अहीँक मर्जी !
हमर जीवन,
हमर सभ कामना,
हमर इक्षा ,हमर सभ भावना,
हे शृष्टिकर्त्ता अहीँक मर्जीपर ,
बनल अछि,चलि रहल अछि ।
हम हारि भागक चोटसँ,छटपटाएल,
भाविक पसरल जालसँ लटपटाएल,
किंकर्तव्य भए,अज्ञात दुर्गम मार्गपर,
चलतहि रहल छी,
सभकिछु अहीँक माया,
अहीँक विस्तार अछि,
से सोचि ,हे प्रभु!
कष्ट हँसि- हँसि सहि रहल छी ।
(सन्१९८१)
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