माटि बजा रहल अछि
पछिला छओ सालसँ
गाम नहि गेल रही। एहिसँ पूर्व भातिजक बिआहमे ओतए सन् २०१८मे गेल रही। जाबे माए
जीबैत छलीह ताबे तँ ओहिठाम जेबाक अर्थ बुझाइत छल। माएसँ भेंट होइतहि सभ दुख बिसरा
जाइत छल। ओहि समयमे दिल्लीसँ गाम जाएब कोनो मामुली बात नहि रहैत छलैक। कैकमास
पहिनेसँ तकर योजना बनैत छल। यात्राक तिथि निर्धारणक बाद सभसँ पहिने रेलवे टिकट
हेतु टीसनपर जा कए पाँतिमे घंटो ठाढ़ भए टिकट लेल जाइत छल। बहुत बादमे जा कए टिकट
लेबाक प्रक्रियामे बहुत सुधार भेल। आब तँ घरे बैसल आनलाइन टिकट बनि जाइत अछि। टिकट
लेलाक बाद जेबाक, ओहिठाम जा कए रहबाक आ सकुशल दिल्ली वापस
हेबाक हेतु पर्याप्त टाकाक जोगार कएल जाइत छल। सामान्यतः ओतए परिवार सहित गेलापर ओ
सभ मास-दू मास हमर सासुरमे वा ससुरजीक डेरापर रहि जाथि। हुनका सभकेँ ओतए छोड़ि हम
जल्दीए वापस भए जइतहुँ। मास-दू मासक बाद परिवार आनबाक हेतु फेर ओमहर जाइ। वापसीमे
सभगोटे संगे लौटी।
हमर ससुर सन्
१९९७मे स्वर्गबासी भए गेलथि। हमर मित्र लालबच्चा(स्वर्गीय विष्णुकान्त मिश्र) सन् २००९मे चलि जाइत रहलाह। सन् २०१५मे हुनकर
पिता(स्वर्गीय
चन्द्रधर मिश्र) सेहो चलि जाइत रहलाह। हमर माएक सन् २०१६मे देहावसान भए गेलनि। सन्
२०२०मे हमर सासु सेहो चलि जाइत रहलीह। एहि तरहेँ कालक्रमे गाम-घरसँ लगाओक सूत्रसभ
टूटैत चलि गेल। आब गाम जा कए ककरासँ भेंट करब? ओना गाम
कोनो खाली भए गेलैक से बात नहि छैक। नव-नव कोठासभ बनि गेल अछि। बहुत रास लोकसभ
सेवानिवृत्तिक बाद गाम वापस आबि गेल छथि। मुदा तेँ की? एही
गुन-धुनमे बहुत दिनसँ रही। एमहर मुम्बईमे बसि गेल हमर मित्र शल्लुजी (शैलेन्द्र
झा)क फोन आएल। ओहि समयमे हम अपन श्रीमतीजीक फिजियोथेरेपीक हेतु अस्पताल गेल रही। ओ
मार्चमे गाममे अपन पौत्रक उपनयनमे भाग लेबाक हेतु आमंत्रित केलनि। तकर बाद दू-तीन
बेर फेर आग्रह केलनि, पुछैत रहलाह जे हम टिकट लेलहुँ कि नहि।
हमरा लागल जे ओ नहि अपन माटि बजा रहल अछि, जाए
पड़त। आखिर हम दरभंगा जेबाक हेतु १७ मार्च २०२४क प्रथम श्रेणी एसीक टिकट लए
लेलहुँ। वापसी यात्राक टिकट अखन नहि लेने रही। सोच-विचार करैत रही जे केना की करी?
दरभंगासँ गाम
वापस हेबाक टिकट कहिआक ली? गाममे उपनयन
छलैक। एकादशी यज्ञ छलैक। प्रात भेने भोज होइतैक। दरभंगामे किछुगोटेसँ भेंट करबाक
छल। संयोगसँ निर्मलीमे ओही लगपासमे २३ मार्च कए ‘सगर
राति दीप जरय’
साहित्य-कथागोष्ठी आयोजित हेबाक छल। ई एकटा दुर्लभ अवसर छल। कैकसालसँ एहि
कार्यक्रममे भाग लेबाक इच्छा छल। सगर राति दीप जरय कार्यक्रम निर्मलीमे होएत आ
डाक्टर श्री उमेश मंडलजी एकर संयोजक रहताह से स्वयंमे पैघ बात छलहे। सगर राति दीप
जरय शनिदिनक रातिमे होइत आ शोमदिन फगुआ छल। फगुआमे ग्रेटर नोएडाक अपन घरपर परिवार
संगे रहबाक इच्छा छल। अस्तु, सभकिछुकेँ विचार
करैत वापसी यात्राक हेतु २४ मार्च २०२४क वायुयानसँ टिकट लेलहुँ। दिनमे ११.४० बजे
स्पाइस जेटक विमान दरभंगासँ खुजबाक रहैक। ताहि हेतु दू-घंटा पहिनहि हबाइ हड्डापर
पहुँचबाक हेतैक। निर्मलीसँ दरभंगा भोरे सात बजे बिदा भए दरभंगा समयपर पहुँची ताहि
हेतु बहुत माथापच्ची केलहुँ। २३ मार्च २०२४ कए दरभंगासँ निर्मलीक हेतु
दानापुर-जोगबनी इन्टरसीटी एक्सप्रेसमे टिकट बनि गेल। मुदा निर्मली-सँ-दरभंगा
वापसीमे एहन कोनो ट्रेनक पता नहि चलल जे हमरा दरभंगामे हबाइ जहाज पकड़ा सकए। तेँ
निर्मलीसँ दरभंगा टैक्सीसँ पहुँचबाक मोन बनओलहुँ। ओही बीचमे डाक्टर कमलाकान्तजीक
फोन आएल। ओहो निर्मलीक सगर ‘राति दीप जरय’क
कार्यक्रममे भाग लेबाक हेतु उत्सुक बुझेलाह। मुदा हुनकर समस्या छलनि जे ओ रातिमे
बेसी काल नहि रहि सकताह, निर्मलीसँ
जल्दीए लौटि जेताह। तेँ हुनका संगे जेबाक विकल्प ठीक नहि बुझाएल। अंततोगत्वा, उमेशजी
निर्मलीसँ दरभंगाक हेतु टैक्सीक जोगार कए देबाक हेतु आश्वस्त केलनि। एहि तरहेँ
दुनू दिसक टिकटक ओरिआन भए गेल। आब रहल रहबाक जोगार। संयोगसँ पोस्टल प्रशिक्षण
केन्द्र बेला पैलेस, दरभंगाक अतिथि गृहमे मे हमरा रहबाक जोगार
भए गेल। तकर लिखित संपुष्टि सेहो आबि गेल। आब तँ हम बहुत निचेन छलहुँ।
१७ मार्च २०२४क
नियत समयपर, माने
लगभग सबा बारह बजे हम नई दिल्ली टीसनक प्लेटफार्म नंबर पाँचपर पहुँचि गेल रही।
हमरा लग तीनटा सामान छल। ट्रेनकेँ लगितहि हम तीनू सामानक संगे एसी प्रथम श्रेणीक
डिब्बा संख्या एच एकमे प्रवेश केलहुँ। ओहि डिब्बाक शुरुएमे हमर स्थान छल। थोड़बे
कालमे ओहिमे एकटा परिवार अएलथि। ओ सभ दुनू बेकती आ दूटा बच्चा रहथि। तीनू शायिका
हुनके छलनि। हम निश्चिन्त भए अपन जगहपर ओलरि गेल रही, फोनमे
लागल रही कि ट्रेन खुजि गेल।
पहिने प्रथम
श्रेणी एसी डिब्बामे विक्रेतासभ नहि देखाइत छल। मुदा एहि बेर तँ रहि-रहि कए
तरह-तरहक सामानसभ अबैत-जाइत रहल। हमहूँ अपन पसिंदक चीज वस्तु लैत रहलहुँ।
सामान्यतः हम भोरुका पहरक बाद चाह नहि पीबैत छी। मुदा ट्रेनमे तीन बेर चाह पीलहुँ।
आर किछु-किछु खाइत रहलहुँ। बड़ी काल धरि हमर सहयात्री सभसँ गप्प-सप्प नहि भेल। ओहो
सभ अपनामे मगन रहथि। हमहूँ किछु-किछुमे लागल रही। ओ दुनू बेकती आपसमे बहुत नीक
मैथिलीमे गप्प-सप्प करथि। एहि बातसँ हम बहुत प्रभावित भेलहुँ। असलमे ओ सभ
झंझारपुरक लगीचक गामक रहथि, मुदा कैक सालसँ दिल्लीमे रहैत
छथि। कुल-मिला कए हमरा ओ सभ बहुत नीक लोक बुझेलथि। हम हुनकर प्रशंसा केलिअनि। तकर
बाद तँ ओ सहटि कए हमरे लग बैसि गेलथि।
ट्रेनमे यात्राक
क्रममे सहयात्री अपन गामक घरक वृतान्त कहए लगलाह। दस साल पूर्व ओ चालीस लाख खर्च
कए आठ कोठरीक घर बनओने छथि। ईर्ष्यावश हुनकर एकटा देआद हुनकर मकानक सामनेमे सरकारी
जमीनपर घर बना लेलकनि। ओ बहुत कोशिश केलथि जे ओ एना नहि करथि। मुदा ओ नहि सुनलकनि।
तकर बाद ओ दिल्लीसँ उच्च सरकारी अधिकारीलोकनिकेँ सिकाइत करैत रहलाह। स्थानीय
जीलाधीशसँ सेहो भेंट केलनि। अंततोगत्वा, सरकार ओकर मकान ढाहि देलक। तकर बादो ओ आइ
धरि मलबासभ नहि हटेलकनि। ओ न्यायालयमे केस कए देने अछि जे ओ जमीन ओकर छैक,सरकारक
नहि। एतेक परेसानी अछैतो ओ गामक घर बचओने छथि। ताहि हेतु रखबार रखने छथि। गामपर
बाबू रहैत छथिन एसगरे। सालमे कैकबेर दिल्लीसँ गाम अबैत-जाइत रहैत छथि। लोकसभकेँ
मदति सेहो करैत रहैत छथि। ओ एहि जोगारमे छथि जे एमएलए एमपी बनि जाइ। हुनकर माए
किछु साल पूर्व पचपन सालक बएसमे मरि गेलखिन। हुनका बेर-बेर एहि बातक हेतु दुख
प्रकट सुनिअनि जे ओ अपन माएकेँ नहि बचा सकलथि। हमरा ट्रेनमे बहुत कम निन्न भेल।
आखिर जेना-तेना राति बितल, भोर भेल। हमर
सहयात्री हमर सदिखन ध्यान रखने रहथि। बेर-बेर पुछथि- “कोनो काज होअए तँ कहब।”
दोसर दिन साढ़े
नओ बजे हमसभ दरभंगा टीसनपर पहुँचि गेल रही। ओहिठामसँ आटोसँ थोड़बे कालमे पीटीसी
अतिथिगृह पहुँचलहुँ । अतिथिगृहक रखबार बीरुकेँ फोन केलहुँ। ओ तुरंत उपस्थित भए
गेल। सूट नंबर तीनकेँ खोलि देलक। हम अपन सामानसभ ओहिमे रखबेलहुँ। यद्यपि ओ कोठरी
पुरान सन लगैत छल, मुदा ओहिमे सभ सुविधा छल। एसी, टीभी, मच्छरदानी
लागल सुसज्जित पलंग, कुर्सी टेबुल, सोफा।
मोन गद-गद छल। बीरुकेँ ओहिठामक भोजनादिक व्यवस्थाक बारेमे पुछलिऐक। ओ कहलक-“हमरा
एहिसभक जनतब नहि अछि। अपने संजयजीसँ वा सहायक निदेशकजीसँ गप्प कए लिअ। ओएहसभ किछु
कहताह।”हम संजयजीसँ गप्प केलहुँ। तकर बाद सहायक निदेशकजी सेहो भेटलाह। हुनकासँ
जानकारी भेटल जे ओहिठाम प्रशिक्षुलोकनि हेतु मेस चलैत अछि जाहिमे चारू टाइम भोजन, जलखै, चाहक
ओरिआन छैक। अतिथिलोकनि सेहो प्रतिदिन २६० रुपया भुगतान कए ओहि सुविधाक लाभ उठा
सकैत छथि। भोरे सात बजे चाह, नओ बजे जलखै, एकबजे
दिनुका भोजन,
साँझमे
चाह आ रातिमे नओ बजे भोजन। सभकिछुक हेतु २६० रुपया मात्र सस्ते छैक। मुदा फूट-फूट
रेट नहि छैक। कहबाक माने जे यदि एक्को बेर खाएब तँ २६० टाका लगबे करत। तेँ हम
ओहिठाम मात्र एकदिन २२ मार्च २०२४क भोरक चाहसँ लए कए रतुका भोजन धरि केलहुँ । आन
दिन एमहर-ओमहर घुमैत-फिरैत काज चलल।
अतिथिगृहमे
व्यवस्थित भेलाक बाद डाक्टर योगानन्द झाजीकेँ फोन केलिअनि-
“हम दरभंगा आएल
छी। अपनेसँ भेंट करए चाहैत छी।”
“ओ! बहुत हर्षक
बात। अपने कतए ठहरल छी?”
“पीटीसी
अतिथिगृहमे।”
“हम तँ अखने
अबितहुँ,
मुदा
हमर अंङनेमे एकगोटेक मृत्यु भए गेलनि अछि। हम कठियारी जा रह छी। काल्हि भेंट भए
सकैत अछि। भोरे मोन पाड़ि देब।”
“ठीक छैक।”
तकर बाद भीम
बाबूकेँ फोन केलिअनि।
“हम दरभंगा आएल
छी। अपनेसँ भेंट करए चाहैत छी।”
“ओ! रबीन्द्र
बाबू। बहुत भाग्यक बात। अपने जखन आबी, हम तँ घरेपर
छी।”
“हम आध-पौन
घंटामे आबि रहल छी।”
“आएल जाओ।”
फोन कटि गेल। हम
तैयार रहबे करी। बिदा भेलहुँ। पीटीसीसँ बाहर निकलि एकटा आटो १३० रुपयामे ठीक भेल
जे हमरा भीम बाबूक ओहिठाम पहुँचा दैत। करीब आधा घंटाक बाद आटो लक्षमी सागार, पंचायत
भवन लग पहुँचि गेल। आब ओहिठामसँ दक्षिन जेबाक रहैक, मुदा ओ
दक्षिन दिस छोड़ि सगतरि बौआएल आ तमसाइओ गेल। बहुत मोसकिलसँ अगल-बगल लोकसभकेँ पुछि
कए ओ पंचायत भवनसँ दक्षिन भीमबाबूक घरपर पहुँचल। आटोबला टाका लेलक आ बड़बड़ाइत चलि
गेल। हम भीमबाबूक ओहिठाम पहुँचि गेल रही। भीतर होइतहि ओ स्वयं भेटलाह। हुनकर
छोटपुत्र सेहो ओतहि रहथि। थोड़बे कालमे हुनकर श्रीमतीजी सेहो आबि गेलथि। भीम बाबू
आ हुनकर परिवारक लोकसभसँ भेंट कए बहुत आनन्द भेल। लगभग एकघंटा हम ओहिठाम रहलहुँ।
ओहिक्रममे तरह-तरहक गप्प-सप्प होइत रहल। ओ पुछलाह-
“कतए रुकल छी?”
“पीटीसीमे।”
“से किएक? एतहि
रहितहुँ।”
हम की कहितिअनि? चुप रहि
गेलहुँ।
घंटा भरिक बाद
हम हुनकासभसँ बिदा लेलहुँ। दरभंगा टाबरक रिक्सा केलहुँ। दरभंगा टाबरक हालति
पहिनोसँ बेसी खराप बुझाएल। चारूकातक जगह अतिक्रमण भए चुकल अछि। तरह-तरहक दोकानसभ
खुजल अछि। प्रात भेने सुनलिऐक जे ओहि अतिक्रमणसभकेँ हटाओल जा रहल छैक। दरभंगा टाबर
पहुँचि सभसँ पहिने एक गिलास लस्सी पीलहुँ। तकर बाद दयाल भंडार पहुँचलहुँ। हमसभ जखन
विद्यार्थी रही तखन दयाल भंडारक चुरा-दही बहुत नामी छल। हमसभ ओहिठाम बरोबरि खाइ।
ओहि स्मृतिकेँ फेरसँ जगओलहुँ। मुदा दयाल भंडारक आब ओ हालति नहि बुझाएल। आब ओहिठाम
अथराक अथरा दही राखल नहि देखाएल। सामान्य भात-दालि-तरकारीक भोजन बेसी गोटे करैत
देखेलाह। हमहूँ सएह खेलहुँ। तकर बाद घुमैत-फिरैत अपन डेरा वापस पहुँचि गेलहुँ।
पीटीसी स्थित
अपन डेरापर पहुँचलाक बाद डाक्टर रमण झाजीकेँ फोन केलिअनि। ओ पटनामे छलाह आ २२
मार्च कए दरभंगा अओताह। ओही दिन हुनकासँ भेंट करबाक मोन बनओलहुँ। दोसर दिन भोरे
पीटीसीक परिसरमे घुमए बिदा भेलहुँ। ओहि परिसरमे बहुत रास विभागीय कर्मचारी अधिकारी
लोकनि प्रशिक्षण हेतु अबैत छथि। मास-दू मास ओतए रहैत छथि, प्रशिक्षण
समाप्तिक बाद वापस अपन कार्यस्थानपर चलि जाइत छथि। ओहि परिसरमे प्रशिक्षणक सभटा
सरंजाम अछि। चारूकात तरह-तरहक फूल लागल अछि। भोरे-भोर प्रशिक्षु-लोकनिकेँ
अपने हाथ बाढ़नि लेने स्वच्छता अभियानमे लागल देखलहुँ। बहुत रास प्रशिक्षुसभ
व्यायाम करैत देखेलाह। भोरे सात बजे चाह पीलाक बाद ओ सभ अपन-अपन किलासमे चलि जाइत
छलाह। नओ बजे जलखै होइत छल। तकर बाद फेर तरह-तरहक किलास सभ चलैत रहैत छल। हमर
डेराक लगीचेमे प्रशीक्षुलोकनिक किलास होइत छलनि। तेँ प्रार्थनाक सस्वर गायन घरे बैसल
सुनैत छलहुँ। परिसरमे टहलैत काल एकटा हनुमान मंदिर देखाएल। ओ मंदिर प्रायः बंद
पड़ल अछि। कतहु केओ नहि छल। मंदिरमे ताला लागल छल। कहि नहि ओहिमे पूजा होइतो अछि
कि नहि?
कनीके
फटकी छोटसन शिव मंदिर सेहो देखाएल। ई मंदिर सभ कहिआ बनल, के
बनओलथि,
वर्तमानमे
एना उजरल-उपटल किएक अछि से नहि बुझि सकलहुँ।
भोरे चाह पीबाक
हेतु पीटीसी परिसरसँ बाहर निकलि रेलवे गुमतीक आसपास बनल दोकानमे गेलहुँ। ओतए
नान्हिटा कपमे चाह देल जाइत छल।
“एतनीटा कपसँ की होएत?” -मोने-मोन
सोचलहुँ। कहलिऐक-“तीन कप चाह दएह।”
तकर बाद ओ
बेरा-बेरी तीन कप चाह देलक। तकर बाद लागल जे चाह पीलहुँ। ओतए कचौरी छना रहल छल।
तरकारीक सुगंध चारूकात पसरि रहल चल। हम दोकान बलाकेँ पुछलिएक-
“जलखै तैयार अछि
की?”
“अबस्स।”
“तखन परसिए
दिअ।”
एकटा छिपलीमे
छओटा कचौरी तरकारी हमरा आगूमे राखि देलक। जे खा सकलहुँ से खेलहुँ। तकर बाद
निश्चिन्त भए वापस अपन डेरापर आबि गेलहुँ। योगानन्द बाबूकेँ फोन लगओलहुँ। घंटी
बजैत रहि गेल,
मुदा
ओ फोन नहि उठाबथि। थोड़े कालक बाद फेर फोन केलहुँ। तखनहु सएह भेल। आब की करी? आजुक
समयक की उपयोग कएल जाए? सोचलहुँ जे चली
आकाशवाणी। साइत किछुगोटेसँ संपर्क भए जाए। ई-रिक्शा पकड़ि दस मिनटक बाद आकाशवाणी
भवन पहुँचि गेलहुँ। ओहिठामक हाल तँ बेहाल छल। अधिकांश अधिकारी गायब छलाह। कोठरीसभ
खुजल छल। कुर्सीसभ राखल छल। मुदा ओहिपर बैसनाहरक कतहु अता-पता नहि। एकटा महिला
कर्मचारीकेँ पुछलिअनि-
“ई सभ कतए रहैत
छथि?”
“एही परिसरमे
अवस्थित स्टाफ क्वार्टरमे।”
ओहिठामक
परिस्थिति देखि मोनमे बहुत आश्चर्य आ दुख भेल। ओहीठामसँ फेर योगानन्द बाबूकेँ फोन
केलिअनि। एहि बेर ओ तुरंत फोन उठओलथि आ कहलथि-
“हमरा तँ साफे
बिसरा गेल छल,
नहि
तँ भोरे प्रातः भ्रमण कालमे ओमहरे आबि जइतहुँ। अहाँ छी कतए?”
“आकाशवाणी
भवनमे। मुदा एतए केओ अछि नहि। हम जल्दीए एतएसँ अहाँसँ भेंट करए बिदा होएब।”
“ठीक छैक। अहाँ
लहेरिआसराय टावरपर चलि आउ। हम ओतहि भेटि जाएब।”
ओहिठाम पाँच
मिनट आर रुकि गेलाक बाद हम लहेरिआसराय बिदा भेलहुँ। ओतए बिदा हेबा सँ पूर्व
योगाबाबूकेँ फोन कए देलिअनि। तकर बाद ई-रिक्शा पकड़लहुँ । लहेरासराय टावरपर
पहुँचले छलहुँ कि योगाबाबूक फेर फोन आएल।
“कतए पहुँचि
गेलहुँ?”
“हम लहेरासराय
टाबरपर ठाढ़ छी।”
“लगेमे हनुमान
मंदिर छैक। ओतए चलि जाउ। आराम रहत। हम ओतहि पहुँचि रहल छी।”
हम हनुमान
मंदिरमे जा कए दर्शन केलहुँ आ ओतहि आरामसँ बैसि गेलहुँ। कनीके कालक बाद
योगाबाबूकेँ हुलकैत देखलहँ। एहन सहज, सरल आ सौम्य
व्यक्ति छथि योगाबाबू से तँ अनुमान छलहे। तुरंत हमसभ रिक्सासँ हुनका ओहिठाम बिदा
भए गेलहुँ। हम आ योगाबाबू रिक्सापर बैसल रही, आपसमे
मैथिलीक दशा आ दिशापर बतिआइत रही। “मैथिली पोथी छपैत तँ बहुत अछि मुदा केओ ओकरा
कीनि कए पढ़ए नहि चाहैत अछि। पोथीसभ मोफतमे उपहारस्वरुप बाँटल जाइत अछि। ई कोनो
नीक लक्षण नहि अछि। एना कतेक दिन चलत?” मैथिलीक कतेक
चिंता करैत छलाह योगाबाबू।
थोड़बे कालमे हम
हुनका संगे कबिलपुर स्थित हुनकर घर पहुँचि गेल रही। हमरा तुरंत कुर्सीपर बैसओलथि।
कोलड्रिंक अनलथि। होनि जे कतेक आग्रह करिअनि, की की
ने खुअबिअनि। मुदा हमरा तँ मंगलक व्रत रहए। किछु खा नहि सकैत छलहुँ। योगाबाबूक
घरेलु पुस्तकालयमे तरह-तरहक पुस्तकसभ भरल छल। ओ ओहिमे सँ ताकि-ताकि हमरा अनेक
मूल्यवान पोथीसभ देलनि। करीब घंटा भरि हम ओहिठाम रहलहुँ। बहुत आनन्द भेल। हुनकर
सहजरता,
सरलता
आ आत्मीयताक जतेक प्रशंसा कएल जाए से कमे होएत। तकर बाद हम ओहिठामसँ बिदा लेलहुँ।
योगाबाबू बहुत दूर धरि हमरा अरिआति देलनि। ततबे नहि, दरभंगा
टावर जा रहल एकटा युवकक मोटर साइकिलपर बैसा देलनि जाहिसँ हम आरामसँ दरभंगा वापस जा
सकी।
मोटर साइकिलसँ
थोड़बे दूर गेलाक बाद हम उतरि गेलहुँ। रिक्सा केलहुँ आ बलभद्रपुर बिदा भेलहुँ। ओतए
हमर ससुरकक पिसिऔत भाए रहैत छथिन। ओ पंडौल कालेजमे अंग्रेजीक प्राध्यापक रहथि।
बहुत पहिनेसँ बलभद्रपुरमे दूमहला मकान बनओने छथि। मुदा हमरा ओहि मकानक अखिआस नहि
भए रहल छल। बहुत दिन समय बीति गेलैक ओतए गेला। हमर श्रीमतीजीक इच्छा रहनि जे हुनकर
सभक हाल-चाल लेल जाए। हमरा एतबा अनुमान रहए जे हुनकर घर डाक्टर एन.पी. मिश्रक घरसँ
आगू जा कए कोनपर छनि। लोकसभसँ पुछैत जेना-तेना हम हुनकर घर ताकि सकलहुँ। घरक आगूमे
ठाढ़ छलहुँ। घरमे ओ चुहचुही नहि बुझाएल। “पता नहि की हाल छनि?” अगल-बगलक
लोक कहलक जे हुनकर पत्नीक देहान्त भए गेलनि। मुदा अपने जीबैत छथि। हम घरक घंटी
बजओलहुँ तँ एकटा बूढ़ बाहर भेलाह। कहैत छथि-
“हम किरायेदार
छी।”
“ओ अपने छथि कि
नहि?”
“ओ अपने
बच्चासभक संगे दिल्लीमे रहैत छथि।”
आब की करितहुँ? श्रीमतीजीकेँ
सभटा समाचार देलिअनि आ ओहिठामसँ तुरंत वापस भए गेलहुँ। वापसीमे लगीचेमे कांग्रेस
आफिस देखाएल। मोन पड़ि गेल विद्यार्थी अवस्थाक सन् १९६८क ओ घटना। हमर गामक
प्रसिद्ध आ यशस्वी समाजसेवी स्वर्गीय विश्वंभर झाजी हमरा तत्कालीन बिहार सकरकारक
शिक्षा मंत्री स्वर्गीय नागेन्द्र झाजी हेतु एकटा चिठ्ठी देने रहथि। ओ ओहि पत्रमे
हमरा किछु मदति करबाक अनुशंसा केने रहथिन। हम कांग्रेस आफिसमे दस बजे राति धरि
मंत्रीजीक प्रतीक्षा करैत रहलहुँ। तखन जा कए ओ अएलाह। हम हुनका लग गेलहुँ आ चिठ्ठी
देलिअनि। ओ चिठ्ठी खोलि कए पढ़लनि, किछु-किछु कहबो
केलनि। साइत किछु आश्वासन देलनि। तकर बाद ओ किछु नहि केलाह। हम बाटे तकैत रहि
गेलहुँ। कहि नहि कोना हम एतेक राति कए गाम वापस जा सकलहुँ।
२० मार्च २०२२क
अनुज सुरेन्द्रजीक संगे साढ़े दस बजे टैक्सीसँ गाम बिदा भेलहुँ। गाम जेबासँ पहिने
हम दुनूगोटे सतलखामे अपन बहिनसँ भेंट केलिअनि। ओ हमरा लोकनिक स्वागतमे जान लगा
देलनि। भोजनमे सचार लगा देलनि। ततेक सामग्री छल जे हम दसो दिनमे खा सकितहुँ कि
नहि। बहुत मोसकिलसँ ओकरा कम कएल। हमर बहिनक बेटी, नाति
सेहो रहथि। सभगोटेसँ नीकसँ गप्प-सप्प भेल। जाइत काल ओ एकमोटा उपहार पकड़ा देलनि।
कतबो कहलिअनि जे वापसीमे हबाइ जहाजसँ जेबाक अछि। एतेक सामान कोना जाएत? मुदा ओ
नहि मानलनि। ओकरा हमरा दैए कए मानलनि। तकर बाद हमसभ गाम बिदा भेलहुँ। हमर बहिन
हमरासभकेँ बड़ीकाल धरि रस्तापर ठाढ़ भए जाइत देखैत रहि गेलथि।
गाम पहुँचि अपन
दरबाजापर जाइते उदास भए गेलहुँ। आइ जौँ माए रहितथि तँ की आनंद रहैत। अखन धरि दौड़ि
गेल रहितथि। हुनका गोर लगने रहितहुँ। हुनकर आशीर्वाद प्राप्त कए कतेक आनंदित भेल
रहितहुँ?
मुदा
आब ओ कतए भेटतीह? इएह तँ एहि दुनिआक विचित्रता छैक। जे गेल
से फेर घुरि नहि आओल। दुनिआ चलैत रहल। इएहसभ सोचैत रहलहुँ। थोड़ेकाल अपना ओहिठाम
बैसलाक बाद हमसभ शल्लुजीक ओहिठाम गेलहुँ। दरबज्जेपर बरुआसभक मरबा बनल छल। पाँचटा
बरुआक उपनयन संगे हेबाक छलैक। पहिने दियादीमे जे सभसँ जेठ से सभसँ पैघ बरुआक गुरु
होइत छलाह। हमरो गुरु ताही नियमसँ हमर पितिऔत बाबा स्वर्गीय शक्तिनाथ मिश्र भेल
रहथि। हमरासँ छोट भाए (सुरेन्द्रजी)क गुरु हमर बाबा (स्वर्गीय श्री शरण मिश्र) भेल
रहथि। मुदा पता लागल जे एहिठाम अपन-अपन पोताक हुनकर अपन बाबा गुरु बनल छथिन। साइत
आब इएह परंपरा भए गेल होइक, किंबा आब लोकक
सोचक परिधि संकुचित भेल जाइत होइक। ई कोनो एक्के-ठामक बात नहि अछि। समाज बदलि रहल
अछि। सभठाम परिवर्तन देखाएत, नीको-अधलाहो।
ओहिठाम थोड़े काल बैसलहुँ। शल्लूजी व्यस्तताक अछैत फोनोसँ हाल-चाल लेलनि। हमसभ
थोड़ेकालक बाद सिनुआरा टोल स्थित कमलाकान्तजीक ओहिठाम हेतु बिदा भेलहुँ। गामक
रस्तामे,
चौकपर
आ आगूओ सौंसे पक्काक घर बनि गेल अछि। अड़ेर चौकपर तँ दोकान भरि गेल अछि। लगभग तीन
सए दोकान सड़कक काते-काते चलि रहल अछि। सुनबामे आएल जे अड़ेर हाट आब पुरने जगहपर
लागत। बीचमे विष्णुपुरक मरचरामे लगैत छल।
कमलाकान्तजीक
ओहिठाम गजबकेँ स्वागत भेल। हुनकर आवास बहुत सुखद आ आकर्षक अछि। मकानक
मुख्यद्वारिपर कमलाकान्तजीक नाम मोट-मोट अक्षरमे लिखल अछि। मकानमे अंग्रेजी आ देशी
दुनू तरहक शौचालयक व्यवस्था अछि। अतिथिक रहबाक हेतु फराक कोठरी छनि। अपन निजी
पुस्तकालयमे बहुत रास मैथिलीक पोथीसभ रखने छथि। स्वर्गीय सुभद्र झाजीक बहुत रास
किताबसभ ओहिठाम देखाएल। कमलाकान्तजीक संगे गप्प-सप्पमे बहुत नीक लागि रहल छल।
बीच-बिचमे तरह-तरहक जलखैसभ से चलिए रहल छल। चाह-पान सेहो भेबे केलैक। आब
सुरेन्द्रजी अगुता रहल छलाह । यद्यपि ओहिठामसँ उठबाक मोन नहि कए रहल छल, तथापि
मोन मारि कए बिदा भेलहुँ। वापस शल्लूजीक ओहिठाम उपनयन देखलहुँ। बीच-बीचमे पानि
सेहो भए रहल छल। मौसम खराप भेल जा रहल छल। तथापि गाममे किछुगोटेसँ भेंट केलहुँ।
तकर बाद हमसभ वापस दरभंगा हेतु प्रस्थान केलहुँ। रस्ता भरि पानि होइत रहल। हमसभ
दरभंगा पहुँचए बला रही कि शल्लुजीक फोन आएल।
“भोजनक बिझो करा
रहल छिअ।”
“हमसभ तँ दरभंगा
पहुँचि रहल छी।”
“एहिठाम आब भोजन
हेतैक।”
“कोनो बात नहि।
काल्हि फेर आएब।”
से जानि हुनका
प्रसन्नता भेलनि। दिलीमोड़सँ पहिने फलसभ बिका रहल छलैक। बेस जुआएल केरासभ दोकानमे
देखाएल। छओटा केरा कीनि लेलहुँ। बाहर पानि झमाझम बरसि रहल छल। एहनमे रातिमे भोजन
करबाक हेतु कतहु जाएब संभव नहि छल। रातिमे ओएह केरासभ काज आएल। थोड़बे कालमे हमसभ
दरभंगा अपन डेरापर पहुँचि गेलहुँ।
रातिभरिक
विश्रामक बाद आइ फेर गाम दिस जेबाक तैयारीमे लागि गेलहुँ। साढ़े दस बजेक आस-पास
हमसभ गाम बिदा भेलहुँ। कपिलेश्वर पहुँचि सुरेन्द्रजीकेँ महादेवक दर्शनक इच्छा
भेलनि। हमहूँ दर्शन करबाक हेतु कारसँ उतरलहुँ। वाहन चालक सेहो उतरि गेलाह। सभगोटे
फूल-बेलपात लए महादेवक दर्शन करए संगे बिदा भेलहुँ। हम आ वाहन चालक तँ थोड़बे कालक
बाद बाहर भए गेलहुँ। मुदा सुरेन्द्रजी तँ जे मंदिरमे पैसलाह से निकलबाक नामे नहि
लेथि। थोड़े काल तँ शांतिपूर्वक हुनकर बाट तकैत रहलहुँ। तकर बाद हुनका ताकए
लगलहुँ। आखिर ओ गेलाह कतए? तकैत-तकैत चारूकात
घुमि गेलहुँ। वाहन चालक कारमे वापस जाए लगलाह। तखन हुनका बामा कात एकटा छोटकी
मंदिरमे पूजा करैत देखलहुँ। हुनका देखितहि हम चिकरलहुँ। ओ हमरा दिस नहि तकलाह। तकर
बादो ओ आन-आन मंदिरसभमे पूजा करैत रहलाह। तखन कएले की जा सकैत छल? कारमे
जा कए बैसि गेलहुँ आ धैर्यपूर्वक हुनकर प्रतीक्षा करए लगलहुँ। पन्द्रह बीस मिनट आर
ओहिना रहलहुँ कि हहाइत-फुफाइत तमसाएल सुरेन्द्रजीकेँ अबैत देखलहुँ-
“एही लेल हम
ककरो संगे महादेवक पूजा हेतु नहि जाइत छी। पूजामे तँ समय लगिते छैक।”
कपिलेश्वरसँ
निकलि थोड़बे कालक बाद गाम पहुँचलहुँ। पता लागल जे शल्लुजीक ओहिठाम ब्राह्मण भोजन
शुरु भए गेल अछि। तुरंत ओहिठामसँ भोजन हेतु गेलहुँ। दरबाजापर टेबुल-कुर्सी लागल
छल। लोकसभ सुविधानुसार भोजन करैत छलाह। हमहूँसभ भोजन हेतु टेबुल-कुर्सीपर बैसलहुँ।
चूरा-दही,
तरकारी, रसगुल्ला, गुलाबजामुन
खाइत-खाइत थाकि गेलहुँ। तइओ सभ किछु नहि सठा सकलहुँ। पातपर बहुत किछू छुटि गेल।
भोजन समाप्तिक बाद तामक लोटा, डोपटा बिदाइमे
भेटल। ओहीक्रममे सालों बाद कैक तरहक गप्प-सप्प भेल, कैकगोटेसँ
भेंट भेल। फेर अपना ओहिठाम आबि पारिवारिक चर्चामे भाग लेलहुँ। आब साँझ परितए। वापस
बिदा भेलहुँ दरभंगा। बिदा हेबासँ पूर्व भगवतीकेँ प्रणाम केलहुँ आ सात बजे अपन
डेरापर थाकल-झमारल पहुँचि गेलहुँ।
२२ मार्च २०२४।
आइ हमर यात्राक पाँचम दिन छल। आइ दरभंगे रहबाक छल। अजुका प्रमुख कार्यक्रममे
डाक्टर रमण झा जीसँ भेंट करबाक छल। आकाशवाणी भवन से जेबाक छल। अतिथिगृहक
हिसाब-किताब करबाक छल।
भोरे स्नान-पूजा
केलाक बाद चाह पीबाक हेतु पीटीसीक मेसमे गेलहुँ। सात बजेसँ चाह प्रारंभ भेल।
प्रशिक्षु लोकनि गिलास लैत छलाह, टपसँ चाह ढारि
लैत छलाह। एकटा टपमे सामान्य चाह छल, दोसरमे कनी कम
चिन्नी बला। जकरा जे पसिंद होइ। हमहूँ सामान्य चिन्नी बला टपसँ चाह ढारलहुँ। चाह
संगे बिस्कुटक प्रबंध सेहो रहैक। चाह पीलाक बाद वापस अपन डेरा आबि गेलहुँ। नओ बजे
फेर ओतए जलखै करए गेलहुँ। जलखैमे पोहा, समतोला भेटि रहल
छलैक। चाहो पीबि सकैत छी। प्रशिक्षुसभक संगे पाँतिमे लागि गेलहुँ। सभगोटे
अपना-अपना हाथमे थारी, कटोरी लेने ठाढ़ रहैत छल। मेसक बारिक
बेरा-बेरी सभक थारीमे पोहा ढारैत जा रहल छलाह। लोकसभ आगू बढ़ैत जा रहल छल। एही
तरहेँ कारोबार चलि रहल छल। हमहूँ अपन थारीमे पोहा लेलहुँ, एकटा
छोटसन समतोला लेलहुँ आ टेबुलपर बैसि कए जलखै केलहुँ। तकर बाद वापस अपन कोठरी आबि
गेलहुँ। ताबे पीटीसीक कार्यालय खुजि गेल छल। हम आजुक चारू टाइम चाह, जलखै, भोजनक
२६० रुपया जमा कए देलिऐक। पाँचदिन रहबाक किराया ८५० रुपया सेहो जमा करा देलिऐक।
तकर बाद सहायक निदेशक (प्रशासन) श्री जय प्रकाशजीसँ भेंट केलिअनि आ ओहिठाम हमर
सुखद रहबाक ओरिआन करबाक हेतु धन्यवाद देलिअनि। अपन उपन्यास, ‘ठेहा
परक मौलायल गाछ’क एक
प्रति सेहो देलिअनि। ओकर बाद पीटीसी परिसरसँ बाहर निकलि गेलहुँ।
डाक्टर रमण
झाजीसँ फोनपर बात भए गेल रहए। ओ दिल्लीसँ पटना होइत दरभंगा पहुँचि गेल रहथि। आब
हुनकासँ भेंट भए सकैत अछि । से जानि हुनकर डेरा दिस बिदा भेलहुँ। मोसकिलसँ दस
मिनटमे हुनकर डेरा लग ई-रिक्शा उतारि देलक। ओहिठामसँ राजकुमारगंज स्थित हुनकर बीणा
कमल अपार्टमेंट देखा रहल छल। हम आगू बढ़लहुँ। फ्लैटक घंटी बजबितहि ओ तुरंत अपने
बाहर आबि गेलाह आ बहुत आत्मीयताक संग भीतर लए गेलाह। ओहिठाम अनेक साहित्यिक विषयपर
चर्चा भेल। अपन लिखल अनेक पोथीसभ देलनि। बहुत नीक जलखै भलैक। हुनकर पुत्रसँ सेहो
परिचय भेल। घंटा भरि ओहिठाम रहि बहुत आनन्दित भेलहुँ। आब ओहिठामसँ चलबाक छल। ओ
बहुत दूर धरि अरिआति देलनि। तकर बाद वापस बिदा भेलहुँ अपन डेरा पर। काल्हि निर्मली
जेबाक छल। डेरापर पहुँचि सामानसभ सरिओलहुँ। तकर बाद दूरदर्शन खोललहुँ। थोड़े काल
निश्चिन्तसँ समय बितओलहुँ। बहुत नीक लागि रहल छल। एहि बेर यात्राक दू भाग संपन्न
कए आब निर्मली ‘सगर
राति दीप जरय’
कार्यक्रममे भाग लेबाक हेतु काल्हि ट्रेनसँ जेबाक छल। परिसरमे नीचाँ प्रशिक्षुसभक
बिदाइ समारोहक अवसरपर सांस्कृतिक कार्यक्रम भए रहल छल। ओहिठाम भए रहल नृत्य-संगीत
कार्यक्रमक प्रतिध्वनि हमर कोठरी धरि स्पष्ट आबि रहल छल।
२३ मार्च २०२४।
आइ निर्मली जेबाक छल। भोरे स्नान-ध्यान कए गुमती लगक दोकानपर चाह पीबाक हेतु बाहर
निकललहुँ। ओतए पहुँचैत छी कि दोकान बला कहैत अछि-
“दू दिनसँ कतए
चलि गेल रहिऐक, बाबा?”
“गाम।”
“ओ।”
“तीन कप चाह
दएह। तकर बाद जलखैओ दइए दिह।”
“ठीक छैक बाबा।”
ओ गिलासमे तीन
कप चाह देलक। ओ कप की छल बुझू जे चुकरी छल। तेँ ने तीन कप चाह लिऐक।
निश्चित समयपर
हम दरभंगा टीसन पहुँचि गेल रही। दरभंगासँ निर्मली जेबाक हेतु ट्रेन दरभंगा टीसनसँ
एगारह बाजि कए दस मिनटपर खुजितैक। मुदा ट्रेन कोन प्लेटपार्मपर लागत तकर उद्घोषणा
हेबे नहि करैक। हम अपन सामानक संग प्लेटफार्म संख्या एकपर पहुँचि गेल रही। मुदा
परेसान रही जे ट्रेन कतए लागत, कहीं छुटिए ने
जाए। कुलीसँ सेहो गप्प केलहुँ। ओ कहलक-
“एतहि रहू। ट्रेन अएलाक बाद हम अपने आबि जाएब आ
अहाँकेँ ट्रेनमे चढ़ा देब।”
तकर बाद ओ
निपत्ता भए गेल। “पता नहि ओ समयपर आबि सकत कि नहि?” -एही
गुनधुनमे रही कि हमर ग्रामीण अशोकजी भेटलाह। हुनकासँ दुटप्पी केलहुँ। हुनकर भाए
हैदराबाद जेथिन,
मुदा
ट्रेन छओ घंटा विलंबसँ अएबाक सूचना रहैक। हम सभ आसपासमे रही कि ट्रेन आबि गेल।
सामानसभक संगे हम आगू चलि गेल रही। फेर वापस इंजिन दिस अएलहुँ। दू डिब्बाक बाद हमर
डिब्बा बी एक लागल छल। ओहिमे धरादर पैसि गेलहुँ। जान-मे-जान आएल। पाँचे मिनटक बाद
ट्रेन खुजि गेल। हमर शायिकापर केओ आर सुतल छल। ओकरा उठओलहुँ। ओ अपन स्थानपर चलि
गेल आ हम अपन शायिकपर बैसि गेलहुँ। सामने एकटा सहयात्रीसँ गप्प-सप्प होमए लागल। ओ
रेलवेमे अभियंता रहथि, काजसँ घोघरडीहा जा रहल छलाह। हुनकासँ
बहुत रास जानकारी भेटल। ओहि इलाकामे केना गामक-गाम बड़का-बड़का मकान खाली पड़ल अछि, मालिकसभ
बाहर रहैत छथि। मकानक रक्षाक हेतु रखबारसभकेँ दस-बारह हजार महिना दरमाहा दैत छथि।
हम पुछलिअनि-
“अपने कतए रहैत
छी?”
“गया।”
“अहाँकेँ गाममे
घर अछि कि नहि?”
“अछि किएक ने।
अपने बनओने छी। मुदा छोटसन जाहिसँ गाममे जा कए अधिकारपूर्वक ससम्मान अपन घरमे रहैत
छी।”
“मकान बनबएमे
कतेक खर्च भेल?
“अढ़ाइ लाख।”
“कहिआ बनओने रही?”
“पाँच वर्ष
पूर्व। आब यदि ओहन मकान बनाओल जाएत तखन पाँच लाख लागि सकैत अछि। ओहिसँ कम नहि।”
हम हुनकर बातसँ
बहुत प्रभावित रही। प्रवासीक हेतु गामक घरक हुनकर उदाहरण नीक बुझाएल। थोड़े कालक
बाद हुनकर टीसन आबि गेल रहनि। ओ घोघरडीहामे उतरि गेलाह। हम उमेशजीकेँ फोन लगओलहुँ।
ओ पुछैत छथि-
“कतए पहुँचलहुँ?”
“घोघरडीहा।”
“ठीक छैक। हम
निर्मली टीसन पहुँचि रहल छी”
कनीके कालमे
ट्रेन निर्मली पहुँचि गेल। हम सामान सहित उतरि गेलहुँ। हम ठामहि छलहुँ कि देखैत छी
उमेशजी एकगोटेक संगे दे-दनादन दे-दनादन निर्मली टीसनपर पहुँचि रहल छथि। हुनकर
प्रसन्नता देखैत बनैत छल। एहि बेरक यात्रामे कतेकोगोटे भेटलाह, कतेको
ठाम स्वागत भेल,
मुदा
ककरो आननपर एहन प्रसन्नता नहि देखने रही। हमसभ सामानक संगे टीसनसँ बाहर भेलहुँ। ओ
दूगोटे दूटा मोटर साइकिलसँ आएल रहथि। एकटापर हमर सामान राखल गेल। दोसरपर हम
उमेशजीक संगे बैसलहुँ। मोसकिलसँ दस मिनटमे हम निर्मली स्थित हुनकर घर पहुँचि गेल
रही।
उमेशजीक घरमे
पहुँचि लागल जेना अपन घर पहुँचि गेल छी। चौकीपर नीकसँ ओछाओल गेल साफ चमचम करैत
तोसक,
चदरि।
हम ओतए बैसि आश्वस्त होइत छी कि ऊपरसँ आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी अबैत छथि।
हुनकर कृषकाय परंतु तेजोमय आनन देखैत बनैत छल। हुनकर सहज, सरल आ
भावुक व्यवहारसँ बहुत प्रभावित भेलहुँ। बड़ीकाल धरि आपसमे गप्प-सप्प होइत रहल। कहि
नहि सकैत छी जे हुनकासँ भेंट केलाक बाद कतेक आत्मीयताक अनुभव भेल। हमर यात्रा सफल
भेल। जगदीश बाबूक समस्त परिवार ‘सगर राति दीप जरय’
कार्यक्रमक तैयारीमे लागल छल। अद्भुत दृश्य छल ओ। साइते कोनो एहन परिवार होएत, जतए
बच्चासँ बूढ़ धरि एहि तरहेँ मैथिलीक सेवामे लागल होअए।
हमरा लोकनि
थोड़ेकाल विश्राम केलहुँ। आब कार्यक्रमस्थलपर जेबाक छल।
“की पहिरी? धोती
कुरता कि सर्ट-पैंट।”
“धोती-कुरता
बढ़िआँ रहत।” -जगदीश बाबू कहलथि।
“आ से जे मोन
होनि,
जाहिमे
आराम बुझानि।” -उमेशजी बजलाह।
हम धोथी कुरता
लइए गेल रही। सएह पहिरबाक विचार कएल। तकर बाद हमसभ लगभग चारि बजे कार्यक्रमस्थल
हेतु बिदा भए गेलहुँ।
‘सगर
राति दीप जरय’क
कथागोष्ठी ‘श्यामा
कंपलेक्स सह विवाह हॉल- निर्मली’मे
आयोजित छल। ओ परिसर बहुत नीकसँ सजल-धजल छल। सुसज्जित मंच, तकर
सामने सएसँ बेसीए कुर्सी लागल छल। रातिमे विश्रामक हेतु सेहो उचित व्यवस्था कएल
गेल छल। बेरा-बेरी लोकसभ आबि रहल छलाह। हमर ग्रामीण आ मित्र आदरणीय डाक्टर
कमलाकान्त भंडारीजी आबि गेल रहथि। तकर थोड़बे कालक बाद आदरणीय श्री कामेश्वर
चौधरीजी आइ.इ.एस. (सेवानिवृत्त) सेहो आबि गेलथि। हुनकासँ ट्रेनेमे गप्प भेल छल।
ताबे हम सकड़ी टीसन टपि गेल रही। आब ओ बहुत अफसोच करए लगलाह। हुनका सेहो
कार्यक्रममे भाग लेबाक मोन रहनि। ओ गामेमे रहबो करथि। हम हुनका अपन कार्यक्रमक
पूर्वसूचना नहि दए सकल रहिअनि। मुदा ओ जेना तेना पहुँचिए गेलाह। असलमे ओ सुच्चा
मैथिली प्रेमी छथिए, ताहिपर अपन इलाकामे सेहो होइत छल, से
जानि ओ अपनाकेँ नहि रोकि सकलाह।
लगभग सात बजे
दीपप्रज्ज्वलनसँ कार्यक्रमक प्रारंभ भेल। तकर बाद भगवती गीत गाओल गेल। फेर प्रारंभ
भेल अथितिलोकनिक स्वागतक कार्यक्रम। फेर एक्कैसटा पुस्कक विमोचन भेल। ओहिमे
कार्यक्रममे हमरो दूटा उपन्यास (ठेहा परक मौलायल गाछ आ पटाक्षेप)क विमोचन भेल। हम
अपन कथा,
गाछ,क पाठ
सेहो केलहॅँ।
कार्यक्रमक
क्रममे स्थानीय झंझारपुर कालेजक प्राचार्य आदरणीय डाक्टर नारायणजी आदरणीय
श्रीजगदीश प्रसाद मंडलजीकेँ हुनकर पोथी कीनि कालेजक दिससँ हुनका साढ़े चौबीस हजारक
चेक मंचपर प्रदान केलनि। निश्चितरूपसँ ई बहुत प्रशंसनीय काज भेल। कार्यक्रमक अंतमे
आदरणीय डाक्टर श्री अशोक अविचलजी अपन बात बहुत मार्मिक ढंगसँ रखलथि। कार्यक्रममे
भाग लेनिहार सभ कथाकारकेँ उत्साहित केलनि। आयोजक सहित संयोजककेँ सेहो धन्यवाद
देलनि। असलमे उमेशजीक सतत प्रयाससँ कार्यक्रम भेबो कएल बहुत नीक। कोनो तरहक
दिक्कति नहि भेल। जलखै, चाह, भोजन
सभक उत्तम ओरिआन छल। सभ रचनाकार, समीक्षक, आगन्तुक
विद्वानलोकनिकेँ यथोचित अवसर देल गेलनि, सम्मानित कएल
गेलनि।
सगर राति दीप
जरय कार्यक्रममे अनेक मूर्धन्य साहित्यकार लोकनिसँ भेंट भेल। राति भरि चलए बला एहि
ओहिठाम बिताओल गेल आनन्दपूर्ण क्षण सदिखन मोन पड़ैत रहत। हमर सुख-सुविधा आ यथोचित
सम्मान हेतु जे किछु संभव छल से उमेशजी केलनि। आदरणीय डाक्टर श्री उमेश मंडलजी
एवम् हुनकर समस्त सहयोगी लोकनिकेँ एहि हेतु हार्दिक आभार, धन्यवाद।
आब भोर भए गेल
छल। कार्यक्रम समाप्त भए गेल। हमरा वापस जेबाक छल। दरभंगा जा कए दिल्लीक हेतु हबाइ
जहाज पकड़बाक छल। उमेशजी पहिनेसँ हमरा लेल टैक्सी ठीक कए देने रहथि। हम साढ़े आठ
बजे दरभंगा हबाइ अड्ढा पहुँचि गेलहुँ। ओतए पहुँचि बहुत आश्वस्त भेलहुँ। सही समयपर
जहाज उड़ि गेल। हम निश्चित समयसँ आध घंटा पहिने डेढ़ बजे दिल्ली हबाइ हड्डापर उतरि
गेलहॅँ। एहि तरहेँ दरभंगा, अड़ेर डीह, निर्मलीक
यात्रा बहुत सफलतापूर्वक संपन्न भेल।
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रबीन्द्र नारायण मिश्र
ग्रेटर नोएडा, 01
अप्रैल 2024
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