आकाश का मौन
किस दुख से आहत युग- युग से,
मौन सतत रहते हो ?
क्या कारण है,
कहो गगन क्यों, दूर-दूर रहते हो ?
हे आकाश कहो शोकित क्यों,
तेरा चिर जीवन है ।
क्या मानव की दशा देखकर,
व्याकुल अन्तर्मन है ।
ज्योतिर्मय आँचल तेरा,
शशि सूर्य सतत करते हैं ।
इन्द्रधनुष बन अलंकरण,
भासित तुझको रखते हैं ।
रंगे विरंगे परिधानो से,
वादल तुझको सजता है,
फिर भी क्यों आंगन तेरा,
सूना सूना लगता है ।
क्षितिज पार सागर से मिलकर,
क्या बातें करते हो ?
किस दुख से आहत युग-युग से,
मौन सतत रहते हो ।
(सन १९८१)
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