मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 22 जनवरी 2017

प्रवासी




प्रवासी

समाजमे सामंजस्‍य एवं अधिकारक वैषम्‍य सभ दिन रहल अछि। एकर पाछाँ नाना कारण भऽ सकैत अछि। कियो जनमिते सम्‍पन्नताक सहभागी भऽ जाइ छैथ तँ कियो आजीवन संघर्ष करैत रहि जाइ छैथ। तैयो जस-के-तस...।

एहेन उदाहरण गाम-गाम भेटत। हमरे गाममे कएक गोटा कएक पुस्‍तसँ मजदूरी कऽ रहल अछि। ओकर परिस्‍थितिमे कोनो सुधार नहि भेल। ओहिना जीवन संघर्षक क्रममे लागल जिनगी बीत जाइ छइ।
मुदा किछु मामलामे परिवर्त्तन सेहो देखना जाइत अछि। गाम-घरसँ शिक्षित वा अशिक्षित लोक जीविकाक खोजमे बहराएल। मुम्‍बई, दिल्‍ली सहित अनेकानेक शहरमे पसैर गेल। बहुत रास मजदूर सभ पंजाव चलि गेल। किसान सबहक नौकर-चाकर भऽ गेल। गाम-घरमे लोकक ई पलायन सर्वव्‍यापी भऽ गेल अछि। जेकरे देखू दिल्‍लीक टिकट कटबैत अछि आ विदा भऽ जाइत अछि।
परिणामस्‍वरूप गाम-घरमे नोकर-चाकर नहि भेटैत अछि। पढ़ल-लिखल लोक पहिनहुँसँ नौकरीक क्रममे बाहर चलि जाइत छला। आब सभ चल जाइत अछि। १९७७ ईस्‍वीमे जखन हम नौकरी करए दिल्‍ली आएल रही तँ कियो-कियो दिल्‍ली अबैत छल। बरौनीसँ जयन्‍ती जनता एक्‍सप्रेस पकैड़ कऽ दिल्‍ली अबैत छेलौं। मुदा आब गामक गाम उलैट कऽ दिल्‍ली चल जाएल अछि। ओइ समैमे सभ कहए जे किए दिल्‍ली जा रहल छी? ओइठाम बहुत खर्चा होइ छइ। पैसा नहि बँचत। गाम-घरक देखभाल नहि हएत। आदि-आदि। तथापि हम दिल्‍ली आबि गेल रही। बाबूजीजी बहुत अपसियाँत भेल रहैथ। हुनका कहुना कऽ बुझाएल। परिवार सहित दिल्‍ली चल एलौं। ओइ घटनाकेँ आइ ३९ बर्ख भऽ गेल। जखन उनैट कऽ देखै छी तँ ई निर्णए सही बुझाइत अछि। 
गाम-घरसँ लोकक शहरक पलायन मूलत: आर्थिक समस्‍या अछि। जँ गामेमे वा गामक आसपासमे जीविका भेट जाइ तँ लोक हजारक-हजार माइल दूर किए जाएत? मुदा से नहि भऽ पबैत अछि। दुर्भाग्‍यवश अपन जिला-जवारमे कल-कारखाना नदारद अछि। जे एकाध-टा छेलैहो सेहो कालक्रमे बैस गेल। खेती-बाड़ीसँ उपजा नगण्‍य भऽ गेल।  पढ़ल-लिखल, मूर्ख, कारीगर सभ दिल्‍ली, मुम्‍बई किंवा कोनो आन शहरक रस्‍ता पकैड़ लेलक। बाँचल-खूच लोक गाममे रहि गेल। मूलत: वृद्ध वा बच्‍चा। किछु सेवा निवृत लोक सेहो गाम आपस अबैत छैथ मुदा कम, साएमे एकाध-टा कहि सकै छी, अन्‍यथा जन-बोनिहार, पढ़ल-लिखल, हाकिम, कर्मचारी जे कियो गाम छोड़लक, से जेतइ गेल ओ तेतइ रहि ओतुक्का बासीए बुझू भऽ गेल। आखिर एना भेलै किएक?
ऐमे कोनो दू मत नहि भऽ सकैत अछि जे अधिकांश लोक जीविका किंवा बेहतर जीवन-यापनक आकांक्षासँ पैघ शहर चल जाइ छैथ। अधिकांश जन-मजदूर अपन सम्‍बन्‍धी, ग्रामीण किंवा मित्रक संगे बहराइ छैथ। प्रारम्‍भिक दिनमे वएह हुनका रहबाक ठौर दैतो छथिन। एहेन अधिकांश लोक भवन निर्माण, कृषि कार्य, चौकीदारी इत्‍यादि अन्‍य प्रकारक कर्मचारीक काजमे लागि जाइ छैथ। किछु लोक परिवार किंवा गाममे अशांतिक कारण सेहो गाम छोड़ि जाइत छैथ। सरकारी किंवा बढ़ियॉं प्राइवेट नौकरीमे नियुक्‍ति किंवा स्‍थानान्‍तरणक वाद सेहो लोक अपन पैतृक गामकेँ छोड़ि जाइ छैथ। गाम-घर छोड़ैबला अधिकांश मजदूर तबकाक लोककेँ गाममे जमीन किंवा उपार्जनक कोनो श्रोत नइ होइत अछि। स्‍थायी सरकारी वा प्राइवेट नौकरी करैबला सम्‍भ्रान्‍त लोक जिनका गाम-घरमे जमीन-जथा अछि सेहो शहर गेलाक बाद ओहीठाम बसि जाइ छैथ एवं प्रयास करै छैज जे गाम-घरक जमीन बिका जान्‍हि, वेशक गाममे घर रहए किंवा बेहतर घर बना लिअए, से इच्‍छा रहै छैन। मुदा गाम-घरक जमीन उचित मूल्‍यपर बिकाएब सेहो कठिन समस्‍या अछि। हमर एकटा मित्र पैछला दस बर्खसँ गामक जमीन बेचए चाहै छैथ, मुदा से नहि भऽ पाबि रहल छैन, तेकर मूल कारण पितियौत सबहक लालच आ ताहि कारण असहयोग थीक। निरन्‍तर बाहर रहबाक कारण जिनका गामे-घर छैन्‍हो, सेहो कालक्रमे ढनमना जाइत अछि। खसि पड़ैत अछि, किंवा पड़ोसी सभ ओकर दुरुपयोग करैत रहै छैथ।
मिथिलांचलक अघिकांश लोक मजदूरीक हेतु, नौकरी-चाकरीक हेतु दिल्‍ली अबै छैथ। पहिने लोक कलकत्ता जाइ छैथ। मुदा कलकत्ताक स्‍थिति बहरियाक हेतु अनुकूल नहि रहि गेल। ओतए रोजगार सेहो कम भऽ गेल। परिणामत: लोक सभ आन-आन ठाम जाए लगल अछि। अस्‍सीक दसकमे बहुत रास मजदूर वर्ग पंजावक देहाती क्षेत्रमे जाइ छल। मुदा क्रमश: ओइठामक स्‍थिति खराप होइत गेल। आतंकवादक प्रसारक बाद तँ बिहारी मजदूर सभ यैहले-वैहले ओइठामसँ घसैक गेल। दिल्‍लीक अलावा मुम्‍बई सहित अन्‍यान्‍य शहर सभमे लोक पसैर गेल।
मिथिलांचलसँ ऐ तरहेँ पलायन भेल आ भाइए रहल अछि। जखन लोक गाम-घर छोड़लक आ बाहर जा कऽ बसि गेल तँ सोभाविक गाम-घरसँ सम्‍पर्क कम भऽ गेल। ओइठामक रीति-रिवाज, संस्‍कार, संस्‍कृति, भाषा, गीत-नाद आदि सभसँ दूरी बढ़ैत गेलइ। भावक प्रति अनुराग ओहिना अपना सभमे कम छल। जहाँ कियो परदेश बसल कि सभसँ पहिने मैथिली बाजबमे अपराध लागए लगलै। अपन भाषाकेँ छोड़लक आ हिन्‍दी, अंगरेजी अबैत नहि रहइ। परिणामत: अपन संस्‍कृतिकेँ बिसैर तँ जाइते गेल मुदा आनोठामक नीक आचार-विचार ग्रहण करबा योग नहि भऽ सकल। निश्‍चय ई बात सभपर लागू नहि भऽ सकैत अछि। किछु लोक उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त केलाक बाद किंवा उच्‍च शिक्षा लेबाक हेतु निकलला आ सरकार किंवा प्राइवेटमे पैघ-सँ-पैघ स्‍थान प्राप्‍त केला। हुनका परदेशोमे पूर्ण सम्‍मान, सत्‍कार भेल। प्रचूर धनोपार्जन केला एवं भविसक पीढ़ीक हेतु सेहो स्‍वास्‍थकर परिस्‍थिति बना सकला। मुदा अधिकांश लोक एहेन भाग्‍यवान नहि भेला।
१५-२० बर्ख पूर्व दिल्‍लीमे बिहारी सभकेँ बहुत छोटक बुझल जाइ छल अपितु बिहारी एकटा गारि बुझल जाइ छल। मिथिलांचलक प्रवल जनसंख्‍या अछैतो दिल्‍लीमे ऐ वर्गक कोनो अपन विशेष पहिचान नहि छल। अखनो धरि ऐमे कोनो बहुत सुधार नहि कहल जा सकैत अछि, यद्यपि आब समस्‍त पूर्वांचलक प्रति आदर-भाव बढ़ल अछि। लोकक संख्‍याक संग राजनैतिक वर्चस्‍व बढ़ि रहल अछि। छठि पाबैनसँ समस्‍त पूर्वांचलीकेँ एकटा पहिचान भेटल अछि।

मिथिलांचल पूर्वांचलमे समाहित भऽ गेल अछि। मैथिली-भोजपूरीक समन्‍वित साहित्‍य अकादमी स्‍थानीय सरकार बनौलक अछि आ ओइ धारापर कहियो-कहियो मैथिली-भोजपूरीक कार्यक्रम होइत रहैत अछि।
दिल्‍लीमे देशक सभ राज्‍यक लोक अछि। केरल, तमिलानडू, ऑंध्र, बंगाल सबहक अपन-अपन शिक्षा संस्‍थान छइ, अपन-अपन संस्‍कृतिक संगठन छइ। मुदा मिथिलांचलक हित रक्षा करैत कोनो शिक्षण संस्‍थान नहि अछि! कोनो सुसंगठित, सकृय सांस्‍कृतिक सगठन नहि अछि! किएक? हमर एकटा मित्र कहला जे ओ जखन दिल्‍ली आएल रहैथ तँ बहुत प्रयास केला जे अपना ऐठामक लोककेँ एकत्र कऽ कोनो संस्‍थागत कए दी। परन्‍तु से सम्‍भव नहि भेलैन। तेकर मूल कारण जे बिहारक लोक जातिसँ बेसी प्रभावित छैथ। अन्‍तर्जातीय ससमावेशी, सांस्‍कृतिक परिवेशक रचनाक अनुकूल मानसिकता नहि अछि। दिल्‍लियोमे लोक जातीय आधार पर गोलबन्‍द होइत रहै छैथ जे बात आन राज्‍यक लोक सभमे नइ अछि।
दिल्‍लीमे वंगाली समाजक कोनो मोहल्‍ला नहि अछि जतए काली मन्‍दिर नहि हो। ओ चाहे गोल मार्केट होइ, चाहे लक्ष्‍मीवाई नगर होइ आकि कालकाजी होइ किंवा चितरंजन पार्क होइ। केतेको ठाम बंगाली स्‍कूल अछि जइमे आन विषयक संग बंगाली पढ़ब अनिवार्य अछि।
कहबाक तात्‍पर्य जे आर्थिक, समाजिक कारणसँ अपन गाम-घर छोड़निहार अपना ओइठामक लोककेँ उचित सांस्‍कृतिक, समाजिक परिवेश परदेश जेना दिल्‍ली, मुम्‍बईमे नहि भेटैत अछि। परिणामत: लोक तेजीसँ अपन भाषा-साहित्‍य, अपन पाबैन-तिहार, अपन सोच-विचार सभ बिसैर रहल अछि, बिसैर गेल अछि। बाहर रहनिहार प्रवासी लोकनि अपन धिया-पुताक उपनयन, बिआह एवं अन्‍यान्‍य संस्‍कार एतइ करै छैथ। कमे लोक गाम जेबाक हिम्‍मत कऽ पबै छैथ। तेकर कारण जे प्रवासी लोकनिक अपन ग्रामीण समाजसँ सम्‍पर्क क्रमश: क्षीण भऽ जाइत अछि। गाममे बेवस्‍था करब आ कोनो पैघ काज कऽ लेब दुरुह भऽ जाइत अछि। स्‍थानीय लोक गोलबन्‍द रहै छैथ आ प्रवासीकेँ ओइमे पैठ बनाएब कठिन भऽ जाइ छैन। 
अपना ऐठाम दरिभंगा महराज बहुत समृद्ध छला। शहर-शहरमे हुनक सम्‍पैत छेलैन।ओ चाहितैथ तँ समस्‍त मिथिलाक कल्‍याण भऽ सकैत छल। शिक्षा लेल नीक-सँ-नीक संस्‍थान बना सकैत छला। लोक आसानीसँ उत्तम शिक्षा ग्रहण करैत। नीक नौकरी होइतै। कल-कारखाना लगा सकैत छला। जँ से सभ भेल रहैत तँ आइ ओइ क्षेत्रमे पलायनक ई दृश्‍य नहि रहैत। केरलक विकासमे ओइठामक राजाक अद्भुत योगदान अछि। ओइठामक लोकक शिक्षाक स्‍तर एवं जीवन-यापनमे ओ गुणात्‍मक सुधार अनला। मुदा दरभंगा नरेश ऐमे चुकि गेला। राज नष्‍ट भऽ गेल। जन-कल्‍याणक कोनो काज हुनका हाथे नहि भेल।
गाम घरमे शिक्षाक उत्तम बेवस्‍था नहि रहबाक कारण धिया-पुताकेँ शिक्षा प्राप्‍त करक हेतु बाहर जाए पड़लैक। अधिकांश लोक जे पढ़ए निकलल, ओम्‍हरे नौकरी करए लगल। मुदा गरीब लोकक धिया-पुताकेँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भेटब पराभव भऽ गेल। पहिने मधुबनी, दरभंगाक कौलेजसँ स्‍तरीय शिक्षा भेट जाइत छल। मुदा किछु बर्खसँ एकर स्‍तर तेतेक गड़बडा गेल जे ई संस्‍था सभ मात्र डिग्रीक फैक्‍ट्री बनि कऽ रहि गेल। जेकरे देखू सएह ८० प्रतिशत नम्‍बर लऽ कऽ घुमि रहल अछि। मुदा ओ सभ जखन दिल्‍ली, मुम्‍बई आदि शहर नौकरीक हेतु जाइ छैथ तँ अपन अवमूल्‍यन देख जरूर सोचैत हेता जे ई की भेल? बी.ए.-एम.ए.क सर्टीफीकेट-धारी सभ चौकीदारी करै छैथ। ऐ परिस्‍थितिक अपवादो भऽ सकैत अछि मुदा सामान्‍य धारणा ई भऽ गेल अछि जे बिहारक कौलेज सबहक स्‍तर अति निम्न अछि। ऐ विषयपर सभकेँ सोचबाक चाही। शिक्षाक स्‍तरक क्षरण चिकित्‍सा बेवस्‍था नगण्‍यता एवं नौकरी-चाकरीक अभावक कारण कियो ओइ इलाकामे आपस नहि जाइ छैथ। चिकित्‍सा बेवस्‍थाक बदहालीक विषयमे जेतेक लिखल जाए से थोड़ होएत। बिहारमे डाक्‍टर सभकेँ प्राइभेट प्रैक्‍टिसक सरकारी अनुमति अछि। परिणामत: सरकारी अस्‍पताल सभ व्‍यर्थ किंवा जानलेबा भऽ गेल अछि। दरिभंगा चिकित्‍साक क्षेत्रमे विख्‍यात छल। आब ओइठाम चिकित्‍साक नामपर शोषण मात्र होइत अछि। परिणामत: जेकरे देखू सएह दिल्‍लीक एम्‍समे फाइल लगौने ठाढ़ भेटत। एम्‍स दिल्‍लीक ऑंगनमे आ ओकर आसपासमे अपना ओइठामक लोक पथार लागल रहैत अछि। जँ दरिभंगा मेडिकल कौलेजमे पहिने जकाँ इलाज-बात होइत तँ लोक एना दिल्‍ली किएक भगैत? तात्‍पर्य जे स्‍थानीय परिस्‍थिति सुविधापूर्ण सुरक्षित भविसक दृष्‍टिये अनुकूल नहि अछि।  
लाखो लोक प्रतिवर्ष बिहारसँ बाहर जाइत अछि। ओइमे अधिकांश अकुशल मजदूर रहैत अछि। एहेन बात नहि जे बिहारेक लोक बाहर भागि रहल अछि। पंजाव, केरल किंवा आनो-आनो राज्‍यसँ लोक बाहर भऽ रहल अछि। पंजावक लोक कनाडा, अमेरिका चलि जाइत अछि। केरलक गामक-गाम महत्‍पूर्ण एसियाक देश सभमे चलि जाइत छइ। मुदा ऐ सभमे गुणात्‍मक अन्‍तर अछि। बिहारमे पलायन प्रभाव ओइठामक राजनितिक परिदृश्‍यपर देखल जा सकैत अछि। अधिकांश पढ़ल-लिखल लोकक गाम-घर छोड़ि देलाक बाद ओइठाम गामक-गाम मूर्ख-चपाटक वर्चस्‍व भऽ गेल अछि। मतदाता सभमे अधिसंख्‍यक माफिया राज्‍य भऽ गेल अछि। सोभाविक अछि जे एहेन परिस्‍थितिमे केहेन नेतृत्‍व उभरत। परिस्‍थितिमे सुधार हौउ तइले बहरिया सभकेँ घुरि आबए पड़तैन। संघर्ष द्वारा उचित नेतृत्‍वक चुनाव करए पड़तैन, तखने माहौल बदैल सकैत अछि। शिक्षा, चिकित्‍सा, रोजगारक क्षेत्रमे विकास भऽ सकैत अछि। मुदा से कखन आ केना हएत? प्रवासी सभ जेतै-तेतै बसल जा रहल अछि। जँ कियो गाम दिस लौटबाक प्रयासो करै छैथ तँ गामक ओहन स्‍थित अछि जे हुनकर अपने लोक प्रतिरोध करए लगै छैन। हुनका होइ छैन जे हिस्‍सामे बाँट-बखरा करक हेतु आबि रहल अछि। आ तरह-तरहसँ प्रयास कएल जाइत अछि जे प्रवासी आपस गाम नइ आबए। केतेको लोक जे ऐ बातक विरोध करैत आगू बढ़ै छैथ, हुनका कएक बेर अप्रत्‍याशित धात-प्रतिधातक सामना करए पड़ैत अछि। केतेको बेर एहेन प्रयास हिंसक भऽ जाइत अछि। 
एकबेर ट्रेनसँ दिल्‍ली अबैत रही। रस्‍तामे मुजफ्फरपुरक एकटा सहयात्री भेटला। ओ गपक क्रममे कहला जे गाममे हुनका नीक जमीन-जत्‍था अछि। कोनो नीक पदसँ सेवानिवृत्त भेल छला। मुजफ्फरपुर, पटना आ दिल्‍लीक आसपास केतेको सम्‍पैत अर्जित केला। सेवा निवृत्तक पछाइत गामक सम्‍पतिक बँटवारा हेतु कएक बेर प्रयास केलैन मुदा गाममे जे भाए रहैत छेलखिन से ऐ बातसँ बहुत नाराज भेलखिन। सम्‍बन्‍ध गड़बड़ा गेलैन। मना नइ करथिन मुदा बात फरिछेबो नहियेँ करथिन। ई गाम जाथि तँ ओ उठि कऽ सासुर चल जाथि। बहरिया आदमीक समए बान्‍हल रहैत अछि। जखन हुनकर आपस हेबाक समए होइत तँ ओ गाम आबैथ आ किछु झार-फूक कऽ समए खटिया दैन्‍ह। पछाइत एकाध बेर झंझैटो भेलैन मुदा फेर ठामक ठामे, माने ठाकक तीन पात। अत: ओ समए पुरा होइत गामसँ लौट जाइथ। सालक-साल यएह क्रम चलैत रहल। अन्‍ततोगत्‍वा ओ गामक बखराक चर्चे करब छोड़ि देलैन। कहला जे जहियासँ से कएल, गामक भाइक सोभावे बदैल गेल। आव-भगत बढ़ि गेलैन। कहला जे आब गाम जाइ छी तँ किछु पैसा हुनका दऽ दइ छिऐन आ खूब सेवा होइत अछि आ चैनसँ दस-बीस दिन गाममे रहि लैत छी। ई घटना कोनो एक परिवारक आकि एक बेकतीक बीचक मात्र नइ अछि। जे कियो प्रतिकूल अपन हिस्‍सा-बखराक चक्करमे पढ़ला, किंवा सेवा निवृत्तक पछाइत आपस अपन डीह- डाबर दिस तकला तँ हुनकर भगवाने मालिक...। ई परिस्‍थिति कोनो कम पढ़ल-लिखल लोके धरि सीमित नहि, अपितु नीक, प्रतिष्‍ठित परिवार, शिक्षित ओ सम्‍पन्न लोकमे सेहो ई बिमारी गाम-गाममे पसैर गेल अछि।
अहाँ तँ बाहर रहलौं, ऐश-मौज केलौं। हम तँ गामे धेने रहलौं। सभ दिन कष्‍ट केलौं। दियाद-वाद सभसँ झगड़ा करैत घर-घराड़ीक रक्षा केलौं। अहाँ की केलौं?” ऐ यक्ष प्रश्‍नक की उत्तर हएत? बहरियाक संग के देत? कदाचितो ओ गाम दिस केना मुड़त?
लोक बुझैत अछि जे ई तँ चालि जेता, गाममे तँ वएह रहि जाएत। तँए समाजो सभ हँ मे हँमिलाएबे यथोचित बुझै छैथ। तात्‍पर्य ई जे जे कियो बाहर भऽ गेल छैथ, तीस-चालिस बर्खक पछाइत पुनश्‍य गाममे बसए चाहै छैथ, हुनका विकट परिस्‍थितिक सामना करए पड़ि सकैत अछि। तथापि कए गोरे गाममे आपस स्‍थापित हेबामे सफल होइ छैथ।
गाम-घर छोड़ि शहरमे रहनिहार सभ लोक एक्के रंग भाग्‍यवान नहि होइत अछि। बढ़ियाँ नोकरी करएबला किछु लोक तँ अपन नीक बेवस्‍था कए लइ छैथ मुदा गरीब, कम शिक्षित किंवा मजदूर तबकाक लोक पैघ शहरमे रहियो कऽ नर्कक जिनगी जीबए हेतु विवश छैथ। झोपड़ी-झुग्‍गी बना कऽ जहाँ-तहाँ रहैत समए कटैत छैथ। दिन-राति मारि-गारि सहैत-सुनैत रहै छैथ। स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षाक अवसरसँ धिया-पुता वंचित रहि जाइत अछि किंवा स्‍तरीय सुविधा तँ नहियेँ भेट पबै छैन। शहरक लोक हुनका एकटा भार बुझैत अछि। मान-अपनाम सहियो कऽ जँ ओ जीविओ जाइ छैथ तँ मनमे गाम-घरक टीस रहिते छैन। मुदा गाम घुरता तँ कतए आ केना? ओइठामक परिदृश्‍य सेहो कालक्रमे अरूचिकर भऽ गेल रहैत अछि। 
ऐमे कोनो दू मत नहि भऽ सकैत अछि जे गाम-घरक अपेक्षा पेघ शहरमे जीवन-यापनक सुविधा बेहतर छइ। गाम-घरमे खेती-बाड़ीसँ उपार्जन होइत छेलै मुदा आब सेहो नहि भऽ पाबि रहल अछि। लोकक जमीन परता रहि जाइत अछि। जेतबो पूजी लागत लगैत अछि तेतबो उपार्जन नहि भऽ पबैत छइ। अधिकांश लोकक जमीन बटाइ रहैत अछि। जे किछु अन्न-पानि भेट गेलैक ओहीसँ संतोख कऽ लैत अछि। जे बहरिया छैथ हुनका ओतबो अन्न-पानि सम्‍हारब कठिन होइत अछि आ औने-पौने दाममे उधारियो सही, ओकरा बेचि गामसँ विदा भऽ जाइ छैथ। आ जिनका जमीन-जत्‍था ऐछे नहि, ओ गामसँ पहिनहि ससैर गेल छैथ। महानगर सभमे मजदूरी किंवा मिस्‍त्रीक काज करि-करि जीवन-यापन करै छैथ...।
उपरोक्‍त परिस्‍थितिमे गामसँ शहरक पलायनक क्रम बढ़िये रहल अछि। गाममे लोकक संख्‍या क्रमश: कम भेल जा रहल छैइ। तैयो गाममे रहनिहारकेँ ऐ बातक आभास नहि भऽ पाबि रहल छैन जे काल्‍हि भऽ कऽ हुनको धिया-पुता बहरिया भऽ जेतैन आ ई गाम ओकरो लेल ओहिना भऽ जाएत। अस्‍तु गामसँ बहराएल प्रवासी लोकनिक गाम-घरसँ भावनात्‍मक सम्‍बन्‍ध बनल रहइ, से गामपर रहनिरोक हितमे अछि। मुदा तइ हेतु दूर दृष्‍टि चाही।


२९.१२.२०१६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें