मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 22 जनवरी 2017

श्राद्धक वर्तमान स्‍वरुप


 

श्राद्धक वर्तमान स्‍वरुप

रबीन्द्र नारायण मिश्र


नियतिक आगाँ ककरो नहि चलैत अछि। कालक्रमे सभ ऐ संसारमे अबैत अछि आ समय पूरा होइते चलि जाइ अछि। जखन ओ समय आबि जाइत छइ, सबहक माथा ओहने भऽ जाइत अछि। नियतिकेँ के बदैल सकैत अछि। मृत्‍युक उपरान्‍त लोक अहिना बजैत, सोचैत अछि। आर कोनो विकल्‍पो नहि..! राजा, रंक, फकीर सभ एक-ने-एक दिन ऐ संसारसँ विदा भऽ जाइत अछि। तँए ऐ संसारकेँ मृत्‍युलोक सेहो कहल जाइत अछि।

किछु दिन पूर्व १२ नवम्‍बर २०१६ (कार्तिक शुक्‍ल त्र्योदसी)क साँझ सात बजे हमर वयोवृद्ध चौरानबे वर्षीय माता दयाकाशी देवीक देहावसान भऽ गेल। ओ जाँघक हड्डी टुटि गेलाक कारण पैछला दू बर्खसँ कष्‍टमे छेली। नाना प्रकारक उपचार भेल परन्‍तु ओ पैछला तीन माससँ लगातार गड़बड़ाइते गेली आ अन्‍ततोगत्‍वा कालक अपराजेय हाथे हुनक प्राण देह छोड़ि देलक। ओइ समयमे हमहूँ ओहीठाम रही।

माइक अन्तिम संस्‍कारमे सम्मिलित हेबाक हेतु किछु गोटे बाहरसँ आबि रहल छला, तइ हेतु प्रतीक्षा कएल गेल ओ प्रात भेने १२ बजे हमरा लोकनि संस्‍कार हेतु प्रस्‍थान केलौं। माइक इच्‍छानुसार ऐ अवसरपर धू-धू बाजाक ओरियान कएल गेल छल। संगे किछु गोरे रस्तामे पैसा उड़बैत रहला। संस्‍कार स्‍थल गामसँ उत्तर-पूब हमरा लोकनिक आमक गाछी छल। ओइठाम सभटा बेवस्‍था पहिनहिसँ हमर अनुज केने छला। लगेमे पोखैर आ चापाकल छल। हम चापाकलपर स्‍थान करए चाहलौं, मुदा से ओइठाम पास्‍थित लोक सभकेँ पसिन नहि भेलै आ स्‍थान पोखैरमे केलौं। पोखैरक पानि जमकल छल। दूर-दूर धरि सफाइक कोनो गुंजाइश नहि। कहुना-कहुना डुबकी मारलौं आ नव वस्‍त्र पहिर कोहामे पानि भरि संस्‍कार स्‍थलपर पहुँचलौं।

मंत्राच्‍चारक संग चितामे आगि लगेलौं। क्रमश: आगि पजरल, पजरैत धधकल। धधरा बढ़ैत गेल आ हमर पूजनीया माइक शरीर धू-धू कऽ जरए लागल। हम चुपचाप ऐ दुखद दृष्‍यकेँ देखैत रहलौं, ठमकल रहलौं। बीचमे तीन खेप चिताक परिक्रमा करबाक हेतु कहल गेल। ओइक्रममे ई कहल रहैक जे जल्‍दीसँ जरि जाउ, सभ छोड़ि कऽ जा रहल अछि।

जइ माइक बिना एक्को क्षण बच्‍चा फराक नहि रहए चाहैत अछि, ओइ मायकेँ अपने हाथे अग्निकेँ समर्पित कए दैत अछि। ई संसारक विचित्रता अछि। दू घन्‍टासँ अन्‍तिम संस्‍कारक कार्यक्रम चलि रहल छल। तखन किछु गोरे बजला जे संस्‍कार भऽ गेल। सभ कियो आमक डारिक पँच-पँचटा टुनगी बनौला। हम आगाँ आ सभ कियो पाछाँ, सारासँ उन्‍टा-मुहेँ ठाढ़ भेलौं। मंत्रोच्‍चारक संग ओइ टुनगीकेँ पाछाँ फेक देल गेल आ लोक सभ बिना पाछाँ तकने हमर पाछाँ-पाछाँ विदा भेला। 

ऐसँ पूर्व स्‍नान कतए हो, तैपर चर्चा भेल। किछु गोरेक प्रस्ताव छल जे काली-मन्दिर लगक पोखैर चलल जाए, मुदा से सभकेँ पसिन नइ भेलैन। अधिकांश लोक नवका पोखैरमे स्‍नानक पक्षधर छला। अन्‍ततोगत्‍वा नवके पोखैर दिस सभकियो विदा भेला। ओइ क्रममे ई धियान राखल गेल जे लौटबाक मार्ग ऐबाक मार्गसँ भिन्न होइक। ऐ नियमक पालन हेतु दूटा युवक हमरा संगे मार्गदर्शन करैत तेहन रस्‍ता चुनलाह जेकरा मोन पाड़ैत रोमान्‍चित भऽ जाइत छी। थाल-कादो, काँट-कुश, जंगल-झाड़ बाटे होइत हम आगाँ-आगाँ आ शेष लोक पाछाँ चलैत रहला। बादमे पता लागल जे किछु लोक दोसर रस्‍ता पकैड़ बढ़ला।

सभ गोरे अन्‍ततोगत्‍वा अपन पोखैरपर पहुँचलौं। पोखैरक पानि, घाटक हालत खस्‍ता। पानिमे नहेला पछाइत बेसी अशुद्धे भऽ जेबाक सम्‍भावना बुझना गेल, तथापि जन-भावनाकेँ धियान रखैत हम ओइ पोखैरमे स्‍नान कएल आ शेष लोक सेहो। सभ कियो बेराबेरी स्‍नान कए घर दिस विदा भेलौं। गामक पुराण रस्‍ता सभ बन्‍द भऽ गेल अछि। जेतए रस्‍ता छल पहिने तेतए आब लोक घर बना लेलक। रस्‍ताक हेतु रस्‍ता नहि रहल। जेना-तेना छड़पैत, थाल मखैत घर आपस एलौं।

घर आबि कऽ लोक सभ आगि, पानि, लोह, पाथर छूलक आ अपन-अपन घर चलि गेला। तेकर पछाइत प्रारम्‍भ भेल नाना प्रकारक विध-विधान।  

कर्ताक ऊपर नाना प्रकारक पाबन्दी। जेना ओ घरमे नहि, बारहे रहता। हाथमे करचीक डण्‍टा, डॉले वा आसपास लोहक चक्कू। अलग आसन-बासन। भात, दूध एक साँझमे। प्रेतकेँ डाबामे पानि चढ़ाएब। गरुड़ पुराण सुनब। 

यद्यपि श्राद्ध-कर्मक उद्देश्‍य पूर्णत: मृतआत्‍मा प्रति श्रर्द्धांजलि व्‍यक्त करब थिक, परन्‍तु एकर प्रारूप एवम्‍ प्रक्रिया अतिशय दुरुह एवम्‍ कष्‍टकारी थिक जइसँ कर्त्ताक संग परिवारक अन्‍य सदस्‍यक स्‍वास्‍थ्‍यक संकट उत्‍पन्न भऽ सकैत अछि।  कलकत्तामे हमर एकटा सम्‍बन्‍धीक श्राद्धक क्रममे एहेन घटना घटि चूकल अछि। पिताक श्राद्ध करैत-करैत हुनक पुत्र बहुत तेज बोखारमे पड़ि कऽ आगूक श्राद्ध करबामे असमर्थ भऽ गेला एवम्‍ मजबूरीमे उतरीअनका दऽ श्राद्ध-कर्मक क्रिया आगू बढ़ल। आइ-काल्‍हि अधिकांश लोक गामसँ बाहर रहै छैथ एवम्‍ पोखैरमे नहेबाक अभ्‍यास नहि छैन, संगे पोखैरक पानि साफ, शुद्ध नहि रहैत अछि। अधिकांश पोखैरक पानि जमकल रहैत अछि।

एक दिन एक वृद्ध महिला हमर पत्नीकेँ तरह-तरहसँ प्रश्‍न करए लगली। कर्ताक हेतु भोजन केना बनबै छी? चुल्‍हि केहेन अछि? माटिक बरतन फोरै छिऐ की नहि? कर्त्ता केतए रहै छैथ? चौकीपर दाइ-गे-दाइ! चौकीपर कहीं कर्त्ता रहलैए! मच्‍छरदानी तँ बिलकुल नहि हेबाक चाही। कर्त्ता निच्‍चाँमे माटिपर पटिया बिछा कऽ रहक चाही..!

हद तँ तखन भऽ गेल जे एकादशा दिन कर्त्ता की खाथि अइले जबरदस विवरद भेल। अन्‍तमे, हमर भातिज पण्‍डितजीकेँ बजा अनला। ओ सभकेँ सुना कऽ घोषणा केलखिन जे कर्त्ता चूरा-दही खेता।ऐसँ पूर्व पात्रजी सेहो सएह कहने रहथिन। दस दिनसँ अकर-बकर खाइत-खाइत हम तंग भऽ गेल रही ओ फेरसँ वएह सभ खेबाक हेतु तैयार नहि रही, तँए अपन पसन्‍दक निर्णय सुनि मन प्रसन्न भेल। हम चूरा-दही खेलौं। मुदा बात एतबेपर समाप्‍त नहि भेल। एकटा महिला चिचिया लगली-

दाइ-गे-दाइ कर्त्ता आइ चूरा-दही नहि खाइत अछि। आइ तँ दही-भात खेबाक चाही!”

अपनहि कहल जाउ जे ऐमे कोन धार्मिकता? सहा सहा कऽ, अनुनाक कर्त्ता एवम्‍ ओकर परिवारकेँ सता देब केतए केर धर्म थिक? कहि नहि,मृतात्‍माकेँ ऐसँ केना सुख वा शान्‍ति भऽ सकतैन..!

घरसँ श्राद्ध स्‍थली (काली मन्‍दिर) तक हम चप्‍पल पहिर कऽ जाए लगलौं तँ महापात्रजीक संग-संग आरो गोरे अकर विरोध केलैन। आपसीमे चप्‍पल दोसर बेकती पहिर कऽ आएल आ हम ओहिना अखरे पएरे अबैत रहलौं। श्राद्धक उपरोक्‍त जखन अपन पएर देखलौं तँ बिसवास नहि भेल जे ई हमरे पएर अछि! सौंसे तरबामे मारि चट्ट पड़ि गेल छल। कारी पैरकेँ उज्जर करबामे कएक लागि गेल।

लोक मृतकक प्रति श्रद्धाभाव रखैत सभ किछु करैत रहै छैथ मुदा ऐ सभ प्रक्रियाक वैज्ञानिकता एवम्‍ समयानुकूल प्रासांगिकतापर विचार हेबाक चाही। मृतकक आत्‍माक शान्‍ति हेतु कोनो प्रयास कम अछि। सन्‍तान, समाजक दायित्‍व अछि जे हुनक प्रति श्रर्द्धांजलि व्‍यक्‍त करए। ऐमे दू-मतक कोनो प्रश्‍ने नहि उठैत अछि। मुदा ई जरूर विचारणीय अछि जे वर्तमानमे चलि रहल श्राद्ध प्रक्रियाक धार्मिक आ समाजिक महत्‍व केतेक औचित्‍य अछि? विद्वान लोकनि ऐपर उचित विचार कऽ सकितैथ तँ हमरा हिसावे ओसमाजक हेतु बहुत कल्‍याणकारी होइत।

वर्तमान बेवस्‍थामे कर्त्ता, हुनक पत्नी आ अन्‍य भाय लोकनि द्वादसा तक अनूना करै छैथ। कर्त्ताक हेतु मृतात्‍माक हेतु भोजन संगे बनैत अछि। ओ नित्‍य एकसंझा करै छैथ। गाहे, वगाहे फालादि खाइ छैथ। हुनकर आशन, वासन फराक रहैत अछि। नित्‍य महापात्र कर्म करबै छथिन। कर्म करैसँ पूर्व पोखैरमे स्‍नान, कर्मक पछाइत स्‍नान। दसम दिन केस कटैत अछि। तदुपरान्‍त एकादसा, द्वादसाक विधान अछि। महापात्रजीकेँ नित्‍य दछिना चाही। गरुर पुराणक खिस्‍सा सभ सुनैत-सुनैत कएक बेर हँसियो लागि जाइ छइ।  नाना प्रकारक नर्कक वर्णन अछि। ओइमे किछु विशेष नर्क सभ अछि। जेना केन्‍द्रीय कारागार होइत अछि। मृतात्‍माकेँ रस्‍तामे केदन कुटिल मार्गसँ जाए पड़ि सकैत अछि। तेकर वर्णन भेटत। कथानक केर मूल उद्देश्‍य नीक बुझाइत अछि, मुदा जइ प्रकारक तथ्‍य एवम्‍ कथाक समावेश ऐमे अछि, तैपर विचार आवश्‍क बुझाइत अछि। नीक कर्म केलासँ सद्गति भेटत,अधलाह करब तँ कष्‍टकारी नर्क भेटत, सारांश एतबे।

तात्‍पर्य आस्‍थामे प्रश्‍न-चिन्ह लगाएब नहि अछि अपितु वर्तमानमे प्रचलित श्राद्ध बेवस्‍थाकेँ समयानुकूल वैज्ञानिक एवम्‍ विकसित करब अछि। मृतात्‍माकेँ श्रर्द्धांजलिक आदर अबस्‍स आदर सहि आयोजन हेबाक चाही। परमात्‍माक प्रर्थना, भजन, कीर्तन सेहो हेबाक चाही जइसँ मृतात्‍माकेँ शान्‍ति होनि, हुनक परिवारकेँ आत्‍म संतोष होनि परन्‍तु वर्तमान प्रक्रिया की ऐमे उपयुक्‍त अछि? ऐपर विचार होबक चाही। कहि सकैत छी जे १२-१३ दिनक बात छै, माय-बाप कोनो रोज-रोज तँ मरैत नइ छैथ। जे होइत अछि, जेना होइत अछि निपैट ली। आ अही कारणसँ ऐ समाजिकताक निर्वाह लोक करैत अछि। मुदा एकर आकार, प्रकार एवम्‍ वैज्ञानिकतापर विचार करबामे कोनो दिक्कत नहि हेबाक चाही। उदाहरणस्‍वरूप वृषोत्‍षर्ग श्राद्धकेँ पंचदानसँ श्रेष्‍ठतर बुझल जाइत अछि परन्‍तु विचारणीय प्रश्‍न थिक जे एकटा निर्दोष बाछाकेँ लोहा धीपा कऽ दागि देल जाइ, ऐ हदतक जे भोखरैत, चिकरैत रहए, ओकर चमरी ओदैर जाइ, आ कहल ई जाइ जे मृतक ऐसँ स्‍वर्ग जेता, अमानवीय लगैत अछि। तेतबे नहि, ओ बाछा गाम-गाम वौआइत रहैत अछि आ खेती चरि जाइत अछि, जइसँ गौंआँ सभ परेशान रहै छैथ। कोनो युगमे ई प्रयोग लाभकारी रहल होइ मुदा आब तँ ई उचित नहि लगैत अछि।

श्राद्धक क्रममे महापात्र लोकनि एक्के मंत्रकेँ बेरबेर दोहरबै रहै छैथ। जेतेक प्रकारक बरतन, सामग्री दान हएत, सभकेँ बेराबेरी दान कएल जाइत अछि। एक्के मत्र-सभकेँ बीसो बेर पढ़क प्रक्रिया कष्‍टकारी अछि। एक्के बेरमे सभ दानक सामग्रीक हेतु मंत्र पढ़बामे कोन दिक्कत छइ?

ओहिना १४ मासिक कर्म करैमे बेरबेर एक्के प्रक्रियाकेँ दोहरौल जाइत अछि, जइमे १२ दिन लगभग सहैत कर्ताकेँ कष्‍ट हएब सोभाविक थिक। मंत्रकेँ एहेन संशोधित कएल जा सकैत अछि जे २-३ बेरमे सभ मासिक श्राद्ध सम्‍पन्न भऽ जाए। परन्‍तु समस्‍या तँ ज्‍यादासँ ज्‍यादा दछिनासँ जुड़ल अछि। जेतेक मासिक श्राद्ध हेतै तइबेर दछिना कबुलनामा हेतइ। आमक गाछ दान करू, मोनक मोन वर्षकृत्‍य हेतु अन्न दान करू। हँसी तखन लागल जे महापात्रजी मोटर साइकिल दान करबाक हेतु, कहैत कहला जे हुनकर पुत्र ऐ हेतु प्रेरणादय रहल छैन। विद्वान लोकनिकेँ ऐ समस्‍या सभ विचार करब जरूरी बुझाइत अछि, जइसँ वर्तमान परिवेशमे श्राद्धक परम्‍पराक निर्वाह सुगम होइ जइसँ अगुओ ई चलैत रहए।

कोनो पितर वा मृतात्‍मा नहि चाहता जे हुनकर नाओंपर हुनके सन्‍ताकेँ कष्‍ट होइन। अर्थिक बरबादी होनि होइन। प्रश्‍न श्रद्धा एवम्‍ आस्‍थाक अछि, ऐ हेतु कसल जा सकैत अछि जे ऐपर चर्चा व्‍यर्थ अछि। परन्‍तु यदि अहिना आँखि मुनि परम्‍पराकेँ निर्वाह होइत रहत तँ भऽ सकैए जे क्रमश: ई बेवस्‍था विलुप्‍त भऽ जाइक कारण अधिकांश लोक आब प्रवासी भऽ गेल छैथ। गामसँ सम्‍पर्क क्षीण भऽ गेल अछि। शहरमे ओ सुविधा, वातावरण नहि अछि। तथापि लोक वर्तमान बेवस्‍थाकेँ चला रहल अछि, मुदा अन्‍य समाजमे एहेन टेँढ़ बेवस्‍था नइ अछि। अस्‍तु श्राद्ध बेवस्‍थाक औचित्‍यपर प्रश्‍न चिन्‍ह लागत?

अपना इलाकामे श्राद्ध भोज आम बात अछि। एकादशा एवम्‍ द्वादसा, दुनू दिन व्रह्मण-भोजनक बेवस्‍था अछि। सम्‍भवत: एगारह गोट व्राह्मण-भोजन ऐ हेतु पर्याप्‍त अछि परन्‍तु बेवहारमे बात भिन्न अछि। लोक गामक गाम भोज करै छैथ जइमे लाखो रूपैआ खर्च होइत अछि। एकादसामे सिद्ध अन्न एवम्‍ द्वादसामे असिद्ध अन्न, जेना पुरी, मिठाइ आदि-आदि। रसगुल्‍ला, छेना तँ अनिवार्य भऽ गेल अछि। पहिने पुरी, जिलेबीक भोज होइ तँ गामक गाम सोर भऽ जाइ छल मुदा आब तँ बदैल गेल। लोकक जेबी भरल छइ। जबार नोतब आम बात भऽ गेल अछि। समाजिकता एवम्‍ मनोरंजनक दृष्‍टिये एकरा पसन्‍द कएल जा सकैत अछि परन्‍तु एकर धार्मिक कर्मकाण्‍डीय औचित्‍यपर विचार उचित अछि। बढ़ियाँ होइत जे ऐ अर्थ शक्रिक प्रयोग वयोवृद्ध एवम्‍ असक्‍य लोकनिक सेवा वो संरक्षणमे होइत। हम ऐ प्रकारक चर्चा गाममे केलौं, गाहे-वगाहे पहिनौं करैत रहलौं परन्‍तु लोक लीकसँ हटि कऽ करबा हेतु तैयार नहि होइ छैथ। सोचै छैथ जे खूब भोज कऽ देलासँ दिवंगतक प्रति अपूर्ण रहि गेल दायित्वक ऐ तरहेँ सम्‍भरण भऽ जाइत मुदा से सही नहि अछि। सही मानेमे आब भोज खेनिहार लोको सभ तंग भऽ गेल छैथ आ लोकमे भोजक प्रति आब वो उत्‍साह नहि देखल जाइत अछि जेना २५-३० साल पूर्व रहइ। लोक सभ भोज खाइत-खाइत तंग भऽ जाइत छल, तथापि समाजिक दायित्‍व बुझि ऐ परम्‍पराक निर्वाह कऽ रहल छैथ।

कहल जा सकैत अछि जे हम वर्तमानमे चालू परम्‍परामे खोंटेटा देखा रहल छी मुदा किछु विकल्‍प नहि प्रस्‍तुत कए रहल छी। ई बात सर्वविदित अछि जे श्राद्धक बेवस्‍था धार्मिक आस्‍था एवम्‍ मृतकक प्रति श्रद्धासँ जुड़ल अछि एवं कोनो-ने-कोनो रूपमे सभ धर्म। जाति। समाजमे विद्यमान अछि। सही मानेमे श्रद्धक उद्देश्‍य मृतक प्रति सम्‍मान एवम्‍ श्रद्धाक अभिव्‍यक्‍ति अछि। मृत्‍युपरान्‍त जीवन, पुर्जन्‍म, श्राद्धक कारण पितर-लोकनिक कल्‍याण, ई सभ विषय गम्‍भीर अन्‍वेषणक अपेक्षा रखैत अछि आ लोक अपन-अपन दृष्‍टिसँ एकर समाधान कऽ सकै छैथ परन्‍तु एतावत ई तँ बुझाइत अछि जे श्राद्धक वर्तमान बेवस्‍था बोझिल, जटिल एवम्‍ बहुत अधिक यांत्रिक अछि एवम्‍ ऐमे सुधारक पर्याप्‍त गुंजाइश अछि। उदाहरणस्‍वरूप श्राद्धक कार्यक्रम १२ दिनक अपेक्षा ४ वा ५ दिनमे समेटल जाए। दोसर दिन केसकट्टी आ तेसर, चारिम दिन श्राद्ध भऽ सकैत अछि। पाँचम दिन माछ-भात। उपरोक्‍त समय-सारणीक अनुसार श्राद्ध बेवस्‍थामे संशोधन भऽ सकैत अछि आ हेबाको चाही। हमर आग्रह अछि जे ऐ विषयक विद्वान पण्‍डित लोकनि आपसी चर्चा कए संशोधित बेवस्‍था पंचाग एवं अन्‍य प्रकारेण प्रकाशित, प्रचारित करैथ। ई आत्‍यावश्‍यक अछि। तखने अपन समाजक ऐ संस्‍कारक जीवन्‍त रहबाक सम्‍भावना रहत अन्‍यथा कालक्रमे सभ अपने-आप ऐ बेवस्‍थाकेँ तिलांजलि दय दैथ तँ कोनो आश्‍चर्य नहि।

हमरा लोकनि स्‍मार्टफोन, फोरजीक युगमे रहि रहल छी। संचार बेवस्‍थाक संगे जीवनक समस्‍त आयाममे आधुनिकताक समावेश भऽ रहल अछि। विश्‍व एक परिवार बनि गेल अछि। दुनियाँक कोनो भागमे रहैत हमरा लोकनि आधुनिक संचार, तकनीकि बेवस्‍थाक सहयोगसँ अपन संस्‍कार, संस्‍कृतिसँ जुड़ाउ रहि सकैत अछि मुदा तइले जरूरी अछि जे हमर परम्‍परामे वैज्ञानिकता, आधुनिकताक समावेश हुअए।

माइक देहावसानसँ रहि-रहि कऽ मनमे कचोट भऽ जाइत अछि। हुनकर असीम सिनेह एवम्‍ निरंतर सुगम आशीर्वादक स्‍वर प्रतिध्‍वनित होइत रहैत अछि। कहि नहि आब ओ केतए, कोन रूपेँ हेती..!

..मुदा ओ सतत हमर कल्‍याण करैत रहती से दृढ़ बिसवास अछि। हुनकर श्रर्द्धांजलिक हेतु कोनो प्रयास कमे अछि। तथापि हमर विचार अछि जे श्राद्धक वर्तमान बेवस्‍थामे आमूलचूक  परिवर्तनक सम्‍भावना एवम्‍ आवश्‍यकता अछि। श्रद्धा, बिसवास आ आस्‍थाक रक्षा करैत बेवहारिकता एवं आधुनिकताक समावेश हेबाक चाही एवम्‍ समयानुकूल सर्वसुलभ पद्धैतक विकासक हेतु विद्वान लोकनिकेँ प्रयास करक चाही।◌


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