मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शनिवार, 22 मई 2021

कोरोना संकट

 

कोरोना संकट

 

पिछले साल से ही संपूर्ण विश्व कोरोना से परेशान है । सायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसके जीवन में कोरोना का असर नहीं हुआ हो । दुख की बात यह है कि भारत में लगभग समाप्त हो जाने के बाद एकबार फिर से कोरोना का दूसरा लहर सामने आ गया है । यह इतने तेजी से फैला है की तमाम लोग अचंभित हैं । कोई उपाय सूझ नहीं रहा है । प्रतिदिन लाखों की तादाद में लोग कोरोना से प्रभावित हो रहे हैं । मरीजों के लगातार बढ़ रहे संख्या के आगे संसाधन कम होते जा रहे हैं । अस्पतालों में रोगियों के लिए बेड नहीं है,आक्सीजन नहीं है,दबाइयां भी बाजार से गायब हैं । ऐसे में कोई कैसे बचेगा? हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि लगता है कि एकबार जो करोना के गिरफ्त में आ गया उसका भगवान ही मालिक है ।

आज जो कुछ हो रहा है उसके लिए देश के नागरिक कम जिम्मेवार नहीं हैं । चिकित्सकों,वैज्ञानिकों द्वारा वारंबार अगाह किए जाने के बाबजूद हमने मामूली सावधानी भी नहीं बरती । मास्क लगाना,सामाजिक दूरी बनाए रखना,वारंबार हाथ साबुन से धोते रहना ,ये सब आसान उपाय थे जिस से कोरोना के वर्तमान तांडव से बचा जा सकता था । लेकिन लोगों ने कुछ भी एतिहात नहीं बरता । तरह-तरह के सामाजिक/धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे । हजारों लोग इन कार्यक्रमों में बिना किसी एतिहात के भाग लेते रहे । कुंभ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करके तो सर्वनाश को निमंत्रित किया गया । लाखों के तादाद में लोग जहाँ-तहाँ से इसमें भाग लेने हरिद्वार पहुँच गए । यहाँ सरकार भी अपना दायित्व ठीक से नहीं निभा सकी । इस तरह के आयोजन पर प्रतिबंध लगाना जरूरी था । उचित तो यह होता की लोग स्वेच्छा से ऐसे कार्यक्रमों में नहीं भाग लेते । धार्मिक संगठन के प्रमुख लोग लोगों को भीड़ एकट्ठा नहीं  करने का एलान करते । अगर यह सब होता तो सायद यह दिन हमें नहीं देखना पड़ता नदियों में जहाँ-तहाँ अनगिनित लाशें इस तैरते नजर नहीं आते। सबसे दुख की बात यह है कि मृत्योपरांत लोग अपने स्वजनों का सम्मानजनक विदाई भी नहीं कर पा रहे हैं ।

चिंता की बात यह है कि इस बार कोरोना ग्रामीण क्षेत्रों को भी अपने चपेट में लेता जा रहा है । यह कैसे हुआ यह कहने की जरुरत नहीं है। एक तो शहरों से प्रवासी मजदूर फिर से अपने गावों की और लौटने के लिए मजबूर हो गए । जिस तरह से लगातार विभिन्न राज्य सरकारें लाक-डाउन लगाने के लिए विवश हैं ,वैसी परिस्थिति में इन लोगों के पास कोई और विकल्प बचता ही क्या है? हलाकि कई राज्य सरकारों ने इन लोगों को अपने गाँव नहीं लौटने के लिए कहती रहीं और उन्हें कुछ आर्थिक सहायता प्रदान करने की घोषणाएं भी हुई । परंतु वे कारगार सावित नहीं हुई हैं । सच्चाई में इन घोषणाओं के बदौलत सायद ही कोई बहुत दिन तक शहर में टिका रह सके । इसके अलावा किसान आंदोलन,माघ मेला,कुंभ मेला पंचायतों के चुनाव और विभिन्न राज्यों में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभाओं के चुनावों का भी कोरोना के दूसरे लहर उत्पन्न करने में बहुत गंभीर योगदान रहा । सबों ने कोरोना को आया गया मान लिया और पहले के तरह सामान्य जीवन जीने लगे। शहर-शहर, गाँव-गाँव सामूहिक कार्यक्रमों की भरमार हो गई । असल में लोग साल भर से संयम करते-करते तंग हो गए थे । उन्होंने देखा की लोग अब बाहर घूमने लगे हैं तो हम भी क्यों नहीं कहीं घूमने निकल जांए।  मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो इस चूक के शिकार हो गए और घर लौटते ही कोरोना से ग्रसित हो गए । निश्चय ही वे अब बहुत अफसोस कर रहे होंगे । परंतु,जो क्षति होना था सो हो गया । कुछ लोग तो अपनी जान गवां बैठे और अपने परिवार को भी संक्रमित कर गए । जिनकी जान बँच भी गयी वे भी अधिकांश परेशानी में ही हैं । अगर हम अग्रसोची होते,संयम से काम करते तो सायद यह दिन नहीं देखना पड़ता । सामान्य लोगों के अतिरिक्त सरकारें भी गफलत में पड़ गयीं । कई राज्यों मे पीएम केयर फंड से भेंटलेटर बेजे गए थे ।  अब यह सुनने में आ रहा है कि कई जगहों पर ये भेंटलेटर वैसे के वैसे ही पड़े रह गए । यह क्या है? एक हिसाब से तो इसे मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध माना जा सकता है । एक तरफ लोग इन सुविधाओं के बिना मर रहे हैं,और दूसरे तरफ प्राण रक्षक उपकरण निष्कृय पड़े हुए हैं । निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज के लिए कलंक की बात है ।

वर्तमान में कोरोना के गिरफ्त में आ चुके लोग और उनके परिजन इलाज के लिए दर-दर भटक रहे हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है। प्राइभेट अस्पताल मनमाना पैसा वसूल रहे हैं । इस सबों के बाबजूद लोगों का सही उपचार हो जाए इस बात का कोई गारंटी नहीं है। अस्पतालों में आक्सीजन के बिना लोग मर रहे हैं । जाहिर है कि लोगों में घोर निराशा घर गयी है । जिसे देखिए वही सरकार को जिम्मेदार ठहराने में लगा हुआ है । इस बात से कोई मना नहीं कर सकता है कि मरीजों के इलाज का समुचित प्रवंध करना सरकार की जिम्मेदारी है । पर जब मरीज लाखों की तादाद में सामने आ जाएंगे तो कोई भीसरकार भी क्या कर सकेगी? दुनिया के संपन्न और विकसित देश भी जब अपने नागरिकों की जीवन रक्षा नहीं कर पाए, वहाँ भी कई लोग इलाज के बिना तड़प-तड़प कर मर गए ,तो हम कहाँ ठहरते हैं?

दुर्भाग्यवश देश में वर्तमान संकट का राजनीतिकरण किया जा रहा है । विभन्न विपक्षी दल सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए अमादा हैं । क्या इस से विमारी को नियंत्रित किया जा सकेगा? कोरोना एक संक्रामक रोग है जो नित्य नए रुप में प्रकट हो रहा है। दुनिया भरे के लोग इस से तबाह हैं । पिछले साल सब से ज्यादा तबाही अमेरिका में हुआ था । कई अन्य विकसित देशों में इस महामारी ने भारी तबाही मचायी थी । इसलिए हम नहीं कह सकते कि अमुक कारण से ही ऐसा हुआ है । परंतु,जब इस स्तर का संकट देश और दुनिया पर आ गयी है तो हमें क्या करना चाहिए? क्या हाथ पर हाथ रखकर दूसरों की गलती निकालते रहना चाहिए या कुछ सकारात्मक (जो भी हमारे वश में हो) करना चाहिए? इतने बड़े देश में कोई भी अकेले इस भयावह स्थिति से मुकाबला नहीं कर सकता है । इसके लिए पक्ष-विपक्ष,किसान,मजदूर,अधिकारी,कर्मचारी सबों को मिलकर काम करना होगा । अगर अब भी हम आपस में दोषारोपण करते रहै,तो हमारा भगवान ही मालिक ।

कोरोना एक ऐसी महामारी है जिसमें बचाव ही समाधान है । हलाकि विश्व भर में तरह-तरह के टीकों का प्रयोग हो रहा है । कुछ विकसित देश जैसे अमेरिका,ब्रिटेन ने अपने अधिकांश नागरिकों का टीकाकरण करबा लिया है । परंतु, भारत एक विशाल जनसंख्या बाला देश होने के कारण सभी को टीका लगाना कोई आसान काम नहीं है। इस सच्चाई को जानते हुए भी कुछ लोग इस मौके का राजनीतिक लाभ उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं । असलियत तो यह है कि वही लोग  शुरू में टीका का माखौल उड़ा रहे थे । लोगों में भ्रम पैदा कर रहे थे कि टीका सही नहीं है,यह हो जाएगा,वह हो जाएगा । उस समय देश में कोरोना नियंत्रण में था और लोग खुद भी टीका लगाने में उत्सुक नहीं थे । यहाँ तक कि डाक्टर और अग्रिम पंक्ति के कुछ अन्य लोगों ने भी टीका लगाने में ढ़िलाइ बरती । अब जब फिर से कोरोना बढ़ गया है,तो सभी हाय-तोबा मचा रहे हैं ।  टीके का उत्पादन और उसका उपयोग सीमित संशाधनों के कारण एक हद से ज्यादा तेजी से नहीं चलाया जा सकता है । इसलिए जरूरी है कि विपक्षी दल दुष्प्रचार छोड़कर कुछ रचनात्मक काम करें । अपने साधनों से भी कुछ लोगों का भला करें । इस से एक अच्छा माहौल बनेगा । लोगों में भी उनकी छवि अच्छी होगी ।

कोरोना महामारी के इस दौर में जीवन और मृत्यु के बीच गंभीर संघर्ष चल रहा है । संपूर्ण मानवता के लिए यह एक महान चुनौती है । नित्य अनगिनित लोग अकाल काल के गाल में समाते जा रहे हैं । एसे विकट समय में भी हमारे देश में सरेआम छुद्र राजनीति किया जा रहा है। देश का प्रधानमंत्री  किसी जिले के कलक्टर से सीधे इस विषय में बात करना चाहते हैं तो उसी सम्मेलन में मौजूद उस राज्य के मुख्यमंत्री उन्हें प्रधानमंत्री से बात करने से मना कर देते हैं । यह दृष्टांत अपने -आप में काफी कुछ कह जाता है । क्या देश का सर्वोच्च प्रशासक किसी राज्य के कलक्टर से ऐसी विपिदापूर्ण परिस्थिति में बातचीत नहीं कर सकता है? लेकिन यह सब सोची-समझी रणनिति के तरह किया जा रहा है । राजनेता तो अपना बोटबैंक मजबूत करेंगे चाहे देश को जो हो जाए । जरुरत इस बात की है कि जनता इस सब बात को ठीक से समझे और सोच-समझकर  निर्णय ले ताकि ऐसे लालची और स्वार्थी नेताओं को सबक सिखाया जा सके ।

दुख के इस घड़ी में कई लोगों ने अद्भुत काम किया है । कई लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी है । इसी क्रम में हमें उन सैकड़ों डाक्टरों /नर्सों और अन्य पैरामेडिकल कर्मचारियों का योगदान अवश्य याद करना चाहिए । पहले बार से भी ज्यादा दूसरे बार भारी तादाद में डाक्टर और उनके सहयोगी यों की मृत्यु इस महामारी में हुयी है । सोचिए,जहाँ एकबार भी जाने से लोग घबराते हैं वहाँ ये लोग दिन-रात काम करते हैं । कई लोगो तो महिनो अपने घर नहीं जा पाते,न ही अपने परिवारजनों से मिल पाते हैं । फिर भी यदा-कदा उन्हें मरीजों के रिश्तेदारों का कोपभाजन बनना पड़ता है । ऐसा इसलिए भी होता है क्यों कि वे सबसे आगे रहकर ऐसी परिस्थितयों का मुकाबला कर रहे होते हैं । जब किसी के रिश्तेदार,मित्र वा किसी नजदीकी लोगों  का विमारी से जान चली जाती है तो उन्हें दुख तो होता ही होगा। वे मानसिक रूप से परेशान भी हो ही जाते होंगे । परंतु,एसे हसमझना चाहिए कि डक्टर खुद भी कई बार अपनी जान नहीं बचा पाते हैं । ऐसा लगता है कि अभीतक इस विमारी का सही इलाज नहीं ढूंढ़ा जा सका है । सभी प्रयास अनुमान पर आधारित हैं और यह कोई भी नहीं कह सकता है कि अमुक इलाज कराने से रोगी ठीक हो ही जाएगा । निश्चय ही यह बहुत ही दुखद परिस्थिति है । संपूर्ण मानवता के सामने इस महामारी ने आस्तित्व का प्रश्न उपस्थित कर दिया है। अभीतक समस्या के समाधान के बहुत प्रयास हुए हैं लेकिन कह नहीं सकते हैं कि भारत जैसे विशाल जनसंख्याबाले देश में स्थिति को सम्हालने में कितना समय लगेगा? लेकिन हमें आशावान रहकर निरंतर प्रयत्नशील रहना होगा । फिलहाल इस समस्या का कोई और विकल्प है भी नहीं ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

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