रविवार, 23 दिसंबर 2018

मृत्युक भय


मृत्युक भय



नित्यप्रति कतेको लोक जन्म लैत छथि,मरैत छथि । तै सभ पर हमर ध्यान तखने जाइत अछि जखन ओहिमे हम भावात्मक रूपसँ जुड़ल रहैत छी । जँ हमर किओ अपन लोक मरि जाइत अछि तँ हम बफारि तोड़ए लगैत छी । पैघसँ पैघ ज्ञानी-ध्यानी मृत्यु-शोकसँ नहि उबरि पबैत छथि । एहने परिस्थितिमे अर्जुनकेँ पुत्रमोहमे अतीव कष्टमे देखि भगवान हुनका पूर्वजन्मक दृष्य देखेलथि । ओ देखलाह जे अभिमन्यु खेला रहल छथि । जोर-जोरसँ अर्जुन हुनका बेटा,बेटा कहिकए बजबए लगलाह । अभिमन्यु कहलखिन-"की बेटा,बेटा चिचिआ रहल छी? अहाँकेँ पता हेबाक चाही जे कतेकोबेर अहाँ हमर बेटा भए चुकल छी । एकबेर हम बेटा भेलहुँ से अहाँकेँ बिसरा नहि रहल अछि । अर्जुनक आँखि खुजि गेलनि । ओ पुत्रक मृत्युशोकसँ उबड़ि गेलाह आ युद्ध करबाक हेतु आगा बढ़लाह । ओ तँ महान छलाह जे भगवान स्वयं हुनका सभ बात बुझबैत रहैत छलखिन । मुदा सामान्य आदमीकेँ तँ स्वयं सोच-विचार करए पड़ैत अछि । एक-दोसरसँ दुख बाँटि ओ समयानुकूल विमर्श कए संसारक दुखकेँ कम कए लैत छथि । आओर दोसर कोनो रस्तो नहि अछि । जँ जीबाक अछि तँ परिस्थितिसँ सामंजस्य बनाएब अनिवार्य थिक ।

जीवनक प्रति मोह कहू आ कि मृत्युक प्रति अज्ञात भय,किओ एहि दुनियाँ सँ मरए नहि चाहैत अछि चाहे ओ भिखमंगा होथि वा अस्पतालमे पड़ल चिररोगी । किओ कतबो पैघ किएक ने होथि  हुनका जीवनक एहि अकाट्य सत्यसँ सामना करै पड़ैत अछि । किओ बँचिकए नहि जा सकैत अछि । जखन युधिष्ठिर यक्षक प्रश्नक उत्तर दैत कहने रहति जे संसारक सभसँ आश्चर्य बात इएह अछि जे नित्यप्रति कतेको लोककेँ मरैत  देखि लोककेँ नहि लगैत अछि जे ओहो एकदिन एहि संसारसँ चलि जाएत । सही कहने रहथि । जँ कोनो उपाय रहितैक  तँ एकसँ एक प्रतापी ,धनीक आ विद्वान  नहि मरितथि । एहि मामलामे सँ सच पुछैत छी तँ भगवानसन साम्यवादी साइते किओ होअए ।

कै बेर तात्कालिक परेसानीमे लोक मृत्युकेँ स्वेच्छासँ स्वीकार कए लैत । जेना जखन किओ बहुत उम्र भेलाक बाद जीवनसँ बैराग भए जाइत छनि । किंवा ओ सोचैत छथि जे एहि जीवनमे आब ओ व्यर्थ भए गेल छथि । एहनमे  कै गोटे आमरण उपास कए प्राणत्याग कए दैत छथि । कैटा संत-महात्मा सेहो एहिना प्राण त्याग कए दैत छथि । कै बेर कोनो मांगक पूर्ति हेतु लोक अनशनपर बैसि जाइत छथि । एहनमे कै गोटेक मृत्यु भए जाइत अछि । हमरा विचारसँ  एहि तरहेँ जीवनक नाश कए लेब कोनो बुद्धिमानी नहि थिक । जीवन इश्वरक वरदान हछि । एकरा नीकसँ जीव आ उपयोगी बनओने रहब हमरा लोकनिक कर्तव्य थिक ।

जे भेनहि  छैक,जकर कोनो वचाव नहि छैक तकरा जतेक सहजतासँ स्वीकार कएल जएह सएह वुद्धिमानी थिक । जँ मृत्युसँ वचबाक कोनो उपाय रहितेक,तँ कोनो पैघलोक नहि मरैत,अमर भए जाइत । मुदा से संभव नहि अछि । प्रकृतिक समस्त नियम सभपर समान रूपसँ लागू होइत अछि । मृत्युसेहो तकर अपवाद नहि अछि । राजा,रंक,फकीर सभ एकदिन एहि संसारसँ विदा होइत छथि ।  गीतामे कृष्ण भगवान मृत्युक विषयमे वारंबार कहैत छथि जे मृत्यतँ मात्र एहि शरीरक होइत अछि । ओहिमे विद्यमान आत्मा अजर,अमर अछि । जहिना लोक पुरान अंगाकेँ फाटि गेलाक बाद नव  अंगा पहिरए लगैत छथि तहिना ई आत्मा पुरान देहकेँ छोढ़ि कए नव शरीर  ग्रहण कए लैत छथि । मृत्युक भयसँ बचबाक एहिसँ बढिआँ समाधान नहि भए सकैत अछि। मुदा मोनो मानए तखन ने । कतेको लोक एहि देहेकेँ सर्वस्व बुझि कए नानाप्रकारसँ एकर रक्षाक व्योंतमे लागल रहैत छथि आ तरह-तरहसँ  एकरा सुखी ओ संतुष्ट करबाक प्रयास करैत छथि । देहक नाश अवश्यंभावी अछि। एकरा माध्यमसँ प्राप्त सुख सेहो चिरकाल धरि नहि रहि सकैत अछि । समय सापेक्ष समस्तु जीवन प्रकृयासँ मोहवश हमसभ आवद्ध रहैत छी आ नाना प्रकारक दुख भोगैत छी । इएह सभसँ पैघ विडंबना थिक।

जीवन आ मृत्यु  एक -दोसरसँ जुड़ल अछि । जे जन्मल अछि से मरत । एकर कोनो विकल्प नहि छेक। एहिसँ वचावक कोनो रस्ता नहि छैक । राजा,रंक,फकीरसभ एकदिन एहि संसारसँ चलि जाइत अछि। सबाल ई अछि जे मृत्युक बाद की होइत छैक? की मृत्यु अपना-आपमे अंत अछि किंवा ओकर बादो ई चक्र चलैत रहैत अछि ? एहि प्रश्नक जबाब देबाक प्रयास बहुत दिनसँ बहुत तरहेँ भए रहल अछि परंतु कोनो निजगुत उत्तर जे सर्वमान्य होइक,से किओ आइ धरि नहि दए सकलाह । से भइओ नहि सकैत छैक । कारण जे वस्तु दृष्य छैहे नहि तकर वास्तविक धरातलपर की व्ञाख्या कएल जा सकैत अछि? अपन धर्मशास्त्रमे मृत्युक बादो आत्माक अमरताक गप्प अछि । कहल जाइत अछि जे शरीरक नाश होइत अछि,आत्माक कथमपि नहि । लोक अपन कर्मक अनुसार पुनर्जन्म लैत अछि आदि,आदि । बात जे होइक,लोक मृत्युक बाद जन्म लैत छथि वा नहि,से विवादक किंवा परिचर्चाक विषय भए सकैत अछि मुदा एतबा तँ तय अछि जे मृत्यु अवश्यंभावी अछि । जखन से बात सभ जनिते छी तखन तकर भए कथीक ? आनंन्दपूर्वक ओकर सामना करी आ चलि पड़ी अनंन्त यात्रा पर....।

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