गामक इसकुल
“बालोहं जगदानन्द, नमे बाला सरस्वती
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्रयम्।”
बाबूजी नित्य एहि श्लोककेँ रटबैत कहथि जे एहिसँ
संस्कार प्रवल होएत। किओ पढ़ल-लिखल लोक जँ नजरिपर पड़नि तँ हुनकासँ भेँट जरूर करबैत छलाह। पढ़ाइ-लिखाइमे कोताही
हुनका एकदम पसिन नहि छलनि। गाममे रामलीला होइत तँ कएक बेर धिआ-पुताक संग हमहु चलि जाइ, मुदा ओ पूरा सख्तीसँ एकर विरोध
करथि।
माए घोर परिश्रमी छलीह। भोर-सँ-साँझ धरि परिवारक
पालन-पोषणक ब्यवस्थामे लागल रहैत छलीह। कएक दिन माए लग बैस कए खिस्सा सुनी। कहितथि जे केना
बच्चामे हुनकर पढ़ाइ छुटिगेलनि, नहि तँ ओ बहुत पढ़ितथि। हम सभ भाए नीकसँ
पढ़ी ताहि हेतु कोनो प्रकारक व्यवधान नहि होइक से ओ सदिखन प्रयत्नशील रहैत छलीह।
परिवार जीवनक प्रथम पाठशाला थिक। परिवारमे जे संस्कार
बच्चाकेँ पड़ि जाइत अछि ओ जीवन भरि ओकर संग रहैत अछि। हम सभ खूब पढ़ी-लिखी आओर
जीवनमे प्रतिष्ठित रही ताहि हेतु हमर माए, बाबूजी निरन्तर तत्पर रहैत छलाह।
गाममे नीक दिन तका कए भट्ठा धराएल जाइत छल। ओनामासीधं (‘ओम् नमः सिद्धं') पढ़ि कए विद्यारम्भ होइत छल। हमहु वृहस्पति दिन दरबज्जापर भट्ठा पकड़ने रही। से कनी-कनी
अखनो स्मरण अछि। स्व० बच्चूबाबू (पं. अदिष्ट नारायण झा )हमरा भट्ठा धरओने छलाह। गामक ब्रह्मस्थानमे गाम
भरिक लोक दूध ढारैत छल। बेर-कुबेरमे लखराम-महादेवक पूजा होइत छल। सालमे एकाध बेर
नवाह सेहो होइत छल। मन्दिरक सटले बिनु घाटक एकटा पोखरि सेहो छल। ओहीठाम फूसक
मड़बामे इसकुल चलैत रहए। इसकुलकेँ ग्रामीण स्व० पं. अदिष्ट
नारायण झाजी (बच्चूबाबू )चलबैत रहथि। गाम भरिक छोट-छोट
बच्चा सभ ओहि इसकुलमे पढ़ैत रहए। ओही इसकुलमे एकटा शिक्षक आ तीस-चालीसटा
विद्यार्थी रहथि।
इसकुलमे पठन-पाठनक प्रारंभ प्रार्थनासँ
आ अन्त १ सँ २० तकक खाँत
पढ़लासँ होइत छल। नित्यप्रति खाँतक उच्चारण करैत-करैत पूर्णत: कण्ठाग्र भए गेल।
एहिसँ गामक विद्यार्थीकेँ गणितक सबाल हल करबामे बहुत सुविधा होइत छल। ओही इसकुलमे शनि दिनक शनिचरीक परंपरा सेहो छल। शनिचरीमे सभ बच्चा अपन-अपन घरसँ
गुड़-चाउर अनैत छलाह। पूजा होइत, प्रसाद बाँटल जाइत आ बच्चा सभ
हँसैत-बजैत घर चलि जाथि। सालमे दू किलास लोक पढ़ि लैत छल। कहक माने जे चौथा पास
करएमे दू साल लगैत रहए। ओहि समयमे के.जी. आकि अपर-के.जी. आदिक प्रथा नहि छल। बच्चा
सभ नीक दिन कए घरेपर भट्ठा धरैत छल, ककहरा सिखैत छल आ लग-पासक ब्रह्मस्थानक इसकुलमे नाम लिखा लैत छल। ब्रह्मस्थानक
इसकुलमे कखनो-काल विद्यार्थीकेँ डाँट-दबार सेहो होइत रहए।
जँ कहिओ कोनो बच्चा इसकुल नहि आएल तँ ओकरा आनए लेल चारिटा विद्यार्थी
घरपर पहुँच जाइत छल आ उठा-पुठा कए लए अबैत छल। कुल मिला कए ओहि इसकुलमे पढ़ाइ नीक होइत रहए। इसकुलक आगाँमे एकटा खोपड़ी छल जाहिमे
कहिओ-काल विद्यार्थी नुका रहैत छल।
ब्रह्मस्थानक इसकुलसँ चौथा पास कए हम अड़ेर मिडिल इसकुल पहुँचलहुँ। ओ अपेक्षाकृत पैघ इसकुल छल। दूटा कोठरी पक्काक आ तीन वा
चारिटा फूसक। पक्काबला एकटा कोठरीमे सातमा क्लासक विद्यार्थी पढ़ैत छलाह आ दोसर
कोठरीमे चारि वा पाँचटा शिक्षक लोकनि रहैत छलाह। इसकुलक प्रधानाचार्यसँ सभ विद्यार्थी
बहुत डराइत रहैत छल। ओ बहुत सख्त छलाह। विद्यार्थीकेँ हुनका हाथे कएक बेर पिटाइत
देखि शेष विद्यार्थी भयभीत भए जाइत छल। इसकुलक दहिना दिस करबीर फूलक एकटा झमटगर गाछ छलैक।
ओकर छौकीसँ कएक बेर पिटाइक कार्यक्रम होइत छल। इसकुलक जहिना अनुशासन उत्तम तहिना
पढ़ाइ-लिखाइ छल। दहिना कातमे थोड़ेक खाली जमीन छलैक, जाहिमे विद्यार्थी सभकेँ फूलक
कियारी लगबैक हेतु उत्साहित कएल जाइत छल।
बच्चा सबहक आग्रहपर मास्टर साहेब खिस्सा सेहो सुनबैत छलाह। मास्टर साहेब हमरे गामक
छलाह। टाँग टेबुलपर, छड़ी बगलमे आ फोंफ कटैत हुनकर मुद्रा अखनो स्मरण भए जाइत अछि।
विद्यार्थी सबहक हेतु ई स्वर्णिम-काल होइत छल। बच्चा सभकेँ किछु सबक दए देल जाइ, जाहिसँ ओ सभ व्यस्त भए जाए आ
मास्टर साहेब चैनसँ फोंफ काटए लागथि। जँ बच्चा सभ हल्ला करए लागए जाहिसँ कि मास्टर
साहेबक निन्न टुटि जानि, तखन देखएबला दृश्य सोझाँ आबि जाइत। छड़ीक लपलपाहटसँ
क्लास सन्न भए जाइत रहए आ मास्टर साहेब पुनश्च शयन मुद्रामे चलि जाथि।
कहिओ-काल इसकुलक छुट्टीक घन्टी विद्यार्थी स्वयं टुनटुना देथि। घन्टी सुनिते विद्यार्थी सभ
धराधर बाहर झोड़ा लेने इसकुलसँ निकलि जाए। जाबे मास्टर साहेब
सभकेँ पता लागनि-लागनि ताबे सभ चटिया बाहर..! छुट्टीक एहि आकस्मिक घोषणासँ आनन्ददायी की भए
सकैत छल?
फूसक इसकुलमे छठा तकक क्लास होइत छल। बरखाक समयमे इसकुलक टाट खसए लगैत छल। टाटक स्थित
एहन जे थोड़बो प्रयाससँ ओ कखनो खसि सकैत छल। कएक दिन
विद्यार्थी बरखा होइत-काल टाटक जौरकेँ काटि दैक। जाहिसँ इसकुलक टाट खसए लगैत छल आ सभ विद्यार्थी ‘रेनी डे’
मनबए इसकुलसँ बाहर भए जाइत छल। इसकुलक हेड मास्टर बहुत सख्त आ तमसाह
छलाह। कोन बातपर कतेक तमसा जेताह तकर कोनो ठेकान नहि। मुदा डरक
संग-संग इसकुलमे अनुशासनक वातावरण स्थापित करबामे ओ सफल छलाह।
मास्टर साहेब सबहक डाँटक डरे कएक दिन विद्यार्थी लगपास खसकि जाइत छल। एकटा मास्टर तँ पेटमे बिट्ठु काटबाक हेतु प्रसिद्ध छलाह। एहि प्रकारक दण्ड सभसँ बचए लेल कएटा
विद्यार्थी धारक काते-काते किंवा पूलक तरमे समय कटैत छल आ छुट्टी भेलापर ओतहिसँ घर
आपस भए जाइत छल। हिन्दी माध्यमक इसकुलमे पाँचमासँ अंगरेजी पढ़ेबाक
चेष्टा होइत छल। जँ किओ अपन नाम अंगरेजीमे लिख लेलक तँ बड़का बात बुझल जाइत छल। आइ-काल्हि अंगरेजी माध्यमक इसकुलमे पढ़एबला बच्चा सबहक अंगरेजीक ज्ञान देखि
गामक इसकुलक स्थिति हास्यास्पद् लगैत। यद्यपि इसकुल मिथिलांचलक गढ़मे अवस्थित छल, बच्चा सभ सोल्हन्नी मैथिली भाषी
छलाह, तथापि इसकुलक पढ़ाइ हिन्दीमे होइत छल।
मास्टर सभ आदेश हिन्दीमे दैत छलाह। भाषाक ई विसंगति कमोवेश अखनो ओहिना अछि...! (ओना, आब
तँ अपन-अपन बच्चाकेँ गामसँ हटा रहिका लग ‘फटकी’मे किंवा मधुबनीक कोनो अंगरेजी माध्यमक इसकुलमे पढ़बैत अछि।)
सांस्कृतिक कार्यक्रमक नामपर कहिओ-काल
स्कूलेक ओसारापर विद्यार्थी सबहक जमावरा
सेहो होइत छल। किओ-किओ विद्यार्थी ओहिमे गीत गबैत छलाह। सन् १९६२ ईस्वीमे चीन संगे
भारतक युद्ध चलैत छल। ओहि समयमे बच्चा सभ राष्ट्र-प्रेमक गीत बरोबरि गबैत रहैत
छलाह। ओना, इसकुलक प्रार्थनामे जय शंकर प्रसाद जीक
गीत-
“हिमाद्रि तुँग श्रृँग से प्रवुद्ध शुद्ध भारती, स्वयं प्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती...” होइत छल।
जखन-कखनो संगीतक कार्यक्रम होइत तँ एकटा विद्यार्थी एकमात्र गीत
गाबथि-
“चीन के विगरलबा चलनियॉं कैसे सुधरी...।”
इसकुलक समय सालक-साल बीतैत गेल। एक क्लाससँ
दोसर क्लास विद्यार्थी टपैत गेलाह। सातमाक परीक्षाक परिणाम निकलल आ विद्यार्थी सभ
हाई इसकुल दिस प्रस्थान केलक।
पाँचमामे सोंहसाक लक्ष्मी नाराण महतो प्रथम स्थान
अनने छलाह। लक्ष्मीजी देखबामे कारी रहथि, कण्ठी पहिरथि। पश्चात पता लागल
जे हुनका साँप काटि लेलकनि आ असमये काल कलवित भए गेलाह! ओहि
समय हम सभ हाई इसकुलमे पढ़ैत रही। छठामे हम प्रथम
केने रही आ सातमामे दोसर स्थान भेटल छल। सातमामे दोसर स्थान बहुत खराप लागल छल।
कारण प्रथम स्थान जिनका भेलनि ओ ओहि योग्य नहि बुझाइत छलीह। बाबा इसकुल जा कए मास्टर सभकेँ उपरागो दए आएल रहथिन। मास्टर सभ कॉंपी देखेलखिन
जे अहाँक बच्चाकेँ सहीए अंक देल गेल अछि। बाबूजी कहथिन जे कोनो बात नहि, बोर्डक परीक्षामे थोड़े बेइमानी होएत।
गामक मिडिल इसकुलक पढ़ाइ-लिखाइ ठीक छल। सामान्यत:
कोनो घन्टी खाली नहि रहैत छल। मुदा पढ़एमे कमजोर विद्यार्थीकेँ बेर-बेर कहल जाइत
छल-
“पढ़बे करोगे कि मरबे करोगे।”
कएक बेर तमसा कए मास्टर साहेब विद्यार्थीक ऊपर
छड़ीक प्रहार करैत चिकरि-चिकरि कहथि-
“ब्रेंचपर ठाढ़ कए देब! कान पकड़ि कए उट्ठी-बैसी कराएब!”
छड़ीसँ पिटनाइ तँ आम बात छल। परिणामत: कमजोर
विद्यार्थीक मनोबल आओर कमजोर भए जाइत छल आ ओ सभ कन्नी काटए लगैत छल। विद्यार्थी
सबहक अन्य क्रियाकलापक रूचिक विकासक कोनो प्रयास इसकुलमे नहि होइत छल। एहि तरहें सामान्य ओ कमजोर विद्यार्थी सभ
भगवाने भरोसे रहैत छलाह। चूँकि सातमामे वोर्डक परीक्षा नहि होइत छल तेँ सामान्यत: विद्यार्थी सभ पास कए कए आठमामे आन ठाम हाई इसकुलमे नाम लिखा लैत छल।
मिडिल इसकुलक एकटा घटना स्मरण भए रहल अछि जे
सोचि कए अखनो हँसी लागि जाइत अछि। इसकुलमे कोनो कोनो बात लए कए हमरे गामक एकटा विद्यार्थी इसकुलसँ भागल आ आओर विद्यार्थी सभ
मास्टरक आदेशपर ओकर पछोर केलक। इसकुलसँ निकलि कए दहिना कातमे एकटा इनार छलैक। ओ
विद्यार्थी इनार फानि गेल आ भागल। जाहिठाम एतेक आतंक विद्यार्थीक हेतैक, ताहिठाम विद्यार्थीक भविष्य सोचल
जा सकैत अछि। ओ विद्यार्थी बादमे जा कए भगता भए गेल। बहुत दिन धरि ओकरा
देहपर भगवती अबैत रहलखिन।
एकदिन मिडिल इसकुलमे क्लास चलि रहल छल। ओहिमे कएक
गोटे बाजि उठलाह -
“डा. सुभद्र झा जा रहल छथि।”
डा. सुभद्र झाक गाम नागदहक रस्ता इसकुलक सामनेसँ जाइत छल। इसकुलक सामने नहरिपर एकटा काठक पूल छल।
ओहिपर सँ डा. सुभद्र झा सपरिवार जा रहल छलाह। प्राय: पहिल बेर हम हुनका तखने देखने
छलहुँ। तकर बाद तँ कएक बेर भेँट भेलाह। राँचीमे
हुनकर डेरापर एक मास रहबो केलहुँ। आ ई क्रम बहुत दिन चलैत रहल। इलाकामे विद्वानक रूपमे
हुनक धाख छलनि। जाबे ओ जिबैत रहलाह, नित्य किछु-ने-किछु हुनकर
प्रसंगपर चर्चा चलैत रहैत छल।
मिडिल इसकुलमे सरस्वती पूजाक समयमे विद्यार्थी सभमे
बेस उत्साह रहैत छल। प्रसादमे बुनियाँ आ केसौर बँटाइत छल। सरस्वती पूजाक प्रसाद नहि भेटबाक उपराग
सुनू-
“पश्चिम इसकुल पूरव धार
जनता हेलि-हेलि भेला पार
मिडिल इसकुलसँ आएल हकार
पूरय गेलहुँ सेहो वेकार...।”
उपरोक्त कविता हमरे गामक स्व. सीताकान्त झा(नाथ) क कहल छल। ओ
बहुत रास एहन कविता सभ रचैत छलाह जे गाममे लोक सभ वारंबार आपसमे दोहरबैत रहैत छल। इसकुलक पूब दिस धार छल। बरखाक समयमे ओ धार पानिसँ भरि जाइत छल।
इसकुलसँ बच्चा सभ बाहर निकलि कए धारक कातक दृश्य देखि आनन्दित होइत छल। कागतक नाओ बना कए बच्चा सभ ओहिमे छोड़ि दैत रहैक आ
पानिक प्रवाहक संग ओ कागतक नाओ ऊपर-नीचाँ होइत बहैत रहैत छल। जकरा देखि
बच्चा सभ आनन्दित होथि। जाधरि ओ नाओ डुबि नहि जाइत ताधरि सभ किओ देखि-देखि आनन्दित होथि।
जनवरी १९६३ ईस्वीमे हम उच्च विद्यालय एकतारामे
आठमामे नाम लिखओलहुँ। एकतारा हमर गाम अड़ेर डीहसँ पाँच किलो मीटर उत्तर
अछि।
ओहि समयमे एकतारा जेबाक हेतु कोनो सवारी नहि छलैक।
धारक काते-काते किंवा बाधे-बाधे एकपेरिया रस्ता पएरे चलए पड़ैत छल। ककरो-ककरो साइकिल रहैत छल।
बेलौजाक शिक्षक एकतारा हाई इसकुलमे गामसँ इसकुल नियमित साइकिलसँ जाइत छलाह।
हुनकर साइकिलक ‘टी-टों’क अवाज दूरेसँ सुनाइ पड़ैत। साइकिलमे
हवा भरएबला पम्प सेहो खोंसल रहिते छलनि। धारक काते-काते ओ साइकिलसँ नियमित
यात्रा करथि। गामसँ कएकटा विद्यार्थी एकतारा जाइत छलाह। सिनुआरा, विष्णुपुर, बेलौजासँ सेहो विद्यार्थी नियमित जाइत छलाह। रस्तामे ज्योँ-ज्योँ आगाँ बढ़ैत जाउ, जमुआरी,
कुसमौल, विचखानसँ विद्यार्थी सभ रस्तामे भेटैत जाइत छल,यात्राक आनन्द बढ़ैत जाइत छल। कएक
दिन बरखामे रस्तामे थाल-थाल भए जाइत छल। ओहि
थाल-कादोक आनन्द लैत हमरो लोकनि एकतारा पहुँची। इसकुलसँ पहिने पाण्डेजीक घर छल । ओ इसकुलमे चपरासी छलाह। इसकुलक छात्रावास सटले छल। छात्रावासमे
चारिटा कोठली छल। एक कोठरीमे सरकारी चिकित्सालय चलैत छल। एकटामे प्रधानाध्यापक जी रहैत छलाह। छात्रावासक मेसमे गर्मीक समयमे हम कहिओ-काल
खाइत रही। आठअना लगैत छल। बेसी-काल रामझिमनीक लसलस करैत साना आ अल्लुक महिन-महिन काटल भुजिया। अधिक गर्मी भेलापर कहिओ-काल
मेसमे भोजन केलाक बाद स्कूलेपर रूकि जाइत रही। पढ़ी-लिखी आ रौद खसलापर गाम विदा होइ।
मुदा ई कार्यक्रम कम-काल होइक।
गर्मीक समयमे इसकुल प्रात:काले प्रारंभ होइक। हम सभ
जमुआरी पहुँची, तखन सूर्योदय होइत रहैत छल। कहिओ-काल थाकि गेलापर जमुआरी महंथक पानिक
चापाकलपर पानि पीवि आ लग-पास गाछक छाहरिमे विश्राम करी। संगी
सभ कहितथि चलू की बैसल छी, कोनो एक दिनुका बात थोड़े छैक। चलैत रहू। जतेक सुस्ताएब ततेक आलस होएत।
प्रकृतिक ऑंगनमे रचल-बसल गाम-सभसँ जाइत बच्चा सबहक
आनन्दक वर्णन करब अक्षरक बसक बात नहि। पीयर-पीयर सरिसोक फूल नवकनिआँ सन सजल-धजल बाध सबहक शोभा बढ़बैत
रहैत छल। दूर-दूर धरि बाधे-बाध। जमुआरीसँ आगू निकलिते विचखानासँ पूर्व जे
हरियर कंचन बाधक दृश्य छल ओ अखनो धरि आँखिमे झलकैत रहैत अछि। गाहे-वगाहे
किसान सभ खेत पटबए हेतु पानिक नहरि सभ बनओने छल। ओकरा सभकेँ तरपैत हाथ-पएर धोइत जखन
विचखानासँ पूर्व धारपर चढ़ी तँ यात्राक अन्त होबाक अहसाससँ भीतरिया
आनन्द होइत छल। कुसमौलसँ जे विद्यार्थी सभ आबथि हुनका सभसँ ओहीठाम भेँट होइत छल। रस्ता भरि गप्प-सप्पमे समय केना बीति
जाइत छल तकर पतो नहि चलए। चारि बरख धरि लगातार ई क्रम चलल। चारू साल
हम पएरे इसकुल गेलहुँ। बाबूजी कहथि जे एहिसँ पएर मजगूत होएत, पएरे चलू। चलबाक ई आदति हमरा आइयो
बनले अछि।
कएक दिन झमाझम बरखा होइतो रहैत तैओ हम सभ इसकुलसँ गाम धरि रस्ता पैरे तय करैत रही। एक बेर विष्णुपुरक
हमर संगीकेँ थाल-कादोसँ भरि देने रहियनि। ओ कतेक
तमसाएल छलाह। हमहु भीजि गेल रही। कहुना कए किताव सभकेँ वस्तामे बँचओने रही। प्रकृतिक आँगनमे
धुरझार बरखासँ बच्चा सभकेँ बहुत आनन्द भेटैत छल। सहयोगक भावना बढ़ैत छल। संगे चलू, रस्ताक आनन्द बढ़ि जाएत। रस्ता असान भए जाएत। बीच-बीचमे किओ सहपाठी साइकिलसँ आगाँ निकलि जाथि, तँ लागए जेना ई कतेक भाग्यवान छथि।
गामसँ इसकुल वा आपसी यात्रामे नगवासक
डाककर्मी अपन साइकिलसँ जाइत-अबैत जरूर टकराइ छलाह। ओ डाक लेबए नियमित हमर गामक
पोस्ट आँफिस अबैत छलाह। हुनको साइकिल फटकीए-सँ कटही गाड़ीक ध्वनि करैत आगू बढ़ैत छल। कएक
दिन पंचर भए जाइत तँ साइकिलकेँ पएरे गुड़कबैत जाइत
छलाह।
एकतारा उच्च विद्यालयमे चारिटा कोठली पक्का छल आ
तीनटा कोठरी कच्चा। दसमा आ एगारहमाक क्लास पक्का घरमे होइत छल। नान्हिटा जगहमे
पुस्तकालय सेहो छल। बहुत प्रयास केलापर कहिओ-काल पुस्तकालयसँ पुस्तक प्राप्त
करबाक सुयोग होइत छल। एकटा प्रयोगशाला कक्ष छल। प्रयोगशालामे सीमित साधन छल। तथापि ओहि घन्टीमे विज्ञान
वर्गक विद्यार्थी सभ बेसी डराएल रहैत छल। कहिओ-काल प्रयोगशाला नामधारी कक्ष खुजैत
छल। विद्यार्थी सभ कहुना कए विध पूरा करथि। ओहि समयमे
मैट्रिकक वोर्डक परीक्षामे जँ व्यवहारिक परीक्षामे फेल तँ पूरा परीक्षामे फेल भए जाइत छल। तेँ विज्ञानक शिक्षकसँ विद्यार्थी सभ
बहुत डराइत छलाह।
इसकुलक आगूमे बड़ीटा मैदान रहए जाहिमे
कहिओ-काल स्काउटक परेड आ कहिओ-काल खेल-धूप सेहो होइत रहैत छल। स्काउटक ड्रेस बनाबक
हेतु हम कतेक उत्साहित रही आ जखनसँ बनि कए आएल तँ गामसँ इसकुल स्काउटक ड्रेसमे जाइत-काल कतेक
खुश रही, एकर वर्णन करब कठिन। वार्षिक परीक्षाक बाद परीक्षा फल निकलैक समयमे
समस्त इसकुलक विद्यार्थी एकट्ठा होइत छल। प्रधानाचार्यजी परीक्षा
फलक घोषणा करथि। प्रथम, द्वितीय, तृतीय पाबएबला छात्रक
नाम पहिने बाचल जाइक। फेर आन सबहक एक्कट्ठे घोषणा होइत जे पास वा फेल। साइते किओ फेल करैत छल छल। प्रथम स्थान पाबएबला
विद्यार्थीक अपन क्लास आओर इसकुलमे धाख बनल रहैत छल।
ओहि समयक विद्यार्थी सबहक लेल अंगरेजी बड़ कठिन होइत
छल। बहुत रास विद्यार्थी वोर्डक परीक्षामे अंगरेजीमे फेल कए जाइत छलाह। “इंग्लिस वैरे हम, होप नहीं है, पास करेंगे फिर मर्जी भगवान की।”
ई गाना गबैत रहैत छलाह। तकर कारण जे सभटा पढ़ाइ हिन्दी माध्यमसँ
होइत रहए आ पश्चात अंगरेजीक स्तर बढ़ाएब कठिन भए जाइत छल। अधिकांश लोक रट्टा
मारि-मारि कए परीक्षा पास कए लैत छलाह। कएटा विद्यार्थी तँ गणित आओर ज्यामितिक सबाल धरि घोंटि लैत छलाह। से छल आतंक वोर्ड
परीक्षाक, खास कए अंगरेजी आओर गणित विषयक। छड़ीसँ
विद्यार्थीक हाथपर पीटनाइ, ब्रेंचपर ठाढ़ केनाइ अठमा/नौमा क्लास धरि आम छल। ततबे
नहि, फज्झैत करब, उल्टा-पुन्टा
बात कहि देब तँ चलिते रहैत छल। एहि सबहक नाकारात्मक असर विद्यार्थीक
मनोबल पर पड़ब स्वभाविक छल। प्रत्येक क्लासमे चारि-पाँचटा विद्यार्थी बढ़िआँ अंक अनैत छलाह, शेष विद्यार्थीक भगवाने मालिक...।
ओना, इसकुलमे कोनो एहन ब्यवस्था नहि छल जे विद्यार्थीक अन्दर
छिपल प्रतिभाकेँ उभारि सकए, परन्तु उन्टे ओ सभ हीन भावनाक शिकार भए
जाइत छल। अखनो धरि ई मानसिकता रहिते छैक जे बच्चा डाक्टर, इंजीनियर बनि जाए, चाहे जे करए पड़ए। एहन कएटा विद्यार्थी छलाह जे विज्ञान, गणितमे लगातार फेल करथि, तथापि डाक्टर, इंजीनियर बनक अभिलाषामे लागल
रहथि। आबक समयमे विद्यार्थीक कतेको विकल्प छैक। शहरी विद्यालय सभमे तरह-तरह क
विषय पढ़बाक सुविधा अछि।
ओहि समयमे खास कए गाम-घरमे एहन सुविधा नहि छल। जे
विद्यार्थी विज्ञान विषय नहि रखलक तँ ओकरा चौपट बुझल जाइक। परिणाम स्वरूप कएटा विद्यार्थीकेँ ज्यमिति आ गणितक सबाल सभ रटैत देखी।
दिन-रातिक मेहनतक बावजूद ओहन विद्यार्थी सभ फेल भए
जाइत छलाह। हम एकटा एहन विद्यार्थीकेँ जनैत छी जे सात-आठ साल धरि डाक्टरीक प्रवेश परीक्षा पास नहि कए सकलाह, मुदा डाक्टर छोड़ि किछु आओर बनबाक इच्छा नहि
करथि। हारि कए ओ आर्ट्स रखला आ बहुत विलम्बसँ वकालत पास केलाह।
एक दिन हमरा लोकनिक क्लासमे हमर सहपाठी शिक्षककेँ
कहलखिन जे ओ ज्यामितिक साध्य अंगरेजीमे सावित करताह। मास्टर साहेब अनुमति देलखिन।
ओ अंगेजीमे रटि कए आएल छलाह। जखन वोर्डपर साध्य बनाबए
लगलाह तँ अक्षर बिसरा गेलनि आ सभ उन्टा-पुन्टा होबए लगलनि। आधारक जगह लम्ब, लम्बक जगह आधारक अक्षर सभ लिख
देलखिन।
सौंसे क्लासमे ठहाका पड़ए लागल। अन्ततोगत्वा ओ नर्भस भए
बैस गेलाह। विज्ञान पढ़बाक ललक आ डाक्टर, इंजीनियर बनबाक आकांक्षा अखनो
अपना एहिठाम अभिभावक ओ विद्यार्थी मोनसँ गेल नहि अछि। हम पढ़ाइमे नीक करी, गणितमे शत-प्रतिशत अंक आनी, क्लासमे प्रथम करी, एहि हेतु हमर बाबूजी निरन्तर प्रेरित करैत रहैत छलाह। हुनकर प्रेरणाक परिणाम छल
जे हाइ इसकुलमे हमर परीक्षा-परिणाम निरन्तर बढ़िआँ होइत रहल। ओहिमे इसकुलक कएटा शिक्षक सबहक परिश्रम आओर प्रयासक गंभीर योगदान छल। गणितक शिक्षक तँ बहुत नीक छलाह।
११ वाँक इसकुलसँ वोर्ड तकक सभ परीक्षामे हम क्लासमे
प्रथम स्थान प्राप्त केलहुँ। मैट्रिकक वोर्ड-परीक्षाक परिणाम जहिआ आएल छल, तहिआ गामक चौकसँ घर कतेक तेजीसँ हम
दौड़ल रही, कतेक प्रसन्न भेल रही तकर अनुमान लगाएब कठिन। प्राय: जीवनमे एतेक
प्रसन्न हम कम बेर भेल होएब। इसकुलमे चारिटा विद्यार्थीकेँ प्रथम
श्रेणी भेल, आ हमरा चारूमे सभसँ बेसी अंक छल। सत्य पूछल जाए तँ मैट्रिकक परीक्षाकेँ एतेक महत्व नहि देबाक चाही, मुदा गाम-घरक हिसावसँ ओहि समयमे ई बड़का बात बुझल जाइत छल। कम्मे
विद्यार्थी प्रथम श्रेणीमे उत्तीर्ण होइत छल मुदा आब तँ ई आम बात भए गेल अछि।
एकतारामे पढ़बाक क्रममे कएटा विद्यार्थी दोस्त बनि गेलाह जे अखन धरि सम्पर्केमे नहि छथि अपितु हमर जीवनक अभिन्न
अंग भए गेल छथि। एहिमे नगवासक श्री नारायणजी सर्वप्रथम मोन पड़ैत छथि। जहिआ हम इसकुलमे नाम लिखओने रही, तहिए ओहो नाम लिखओने रहथि। इसकुलमे बरोबरि ओ बढ़िआँ स्थान प्राप्त केलाह । प्रथम श्रेणीसँ मैट्रिक केलाह
पश्चात आर.के. कौलेज- मधुबनी आ एल.एस. कौलेज मुजफ्फरपुरसँ आगूक शिक्षा प्राप्त
केलाह
। मधुबनी
हुनकर कर्म क्षेत्र रहल। पारिवारिक जीवनकेँ केना स्वर्गमय, आनन्दमय बनाओल जा सकैत अछि, तकर प्रेरणा हुनकासँ लेल जा सकैत अछि। ओ बहुत संस्कारी व्यक्ति छथि।
हुनक पत्नी सेहो बहुत गुणी छथि। मधुबनीमे हुनकर घरक साफ-सफाइ आ सजाबट देखब तँ आश्चर्यमे पड़ि जाएब। घरमे सदिखन
शान्तिक वातावरण रहैत अछि। लग-पास हुनकर इष्ट-मित्र लोकनि सेहो रहैत
छथिन। हुनकर दुनू पुत्र अति प्रतिभाशाली छथि। दुनू बालक उच्च योग्यता प्राप्त कए उच्च पदासीन छथि। एकटा पुत्र अमेरिकामे
वैज्ञानिक छथिन, दोसर इसरोमे इंजीनियर। ५४ बरखसँ ओ लगातार हमर सम्पर्कमे छथि। एहन उदाहरण जीवनमे कम
भेटैत अछि।
“नित दिन वरसत नयन हमारे
सदा रहत पावस ऋृतु हम पे
जब से श्याम सिधारे...।”
सूरदासक उपरोक्त भजन हमरा सभक एगारहमामे विदाइ
समारोहमे हमरा सबहक वर्ग शिक्षक गेने छलाह।
ओहि कार्यक्रमक हेतु हम हारमोनियम साइकिलपर लादि कए गामसँ लए गेल रही। अद्यावधि ओहि गीतक स्वर ध्यानमे अबैत रहैत अछि।
चारि सालक पढ़ाइक बाद हमरा लोकनि मैट्रिक-वोर्डक
परीक्षाक उम्मीदवार भए गेल छलहुँ। इसकुलक पढ़ाइ समाप्तिपर छल। वोर्डक
फार्म भरला पश्चात इसकुल जाएब बंद भए गेल। घरेपर रहि कए दू-तीन मास धरि पढ़ाइ केने रही।
वोर्डक परीक्षाक तैयारीमे दिन-राति लागल रहलहुँ। देखिते-देखिते एकबेर फेर सभ
विद्यार्थी वोर्डक परीक्षा देबाक हेतु मधुबनी पहुँचलहुँ। वाटसन इसकुलमे परीक्षाक केन्द्र छल। बाबूजी
वाटसन इसकुलक विद्यार्थी छलाह। ओहि इसकुलक किछु शिक्षक सभ बाबूजीक परिचित
रहथिन। देखिते-देखिते परीक्षा भए गेल, परीक्षाफल आएल, आ हम सभ इसकुलसँ निकलि कौलेज पहुँच गेलहुँ।
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