मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 24 मई 2018

घमंड


 घमंड 


जीवनमे बहुत रास अनुभव होइत रहैत अछि। नित्य किछु ने किछु एहन घटना घटित होइत अछि जे हमर आँखि खोलि सकैत अछि मुदा से होइत कहाँ अछि ? हमसभ नियतिवस चलिते जा रहल छी,सोचि नहि पबैत छी जे हम एना किएक कए रहल छी ?  ई बात प्रायः सभ जनैत अछि, जे जन्मल अछि से मरत। मृत्यु अवश्यंभावी अछि,तथापि हमसभ सोचैत रहैत छी जे हम तँ अहिना रहब । युधिष्ठिर द्वारा यक्षकेँ देल गेल एहने प्रश्नक उत्तर एखनो ओहिना सार्थक अछि जहिना ताहि समयमे रहल होएत। आखिर एना कोना होइत अछि जे हम  सद्यः घटित होइत घटनाक प्रति अनजान बनल रहि जाइत छी आओर एकदिन  सभ किछु एतहि छोड़ि कए सभदिनक हेतु एहि दुनियाँसँ आँखि मुनि लैत छी ।
आखिर किछु तँ छैक जे मनुक्ख मात्रकेँ निरंतर ओझरौने रहैत अछि । हम निरंतर अपन आस्तित्वक रक्षाक हेतु संघर्षशील रहैत छी। हम जे कहैत छी से लोक मानए,हमर महत्व बुझए एवम् हमर श्रेष्ठत्वकेँ स्वीकार करए। एहिसभक पाछा हमर घमंड प्रमुखतासँ मुखरित होइत रहैत अछि। जीवनसँ लए कए मृत्यु पर्यंत हमरा लोकनिक व्यवहारकेँ  पाछा ई तत्व विद्यमान रहैत अछि । हम जाने-अनजाने दोसरसँ अपनाकेँ श्रेष्ठ साबित करबाक फेरमे पड़ि अपन जीवनकेँ तँ  अशांत केनहि रहैत छी ,संगहि दोसरोकेँ तंग कए दैत छी कारण एहन स्वार्थमूलक सोचसँ व्यक्तिक अहंमे टकराव उतपन्न होइत अछि आओर लोक अपनाकेँ पैघ देखेबाक प्रयासमे दोसरकेँ छोट साबित करए लगैत अछि । परिणाम होइत अछि ,व्यर्थक अनवरैत चलैत अन्तरद्वंद ।
मान -सम्मान , प्रतिष्ठाक लिप्सा मनुक्ख मात्रमे ततेक बलबती रहैत अछि जे ओ कोनो हालातमे ताहि हेतु किछु करए हेतु तैयार रहैत अछि । लोक हमरा बुझए,मान्यता दिअए,हम समाजमे देखगर लोकमे गनल जाइ,एहि समस्त भावनाक पाछा जँ देखल जाए तँ ओकर घमंडे काज करैत रहैत अछि। एहन घटना नित्य-प्रति देखएमे अबैत अछि जे कतेको गोटे बेबजह अनकर मामलामे टांग अरबैत रहताह । जेना कि ओ चैनसँ रहिए नहि सकैत छथि। एहन आदमी हेतु इहो कहल जा सकैत अछि जे ओ अपन चालिसँ लाचार छथि । कोनो,ककरो बात उठल कि ओ अपनाकेँ ओहि बीचमे ठाढ़ कए देताह। तरह-तरहक ब्यर्थ उदाहरण दैत रहताह जाहिसँ ई कहुना सिद्ध होउक जे हुनके टा सभबातकेँ बुझए अबैत छनि किंबा ओ जे कहैत छथि सैह व्रह्मसत्य थिक । एहन आदमीकेँ अहाँ की कहबैक? “एकोहं द्वितीयो नास्ति" --एहि तरहक सोच कोना कारगर भए सकैत अछि ?
हमर गाममे एकबेर श्राद्ध भोज होइत रहए। एकटा प्रतिष्ठित व्यक्तिक देहावसान भए गेल छल । अपना जीवन कालमे ओ खूब संपत्ति अर्जित कएलाह । संघर्ष करबामे हुनकर सानी नहि भेटि सकैत अछि । तखन तँ मृत्यु सभक होइत अछि से हुनको भए गेलनि । अपने जीवनमे लीखसँ लाख करबाक पुरषार्थ हुनकामे भगवान देलखिन । मृत्युक बाद लोकसभक आग्रह जे जबार होउक,एतेक संपत्ति अरजि कए गेल छथि । मुदा से तँ नहि भेलैक , गामे लए कए भोज हेबाक निश्चय भेलैक । संयोगसँ हमहूँ हाले मे सेवा निवृत भेल  रही आ गामे पर रही। भोज खेबाक हेतु गेलहुँ तँ देखैत छी एकटा हमर ग्रामीण ,जे भरि जिनगी बाहर कमाइत रहलाह, घरक दरबाजाकेँ गछारि कए ठार भेल छथि,गरजि रहल छथि,बारंबार चेता रहल छथि जे एक-एक कए लोक अन्दर जाथि । हुनकर चिकरब-भोकरब ततेक प्रखर चल जे अनेरे  ककरो ध्यान हुनका पर पड़ि जाइत छल । एवम् प्रकारेण हुनका अपन महत्वक प्रदर्शन करबाक आ ताहिसँ संतुष्टिबोध प्राप्त करबाक पर्याप्त अवसर भेटलनि । जँ ओ नहि चिकरितथि,किंवा घरक केबार धए ठाढ़ नहि रहितथि,लोक अपने अबैत   जाइत ,तैओ भोज भए जैतैक,प्रायः बेसी नीकसँ होइतैक कारण ओ तँ अनेरे केबारकेँ पकड़ि चिकरि कए महौलकेँ गड़बड़ा रहल छलाह,मुदा हुनका तँ देखेबाक रहनि जे ओ एतेक महत्वपूर्ण व्यक्ति छथि,सबके कस्तन कए रहल छथि,हुनके आज्ञासँ लोक भोज खाए अन्दर जाएत नहि तँ ओतए बबाल भए जाएत । बिचारि कए देखबैक तँ एकरा व्यक्ति विशेषक घमंडक अतिरिक्त किछु आओर नहि कहल जा सकैत अछि।
की पैघ,की छोट सभ क्यो कतहुँ  ने कतहुँ,कहुना ने कहुना घमंडक चपेटमे पड़िए जाइत छथि। शास्त्र-पुराणसभमे सेहो कतेको एहन प्रसंगक वर्णन अछि जाहिमे एक सँ एक संत महात्मा,देवी-देवता एकर  प्रकोपमे पड़ि गेलाह । महाभारतमे एहि संवंधमे बहुत मार्मिक घटनाक वर्णन अछि । एकबेर हनुमान बूढ़ बानरक रूपमे भीमके रस्तामे बैसि गेलाह । भीम हुनका अपन नांगरि हटेबाक हेतु कहलखिन  कारण हुनका जल्दी जेबाक रहनि मुदा ओ बानर टस सँ मस नहि भेल, उल्टे व्यंग करैत कहलकनि जे जखन अहाँ एतेक बलवान थिकहुँ तँ नान्हिटा हमर नामगरिकेँ उठाए किएक नहि आगू बढ़ि जाइत छी ? भीमकेँ ई बात बहुत अनर्गल बुझेलनि आओर ओ ओहि बूढ़ बानरक नांगरिकेँ हटबएमे लागि गेलाह,सभ प्रयत्न कए थाकि गेलाह मुदा नांगरि ठामहि रहल । हारि कए भीम कहलखिन जे अहाँ साधारण बानर नहि छी,के छी से सत-सत बाजू । तखन हनुमानजी अपन भेद खोलि कहलखिन जे हम आहीँक भाए हनुमान छी । भीम बहुत लज्जित भेलाह आ हुनकासँ घट्टी  मानलथि । एहि तरहेँ हनुमानजी हुनकर घमंडकेँ चकना चूर केलाह । कहक माने जे घमंड एकटा एहन व्याधि थिक जे अनेरे हमरा लोकनिक आँखिपर पट्टी लगा दैत अछि आ हम सत्यकेँ देखितहुँ ओकरासँ फराक रहि जाइत छी ।
घमंड किम्वा अहंकेर टकरावसँ कतेको  लोकनिक पारिवारिक जीवान नर्क भए जाइत अछि । हम ककरासँ कम ? हमरा ई कहलक,ओ कहलक,हम ओकर बात किएक सहबैक, एहने-एहने छोट-छोट बात केँ पकड़ि कए लोक धए लैत छथि जाहिसँ आपसी प्रेम ओ विश्वास नष्ट भए जाइत अछि ,बात ततेक बढ़ि जाइत अछि जे संवंध विच्छेद धरि भए जाइत अछि । जौँ एहन समयमे क्यो बुझनिक होथि,एक डेग पाछा भए जाथि,हारि मानि लेथि तँ बहुत रास परिवार खंडित हेबासँ बँचि सकैत अछि,बहुत रास धीया-पुताकेँ पारिवारिक आश्रय बनल रहि जाएत एवम् परिवारमे समन्वय,शांति बनल रहत । मुदा ई बात बुझब आ बुझिओ कए व्यवहारमे आनब कै बेर बहुत मोसकिल भए जाइत अछि कारण क्यो अपन अहंकेँ छोड़बाक हेतु तैयारे नहि होइत अछि । परिणाम सामने अछि । नान्हिटा टेल्हकेँ माए-बापक बीच कलहक दृष्य देखए पड़ैत छैक। बच्चासभ घरक वातावरणसँ तंग भए घरसँ भागल-भागल रहए लगैत अछि आ गलत संगतिमे पड़ि कए कै बेर नशेड़ी भए जाइत अछि । सोचए बला बात हछि जे माए-बापक व्यर्थक अहंक कारण एहन वच्चाक भविष्यक संगे कतेक अन्याय होइत अछि ?
एहन नहि अछि जे कमे पढ़ल-लिखल लोक घमंडक प्रदर्शन करैत छथि अपितु एक सँ एक विद्वान ओ पैघ-पैघ लोकमे एकर व्यापक प्रभाव देखएमे अबैत अछि । जे जतेक पैघ तकर घमंड ततेक विनासकारी भए सकैत अछि । इराकक राष्ट्रपति सद्दाम ओ अमेरिकाक राष्ट्रपति बुशके बीच जे एतेक भारी युद्ध भेल तकर पाछु की छल ? महज अहंक टकराव ? जहिना गाम-घरमे मूर्ख लड़ैत अछि तहिना ओ सभ आपसमे ताधरि लड़ैत रहलाह  जाधरि सद्दामक विनाश एहि हदधरि नहि भए गेल जे ओ अपन प्राणोसँ हाथ धोलक । बादमे पता चलल जे ओकरा लगमे कोनो रासायनिक हथियार नहि छल जकरा आधार बनाए इराकपर अमेरिका आक्रमण केलक । कार्यालयमे अधिकारी लोकनि कए बेर अहं पर चोट पड़लापर अधीनस्त कर्मचारीकेँ तबाह करबाक कोनो ब्योंत बाम नहि जाए दैत छथि । बदली कएदेब.काजसँ हटा देब आ ताहुसभसँ संतोष नहि भेलनि तँ नौकरीसँ मुअत्तल कए देब सामान्य बात थिक। जे ततेक पैघ अधिकारी तिनक अहंसँ ततेक बेसी सावधान रहब जरुरी थिक । काज करी वा नहि करी मुदा हुनकर सलामीमे कोनो कमी नहि हेबाक चाही । जँ से भेल तँ अहाँक भगवाने मालिक ।
असलमे घमंडी व्यक्ति भीतरसँ असंतुष्ट होइत छथि । हुनका लगैत रहैत छनि जेना सौँसे दुनियाँ हुनका पाछा पड़ल अछि,जेना क्यो हुनका संगे न्याय नहि कए रहल अछि ,एहि तरहक फिजुल बातसभ हुनकर मोनमे बैसल रहैत हछि जाहि कारणसभ हुनकर व्यवहार स्वयं असंतुलित भए जाइत अछि किंवा लोकसँ बहुत बेसीक अपेक्षा रखैत अछि । परिणाम  होइत अछि जे ओ बात-बात पर लोक सभसँ मरए-कटए हेतु तैयार रहैत छथि । सोचबाक बात थिक जे एहन लोककेँ शांति कतएसँ भेटि सकैत अछि आ "अशांतस्य कुतो सुखम्" ? एहि तरहक अशांत प्रवृतिक लोकमे घमंड भरल रहैत अछि । जाहिर अछि जे एहम लोक आस-पासकेँ लोककेँ तरह-तरहसँ कष्ट पहुँचबैत छथि । अपने तँ दुख कटिते छथि दोसरोक जीवनकेँ नर्क कए दैत छथि।
घमंड कतेको कारणसँ भए सकैत अछि आ कए बेर तँ बिना कोनो औचित्यकेँ  स्वभाववश सेहो लोक घमंडी भए जाइत अछि। एहन उदाहरण अहाँकेँ कतेकोठाम देखबामे आएत । हमरा गाममे एकटा भिखमंगा कहिओ काल अबैत छलाह । यद्यपि ओ भिख चाहैत छलाह मुदा हुनक बाजबाक चहटिसँ क्यो नहि कहैत जे ओ भिखमंगा थिकाह । असलमे ओ पहिने बहुत धनीक छलाह मुदा कालक्रमे गरीब भए गेलाह । जमीन -जायदाद बिका गेलनि । कहबी छैक जे जौर जड़ि गेल मुदा एंठन अछिए । सैह गप्प छलैक ।
महाभारत मे खिस्सा अछि जे द्रोपदीकेँ अपन सौंदर्यपर बहत घमंड रहनि आओर गाहे -बगाहे ओ एहि कारणसँ कतेको शत्रु बना लेलीह। परिणामसभकेँ बुझल अछि । मामला द्रोपदी चीर हरणधरि पहुँचि गेल । की -की तमाशा ने भेल । भयानक युद्ध भेल आओर समस्त परिवार विनाशकेँ सीमानधरि पहुँचि गेल । कहक माने जे घमंड चाहे जिनका होनि,आओर जाहि कोनो कारणसँ होनि,एकर परिणाम  खराबे होइत अछि ।
घमंड एकटा मानसिक रोग थिक जे मनुक्खकेँ सत्यक दर्शन करएसँ ओहिना रोकि दैत अछि जेना सीसीमे कोनो वस्तुकेँ पैसबासँ ठेपी । घमंडी व्यक्ति एक हिसाबे आन्हर होइत अछि जे  मदांध भए सही विचारकेँ कदापि नहि सुनैत छथि । एहने मानसिकता रावणकेँ रहैक जाहि कारणसँ घरहंज भए गेलैक , सभ किछु नष्ट भए गेलैक । मेघनाद सन बीर ओ तेजस्वी संतानसँ हाथ धोअए पड़लैक,कुंभकरण सन भातृभक्त भाए मारल गेलैक,विभीषण घर छोड़ि भागि गेलाह। सभ ओकरा बुझबैत रहलैक ,एहि हद धरि जे मंदोदरीक कथन धरिकेँ ओ सौतिआ डाह कहि अपमानित केलक । परिणाम सभकेँ बुझल अछि । अस्तु,घमंड सर्वथा त्याज्य थिक ।
जँ बिचारिक् देखल जाए तँ एहि दुनियाँमे कोनो तरहेँ पार पाएब आसान नहि अछि । पढ़ले देखू तँ एक सँ एक विद्वान छथि। आइन्सटाइन,सेक्सपीयर,कालीदास,राधाकृष्नन,कतेको नाम अछि,ककर नाम लेब ,ककर छोड़ब,पन्नाक पन्ना भरि जाएत । धनिकमे गिनती करब तँ गनिते रहि जाएब । एहिना पद,सौंदर्य,वुद्धि सभ तरहेँ एकसँ एक लोक एहि संसारमे भेलाह आआोर छथिहो । तखनो जँ क्यो कथुक घमंड करैत छथि तँ की करबै? हँसबे करबै ने ? अस्तु ,विनम्र होएब सबसँ नीक ऐश्वर्य अछि जे सही कही तँ भाग्यवाने लगमे होइत अछिः

बरसहि जलद भूमि निअराए,

नबहि यथा बुध विद्या पाए ।

विनम्रता विद्वताक परिचायक थिक । जरुरी अछि जे सही ज्ञान प्राप्त कए स्वभावमे विनम्रताकेँ आनल जाए आओर घमंडसँ मुक्ति पाओल जाए,जाहिसँ जीवन सुखमय होएत ।


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