मिथिलाक संस्कृति
बहुत पहिने मिथिलाक नाम विदेह छल आओर ओहिमे वर्तमान मिथिला,वैशाली,कतेको राज्यसभ सामिल छल। चारिम वा
पाँचम शताव्दीमे ई मिथिला किंवा तीरभुक्तिक नाम ग्रहण कएलक। मुगल साम्राज्यक काल
मे एकर एकटा भाग (उत्तर दिसिसँ)नेपालक राजाक अधीन चल गेल। शेष भाग तिरहुत कहल जाइत
छल। मिथिलाप्रान्तक व्याख्या जे ग्रिअरसन महोदय केलनि अछि,तदनुसार एकर क्षेत्रफल लगभग तीस हजार वर्गमील अछि आओर एहिमे विहार
राज्यक मुजफ्फरपुर,सितामढ़ी,वैशाली,दरभंगा,मधुबनी,समस्तीपुर,सहरसा, उत्तर मुंगेर, उत्तरी भागलपुर, आओर पुर्णिआक किछु भाग सामिल अछि संगे नेपालक रौताहट,सरलाही,सप्तरी,मोहातारी,आओर मोरंग जिला ओहिमे अबैत अछि।
मिथिलाक वर्तमानक दरिद्रता आओर भूतकालक ऐश्वर्यमे कोनो साम्य नहि अछि । सन्
१९३४ ई०क भूकंपक बाद एहिठामक लोकक स्थिति आओर खराप भए गेल छलैक आओर भूकंपक कारणे ओहिठामक जलवायुपर सेहो प्रतिकूल प्रभाव पड़ल। आलसी आओर खोचाँह स्वभावक कारण एहिठामक लोक
संप्रति कष्टमे छथि,मुदा प्राचीनमे ई स्थिति नहि छल । लोक प्रसन्नचित्त
समय बितबैत छल आओर धने-जने पूरल रहए। प्रयाप्त सुख-सुविधाक उपलव्धक संग लोकक ध्यान
कला ओ संस्कृतिक विकासपर जाएब स्वाभाविक अछि आ तेँ ई कोनो आश्चर्य नहि थिक जे लोक पर्याप्त साहित्यिक ओ सर्जनात्मक
प्रतिभाक परिचय देलक ।
प्राचीन कालसँ मिथिलाक प्रशस्तिक आधार विद्वता रहल अछि। षड़दर्शनमेसँ
चारिटा दर्शन,न्याय,वैशेषिक,मिमांसा आओर सांख्यक रचनाकार लोकनि क्रमशःगौतम,कणाद,जैमिनी ओ कपिल मिथिलेमे भेलाह । मुगल
आक्रमण कालमे आचार-विचार शुद्धिपर ध्यान देव आवश्यक भए गेल तेँ मध्यकालमे नव्य
न्याय,पूर्व मिमांसा आओर स्मृति निवंध रचनापर बेसी तूल
देल गेल । मिथिलाक प्रतिष्ठा बाहरक विद्वान लोकनिमे बनल रहए तेँ ओतए कतेको प्रकारक
पदवी विद्वान लोकनिकेँ देबाक प्रथा चलल,मुदा ओहि हेतु बहुत कठिन
परीक्षा होइत छल -जेना कि श्लाका परीक्षा,उपाध्याय,महामहोपाध्याय आदि । मिथिलाक प्राचीनमे विदेह
राजाक प्रतिष्ठाक आधार हुनक ज्ञान एवम् विद्वते छल। तहिना महेश ठाकुर ओ खांडववंशीय
अन्य राजा लोकनि एवम् अन्य विद्या अनुरागी भेलाह आ मिथिलाक कीर्ति बढ़एबाक हेतु सभ
तरहेँ प्रयास कएलनि ओ तदनुकूले प्रतिष्ठो प्राप्त कएलनि।
मिथिलाक सोनितमे भगवती
जानकीक अंश सर्वत्र विराजमान अछि । घर-घरमे पसरल गोसाउनिक शिर भगवतीक आराधना स्थल अछि। प्रत्येक शुभ
अवसरपर भगवतीक वंदना गएबाक प्रथा मिथिलाक संस्कार भए गेल अछि । विद्यापतिक वंदना "जय जय भैरवि असुर भयाउनि,पशुपति भाविनी माया , " मिथिलाक
राष्ट्रगानक तुल्य अछि ।
यत्र-तत्र पसरल भगवतीक सिद्धपीठ जेना उच्चैठ,उग्रतारा
आदि शक्तिक आराधनाक सार्थकताकेँ प्रमाणित करैत छथि। उच्चैठक कालीक कृपासँ कालीदास
मूर्खसँ एकटा महान विद्वान भए गेलाह । कहबी अछि जे ओ तेहने मूर्ख छलाह जे भदवारिक झर-झर पानि बहैत कालमे भगवतीक मुँहमे करिखा लेपए लगलाह जाहिसँ
प्रसन्न भए भगवती हुनका वरदान देलथिन । मिथिलाक
त्रिपुंडकसंग लालठोप ओ चाननक उर्ध्वपुणड करबाक परंपराक अर्थ ओकर शाक्त,वैष्णव ओ शैव संप्रदायमे समन्वय स्थापित करब छल । प्रति वर्ष हजारक हजार कमरथुआ वैद्यनाथधाम जाए महादेवकेँ गंगाजल ढ़ारि अबैत छथि । संगे गाम-गाम बनल
महादेवक मंदिर शिवक प्रति आस्थाकेँ प्रमाणित करैत अछि । "कखन हरब दुख मोर हे
भोलानाथ" गबैत-गबैत कतेको भक्त लोकनिकेँ अश्रुपात भए जाइत छनि। एतबा होइतो
शालीग्रामक रूपमे भगवान विष्णुक पूजा सगरे मिथिलामे पसरल अछि । तुलसी चढ़ाय चरणामृत
लए भोजन ग्रहण करैत छथि । जँ गंभीरतासँ कहल जाए तँ
मिथिलाक माटि-पानिमे अध्यात्म कुटि-कुटि कए भरल अछि । जन्मसँ मरण धरि हिन्दू
धर्मशास्त्रमे जतबा संस्कार कएल जाइत अछि से मैथिल लोकनि बहुत धार्मिक भावनासँ निष्पादित
करैत छथि । समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणसँ सेहो मिथिलाक मुड़न,उपनायन ओ बिआहक
परंपरा समाजक विभिन्न घटकमे समन्वय ओ धार्मिक भावनाक अभ्युदयक हेतु अतिशय
महत्वपूर्ण कहल जा सकैत अछि ।
बिआहक परंपरा
भारत भरिमे मिथिलाक बिआहक
परंपरा अपनामे विचित्रताक हेतु प्रसिद्ध अछि। वर्षक-वर्ष
धरि पसरल अनेक प्रकारक पर्व ओ त्योहार मिथिलामे बिआहक अनिवार्य अंग थिक। बिआह होइते चतुर्थी,चरुचन,मधुश्रावणी,कोजागरा,विदाइ,पुछारी, नागपंचमी ओ द्विरागमनक अवसरपर नाना प्रकारक भार पठएवाक परंपराकेँ लोक
आबो ओहिना लदने चलि आवि रहल अछि जेना अठ्ठारहम शताव्दीमे रहल होएत। एहि दृष्टिकोणसँ मिथिलाक लोक अखनो पछरले छथि । ई आश्चर्यक गप्प अवश्य
अछि ।जाहि युगमे शिक्षाक एतेक अवसर होइक आ स्त्री-पुरुष समानताक गप्प सदिखन जोर पकरने रहैत हो,मिथिलाक कन्या तकलेसँ मैट्रिक पास भेटैत छथि। सोलहम-सत्तरहम वर्ष होइते बिआहक बेर बीतल जाइत अछि आ लोक अपन बेटीकेँ हबा नहि लागए दैत छैक । जँ सत्य
पूछी तँ ई बात मिथिलाक संस्कृतिक हेतु कलंक थिक। दहेजक प्रथा तेहन संक्रामक ओ घातक भए गेल अछि जे जिनका दू -तीन टा बेटी
होन्हि तिनका दरिद्र बनबासँ भगवाने रक्षा कए सकैत छथि । आवश्यकता एहि बातक अछि जे मिथिलामे कन्यालोकनिक प्रति जे अन्याय भए रहल
अछि से आबो बंद होइक। बोराक आम आ घरक कनिआमे भेद करब
कठिन थिक ।
एहि संबंधमे सौराठसभा ओ ओकर
परंपरागत इतिहासक वर्णन करब उचित होएत। ई भारतवर्षमे
अपना-आपमे एकमात्र संस्था थिक जे बिना कोनो राजकीय हस्तक्षेपकेँ प्रतिवर्ष दस हजार
मैथिल ब्राह्मण लोकनिक बिआह संबंध
स्थापित करबाक आधार बनैत अछि। एहिठाम एक निश्चित
अवधिमे करीब लाख ब्राह्मण
जमा होइत छथि । सौराठसभाक स्थापना करीब सए साल पूर्व भेल छल। ओतए पंजिकार लोकनो
होइत छथि जे कन्यापक्षकेँ सिद्धान्त दैत
छथिन । ओकरा अस्वजन-पत्र सेहो कहल जाइत अछि। नियमानुसार सात पीढ़ी पाछा देखला संता पंजकार ई
प्रमाणपत्र दैत छथि जे संबंधित
वर ओ कन्या पक्षमे संबंध
भए सकैत अछि। यद्यपि ई व्यवस्था वंश परंपराक प्रतिष्ठा ओ शुद्धता बनयबाक
हेतु कएल गेल ,मुदा एकर जड़िमे पंजी
व्यवस्था छल जे १३१० ई०मे महाराजा हरिसिंघ द्वारा चलाओल गेल। एहि व्यवस्थाक अनुसार
मिथिलाक लोकनिकेँ चारिभागमे बाँटल गेलाह । (१) श्रोत्रिय,(२) योग,(३)पंजीवद्ध,(४)
जयबार । प्रथम तीन कोटिक ब्राह्मण भलमानस कहल जाइत छलाह आ अन्तिम याने जयबार लोकनि कुलशीलक हिसाबे छोट ब्राह्मण कहल गेलाह। सौराठ साभामे बैसबाक स्थान ओहि हिसाबे
निर्णीत भेल छल । ऐहि प्रथामे सबसँ बड़का दोष ई छल जे भलमानुष लोकनिक सामाजिक
प्रतिष्ठा बहुत बढ़ि गेल आ ओ लोकनि केओ सए केओ
पचास एना
कए बिआह
संबंध स्थापित करए लगलाह । कतेकठाम तँ ईहो सुनबामे अबैत छल जे भलमानुष लोकनिकेँ बिआह
केलाक
बाद दोहराकए सासुर जेबाक समय ओ स्मृति नहि रहैत छलनि
।
विभिन्न प्रकारक पाँजि रखनिहार लोकक मूलक संग गाम विशेष वा व्यक्तिविशेषक
नाम जोड़ल रहैत अछि । जेना-महादेव ठाकुर पाँजि,शीलानाथ
झा पाँजि आदि । यद्यपि आब एहि परंपराक कोनो सामाजिक महत्व नहि रहि गेल अछि तथापि
पंजिकारलोकनि एकर भष्मावशेषकेँ उठओने फिरि रहल छथि कारण ओहिसँ हुनका लोकनिक जीविका
चलैत छनि । आबक मिथिलाक पाँजि थिक-इन्जीनियर,डाक्टर,प्रोफेसर ओ खूब धनिक लोक । जे जाहि
कोटिमे अबैत छथि तिनकर तेहन दाम । आइ.ए.एस. वा एहने पदधारी वरक मोल लाखटका सुनि कए ककरो आश्चर्य किएक होउक जखन कि
साधारण बी.ए. पास वर दस हजार टकासँ नीचा गप्प नहि करैत छथि भले ओकरा घरारीओ नहि होइक । तेँ सौराठसभा आब वरक सभा नहि अपितु बरदहट्टाक रूप धए लेने अछि ।
कोनो ठामक संस्कृतिपर ओकर
लिपि ओ भाषाक बड़ प्रभाव होइत अछि ।
मिथिलाक भाषा मैथिलीकेँ अपन लिपि
तिरहुता किंबा मिथिलाक्षर कहल जाइत अछि । दुर्भाग्यक बात थिक जे मैथिलीमे
देवनागरी लिपिक प्रयोग संग ओकर मौलिक लिपिक प्रयोगमे प्रचूर ह्रास भेल। एतबा धरि जे मिथिलाक्षरमे लिखा-पढ़ी करएबला लोक आंगुरपर गनलेसँ भेटि
सकैत छथि ।
मैथिली भाषामे साहित्यक प्रत्येक विधापर काज भेल अछि । प्राचीनकालसँ आइ धरि कतेको विद्वान लोकनि अपन कलमक
जोड़सँ एहि भाषाकेँ कृतार्थ कएलनि अछि ।
चर्यापदमे दार्शनिक तथा धार्मिक मान्यताकेँ लौकिक रूपमे प्रस्तुत करबाक चेष्टा कएल गेल अछि । एकर
पद सभमे चौबीस प्रकारक राग-रागिनी सभक प्रयोग भेल अछि । ज्योतिरिस्वरक वर्णरत्नाकर, धूर्तसमागम ओ पंचशायकक मैथिली भाषाकेँ अपूर्व योगदान अछि। वर्णरत्नाकरक ई विशेषता थिक
जे हमरा लोकनिक आद्य ग्रंथ होइतो ई गद्यमे लिखल अछि जखन कि आन-आन भाषाक आदिग्रंथ पद्यमे अछि । मध्यकालमे मैथिली साहित्यक युग प्रवर्तक भेलाह विद्यापति जे
संस्कृत,अवहट्ट,ओ मैथिली भाषामे कतेको सोरहि रचना कए अमर भए गेलाह । गाम-गाम पसरल
विद्यापतिक सोहर,समदाउन,वटगबनी
ओ नाना प्रकारक भक्ति गीत अखनो हुनकर साहित्यिक स्वरुपकेँ ओहिना जीवित रखने अछि जे
चारि-पाँच सए वर्ष पूर्व रहल होएत। विद्यापतिक
बाद गोविन्ददास झा,उमापति, मनबोध,लोचन,हर्षनाथ झा धरि अपूर्व शृंखला चलल जाहिमे विद्यापति साहित्यक सृजनात्मक छाप सतति परिलक्षित भेल ।
चंदा झाकेँ आधुनिक युगक प्रवर्तक मानल जाइत अछि । ओ बहुमुखी व्यक्तित्वक
लोक छलाह । हिनक सात गोट प्रकाशित ग्रंथ भेटैत अछि तथा पाँच गोट एहनो ग्रंथसभक
उल्लेख भेटैत अछि जे अप्रकाशित अछि । हिनक प्रकाशित ग्रंथक नाम थिक-(१) मिथिलाभाषा
रामायण ,(२)गीति सुधा,(३)महेषवाणी,(४)अहिल्या चरित नाटक(५)चंद्र
पद्यावली,(६)लक्ष्मीश्वर विलास,(७)विद्यापतिक
पुरुष परीक्षाक गद्य-पद्यमय अनुवाद । हिनक अप्रकाशित रचना अछि-(१) गीत सप्तशती,(२)मूलग्राम विचार,(३)छन्दोग्रन्थ,(४)वाताव्हान,(५)रसकौमदी । विद्यापतिकेँ जँ
मैथिली साहित्यक सूर्य कहल जाए तँ निश्चय चंदा झा ओहि साहित्यमे चन्द्रमाक स्थान
प्राप्त करबाक योग्य छथि ।
चन्दा झाक बाद जीवन झा,म.म.परमेश्वर झा
वख्सी,रघुनंन्दन दास,म.म.मुरलीधर
झा,जनार्दन झा जनसीदन,ओ लालदासक
नाम प्रमुख साहित्यकारक रूपमे अविस्मरणीय अछि। लाल दासक रचित रमेश्वर चरित
रामायणमे सीताक महिमा बेसी स्थान पओने अछि अर्थात ई शक्तिक प्रधानता देलनि अछि जे मिथिलाक परंपरा ओ संस्कृतिकक अनुकूल अछि। महाकाव्यक क्षेत्रमे सीताराम झाक अम्व चरित,बदरिनाथ
झाक एकावली परिणय,मधुपजीक राधा
विरह, तंत्रनाथ झाक झाक कीचक वदओ कृष्णचरित,सुमनजीक प्रतिप्रदा स्वतः स्मरण भए जाइत अछि ।
एकरे संगे अंग्रेजी,संसकृत ओ मैथिली साहित्यक प्रकाण्ड
विद्वान होइतो मैथिली साहित्यकेँ गौरवान्वित करबामे डा०रमानाथ झा ओ डा० जयकांत
मिश्रक नाम स्वर्णाक्षरसँ लिखए जोगर अछि। हास्यरसावतार प्रो० हरिमोहन झाक कृतिसँ
मैथिली भाषाक कोष भरल-पूरल अछि । ओ
अपन उपन्यास कन्यादान एवम् द्विरागमनक माध्यमसँ मिथिलाक कुप्रथापर अपूर्व चोट
कएलनि । खट्टरककाक तंग,प्रणम्य देवता,रमगशाला,चर्चरी,आदिक
रचनासँ ओ मैथिली साहित्यमे अमर भए गेलाह अछि । डा० शैलेन्द्र मोहन झा,कांशीनाथ झा किरण,श्री वैद्यनाथ मेश्र 'यात्री"क सेहो अपन-अपन योगदान अछि ।यात्रीजी अपन साम्यवादी विचारक
पुष्टि करैत बहुत रास ओजस्वी
ओ क्रान्तिकारी विचारसँ पूर्ण रचना कएलनि ।
उदाहरणस्वरूप-
अगड़ही लगउ बरु
वज्र खसौ, एहन जातिपर धसना धसौ,
भूकंप होउक फटौक
धरती, माँ मिथिले रहि कए की करती?
डा० सुभद्र झाक'फारमेसन आफ मैथिली लिटरेचर",'हिस्टोरिकल ग्रामर आफ मैथिली ओ प्रवास, हुनक
तीनटा पोथी मैथिली साहित्यके प्राण प्रतिष्ठा देबएमे अद्वितीय योगदानक रूपमे
अविस्मरणीय अछि।
आधुनिक कालमे मिथिला मिहिरक संपादकगण एहि प्रकारे स्पष्ट अछि जे साँस्कृतिक दृष्टिए मिथिलाक माटि-पानि
वड़ हरिअर अछि । मुदा दुर्भाग्यक बात ई थिक जे आलस्य किंवा प्रमादवश हमरालोकनि
अपने साँस्कृतिक उपलव्धिकेँ बिसरि रहल छी । स्व० राजेश्वर झा,योगानन्द
झा,स्व० चन्द्रनाथ मिश्र,राजकमल
चौधरी,ललित,ओ रमानन्द रेणु,श्री सोमदेव आदि कतेको लेखक लोकनि ओ कवि लोकनि मैथिली साहित्यकेँ
हिष्ट-पुष्ट करबामे सहायक सिद्ध भेलाह अछि। एही क्रममे पिलखवाड़वासी गंगेश गुंजनक
चर्च सेहो उचित अछि जे अपन कथासंग्रह-"अन्हार इजोत "ओ कविता
संग्रह-"हम एकटा मिथ्या परिचय"क हेतु प्रसिद्ध छथि । एकर अलावा हिनक
रेडिओ रुपक "जय सोमदेव" श्रोतालोकनिकेँ कतेक आनंदित कएलक अछि से वर्णन
करब कठिन थिक ।
एहि प्रकारे स्पष्ट अछि जे साँस्कृतिक दृष्टिए "मिथिलाक माटि-पानि वड़ हरिअर अछि । मुदा दुर्भाग्यक बात ई थिक जे आलस्य
किंवा प्रमादवश हमरालोकनि अपने साँस्कृतिक उपलव्धिकेँ बिसरि रहल छी । “ बारीक पटुआ तीत " जे कहल गेल अछि से सगरे मिथिलामे प्रयुक्त अछि ।
सीकींसँ नीक-नीक बासन बनाएब वा उपनायन,बिआह ओ आन-आन शुभ
अवसरपर सुन्दर-सुन्दर कढ़ाइ करब मिथिलामे हजारक हजार वर्षसँ प्रचलित अछि । गाम-गाम एकसँ एक कलाकार एहि कलाके जीवित रखने रहलाह मुदा
एकर महत्व लोक तखन बुझलक जखन कि हजारक हजार संख्यामे एहि वस्तुसभक मांग किछु वर्ष पूर्वसँ विदेशीसभ करए लगलाह । जाहि मिथिलाक ध्वजा
न्यायशास्त्रमे देशभरि मे फहराइत रहल,जतएक
गायक लोकनि देशभरिक राज परिवारमे सम्मानक पात्र छलाह ओ
कलाक दृष्टिसँजे सर्वत्र सम्माननीय छल ओहीठाम लोक भरि जाड़मे घूरतर ओ गर्मीमे पीपड़क
छहड़िमे गप्प मारि-मारि दरिद्राक सेवन करैत सब तरहेँ क्षीणशक्ति भए रहल छथि से
चिन्ताक बात अवश्य अछि मुदा एकर अर्थ ई कदापि नहि जे हम अपन आत्मविश्वासकेँ
परित्याग कए दी आ अन्धाधुन्ध आन-आन साँस्कृतिक ऐब सभकेँ अपना जीवनमे प्रश्रय दी ।
q(१४ अगस्त १९८३क मिथिला
मिहिरमे प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें