मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 23 दिसंबर 2018

मृत्युक भय


मृत्युक भय



नित्यप्रति कतेको लोक जन्म लैत छथि,मरैत छथि । तै सभ पर हमर ध्यान तखने जाइत अछि जखन ओहिमे हम भावात्मक रूपसँ जुड़ल रहैत छी । जँ हमर किओ अपन लोक मरि जाइत अछि तँ हम बफारि तोड़ए लगैत छी । पैघसँ पैघ ज्ञानी-ध्यानी मृत्यु-शोकसँ नहि उबरि पबैत छथि । एहने परिस्थितिमे अर्जुनकेँ पुत्रमोहमे अतीव कष्टमे देखि भगवान हुनका पूर्वजन्मक दृष्य देखेलथि । ओ देखलाह जे अभिमन्यु खेला रहल छथि । जोर-जोरसँ अर्जुन हुनका बेटा,बेटा कहिकए बजबए लगलाह । अभिमन्यु कहलखिन-"की बेटा,बेटा चिचिआ रहल छी? अहाँकेँ पता हेबाक चाही जे कतेकोबेर अहाँ हमर बेटा भए चुकल छी । एकबेर हम बेटा भेलहुँ से अहाँकेँ बिसरा नहि रहल अछि । अर्जुनक आँखि खुजि गेलनि । ओ पुत्रक मृत्युशोकसँ उबड़ि गेलाह आ युद्ध करबाक हेतु आगा बढ़लाह । ओ तँ महान छलाह जे भगवान स्वयं हुनका सभ बात बुझबैत रहैत छलखिन । मुदा सामान्य आदमीकेँ तँ स्वयं सोच-विचार करए पड़ैत अछि । एक-दोसरसँ दुख बाँटि ओ समयानुकूल विमर्श कए संसारक दुखकेँ कम कए लैत छथि । आओर दोसर कोनो रस्तो नहि अछि । जँ जीबाक अछि तँ परिस्थितिसँ सामंजस्य बनाएब अनिवार्य थिक ।

जीवनक प्रति मोह कहू आ कि मृत्युक प्रति अज्ञात भय,किओ एहि दुनियाँ सँ मरए नहि चाहैत अछि चाहे ओ भिखमंगा होथि वा अस्पतालमे पड़ल चिररोगी । किओ कतबो पैघ किएक ने होथि  हुनका जीवनक एहि अकाट्य सत्यसँ सामना करै पड़ैत अछि । किओ बँचिकए नहि जा सकैत अछि । जखन युधिष्ठिर यक्षक प्रश्नक उत्तर दैत कहने रहति जे संसारक सभसँ आश्चर्य बात इएह अछि जे नित्यप्रति कतेको लोककेँ मरैत  देखि लोककेँ नहि लगैत अछि जे ओहो एकदिन एहि संसारसँ चलि जाएत । सही कहने रहथि । जँ कोनो उपाय रहितैक  तँ एकसँ एक प्रतापी ,धनीक आ विद्वान  नहि मरितथि । एहि मामलामे सँ सच पुछैत छी तँ भगवानसन साम्यवादी साइते किओ होअए ।

कै बेर तात्कालिक परेसानीमे लोक मृत्युकेँ स्वेच्छासँ स्वीकार कए लैत । जेना जखन किओ बहुत उम्र भेलाक बाद जीवनसँ बैराग भए जाइत छनि । किंवा ओ सोचैत छथि जे एहि जीवनमे आब ओ व्यर्थ भए गेल छथि । एहनमे  कै गोटे आमरण उपास कए प्राणत्याग कए दैत छथि । कैटा संत-महात्मा सेहो एहिना प्राण त्याग कए दैत छथि । कै बेर कोनो मांगक पूर्ति हेतु लोक अनशनपर बैसि जाइत छथि । एहनमे कै गोटेक मृत्यु भए जाइत अछि । हमरा विचारसँ  एहि तरहेँ जीवनक नाश कए लेब कोनो बुद्धिमानी नहि थिक । जीवन इश्वरक वरदान हछि । एकरा नीकसँ जीव आ उपयोगी बनओने रहब हमरा लोकनिक कर्तव्य थिक ।

जे भेनहि  छैक,जकर कोनो वचाव नहि छैक तकरा जतेक सहजतासँ स्वीकार कएल जएह सएह वुद्धिमानी थिक । जँ मृत्युसँ वचबाक कोनो उपाय रहितेक,तँ कोनो पैघलोक नहि मरैत,अमर भए जाइत । मुदा से संभव नहि अछि । प्रकृतिक समस्त नियम सभपर समान रूपसँ लागू होइत अछि । मृत्युसेहो तकर अपवाद नहि अछि । राजा,रंक,फकीर सभ एकदिन एहि संसारसँ विदा होइत छथि ।  गीतामे कृष्ण भगवान मृत्युक विषयमे वारंबार कहैत छथि जे मृत्यतँ मात्र एहि शरीरक होइत अछि । ओहिमे विद्यमान आत्मा अजर,अमर अछि । जहिना लोक पुरान अंगाकेँ फाटि गेलाक बाद नव  अंगा पहिरए लगैत छथि तहिना ई आत्मा पुरान देहकेँ छोढ़ि कए नव शरीर  ग्रहण कए लैत छथि । मृत्युक भयसँ बचबाक एहिसँ बढिआँ समाधान नहि भए सकैत अछि। मुदा मोनो मानए तखन ने । कतेको लोक एहि देहेकेँ सर्वस्व बुझि कए नानाप्रकारसँ एकर रक्षाक व्योंतमे लागल रहैत छथि आ तरह-तरहसँ  एकरा सुखी ओ संतुष्ट करबाक प्रयास करैत छथि । देहक नाश अवश्यंभावी अछि। एकरा माध्यमसँ प्राप्त सुख सेहो चिरकाल धरि नहि रहि सकैत अछि । समय सापेक्ष समस्तु जीवन प्रकृयासँ मोहवश हमसभ आवद्ध रहैत छी आ नाना प्रकारक दुख भोगैत छी । इएह सभसँ पैघ विडंबना थिक।

जीवन आ मृत्यु  एक -दोसरसँ जुड़ल अछि । जे जन्मल अछि से मरत । एकर कोनो विकल्प नहि छेक। एहिसँ वचावक कोनो रस्ता नहि छैक । राजा,रंक,फकीरसभ एकदिन एहि संसारसँ चलि जाइत अछि। सबाल ई अछि जे मृत्युक बाद की होइत छैक? की मृत्यु अपना-आपमे अंत अछि किंवा ओकर बादो ई चक्र चलैत रहैत अछि ? एहि प्रश्नक जबाब देबाक प्रयास बहुत दिनसँ बहुत तरहेँ भए रहल अछि परंतु कोनो निजगुत उत्तर जे सर्वमान्य होइक,से किओ आइ धरि नहि दए सकलाह । से भइओ नहि सकैत छैक । कारण जे वस्तु दृष्य छैहे नहि तकर वास्तविक धरातलपर की व्ञाख्या कएल जा सकैत अछि? अपन धर्मशास्त्रमे मृत्युक बादो आत्माक अमरताक गप्प अछि । कहल जाइत अछि जे शरीरक नाश होइत अछि,आत्माक कथमपि नहि । लोक अपन कर्मक अनुसार पुनर्जन्म लैत अछि आदि,आदि । बात जे होइक,लोक मृत्युक बाद जन्म लैत छथि वा नहि,से विवादक किंवा परिचर्चाक विषय भए सकैत अछि मुदा एतबा तँ तय अछि जे मृत्यु अवश्यंभावी अछि । जखन से बात सभ जनिते छी तखन तकर भए कथीक ? आनंन्दपूर्वक ओकर सामना करी आ चलि पड़ी अनंन्त यात्रा पर....।

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

कर्मण्येवाधिकारस्ते


कर्मण्येवाधिकारस्ते


महाभारतक युद्धक प्रारंभहिमे अर्जुन जखन रणक्षेत्रमे पहुँचलाह आ हुनकर इच्छानुसार श्रीकृष्ण रथकेँ युद्धक्षेत्रक बीचमे ठाढ़ कए देलाह तँ अर्जुन युद्दक दृष्य आ ओहिमे भाग लिनिहार लोकनिकेँ देखितहि अत्यंत दुखी भए कहैत छथि-" हम ई युद्ध किन्नहु नहि लड़ब। एहन राजकेँ पाबिए कए हमरा कोन सुख होएत जे स्वजनक खूनसँ लथपथ होएत । जकरा प्राप्त करबाक हेतु हमरा भीष्म पितामह सन श्रेष्ठ लोकक हत्या करए पड़त । की हम अपन प्रिय गुरु द्रोणाचार्यक मृत्युक कारण बनि राज सुख भोगि सकब ?" भगवान श्री कृष्ण हुनका बहुत बुझओलखिन। हुनकर कहबाक मूल तथ्य इएह रहनि जे अहाँ एहि संसारमे अपन कर्तव्य कर्म करए अएलहुँ अछि,से नहि केलासँ लोक अहाँकेँ कायर बूझत,अहाँपर हँसत । तेँ कर्मफलक संपूर्ण त्याग करैत आगू बढ़ू ।" कहक माने जे जीवनमे जे कर्तव्य अछि तकर निर्वाह तँ अवश्य करू मुदा तकर बाद ओकर परिणामक घमर्थनमे नहि पड़ू ।
फलक प्रति जतेक कम आसक्ति रहत काजमे ओतेक अधिक मोन लागत ,नहि तँ सदरिकाल इएह सोचैत रहि जाएब जे की होएक की नहि ? हरदम एही चिंतामे रहब जे हमर की होएत? जे हेबाक होएत से होएत। जे अपन हाथमे अछि से करू । जे अपना हाथमे अछिए नहि ताहि हेतु माथापच्ची केनाइ व्यर्थ थिक । आइ धरि जतेक पैघ काज भेल अछि ओकर पाछा कर्तव्यक प्रति समर्पण आ परिणामसँ आसक्तिक अभाव रहल अछि । नेल्सन मेंडोला सालक साल जहलमे सड़ैत रहलाह । कोन कष्ट ने भोगलनि । परन्तु अपन निशॉचयपर अडिग रहलाह तँ एकटा इतिहास गढ़ि देलाह। दक्षिण अफ्रिकाक जननायक भए गेलाह । तहिना अपना देशमे महात्मा गांधी सहित आओर - आओर महान नेतासभ केलनि । जौँ ओ सभ परिणामक चिंता करितथि तँ किछु नहि कए पबितथि । आधा-अधुरा संकल्पशक्तिसँ जे प्रयास होइत अछि से कखनो अपन लक्ष्यधरि नहि जाइत अछि । संपूर्ण शक्तिसँ जे किओ प्रयासमे लागल रहैत छति ओएह इतिहास गढ़ैत छथि ।
हमसभ काज शुरु करएसँ पहिनहि सोचए लगैत छी जे एकर फलाफल की होएत । हमरा फैदा होएत कि नहि? हम मनोवांछित फल प्राप्त कए सकब कि नहि ? परिणाम ई होइत अछि जे हमर शक्ति काज करबाक बदला झूठ-मूठ चिंतनमे खर्च भए जाइत अछि । जतेक नीक जकाँ हम प्रयास कए सकैत छलहुँ से नहि कए पबैत छी । विभाजित मनोदशामे कएल गेल काजमे ओ विशिष्टता नहि भए पबैत अछि । जखन काज नीक नहि होएत तँ परिणाम नीक केना होएत?
कै बेर ई देखल जाइत अछि जे इसकूली बच्चाक परीक्षाक परिणाम अनुकूल नहि अएलापर अभिवावक ओकरा तरह-तरहसँ प्रताड़ित करैत छथि । एहिसँ किछु लाभ नहि होइत अछि । जखन जे करबाक छलैक से केलहुँ नहि । बच्चाक पढ़ाइ दिस ध्यान जाइ तकर व्योंत  केलहुँ नहि,दिन-राति टाका कमेबाक जोगारमे लागल रहलहुँ आ जखन बच्चा इसकूलमे फेल भए गेल तँ ओकरा मारि-पिटि रहल छी । ई कोन वुद्धिमानी भेल? जखन परिणाम बाहर भए गेल तँ आब आगाक तैयारी करक चाही । वच्चाकेँ कहक चाही जे ओ हतप्रभ नहि होअए ,आगा आओर अवसर अएतेक  । अपन प्रयास करैत रहए मुदा हमसभ सामान्यतः उल्टे करैत छी । परिणाम होइत अछि जे वच्चाक मनोवल टुटि जाइत अछि । ओ कै बेर कुमार्गमे पड़ि जाइत अछि । गलत लोकक संगतिमे चलि जाइत अछि । आ एहिसभक जड़िमे रहैत अछि अभिवावक गलत दृष्टिकोण । हमरा लोकनि परिणाम अनुकूल हेबाक लिप्साक आगू नेन्नाक भविष्यकेँ झोकि दैत छी । एहनमे कतेको होनहार नेन्ना बर्बाद भए जाइत छथि । एना किएक होइत अछि? एहीलेल जे हमसभ जेना-तेना चाहैत छी जे फल हमर इच्छाक अनुकूल होअए,चाहे काज तेहन भेल होइ कि नहि । व्यवहारिक जीवनमे एहन कतेको उदाहरण भेटत जतए फलक प्रति अनावश्यक आशक्तिक कारण लोक निहित कर्तव्यक निर्वाह नहि कए पबैत छथ जकर विनाशकारी परिणाम होइत अछि ।
हमरा लोकनि एहि संसारमे किछु समयक हेतु अबैत छी । सभ अपन-अपन परिस्थितिक अनुसार जीवनमे संघर्ष करैत छी आ समय पूरा  भेलापर चलैत बनैत छी । जीवन चलैत रहए,सुख सुविधा रहए ताहि हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहैत छी । मुदा सभके भाग्य एकरंग नहि होइत अछि । किओ जनमतहि अछि संपन्नतामे तँ किओ दरिद्रक घरमे । जाहिर छैक जे शुरुएसँ लोक फराक-फराक रस्तापर चलबाक हेतु मजबूर भए जाइत अछि ।
जतेक शांत मनसँ काज होएत,कर्मक गुणवत्ता ततेक नीक रहत । स्वभाविक थिक जे परिणाम तेहने नीक रहत आ जँ मनोवांछित परिणाम नहिओ भेल तँ उद्विग्नतासँ की लाभ होएत किछु नहि । तेँ ई जरुरी अछि जे गीतामे भगवान द्वारा देल गेल संदेशक भावकेँ बुझैत काज करबाक चाही । हमरा अहाँक वशमे काज करब अछि, से नीक सँ करबाक चाही आ तकर बाद जे होइत अछि तकरा सहर्ष स्वीकार करी । जँ अपना मोनक भेल तँ नीक आ जँ ओहिसँ भिन्न भेल तँ सेहो भगवानक इच्छा बुझि स्वीकार कए ली ।
कै बेर मोनमे ई बिचार उठैत अछि जे हम तँ ई केलहुँ ,ओ केलहुँ,सौंसे जिनगी नीक काज भेटल मुदा हमरा की भेटल । हमरा तुलानमे दोसरसभ एक-सँ-एक पदपर पहुँचि गेलाह । हम ठामहि छी । हम पढ़एमे बेसी तेजगर छलहुँ मुदा हमरासँ बहुत कम नंबर आबएबलासभ बेसी सफल रहलाह । असल जीवन  दू दूना चारि जकाँ नहि चलैत अछि । एकर कोनो गणित नहि छैक । कारण की अछि से नहि कहला जा सकैत अछि। मुदा ई बात तँ तय अछि जे जँ हम जे कए सकैत छलहुँ से जँ कए लेलहुँ तँ हमर अपने मोन गबाही देत,हम संतुष्ट रहब । असलमे नीक प्रयास,नीक काजकहेतु केल गेल प्रयत्न अपना आपमे पुरस्कार थिक । काज हमरा हाथक गप्प थिक, तकर की फल हेतैक से सदरिकाल अपने हाथमे नहि रहैत छैक । अस्तु,अपन कर्तव्य करू आ गीत गाउ । जे हेबाक छैक से होउ ।






मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

मतभेद आ समाधान


मतभेद आ समाधान



प्रकृतिक समस्त आयाममे समन्वय स्वभाविक रूपसँ देखबामे अबैत छैक । इएह कारण छैक जे एतेक भारी शृष्टि एतेक दिनसँ एना निर्वाध रूपसँ चलि रहल अछि । एतेक ग्रह-नक्षत्रसभ निरंतर अपन काज करैत रहैत छथि । किओ ककरोसँ कखनो टकराइत नहि छथि । एकटा हमसभ छी जे अकारण एक-दोसरसँ टकरेबाक मौका तकैत रहैत छी । परिणाम अछि जे आइ यत्र-तत्र-सर्वत्र अशांति पसरि गेल अछि। दुनियाँक देशसभ बम बना-बनाक बैसल छथि । जापानपर कहिआ एटमबम खसल  तकर विनाशक दृष्य अखनोधरि ओहिठामक लोक नहि बिसरि सकल ।  लाखो निर्दोष लोक मारल गेलाह ।  विनासक विभीषिका एहि हद धरि घातक छल जे पेटक वच्चासभ जन्मसँ पहिनहि मरि गेल आओर जे जन्मल से जन्मजात विकलांगताक शिकार भए गेल । शहर-के -शहर वर्वाद भए गेल । ई सभ किएक भेल? मात्र किछु लोकक अहंकारक हेतु । किछु अतिमहत्वाकांक्षी ,घमंडी लोकनि विश्वविजेता बनबाक स्वप्न लए विश्वक विनासक कारण बनि गेलाह । कहू,केहन निकृष्ट काज भेल? दोख एटमबमक नहि छल । ओही उर्जाक उपयोग रचनात्मक काजमे कएल जा सकैत अछि । परुमाणु उर्जाक अक्षय श्रोत साबित भए सकैत अछि,भइओ रहल अछि । अस्तु,कोनो शक्तिक हम कोन तरहेँ उपयोग वा दुरुपयोग करैत छी,एहीपर सभटा बात निर्भर करैत अछि ।

आपसी समझ आ संयमक अभावक परिणाम जहिना राष्ट्रसभ भोगि रहल छथि तहिना गाम-गाममे व्यक्ति-व्यक्तिक अहंक टकरावसँ उतपन्न समस्यासभ विकराल रूप ग्रहण कए लेने अछि । गामघरसँ अगुता कए लोकसभ शहर अएलाह ,जाहिसँ शांतिसँ जीवि सकी । मुदा कहबी छैक जे गेलहुँ नेपाल कर्म गेल संगे। शहरोमे लोकक प्रवृति तँ ओएह रहि गेल । लोक बेगर्ते आन्हर छथि । ई नहि बुझैत छथि जे जखन सभकिछु विषाक्त भए जेतैक तँ ओ कोना बचताह ? यत्र-तत्र बैमानीक वर्चस्व भए गेल अछि । कोनो उपायसँ टाका हेबाक चाही । मुदा एहि टाका सँ हेतेक की? दबाइ कीनब से नकली निकलि जाएत,इलाजमे हेराफेरी होएत,वच्चाकेँ इसकूलमे मास्टर पढ़ाओत नहि,ओकरा अलगसँ ट्युसन चाही । एहि तरहेँ एकटा दुष्चक्रमे संपूर्ण समाज फँसि गेल अछि । राष्ट्रसभमे सेहो सएह हाल अछि । सभ एक-दोसरकेँ डरा रहल छथि । ई नहि बुझैत छथि जे काल्हि भेने हुनकोसंगे एहिना होएत ।

जतए मनुक्ख रहत ततए विवाद रहबे करत कारण इहो जीवनक अंग थिक। मतभेद स्वाभाविक थिक,जनतांत्रिक समाजक अनिवार्यता थिक मुदा तकरा  सही सर्वमान्य समाधान ताके लेब सेहो जरूरी अछि। जँ हमरासभकेँ शांतिसँ जीबाक अछि,जँ विकासक गतिकेँ आगू बढ़ेबाक अछि आ अपन  समय आ उर्जाकेँ व्यर्थक बातमे नष्ट नहि करबाक अछि तँ दोसरक परिस्थिति आ आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखए पड़त । मनुक्खक जीवनक मूल्य तखने बूझल जा सकैत अछि ।

आइ-काल्हि अधिकांश समस्या संवादहीनताक कारण उतपन्न भए रहल अछि । लोक एक-दोसरसँ गप्पे तखने करैत छथि जखनकोनो समस्या ठाढ़ भए जाइत अछि । ई ओहिना भेल जे जखन बरिआती दरबाजापर आबि गेल तँ चललहुँ कुमहर रोपए । आपसी गप्प होइते अछि एहि ले जे हम एक-दोसरकेँ बुझी । मुदा ताहि हेतु उचित माहौल होएब जरूरी अछि,इहो आवश्यक अछि जे हम पूर्वाग्रहरहित होइ । हमर माथ स्वतंत्रतापूर्वक बातकेँ ग्रहण करबाक स्थितिमे हो । आब जखन झगड़ा भइए गेल तखन गप्प शुरु करबैक तँ ओतेक नीक परिणाम नहि भए सकैत अछि जे कि अन्यथा होइत । गप्प-सप्प जखन होइत रहैत छैक तखन कोनो समस्या अएबो करत तँ ओकर समाधान नीक माहौलमे भए सकैत अछि । अखन की होइत अछि? कनीकोटा समस्या भेल कि गोली चलि जाइत अछि । निश्चय ई बहुत शोचनीय स्थिति अछि ।

कएबेर लोक लकीरक फकीर भए जाइत छथि । एकटा नहि अनेक एहन उदाहरण भेटत जे लोक बहुत छोट-छोट बातपर अड़िअल रूखि धए लेलेथि । परिणाम विस्फोटक भेल । एकबेर भाइ-भाइमे पैतृक संपत्तिमे बटबारा लए कए विवाद बढ़ि जाइत अछि । किओ पाछू हटबाक हेतु तैयार नहि होइत छथि । परिणामतः जे नहि हेबाक चाही से होइत अछि । मानि लिअ जे कोनो घर दूतल्ला अछि आ दुनू भाइ नीचलेक भाग चाहैत छथि ,तखन की समाधान हेतैक? ककरो-ने-ककरो तँ पाछा हटए पड़तैक । कै बेर जखन एहन  परिस्थितिमे दुनू पक्ष अड़ि जाइत छथि तँ लोक तमासा देखैत अछि आ घर वर्वाद होइत अछि । एहिसँ वचबाक एकमात्र  उपाय इएह भए सकैत अछि जे अधिकारकेँ बिसरि समस्याक समाधान कएल जाए जाहिसँ साँपो मरि जाए आ लाठिओ नहि टूटए ।

समस्याक समाधान होइ ताहि हेतु जरुरी थिक जे हम दोसरक बातकेँ निष्पक्ष भए ध्यानसँ सुनी । ओकर परिस्थितिक विचार करी आ एहन उपाय ताकी जे दुनू पक्षक बात रहि जाए । एहन नहि लागए जे किओ ई सोचथि जे हुनकर बात सुनले नहि गेल किंवा सभ एकहि दिस भए गेलाह । कहक माने जे समस्याक समाधान एहन हेबाक चाही जे कालक्रममे आपसी सहृदयताकेँ बढ़ाबए, हृदयकेँ विकसित करए, ने की सकुंचित कए दिअए । तकनीकी आधारपर जँ न्यायलयसँ हम जीतिओ जाएब तैओ कै बेरि हारि जाइत छी ।  जेना महाभारतक युद्ध भने  पाण्डव जीति गेलाह मुदा तकर बाद बाँचले की जाहिपर राज करितथि आ राज करैत के? एहि विजयसँ ततेक दुख उतपन्न भेल जे किओ कहिओ सुखी नहि रहलाह आ पाण्डवसभ तँ जीवैत स्वर्गारोहणपर चलि गेलाह। राज नहि भोगि सकलाह ।

हमसभ अपन शक्तिक सही उपयोग कए सकी ताहि हेतु शांतिपूर्ण वातावरण जरुरी अछि । से तँ तखने संभव अछि जखन छोटमोट बातमे हमसभ नहि ओझराइ । जे समस्या सामने आबि जाइत अछि तकर न्यायपूर्ण समाधानक प्रयास करी । जँ एक डेग पाछा गेलासँ बात बनि जाइत अछि,अपन आदमीसँ संवंध मजगूत होइत अछि, तँ से करक चाही । भए सकैत अछि जे तत्काल हमरा घाटा लगैत हो मुदा दीर्घकालमे हम कै गुना बेसी लाबान्वित अनुभव कए सकैत छी । छोटसन एहि जीवनकेँ हम जेना बिता ली । बात-बातपर विवाद ठाढ़ कए लड़ैत-लड़ैत मरि जाइ वा सहनशीलताक परिचय दैत एकदोसरकेँ समावेश करैत जीवन यात्राकेँ शांतिपूर्ण ढ़ंगसँ विता ली,ई हमर सोचपर निर्भर करैत अछि । सही कहल गेल अछि जे'त्येन त्यक्तेन भुन्जीथा'

कोनो जनतांत्रिक समाजमे असहमतिक स्वरकेँ सुनबाक आ ताहिपर वाजिव विचार करबाक गुंजाइस होएब जरुरी अछि । ताहि हेतु हमरा सभमे पर्याप्त सहनशीलता हेबाक चाही । कोनो जरुरी नहि अछि जे अहाँ दोसरक बात मानिए लिअ मुदा सुनि तँ लिऔ जे ओ की कहए चाहैत छथि । भए सकैत अछि जे अपन बात कहिए देलासँ हुनका संतोख भए जानि आओर ओ सोचथि-जे चलू हमरो बात सुनल गेल  किंवा ओहिमेसँ किछु एहन तथ्य बाहर होअए जे समस्याक समाधान कए सकए । तेँ मतभेद अछि तँ कोनो बात नहि मुदा मनभेद नहि हेबाक चाही । सही नेत रहत तँ समाधान हेबे करत । तखने समरस आ सुखकर समाजक रचना संभव होएत । सारांश ई जे आपसी समस्याकेँ आपसमे मिलिजुलि कए समाधान कए ली ने की बातकेँ बतंगर कए ली । तखने सुख-शांति स्थापित भए सकैत अछि ।

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

जीवन संगीत


जीवन संगीत



            अपना ओहिठाम कहल जाइत अछि जे चौड़ासीलाख जोनिमे सबसँ श्रेष्ठ जोनि मनुक्खक होइत अछि। कर्मवश,प्रारव्धवश लोक नाना प्रकारक जोनिमे भटकैत रहैत छथि ।  बहुत  तपस्या कही,धर्म कही जे कही केलाक बादे मनुक्खक जोनिमे जन्म होइत अछि । कहब जे एहन कोन बात छैक जाहिसँ मनुक्खक जोनिकेँ एतेक प्रमुखता देल गेल अछि । हमरा जनतबे सभसँ विशेषता तँ इएह अछि जे एहि जीवनमे  अहाँ कर्मकए प्रारव्धोकेँ  बदलि सकैत छी । गाछ-बृच्छ ,चेड़ै-चुनमुन,कीट-फतिंगा सभमे जीवनक समस्त लक्षण देखबामे अबैत अछि । मुदा कर्म करबाक स्वतंत्रता आ तदनुसार जीवनकेँ  दिशा देबाक सामर्थ्य मनुक्खेक बशमे बुझाइत अछि ,आन कोनो जीव-जन्तुमे अद्यावदि ई शक्तिक जानकारी तँ अखन धरि नहि भेलैक अछि । तेँ मनुक्खक जन्म सर्वोपरि मानल-जानल जाइत अछि ।

आइ-काल्हि जीवनमे भौतिकता ओ बाजारवादक ततेक प्रमुखता भए गेल अछि जे हमसभ सभ चीजकेँ पाइसँ  तुलना करैत रहैत छी । अमुक काज केलासँ हमरा कतेक फैदा होएत,कतेक पाइ भेटत  ?हम की करी जे जल्दीसँ जल्दी इलाकाक सभसँ पैघ धनीकमे हमर सुमार भए जाए । माने लोकसभ जेना एकटा अंतहीन प्रतिस्पर्धामे सामिल छथि । हमर एकटा मित्र जे प्रसिद्ध चिकित्सक छथि एकदिन कहैत रहथि -" आइ-काल्हि लोक टाका कमेबाक चक्करमे धीओ-पुताक जन्म तरह-तरहक व्योंत कए टाड़ि रहल छथि मुदा एकटा समय अबैत अछि जखन सभटा कमाओल टाका एकटा बच्चाक जन्म  हेतु खर्च करबाक हेतु तैयार रहैत छथि आ कैओ दैत छथि तथापि कैबेर निराशा हाथ लगैत छनि , वच्चा नहि होइत छनि। कहक माने जे जीवनमे सभ चीजक अपन महत्व छैक । सभचीजक अपन समय छैक । हमरा लोकनिकेँ एकटा संतुलन बनाएब जरूरी अछि नहि तँ बादमे पश्चातापे केलासँ की होएत? का बरखा जब कृषि सुखाने?  तेँ समयक इसाराकेँ बुझबाक चाही । ई बात बुझबाक चाही जे सुख एकटा भिन्न बस्तु थिक । खोपड़िओमे किओ महराइ गबैत सुखी जीवन जीवि सकैत अछि आ महलोमे रहनिहार समस्त सुख सुविधा अछैत निन्न बिना राति भरि टकटकी लगओने रहि सकैत छथि आ निन्नक गोली खाइत रहैत छथि।

ओना तँ  धन -संपत्तिक कोनो अंत नहि अछि मुदा जीवन जीवाक हेतु मौलिक सुख-सुविधा तँ चाहबे करी । रहए लेल घर,पहिरए हेतु वस्त्र आ भुख लगलापर दुनूसाँझ भोजन तँ चाहबे करी । हे चलू,तकरबादो जँ कनी-मनी उपरा भए गेल तँ बुझु जे भात-दालिक बाद दहीक छऔक काज करत । की एतबोपर लोककेँ संतोख होइत छेक? नहि होइत छैक । आओर इएह थिक अशांतिक जड़ि । कारण जखन हम आवश्यकतासँ बेसी जमा करबाक फिराकमे पड़ब तँ जाहिर छैक जे ककरो वाजिब हक मारल जाएत । जखन किओ सभटा धान अपन बखारीमे एहि लेल भरि लैत छी जे ओकर पौत्र-प्रपौत्रकेँ काज आओत तँ की होएत ? अधिकांश लोक भुखले पेटे सुतत । परिणाम ? अशांति,जनआक्रोश छोड़ि आओर की भए सकैत अछि?सौंसे संसारमे  जरुरत भरि वस्तु भगवान प्रकृतिमे भरि देने छथि । नानाप्रकारक फल,फूल,तरकारीसँ ई पृथ्वी भरल छथि । मुदा हमरासभक स्वार्थी प्रवृतिक कारण अखनो,एहू युगमे जतए विज्ञान एतेक बढ़ि गेल अछि,लाखो लोक भुखले सुतैत अछि । छैक ने दुखक बात?

जहिना जीबाक हेतु मौलिक आवश्यकताक पूर्ति जरूरी अछि तहिना इहो जरूरी अछि जे हमसभ अनावश्यक संग्रह नहि करी । अपना ओहिठाम अयाची मिश्रक कथा बहुत प्रसिद्ध अछि । अत्यंत अभावमे रहितहुँ ओ महराजक मदति स्वीकार नहि केलनि । जे किछु हुनका भगवान देने छलखिन ताहीमे चैनसँ ओ जीबैत छलाह । कोनो हरहर खटखट नहि । दिवस्य अष्टमे भागे शाकं पचति यगृहे । कहक मतलब जे दिनमे एकबेर खाउ आ मस्त रहू । ने उधो का लेना ने माधो का देने । सारांश जे संतोख बड़का बस्तु थिक । संतोखक विना हमसभ सुखी नहि भए सकैत छी ।

जीवनमे सुखी रहबाक हेतु शांति बहुत जरूरी अछि । गीतामे भगवान कहैत छथ-"अशांतस्य कुतो सुखम्" । जिनका शांति नहि तिनका सुख कहाँ? शांतिपूर्वक जीवन चलाएब सेहो कला थिक । बहुत देखाबामे किंवा पैघ- पैघ पद भेनहि जीवनमे सुख होएत से जरुरी नहि अछि । सही बात तँ ई थिक जे पैघ पद प्राप्त भए गेलाक बाद लोक ओकरा बचेबाक फिराकमे दिन-राति व्यग्र रहए लागैत छी । ताहि हेतु जरूरी अछि जे जीवनमे संतोखक भाव आबए । से भेनहि  शांति  भए सकैत अछि । ऐकटा खोपड़ीमे रहनिहार सुखी भए सकैत अछि जँ हुनका संतोख छनि,नहि तँ भूत जकाँ लोक बौआइत रहि जाइत अछि ।

जीवन ओहो मनुक्खक एकटा अद्भुत वरदान अछि । प्रकृति अपन संपूर्ण सामर्थ्यसँ समस्त जीव-जन्तुक निर्वाहक हेतु पर्याप्त साधनक जोगार केने अछि । वायु विना हमसभ कतेक काल जीवि सकैत अछि? कनीको काल नहि । पानि पीने विना कतेक दिन जान बाँचत? तहिना सूर्यक प्रकाश , पृथ्वीक आधार हमरासभकेँ प्रकृतिक उपहार अछि । मुदा मनुक्ख अपन स्वार्थमे आन्हर भए सभकिछुपर अपन अधिकार जमओने जा रहल अछि जाहिसँ जीवनमे एतेक संघर्ष अछि । एकगोटे अपन कै पुस्तक हेतु धनसंग्रह करबामे परेसान छथि तँ दोसर केँ अजुको भोजनक समस्या रहैत अछि । जखन एहन असमानता रहत तखन समाजमे सुख,शांति कोना होएत?

जीवनक आनंदकेँ हम अपनाकेँ दोसरक दुख-सुखसँ जोड़ि कए बेसी नीकसँ अनुभव कए सकैत छी । जखन चारिगोटे मिलिकए कोनो गीत गबैत छी तँ केहन सोहनगर लगैत अछि । सोचिऔ जँ सभ गोटे मिलि कए एकहि भावसँ जीवी,रही तँ कतेक नीक लगतेक । लोक कतेक सुखी रहत । से तँ तखने होएत जखन आपसमे सहयोग आ समाधान होइ । से भेलासँ संपूर्ण वातावरणमे आनंदक बरखा होइत रहत आ जीवनक सही मानेमे  हमसभ आनंद उठा सकब ।


मंगलवार, 27 नवंबर 2018

प्रतिष्ठाक भूख


प्रतिष्ठाक भूख



हमरा लोक बुझए,जे नहि छी सेहो बुझए,समाजमे हमर मान्यता होअए,लोकक दृष्टिमे हम पैघलोकमे जानल-मानल जाइ ,ई सभ एहन भावना थिक जे मनुक्खमात्रकेँ परेसान केने रहैत हछि । जकरा आओर किछु नहिओ चाही,जेहो संत-महात्मा भए गेल छथि,विद्वान छथि किंवा उच्चपदासीन छथि ,सभ प्रतिष्ठा अर्जित करबाक हेतु आजन्म प्रयत्नशील रहैत छथि । ओना जँ देखिऐक तँ प्रतिष्ठा प्राप्त करबाक भावनामे किछु अधलाह नहि थिक । कतेको बेर लोक एही हेतु नीक काज करैत छथि । मुदा गड़बड़ तखन होइत अछि जखन  हमसभ प्रतिष्ठाक पाछा पड़ि जाइत छी । परिणामस्वरूप बहुतरास  अलट-विलट काज करैत छी । एहि कारणसँ निरंतर अशांत रहैत छी।

सकारात्मक प्रयास द्वारा लोक जीवनमे आगू बढ़थि आ प्रतिष्ठा अर्जित करथि,एहिसँ नीक बात की भए सकैत अछि । मुदा कतेकोबेर एहन होइत अछि जे व्यक्तिगत स्वार्थमे अंधभए लोक दोसरकेँ टांग घिचैत छथि जाहिसँ समाजमे अकारण तनाव बढ़ैत अछि आ कतेको बेर निर्दोष लोककेँ परेसानीक सामना करए पड़ैत अछि । बिना परिश्रमकेँ दोसरक हक छीनि कए समाजपर अपन प्रभुता स्थापित करबाक एकटा हवा बहि गेल अछि । एहि कारण नीक- बेजाएक भेद खतम भेल जा रहल अछि आ अवसरवादी ओ स्वार्थी लोकसभ तत्काल जीतैत लगैत अछि । एहि तरहेँ समाजक कोनो तरहे हितसाधन नहि होइत अछि । अपितु नीकलोक पाछा भए जाइत छथि जकर कुपरिणाम सभ देखि रहल छी ।

गाम-घरमे प्रतिष्ठाक लेल कतेको लोक की नहि कए लैत छथि । साधनसँ बेसी लंफ-लंफामे रहैत छथ जाहिसँ लोक  बूझए जे ओ पैघ ळोक छथि । मुदा देखाबटी पैघत्व कै दिन चलत? ओ किछुए दिन मे देखार भए जाइत छथि । बिआह,श्राद्ध,उपनायनमे लोक अगह-बिगह खर्च कए लैत छथि । गामक-गाम भोज करैत छथि जाहिसँ हुनकर यश पसरए ,लोक हुनका पैघ बुझनि । ताहि हेतु खेत-पथार सेहो बेचि लैत छथि । पूर्वमे कतेको परिवार एहिसभक चलते दरिद्र भए गेलाह ।

ई बात तँ तय अछि जे हमसभ जे किछु नीक-बेजाए करैत छी,जे किछु धन-संपत्ति बटोरैत छी  से सभ एहीठाम रहि जाइत अछि । तैँ बहुतोलोक  धन-संपत्ति  दान कए दैत छथि। जन कल्याणक काज करैत छथि मुदा ताहूक पाछा हुनकर यशलिप्सा रहैत अछि । बड़का संत-महात्मासभ सेहो यशलिप्सासँ मुक्त नहि भए पबैत छथि । ताहि हेतु तरह-तरहक यज्ञ-जाप करैत छथि,करबैत छथि,ठाम-ठाम मंदिर,धर्मशालाक निर्माण करबैत छथि । जाहि हेतु गाम-घर त्यागिकए सन्यास लए लेलाह तैयो मोन ओतहि भटकैत रहि जाइत छनि । अपन लोकवेद,अपन जन्मस्थानमे किछु एहन करबाक जिज्ञासा रहिए जाइत छनि जाहिसँ हुनका अपनालोकमे प्रतिष्ठा भेटए । सही मानेमे प्रतिष्ठाक भूखसँ जान छोड़ाएब बहुत मोसकिल काज अछि । 

प्रतिष्ठा मात्र छाँह थिक जकर अपन कोनो आस्तित्व नहि अछि । लोक छाँहक पाछा भागत तँ की ओ भेटतैक ? कदापि नहि? ओ तँ आओर फटकी होइत जेतैक। सएह हाल प्रतिष्ठाक अछि। जँ अपने प्रतिष्ठाकेँ केन्द्रविन्दुमे राखि कए जीब तँ सही मानेमे अहाँ मृगमारिचिकामे रहब । कहिओ जीवनक सत्यकेँ नहि बुझि सकबैक जे शक्ति प्रतिष्ठाक पाछा भगलामे नहि अछि । असल शक्ति तँ मनुक्खक अपने हाथमे अछि । ओ की अछि? ओ अछि अहाँक द्वारा कएल गेल कर्म । जँ अहाँ सही कर्म करैत गेलहुँ तँ प्रतिष्ठा के कहए की-की ने अहाँक पाछा- पाछा घुमैत रहत । अस्तु, जीवनमे कर्मक प्रधानता दए निरंतर  आगा चलैत रहू,देखिऔ ने चमत्कार भए जेतैक आ भइए कए रहतैक ।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

मनक शक्ति


मनक शक्ति



वैज्ञानिकसभ कहैत छथि जे मनुक्ख अपन दिमागक बहुत  लघुअंशक उपयोग कए पबैत अछि । ओकर अधिकांश मानसिक शक्ति व्यर्थ चलि जाइत छैक । हमर पूर्वज योग आ ध्यानद्वारा अद्भुत मानसिक शक्ति प्राप्त केने छलाह । महाभारतक समयमे संजयकेँ दिव्यदृष्टि प्राप्त रहैक जाहिसँ ओ धृतराष्ट्र लग बैसले-बैसल कुरुक्षेत्रक दृष्यक वर्णन करैत रहल । भए सकैत अछि जे ओ किछु आइ-काल्हिक टेलीवीजनेक प्रारूप रहल हो किंवा ओकर आँखिएमे किछु एहन विशेष शक्ति भए गेल जे ओकरा लेल अदृष्य वस्तु सेहो दृष्य भए गेल । मंत्र द्वारा मोनक शक्तिकेँ कतेको गुना बढ़ा- घटा देबाक सामर्थ्यक चर्च हमसभ अपनसभक शास्त्र-पुराणमे सुनैत रहलहुँ अछि । आखिर मंत्र छैक की? सुनियोजित शव्दक शृंखला मात्र जकर अर्थ ओ ध्वनिसँ मनुक्खक मष्तिष्क प्रभावित भए जाइत अछि । ओना सामान्य जीवनमे हमसभ ई बात देखैत छी जे जँ अनट बात बजलहुँ वा बजा गेल तँ तुरंते सामनेक व्यक्ति तमसा जाएत आ भए सकैछ जे जानोपर बनि जाए । कहक माने जे शव्देक प्रभावसँ एहन प्रतिकृया भए गेल । मंत्र सएह काज करैत अछि,एहिमे कोनो सक नहि हेबाक छाही । अस्तु,मनक एकटा अपन अनंत संसार छैक जे हमरा अहाँकेँ कतए सँ कतए लए जेबाक सामर्थ्य रखैत अछि ।
देहक मजगूत होएब तखने कारगर भए सकैत अछि जखन ओकरा संगे मोनो मजगूत होइक ,नहि तँ एकसँ एक पहलमान सिपाही पातर -छितर अधिकारीक आदेशपर नचैत रहैत अछि । ओतेकटा हाथीकेँ नान्हिटा महावत नचौने रहैत अछि । ई बात अलावा छैक जे जँ हाथीकेँ माथा फेल भए जाइत अछि,तखन तँ ओ महावतकेँ चीड़ि-फारिकए राखि दैत अछि । ओहूमे ओकर मोनेक स्थिति असरदार भए जाइत अछि । सच पुछैत छी तँ आदमी-आदमीमे फर्के ओकर मोनक ऊपर निर्भर करैत अछि । एक आदमी डाक्टर भए जाइत अछि,किओ कलक्टर बनि जाइत छथि तँ ककरो भाग्यमे भरि जिनगी चपरासिएक काज करब रहैत अछि । मुदा एहिसभक पाछु मोनेक शक्तिक चमत्कार थिक ।
ई संसार हमर अपने सोचक प्रतिविम्ब अछि । हम जेहने सोचैत छी,सएह होबए लगैत अछि । जँ हम ककरोसँ नीकसँ गप्प करब तँ ओहो नीकसँ बाजत । जँ हम अलट-विलट काज करब,अंट-संट बाजब तँ जाहिर अछि जे दोसरोक मोनमे तेहने भाव जागत,ओहो तमसाएत । परिणाम केहन होएत से सोचल जा सकैत अछि। आइ-काल्हि की भए रहल अछि? सभ अपन-अपन तानमे मस्तान अछि । ककरो कोनो मतलब नहि छैक जे ओकरा आस-पासक लोक के अछि,केहन अछि । गामो-घरक जीवनक शहरीकरण भए गेल अछि । लोक चुपचाप अपन दरबाजापर बैसल रहैत अछि । फगुआ हो वा दिआबाती,ककरोसँ किओ भरिमुँह गप्पो नहि करैत अछि । तेहन परिस्थितिमे जँ कोनो विवाद होइत अछि तँ ओ भयानक रुखि लए लैत अछि । कारण संवादहीनताक कारण आपसी समझ नदारद रहैत अछि आ बात एकहि बेर काबूसँ बाहर भए जाइत अछि ।
एहन उदाहरण कतेको भेटत जतए लोकसभ कहए लगताह-"की कहैत छी? हमरा तँ साधने नहि अछि ने तँ हम केहन,केहनक कान काटि देतिऐक । आदि,आदि । मुदा ई सभ बहाना मात्र छैक । एक सँ एक कठिन परिस्थितिमे लोक आगू बढ़बे नहि केलाह अपित समाजक सामने एकटा दृष्टान्त प्रस्तुत केलाह।कहबी छैक जे रोम एकदिने नहि बनल । माउंट एवरेस्टपर चढ़बाक हेतु कतेको बेर लोक खसल,कतेको अपन जानोसँ हाथ धोलथि । अंततोगत्वा विजय भेटल । विजय पताकासभ देखैत अछि मुदा ओकर पाछाक संघर्ष साइते किओ बुझैत अछि । मुदा ई बात तँ मानिए कए चलू जे पैघ उपलव्धिक हेतु ओहने कठोर  परिश्रमक प्रयोजन होइत अछि । सफलताक हेतु कोनो लघुपथ नहि होइत अछि । कहक मानेजे  कोनो पैघ काज करबाक हेतु तेहने सघन प्रयासक प्रयोजन होइत अछि । खुरपी छलहुँ आ बोनि भए गेल ,ताहि तरहक प्रवृतिसँ जीवनमे उत्कर्षपर नहि पहुँचल जा सकैत अछि । ताहि हेतु चाही दृढ़निश्चयी ,पहाड़सन निस्सन ओ अटल मोन जे रस्ताक संघर्ष ओ कष्ट देखि कए अगुताथि नहि,कर्तव्यपथपर अड़ल रहथि । की मजाल अछि जे एहन अडिग व्यक्तिकेँ सफलता नहि भेटत,भेटबे करत ।  एहने लोकसभ समाजमे दृष्टान्त बनि जाइत छथि ।
मनक शक्ति अथाह अछि । कतेक तरहक बात कहिआ-कहिआसँ एहिमे संचित रहैत अछि जकर उपयोग हमसभ सुविधानुसार करैत रहैत छी । क्रोध,प्रेम,घृणा,दया आद तरह-तरहक भावना मनुक्खक मोनमे सुसुप्त रहैत अछि आओर मौका पाबि कए सक्रिय भए जाइत अछि । किओ व्यक्ति जन्मजात क्रोधी,प्रतिशोधी,मतलबी होइछ । तँ किओ स्वभावसँ उपकारी,दानी आ उदार एकरा की कहबै? मनुक्खक मोनमे कतेको जन्मसँ संचित कर्म ओकर संस्कारक रुपमे समय-समयपर स्वतः प्रकटभए ओकर स्वभावक रुप दैत अछि । कहक माने जे, जे किछु हम अहाँ कए रहल छी तकर फलाफल एहि जन्ममे तँ भेटिते अछि,बादोमे, आनो जन्ममे हमरसभक पछोड़ करैत अछि । सही मानेमे मोन अनंत अछि ।
मनुक्खक मोनमे परमात्माक बास अछि। ओ जे सोचत से भए कए रहत,बसर्ते ओ आधा,अधूरा प्रयास कए रस्तासँ घुरि नहि जाथि। लक्षकेँ प्राप्त हेबा कालधरि अपन प्रयासमे लागल रहथि । मार्गक कष्टसँ व्यथित भए प्रयासकेँ शिथिल नहि करथि । कोनो सबाल नहि अछि जे ओ  अपन निर्धारित लक्षयकेँ नहि प्राप्त कए सकथि। मुदा ताहि हेतु चाही धैर्य,ताहि हेतु चाही अनथक प्रयास । जे किओ से केलाह अछि सएह सही मानेमे सफल भेलाह अछि ।






शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

दुखिआसभ संसार!


दुखिआसभ संसार!





एहि दुनिआमे अधिकांश लोक अनकर सुख देखिकए दुखी छथि । एहन लोकक की समाधान अछि? ओ सही मानेमे अभागल छथि । सौंसे संसारमे लोक दिन-राति एही प्रयासमे रहैत छथि जे सुखी रही,नीक घर बनाबी,धीआ-पूताकेँ नीक-सँ-नीक शिक्षा दी,हुनकर नीक नौकरी लागि जानि आ जीवनमे सभ तरहेँ सुव्यवस्थित होथि । हमरातँ से सभटा होअए मुदा अनका से सभ नहि होइ आ जँ हेतैक तँ हम दुखी भए जाएब । एहिसँ हटि कए जौँ हम सकारात्मक रुखि रखैत अनकर उपलव्धिकेँ अपने बुझी तँ सुखी हेबाक अवसर अबिते रहत । हम अपने कैटा मकान बना सकब? एकटा-दूटा ,हे तीनटा मुदा लाखोक संख्यामे मकान,फ्लैट आओर लोकसभ बना रहल छथि किंवा बनल बनाओल कीनि रहल छथि । जौँ हम अपना आपकेँ कनी उदार करी आ अनकर सुखसँ सुखी होएब सीखि ली तँ निश्चय बुझु जे हमसभ हजार गुना बेसी सुखी रहि सकैत छी ।  नित्यप्रति अपने घरक गृहप्रवेश हेबाक आनंदक अनुभूति कए सकैत छी ।

लोक सोचैत रहहैत अछि जे दोसर आदमीसभ कतेक भाग्यवान अछि । सभकेँ अनकर चीज-वस्तु सोहनगर लगैत रहैत छैक। जखन कि कै बेर से बात होइत नहि छैक । असलमे ई संसार विचित्रतासँ भरल अछि । किओ किछु तँ किओ किछु लए मुदा असंतुष्टसभ अछि । जकरा एकटा मकान छैक से दोसरक चक्करमे अछि । जकरा दोसरो मकान भए गेलैक से आओर किछुक पाछु पड़ल अछि । किओ बिरलैके एहन भेटताह जे सभ मानेमे पूर्ण छथि आ जँ से भए जेतैक तँ ओ मनुक्ख नहि रहि जेताह,भगवान भए जेताह । सत पूछल जाए तँ अपुर्णता स्वभाविक थिक । जँ सभ किछु भइए जेतैक तू हम-अहाँ जीविए कए की करब? बैसल-बैसल  लोथ नहि भए जाएब?

जखन मनुक्खकेँ अभाव हेतैक तँ ओ ओकर प्राप्तिक हेतु प्रयास करत ,प्रयास करत तँ किछु हेतैक,किछु नहि हेतैक । आब एहीठाम आदमी-आदमीमे फर्क भए जाइत अछि । किओ मनोनुकूल परिणाम नहि भेलोपर  प्रयास नहि छोड़ैत छथि, अपितु वारंबार प्रयास कए इक्षित फल प्राप्त कए लैत छथि । ओतहि किछुगोटे एहन होइत छथि जे  कनीमनी प्रयास करताह आ हाथ बारि देताह । तकरबाद तरह-तरहक कबाइत पढ़ए लगताह ।" हमर तँ भाग्ये खराप अछि। हम कइए की सकैत छी । फलना आदमी तँ देखिते-देखिते की सँ की कए लेलथि " आदि,आदि। एहि तरहक सोचबला व्यक्ति बेसीकाल दुखिए रहैत छथि ।

लोक कतबो पैघ किएक ने भए जाओ,ओकरा समस्या लागले रहैत छैक । मानि लिअ जे किओ प्रधानमंत्री भए गेल तँ की ओ बहुत सुखी अछि, से नहि कहल जा सकैत अछि । एहिबातक किओ गारंटी नहि दए सकैथ अछि । कम सँ कम ओकरा दिन-राति एहिबातक चिंता तँ लागले रहैत छैक जे ओकर प्रतिष्ठा बनल रहए,ओ लोकप्रिय रहए,आ जनतामे ओकर नीक छवि  रहैक । ताहि लेल ओ दिन-राति अपसिआँत रहैत छथि । कहक माने जे सुखी होएब कोनो पद वा धनसँ नहि जोड़ल जा सकैत अछि । सही पुछैत छी तँ ई बात लोकक दृष्टिकोणसँ बेसी प्रभावित होइत अछि जे अमुक व्यक्ति सुखी रहताह की दुखी । एकहि बातसँ किओ जान देबए हेतु उतारु भए जाइत छथि तँ ककरो लेल ओएह बात होएब कोनो माने नहि रखैत अछि ।

ककरा कोन बातसँ दुख हेतैक तकर कोनो निजगुत व्याख्या नहि कएल जा सकैत अछि। मुदा एतबा तँ तय अचि जे बहुत रास दुख मनुक्खक स्वयं बेसाहल होइत अछि । कहब से कोना? आब कहैत छी । मानि लिअ जे  ककरो बच्चामे गणितक सबाल बुझबाक क्षमता नहि छेक,तैयो ओ चाहैत छथि जे हुनकर बेटा अभियंता भए जाए,किंवा ककरो बच्चा कहुना कए बीए पास केलक आ ओ अभिलाषा रखैत छति जे ओ बच्चा आइएएस भए जाथि ,तखन हुनका की हेतनि,निराशा छोड़ि कए किछु आओर हाथ लगतनि? कदापि नहि। इएह बात बुझबाक रहैत छैक । कहबाक माने जे पहिने उत्तर निकालि कए सबाल बनबए चलब तँ की होएत? जीवन यात्राक आनंद सँ एहन व्यक्ति वंचित रहि जाइत छथि जे तखने सुखि हेताह जहिआ सभकिछु हुनकर मोन जोगर भए जेतनि । से ने हेतनि ने ओ कहिओ भरिमोन हँसि सकताह । ने राधाकेँ नौ मोन तेल हेतनि ने ओ नचतीह। सएह हाल बेसी गोटे अपन बना लैत छथि आ तखन दोख देताह भाग्यक ।"हमर तँ भाग्ये खराप अछि?"

"औ बाबू! खराप किओ आन थोड़े केने अछि? कनिको सोचि-विचारि कए चलितहुँ तँ साइत बहुत बेसी सुखी रहि सकितहुँ ।

कै बेर जखन भोरे अखबार पढ़ैत छी तँ  मोन चिंतित भए जाइत अछि । एक सँ एक योग्य,पढल-लीखल, उच्चपदपर आसीन व्यक्ति आत्महत्या कए रहल छथि । मामुली बात लए पड़ोसीसँ झगड़ा होत अछि आ गोली चलि जाइत अछि । सड़कपर बात-बातमे कार सबार मोटर साइकल पर बैसल लोकसंगे  गारि-मारिपर उतारु देखल जाइत छथि । आखिर,एना किएक भए रहल अछि?  कतहु-ने-कतहि ई लोकसभ अंदरसँ परेसान छथि । मोनमे चैन नहि छनि । पाकल घाव जकँ मौका पबितहि अंदरक विकार बलबला कए बाहर भए जाइत अछि । निश्चित रुपसँ ई चिंताक विषय थिक ।

एहि संसारमे साइत किओ भेटत जकरा कोनो-ने-कोनो रुपमे दुख नहि भेल हो । कबीर दास ठीके कहैत छथि-

राजा दुखी परजा दुखी जोगीकेँ दुख दूना ।

कहे कबीर सुनो बाइ साधो एकहु घर नहि सूना ।।

भगवान रामसन चक्रवर्ती आ प्रतापी राजाकेँ कतेको तरहक कष्टक सामना करए पड़लनि। भगवान कृष्णकेँ दुष्टसभक संहार करए हेतु की-की नहि करए पड़लनि । आधुनिक समयमे सेहो एक सँ एक उदाहरण भेटत जतए लोक अपन सिद्धान्त हेतु सर्वस्व दावपर लगा देलनि । नेल्सन मंडेला कतेको साल जेलमे सड़ैत रहि गेलाह मुदा अपन बात पर अडिग रहलाह आ अंततोगत्वा विजयी भेलाह । कहक माने जे दुख सहबाक शक्ति अपना आपमे वरदान अछि। दुख हेबे नहि करए से हमरा -अहाँक बशमे अछि? नहि अछि? तखन तँ ओकर निदान करब आ ताहि हेतु उचित आ आवश्यक धैर्य राखब एकमात्र समाधान भए सकैत अछि । अस्तु, बहुत किछु हमरा लोकनिक मनोवृतिपर निर्भर करैत अछि ।

जावे मनुक्खक जीवन छैक,दुख-सुख लागले रहत ।  ई प्रकृतिक नियम थिक । सभदिन एकरंग ने ककरो रहलैक अछि आ ने रहतैक । परिवर्तन अवश्यंभावी थिक । तखन की कएल जाए जाहिसँ सुखी आ शांत जीवन जीवि ली? ताहे हेतु गीताक निमन्लिखित श्लोकक ध्यान कएल जाए

-दुखेषु अनुदविग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।

वीतराग भय क्रोधः अथितधिः मुनिः उच्यते ।।

कहक मतलब जे जेना जीवन यात्रामे अबैत जाए तकरा तहिना स्वीकार कए चलैत चलू। बढ़ैत चलू । सभ ठीके रहतैक ,ई भावना जँ  मोनमे रहत तखने सही मानेमे हमसभ सुखी रहि सकैत छी।

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सोमवार, 12 नवंबर 2018

प्रतिशोध


प्रतिशोध



सोचिऔ जे सभकिछु जँ अपने मोनक अनुसार होइतैक तँ ई दुनियाँ कतेक रमनगर रहितैक? मुदा से होइत छैक? कदापि नहि ? एकसँ एक पैघ लोक एहि प्रयासमे लागल रहलाह जे ओ जे चाहथि सएह होइक,हुनकेटा  चलनि आ जे से नहि करैत अछि तकरा तेहन दंड देल जाए जे आओर किओ फेर तेहन गलती करबाक साहस नहि कए सकए? मुदा रावणोकेँ से कएल नहि भेलैक । कहबी छैक जे सभकिछु ओकर अधीन भए गेल रहैक ,तइओ जखन समय अएलैक ओ कालक अधीन भए एहि दुनियाँ सँ चलि जाइत रहल । सौंसे जिनगी ओ प्रतिशोध लैत रहल ।लक्षमण सूर्पनखाक नाक काटि देलखिन । ताहिबातसँ अपमानित भए सूर्पनखा रावण लग पहुँचल आ ओकरा तरह-तरहसँ एहि अपमानक बदला लेबाक हेतु उत्तेजित केलक । प्रतिशोधक आगिमे धधकैत अहंकारी रावणक वुद्धि भ्रष्ट भए गेल आ ओ एकपर एक गलती करैत चलि गेल । सीता हरण सेहो तैँ भेल छल । परिणाम की भेल? ओकर घरहंज भए गेल । कहबी छैक जे रहा न कुल कोइ रोवन हारा । रावणक सभकिछु चल जाइत रहलैक । तैँ प्रतिशोध बहुत हानिकारक भावना थिक जे मनुक्खकेँ कैबेर राक्षस बना दैत अछि आ ओ एहन काज सभ कए बैसैति अछि जे ओकरा बादमे स्वयं पश्चाताप होइत छैक । जरुरी अछि जे समय रहिते मनुक्ख चेति जाए आ बेसी फसाद नहि करए ।

अपन शास्त्र-पुराणमे एहन खिस्सासभ भरल अछि जाहिमे  प्रतिशोध लेबाक कारण देबता-राक्षसमे कतेको युद्ध भेल । महाभारत तँ ऐहि तरहक घटनासँ भरल अछि । द्रोपदी दुर्योधनपर हँसि देलथि,किछु अनट बात कहि देलथि ,ताहि बातसँ अपमानित  दुर्योधन की-की ने केलक से ककरा नहि बूझल अछि । बात एहि हदधरि चलि गेल जे भरलसभामे छल द्वारा द्युतमे पाणडवसभकेँ हरा कए हुनकर राज-पाटसभटा तँ चलिए गेल,अपितु द्रोपदीकेँ नाङटकए आनल जेबाक प्रयास भेल । ओहिसभामे कर्ण सेहो अपन अपमानक बदला लेबएमे नहि चुकलाह आ द्रोपदीकेँ की-की ने कहि देलखिन ,किएक? एही लेल जे ओ हुनका संग द्रोपदी बिआह करए हेतु तैयार नहि भेल रहथि,कारण जे रहल हो । एहन शुर-वीर लोकसभ एहन नीचतापर उतरि गेलाह कारण हुनकासभपर प्रतिशोधक भूत सबार छल । परिणामक चर्च करब आवश्यक नहि अछि । सभ जनैत छी जे तेहन भयानक युद्ध भेल जे घरहंज भए गेल । अहीं कहू,एहिमे के जीतल?

मनुक्खक जखन तामस हदसँ बेसी भए जाइत छैक आ ओकरा लगैत छैक जे ओएहटा सही अछि,आनलोकसभ ओकरासंगे अन्याय कए रहल छैक तँ ओ बदला लेबाक भावनासँ दोसर व्यक्तिक क्षति करैत अछि । मुदा तामसेटा मे एहन काज होइत छैक से बात नहि अछि । जेना कै बेर लोक सोचि-विचारि कए सेहो एहन काज करैत अछि जाहिसँ ओकर प्रतिद्वंदी किंवा शत्रुकेँ सबक सिखाओल जा सकए । जे व्यक्ति ओकर क्षति केलक तकरा सूदि,मूर समेत घाटा कएल जा सकए । मूलतः बदला लेबाक हेतु किंवा ओलि चुकाबक हेतु लोक एहन काज करैत छथि । जाहिर बात छैक जे एहन निषेधात्मक विचारसँ कोनो शुभ नहि भए सकैत छैक ।

जीवन अछिए कतेकटा? देखिते-देखिते लोक बच्चासँ बूढ़ भए जाइत अछि । जौं एहि बएह्मांडक आयुसँ तुलना करी तँ हमरा लोकनि जीवन ओकर एकटा बहुत छोट क्षणक समान अछि । एतेक छोट जीवनमे कतेक उठापटक हमसभ कए लैत छी । कै बेर तँ छोट-छोट बात हेतु अपने लोकक हत्यापर उतारू भए जाइत छी । पुछब जे की करी,अन्याय सहि कए जिब कोन नीक बात भेल? एहि तरहक बहुत तर्क देल जा सकैत अछि आ सएह सभ कहि लोक आवेशमे , प्रतिशोधपूर्ण काज करैत छति जाहिसँ अपनेटा नहि अनको दुखी करैत रहैत छथि । जीवनमे संतुलन बनाकए रहलासँ एवम् सहनशील रहलासँ बहुत रास समस्याकेँ आसानीसँ सलटल जा सकैत अछि । अपन उर्जाक सकरात्मक उपयोग जँ हमसभ करब तँ अपन उन्नति तँ हेबे करत बहुत रास आनोलोकसभक उपकार कए सकब । मुदा ताहि लेल तँ क्षमाशील होएब बड़ जरुरी अछि । नहि तँ छोट-छोट बात हेतु हमसभ दिनराति व्यग्र रहब । कमसँ कन चैनसँ तँ नहिए रहि सकब।

एहन बात नहि अछि जे बदमास वा कम पढ़ल-लिखल लोक  प्रतिशोधी होइत छथि । अपितु एकसँ एक पढ़ल-लिखल,विद्वान  आ उच्चपद आशीन व्यक्तिसभ कैबेर ततेक प्रतिशोधी होइत छथि वा भए जाइत छथि जे जानवरोकेँ पाछा छोढ़ि दैत छथि । जौँ अपने हुनकर अहंपर कतहु चोट कए देलिअनि तखन देखैत रहू तमाशा । जाहिर थिक जे मनुक्खक जतेक अहंकारी,क्रोधी होएत ओकरामे प्रतिशोधक मात्रा ततेक बेसी होएत। आइ-काल्हि तँ ई हाल अछि जे मामूली बातपर गोली चलि जाइत अछि जेना मनुक्खक जीवनक कोनो मूल्ये नहि होइक । रस्ता चलैत जँ अहाँक मोटर साइकल कारसँ टकरा गेल तँ भए सकैत अछि जे दोसरे क्षण गोलीक आबाजसँ कान बहीर भए जाए । अखबार रोज एहन घटनासँ पाटल रहैत अछि । पड़ोसीसँ गाड़ीक पार्कींगपर झंझट भेल आ दोसरे क्षण कैटा लहास देखए पड़ि सकैत अछि । कतेक दुखक गप्प थिक जे मनुक्ख जीवनक जेना कोनो मोले नहि रहि गेल होइक । अस्तु,प्रतिशोध निश्चय राक्षसी प्रवृति थिक एवम् एकर त्याग करबेमे सभक कल्याण अछि ।

आइ-काल्हि छोट-छीन घटनासभ भयानक रुप ग्रहण कए लैत अछि । मामुली बातमे लोक हिंसापर उतारु भए जाइत अछि आ जान लेब तँ जेना सामान्य बात भए गेल अछि । अहाँ जँ भोरुका अखबार  उल्टाउ तँ एहन समाचारसँ पन्ना भरल रहैत अछि । आखिर मानवमूल्यक एहन क्षरण किएक भेल? ई सभ एकदिने नहि भेल अछि । जाहि देशमे चुट्टी-पिपड़ी धरिकेँ इश्वरक अंश मानि पूजा कएल जाइत रहल अछि ताहीठाम इश्वरक सुंदरतम कृति मनुक्खक  किछु मोल नहि रहि गेल अछि । कैठाम तँ एहन देखल गेल जे पचीस-तीस टकाक झगड़ामे आदमीक जान चलि गेल । ई महज दुर्घटना नहि कहल जा सकैत अछि । असल बात ई अछि जे मनुक्खक देहमे लोक राक्षसक रुप धए लैत अछि ,कखन? जखन ओकरामे निषेधात्मक प्रवृतिक बहुलता भए जाइत अछि ,जखन लोक स्वार्थमे आन्हर भए किछु करएपर उतारु भए जाइत अछि । एहने समयकेँ लोक कलियुग कहैत अछि । अहाँ कहि सकैत छी जे समस्या तँ बुझलहुँ मुदा सबाल अछि जे एहि परिस्थितिसँ उबरी कोना?

निश्चित रुपसँ प्रतिशोध एकटा गंभीर समस्या अछि जकर निवारणक कोनो सर्वमान्य समाधान नहि भए सकैत अछि कारण ई व्यक्तिक स्वभावसँ जुड़ल समस्या अछि । । व्यक्ति-व्यक्तिक स्वभाव फराक-फराक होइत अछि । किओ कनी जल्दिए अगुता जाइत छथि तँ किओ बहुत सहनशील होइत छथि । मुदा जाधरि हमसभ तामसक त्याग नहि करब आ व्यर्थक अहंकारसँ उपर नहि उठब ताबे प्रतिशोधक आगिमे जरिते रहब । क्षमाशील व्यक्तिमे प्रतिशोधक भावना कम भए जाइत अछि । तेँ हेतु हमसभ जँ क्रोध,अहंकार सन-सन निषेधात्मक भावनासँ जतेक फराक रहब,जतेक बँचल रहब, प्रतिशोधक आवेगसँ ततबे बँचब आसान भए जाएत ।

प्रतिशोधक परिणाम कैबेर बहुत घातक होइत अछि जाहिमे घुन संगे सातुओ पिसा जाइत छथि । जापानपर बम खसलैक तँ भने अमेरिका, ब्रिटेनसभ युद्ध जीति गेल मुदा मानवताक जबरदस्त  हारि भेलैक । हजारो निर्दोष नागरिक जे युद्धमे भाग नहि लए रहल छल मारल गेल वा अपाहिज भए गेल । आइ-काल्हि कतेको देश आओर भयानक आणविक हथिआरसभ जमा केने छथि । जाहिर छैक जे ओहि हथिआरसँ कोनो पूजा-पाठ तँ हेतैक नहि? जखन कखनो आ जे किओ ओकर उपयोग जाहि कोनो कारण सँ करत तँ ओ नरसंहारे करत । सबाल ई अछि जे हमसभ एतेक उन्नत सभ्यताक अंग होइतहुँ एहि दुनियाँकेँ एहि तरहक मानवनिर्मित प्रलयसँ बचा सकैत छी कि नहि? ओ तँ तखने संभव होएत जखन  एक-एक व्यक्तिमे मानवीय गुणक अधिकता हेतैक जाहिसँ ओकर तामसी प्रवृति हल्लुक पड़ि जाइ । तखने मनुक्ख मात्रक कल्याण संभव अछि ।