परिवर्तन
हरिअरीसँ भरल गाछक डारिसँ,
कुहकि कोयली गबै छल,
ई महमही,ई हरियरी,बस दू दिनक अछि
।
नहि क्यो सूनल,चलिते रहल,
दिन रााति अबिरल भावसँ ,बढ़िते रहल,
गन्तव्य की? ततबो पता ककरो ने छल ।
जे बटुक चल,से तरुण भए,
नित भोग कए,पुनि बृद्ध भए,
ठेहिआएल ओही गाछ तर सोचैत छल ।
“की भेल? जे ई गाछ,जे हरियर रहए,
सुन्दर सुगन्धित पुष्पसँ महमह करए,
से ठुट्ठ अछि,झड़ि गेल सभटा पात अछि "
निकटवर्ती पाथरक चट्टानसँ,
प्रतिध्वनित,वो गीत एखनहुँ भए रहल अछि,
"ई हरियरी, ई महमही, बस दू दिनक
अछि ।
(नवम्बर १९८१)
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