मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीक लिखित हिन्दी उपन्यास,कला की आड़मे: पाठकीय प्रतिक्रिया


स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीक लिखित हिन्दी उपन्यास,कला की आड़मे: पाठकीय प्रतिक्रिया

आदरणीय श्री शरदिन्दु चौधरीजीसँ किछु दिन पूर्व किछु पोथीसभ भेटल छल। ओहिमे स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीक लिखित हिन्दी उपन्यास,कला की आड़मे,सेहो प्राप्त भेल । उपरोक्त किताब स्वर्गीय शेखरजीक हस्तलिपिएमे छापल गेल अछि। हुनकर हस्तलिपि बहुत साफ आ स्पष्ट अछि आ पढ़बामे कतहु दिक्कति नहि होइत अछि। कला की आड़मे ,उपन्यास, शेखरजी २६ सालक बएसमे लिखने रहथि । एतेक कम बएसमे लिखल गेल हुनकर ई उपन्यास स्वयंमे परिपूर्ण अछि।लेखकक युवा मोनक आकर्षण बहुत स्वाभाविक रूपसँ एहि उपन्यासमे परिलक्षित होइत अछि। एहि उपन्यासमे कतहु कोनो विरोधाभास,पुनरावृत्ति आ ऊब नहि भेटैत अछि। किताब बहुत मनलग्गू आ अर्थपूर्ण अछि। मुदा उपन्यासक नायक द्वारा नायिकापर  थुकि देब नीक नहि लगैत छैक। असलमे उपन्यासक नायक विवाहित छलाह आ नायिकाक प्रेमप्रपंचसँ बाँचए चाहैत छलाह । निश्चित रूपसँ उपन्यासमे वर्णित उपरोक्त घटना लेखकक  उच्च संस्कारक परिचायक रहल होएत,मुदा नायिकाक प्रेम निवेदन अस्वीकार करबाक आर नीक तरीका भए सकैत छल जाहिसँ साहित्यिक गरिमा बनल रहैत । एहि अपवादकेँ छोड़ि एहि उपन्यासक जतेक प्रशंसा कएल जाए से कम ।

बादमे तँ स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीजी एक सँ एक उच्चस्तरीय पुसतकसभ लिखलनि। हिनकर मैथिली उपन्यास ई बतहा संसार अद्भुत साहित्यिक कृति अछि । ओही पुस्तकपर हुनका साहित्य अकादमीक पुरस्कार भेटल रहनि।

एहि उपन्यासक भूमिकामे शेखरजी लिखैत छथि जे स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीजीक हिन्दीमे लिखल सोलहटा पुस्तक हुनकर घरमे छलनि आ १९७४ ई० धरि ओ हुनकर भातिज श्री पुणेंदु चौधरीजी लग छलनि। मुदा बादमे ओ कहि देलखिन जे हुनका लग कोनो किताब नहि छनि।   संभवतः कला की आड़मे छोड़ि कए आब हुनकर हिन्दीक कोनो किताब उपलव्ध नहि अछि। आश्चर्य आ दुखक बात अछि जे एतेक प्रसिद्ध साहित्यकारक लिखित किताबसभक एहन दुर्गति भेल । मैथिलीमे हुनकर तेरहटा पुस्तक प्रकाशित अछि। आशा करैत छी जे ओ पुस्तकसभ बाँचल होएत।

कला की आड़मे पुस्तककेँ ओकर मौलिक रूपमे प्रकाशित करबाक हेतु शेखर प्रकाशन आ हुनकर समस्त सहयोगीलोकनि केँ हार्दिक धन्यवाद आ शुभकामना! पुस्तक पठनीय अछि।  एकर अबस्स स्वागत हेबाक चाही।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

mishrarn@gmail.com

 




 

बुधवार, 17 जनवरी 2024

मैथिली निबंध संग्रह ,आलेखगुच्छ : पाठकीय प्रतिक्रिया

 





मैथिली निबंध संग्रह ,आलेखगुच्छ : पाठकीय प्रतिक्रिया

 

सिद्धिरस्तु द्वारा प्रकाशित आदरणीय श्री शशिबोध मिश्र 'शशि'जीक लिखित समीक्षात्मक मैथिली निबंध संग्रह ,आलेखगुच्छ ,पढ़बाक अवसर भेटल । एहि पोथीमे सोलहटा निबन्ध/ पुस्तकसमीक्षा/ प्रत्यालोचना सामिल अछि। एहि पोथीमे अनेक प्रख्यात लेखक द्वारा लिखित मैथिली उपन्यासक समीक्षा कएल गेल अछि । कैकटा मूर्धन्य  साहित्यकारलोकनिक संस्मरण,किछु कविता संग्रहसभक समीक्षा /प्रत्यालोचना (प्रोफेसर हरिमोहन झाक कन्यादानक संदर्भमे आदरणीय  डा.श्री रमानन्द झा'रमण'क समीक्षाक) आ मिथिला राज्य निर्माण संबंधमे आलेख सेहो अछि।

प्रोफेसर श्री विद्यानाथ झा विदित लिखित उपन्यास 'मानव कल्प’,श्री मन्त्रेश्वर झाजी द्वारा लिखित उपन्यास'चिनवार',स्वर्गीय हेतुकर झाजी द्वारा लिखित उपन्यास,’ककरा ले अरजब हे ,स्वर्गीय ललित द्वारा लिखित उपन्यास'पृथ्वीपुत्र,स्वर्गीय कांचीनाथ झा 'किरण'क उपन्यास,चन्द्रग्रहणक बहुत  उत्तम समीक्षा कएल गेल अछि। एहि आलेखसभकेँ पढ़लासँ संदर्भित उपन्यास सभक बारेमे बहुत सटीक जानकारी तँ भेटिते अछि,संगहि विद्वान लेखक उपन्यास कोना लिखल जाए,ओहिमे की विषय वस्तु आवश्यक अछि,की नहि लिखल जेबाक चाही ,तकर बहुत विस्तारसँ वर्णन केलन अछि ।

कवितरु वनमे छथि श्रीखंड शिर्षक आलेखमे आदरणीय लेखकजी प्रोफेसर हरिमोहन झाजी एकटा मात्र उपन्यासकारे नहि, मात्र सफल कथाकारे नहि, अपितु एकटा सिद्धहस्त कविअहु छलाह, से सिद्ध करबामे सफल भेलाह अछि। श्री शिवकुमार 'नीरवक काव्यकृति, अनुराग राग, बहुत नीक समीक्षा कएल गेल अछि। ओ लिखैत छथि-अनुराग राग, मुक्त छन्दक शैलीमे रहितहुँ छन्दक अन्य वैशिष्ट्य जेना यति,गति,लय एवं प्रवाह सँ परिपूर्ण अछि

आलेखगुच्छमे मैथिलीक  किछु प्रख्यात साहित्यकारक बारेमे लेखकक अपन संस्मरण बहुत रोचक तरीकासँ लिखल गेल अछि।  स्वर्गीय बैद्यनाथ मिश्र 'यात्री’,डा.इन्द्र कान्त झाजी,स्वर्गीय राजमोहन झाजी आ अंतमे स्वर्गीय सुधांशु शेखर चौधरीजीक बारेमे लिखल गेल हुनकर संस्मरणसभ पढ़लासँ बहुत रास जानकारी भेटैत अछि। लेखकजी हुनकालोकनिक कतेक लगीच छलाह से स्वतः सप्ष्ट होइत अछि ,संगहि हुनकालोकनिक जीवनक अनेक घटनासभक बारेमे सेहो जनतब होइत अछि।

मिथिला राज्यक निर्माणःताकि रहल बलिदान’,शिर्षकसँ लिखल गेल हुनकर आलेख बहुत उपयोगी अछि,तथ्यसँ भरल अछि आ एहि आन्दोलनकेँ गति देबामे सक्षम अछि। ई पढ़ि कए बहुत आश्चर्य  भेल जे दरभंगा महराज स्वर्गीय कामेश्वर सिंहजी संविधान सभामे मिथिला राज्यक प्रश्नपर मौन रहि गेलाह । एहिमे कोनो सक नहि जे बहुत षणयंत्रपूर्वक मिथिला राज्यक निर्माण होएबासँ रोकल गेल छल आ अखनहु सएह भए रहल अछि। मैथिली भाषाकेँ संविधान सम्मत अधिकार बिहार राज्यमे सरकार द्वारा नहि भेटि रहल अछि जखन कि झारखंडमे मैथिली द्वतीय राजभाषा अछि, नेपालमे मैथिली द्वतीय राजभाषा अछि। मैथिलीक हितसाधन हेतु आवश्यक अछि जे पृथक मिथिला राज्य शीघ्र बनए। एहि संबंधमे लेखकजी बहुत उपयुक्त परामर्शसभ देलनि अछि जाहिपर ध्यान देबाक प्रयोजन अछि।

आलेखगुच्छ अद्भुत पोथी अछि। एकबेर एकरा पढ़ब शुरु केलहुँ तँ समाप्त केलाक बादे उठि सकलहुँ। पुस्तकक भाषा आ लिखबाक शैली ततेक नीक आ मधुर अछि जे ई आलेखसभ पढ़ैत काल कविता पढ़बाक आनन्द भेटैत अछि। एहि पोथीकेँ अबस्स पढ़बाक चाही, स्वागत हेबाक चाही। लेखक आ प्रकाशक दुनूगोटेकेँ हार्दिक बधाइ आ शुभकामना!

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

mishrarn@gmail.com


शनिवार, 6 जनवरी 2024

युग-युग जीबथु उमेशजी!

 



युग-युग जीबथु उमेशजी
!

 

डाक्टर उमेश मंडल परिचयक मोहताज नहि छथि।  आइ-काल्हि मैथिलीसँ जुड़ल साइते केओ हेताह जे हुनका नहि जनैत हेथिन । डाक्टर उमेश मंडल भोरे उठैत छथि  तखनहि सँ जे मैथिलीक काज शुरु करैत छथि से दुपहर राति धरि चलैत रहैत छनि। बीचमे यदि कनी काल वाधित होइत छनि तँ बस जीविकोपार्जन हेतु । सेहो कोनो नियमित नौकरी नहि करैत छथि। असलमे हिनकर संपूर्ण परिवारे मैथिलीमय भए गेल अछि। हिनकर पिता आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी मैथिलीमे एक सए चौदहटा किताब लिखि चुकल छथि आ अखन तँ लिखिए रहल छथि। हिनकर पत्नी,बेटीसभ दिन-राति मैथिलीक काजमे लागल रहैत छथि। पल्लवी प्रकाशनक नामसँ सत्य पुछी तँ एकटा मैथिलीक जन आन्दोलन ठाढ़ भए गेल अछि जकर ई सभगोटे कर्ता-धर्ता छथि। अत्यन्त साधारण पूँजीसँ परिश्रमक बदौलत पल्लवी प्रकाशनसँ अनेक रचनाकारलोकनिक मैथिली पोथीसभ बहुत कम दाममे छपैत छथि। एहिसँ बहुत रास मैथिली लेखककेँ अपन रचनाकेँ प्रकाशित करबाक अवसर भेटैत छनि।

असलमे हमरा डाक्टर उमेश मंडलजीसँ संपर्के भेल छल पोथी छपेबाक क्रममे । ई बात सन् २०१७क थिक । हम मैथिलीमे हाथसँ लिखैत छलहुँ । तकरा निर्मली व्हाट्सएपपर पठबैत छलहुँ । तकरा ओ टंकित करैत छलाह आ अत्यन्त परिश्रमपूर्वक पुस्तकाकार दैत छलाह । एहि तरहसँ हमर शुरुक पाँचटा पोथी ओएह टंकित केलनि,छपबो केलनि। ततबे नहि,ओकरा समय-समयपर सगर राति दीप जरए, कार्यक्रममे लोकार्पणो करबओलथि।  हमर पहिल प्रकाशित पोथी,भोरसँ साँझ धरि(आत्मकथा)क लोकार्पण दिल्लीमे मित्र संगम पत्रिकाक सहयोगसँ भेल छल। मुदा तकर बाद अनेक पोथीक लोकार्पण उमेशजीक सहयोगसँ सगर राति दीप जरए कार्यक्रममे होइत रहैत छल।

सन् १९८२सँ १९८५क बीचमे लिखल गेल हमर  उपन्यास आ कथासभक हस्तलिखित पाण्डुलिपि छत्तीस सालसँ ओहिना राखल छल। एमहर पुरनका पन्ना सभ पलटलहुँ तँ एकरा सभकेँ फेरसँ देखबाक अवसर भेटल। श्री उमेश मण्डलजी बहुत परिश्रमसँ पुरान भेल पाण्डुलिपि सभकेँ स्वच्छ प्रति टंकित केलाह जाहिसँ ई कथा सभ इजोत देखलक। एतेक पुरान कागजपर हाथसँ लिखल पाण्डुलिपिक फोटो व्हाट्सएपपर निर्मली पठाएब आ तकरा टंकित करब बहुत मोसकिल काज छल। हाथ रखितहि कागज लसकि जाइत छल। कतेको ठाम पेनसँ लिखलाहा ढबकि गेल छल। किछु पन्ना तँ फाटिओ गेल छल । उमेशजी एहि कठिन काजकेँ अत्यन्त परिश्रमपूर्वक आ उत्कृष्ट निष्ठासँ संपन्न केलनि । आखिर, डाक्टर उमेश मण्डलजी एकर पाण्डुलिपिकेँ टंकित केलाह । तकर बादे सन् २०१८मे फसाद (कथा संग्रह) आ २०२२मे प्रतिबिम्ब(उपन्यास) क्रमशः छपि सकल।

ई बात सर्वविदित अछि जे आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मंडलजीक पोथीसभकेँ प्रकाशित करबामे डा.उमेश मंडलजीक गंभीर योगदान अछि। ई काज ओ ततेक मनोयोग आ मेहनतिसँ करैत छथि जे हुनकर किताबमे एकटा गलती नहि भेटैत अछि। हुनके टा नहि,आन-आन लेखकसभक किताब ओ बहुत कम खर्चामे प्रकाशित कए दैत छथि। भोरसँ साँझ धरि ओ निरंतर कोनो ने कोनो उद्योगमे लागले रहैत छथि। कठोर परिश्रम आ इमानदारीसँ ओ अपन जीविकोपार्जन करैत छथि। एतेक संघर्षक बादो हुनका कखनहु एको क्षण हेतु उदास नहि देखबनि, निरंतर उत्साहसँ भरल रहैत छथि। तकर प्रमुख कारण अछि हुनकर विचारमे सकारत्मकता। मैथिलीक काज होइक चाहे जकर होइक ,ओ निधोख मदति करबाक हेतु आगू आबि जाइत छथि। यदि ओ हमर पाण्डुलिपिसभकेँ टंकित  करबाक हेतु उपलव्ध नहि भेल रहितथि तखन साइते हम एतेक लिखि सकितहुँ । (जखन कि ओ हमरा जनितहु नहि छलाह। अखन धरि हमरा हुनकासँ मात्रएकबेर भेंट भेल,ओहो साहित्य अकादमीमक परिसरमे। )बादमे हम जरूर स्वयं टंकण करए लगलहुँ ,मुदा शुरुमे तँ ओएह मदति केलनि जकर चर्च हम ऊपरमे कए चुकल छी।

बहुत कम संसाधनसँ बड़का काज कए रहल छथि उमेशजी। मैथिलीक एतेक काज करितहुँ ओ अपन अध्ययन-लेखन जारी रखने छथि। एही बीचमे ओ पीएचडी सेहो कए लेलनि। अपने अनेक किताब सेहो लिखि प्रकाशित केलनि। सभ तीन मासपर ,सगर राति दीप जरए,कार्यक्रममे सक्रिय भाग लए मैथिली कथा साहित्यकेँ एकटा आन्दोलन बना देलनि ओ । जे काज शुरुमे मिथिला मिहिर केने छल,नव-नव लेखक बनओने छल,सएह काज आब ,सगर राति दीप जरए कए रहल अछि । कतेको नव साहित्यकारक हेतु एकटा मजगूत प्लेटफार्म बनि गेल अछि,सगर राति दीप जरए। समस्त मिथिलामे मैथिलीक हेतु एहन समर्पित व्यक्ति नहि भेटत,कम सँ कम युवकमे तँ नहिए। एहन व्यक्तिक सम्मान हेबाक चाही ,उचित सहयोग  भेटबाक चाही जाहिसँ मैथिलीक काज ओ आर उत्साहपूर्वक करैत रहथि ।

मिथिला मैथिलीक एहन अनन्य अनुरागी आ संपोषक सही मानेमे मिथिला रत्न छथि,बहुत आदरणीय छथि डाक्टर उमेश मंडलजी । ओ एहिना मैथिली साहित्यकेँ आगू बढ़बैत  रहथि से जगदंबासँ मंगल कामना! युग-युग जीबथु उमेशजी!

रबीन्द्र नारायण मिश्र

m-9968502767

mishrarn@gmail.com

 

 

 

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

चित्रकुटकेँ घाट पर

चित्रकुटकेँ घाट पर

 

नवंबर २०२२मे प्रयागराजमे आयोजित डाक्टर जयकान्त मिश्र जन्म शताव्दी समारोहमे भाग लेलाक बाद हमसभ प्रयागराजसँ करीब चालीस किलोमीटर फटकी मेजा तहसीलेमे अवस्थित एनटीपीसीमे कार्यरत हमर शाढूक ज्येष्ट पुत्र चिoआदित्य एजीएमक ओहिठाम पहुँचलहुँ । हमर मित्र आदरणीय संजीव सिन्हाजी,जिनका ओहिठाम हम प्रयागराज प्रवासक दौरान ठहरल रही,हमरासभकेँ ओहिठाम धरि अपन कारसँ अरिआति देलनि। एहन स्नेह,एहन अपनत्व कतए पाबी? कनीकाल आदित्यजीक डेरापर रुकलाक बाद सिन्हाजी वापस प्रयागराज चलि गेलाह। तकर बाद हमसभ ओहिठाम बच्चासभक संगे  हिलिमिलि गेलहुँ । हमर पेट प्रयागेसँ गड़बड़ चलि रहल छल। हमरश्रीमतीजीक पेट सेहो एहिठाम पहुँचलाक बाद गड़बड़ा गेलनि। धुआनि ढेकार दए रहल छलनि। रद्द हेबाक प्रवृत्ति सेहो छलनि। आदित्य एनटीपीसीक चिकित्सालयसँ किछु दबाइ अनलनि। किछु दबाइ हमरा लग छलहो। ओएहसभ काज आएल। क्रमशः हुनकर मोन ठीक भेलनि। दोसर दिन जखन उठलहुँ तँ ओ आगूक यात्रा हेतु स्वस्थ बुझेलीह। सभगोटेकेँ चित्रकुट जेबाक कार्यक्रम बनलनि। आदित्य एकटा बड़का कार ठीक केने रहथि। हमसभ जलखै चाह केलाक बाद करीब दसबजे ओहिगाड़ीसँ चित्रकुट बिदा भेलहुँ । हमसभ छओ गोटे रही,दूटा बच्चा सेहो रहए। कुल मिला कए आठगोटे भेलहुँ आ गाड़ी एक्केटा,निसस्न्देह बड़का गाड़ी रहैक । तथापि,ओते गोटेक समावेश करब बहुत मोसकिल छलैक,मुदा कएल गेलैक। वाहनचालक लगक सीटपर हम बैसलहुँ , मुदा हमर दुनूकात दूटा बैग राखल रहए जाहिसँ हम अपन टांग कनीको हिला नहि सकैत छलहुँ । पछिलका  सीटपर बैसल लोकसभक हालति तँ सोचल जा सकैत अछि।  आखिर दस बजे ओ गाड़ी बिदा भेल। रस्ता भरि गप्प-सप्प चलैत रहल। सभ तरह-तरहक अनुभवसभक वर्णन होइत रहल। एहिसभसँ यात्रा बहुत मनोरंजक भए गेल। समय कोना बितल आ चित्रकुट कोना आबि गेल से पतो नहि चलि सकल।

चित्रकुट बहुत पवित्र आ प्रमुख धार्मिक स्थान मानल जाइत अछि । भगवान राम,तुलसीदास आ आधुनिक कालमे जगद्गुरु रामभाद्राचार्यजी चित्रकूटसँ जुड़ल बहुत स्मरणीय नामसभ छथि। ओना हिनकासभक बारेमे के नहि जनैत अछि? तथापि प्रसंगवश हिनकालोकनिकेँ उद्धृत करैत छी। तखन  चित्रकूटक आगूक यात्रावृतान्तक चर्च करब।

भगवान राम अपन चौदह वर्षक वनबासक अवधिमे सँ साढ़े एगारह वर्ष एहीठाम बितओने छलाह। हुनकर वनबास गमनक बाद हुनकर पिता दसरथक मृत्युक सूचना एहीठाम हुनकर अनुज भरत द्वारा देल गेल रहनि। एतहि ओ अपन स्वर्गीय पिताक श्राद्ध केलनि। यद्यपि भरत हुनका वापस अयोध्या जा कए राज काज सम्हारबाक बहुत आग्रह केलनि ,परंतु भगवान राम वनबास अवधि धरि वापस अयोध्या नहि जेबाक निर्णयपर अड़ल रहि गेलाह। तकर बाद हुनकर चरणपादुका लए भरत वापस अयोध्या आबि गेलाह। हुनका संग चित्रकुट गेल गणमान्यलोकनि सेहो वापस आबि गेलथि। भगवान राम सीता आ लक्षमणक संगे चित्रकुटेमे रहि गेलाह ।

काशीमे तुलसीदासकेँ एकदिन एकटा प्रेत भेटलनि। ओ हुनका हनुमानजीक पता देलकनि। हनुमानजीसँ भेंटक बाद तुलसीदास  भगवान रामक दर्शन करेबाक जनतब भेटलनि। हुनकर परामर्शक अनुसार ओ चित्रकुट आबि गेलाह। ओतए ओ रामघाटपर रहथि। एकदिन प्रदक्षिणाक क्रममे हुनका दूटा राजकुमार धनुषवाण लेने घोड़ापर सबार देखेलनि। ओ हुनका देखि मंत्रमुग्ध भए गेलथि। मुदा चिन्हि नहि सकलथि जे ओ भगवान राम आ लक्षम्ण छलाह । बादमे हनुमानजी हुनका सभ बात कहलखिन । से जानि कए तुलसीदास बहुत दुखी भए गेलथि। हुनका हनुमानजी सांत्वना दैत कहलखिन  जे हुनका फेर भगवानक दर्शन हेतनि। संवत सोलह सए सात मौनी अमावस्याक दिन बालकरूपमे हुनका फेर भगवानक दर्शन भेलनि। ओ बालक हुनकासँ चानन मागलथि। हनुमानजीकेँ भेलनि जे तुलसीदास कहीं फेर ने हुसि जाथि। ओ सुग्गा बनि कहलथि-

चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।

तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।

तुलसीदास तुरंत चौंकि गेलाह,सतर्क भेलथि आ भगवानकेँ चिन्हि गेलथि। ओ बालकरूपमे भगवानक सद्यः दर्शन कए मंत्रमुग्ध भए गेलथि। भगवान अपने हाथे हुनक माथपर चानन लगओलथि आ ओहिठामसँ बिला गेलथि ।

आधुनिक कालमे जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी आ हुनका द्वारा स्थापित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकुटमे चर्चाक विषय अछि। ओ चित्रकुटमे तुलसीपीठक स्थापना केने छथि। जगद्गुरु रामभद्राचार्यजीक कथा बहुत रोमांचकारी अछि। ओ शुरुएसँ बहुत प्रतिभाशाली रहथि। तीने वर्षक आयुमे ओ पहिल कविता लिखने रहथि-

मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी।

तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी॥

सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी॥

तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी॥

गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आँचर ओट करी॥

हुनका द्वारा रचित पहिल संस्कृत श्लोक अछिः

महाघोरशोकाग्निनाऽऽतप्यमानं

पतन्तं निरासारसंसारसिन्धौ ।

अनाथं जडं मोहपाशेन बद्धं

प्रभो पाहि मां सेवकक्लेशहर्त्तः ॥

ओ बाइस भाषाक ज्ञाता छथि।

जगद्गुरु रामभद्राचार्यक पारिवारिक नाम गिरधर मिश्र छलनि। हिनकर जन्म जौनपुर जिलाक शांदिखुर्द नामक गाममे १४जनबरी सन् १९५०क भेल रहनि । हिनकर पिताक नाम पंडित राजदेव मिश्र आ माताक नाम सच्ची देवी छलनि। ओ जखन एगारह वर्षक रहथि तखन परिवारक लोकसभ हुनका एकटा बरिआतीमे आन्हर हेबाक कारण नहि लए गेल रहनि। लोकक धारणा छल जे आन्हर अशुभ होइत अछि। ओ एहि घटनासँ बहुत आहत भेल रहथि। बादमे ओ कहलथि जे अखनहु हम आन्हरे छी,मुदा लोकसभ शुभ कार्यमे हमर उपस्थितिक हेतु लालायित रहैत छथि। श्रीरामभद्राचार्यजी अद्भुत प्रतिभाशाली छथि। ओ जे किछु सुनैत छथि से एक्के बेरमे कंठस्थ कए लैत छथि। हुनका कतेको विषयमे आचार्यक उपाधि भेटल छनि। ओ पीएचडी आ डिलिट उपाधि सेहो प्राप्त केने छथि। मानव कल्याण आ विकलांगक सेवा हुनकर प्रमुख लक्ष्य छनि।

चित्रकूट पहुँचितहि सभसँ पहिने हमसभ एकटा नीक होटलक जोगारमे लगलहुँ । कामदागिरिसँ सटले एकटा होटल लग हमसभ पहुँचलहुँ। हमसभ दूटा पुरुष ,चारिटा महिला आ दूटा बच्चा संगे छलहुँ । कमसँ कम तीनटा कोठरी तँ चाहबे करी। ओ दुनू बेकती आगू बढ़लाह आ मनेजरसँ गप्प कए रहल छलाह । गप्प कनी तिराइत बुझाएल। हमहूँ ओहिठाम पहुँचलहुँ । कारण चिंता भेल जे पता नहि केना की भए रहल अछि। होटल मनेजर कहलकैक –

एक हजार रुपया प्रति कोठरी लागत। काल्हि दस बजे खाली करए पड़त।

डिसकाउन्ट कतेक?”

ओ हँसए लागल। फेर बजैत अछि-

एतनी तँ किराया अछि। एहिमे की डिसकाउन्ट भेटत। खाली करबाक समय कनी आगू कए सकैत छी।

हमरासभकेँ काल्हि साँझमे वापस जेबाक अछि।

कोनो बात नहि। कनी देरीएसँ खाली कए देब, एतबा समावेश हम कए देब।

कखन धरि खाली करबाक होएत?”

बेसी सँ बेसी एक बजे धरि।

 ठीक छैक।

हमसभ कोठरी देखए लगलहुँ । तीनू कोठरी एक्के तलपर भेटि जाए । ताहि हेतु हमसभ ऊपर,नीचाँ करैत रहलहुँ। आखिर भूतलेपर तीनू कोठरी भेटि गेल। हमसभ आवश्यक कागज-पत्र जमा कए अपन-अपन कोठरीमे चलि गेलहुँ । थोड़ेकालक बाद हमसभ ओतहि भोजन केलहुँ ,कनीकाल विश्राम केलहुँ । तखन चित्रकूट भ्रमण हेतु बिदा भेलहुँ ।

सभसँ पहिने हमसभ मन्दाकिनी नदीक रामघाटपर पहुँचलहुँ । ओहिठाम एकटा नाओ ठीक केलहुँ जे हमरासभकेँ मन्दाकिनी नदीमे घुमओलक। अखन आरती शुरु हेबामे समय रहैक तेँ नाओसँ नदीक ओहिपार पहुँचि हमसभ लगपासक कैकटा मंदिरसभमे दर्शन केलहुँ । तुलसीदास जतए पूजापाठ करैत छलाह आ भगवान रामकेँ चानन लगओने छलाह ततहु गेलहुँ । चारूकात बानरसभ घुमि रहल छल। ओकरासभसँ बचबाक हेतु एकटा स्थानीय लोकक मदति लेलहुँ । भगवान राम एहीस्थानपर तुलसीदासकेँ दर्शन देने रहथि।

साँझमे एतए मन्दाकिनीक आरती देखलहुँ । आरतीमे अनेक तरहसँ प्रज्वलित दीपसभकेँ विशेष रूपसँ सुसज्जित पुजारी लोकनि बहुत आकर्षक दृश्य उत्पन्न करैत छथि। हमर इच्छा रहए जे नाओपर बैसिए कए आरती देखी। मुदा नाविक तैयार नहि भेल। आखिर हमसभ सामनेमे बैसि कए आरतीक आनंद लेलहुँ । मुदा किछूगोटे नाओमे बैसिए कए आरती देखि रहल छलाह। ई बात हम ओकरा कहबो केलिऐक। मुदा ओ तरह-तरहक कबाइत करैत रहल। आरती समाप्तिक बाद नाओपर बैसि हमसभ नदीक ओहि कात गेलहुँ । तकर बाद वापस अपन डेरा बिदा भेलहुँ । डेरा वापस हेबा क्रममे एकटा नीक भोजनालय देखाएल । हमरासभकेँ बहुत भूख लागि गेल छल। अस्तु, सभ काज छोड़िकए ओहिठाम भोजन केलहुँ । संयोगसँ हमर झोरा ओतहि छुटि गेल छल। ओहीमे सभटा महत्वपूर्ण वस्तुसभ राखल छल। हम तुरंत वापस ओहि भोजनालय पहुँचलहुँ । झोरा सुरक्षित राखल छल। ओहिमे सभकिछु(टाका, डेबिट कार्ड आ आधार कार्ड) बाँचि गेल छल। हम झोरा सुरक्षित भेटि गेलासँ बहुत प्रसन्न भेलहुँ आ सभगोटे अपन डेरा दिस कारसँ बिदा भेलहुँ ।

प्रात भेने हमसभ रामघाट बिदा भेलहुँ । किछुगोटे ओतहि स्नान करितथि आ तकर बाद मंदिरसभमे दर्शन करैत आगू बढ़ितथि। मुदा हम दुनू बेकती मंदाकिनीमे स्नान करबाक हेतु इच्छुक नहि रही। कारण काल्हि ओकर पानिक हालति देखि लेने रही । ओहि पानिमे नहएबासँ नीक जे  एक पथिआ थाल-कादो अपना माथपर ढारि ली। चारूकात दुर्गंध से करैत रहए। तेँ हमसभ काल्हिए सोचि लेने रही जे डेरासँ स्नान कइए कए बिदा होएब आ सएह केबो केलहुँ । हमरासभक संगे जे नवयुवक दंपति रहथि से अपन दुनू बच्चाक संगे  आ दूटा बृद्ध महिलाक संगे आगू बढ़लाह। वाहनचालक कहलक-

अहाँसभ चाही तँ कामदागिरिक दर्शन केनहि चलि सकैत छी। ओ एकदम सटले अछि।

नहि, नहि। पहिने मंदाकिनीमे स्नान करब तकर बादे किछु आओर।

ओना हमर इच्छा रहए जे कतहु जलखै कए ली। भोरुका चाहो नहि पीने रही। मुदा अधिकांश लोकक इच्छा देखैत चुप रहि गेलहुँ।

आखिर सभगोटे रामघाट बिदा भेलहुँ । हम दुनू बेकती मंत्रस्नान केलहुँ ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

-तीन बेर पढ़ि मंदाकिनीक पानि आंजुरमे लए अपनाकेँ शुद्ध केलहुँ। मुदा ओ सभ तँ बहुत नीकसँ स्नान केलथि। आरो बहुत लोकसभ ओतए नहाइत देखाएल । असलमे आस्था आनसभ वस्तुपर भारी पड़ि जाइत अछि । अन्यथा ओहन घोरल-घारल ,दुर्गंधयुक्त पानिक लगोमे नहि जाइत केओ। स्नानक बाद लगीचेक मंदिरमे दर्शन कए हमसभ अनसूया आश्रम बिदा भेलहुँ ।

जंगलक बीचमे कलकल बहैत मंदाकिनी नदीक जलधाराक सौंदर्य देखैत बनैत अछि। एहिठामक पानि बहुत स्वच्छ अछि। पानिमे नीचाँ धरि  स्पष्ट देखाइत रहैत अछि। पानिमे चलैत-फिरैत बहुत रास माछसभ देखाइत रहैत अछि। लोकसभ माछकेँ खेबाक हेतु अन्न फेकैत रहैत छथि। एहिठाम अनसूया-अत्री मुनिक आश्रम छल। अनसूया एतहि सीताजीकेँ बहुत रास गहनासभ देने रहथिन । संगे उपदेश सेहो देने रहथिन।  वर्तमानमे एहिठाम श्री परमहंस आश्रम,अनसुइआ,चित्रकूट बनल अछि। ओहिमे अनेक संतलोकनिक समाधिस्थल अछि। यात्रीलोकनि ओहि समाधिसभक दर्शन करैत छथि आ श्रद्धानुकूल दान सेहो दैत छथि।

अनसूया आश्रमक बाद हमसभ गुप्त गोदावरी बिदा भेलहुँ । चित्रकूटसँ लगभग अठारह किलोमीटर फटकी अछि गुप्तगोदावरी। कहल जाइत अछि जे भगवान राम वनबासक समयमे ऐहिठाम किछुदिन रुकल रहथि। हुनके दर्शनक हेतु गोदावरी गुप्त रुपसँ एतए प्रकट भेल रहथि। गुप्त गोदावरीमे दूटा गुफा अछि। एकटा पैघ आ दोसर छोट। पैघु गुफामे पानि नहि अछि। एकर अंतमे छोटसन पोखरि अछि। छोट गुफामे पानि देखाइत अछि। आगू बढ़लाक बाद ओहिमे ठेहुन भरि पानि भेटैत अछि। गुफाक निर्माण प्रकृतिक दुर्लभतम कृति कहल जाइत अछि।

गुप्तगोदावरीक दर्शनक बाद हमसभ वापस अपन डेरा बिदा भेलहुँ । ओहिठाम पहुँचैत-पहुँचैत सभगोटेकेँ बहुत भूख लागि गेल छल। ओतहि होटलमे भोजन केलहुँ । आब दू बाजए बला छल। हमसभ वापसी यात्राक तैयारीमे लागि गेलहुँ । अपन-अपन सामानसभ सरिएलहुँ । स्वागतीकेँ कोठरीके कुंजी देबाक हेतु स्वागतकक्ष लग पहुँचलहुँ । हम अपन कोठरीक कुंजी सुंझा देलिऐक। दोसर कोठरीक कुंजी सेहो वापस देल गेल। मुदा तेसर कोठरीक कुंजी नहि भेटि रहल छल। कोठरीक कुंजी हरा जेबाक कारण ओहिठाम माहौलमे थोड़ेकालक हेतु तनाओ पसरि गेल ।

हम तँ कुंजी अहींक हाथमे देने रही।

हमरा लग रहितए तँ रहबे करितए। अहाँ जरूर कुँजी बच्चाकेँ सुंझा देलिऐक ।

हम तँ अपन कोठरीमे रही।

एहि तरहेँ आरोप-प्रत्यारोप होइत रहल। कुंजी सौंसे  ताकल गेल। समानसभ उकटल गेल। मुदा कुंजी नहि भेटल। एहि प्रक्रियामे आधाघंटासँ बेसी समय लागि गेल। असलमे ओ कुंजी बच्चासभक हाथमे पड़ि गेल रहए। ओएहसभ कतहु एमहर-ओमहर कए देलक। आब तँ बेस मोसकिल भए गेल। स्वागत कक्षमे मौजूद स्वागती दू सए टाका हरजाना लेलक तखने अपन कुंजीसँ ओहि कोठरीकेँ खोललक। ओहिमे राखल सामानसभ निकालल गेल। होटलक हिसाब-किताब केलाक बाद हमसभ वापस प्रयागराज बिदा भेलहुँ ।

हमसभ गोटे प्रयागराज जेबाक हेतु कारपर बैसि गेल रही। कार कनी दूर चलबो कएल कि वाहन चालक बाजल-

इएह थिक कामदागिरि । अहाँसभ चाही तँ एहिठाम उतरि कए दर्शन कए सकैत छी।

कतेक दूर हेतैक?”

इएह सामनेमे देखा रहल अछि।

 मुदा ओहिठाम कार नहि जा सकत। एतहि उतरि कए पैरे जेबाक होएत।

चित्रकुटक एकटा प्रमुख स्थान अछि कामतानाथ । कहल जाइत अछि जे भगवान राम कामतानाथ पहाड़पर साढ़े एगारह साल रहल रहथि। ओ एहि पहाड़क परिक्रमा सेहो करथि । एहिठामसँ जाइत काल भगवान राम वरदान देने गेलाह जे जे केओ एहि पहाड़क परिक्रमा करत तकर सभटा मनोकामना कामतानाथ पूरा करथिन। ई परिक्रमा लगभग पाँच किलोमीटरक होइत अछि आ श्रद्धालुलोकनि बहुत भक्तिभावसँ एकर परिक्रमा करैत छथि। परिक्रमाक क्रममे कैकटा छोट-छोट मंदिरसभ पड़ैत अछि। तीर्थयात्रीलोकनि सभ मौसममे एतए परिक्रमा करैत देखल जाइत छथि ।

            हमसभ आपसमे  विमर्श केलहुँ । असलमे हमरा प्रयागराजमे दिल्लीक हेतु ट्रेन पकड़बाक छल। तकर ध्यानमे राखि आब बेसी काल समय नहि बाँचलछल। हमसभ ओतहिसँ कामदागिरिकेँ प्रणाम कए आगू बढ़ि गेलहुँ ।

चित्रकूटमे भरतकूपक बहुत महत्व अछि। कहल जाइत अछि जे जखन भगवान राम वनबासमे चित्रकूट आबि गेल रहथि तखन भरत ओहिठाम सपरिवार आबि भगवान रामसँ वापस अयोध्या चलबाक आग्रह केलथि। ओ अपना संगे अनेक नदीसभक जल अनने रहथि जाहिसँ भगवान रामक राज्याभिषेक होइत। परंतु ओ ताहि हेतु जखन सहमति नहि भेलाह तखन भरत हुनके परामर्शसँ भरत अत्री ॠषिसँ भेंट केलनि । हुनके आज्ञानुसार ओ सभटा जलकेँ ओहिठाम स्थित इनारमे खसा देलनि।  ओएह इनार आब भरतकूपक नामसँ जानल जाइत अछि। भरतकूपक जल बहुत पवित्र मानल जाइत अछि। एकर जल बहुत शीतल होइत अछि। गर्मीक समयमे लोकसभ एहि पानिसँ स्नान कए बहुत आनंदित होइत छथि। एकर अतिरिक्त स्फटिक शिला,सीताक रसोई सन-सन अनेक स्थान अछि जे एहिठाम देखल जा सकैत अछि। स्वर्गीय नानाजी देशमुखजी द्वारा स्थापित महात्मागांधी चित्रकूट ग्रामीण विश्वविद्यालय सेहो दर्शनीय स्थान अछि। सरबतमे जतेक चिन्नी देबैक ततेक मिठ्ठ होएत। घुमबाक हेतु समय,टाका आ स्वास्थ्य सभकिछु चाही। तथापि उपलव्ध समयमे जतेक हमसभ घुमि सकलहुँ से घुमलहुँ,जतेक देखि सकलहुँ से देखलहुँ , आनन्दित तँ भेबे केलहुँ । असलमे चित्रकूटक कण-कण राममय अछि । हुनकासन महापुरुष जतए साढ़े एगारह वर्ष रहल होथि ताहिठामक महात्म्यक वर्णन की कएल जा सकैत अछि? ओ तँ साक्षाते स्वर्ग थिक , भक्तलोकनिक हेतु प्रातःस्मरणीय थिक।

चित्रकूटक रामघाटसँ  तीन किलोमीटर फटकी हनुमानधारा अछि। हमसभ वापसी यात्रामे सड़केपरसँ पहाड़ीपर अवस्थित ओहिस्थानकेँ देखलहुँ । ओतहिसँ हनुमानजीकेँ प्रणाम करबाक करैत आगू बढ़ि गेलहुँ । रस्तामे वाहनचालककेँ अगुतबैत रहलिऐक जाहिसँ ट्रेनक समय धरि हमसभ प्रयागराज पहुँचि जाइ। से संभव भए सकल।

प्रयागराजमे हमसभ अपन मित्र श्री संजीव सिन्हाजीक ओहिठाम पहुँचलहुँ । ओहिठाम भोजन केलहुँ । कनीकाल विश्रमाक बाद हुनके संगे प्रयागराज टीसन बिदा भेलहुँ । संजीव सिन्हाजीक पुत्र कार चला रहल छलाह। दस मिनटक भितरे हमसभ टीसनपर पहुँचि गेल रही। हुनकासभकेँ प्रयागराजक रस्ताक सही जनतब रहनि जाहिसँ से संभव भेल। प्रयागराज एक्सप्रेस लागल छल। हमसभ तुरंत ओहिमे अपन निर्धारित शायिकापर  पहुँचि आश्वस्त भेलहुँ । सिन्हाजी आ हुनकर पुत्र थोड़ेकाल हमरा सभ लग बैसल रहलाह । आब ट्रेन खुजि जाएत। से जानि ओसभ ट्रेनसँ उतरि गेलाह । एहि बेरक हमरसभक प्रयागराज  प्रवासक दौरान आदरणीय श्री संजीव सिन्हाजीक स्वयं आ हुनकर समस्त परिवारक आतिथ्य,हुनकरसभक प्रेम बिसरल नहि जा सकैत अछि। हमसभ प्रयागराजमे हुनकालोकनिक आतिथ्यसँ अभिभूत रही। आइओ काल एहन लोकसभ होइत अछि,से सोचि हमसभ बहुत आनन्दमे रही । निश्चितरूपसँ एहन लोकसभ  पृथ्वीपर ईश्वरक वरदान थिकाह ।

 ट्रेन खुजि गेल छल,प्रयागराज टीसन आब पाछू छुटि गेल छल। हमसभ निश्चिन्त भए सुति रहलहुँ । भोरे उठलहुँ तँ देखैत छी जे नईदिल्ली टीसनपर ट्रेन अड़कि चुकल अछि।