मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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गुरुवार, 17 मई 2018

आकाश का मौन


आकाश का मौन

किस दुख से आहत युग- युग से,

मौन सतत रहते हो ?

क्या कारण है,

 कहो गगन क्यों, दूर-दूर रहते हो ?



हे आकाश कहो शोकित क्यों,

तेरा चिर जीवन है ।

क्या मानव की दशा देखकर,

व्याकुल अन्तर्मन है ।



ज्योतिर्मय आँचल तेरा,

शशि सूर्य सतत करते हैं ।

इन्द्रधनुष  बन अलंकरण,

भासित तुझको रखते हैं ।



रंगे विरंगे परिधानो से,

वादल तुझको सजता है,

फिर भी क्यों आंगन तेरा,

सूना सूना लगता है ।



क्षितिज पार सागर से मिलकर,

क्या बातें करते हो ?

किस दुख से आहत युग-युग से,

मौन सतत रहते हो ।



(सन १९८१)

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