श्री शिवशंकर श्रीनिवास
१८
जनबरी २०२५क हम दिल्लीसँ मधुबनी पहुँचलहुँ। किछु दिन गामक काजसभमे लागल रहलहुँ।
तकर बाद किछु स्थानीय साहित्यकारलोकनिसँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनाबए लगलहुँ। एही क्रममे हम मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री शिवशंकर
श्रीनिवासजी मोन पड़लथि।दूसाल पहिने एक बेर हुनकासँ दिल्ली द्वारका स्थित हुनकर
जमाएक डेरापर मे हुनकासँ भेंट भेल छल।ओहि दिन हुनकर व्यवहारसँ बहुत प्रभावित भेल रही। ओहि दिन
हुनकर पत्नी अस्पतालमे भर्ती रहथिन। मुदा हमरासँ भेंट करबाक लेल ओ अस्पतालसँ डेरा आबि
गेल रहथि। हुनकर बेटी,जमाएसभ हमर स्वागतमे लागल रहलथि।हम हुनका अपन किछु पोथीसभ
देने रहिअनि। ओहिमे हमर उपन्यास,हम आबि रहल छी, सेहो सामिल छल। किछु दिनक
बाद ओ एहि उपन्यासकेँ पढ़लनि आ अपन बहुत सकारात्मक
प्रतिक्रिया देलथि।हम एहि बातसँ बहुत उत्साहित भेल रही।
हम
श्रीनिवासजीसँ ह्वात्सअपपर संपर्क
केलिअनि।हुनका अपन कार्यक्रमक बारेमे
कहलिअनि। ओ तुरंत अपन गाम अएबाक आग्रह केलनि,अपन पता पठा देलनि। आइ जाएब,काल्हि
जाएब करैत-करैत समय बीतैत गेल। एकदिन हुनकासँ फोनपर गप्प भेल तँ ओ २४ मार्च २०२५ कए पटना होइत दिल्ली जेबाक सूचना देलनि। आब तँ किछुए
दिन बाँचल छल। हम दोसरे दिन हुनका लोहना
जेबाक लेल टैक्सीक ओरिआनमे लागि गेलहुँ।मधुबनीमे टैक्सीक व्यवस्था नीक नहि अछि। जे
से किराया लैत अछि,ओहूपर सँ कतेक तरहक असुविधाक संभावना बनले रहैत अछि। समयक कोनो
पाबंदी नहि,व्यवहारक कोनो मर्यादा नहि,किछु बाजि सकैत छथि।एहिसँ नीक आटो बला सभ
अछि जे सुभ्यस्तो होइत अछि आ सामान्यतः विनम्रो। मुदा लोहना जेबाक लेल आटो भेटल नहि।आखिर
एकटा टैक्सी बलासँ बात तय भेल।ओकरा अपन गंतव्य आ समय बतओलिऐक। सभ बात बुझलाक बात ओ
अपन स्वीकृति देलक।
१९
अप्रैल २०२५ कए नियत समयपर टैक्सी आबि गेल। टैक्सी बला ओना ठीक-ठाक लोक
बुझेलाह,मुदा हुनका लोहना जेबाक मार्गक स्पष्ट जानकारी नहि छलनि।हम हुनका श्रीनिवासजीसँ गप्प करा
देलिअनि। ओ मधुबनीसँ लोहना जेबाक रस्ताक सही जनतब हुनका देलखिन।मधुबनीसँ
रामपट्टी-भगवतीपुर-बिरौल चौक-(दक्षिण दिस मुड़ि जाउ) -रैमा-रुपौली आ तकर बाद लोहना।ओना
हम एहि इलाकामे एक बेर बरिआतीक क्रममे गेल रही। मुदा रातिक समय रहैक,कोनो बहुत
जानकारी नहि भए सकल छल। एहि बेर बाध-बोन देखैत-सुनैत करीब घंटा भरिमे हम लोहना
पहुँचि गेलहुँ। लोहना पहुँचबासँ पहिने
हुनकर फोन कैक बेर आबि गेल छल। जखन हमसभ हुनकर घर लग पहुँचलहुँ तँ ओ अपन दनानसँ
सटले रोडेपर हमर प्रतीक्षा कए रहल छलाह।हम टैक्सीसँ उतरलहुँ आ हुनका नमस्कार करैत
हुनके संगे हुनकर घरक ओसारापर पहुँचि गेलहुँ।
हमसभ
आपसमे गप्प-शप्प कइए रहल छलहुँ कि एकटा शोधार्थी सेहो आबि गेलाह।बीच-बीचमे हुनकर
शोधपत्रपर अपन टिप्पणी आ ओहिमे सुधारक
संभावित विषयपर सेहो ओ मार्गदर्शन दैत रहलखिन।हमर भातिज प्रसिद्ध कवि आदरणीय श्री राज किशोर मिश्रजी आ
हुनकर साहित्यिक कृतिक चर्चा सेहो ओ केलनि।प्रसिद्ध कथाकार श्री अशोकक चर्चा सेहो
भेल। कहलथि जे ओ गाममे रहितथि तँ अबस्स अबितथि आ सभगोटे संगे बतिबितहुँ। असलमे
अशोकजी हुनकर अभिन्न मित्र आ ग्रामीण छथिन। दुनूगोटे एक्के विधा,कथामे लिखैत छथि,
संगे समीक्षको छथि।हुनका लोकनिक आपसी सिनेहक चर्चा पहिनहु सुनने छी। बादमे अशोकजी
ह्वात्सअपपर हमर एहि यात्राक चर्चा केलनि
प्रसन्नता व्यक्त केलनि।
श्रीनिवासजीक
सरलता,विनम्रता आ अपनत्व भाओ ककरो मोहित कए सकैत अछि। ओहिठाम पहुँचितहि लगैत छल जे
कोनो अपन आदमीसँ भेंट भए रहल अछि।
बरषहि
जलद भूमि नियराए,जथा नबहि बुध विद्या पाए।
तुलसी रामायणक उपरोक्त कथन सद्य प्रमाणित भए रहल
छल। विश्वास नहि भए रहल छल जे मैथिलीक एहन प्रसिद्ध आ सफल कथाकार, साहित्यक एतेक
पैघ विद्वानसँ भेंट भए रहल अछि। अतिसय सहज आ स्वाभाविक मुस्कान हुनकर व्यक्तित्वक
आभाकेँ चमत्कृत कए रहल छल। सही मानेमे हुनका संग बिताओल गेल प्रत्येक क्षण
आनन्ददायी छल। एहन विलक्षण व्यक्तित्वक लोकसँ भेंट कए हम सरिपहु बहुत आनन्दित भेल
छलहुँ।
लगभग दू घंटा हम हुनका ओहिठाम रहलहुँ।हुनकर
श्रीमतीजी ताधरि जलखैकक ओरिआनमे लागल रहलीह।कहि नहि सकैत छी जे कतेक स्वादिष्ट छल
ओ भुजल चूरा आ आलूक चप। कैक बेर परसन लए कए हम खाइत रहलहुँ।ओ जलखै नहि,अपितु भोजन
भए गेल। रातिमे मधुबनी डेरापर वापस अएलाक बाद किछु भोजन करबाक जरुरति नहि रहि गेल।
आब
साँझ पड़ि रहल छल। टैक्सी बलाक संग तय समय सीमाक अधीन वापस हेबाक छल। हम सभ चाह
पीलहुँ।श्रीनिवासजीकेँ आ ओतए उपस्थित शोधार्थीकेँ अपन लिखल उपन्यास देलिअनि।तकर बाद हम ओहिठामसँ बिदा हेबाक लेल
हुनकासँ आज्ञा लेलहुँ। फेर ओएह रस्ता,ओएह बाध-बोन। मुदा एहि बेर दुबिधा नहि छल,तेँ
सुगम लागि रहल छल। सूर्यास्त भए रहल छल।भगवान सूर्यकेँ मोने-मोन प्रणाम केलहुँ
।मोनमे बहुत संतुष्टिक भाओसँ हम वापस मधुबनी स्थित अपन डेरापर पहुँचि गेलहुँ।हमरा
बहुत प्रसन्न देखि श्रीमतीक उत्सुकता बढ़लनि।हुनका सभटा बात कहलिअनि।ओ कहलीह-
“अपन
समाजमे अखनहु एहन लोकसभ छथि,से बहुत गौरवक
बात।”
हम दुनू बेकती बड़ी काल धरि आजुक यात्रापर चर्चा करैत रहि गेलहुँ।
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