मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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मंगलवार, 15 मई 2018

पैसा


पैसा

जीवनसँ मृत्यु धरि,

ओकरे पसार हछि ।

एकरे लेल पढ़लोसभ ,

बनि गेल गमार अछि ।



बुझि नहि रहल क्यो जे,

ओ एक इंशान अछि,

पैसोसँ बढ़ि-चढ़ि,

 मनुक्खक इमान अछि ।



मनुक संतान देखू,

भेल रक्तबीज छथि,

पैसेकेँ बुझि रहल,

ओ सभ चीज छथि ।



चारू दिसि केहन ई,

चहल-पहल व्याप्त अछि,

पैसाक आगूमे,

क्यो नहि आप्त अछि ।



१८.११.८१

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