वृद्धावस्था
अनादि कालसँ
लोक जीवन आ ओकर विभिन्न आयामक बारेमे सोचैत रहल अछि । नाना प्रकारक व्याख्या द्वारा
एकर रहस्यकेँ उजागर करबाक प्रयासो करैत रहल अछि । मुदा ई प्रश्न अखनहु अनुत्तरित अछि
। हमसभ एहि संसारमे एकदम असहाय,असमर्थ दुधपीबा
भए कए अबैत छी । मातृत्वक अनंत सिनेह दए माता मनुक्खकेँ अपन कोरामे नुका लैत छथि ।
ओहि दुधपीबाक कनीकोटा उपलव्थिसँ अपन आनंन्दकेँ जोड़ि लैत छथि । दिन-राति एक कए समस्त
सामर्थ्यसँ ओकर पालन करैत छथि। हमसभ क्रमशः
ठहुनिआ दैत छी,फेर ठाढ़ होइत छी,चलए लगैत छी,बजैत छी । सभ किछु प्रकृतिक विधानक अनुकूल स्वतः होइत जाइत अछि । तहिना हमसभ एकदिन
बूढ़ो भए जाइत छी । एहिमे कोनो आश्चर्यक गप्प नहि हेबाक चाही । घटनाक्रम एकटा पूर्ण
आवृति लए लैत अछि । मुदा आब हमरा संगे माताक निःस्वार्थ प्रेम नहि अछि,पिताक रक्षा
कवच नहि अछि । धीआ-पूतासभ पैघ भए अपन दुनिआँमे लागि गेल छथि । हमसभ अपन नौकरी किंवा
व्यवसायसँ निवृत भए गेल छी । देहोमे आब ओ स्फूर्ति नहि अछि । निश्चय ई एकटा नव चुनौती
समय हमरा सभक सामने आनि देलक अछि ।
भगवान सुर्य
नित्यप्रातःकाल उगैत छथि । सूर्योदयकालमे हुनक आगमनसँ संपूर्ण विश्व आनंदित भए जाइत
अछि । अन्हार अपने आप हटि जाइत अछि । लोक अपन-अपन घरसँ बाहर भए काजमे लागि जाइत छथि
। पंक्षीगण मधुरगान करैत प्रकृतिमे भए रहल एहि परिवर्तनक स्वागत करैत छथि । समय आगू
बढ़ैत अछि । दूपहरिआक तीव्र रौदमे लोक त्राहिमाम
करए लगैत छथि । गाछक छाहरिमे सुस्ताए लगैत छथि । किओ ठंडै घोंटि रहल छथि । सभ कहए लगैत
छथि,कहुना ई समय जल्दी बीतए । भगवान सूर्य समयक प्रवाहक संगे अस्ताचल दिस बढ़ि जाइत
छथि । अपन सामर्थ्यकेँ नुका लैत छथि । देखिते-देखिते अन्हार भए जाइत अछि । एहिना मनुक्खक
जीवनमे एकटा शिशु क्रमशः युवक,प्रौढ़,आ वृद्ध भए जाइत छथि । ई प्रकृतिक नियम छैक । मुदा हमसभ अस्ताचलगामी सूर्यक हुनक अपन समस्त शक्तिकेँ समेटि लेबाक कलासँ सामान्यतः
अनभिज्ञ रहि जाइत छी । जीवनक भोर,दुपहरिआ आ सांझमे जस-के-तस रहि जाइत छी । आ तैँ नानाप्रकारक कष्ट बेसाहने रहैत छी । बृधावस्था कोनो एक व्यक्तिक सबाल नहि
अछि । ई तँ जीवनक एकटा अनिवार्य आ महत्वपूर्ण भाग अछि । सभकेँ एहिठाम अएबेक छैक । अपना
भरि प्रयासे ने करबैक,मुदा सभ किछु ओहने होइक जेहन हम चाहैत छी वा जे हमर प्रयोजन अछि तखन बाते की छलैक? सामान्यतः
से होइत नहि अछि । कतहुँ-ने-कतहुँ,किछु-ने-किछु अनुकूल/ प्रतिकूल होइते अछि ।
तखन कएलकी
जाए? ई बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न अछि । एहिमे जीवनमे आध्यात्मिक प्रवृति बहुत सहयोगी भए
सकैत अछि। जहाँधरि संभव हो आस-पासक लोकसँ संपर्क राखल जाए । रूचिक अनुसार सामाजिक/ धार्मिक संस्थासँ जुड़ल जाए । योग्यता आ क्षमताक अनुसार जरुरतमंदकेँ आर्थिक
सहयोग कएल जाए । सारांश जे अपन जीवाक उद्यश्य
अपने आ परिवारसँ बढ़िकए समाजोन्मुख कएल जाए । सामान्यतः एहन व्यक्ति बेसी सुखी रहैत
छथि । मुदा दोसरकेँ किछु उपकार करब वा बिना कोनोस्वार्थकेँ ककरो मदति कए देब एतेक आसान गप्प नहि होइत अछि ।
कतबो दुरदुरौत तइओ हम अपन धीयापुतासँ आगू नहि सोचि पबैत छी । ई तय अछि जे किछु अपना
संगे नहि जाएबला अछि ,से बात सभ जनितो रहैत अछि,तथापि स्वतःस्फूर्त
त्याग करबाक भावना मोनमे नहि अबैत छैक । धिया-पुताकेँ पढ़ा-लिखा देलिऐ,ओकर बिआह-दान
भए गेलैक, अपन पैरपर ठाढ़ो भए गेल,आब कथीक
झंझटिमे पड़ल छी?
अस्तु,हमसभ अपने बनाओल मकड़जालमे फँसल रहि जाइत छी आ कै बेर बहुत कष्टमे
समय बिताबैत छी । एहन धनक कोन फैदा जाहिसँ कोनो सुखे नहि ? ई तय अछि
जे जँ हम अनकर कल्याणमे लगैत छी तँ हमरो हेतु सोचएबला बहुत लोक भेटत । आओर जे हैत से हैत, आत्मिक सुख तँ भेटबे करत जे दोसरकेँ
मदति केलासँ,त्याग केलासँ प्राप्त होइत अछि । मुदा अधिकांश लोक से सभ नहि सोचि पबैत छथि,करबाक तँ
बाते छोड़ू । परिणाम ई होइत अछि जे सभकिछु अछैतो दुख आ अशांतिमे जीबैत छथि आओर एहि
दुनियाँसँ चलि जाइत छथि ।
वृद्धावस्था
अविते हमरा लोकनिक शरीरमे ओ शक्ति नहि रहि जाइत अछि जे युवावस्थामे सदिखन सुलभ रहैत
छल । मुदा जीवन भरिक घटना,दुर्घटनासँ अनुभवक भंडार भरि जाइत अछि । हमसभ अपन एहि अनुभवसँ समाजक बहुत उपकार
कए सकैत छी । सभदिन तँ हम परिवार ओ समाजसँ लैत रहलहुँ अछि । आब ओ समय आएल अछि जे हम
अपन समचित ज्ञान आ सामर्थ्यसँ लोकक जीवन सुगम बनाबी । से तँ तखने होएत जखन हम स्वस्थ
रही । शरीरकेँ संयम ओ व्यायामसँ मजगूत केने रही । हमरा लोकनिकक आर्थिक शक्ति सेहो बढ़ि
जाइत अछि । किओ आइ धरि अपना संगे किछु नहि लए जा सकल,हमहु नहि
लए जाएब । ई बात सभ जनैत अछि,सभ बजैत अछि,मुदा तकर जीवनमे अनुकरण करैत समय
रहिते किछु नीक काज कए लेब,अपन धनक समुचित उपयोग कए लेब बुद्धिमानी होएत। परिवारकेँ ओकर जरुरतक मोताबिक मदति
केलाक बाद जे बँचि जाइत अछि तकर जन कल्याणके खर्च केलासँ हमर आत्मिक विकास होएत एवम्
एहि दुनियाँ केँ छोड़ैत काल हमर मोनमे संतोख रहत जे हम ककरो काज आबि सकलहुँ ।
पहिने लोकसभ
संयुक्त परिवारमे रहैत छलाह । हुनका बूढ़भेलापर ई चिंता नहि करए पड़ैत छलनि जे दुखित
पड़लापर के अस्पताल लए जाएत? कहीं एहन तँ नहि होएत जे असगर घरेमे पड़ल-पड़ल मरि जाएब आ आस-पास
लोककेँ तकर सूचना सड़ैत लहाससँ अबैत दुर्गंधसँ भेटत?कहीं एहन तँ नहि होएत जे हमर पार्थिव
शरीर कान्ह देबाक हेतु विदेशमे रहनिहार पुत्रक प्रतीक्षा करैत रहि जाएत आ अंततोगत्वा
आस-पास रहनिहार ककरो दया आबि जेतैक जे मनुष्यतावश हमर कृया-कर्म करत? निश्चय ई
सभ सोचैत नीक नहि लगैत अछि।मुदा सत्यसँ आँखिओ तँ नहि मुनि सकैत छी । सामाजिक परिस्थिति
बहुत प्रतिकूल भए गेल अछि । तेहन हालतमे बूढ़ की करथि? जे बात अपन हाथमे अछिए नहि तकरापर बेसी माथापच्ची नहि करथि । भगवानपर छोड़ि देथि
।
हारिए न
हिम्मत बिसारिए न हरि नाम।
जाहि विधि
राखे राम ताहि विधि रहिए ।।
एहन बात
नहि अछि जे आब लोक साकंक्ष नहि अछि । बहुत तरहक सरकारी संस्थासभ एहि दिशामे काज कए
रहल अछि । कानून सेहो बनल अछि । बीमा कंपनी सभ तरह-तरहक योजनासभ आनि लेने अछि। मुदा
समस्या तखन हाथसँ बाहर भए जाइत अछि जखन ककरो अपने संतानक खिलाफ जाए पड़ैछ । एहन परिस्थितिमे
सामान्यतः लोक चुप रहि अन्याय सहैत रहैछ । जखन हाथ-पैर काज केनाइ बंद कए देलक तखन कतबो
टाका बैंकमे राखल अछि तँ ताहिसँ की उपकार होएत?किछु नहि? चेकोतँ ककरो
हाथे पठेबैक ? ई सभ गंभीर व्यवहारिक समस्या छैक जकर सही समाधान अपन समाजमे नहि भए पाबि रहल अछि
।
बूढ़ भेलापर
परिवारक सभसँ बेसी प्रयोजन होइत अछि । जीवनसंगीक सानिध्य आ सहयोग जीवनक एहि परावपर सभसँ बेसी जरूरी भए जाइत अछि । दुर्भाग्यवश जे किओ
असगर भए जाइत छथि तिनका लेल संघर्ष आओर कठिन भए जाइत अछि । कै गोटे एहन परिस्थितिमे
असगर रहैत रहैत अवसादग्रस्त भए जाइत छथि,आत्महत्याधरि कए लैत छथि । हम एकटा
घटनाकेँ जनैत छी जाहि मे दिल्लीक एकटा प्रसिद्ध महिला चिकित्सकक हत्या भए गेल । हत्याक
दसो सालसँ बेसी भए गेल मुदा ने किओ पकड़ाएल ने ककरो कोनो जानकारी भेटलैक जे आखिर ई
भेल किएक? ओ दिल्लीमे कैटा संपत्तिक मालकिन रहथि । अविवाहित
रहथि,असगर रहैत छलीह आ कोनो संवंधीकेँ टपए नहि देथि जे संपत्ति लए लेत । मुदा भेल की
? ओएह संपत्ति हुनकर काल भए गेल ।असलमे संयुक्त परिवारकेँ टुटि गेलासँ बूढ़क जीवन
बहुत कठिन भए गेल अछि । मुदा तकर समाधान की अछि? ई कोनो व्यक्तिगत समस्या नहि अछि
। गामसँ लए कए शहर धरि सगतरि एहि तरहक परिस्थिति बनि गेल अछि । कानून बनल छैक मुदा
ओ व्यवहारिक नहि भए पबैत अछि ।अपने बाल-बच्चाकेँ ऊपर मोकदमा कए कै दिन सुखी रहि सकैत
छी ?सभ किछु जनितो किओ भावीकेँ नहि रोकि सकैत अछि । जे हेबाक छेक से हेतेक ।
सुनहुँ भरत
भावी प्रवल,बिहुसि कहे मुनिनाथ।
हानिलाभ
जीवन मरण,यश अपयश विधि हाथ।।
अस्तु,सभकिछु सहबाक
अभ्यास करैत रही आ जखन भगवानक घंटी बाजि जाएत तँ शांतिपूर्वक चलैत बनी।
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