पैसा
जीवनसँ मृत्यु धरि,
ओकरे पसार हछि ।
एकरे लेल पढ़लोसभ ,
बनि गेल गमार अछि ।
बुझि नहि रहल क्यो जे,
ओ एक इंशान अछि,
पैसोसँ बढ़ि-चढ़ि,
मनुक्खक इमान अछि ।
मनुक संतान देखू,
भेल रक्तबीज छथि,
पैसेकेँ बुझि रहल,
ओ सभ चीज छथि ।
चारू दिसि केहन ई,
चहल-पहल व्याप्त अछि,
पैसाक आगूमे,
क्यो नहि आप्त अछि ।
१८.११.८१
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