प्राणक भीख मगैत मिमिआइत छागर आ वलिप्रदान
हम किछु दिन पूर्व उच्चैठ भगवतीक दर्शनक लेल गेल रही। मधुबनीसँ कारसँ भोरे उच्चैठ हम दुनू बेकती बिदा भेलहुँ। हम तँ कैक बेर उच्चैठ गेल छी। मुदा हमर श्रीमतीजी पहिल बेर ओतए जा रहल छलीह।अस्तु,हुनका बहुत दिनसँ ओतए जेबाक अभिलाषा छलनि जे आइ संभव भए रहल छल। असलमे बहुत दिन बाहर रहि गेलासँ अपना ओहिठामक बहुत रास तीर्थ महत्वपूर्ण स्थानसभ देखबासँ छुटि गेल अछि जे आब बेरा-बेरी पूरा भए रहल अछि। एहि क्रममे हमसभ आइ उच्चैठ बिदा भेल छी।आब अड़ेर माने हमरसभक गाम आबि रहल अछि। दुबगली नव-नव मकान,नव-नव दोकान खुजि गेल अछि। अड़ेर थानासँ जेना-जेना आगू बढ़ब सड़कक काते-काते अनेक प्रकारक दोकानसभ देखबामे अबैत अछि जे अंततः धकजरीमे जा कए मिलि जाइत अछि।
आब हमसभ भदुली पहुँचि रहल छलहुँ। ओतए पहुँचितहि पुरान बातसभ मोन पड़ि जाइत अछि।एहि ठाम हमर परिवारक खेत,कलम सभ छलनि। बेर-कुबेर हमहूँ ओहि ठाम जाइत छलहुँ। ओहिठाम भोजो खाइत छलहुँ। आब तँ ने ओ रामा ने ओ खटोला। कनीके आगू बढ़लापर धकजरी आबि जाइत अछि। ओहिठाम बामा कात धकजरीमे लालबाबूक ड्योढ़ी देखाइत अछि जतए हुनकर पुत्र,नन्हकू बाबू कैक मंजिलक फ्लैटनुमा घर बनओने रहथि। ओहि समयमे हुनकर धाजा फहराइत छल। लालबाबू स्कूटरपर चलैत छलाह।कैक बेर ओ अड़ेर चौकपर ठाढ़ होइतथि।स्कूटरमे सिकार कएल बगेरीसभ रखने रहितथि। अड़ेर चौकपर पान खइतथि ,गप्पसप्प करितथि। हुनका देखि कए हमरा सन-सन कैकटा बच्चासभ सेहो जमा भए जाइत छल।बादमे जखन नन्हकू बाबूक समय अएलनि तखन ओहो बरोबरि देखैतथि। देखबामे अपूर्व सुंदर।माथपर लालठोप केने।हुनकर बड़ीटा परिवार छलनि। ओहि समयमे साम्यवादी किसान आन्दोलनमे ओ सभ बहुत दिक्कतिमे पड़ि गेल रहथि। हुनकर बहुत रास जमीनसभपर झंझटि होइत रहैत छलनि। ई सभ बात हमसभ गाममे सुनियैक।
धकजरीक बाद बेनीपट्टी आएल। बेनीपट्टी बहुत पहिने हमरा सभक थाना छल। बादमे हमरे गाममे थाना बनि गेल।बेनीपट्टीमे जमीन रजिष्ट्रीक पुरान कार्यालय अछि।कैक बेर हमहूँ बाबूक संगे ओतए गेल छी,मधुर खेने छी। ओतए बहुत रास दोकानसभ देखबामे आएल। कार आगू बढ़ैत गेल आ थोड़बे कालमे हमसभ उच्चैठ पहुँचि गेलहुँ।
उच्चैठमे शुरूएमे गेटे लग एक गोटे फूल,प्रसाद बेचि रहल छलाह।पुछलिअनि-
“कतेक दाम छैक?”
“छोटका बीस,बड़का साठि।”
“साठि बला दए दिऔक।”
ओ तर दए फुलडालीमे सभ किछु सड़िआबए लगलाह, ओहीक्रममे बजलाह-
“एक सए बला आर नीक छैक।”-से कहि फुलडाली पकड़ा देलनि।हम किछु बजितहु,बुझितहुँ ताहिसँ पहिने ओ अपन काज कए चुकल रहथि।साठि टकाक बदला दाम आब एक सए भए गेल छल। भोरुका पहर छलैक,भगवतीक पूजा करबाक रहए।तेहनमे मोनमे विक्षोभ उत्पन्न नहि बढ़बैत हुनका एक सए दए आगू बढ़ि गेलहुँ। तकर बाद तँ एहन फूल-प्रसाद बेचनिहारक भीड़ लागल छल। हम पछताइ जे अनेरे शुरूएमे ई सभ कीनि लेलहुँ। मंदिर लग पहुँचैत-पहुँचैत एकटा पंडितजी भेटलाह-
“दर्शन करबैक?”
“हँ,हँ।”
“हमरा संगे चलू।हम सभटा नीकसँ करा देब।”
“टका कतेक लेबैक।”
“चलू ने। जे अपनेक श्रद्धा।जे मोन होअए से दए देबैक।”
हमसभ उच्चैठ भगवतीक मंदिरक बगले पोखरिमे जा कए पैर धोलहुँ।पोखरिक पानि तेहन छल जेकुरुर करबाक तँ प्रश्ने नहि छल? हमर श्रीमतीजी संगे रहथि। हुनका कालीदाससँ जुड़ल स्मृतिशेष देखबाक बहुत जिज्ञासा छहनि।
ओ एहि विषयक अनेक प्रश्न पुछि रहल छलीह-
“ओ स्थान कतए छैक?”
“ओ पुस्तकालय कहाँ छैक?”
“धार देखबाक मोन करैत अछि।”
हमसभ मंदिर अबैत काल लोकसभकेँ एहि विषयक जनतब देबाक आग्रह करैत रहलिऐक। मुदा ककरोसँ स्पष्ट जानकारी नहि भेटए। सोचलहुँ जे पहिने दर्शन कए ली। तकर बाद देखल जेतैक।भगवतीक दर्शन केलाक बाद पंडितजीकेँ दक्षिणा देबाक समय छल। हम एक सए टाका जेबीसँ निकालि रहल छलहुँ कि ओ बजलाह-
“एक सए टाका तँ अदना-पदना दैत छैक। अपने तँ,,।”
“हमरा अदने बुझू।”-से कहि हुनका एकसए टाका दए हमसभ मंदिरसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।पंडितोजी कोनो आन ग्राहकक फिराकमे चलि गेलाह।कम सँ कम पुरीक मंदिरमे महिला पुजारी जकाँ गारि पढ़ैत नहि देखेलाह। भगवती मंदिरक बाहर छोट-छोट छागरसभ मेमीआइत छल। ओकरासभकेँ स्नान करा कए वलिप्रदानक लेल आनल गेल छल। एहन क्रूड़ता माता कोना बरदास करैत छथि?ओ सभ मिमिआइत रहल।संभवतः कहि रहल छल-
“हे माते! हमर रक्षा करू। ई राक्षससभ हमर हत्या कए देत।”
“कतेक अफसोचक बात अछि जे जाहि जगदंबाक हमसभ अपन आ शृष्टिक कल्याणक लेल प्रार्थना करैत रहैत छी,तिनके प्रसन्न करबाक लेल हुनके एकटा संतानक वलिप्रदान करैत छी। ई कुप्रथा तुरंत बंद हेबाक चाही।विद्वान लोकनिकेँ एकर विरुद्ध अबाज उठेबाक चाही।”
हम इएहसभ सोचैत रहि गेलहुँ। कहि नहि केओ एहिपर ध्यान दए सकताह की नहि?भगवतीक दर्शनक बाद हमसभ बाहर भेलहुँ ।भूख लागि गेल रहए। बगलेमे कैकटा जलखैक दोकानसभ देखाएल। बहुत कम दाममे गरम-गरम जलखै केलहुँ।
हमसभ आब कालीदासक स्मृतिशेष तकबामे लागि गेल रही।मुदा ओहिठाम उपस्थित केओ व्यक्ति स्पष्ट नहि कहि पाबथि। मिथिलाक एहन प्रसिद्ध तीर्थ जे कालीदास सन विद्वानसँ सेहो जुड़ल होअए ततए कोनो गाइड,किंवा सुयोग्य व्यक्तिक अभाव बुझाएल। अंततोगत्वा हम अपन भातिज,चंदनकेँ फोन केलिअनि। ओ वाहनचालककेँ आवश्यक जनतब देलखिन।तकर बादे हमसभ कालीदास स्मारक कालेजसँ सटले ओहि धारकेँ देखलहुँ ।कहाँ दनि कालीदास ओही धारकेँ हेलि कए भगवतीकेँ करिखा लगबैत रहथि कि ओ हुनका रोकलखिन आ अपेक्षित वरदानो देलखिन।तकर बाद कालीदास रातिभरिमे पुस्तकालयमे राखलसभटा किताब उन्टा गेलाह आ से सभ हुनका कंठस्थ होइत गेलनि। कालीदास संगे भेल ई घटना हम बच्चेसँ सुनैत आबि रहल छी। मुदा एकर प्रमाणिकतापर तँ शोधकर्ते किछु कहि सकैत छथि। जे से।एतेक महत्वपूर्ण पर्यटनस्थलमे जे प्रसिद्ध तीर्थो अछि,उचित सुविधाक अखनहु बहुत अभाव अछि।
सामनेमे कालीदास स्मारक महाविद्यालय,उच्चैठक भवन देखाएल। हम एतए अबितहि थोड़े काल मौन भए गेलहुँ। एही कालेजमे हमर पितिऔत आ अभिन्न मित्र लालबच्चा(डाक्टर विष्णुकान्त मिश्र) रसायन शास्त्रक विभागाध्यक्ष छलाह। सेवामे रहितहि हुनकर मृत्यु भए गेलनि। बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ। एक-दूटा फोटो खिचलहुँ।फेर कारपर बैसलहुँ गाम वापस बिदा भए गेलहुँ।
क्रमशः
रबीन्द्र नारायण मिश्र
९।३।२०२५
बलिप्रदान पर मिथिलांचलमे कतेको ठाम आपत्ति भए रहल छैक। बहुतो ठाम आब एहि कुप्रथाक अंत भए चुकल अछि। जतय बंद नहि भेल अछि, बंद हेबाक चाही।
जवाब देंहटाएंजहाँ धरि उच्चैठसँ कालिदासक संबंधक प्रश्न अछि, तँ ई धारणा मिथिलाक थिक, ओकर आधार जनश्रुति थिक, वा कालिदासक साहित्यमे मिथिलाक व्यवहार आ संस्कृतिक झलक थिक। तथापि, अनेको विद्वानक मतें कालिदास उज्जैनक रहथि, वा हुनक जन्मस्थान कश्मीर रहनि।
उच्चैठक भगवती अवश्य प्राचीन छथि। मिथिलांचलक सड़कक जालसँ आइ मिथिलांचल दर्शन सुलभ भए गेले। ई स्वागत योग्य थिक।