मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

चित्रकुटकेँ घाट पर

चित्रकुटकेँ घाट पर

 

नवंबर २०२२मे प्रयागराजमे आयोजित डाक्टर जयकान्त मिश्र जन्म शताव्दी समारोहमे भाग लेलाक बाद हमसभ प्रयागराजसँ करीब चालीस किलोमीटर फटकी मेजा तहसीलेमे अवस्थित एनटीपीसीमे कार्यरत हमर शाढूक ज्येष्ट पुत्र चिoआदित्य एजीएमक ओहिठाम पहुँचलहुँ । हमर मित्र आदरणीय संजीव सिन्हाजी,जिनका ओहिठाम हम प्रयागराज प्रवासक दौरान ठहरल रही,हमरासभकेँ ओहिठाम धरि अपन कारसँ अरिआति देलनि। एहन स्नेह,एहन अपनत्व कतए पाबी? कनीकाल आदित्यजीक डेरापर रुकलाक बाद सिन्हाजी वापस प्रयागराज चलि गेलाह। तकर बाद हमसभ ओहिठाम बच्चासभक संगे  हिलिमिलि गेलहुँ । हमर पेट प्रयागेसँ गड़बड़ चलि रहल छल। हमरश्रीमतीजीक पेट सेहो एहिठाम पहुँचलाक बाद गड़बड़ा गेलनि। धुआनि ढेकार दए रहल छलनि। रद्द हेबाक प्रवृत्ति सेहो छलनि। आदित्य एनटीपीसीक चिकित्सालयसँ किछु दबाइ अनलनि। किछु दबाइ हमरा लग छलहो। ओएहसभ काज आएल। क्रमशः हुनकर मोन ठीक भेलनि। दोसर दिन जखन उठलहुँ तँ ओ आगूक यात्रा हेतु स्वस्थ बुझेलीह। सभगोटेकेँ चित्रकुट जेबाक कार्यक्रम बनलनि। आदित्य एकटा बड़का कार ठीक केने रहथि। हमसभ जलखै चाह केलाक बाद करीब दसबजे ओहिगाड़ीसँ चित्रकुट बिदा भेलहुँ । हमसभ छओ गोटे रही,दूटा बच्चा सेहो रहए। कुल मिला कए आठगोटे भेलहुँ आ गाड़ी एक्केटा,निसस्न्देह बड़का गाड़ी रहैक । तथापि,ओते गोटेक समावेश करब बहुत मोसकिल छलैक,मुदा कएल गेलैक। वाहनचालक लगक सीटपर हम बैसलहुँ , मुदा हमर दुनूकात दूटा बैग राखल रहए जाहिसँ हम अपन टांग कनीको हिला नहि सकैत छलहुँ । पछिलका  सीटपर बैसल लोकसभक हालति तँ सोचल जा सकैत अछि।  आखिर दस बजे ओ गाड़ी बिदा भेल। रस्ता भरि गप्प-सप्प चलैत रहल। सभ तरह-तरहक अनुभवसभक वर्णन होइत रहल। एहिसभसँ यात्रा बहुत मनोरंजक भए गेल। समय कोना बितल आ चित्रकुट कोना आबि गेल से पतो नहि चलि सकल।

चित्रकुट बहुत पवित्र आ प्रमुख धार्मिक स्थान मानल जाइत अछि । भगवान राम,तुलसीदास आ आधुनिक कालमे जगद्गुरु रामभाद्राचार्यजी चित्रकूटसँ जुड़ल बहुत स्मरणीय नामसभ छथि। ओना हिनकासभक बारेमे के नहि जनैत अछि? तथापि प्रसंगवश हिनकालोकनिकेँ उद्धृत करैत छी। तखन  चित्रकूटक आगूक यात्रावृतान्तक चर्च करब।

भगवान राम अपन चौदह वर्षक वनबासक अवधिमे सँ साढ़े एगारह वर्ष एहीठाम बितओने छलाह। हुनकर वनबास गमनक बाद हुनकर पिता दसरथक मृत्युक सूचना एहीठाम हुनकर अनुज भरत द्वारा देल गेल रहनि। एतहि ओ अपन स्वर्गीय पिताक श्राद्ध केलनि। यद्यपि भरत हुनका वापस अयोध्या जा कए राज काज सम्हारबाक बहुत आग्रह केलनि ,परंतु भगवान राम वनबास अवधि धरि वापस अयोध्या नहि जेबाक निर्णयपर अड़ल रहि गेलाह। तकर बाद हुनकर चरणपादुका लए भरत वापस अयोध्या आबि गेलाह। हुनका संग चित्रकुट गेल गणमान्यलोकनि सेहो वापस आबि गेलथि। भगवान राम सीता आ लक्षमणक संगे चित्रकुटेमे रहि गेलाह ।

काशीमे तुलसीदासकेँ एकदिन एकटा प्रेत भेटलनि। ओ हुनका हनुमानजीक पता देलकनि। हनुमानजीसँ भेंटक बाद तुलसीदास  भगवान रामक दर्शन करेबाक जनतब भेटलनि। हुनकर परामर्शक अनुसार ओ चित्रकुट आबि गेलाह। ओतए ओ रामघाटपर रहथि। एकदिन प्रदक्षिणाक क्रममे हुनका दूटा राजकुमार धनुषवाण लेने घोड़ापर सबार देखेलनि। ओ हुनका देखि मंत्रमुग्ध भए गेलथि। मुदा चिन्हि नहि सकलथि जे ओ भगवान राम आ लक्षम्ण छलाह । बादमे हनुमानजी हुनका सभ बात कहलखिन । से जानि कए तुलसीदास बहुत दुखी भए गेलथि। हुनका हनुमानजी सांत्वना दैत कहलखिन  जे हुनका फेर भगवानक दर्शन हेतनि। संवत सोलह सए सात मौनी अमावस्याक दिन बालकरूपमे हुनका फेर भगवानक दर्शन भेलनि। ओ बालक हुनकासँ चानन मागलथि। हनुमानजीकेँ भेलनि जे तुलसीदास कहीं फेर ने हुसि जाथि। ओ सुग्गा बनि कहलथि-

चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।

तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।

तुलसीदास तुरंत चौंकि गेलाह,सतर्क भेलथि आ भगवानकेँ चिन्हि गेलथि। ओ बालकरूपमे भगवानक सद्यः दर्शन कए मंत्रमुग्ध भए गेलथि। भगवान अपने हाथे हुनक माथपर चानन लगओलथि आ ओहिठामसँ बिला गेलथि ।

आधुनिक कालमे जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी आ हुनका द्वारा स्थापित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकुटमे चर्चाक विषय अछि। ओ चित्रकुटमे तुलसीपीठक स्थापना केने छथि। जगद्गुरु रामभद्राचार्यजीक कथा बहुत रोमांचकारी अछि। ओ शुरुएसँ बहुत प्रतिभाशाली रहथि। तीने वर्षक आयुमे ओ पहिल कविता लिखने रहथि-

मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी।

तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी॥

सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी॥

तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी॥

गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आँचर ओट करी॥

हुनका द्वारा रचित पहिल संस्कृत श्लोक अछिः

महाघोरशोकाग्निनाऽऽतप्यमानं

पतन्तं निरासारसंसारसिन्धौ ।

अनाथं जडं मोहपाशेन बद्धं

प्रभो पाहि मां सेवकक्लेशहर्त्तः ॥

ओ बाइस भाषाक ज्ञाता छथि।

जगद्गुरु रामभद्राचार्यक पारिवारिक नाम गिरधर मिश्र छलनि। हिनकर जन्म जौनपुर जिलाक शांदिखुर्द नामक गाममे १४जनबरी सन् १९५०क भेल रहनि । हिनकर पिताक नाम पंडित राजदेव मिश्र आ माताक नाम सच्ची देवी छलनि। ओ जखन एगारह वर्षक रहथि तखन परिवारक लोकसभ हुनका एकटा बरिआतीमे आन्हर हेबाक कारण नहि लए गेल रहनि। लोकक धारणा छल जे आन्हर अशुभ होइत अछि। ओ एहि घटनासँ बहुत आहत भेल रहथि। बादमे ओ कहलथि जे अखनहु हम आन्हरे छी,मुदा लोकसभ शुभ कार्यमे हमर उपस्थितिक हेतु लालायित रहैत छथि। श्रीरामभद्राचार्यजी अद्भुत प्रतिभाशाली छथि। ओ जे किछु सुनैत छथि से एक्के बेरमे कंठस्थ कए लैत छथि। हुनका कतेको विषयमे आचार्यक उपाधि भेटल छनि। ओ पीएचडी आ डिलिट उपाधि सेहो प्राप्त केने छथि। मानव कल्याण आ विकलांगक सेवा हुनकर प्रमुख लक्ष्य छनि।

चित्रकूट पहुँचितहि सभसँ पहिने हमसभ एकटा नीक होटलक जोगारमे लगलहुँ । कामदागिरिसँ सटले एकटा होटल लग हमसभ पहुँचलहुँ। हमसभ दूटा पुरुष ,चारिटा महिला आ दूटा बच्चा संगे छलहुँ । कमसँ कम तीनटा कोठरी तँ चाहबे करी। ओ दुनू बेकती आगू बढ़लाह आ मनेजरसँ गप्प कए रहल छलाह । गप्प कनी तिराइत बुझाएल। हमहूँ ओहिठाम पहुँचलहुँ । कारण चिंता भेल जे पता नहि केना की भए रहल अछि। होटल मनेजर कहलकैक –

एक हजार रुपया प्रति कोठरी लागत। काल्हि दस बजे खाली करए पड़त।

डिसकाउन्ट कतेक?”

ओ हँसए लागल। फेर बजैत अछि-

एतनी तँ किराया अछि। एहिमे की डिसकाउन्ट भेटत। खाली करबाक समय कनी आगू कए सकैत छी।

हमरासभकेँ काल्हि साँझमे वापस जेबाक अछि।

कोनो बात नहि। कनी देरीएसँ खाली कए देब, एतबा समावेश हम कए देब।

कखन धरि खाली करबाक होएत?”

बेसी सँ बेसी एक बजे धरि।

 ठीक छैक।

हमसभ कोठरी देखए लगलहुँ । तीनू कोठरी एक्के तलपर भेटि जाए । ताहि हेतु हमसभ ऊपर,नीचाँ करैत रहलहुँ। आखिर भूतलेपर तीनू कोठरी भेटि गेल। हमसभ आवश्यक कागज-पत्र जमा कए अपन-अपन कोठरीमे चलि गेलहुँ । थोड़ेकालक बाद हमसभ ओतहि भोजन केलहुँ ,कनीकाल विश्राम केलहुँ । तखन चित्रकूट भ्रमण हेतु बिदा भेलहुँ ।

सभसँ पहिने हमसभ मन्दाकिनी नदीक रामघाटपर पहुँचलहुँ । ओहिठाम एकटा नाओ ठीक केलहुँ जे हमरासभकेँ मन्दाकिनी नदीमे घुमओलक। अखन आरती शुरु हेबामे समय रहैक तेँ नाओसँ नदीक ओहिपार पहुँचि हमसभ लगपासक कैकटा मंदिरसभमे दर्शन केलहुँ । तुलसीदास जतए पूजापाठ करैत छलाह आ भगवान रामकेँ चानन लगओने छलाह ततहु गेलहुँ । चारूकात बानरसभ घुमि रहल छल। ओकरासभसँ बचबाक हेतु एकटा स्थानीय लोकक मदति लेलहुँ । भगवान राम एहीस्थानपर तुलसीदासकेँ दर्शन देने रहथि।

साँझमे एतए मन्दाकिनीक आरती देखलहुँ । आरतीमे अनेक तरहसँ प्रज्वलित दीपसभकेँ विशेष रूपसँ सुसज्जित पुजारी लोकनि बहुत आकर्षक दृश्य उत्पन्न करैत छथि। हमर इच्छा रहए जे नाओपर बैसिए कए आरती देखी। मुदा नाविक तैयार नहि भेल। आखिर हमसभ सामनेमे बैसि कए आरतीक आनंद लेलहुँ । मुदा किछूगोटे नाओमे बैसिए कए आरती देखि रहल छलाह। ई बात हम ओकरा कहबो केलिऐक। मुदा ओ तरह-तरहक कबाइत करैत रहल। आरती समाप्तिक बाद नाओपर बैसि हमसभ नदीक ओहि कात गेलहुँ । तकर बाद वापस अपन डेरा बिदा भेलहुँ । डेरा वापस हेबा क्रममे एकटा नीक भोजनालय देखाएल । हमरासभकेँ बहुत भूख लागि गेल छल। अस्तु, सभ काज छोड़िकए ओहिठाम भोजन केलहुँ । संयोगसँ हमर झोरा ओतहि छुटि गेल छल। ओहीमे सभटा महत्वपूर्ण वस्तुसभ राखल छल। हम तुरंत वापस ओहि भोजनालय पहुँचलहुँ । झोरा सुरक्षित राखल छल। ओहिमे सभकिछु(टाका, डेबिट कार्ड आ आधार कार्ड) बाँचि गेल छल। हम झोरा सुरक्षित भेटि गेलासँ बहुत प्रसन्न भेलहुँ आ सभगोटे अपन डेरा दिस कारसँ बिदा भेलहुँ ।

प्रात भेने हमसभ रामघाट बिदा भेलहुँ । किछुगोटे ओतहि स्नान करितथि आ तकर बाद मंदिरसभमे दर्शन करैत आगू बढ़ितथि। मुदा हम दुनू बेकती मंदाकिनीमे स्नान करबाक हेतु इच्छुक नहि रही। कारण काल्हि ओकर पानिक हालति देखि लेने रही । ओहि पानिमे नहएबासँ नीक जे  एक पथिआ थाल-कादो अपना माथपर ढारि ली। चारूकात दुर्गंध से करैत रहए। तेँ हमसभ काल्हिए सोचि लेने रही जे डेरासँ स्नान कइए कए बिदा होएब आ सएह केबो केलहुँ । हमरासभक संगे जे नवयुवक दंपति रहथि से अपन दुनू बच्चाक संगे  आ दूटा बृद्ध महिलाक संगे आगू बढ़लाह। वाहनचालक कहलक-

अहाँसभ चाही तँ कामदागिरिक दर्शन केनहि चलि सकैत छी। ओ एकदम सटले अछि।

नहि, नहि। पहिने मंदाकिनीमे स्नान करब तकर बादे किछु आओर।

ओना हमर इच्छा रहए जे कतहु जलखै कए ली। भोरुका चाहो नहि पीने रही। मुदा अधिकांश लोकक इच्छा देखैत चुप रहि गेलहुँ।

आखिर सभगोटे रामघाट बिदा भेलहुँ । हम दुनू बेकती मंत्रस्नान केलहुँ ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

-तीन बेर पढ़ि मंदाकिनीक पानि आंजुरमे लए अपनाकेँ शुद्ध केलहुँ। मुदा ओ सभ तँ बहुत नीकसँ स्नान केलथि। आरो बहुत लोकसभ ओतए नहाइत देखाएल । असलमे आस्था आनसभ वस्तुपर भारी पड़ि जाइत अछि । अन्यथा ओहन घोरल-घारल ,दुर्गंधयुक्त पानिक लगोमे नहि जाइत केओ। स्नानक बाद लगीचेक मंदिरमे दर्शन कए हमसभ अनसूया आश्रम बिदा भेलहुँ ।

जंगलक बीचमे कलकल बहैत मंदाकिनी नदीक जलधाराक सौंदर्य देखैत बनैत अछि। एहिठामक पानि बहुत स्वच्छ अछि। पानिमे नीचाँ धरि  स्पष्ट देखाइत रहैत अछि। पानिमे चलैत-फिरैत बहुत रास माछसभ देखाइत रहैत अछि। लोकसभ माछकेँ खेबाक हेतु अन्न फेकैत रहैत छथि। एहिठाम अनसूया-अत्री मुनिक आश्रम छल। अनसूया एतहि सीताजीकेँ बहुत रास गहनासभ देने रहथिन । संगे उपदेश सेहो देने रहथिन।  वर्तमानमे एहिठाम श्री परमहंस आश्रम,अनसुइआ,चित्रकूट बनल अछि। ओहिमे अनेक संतलोकनिक समाधिस्थल अछि। यात्रीलोकनि ओहि समाधिसभक दर्शन करैत छथि आ श्रद्धानुकूल दान सेहो दैत छथि।

अनसूया आश्रमक बाद हमसभ गुप्त गोदावरी बिदा भेलहुँ । चित्रकूटसँ लगभग अठारह किलोमीटर फटकी अछि गुप्तगोदावरी। कहल जाइत अछि जे भगवान राम वनबासक समयमे ऐहिठाम किछुदिन रुकल रहथि। हुनके दर्शनक हेतु गोदावरी गुप्त रुपसँ एतए प्रकट भेल रहथि। गुप्त गोदावरीमे दूटा गुफा अछि। एकटा पैघ आ दोसर छोट। पैघु गुफामे पानि नहि अछि। एकर अंतमे छोटसन पोखरि अछि। छोट गुफामे पानि देखाइत अछि। आगू बढ़लाक बाद ओहिमे ठेहुन भरि पानि भेटैत अछि। गुफाक निर्माण प्रकृतिक दुर्लभतम कृति कहल जाइत अछि।

गुप्तगोदावरीक दर्शनक बाद हमसभ वापस अपन डेरा बिदा भेलहुँ । ओहिठाम पहुँचैत-पहुँचैत सभगोटेकेँ बहुत भूख लागि गेल छल। ओतहि होटलमे भोजन केलहुँ । आब दू बाजए बला छल। हमसभ वापसी यात्राक तैयारीमे लागि गेलहुँ । अपन-अपन सामानसभ सरिएलहुँ । स्वागतीकेँ कोठरीके कुंजी देबाक हेतु स्वागतकक्ष लग पहुँचलहुँ । हम अपन कोठरीक कुंजी सुंझा देलिऐक। दोसर कोठरीक कुंजी सेहो वापस देल गेल। मुदा तेसर कोठरीक कुंजी नहि भेटि रहल छल। कोठरीक कुंजी हरा जेबाक कारण ओहिठाम माहौलमे थोड़ेकालक हेतु तनाओ पसरि गेल ।

हम तँ कुंजी अहींक हाथमे देने रही।

हमरा लग रहितए तँ रहबे करितए। अहाँ जरूर कुँजी बच्चाकेँ सुंझा देलिऐक ।

हम तँ अपन कोठरीमे रही।

एहि तरहेँ आरोप-प्रत्यारोप होइत रहल। कुंजी सौंसे  ताकल गेल। समानसभ उकटल गेल। मुदा कुंजी नहि भेटल। एहि प्रक्रियामे आधाघंटासँ बेसी समय लागि गेल। असलमे ओ कुंजी बच्चासभक हाथमे पड़ि गेल रहए। ओएहसभ कतहु एमहर-ओमहर कए देलक। आब तँ बेस मोसकिल भए गेल। स्वागत कक्षमे मौजूद स्वागती दू सए टाका हरजाना लेलक तखने अपन कुंजीसँ ओहि कोठरीकेँ खोललक। ओहिमे राखल सामानसभ निकालल गेल। होटलक हिसाब-किताब केलाक बाद हमसभ वापस प्रयागराज बिदा भेलहुँ ।

हमसभ गोटे प्रयागराज जेबाक हेतु कारपर बैसि गेल रही। कार कनी दूर चलबो कएल कि वाहन चालक बाजल-

इएह थिक कामदागिरि । अहाँसभ चाही तँ एहिठाम उतरि कए दर्शन कए सकैत छी।

कतेक दूर हेतैक?”

इएह सामनेमे देखा रहल अछि।

 मुदा ओहिठाम कार नहि जा सकत। एतहि उतरि कए पैरे जेबाक होएत।

चित्रकुटक एकटा प्रमुख स्थान अछि कामतानाथ । कहल जाइत अछि जे भगवान राम कामतानाथ पहाड़पर साढ़े एगारह साल रहल रहथि। ओ एहि पहाड़क परिक्रमा सेहो करथि । एहिठामसँ जाइत काल भगवान राम वरदान देने गेलाह जे जे केओ एहि पहाड़क परिक्रमा करत तकर सभटा मनोकामना कामतानाथ पूरा करथिन। ई परिक्रमा लगभग पाँच किलोमीटरक होइत अछि आ श्रद्धालुलोकनि बहुत भक्तिभावसँ एकर परिक्रमा करैत छथि। परिक्रमाक क्रममे कैकटा छोट-छोट मंदिरसभ पड़ैत अछि। तीर्थयात्रीलोकनि सभ मौसममे एतए परिक्रमा करैत देखल जाइत छथि ।

            हमसभ आपसमे  विमर्श केलहुँ । असलमे हमरा प्रयागराजमे दिल्लीक हेतु ट्रेन पकड़बाक छल। तकर ध्यानमे राखि आब बेसी काल समय नहि बाँचलछल। हमसभ ओतहिसँ कामदागिरिकेँ प्रणाम कए आगू बढ़ि गेलहुँ ।

चित्रकूटमे भरतकूपक बहुत महत्व अछि। कहल जाइत अछि जे जखन भगवान राम वनबासमे चित्रकूट आबि गेल रहथि तखन भरत ओहिठाम सपरिवार आबि भगवान रामसँ वापस अयोध्या चलबाक आग्रह केलथि। ओ अपना संगे अनेक नदीसभक जल अनने रहथि जाहिसँ भगवान रामक राज्याभिषेक होइत। परंतु ओ ताहि हेतु जखन सहमति नहि भेलाह तखन भरत हुनके परामर्शसँ भरत अत्री ॠषिसँ भेंट केलनि । हुनके आज्ञानुसार ओ सभटा जलकेँ ओहिठाम स्थित इनारमे खसा देलनि।  ओएह इनार आब भरतकूपक नामसँ जानल जाइत अछि। भरतकूपक जल बहुत पवित्र मानल जाइत अछि। एकर जल बहुत शीतल होइत अछि। गर्मीक समयमे लोकसभ एहि पानिसँ स्नान कए बहुत आनंदित होइत छथि। एकर अतिरिक्त स्फटिक शिला,सीताक रसोई सन-सन अनेक स्थान अछि जे एहिठाम देखल जा सकैत अछि। स्वर्गीय नानाजी देशमुखजी द्वारा स्थापित महात्मागांधी चित्रकूट ग्रामीण विश्वविद्यालय सेहो दर्शनीय स्थान अछि। सरबतमे जतेक चिन्नी देबैक ततेक मिठ्ठ होएत। घुमबाक हेतु समय,टाका आ स्वास्थ्य सभकिछु चाही। तथापि उपलव्ध समयमे जतेक हमसभ घुमि सकलहुँ से घुमलहुँ,जतेक देखि सकलहुँ से देखलहुँ , आनन्दित तँ भेबे केलहुँ । असलमे चित्रकूटक कण-कण राममय अछि । हुनकासन महापुरुष जतए साढ़े एगारह वर्ष रहल होथि ताहिठामक महात्म्यक वर्णन की कएल जा सकैत अछि? ओ तँ साक्षाते स्वर्ग थिक , भक्तलोकनिक हेतु प्रातःस्मरणीय थिक।

चित्रकूटक रामघाटसँ  तीन किलोमीटर फटकी हनुमानधारा अछि। हमसभ वापसी यात्रामे सड़केपरसँ पहाड़ीपर अवस्थित ओहिस्थानकेँ देखलहुँ । ओतहिसँ हनुमानजीकेँ प्रणाम करबाक करैत आगू बढ़ि गेलहुँ । रस्तामे वाहनचालककेँ अगुतबैत रहलिऐक जाहिसँ ट्रेनक समय धरि हमसभ प्रयागराज पहुँचि जाइ। से संभव भए सकल।

प्रयागराजमे हमसभ अपन मित्र श्री संजीव सिन्हाजीक ओहिठाम पहुँचलहुँ । ओहिठाम भोजन केलहुँ । कनीकाल विश्रमाक बाद हुनके संगे प्रयागराज टीसन बिदा भेलहुँ । संजीव सिन्हाजीक पुत्र कार चला रहल छलाह। दस मिनटक भितरे हमसभ टीसनपर पहुँचि गेल रही। हुनकासभकेँ प्रयागराजक रस्ताक सही जनतब रहनि जाहिसँ से संभव भेल। प्रयागराज एक्सप्रेस लागल छल। हमसभ तुरंत ओहिमे अपन निर्धारित शायिकापर  पहुँचि आश्वस्त भेलहुँ । सिन्हाजी आ हुनकर पुत्र थोड़ेकाल हमरा सभ लग बैसल रहलाह । आब ट्रेन खुजि जाएत। से जानि ओसभ ट्रेनसँ उतरि गेलाह । एहि बेरक हमरसभक प्रयागराज  प्रवासक दौरान आदरणीय श्री संजीव सिन्हाजीक स्वयं आ हुनकर समस्त परिवारक आतिथ्य,हुनकरसभक प्रेम बिसरल नहि जा सकैत अछि। हमसभ प्रयागराजमे हुनकालोकनिक आतिथ्यसँ अभिभूत रही। आइओ काल एहन लोकसभ होइत अछि,से सोचि हमसभ बहुत आनन्दमे रही । निश्चितरूपसँ एहन लोकसभ  पृथ्वीपर ईश्वरक वरदान थिकाह ।

 ट्रेन खुजि गेल छल,प्रयागराज टीसन आब पाछू छुटि गेल छल। हमसभ निश्चिन्त भए सुति रहलहुँ । भोरे उठलहुँ तँ देखैत छी जे नईदिल्ली टीसनपर ट्रेन अड़कि चुकल अछि।

 










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