मातृशरणम्
बहुतदिनसँ
कामाख्या भगवतीक दर्शन करबाक इच्छा छल।
सोमनाथ यात्राक समयमे हमर श्रीमतीजीक ठेहुनमे समस्या भए गेल रहनि । तकरा
ठीक हेबामे कैकमास लागि गेलनि। समय लगलनि,मुदा उपचारसँ बहुत सुधार भेलनि। जखन ओ
फेरसँ टहलनाइ शुरू कए देलनि तँ एकदिन कहैत छथि-
“आब हमसभ
कामाख्या जेबाक कार्यक्रम बना सकैत छी।”
”ठीक छैक। आब
जखन अहाँ सहमति दए देलिऐक तँ चलबे करब।”
तकर बाद सरकारक इसंपदा
वेबसाइटपर जा कए गुवाहाटीमे रहबाक हेतु
घरक उपलब्धता जँचैत रहलहुँ। एकदिन संयोगसँ
नओ अप्रैलसँ चौदह अप्रैल धरिक रहबाक जोगार बुझाएल। बीचमे एगारह अप्रैल कए
खाली नहि रहैक। नओसँ चौदह अप्रैलक बीचमे
अलग-अलग तारिखक हेतु चारिबेर आरक्षण करबए पड़ल। कारण एक्के कोठरी सभदिनक हेतु
उपलब्ध नहि रहैक। जे भेटल,जेना भेटल ओकरा तुरंत आनलाइन आरक्षित करबा लेलहुँ। तकर
बाद गुवाहाटी जेबाक आ वापसीक हबाइ जहाजक टिकट सेहो बनबा लेलहुँ। तकर बादे हुनका
कहलिअनि-
“हेयै! सुनैत छी।”
“की बात?”
“एमहर आउ। देखिऔ
ने की छैक।”
हुनको उत्सुकता
भेलनि। हमर लैपटाप लग पहुँचलथि। हम हुनका गुवाहाटीमे सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे कएल
गेल रहबाक व्यवस्थाक जानकारी देलिअनि। ओ आश्चर्यचकित रहथि जे एतेक जल्दी ई सभ कोना
भए गेल।
एगाराह अप्रैलक
रहबाक व्यबस्था अखन करबाक छल। कैकटा विकल्प मोनमे अबैत छल। जेना कि ओहिदिन
कामाख्यामे रहि जाइ,चीरोभाइ ओहिठाम चलि जाइ,किंवा शिलांगमे रहबाक जोगार करी।
एहीक्रममे नेटपर देखैत रही कि शिलांगमे आयकर विभागक अतिथिगृह हेबाक जनतब भेटल।
संबंधित अधिकारीक फोन नंबर सेहो भेटि गेल। हम हुनका अपन जरुरतिक बारेमे लिखलिअनि।
आश्चर्य तखन भेल जे थोड़बे कालक बाद हुनकर सहमति भेटि गेल। एहि तरहेँ एगारह अप्रैल
कए शिलांगमे रहबाक जोगार सेहो भए गेल।
गुवाहाटी आ शिलांगमे
रहबाक जोगार भए गेल छल। दुनूदिसका हबाइक जहाजक टिकट सेहो भए गेल छल। आब कामाख्या
भगवतीक दर्शनक जोगार करबाक छल। नओ अप्रैल कए गुवाहाटी हबाइ जहाज साढ़े एगारह बजे
पहुँचैत। तकरबाद सभसँ पहिने डेरा जेबाक होएत। ओहिठाम व्यबस्थित हेबाक बादे किछु
आओर कएल जाएत। तेँ ओहिदिन कामाख्या भगवतीक दर्शनमे दिक्कति भए सकैत अछि। से सोचि
हम दस अप्रैल कए कामाख्या भगवतीक दर्शन करबाक विचार केलहुँ। ओहिठाम दर्शन करबाक
हेतु विशेष दर्शनपर्ची आनलाइन सात दिन
पहिने कटनाइ शुरू होइत छैक। अस्तु, चारि अप्रैल कए हम कामाख्या भगवतीक विशेषदर्शनक हेतु
आनलाइन टिकट कटओलहुँ। ताहि हेतु प्रति यात्री पाँचसए एक रुपया देबाक होइत छैक।
दुनूगोटेमे एक हजार दू रुपया आनलाइन भुगतान केलाक बाद हमरसभक विशेष दर्शन टिकट सेहो
कटि गेल। से तँ भेल,मुदा दूदिनक बाद हमर श्रीमतीजीक मोन खराप भए गेलनि। बोखार,खाँसी,आँखि
लाल कतेको तरहक सिकाइतसभ भए गेलनि। आब की करी? हम तँ परेसान भए गेलहुँ। हबाइ जहाजक
टिकट रद्द कराएब तँ भारी घाटामे पड़ब। एही समयमे बुझाएल जे हबाइ जहाजक टिकट लेबा
काल रिफंडेबल टिकट लेबाक चाही जाहिसँ किछु गड़बड़ भेलापर रुपया वापस भए जाए। मुदा
एहि बेर तँ हम फँसि गेल रही। मोने-मोन माताकेँ गोहरेलहुँ। आब जानह तूँ हे माता!
तुरंत हुनका
डाक्टर लग लए गेलहुँ। हुनका आँखि उठि गेल रहनि,देहमे बोखार रहनि,सर्दी-खाँसी तँ
रहबे करनि। डाक्टरसभ दबाइ लिखलक। तुरंत दबाइ कीनलहुँ। संयोग एहन भेल जे दोसरेदिनसँ
हुनकामे बहुत सुधार होमए लगलनि। दूदिनक बाद तँ बारह आना ठीक भए गेलथि।
“आब कोनो चिंता
नहि।“-हम मोने-मोन सोचलहुँ।
तेसरदिन भेने
हुनकर हालति बहुत सुधरि गेल रहनि,बोखार उतरि गेल रहनि,सर्दी-खाँसी से कम भए गेल
रहनि। आँखि सेहो आब लाल नहि छलनि। आब लागल जे बचि गेलहुँ। हमसभ प्रसन्न रही।
माताकेँ वारंबार धन्यवाद देलिअनि ।
आखिर नओ अप्रैल
आबि गेल। भोरे सातबजे हबाइअड्डा पहुँचबाक हेतु छओ बजे हमसभ अपन घरसँ बिदा भए
गेलहुँ। सातबजे हबाइ अड्डा पहुँचि गेलहुँ। धराधर सभटा काज संपन्न भए गेल। सामानसभ
चेकइन भए गेल। दुनूगोटे सुरक्षाजाँचक बाद हबाइ
जहाजमे चढ़बाक हेतु संबंधित द्वारि लग पहुँचि गेलहुँ। आब हमसभ निचेन छलहुँ। हबाइ
जहाजकेँ उड़बामे घंटा भरिक समय रहैक। ताबे विश्राम केलहु,फोनपर गप्प-सप्प
केलहुँ। से सभमे लागले रही कि हबाइ जहाजमे
बोर्डिंग करबाक घोषणा भेलैक। हमसभ तुरंत अपन पाँतिमे आगूए लागि गेल रही।
देखिते-देखिते हमसभ अपन-अपन सीटपर बैसि गेलहुँ। थोड़बे कालक बाद हबाइ जहाज सैकड़ों
यात्रीक संग उड़ि गेल।
जहाजक उड़ैत काल
खिड़की बाटे बाहर देखैत रहलहुँ। क्रमशः धरती दूर भेल जाइत छल। चीज-वस्तुसभ बिला
रहल छल। थोड़बेकालमे तँ हमसभ चिरैओसँ बेसी भए गेल रही। मस्त गगनमे हबाइ जहाजमे
बैसल विचरण करैत रही। मुदा नीचाँ देखलासँ किछु नहि देखि पाबी। सभकिछु जेना शून्यमे विलीन भए गेल छल। साकारसँ निराकारक
रुप्यान्तरणक विहंगम दृश्य सद्यः उपस्थित छल।
९ अप्रैल २०२४क
नओ बाजि कए दस मिनटपर दिल्लीसँ उड़ल हबाइ जहाज ठीक साढ़े एगारह बजे गुवाहाटी हबाइ अड्डापर
उतड़ल। हमसभ सामान लए बाहर होइते काल उबेरक टैक्सी आरक्षित करा लेलहुँ आ बहुत
आसानीसँ एक घंटामे सीपीडब्लुडीक अतिथिगृह पहुँचि गेलहुँ। ओहिठामक मनेजरकेँ अपन आरक्षणक
कागज देखओलिअनि। ओहिठाम पाँच दिन रहबाक हेतु हमरा लग चारिटा आरक्षण पुरजी छल,अलग-अलग दिनमे अलग-अलग कोठरी। से देखि कए
मनेजर बजैत अछि-
“अहाँ आरक्षण
रातिमे केने रही की?”
हम ओकरा इसारा
बुझि नहि सकलिऐक।
“नहि,नहि। आरक्षण
तँ दिनेमे केने रही।”
ओ ओहिमेसँ एकटा
कागज राखि लेलक ।
“आर कागजसभ
बादमे दए देब।“
बादमे मनेजरक
बातपर ध्यान गेल। संभवतः रातिमे आरक्षण करबाक ओकर तात्पर्य ई रहैक जे ओहि समयमे हम
निसाँमे रहल होएब नहि तँ चारिटा आरक्षण पुरजी किएक बनैत? मुदा एक्कठे आरक्षण पुरजी
तँ तखन बनैत जखन कि एक्के कोठरी सभदिन उपलब्ध रहैत,जे नहि छल। तेँ उपलब्धताक अनुसार
आरक्षण कएल गेल। असलमे जे अपने जेहन होइत अछि तकरा सदिखन तेहने सोचाइत छैक। ओ तँ स्वयं
पीबाक छल। बादमे ओकरा कैकबेर हम अन्यकर्मचारीक संग ओतहि पीबैत देखिऐक।
गुवाहाटी हबाइ
अड्डासँ डेरा अबैत काल टैक्सीबलासँ गप्प-सप्प केलाक बाद लागल जेना एकरा संगे आगिलो
यात्राक जोगार लागि सकैत अछि। हम ओकरा कहलिऐक-
“हमरासभकेँ
कामाख्या भगवतीक दर्शन करबाक अछि। आनो मंदिरसभ जेबाक अछि। तकर बाद काल्हि गुवाहाटी
सहर घुमबाक अछि। बादमे शिलांग आ चेरापुंजी
सेहो जा सकैत छी। की तूँ हमरासभकेँ घुमा सकैत छह? ”
“किएक ने? हमर
तँ काजे इएह थिक। ”
“कतेक खर्चा लागत?”
“आइ कामाख्या
भगवतीक दर्शन कराएब। तकर बाद भुवनेश्वरी भगवती आ आर जतेक पार लागत घुमा देब।”
“खर्चा?”
“अठारह सए
लागत।”
“ठीक छैक। तूँ
एतहि रूकि जाह। हमहूँसभ तैयार भए जाइत छी। फेर बिदा होएब।”
मंगल दिन रहबाक
कारण हमरालोकनिक उपास छल। तेँ भोजन तँ
करबेक नहि छल। अस्तु,थोड़बे कालक बाद हमसभ तैयार भए गेलहुँ। ओना माता कामाख्या
मंदिरमे विशेष दर्शन पुरजी काल्हुक बनल छल,माने दस अप्रैलक भोरुका पहरक। मुदा हमसभ
आइए कामाख्या मंदिर बिदा भए गेलहुँ।
“सभसँ पहिने
माताकेँ हाजिरी लगाओल जाए।“-हमसभ सोचलहुँ।
लगभग आधाघंटाक
बाद हमसभ कामाख्या मंदिर लग पहुँचि गेल रही। मंदिरक बाहरे एकटा पंडितजीसँ भेंट
भेल। हम हुनका कहलिअनि-
“दर्शनक जोगार
भए सकैत छैक की?”
“भए जाएत ,मुदा
एकहजार रुपया लागत।”
“कोनो बात नहि। नीकसँ
दर्शन करा देबैक ने?”
“निश्चिन्त रहू।
हमर नित्यप्रतिक इएह काजे अछि।”
हम दुनूगोटे
पंडितजीक पाछू-पाछू बिदा भेलहुँ। ओ केना-केना घुमबैत हमरासभकेँ कामाख्या मंदिरक
मूल भागमे लेने चलि गेलथि जे गर्भगृहक ठीक सामने छल। गर्भगृहमे पाँति लागल जाइत
लोकसभकेँ हम देखि रहल छलहुँ। हमरासभकेँ पंडितजी ओतहिसँ माताक पूजा करबओलथि। तकर
बाद हमरासभकेँ प्रसाद आ फूलक संग एकटा
दोसर पंडितजीकेँ सुनझा देलनि। ओहिसँ पहिने हुनका पाँचसए रुपया आर देल गेलनि। दोसर पंडितजी
हमरासभकेँ कात बाटे लेने-लेने एकठाम ठाढ़ कए देलाह आ अपने प्रसाद लए कए माताक गर्भगृहमे चलि गेलाह।
“अहाँसभ
एतहि प्रतीक्षा करू। हम प्रसाद चढ़ा कए आबि रहल छी। “
जेबासँ पहिने ओ
हमरासभकेँ मंदिरक देबालपर नारियल फोड़बाक हेतु कहलनि। हम जोरसँ ओकरा पटकि देलिऐक। असलमे
नारियलक पानि सामनेक देबालपर ढारबाक रहैक। मुदा ओकर पानि तँ पहिने खसि चुकल छल। एकटा
बृद्धा अपन नारियल फोड़बाक हेतु हमरा कहलनि। हम एहि बेर ओकर तर्क बुझि गेल रहिऐक।
ओकरा हिसाबेसँ पटकलिऐक जाहिसँ ओ फुटि तँ गेलैक,मुदा ओकर पानि बाहर नहि खसलैक,बाँचल
रहि गेलैक। ओ बहुत प्रसन्न भेलीह आ अपने हाथे ओहि नारियलक पानि देबालपर ढारि
देलनि। हमसभ पंडितजीक बाट ताकि रहल छलहुँ। मुदा ओ कतहु देखेबे नहि करथि। मोन औना
गेल। ताबे हम पहिलुका पंडितजीकेँ देखलिअनि।
ओ हमरासभकेँ आश्वस्त केलनि। बादमे ओएह किछु-किछु आर पूजा करओलनि। कन्याभोजन
हेतु किछु दान करबाक हेतु उत्साहित केलनि। श्रीमतीजीक इच्छा देखैत हम छओसए रुपया
आर एहि हेतु हुनका देलिअनि। आब हुनका हाथक
पूजा समाप्त भए गेल छल। दोसरो पंडितजी प्रसाद चढ़ा कए आबि गेल छलाह। हमसभ हुनकासँ
प्रसाद लए बाहर दिस बढ़लहुँ। मंदिरक बाहर बाघ लग दुनू बेकती फोटो घिचओलहुँआ माताकेँ फेरसँ प्रणामक कए हमसभ बाहर बिदा भए
गेलहुँ।
पंडितजीक
सहयोगसँ कामाख्यामंदिरमे भयाओन भीड़क अछैत हमरा लोकनि आसानीसँ गर्भगृहक बहुत लगीच(मुदा बाहरे) सँ भगवतीक पूजा
केलहुँ, बड़ीकाल धरि ओहि परिसरमे रहि आओर पूजा-पाठसभ केलहुँ,माताकेँ गोहरेलहुँ। हमर
श्रीमतीजी एहिसँ बहुत संतुष्ट रहथि।
नवरात्राक समय छल। ओहिठाम भक्तलोकनिक बहुत भीड़ छल। कैकगोटे बाजथि जे हुनका
दर्शनमे भरिदिन लागि गेलनि। कहाँदनि विशेषदर्शनक टिकटक अछैत चारि-पाँच घंटा समय
लागि रहल छल। हुनकर स्वास्थ्य से गड़बड़ेबाक डर छल। तेँ हमसभ विशेष दर्शनक टिकटक
संग दस अप्रैलक फेरसँ दर्शन करबाक प्रयास नहि केलहुँ।
मंदिरमे बाहर आ
भीतर सभक ध्यान आगन्तुकसँ अधिक सँ अधिक रुपैया झिटब छल। जकरे देखू सएह ताहि लेल
किछु ने किछु व्योंत केने छल। मंदिरमे भीतर जाइत काल पंडितजी वलिप्रदानक स्थान
देखओलथि। अखनहु ओ स्थान रक्तरंजित छल,चारूकात दुर्गंध कए रहल छल। कनीके फटकी
निर्दोष छागरसभ अपन जीवनक अंतिम क्षणक प्रतीक्षा कए रहल छल। हमरा मोनमे भेल जे धर्मक
नामपर भए रहल एहि अत्याचारकेँ प्रश्रय देब बहुत अन्यायपूर्ण आ अमानवीय थिक। ई सभ
अबस्स बंद हेबाक चाही। तखने जगन्नमाता प्रसन्न भए सकैत छथि। इएहसभ सोचैत हमसभ
भुवनेश्वरी मंदिर दिस बढ़ि गेलहुँ।
थोड़बे कालमे
हमसभ भुवनेश्वरी मंदिर पहुँचि गेल रही। ई मंदिर कामाख्या भगवतीक मंदिरसँ मोसकिलसँ
एक किलोमीटर फटकी नीलांचल पर्वतक आर ऊँच भागमे अवस्थित अछि। एहिठाम चारूकातक
वातावरण बहुत सुरम्य अछि। माता दुर्गाकेँ समर्पित ई मंदिर गुवाहाटीक प्रमुख आध्यात्मिक
स्थानमे सँ एक मानल जाइत अछि। एतए अंबुबाची मेला बहुत
भव्य तरीकासँ मनाओल जाइत अछि। मंदिरक वातावरण बहुत शांत छल। हमसभ बहुत नीक जकाँ
दर्शन केलहु,थोड़ेकाल ओतए बैसि माताक आराधना केलहुँ। सामनेमे एक व्यक्ति मंदिरेमे
माताक मूर्ति दिस माथ राखि सुतल रहथि। मुदा ककरो ध्यान ओहिपर नहि रहैक। लोक
आएल,लोक गेल मुदा ओ ओहिना सुतल पड़ल रहल।
भुवनेश्वरीमंदिरमे
दर्शनक बाद हमसभ नवग्रह मंदिर गेलहुँ । टैक्सीबला तँ आरो ठाम लए जेबाक हेतु तैयार
छल। मुदा हमही सभ तैयार नहि भेलहुँ। बहुत थाकि गेल रही। भोरे चारिए बजेसँ गुआहाटी जेबाक
हेतु तैयारीमे लागल रही। तकर बादसँ किछु ने किछु भइए रहल छल।
“आब
सोझे डेरा चलू।“-ओ कहलथि। हमसभ थाकल-ठेहिआएल अपन डेरा पहुँचि गेल रही। आजुक
उपलब्धिसँ बहुत संतुष्ट रही,प्रसन्न रही। जतबा सोचने रही ताहिसँ बेसीए पाबि गेल
रही।
दस अप्रैल २०२४क
भोरे हमसभ तैयार भए गेल रही। भोरुका चाहक प्रतीक्षामे रही। अतिथिगृहक कर्मचारीसभ
सुतले रहए। कतहु ककरो कोनो अता-पता नहि छल। चाहकेँ तकैत हमसभ बाहर निकललहुँ। मुदा
चारूकात ओएह माहौल छल। जेना सहरे सुतल होअए। बादमे आदरणीय श्री प्रेमकान्त चौधरीजी
कहलनि जे एहिठामक जीवन पद्धतिक बारेमे कहबी छैक-लाहे,लाहे,माने जे सभकिछु हेतैक मुदा इतमिनानसँ,कोनो धरफरी नहि,कोनो तनाओ
नहि। थोड़े कालक बाद टैक्सीबला आबि गेल रहए। तेँ बिना चाह पीने हमसभ बिदा भए
गेलहुँ।
आइ सभसँ पहिने उमानंद
महादेवक दर्शन करबाक योजना छल। उमानन्द ब्रह्मपुत्र नदीक बीचोबीच मोर द्वीप पर
स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर अछि । कहल जाइत अछि जे उमानंद कोनो नदीक बीचमे अवस्थित
दुनिआक सभसँ छोट द्वीप थिक। एहि
मंदिरकेँ १६९४ ई. मे राजा गदाधर
सिंहक
आदेश पर बनाओल गेल छल, मुदा १८६७ मे भूकंप सँ ई क्षतिग्रस्त भए गेल रहए। एहि मंदिरमे किछु चट्टान कटल आकृति अछि, जे असमिया कारीगरक निपुण कौशलक परिचायक थिक। ब्रह्मपुत्रमे पानि कम भए गेल
छल। टैक्सीबला टैक्सीकेँ बाउलेमे चला कए हमरासभकेँ आगू धरि पहुँचा देलक। तकर बाद ओ उमानंद
जाए बला स्टीमरक पता लगओलक। हमसभ ओहि स्टीमर पर पहुँचैत छी। दूटा बृद्ध यात्री
पहिनेसँ ओहिपर बैसल रहथि। ओ एकटा निजी स्टीमर छल। प्रतिव्यक्ति एक दिसक दूसए टिकट छलैक। मुदा ओकर व्यवस्थापक चारू
यात्रीकेँ दू हजारमे उमानंद लए जाएत आ
वापसो आनत। आर यात्रीक प्रतीक्षा नहि करए पड़त। हमसभ एहि लेल तैयार भए गेलहुँ। ओहो दुनूगोटे अपन सहमति
देलखिन। तकरबाद स्टीमर खुजि गेल।
ब्रह्मपुत्र
नदीमे चलैत स्टीमरक बहुत आनन्दमय दृश्य छल। चारूकात शांत आ मनोरम वातावरणमे आगू
बढ़ैत स्टीमरक दृश्य देखैत बनैत छल। हमसभ मोसकिलसँ पन्द्रह मिनटमे उमानन्द मंदिर लग
पहुँचि गेल रही। स्टीमर रूकि गेल छल। ओहिपरसँ उतरब आ तकर बाद करीब साठिटा सीढ़ी
चढ़ब कनी कष्टकर काज छल। हमरोसँ बेसी बएसक छलाह ओ दुनू यात्री। बंगालक कोनो गामसँ
आएल छलाह। पत्नी हृदयरोगी छलखिन। तथापि उत्साहपूर्वक सीढ़ी चढ़ि रहल छलाह। हमहूँसभ
हुनके संगे आगू बढ़ि रहल छलहुँ। बीच-बीचमे सुस्ताइतो छलहुँ। मंदिर परिसरमे पहुँचि
हमसभ बहुत प्रसन्न रही,आनन्दमे रही। ओहिठाम कैकटा मंदिर अछि। बेरा-बेरीसभमे दर्शन
केलहुँ। पंडितजी हमरालोकनिकेँ किछु-किछु मंत्र पढ़ओलनि,पूजा करबओलनि। हमसभ
यथासाध्य दक्षिणा देलिअनि। तकर बाद बाहर निकलि थोड़ेकाल बैसलहुँ। कहि नहि सकैत छी
जे ओ क्षण कतेक आनन्ददायक छल। ओहिठामसँ उठबाक मोन नहि भए रहल छल। मुदा स्टीमरसँ
वापसी छल। बहुत काल नहि रहि सकैत छलहुँ। अस्तु,हमसभ थोड़ेकालक बाद वापस भए गेलहुँ।
स्टीमरपर उतरब आ चढ़ब दुनू मोसकिल काज छल। कारण तकर कोनो नीक ओरिआन नहि छल। स्टीमर
जेना-तेना खुटेसल छल। लगपासमे राखल पाथरसभकेँ पकड़ि ओहिपर पहुँचबाक छल। जेना-तेना
हमसभ वापस स्टीमरपर पहुँचि गेल रही। ओ आब फेर ब्रह्मपुत्र नदीमे वापसी यात्रापर
चलि रहल छल। हमसभ एही पृथ्वीपर स्वर्गक आनन्द लए रहल छलहुँ ,मंत्रमुग्ध छलहुँ ।
ताबतमे स्टीमर बला अबाज देलक-
“उतरैत जाउ ।“
घाट आबि गेल छल।
हमसभ स्टीमरसँ उतरलहुँ। टैक्सी बला हमरसभक प्रतीक्षा कए रहल छल। हमसभ टैक्सीपर
बैसि आगू बढ़ि गेलहुँ।
आब हमरासभकेँ भूख
लागि गेल छल। जलखै करब जरूरी छल। तकर बादे आगू बढ़ब। से बात टैक्सीबलाकेँ हम कहि
देने रहिऐक। अस्तु,थोड़ेकालक बाद एकटा जलपानगृह लग टैक्सी रुकल। हमसभ ओतए नीकसँ
जलखै केलहु,चाह पीलहुँ। टैक्सीबला हमरसभक आग्रहपर अपन पसिंदक जलखै-रसगुल्ला संगे
चाह पीलक। हमसभ ओकर पसिंदसँ चकित रही। मुदा बादमे पता लागल जे ओहिठाम इएह चलैत
छैक। जलखै केलाक बाद हमरासभकेँ आब फुरती आबि गेल छल। हमसभ टैक्सीपर बैसलहुँ आ बिदा
भेलहुँ ब्रह्मपुत्र नदीक ओहिपार बनल डौल गोबिंद मंदिरमे दर्शनक हेतु। एहि
मंदिरक निर्माण करीब एकसए पचास साल पुर्व कएल गेल छल। सन् १९६०मे एकर पुनर्निमाण
कएल गेल। मंदिरमे फगुआ आ जन्माष्टमीक समय विशिष्ट आयोजन कएल जाइत अछि। एहिठाम पाँचदिन
धरि फगुआक आयोजन होइत अछि। भगवान कृष्णक मंदिर हेबाक कारणसँ एहिठाम जन्माष्टमी तँ
बहुत नीकसँ मनाओले जाइत अछि। एहि मंदिरमे
प्रसादक रूपमे बहुत नीक खीर खेबाक अवसर भेटल। एहन नीक खीर हमरा गामक कुट्टीपर
झूलामे बनैत छल,से मोन पड़ि गेल। खीर खेबाक लालचमे हम दोबारा प्रसाद लेलहुँ। तकर
बाद ओहिठामसँ बिदा भेलहुँ।
उमानंद मंदिरमे सीढ़ी चढ़बाक कारणसँ हमर
श्रीमतीजी थाकि गेल रहथि,माथ से दुखेनाइ शुरू भए गेल रहनि। हुनकर दिक्कति बुझा रहल
छल। तेँ आब बेसी नहि घुमि सकैत छलहुँ। तथापि घुरतीमे वशिष्ठ मंदिर गेलहुँ । बीचमे बालाजी
मंदिर सेहो आएल। मुदा हमसभ एहिठाम नहि रुकलहुँ। कहल जाइत अछि जे वशिष्ठ मंदिरक
स्थापना वशिष्ठ मुनि केने छलाह। एहिठाम
हुनकर आश्रम छलनि। एहिठाम कैकटा जलधारा बहैत अछि जे आगू जा कए वशिष्ठ नदी आ वाहिनी
नदीक रुपमे सहर दिस बढ़ि जाइत अछि। हमसभ एहिठाम दर्शन केलहुँ, थोड़े काल
सुस्तेलहुँ आ वापस अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।
मंदिरसभमे अबैत-जाइत
काल गुवाहाटी सहरक विभिन्न स्थानसभ सेहो देखैत गेलहुँ। पुरान आकार-प्रकारक एहि
सहरक लोकसभ अपने ओहिठाम जकाँ लगैत छल। आसामी भाषाकक प्रति बेस अनुराग ओहिठामक लोकसभमे
देखाएल। हिन्दी अखबार तकलोपर नहि भेटल। सभठाम नामपट्टपर असमिआ भाषामे विवरण लिखल
छल। स्थानीय लोकसभ आसामी भाषामे गप्प केलासँ बेसी सहज देखाइत छल। की
मधुबनी,दरभंगामे मैथिलीक वर्चस्व एहिना देखाइत अछि?उत्तर हमसभ जनैत छी।
शिलांग
चेरापुंजीक यात्रा
पछिला दू दिनसँ
ओ टैक्सीबला हमरा संगे काज कए रहल छल। कुलमिला कए हमरा ओ ठीक आदमी बुझाएल । ओकर
कार छोट जरूर छलैक,मुदा ओ ठीक हालतिमे रहैक आ ओ चलबितो नीक रहए। पहाड़पर छोट वाहन
बेसी बढ़िआँ होइत छैक। से सभ सोचि कए हम टैक्सीबलासँ शिलांग आ चेरापुंजी जेबाक
बारेमे ओकर मंतव्य पुछलिऐक। ओ तँ जेना बाटे ताकि रहल छल।
“किएक ने जाएब।“-
ओ छुटले बाजल।
“कतेक खर्चा हेतैक?”
“यदि भोरे पाँच
बजे बिदा होइ तँ ओहीदिन राति धरि हमसभ गुवाहाटी लौटि सकैत छी। कतहु रहबाक प्रयोजन
नहि होएत। यदि से करी तँ छओ हजार लागत।”
“हमसभ बूढ़
थिकहुँ। एक्के दिनमे चेरापुंजी गेनाइ ,भरिदिन ओतए घुमनाइ ,फेर रातिएमे गुवाहाटी
लौटि गेनाइ संभव नहि अछि। मोन खराप भए जाएत तखन? फेर हमरासभकेँ शिलांगमे रहबाक
ओरिआन अछि। ओहिठाम रूकि गेलासँ सुस्ता लेब,शिलांग से घुमि लेब। दोसर दिन साँझ धरि
गुवाहाटी लौटि जाएब।”
“तखन दू हजार आर
लागत,माने दुनू दिनका भाड़ा आठ हजार।”
“कोनो हरजा
नहि।”
तकर बादो ओ
हमरासभकेँ मनेबाक प्रयास करैत रहल जे हमसभ एक्केदिनमे वापस भए जाइ। कहैत रहल-“शिलांगमे
बहुत दिक्कति छैक,ओहिठामक पुलिस बहुत खच्चर होइत छैक। लोकोसभ कोना दनि,लगबे नहि
करत जे अपने देश मे छी। हमरा तँ ओ जगह एकदम नीक नहि लगैत अछि। ओहिठाम खेबाक से
बहुत दिक्कति छैक।“
जखन ओ अपने बात
दोहरबैत रहल तँ हमसभ कहलिऐक-
“कोनो बात नहि।
जखन तोरा नहि जेबाक मोन छह तँ हमसभ दोसर टैक्सी कए लेब।”
बात गड़बड़ाइत
देखि ओ तुरंत तैयार भए गेल। मुदा पाँचसए रात्रि शुल्क अतिरिक्त लेत। हमसभ सेहो
मानि गेलिऐक। तकर कारण ई जे ओ हमरा लोक ठीक बुझाएल। जाइत-जाइत ओ कहलक-
“हम भोरे पाँच
बजे आबि जाएब। अहाँसभ तैयार रहब।”
“ठीक छैक।”
ओ चलि गेल।
हमहूँसभ अपन डेरा वापस आबि गेलहुँ। मुदा डेरापर लौटलाक बाद हमर श्रीमतीजीक मोन
बहुत खराप भए गेलनि। माथ दर्द,आर किछु,किछु समस्यासभ भए गेलनि। दबाइ केलथि आ सूति
रहलथि। मुदा हम चिंतामे पड़ि गेलहुँ।
“एहन हालतिमे
एतेक दूर कोना जा सकब?यदि मोन बेसी खराप भए गेलनि तखन?”
हम टैक्सीबलाकेँ
फोन कए सभबात कहलिऐक। ईहो कहलिऐक जे काल्हि भोरे अपन घरसँ बिदा होमएसँ पूर्व एकबेर
हमरा फोन कए लेत।
भोरे चारिबजे हम
उठि गेलहुँ। हमर श्रीमतीजे सेहो जगले रहथि। स्वास्थ्यक बारेमे पुछलिअनि। कहलथि-“आब
हम ठीक छी,चलि सकैत छी।”हुनकर बात सुनि मोनमे बहुत उसास भेल। हम तुरंत
टैक्सीबलाकेँ फोन केलिऐक-“समयपर आबि जइअह।”
“ठीक छैक।”
हमसभ पाँच बजे
भोरे तैयार भए गेल रही। एहि समयमे ओतए चाह भेटबाक कोनो जोगार नहि छल। अस्तु,हमसभ
डेरासँ निकलि गेलहुँ। बाहर टैक्सीबला प्रतीक्षा कए रहल छल। हमसभ टैक्सीमे बैसलहुँ
आ शिलांग होइत चेरापुंजीक यात्रापर आगू बढ़ि गेलहुँ। सौंसे सहर शांत छल। जेना सभ
सुतले होअए। ई तँ बुझाइए गेल छल जे भोरुका
पहरमे एहिठाम देरीसँ कारबार शुरू होइत अछि। तेँ आब ओही हिसाबसँ कार्यक्रम बनाबी।
थोड़बे कालक बाद हमसभ मेघालयक सीमा लग आबि गेल रही। सड़कक एक दिस आसाम आ दोसर दिस मेघालय।
मेघालय मूलतः पहाड़ीपर बसल अछि। एहिठाम क्रिश्चन जनसंख्या बेसी अछि। तेँ सौंसे
चर्च देखाएल। एकाधटा मस्जिद सेहो देखाएल,मुदा मंदिर एकटा नहि देखाएल। यदि कतहु
रहबो कएल होएत तँ हमर सभक यात्रामार्गमे तँ नहिए छल। जेना-जेना हमसभ आगू बढ़ैत
गेलहुँ तेना-तेना जंगल-पहाड़सभ देखा रहल छल। चारूकात हरिअर कंचन दृश्य लगैत छल।
मौसम से बहुत नीक छल। क्रमशः बेसी ठंढ बुझा रहल छल। टैक्सीबला तेजीसँ अपन वाहन चला
रहल छल। ओ हमरासभकेँ रस्तामे प्रमुख स्थानसभक बारेमे बतबैत जा रहल छल। लगभग साढ़े
सात बजे भोरे हमसभ शिलांग स्थित आयकर विभागक अतिथिगृह पहुँचि गेल रही। ओहिठाम
पहिने फोन कए देने रहिऐक। जाइते देरी चाह बनि गेल। हमसभ चाह पीलहुँ। थोड़े काल
सुस्तेलहुँ आ चेरापुंजीक लेल बिदा भए गेलहुँ।
शिलांगसँ
चेरापुंजीक सड़कमार्गसँ ५७ किलोमीटर फटकी अछि। ई यात्रा अत्यंत मनोरम अछि। सड़कक दुनूकात अद्भुत
प्राकृतिक सौंदर्यसँ भरल अछि। थोड़े-थोड़े फटकी जलप्रपातसभ देखाइत अछि। असलमे
गुवाहाटीसँ शिलांगक यात्रा अद्भुत प्राकृतिक दृश्य सभसँ भरल अछि। एक सँ एक दृश्य
सामने अबैत रहल,ओकरा हमसभ देखैत रहलहुँ,किछुकेँ अपन मोबाइल कैमरामे सुरक्षित रखैत गेलहुँ। ओहि मनोरम दृश्यसभमे किछुक वारेमे एतहु
चर्च करैत छी।
शिलांग सहरसँ लगभग दसमिनटक बाद जमीनक सतहसँ १९६६
मीटर ऊँचपर अवस्थित अछि शिलांग पिक भ्यु प्वाइंट । ई स्थान बेसीकाल मेघसँ आच्छादित
रहैत अछि। ओना मेघ तँ सामान्यतः एहि इलाकामे रहिते अछि। तेँ तँ एहि प्रान्तक नाम
मेघालय राखल गेल अछि। एहिठामसँ शिलांग सहरकेँ संपूर्णतासँ देखल जा सकैत अछि। एहिठामसँ
बंगलादेशक सीमा सेहो देखल जा सकैत अछि।
नोहशंगथियांग जलप्रपात मेघालयक
पूर्वी खासी पहाड़ी जिलाक मावसई गाममे अवस्थित अछि, तेँ एकरा मावसई जलप्रपात सेहो कहल जाइत अछि।
नोहशंगथियांग जलप्रपातक पानि लगभग १०३३ फीटक ऊंचाईसँ खसैत अछि जे सात भागमे विभाजित भए जाइत अछि। अस्तु,एहि जलप्रपातकेँ
सेवन सिस्टर फॉल्स सेहो कहल जाइत अछि।
सोहरा सर्किटक शुरुएमे चेरापूंजी सहर सँ करीब १५
किलोमीटर दूर अवस्थित मॉकडोक डिम्पेप वैली व्यू सड़कसँ कनीके फटकी घाटीक मनोरम
दृश्य देखाइत अछि । मॉकडोक डिम्पेप वैली व्यू चेरापूंजी के मौसिनराम जिलामे स्थित
अछि। हमसभ एहिठाम थोड़े काल रुकलहुँ। सड़कक कातमे मकइक भुट्टा बिका रहल छल। भूख
लगले रहए। हमदुनू बेकती दूटा मकइक भुट्टा कीनलहुँ। बड़ीकाल धरि ओकरा खाइत रहलहुँ आ
ओहिठामक अद्भुत सेहो दृश्यो देखैत रहलहुँ।
किनरेम जलप्रपात मेघालयक पूर्वी खासी हिल्स
जिलेमे चेरापूंजीसँ बारह किलोमीटर फटकी अवस्थित एकटा आश्चर्यजनक जलप्रपात थिक। ई
मेघालयक पूर्वी खासी हिल्स जिलामे चेरापूंजीक लोकप्रिय आकर्षण थांगखरंग पार्कक
नामसँ प्रसिद्ध सुंदर पार्कक भीतर स्थित अछि। एकर ऊंचाई १००१ फीट अछि। ई
भारतक सातम सभसँ ऊंच जलप्रपात थिक। किनरेम जलप्रपात तीन स्तरीय जलप्रपात छैक। ई जलप्रपात
दू अलग-अलग धारामे पसरल छैक जे नीचाँ खसैत काल एक-दोसरमे मिलि कए आर तेजीसँ आगू
बढ़ि जाइत अछि।
एकबजे धरि हमसभ
चेरापुंजीक आसपासक महत्वपूर्ण स्थानसभ घुमैत रहलहुँ। टैक्सीबला बेर-बेर बंगलादेशक
क्षेत्रकेँ देखेबाक प्रयास करैत-
“ओएह देखू।
बंगला देशमे लाइट जरि रहल अछि। आइ ओकरसभक पावनि छैक। तेँ उत्सव कए रहल होएत।”
आबसभकेँ बहुत
भूख लागि गेल रहैक। टैक्सीबला हमरासभकेँ पूर्ण शाकाहारी भोजनालय आरेंज रूट्स लए
गेल। ओहिठाम बहुत भीड़ छल,मुदा व्यवस्थो गजब छल। लगबे नहि करैक जे एतेक लोक एक्केठाम भोजन कए रहल अछि। सभसँ
पहिने पसिंदक भोजनक पुरजी कटाबक छल। हम ओहि खिड़की लग गेलहुँ। पुरजी काटएसँ पहिने
ओ महिला पुछलक-“आधा घंटा प्रतीक्षा करए पड़त।”
“कोनो बात नहि।”
“हम ओकरा अपन
पसिंद बतलिऐक,लोकक संख्या कहलिऐक,आ ओ तकर मूल्य बता देलक। हम तुरंत आनलाइन भुगतान
कए देलिऐक। ओ हमरा पुरजी दए देलक। तकर बाद ओहि पुरजीकेँ एकटा महिलाकेँ दखए देलिऐक।
ओ हमर नाम लिखि लेलक आ कहलक-
“अहाँसभ बैसि जाउ।
हम आधाघंटामे बजा लेब।
ठीक आधाघंटाक
बाद ओ महिला हमर नाम लेलक। हमसभ तुरंत ओकरा लग पहुँचैत छी। ओ हमरासभकेँ बैसबाक स्थान
दिस इसारा करैत अछि। हमसभ अपन सीटपर जा कए बैसि गेलहुँ। तकर बाद तँ एक सँ एक महिला
बारिकसभ घुमए लागल। तरह-तरहक भोजनक सामग्री प्लेटमे देने जाए। जे खाइ,जतेक खाइ। सभ
बारिक महिले छलि आ से अभूतपूर्व व्यवस्थाक संग भोजन करा रहल छलीह। हमसभ भरिपेट
भोजन केलहुँ आ बहुत आश्वस्त भाओसँ ओहिठामसँ बिदा भेलहुँ। ओतहिसँ रामकृष्ण आश्रमक भवन
सेहो देखा रहल छल। मुदा हमसभ ओतए जा नहि सकलहुँ। आब वापस शिलांग बिदा हेबाक छल।
हमसभ टैक्सीपर बैसलहुँ। टैक्सीबला सेहो भोजन कए चुकल छल। जल्दीए टैक्सी तेजीसँ
वापसी यात्रा शुरू कए चुकल छल। फेर ओएह रमनगर दृश्यसभ देखैत-सुनैत लगभग चारिबजे
हमसभ शिलांग स्थित अपन अतिथिगृह पहुँचि चुकल छलहुँ।
रातिभरि शिलांग
अतिथिगृहमे विश्रमाक बाद हमसभ भोरे चाह-जलखैक बाद लगभग नओ बजे शिलांगक हेतु
टैक्सीसँ बिदा भेलहुँ। काल्हि शिलांगसँ चरापुंजी जेबाक क्रममे शिलांग आ ओकर आसपासक
अधिकांश प्रमुख स्थानसभ देखिए लेने रही। आइ जाइत-जाइत सेहो हमसभ वार्ड झील
पहुँचलहुँ। एहि झीलमे वरिष्ठ नागरिकक प्रवेश हेतु मात्र दस
रुपया लगैत अछि। हमसभ बीस रुपयामे दूटा टिकट लए कए एहिमे प्रवेश केलहुँ। तत्कालीन
आयुक्त सर विलियम वार्डक आदेशपर कर्नल हॉपकिंस द्वारा एहि झीलक निर्माण वर्ष १८९४ मे कएल गेल
छल। एहि झीलक चारूकात बहुत सुंदर-सुंदर फूलसभ लागल अछि। झीलक बीचमे काठक पूल अछि
जाहि ठामसँ लोक अपने हाथे पानिमे हेलैत माछसभकेँ खुआ सकैत अछि। झीलमे नौकायनक
सुविधा सेहो अछि। अनेक पर्यटकसभ ओहिठाम घुमैत रहथि। हमहूँसभ थोड़ेकाल ओतए बैसलहुँ।
किछु फोटो घिचलहुँ। तकर बाद हमसभ शिलांगसँ पन्द्रह किलोमीटर फटकी शिलांग-गुवाहाटी
सड़कपर अवस्थित उमियम झील लग रुकलहुँ। २२० किलोमीटरमे पसरल ई शिलांगक सभसँ पैघ
कृतिम झील थिक। एहि कृतिम झीलक निर्माण जलविद्युत उतपन्न करबाक लेल कएल गेल छल। चारू दिस पसरल सिल्वन पहाड़ी आर हरियर खासी चीड़ वृक्ष एहि विशाल झीलक वैभवकेँ
कैक गुणा बढ़ा देने अछि।
फोटोमे उमियम झीलक पानि हरिअर रंगक
देखाइत अछि। तकर कारण अछि उमियम झीलक चारूकात पसरल बृक्षसभ,जकर छाया पानिमे पड़ैत
रहैत छैक । टैक्सीबलाक इच्छा रहैक जे हमसभ कनी नीचाँ उतरी,झीलक पानिमे अथवा ओहिसँ सटले ठाढ़ होइ । तखन ओकर वीडियो
बनाओल जाए। मुदा ओहिठाम नीचाँ दिस बहुत ढलान रहैक,हिनकर ठेहुनमे समस्या रहिते
छन्हि। कनीको संतुलन बिगड़लापर दुर्घटना भए सकैत छल। ई बात ओ बुझि नहि रहल छल।
हमसभ थोड़े कालक बाद ओहिठामसँ बिदा भए गेलहुँ। आब सोझे गुआहाटी जेबाक छल। टैक्सी
तेजीसँ आगू बढ़ि रहल छल। ओएह रस्ता,ओएह दृश्यसभ फेरसँ सामने आबि रहल छल। हमसभ तकर
आनंद लैत आगू बढ़ैत रहलहुँ। रस्तामे हम टैक्सीबलाकेँ पुछलिऐक-
“तोरा
मेघालय पुलिससँ एतेक डर किएक होइत छह?तोरा संगे ओहिठामक पुलिस संगे कोनो विशेष
घटना घटित भेल अछि की?”
“की
कहू? कोरोना बंदीक समयमे एकटा बिहारक यात्रीकेँ शिलांग जाएब जरूरी रहैक। हमर एकटा
मित्र आग्रह केलक। हम ओकरा शिलांग पहुँचाबक हेतु तैयार भए गेलहुँ। ”
“तखन?”
“ओकरा
संगे जखन शिलांग सहरक लगीच पहुँचलहुँ तखन पुलिस चारूकात घेरने रहए। तथापि किछु
बहन्ना बना कए आगू बढ़लहुँ,मुदा कनीके आगू गेलाक बाद पुलिस पकड़ि लेलक। तीन सए
रुपया देलाक बाद मोसकिलसँ छोड़लक। मुदा बात एतहि समाप्त नहि भेल। ओ पुलिस खच्चर
रहए। दोसर पुलिसकेँ मोबाइलपर फोन कए देलकैक। थोड़बे आगू गेल रही कि दोसर पुलिस
हमरा फेर पकड़ि लेलक। ओहो तीनसए रुपया माँगलक। हम से देबाक हेतु तैयार नहि रही।
ओकरा पछिला पुलिसक बात सेहो कहलिऐक। कतबो बुझेबाक प्रयास केलिऐक ओ अड़ि गेल। हारि
कए ओकरो दूसए रुपया देलिऐक। मुदा ओ बढ़िआँ आदमी निकलल। हमरा अपन मोबाइल नंबर लिखा
देलक आ कहलक-“आब कोनो समस्या नहि हेतह। यदि से होइत अछि तँ हमरा फोन कए दिअह।” ओकर
बात सही निकलल। तकर बाद हमरा कोनो परेसानी नहि भेल। लाक डाउन अछैत हम ओहि यात्रीकेँ अपन गंतव्य धरि
पहुँचा देलिअनि।”
आब
बुझाएल जे टैक्सीबला शिलांगमे किएक डराइत छल। एहि तरहेँ गप्प-सप्प करैत हमसभ एक
बजे अपन अतिथिगृह पहुँचि गेल रही। तकर बाद हमसभ ओतए भोजन केलहुँ आ मोनमे सफल
यात्राक संतुष्टि भाओक संग भरिदिन विश्राम केलहुँ।
चीरोभाइ(पंडित
श्री रत्नेश्वर मिश्र)
एहि बेरक
कामाख्या यात्राक दूटा अविस्मरणीय प्रसंग छल हमर पितिऔत चीरो भाइसँ सपरिवार भेंट आ
आदरणीय श्री प्रेम कान्त चौधरीजी हुनकर मित्र सहयोगी लोकनिसभसँ भेंट-घाँट। हम अपनयात्राक अंतिम
दू दिन एही सभ हेतु बचा कए रखने रही। हम गुवाहाटी जेबाक कार्यक्रम बनएसँ पहिने
चीरो भाइ(पंडित श्री रत्नेश्वर मिश्र) केँ फोन केने रहिअनि। ओ पचासो सालसँ गुवाहाटीमे
रहैत छथि। ईहो बुझल छल जे ओ ओहिठाम कामाख्या मंदिरसँ जुड़ल छथि। तेँ ओ माताक
दर्शनमे मदति कए सकैत छथि। कार्यक्रम जखन बनि गेल,टिकट कटि गेल,गुवाहाटीमे पाँच दिन
रहबाक जोगार ओहिठामक सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे भए गेल तखनो चीरोभाइकेँ फोन नहि
केलिअनि। कारण श्रीमतीजी कहलनि जे माताक दरबारमे जा रहल छी,ओ स्वयं देखथिन।ककरो
किछु कहबाक काज नहि। ओना हमर एकटा मित्र स्थानीय एक्साइज कमिश्नरकेँ हमरासभकेँ
मदति करबाक हेतु फोन कए देलखिन। हमरा हुनकर मोबाइल नंबर सेहो देलनि। हम हुनकासँ
गप्पो केलहुँ । मुदा हुनकर पैरबीमे कोनो जान नहि बुझाएल। तकर बाद हम छोड़लहुँ
हुनकर चक्कर।
हम सत्तरह मार्च
२०२४ कए जखन गाम जाइत रही तखन चीरो भाइक फोन आएल।
“अहाँक गुवाहाटी यात्राक कार्यक्रम केना की भेल?
हमसभ उत्सुकतासँ बाट ताकि रहल छी।“
“नओ अप्रैलक
टिकट कटा लेने छी।अखन गाम जा रहल छॅ ओहिठामसँ लौटि कए हम फोन करब।”
तकर बाद हम गाम
गेलहुँ,वापसो आबि गेलहुँ,किछु समयो बीति गेल मुदा हम हुनका फोन नहि कए सकलिअनि।
तकर कारण तँ ऊपर लिखिए चुकल छी। ठीक नओ अप्रैल कए जखन हम कामाख्या मंदिरमे रही
हुनकर फोन आएल। मुदा हम मिसकाल बादमे देखलिऐक। कारण मंदिरमे ततेक हल्ला होइत रहैक
जे फोनक घंटी सुनबाक सबाले नहि होइत अछि। मंदिरसँ पूजा केलाक बाद जखन बाहर
निकललहुँ तखन फेर हुनकर फोन आएल। एहिबेर फोनसँ गप्प भेल-
“हमसभ गुवाहाटी आबि
गेल छी। माताक दर्शन करैत रही। तेँ फोन नहि देखि सकलहुँ।”
“हम अहाँकेँ
लेबाक हेतु कखन आउ। आनठाम किएक ठहरल छी? हमरे ओहिठाम रहू। अपन घर अछि।कष्टे सही,
संगे रहब,गप्प-सप्प करब।”
“ से तँ सत्ते।
मुदा हमरा रहबाक नीक जोगार भए गेल अछि। तेँ तकर चिंताक बात नहि अछि। ओना हम अहाँक
ओहिठाम अबस्स आएब। हमरो अहाँसँ भेंट करबाक हेतु बहुत मोन लागल अछि। ”
“ठीक छैक। हमरा
फोन कए देब। हम अपन गाड़ीसँ अहाँकेँ लए आनब।”
चीरो भाइक
आग्रहसँ हम चकित रही। ओना ओ हमर पितिऔत भाइ छथि,नेनेसँ संगी सेहो छथिहे। मुदा एतेक
साल बीति गेलैक,कतेक तरहक बात भेलैक,तैओ ओ ओहिना भाओ रखने छथि,अपितु बेसी घनिष्टता
बुझा रहल अछि,से सोचि अभीभूत रही। नओसाल पहिने भतीजीक बिआहमे गामपर हुनकासँ भेंट
भेल रहए सेहो कतेको सालक बाद से नहि मोन पड़ि रहल अछि। ओ हमरा गामक संस्कृत
पाठशालासँ उत्तरमध्यमाक परीक्षा पास केने रहथि। थोड़ेक दिन गामेमे किछु-किछु
केलथि। एकदिन अपन दोकानपर बैसल रहथि कि हुनकर पित्ती कहलखिन-
“पढ़ो फारसी
बेचो तेल,देखो भाइ किस्मत के खेल।”
बस ई बात हुनकर
मोनमे गड़ि गेलनि। ओही समयमे गुवाहाटीमे रहैत हुनकर सार किछु काजसँ हुनका ओतए
बजओलखिन। बस ओहि अवसरकेँ फएदा उठबैत ओ गामसँ गुवाहाटी बिदा भए गेलाह।तकरबाद जे ओ गुवाहाटी
गेलाह से पचास वर्षसँ ओतहि छथि। आब तँ हुनका गुवाहाटीमे दूमहला मकान छनि,एकटा
विकसित परिवार छनि। मधुबनीमे सेहो ओ मकान बनओने छथि। सालमे एक-दू बेर मधुबनी ,गाम
जाइते रहैत छथि।
चीरो भाइक
संघर्षक गाथा रोमांचक अछि। यद्यपि ओ संस्कृत पढ़ने रहथि,तथापि मेहनति कए अंग्रेजी
सिखि कए सातमा धरिक अंग्रेजी माध्यमक बच्चासभकेँ सभ विषय ट्युशन पढ़बैत रहथि। ई
काज ओ सोलह साल धरि केलथि। मनुष्यक जीवनमे कखनो काल एहन घटना घटित भए जाइत अछि जे
ओकर दशा आ दिशा बदलि दैत छैक। गुवाहाटीमे एकबेर कोनो जाग होइत रहैक। ओहिमे हुनको
पंडितक काज हेतु आमंत्रित केलकनि। ओ ओहिठाम गेबो केलाह। ओहिमे हुनका एकावन टाका
भेटितनि। मुदा ओहिठाम गेलाक बाद हुनका काज नहि देलकनि। केओ षड़यंत्र कए हुनकर नाम
कटबा देलकनि। एहि बातसँ हुनका बहुत कष्ट भेलनि। कारण ओ हुनकर संघर्षक समय छल।
एकावन टाका बहुत माने रखैत छल। हुनकर नाम एहि लेल काटि देलकनि जे ओ शिक्षकक काज
करैत छथि,पंडिताइ नहि करैत छथि। चीरो भाइ तुरंत ओहिठाम उपस्थित पंडितसभकेँ चुनौती
देलखिन। बात बहुत गरमा गेलैक। दोसर दिन भेने फेर ओहीठाम हुनका एकटा विद्वानसँ भेंट
भेलनि। ओ संस्कृतमे हुनकासँ कैकटा प्रश्न पुछलखिन। चीरोभाइ सभटा प्रश्नक उत्तर
सही-सही दए देलखिन। हुनकर संस्कृतक ज्ञान आ वुद्धिमत्तासँ ओ बहुत प्रभावित भेलाह हुनका पंडिताइ करबाक हेतु प्रेरित केलाह। तकर
बादे ओ पंडिताइ शुरू केलनि जे अखन धरि चलिए रहल छनि। अखनहु अपनो पंडिताइक काज कइए
रहल छथि। ओहिसँ हुनका बहुत नीक आमदनी भए जाइत छनि।
गुवाहाटीमे रहैत
चीरोभाइ अपन कैकटा भाएसभकेँ नौकरी धरबओलनि। ओ सभ अपन-अपन क्षेत्रमे बहुत विकास
केलाह। अखनहु ओ अपन एकटा विधवा बेटी सहित हुनकर
तीनटा संतानक पालन-पोषण कए रहल छथि। ओ सभ बहुत नीक शिक्षा प्राप्त कए रहल
छथि। एक व्यक्ति संघर्ष कए अपन जीवनकेँ कोना पलटि सकैत अछि तकर एकटा जीवंत उदाहरण
छथि चीरो भाइ।
नओ अप्रैल २०२४
कए गुवाहाटी पहुँचलाक बाद चीरो भाइक फोन कैक बेर अबैत रहल। ओ आग्रहपर आग्रह करैत
रहलाह जे हमरे ओतए रहू,एहिठाम एसी बला कोठरी अहाँक प्रतीक्षा कए रहल अछि। नवरात्रा
चलि रहल छलैक। हुनका अपना घरमे तँ पाठ करबेक रहनि,आनोठाम भरि दिनका व्यस्तता चलि
रहल छलनि। हम कहलिअनि जे गुवाहाटी घुमलाक बाद शिलांग जाएब,चेरापुंजी जाएब । तकर
बाद गुवाहाटी लौटब। तखन अहाँसभसँ अबस्स भेंट करब। हम १२ अप्रैलक एक बजे शिलांगसँ
वापस आबि गेल रही। तकर बाद भोजन कए विश्राम करैत रही कि चीरो भाइक फेर फोन आएल। ओ
कहलाह-
“हम साँझमे आबि
रहल छी। वापसीमे अहाँसभ संगे चलब। ”
“अखन हमसभ बहुत थाकल
छी। आइ कतहु गेनाइ संभव नहि बुझाइत अछि। ओना अहाँ आबी तँ स्वागत अछि।”
“कोनो बात नहि। हम
काल्हि भोरे आठ बजे फोन करब।”
“ठीक छैक।”
भोरे फेर हुनकर फोन आएल। ओ नओ बजे वाहनक संगे अओताह।
हमसभ ठीक नओ बजे तैयार रही। मुदा चीरोभाइकेँ अएबामे देरी भए गेलनि। टैक्सीबला
विलंभसँ आएल छल। तकर बाद करीब साढ़े दस बजे ओ हमरसभक अतिथिगृह पहुँचलाह। गेलहुँ।
बेस पैघ गाड़ी छल। हमसभ बाहरे प्रतीक्षा करैत रही। तुरंत गाड़ीमे बैसि हमसभ
गप्प-सप्प करैत आधा घंटामे हुनकर आवासपर पहुँचि गेलहुँ। हमरासभकेँ देखितहि चीरो
भाइक समस्त परिवार हमरासभक स्वागतमे लागि गेलाह। हुनकर दुनू नातिन,नाति,
पुतहु,बेटी,पत्नी सभगोटे ततेक प्रसन्न रहथि जकर वर्णन करब मोसकिल। चीरोभाइ करीब
घंटा भरि अपन संस्मरण,जीवनक संघर्ष गाथा सभ सुनबैत रहलथि। कहि नहि सकैत छी जे कतेक
अपनत्वक भाओ छलनि हुनकर गप्प-सप्पमे । आब भोजन तैयार भए गेल छल। हमसभ भोजनपर
बैसलहुँ। अनेक प्रकारक व्यंजनसँ परिपूर्ण
भोजनक आनन्द लेलहुँ। थहि-थहि भए गेल। पान-सुपारी सेहो भेलैक।
आब चलबाक उपक्रम
शुरू भेल।
एकटा बात लिखब
तँ छुटिए गेल। चीरो भाइक कुकुरक अपनत्व सेहो वर्णनीय अछि। ओकरा भोजनमे विलंब भए
गेल रहैक । तेँ ओ रुसि गेल छल। बिज नहि रहल छल,भुकि नहि रहल छल। चुपचाप पड़ल छल।
ओकरा चीरोभाइ बहुत दुलार-मलार कए बऔसलनि। तकर बाद ओकरा अपने हाथे खुओलनि। भोजन
केलाक बाद ओकरामे तेजी आएल। ओ एमहर-ओमहर घुमए लागल। सभसँ आश्चर्य तखन लागल जखन बिदा होइत काल ओ हमरासभसँ पहिने टैक्सीबलाक
बगलमे जा कए बैसि गेल। ओ किन्नहु गाड़ी छोड़बाक हेतु तैयार नहि छल। बहुत मोसकिलसँ
ओकरा गाड़ीसँ बाहर कएल गेल। तकर बादो ओ स्कूटीपर जा कए बैसि गेल। हमसभ चीरो भाइक
गाड़ीपर बैसि गेल रही। कतबो कहलिअनि जे हमसभ ओला कए चलि जाएब। मुदा ओ नहि मानलाह।
हमरासभकेँ अपने गाड़ीसँ बिदा कइए कए मानलथि। बिदा होअएसँ पहिने समस्त परिवारक संग
फोटो घिचल गेल। हमरासभकेँ विदाइ सेहो देल गेल। तकर बादे हमसभ ओहिठामसँ हुनके
गाड़ीसँ अपन डेरा दिस आगू बढ़लहुँ।
चीरो
भाइ हुनकर परिवारक सदस्यलोकनिक संग बिताओल गेल
समय हमर सभक गुवाहाटी यात्राक अविस्मरणीय क्षण छल। एहन अपनत्व,स्वागत हेतु एतेक आतुरता आ व्यवहारक ओ
माधुर्य आजुक समयमे बहुत दुर्लभ अछि। हमसभ अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक हुनका ओहिठाम
रहलहुँ। ओहिठामसँ वापस
अएलाक बादो कतेक काल धरि हुनके लोकनिक चर्चा करैत रहलहुँ। असलमे चीरो भाइ एकटा सफल
संघर्षक नायक छथि। जीवनमे सभ तरहक उठा-पटक देखि-भोगि एकटा सुंदर आ प्रशंसनीय
ठेकानपर पहुँचि गेल छथि,प्रशंसनीय उपलव्धि प्राप्त केने छथि।
से तँ जे छनि से छनि,ओ हृदयक बहुत उदार आ भावुक व्यक्ति छथि।
ईश्वर हुनका लोकनिकेँ एहिना सतत सुखी आ संपन्न राखथि सएह मनोकामना।
श्री
आशीष अनचिन्हार
ओहि समयमे हम भुवनेश्वरी
मंदिरमे दर्शन कए निकलि रहल छलहुँ। करीब साढ़े चारि बाजि रहल छलहुँ। हमर फेसबुकपर
पोस्ट कएल गेल कामाख्या भगवती मंदिर लगक फोटो देखि श्री आशीष अनचिन्हारजी फोन
केलथि-
“फेसबुकपर
देखलहुँ जे अपनेसभ कामाख्यामे छी।”
“आइए गुवाहाटी
पहुँचलहुँ। कामाख्या भगवतीक दर्शनक बाद भुवनेश्वरी मंदिरमे दर्शन कए बाहर निकलि
रहल छी।”
“बहुत
प्रसन्नताक बात। कतए रुकल छी।”
“गुवाहाटी स्थित
सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे।”
गप्प-सप्प भइए
रहल छल कि फोन कटि-कटि जाइ। पहाड़ी सभक कारण नेटवर्क वाधित भए जाइत छल।
“बेर-बेर फोन
कटि रहल अछि। डेरा पहुँचैत छी। फेर गप्प करब।”
गप्पेक क्रममे ओ
कहलनि जे भुवनेश्वरी मंदिर दरभंगा महराजक बनाओल छनि। साँझमे डेरा पहुँचलाक बाद हम
अपन पता हुनका ह्वात्सएपपर पठा देलिअनि। ओ तुरंत लिखैत छथि-
“हम अस्सी
किलोमीटर फटकी रंगियामे रहैत छी। तथापि अपनेसँ भेंट करबाक हेतु उत्सुक छी। की पता फेर
एहन अवसर कहिआ भेटत ?”
“हमरो अपनेसँ
भेंट करबाक बहुत इच्छा अछि। हम चौदह तारिख भेंट-घाँटेक हेतु खाली रखने छी।ओहिसँ
पूर्व चेरापुंजी,शिलांग जेबाक अछि।”
“अच्छा अहाँ
ओमहरसँ वापस होउ। प्रयास करब जे हमसभ बीचमे कतहु भेंट करी। ”
तकर बाद फोन कटि
गेल। हम चेरापुंजीसँ लौटलाक बाद तेरह अप्रैल कए अनचिन्हारजीसँ भेंट करबाक हेतु हम
मोने-मोन कार्यक्रम बनबिते रही कि हुनकर फोन आएल-
“हमरासभक भेंट
नहि भए सकत। कार्यालयमे किछु जरूरी काज आबि गेलैक अछि। ताहिमे रविओ दिन व्यस्त
रहब।”
की कहितिअनि?
तकर बाद बड़ी काल धरि मैथिलीसँ जुड़ल विषयसभपर हमसभ चर्च करैत रहलहुँ। विदेह
पत्रिकामे हुनकर अनेक सालसँ कएल जा रहल योगदानक चर्च तँ भेबे कएल। निश्चित रूपसँ
अनचिन्हारजी कतेको सालसँ विदेह पत्रिकाक माध्यमसँ आदरणीय श्री गजेन्द्र
ठाकुरजी आ हुनकर अन्य सहयोगी लोकनिक संग
बहुत महत्वपूर्ण काज कए रहल छथि। मैथिली गजलक क्षेत्रमे हुनकर योगदानक चर्च होइते
रहैत अछि। एमहर आदरणीय गजेन्द्रजी आ हुनकर श्रीमतीजीसँ जुड़ल साहित्यिक विषयपर ,प्रीति
कारण सेतु बान्हल, नामसँ पुस्तक संपादित केलनि अछि। एहन सृजनशील आ मैथिलीप्रेमीसँ
भेंट कए बहुत नीक लगैत। मुदा कोनो बात नहि। ओ स्वस्थ रहथु,एहिना सक्रिय आ सृजनशील
बनल रहथु। आइ ने काल्हि भेंट हेबे करतैक। ओहुना विदेहक माध्यमसँ तँ हमसभ निरंतर
संपर्कमे रहिते छी।
मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटी
१० मार्च २०२४ कए हमसभ गुवाहाटी स्थित
अपन डेरापर वापस जाइत रही कि आदरणीय श्री कामेस्वर चौधरीजीक फोन आएल। गप्प-सप्पक
क्रममे हम कहलिअनि जे गुवाहाटीमे छी। ओ तुरंत कहैत छथि-
“प्रेमकान्त चौधरीजीसँ संपर्क केलिअनि कि
नहि?”
हुनकर नाम हमरो सुनल रहए। गुवाहाटीमे मैथिलीक
पुरान खाम्ह छथि ओ। मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक स्थापक
अध्यक्ष रहथि आ एक्कैस वर्ष धरि ओहि पदपर रहलथि। अखनहु पूर्वोत्तर मैथिल पत्रिकाक
संपादक छथि। फोनपर सेहो एकाध बेर हुनकासँ गप्प भेल अछि। तेँ हुनकासँ भेंट तँ करबाक
छलहे। मुदा सोचने रही जे पहिने चेरापुंजीसँ घुमि आबी। तकर बाद ई सभ कएल जेतैक। ताहि
हेतु १३,१४ अप्रैलक समय हम रखनो रही। फेर भेल जे अपन
कार्यक्रमक जनतब पहिनेसँ दए देबनि तँ बढ़िआँ रहत। हम ह्वात्सअपपर अपन कार्यक्रमक
जनतब हुनका देलिअनि। ओ तुरंत उत्तरो देलनि।
तेरह अप्रैलक भोरे सबाआठ बजेक आसपास
आदरणीय श्री प्रेमकान्त चौधरीजीक फोन आएल-
“अपनेक कोना की कार्यक्रम अछि?”
“अखन तँ हम अपन ग्रामीणक ओहिठाम जाएब।
ओहिठामसँ लौटलाक बाद खाली रहब। काल्हि सेहो भरिदिन खालीए छी।”
“अपनेक ग्रामीणक की नाम छनि?”
“रत्नेश्वर मिश्र”
“ओ हमरा जनैत छथि कि नहि?”
“जनिते हेताह।”आ से बात सही निकलल।
प्रेमकान्त चऔधरीजीकेँ ओ नीकसँ जनैत छथिन। ओएह नहि,अपितु गुवाहाटीमे रहनाहर
साइते केओ मैथिल हेताह जे हुनकर नाम नहि सुनने होअए। तकर कारण हुनकर
मैथिली-मिथिलासँ प्रेम थिक । हुनकर स्वभावसे बहुत मिलनसार अछि। ई सभ बात हमरा तखन
बेसी नीक जकाँ बुझाएल जखन १४ अप्रैलक दुपहर बारह बजेक आसपास हमरासँ भेंट करए ओ
हमर सीपीडब्लुडी अतिथिगृह अएलाह। बेस नमगर-पोरगर धुआ ,गोर
वर्ण आ आकर्षक छवि। देखितहि लागल जेना कतेक दिनसँ
परिचित होथि। हमसभ सोझे अपन कोठरी संख्या तीनमे चलि जाइत छी। प्रेमकान्तजी अपन विजिटिंग
कार्ड देलनि। ओहिमे वर्णित हुनकर योग्यता ,अनुभव देखि चकित
रही। सम्मान आ पुरस्कारक तँ जेना हुनकापर वर्षा भेल छनि। अतिथिगृहमे चाहक हेतु पहिनेसँ कहने रहिऐक। ओ सभ चाह अनबो केलक ,मुदा मीठ आ दुध बला चाह
प्रेमकान्तजी पिबैत नहि छथि। ओकरा हुनका हेतु बिना दूधक चाह अनबाक हेतु कहलिऐक। प्रेमकान्तजी ओकरा स्वयं असमिआमे नीकसँ बुझा देलखिन जे केहन चाह बनेबाक छैक। से सभ सुनि
कए जे ओ गेल से गेल। आधा घंटासँ बेसीए समय बीति गेल। हमरा बहुत संकोच भए रहल छल।
मुदा कएले की जाइत? ताबेमे ओकरा चाह अनैत देखलिऐक।
प्रेमकान्तजी चौल करैत कहलखिन-
“पत्ती आनए चाह बगान चलि गेल छलह की?”
ओ लजा गेल,किछु उत्तर नहि दए सकलनि,
चाह राखि कए चलि जाइत रहल। एहि बीच हमसभ अनेक विषयपर गप्प-सप्प करैत
रहलहुँ। प्रेमकान्तजीक चाह सठि गेल छलनि। हमसभ तँ चाह पहिने पिबि लेने रही। आब भोजनक समय भए रहल
छलैक। अतिथिगृहक भोजनालयसँ भोजन करबाक आग्रह कएल जा चुकल छल। हम प्रेमकान्तजी केँ
सेहो भोजन करबाक निवेदन केलिअनि। बहुत मोसकिलसँ ओ ताहि हेतु तैयार भेलाह। हमसभ
संगे-संगे भोजन केलहुँ। आब करीब दू बाजि रहल छल। प्रेमकान्तजीकेँ कार्यालय जेबाक
छलनि। हमसभ हुनकासँ गप्प-सप्पमे ततेक आनन्दित रही जे फराक हेबाक मोन नहि होअए।
मुदा हुनका तँ जेबाक छलनिहे। आखिर हुनका बिदा केलिअनि। जाइत-जाइत ओ कहैत गेलाह जे
साँझमे हुनकर कार्यालयमे मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक
बैसार हेतैक। ओहिमे अपने दुनूगोटेकेँ अएबाक अछि।
हमसभ बहुत आतुरतासँ साँझक प्रतीक्षा कए
रहल छलहुँ। अपन माटिसँ एतेक फटकी रहिओ कए गुवाहाटीमे प्रेमकान्तजी आ हुनकर मैथिल मित्रलोकनि मैथिली-मिथिलाक झंडा फहरओने छथि से बहुत
महत्वपूर्ण बात थिक। साँझमे छओ बजे हमसभ जीएस रोडपर एबीसी पुलिस प्वाइंट लग
प्रेमकान्तजीक कार्यालय पहुँचलहुँ। प्रेमकान्तजी पहिनेसँ
ओतए छलाहे। मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक
वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय श्री सत्य नारायण साहुजी सेहो उपस्थित रहथि। सत्य नारायणजी
बहुत योग्य व्यक्ति छथि। ओ पंजाब नेशनल बैकमे महाप्रबंधक( जीएम) क पदसँ
सेवानिवृत्त भेल छथि। अपन सेवाकालमे ओ कतेको महत्वपूर्ण पदसभपर रहल छथि। आसाम
ग्रामीण विकास बैकक अध्यक्ष सेहो रहल छथि। एहन सुयोग्य व्यक्तिसँ भेंट होएब
निश्चित रूपसँ बहुत भाग्यक बात छल। ओहिठाम आठ-दसगोटे मिथिला सांस्कृतिक समन्वय
समिति, गुवाहाटीक वर्तमान आ भूतपूर्व अधिकारी लोकनि
कार्यक्रममे भाग लेबाक हेतु आएल रहथि । हुनकासभसँ सेहो परिचय भेल। असलमे १४ अप्रैलक
चौबीस सालपूर्व मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटीक
स्थापना भेल छल। आइए ओकर स्थापना दिवस छल। एतेक दिनसँ बहुत रास परेसानीक अछैत ई
संस्था निर्वाद रूपसँ चलि रहल अछि से गौरवक बात थिक। संस्थाक गतिविधिपर आदरणीय
प्रेमकान्तजी आ आदरणीय सत्यनारायणजी
अपन-अपन बात रखलनि। आनो गोटे सेहो अपन विचार देलनि। ओही बीचमे ओ सभ हमरा दुनू
बेकतीक पाग आ दोपट्टा पहिरा कए हार्दिक स्वागत केलनि। स्मृति चेन्ह सेहो देलनि।
कार्यक्रममे हमहूँ अपन साहित्यिक यात्राक बारेमे बजलहुँ। चाह-पान भेलैक। फोटो घिचल
गेलैक। तकर बाद सभगोटे बेरा-बेरी ओहिठामसँ बिदा भेलहुँ। प्रेमकान्तजी हमरा
अतिथिगृह धरि छोड़ि देलनि। जाइत-जाइत कहलथि-
“हम भोरे फेर आएब। अपनेक हेतु किछु उपहार
रखने छी। आबए काल बिसरा गेल।”
हम बहुत मना केलिअनि । मुदा भोरे साते
बजे ओ फोन केलथि-
“हम दस मिनटमे आबि रहल छी। कनी रूकि
जाएब।”
हमसभ हबाइ अड्डा जेबाक हेतु तैयार रही।
मुदा हुनकर आग्रह टारब संभव नहि बुझाएल। कनीके कालक बाद ओ हाथमे एकटा झोरा लेने
आबि गेलथि। हुनकर स्नेहपूर्ण उपहारकेँ सम्हारि कए रखलहुँ।कनी काल हमसभ गप्पो
केलहुँ।आब समय समाप्त भए रहल छल। हुनकासँ बिदा लेब अनिवार्य भए गेल छल। अस्तु,हमसभ
टैक्सीपर बैसि गेलहुँ। प्रेमकान्तजी हमरासभकेँ प्रणाम केलनि। कहि नहि सकैत छी कतेक
आत्मीय आ भावपूर्ण छल हुनकर व्यवहार। किछु तँ विशेषता हुनकामे छनिहे जे एतेक
लोकप्रिय छथि,सेहो एतेक दिनसँ। अंत-अंत धरि ओ हमरासभक लगीचमे
रहलथि। टैक्सीपर बहुत दूर धरि बढ़ि गेल रही। मुदा प्रेमकान्तजीक प्रेमपूर्ण
व्यवहारसँ अभिभूत रही,आनन्दित रही। मोनमे एकटा संतुष्टि भाओ
छल जे हमरसभक ई यात्रा माता कामाख्याक असीम अनुकंपासँ बहुत सफल आ आनन्ददायक रहल।
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