरित,

कैसे और क्या दे सकता था ?

उत्तर उन प्रश्नों का।

प्रयत्न तो किया था, कर भी रहा हूँ,

कि सोच लूँ,

अपने लिये ही सही,

कोई भी समाधान



पर मैं यह भी नहीं कर सका ,

विवाद जो जुड़ा है,

मनुष्य की अस्मिता से, चलता ही रहेगा ।



जबतक रहेगा यह समाज,

और स्वनिर्मित इसकी मान्यताएँ

लोग इसी तरह रहेंगे,

 किंकर्तव्यविमूढ़, समस्याग्रस्त

स्वनिर्मित सीमाओं को, नियमो,प्रतिवंधो को,

तोड़ने के लिये, विवश और कृतसंकल्प ।

४.१०.१९९३

आकाश का मौन


आकाश का मौन

किस दुख से आहत युग- युग से,

मौन सतत रहते हो ?

क्या कारण है,

 कहो गगन क्यों, दूर-दूर रहते हो ?



हे आकाश कहो शोकित क्यों,

तेरा चिर जीवन है ।

क्या मानव की दशा देखकर,

व्याकुल अन्तर्मन है ।



ज्योतिर्मय आँचल तेरा,

शशि सूर्य सतत करते हैं ।

इन्द्रधनुष  बन अलंकरण,

भासित तुझको रखते हैं ।



रंगे विरंगे परिधानो से,

वादल तुझको सजता है,

फिर भी क्यों आंगन तेरा,

सूना सूना लगता है ।



क्षितिज पार सागर से मिलकर,

क्या बातें करते हो ?

किस दुख से आहत युग-युग से,

मौन सतत रहते हो ।



(सन १९८१)

मंगलवार, 15 मई 2018

पैसा


पैसा

जीवनसँ मृत्यु धरि,

ओकरे पसार हछि ।

एकरे लेल पढ़लोसभ ,

बनि गेल गमार अछि ।



बुझि नहि रहल क्यो जे,

ओ एक इंशान अछि,

पैसोसँ बढ़ि-चढ़ि,

 मनुक्खक इमान अछि ।



मनुक संतान देखू,

भेल रक्तबीज छथि,

पैसेकेँ बुझि रहल,

ओ सभ चीज छथि ।



चारू दिसि केहन ई,

चहल-पहल व्याप्त अछि,

पैसाक आगूमे,

क्यो नहि आप्त अछि ।



१८.११.८१

अनाहूत


अनाहूत

जेठक दुपहरिआमे,

पीपरक गाछ तर,

असोथकित बैसल छलहुँ,

एतबहिमे क्यो अनाहूत,

हमरे इशारा कए,

किछु कहि रहल छल ।

"जे हम दुखक झंझाबातसँ, दग्धभए, सुखक अन्वेषणमे,

तोरे देह सँ बहराएल छलहुँ,

मुदा एहि अर्थ युगमे,अभावक चक्रव्युहमे ओझराऐल,

पुनः तोरे देहमे प्रवेशक हेतु,

चेष्टा कए रहल छी ।

हमर अतिरुग्ण तन, अपने प्राणसँ डरि रहल छल,

जे एकर पुनरागमनसँ,

दुखक नूतन शृँखला प्रारंभ होएत,

कहि उठल-

"ठामहि रहह,हम विदा छी । "



(सन्१९८१)

अहीँक मर्जी !


अहीँक मर्जी !



हमर जीवन,

हमर सभ कामना,

हमर इक्षा ,हमर सभ भावना,

हे शृष्टिकर्त्ता अहीँक मर्जीपर ,

बनल अछि,चलि रहल अछि ।

हम हारि भागक चोटसँ,छटपटाएल,

भाविक पसरल जालसँ लटपटाएल,

किंकर्तव्य भए,अज्ञात दुर्गम मार्गपर,

चलतहि रहल छी,

सभकिछु अहीँक माया,

अहीँक विस्तार अछि,

से सोचि ,हे प्रभु!

कष्ट हँसि- हँसि सहि रहल छी ।

(सन्१९८१)

अर्थतंत्र


अर्थतंत्र

दूपहर रातिसँ,

ककरो आवाहन कए,

उद्विग्न भावे हम,स्वागतमे ठाढ़ छलहुँ ।

की हमर आवाहन मंत्रक कोनो पाँति,

गड़बढ भए गेल छल ?

जे आहूत आगन्तुक,

हमर देखितहिँ,

पाछुए हटैत गेल ।

आर वो कहैत गेल,

जे एहि आवाहनकेँ,

आविष्ट करबाक हेतु,

अर्थक प्रयोजन अछि,

कारण सभ मंत्र -तंत्र,

एहीसँ जोड़ल अछि ।

(सन्१९८१)

परिवर्तन


परिवर्तन
हरिअरीसँ भरल गाछक डारिसँ,
कुहकि कोयली गबै छल,
ई महमही,ई हरियरी,बस दू दिनक अछि ।

नहि क्यो सूनल,चलिते रहल,
दिन रााति अबिरल भावसँ ,बढ़िते रहल,
गन्तव्य की? ततबो पता ककरो ने छल ।

जे बटुक चल,से तरुण भए,
नित भोग कए,पुनि बृद्ध भए,
ठेहिआएल ओही गाछ तर सोचैत छल ।

की भेल? जे ई गाछ,जे हरियर रहए,
सुन्दर  सुगन्धित पुष्पसँ महमह करए,
से ठुट्ठ अछि,झड़ि गेल सभटा पात अछि "

निकटवर्ती पाथरक चट्टानसँ,
प्रतिध्वनित,वो गीत एखनहुँ भए रहल अछि,
"ई हरियरी, ई महमही, बस दू दिनक अछि ।
(नवम्बर १९८१)