संतुष्टि
छोटे सी खोपड़ी में
रहता है फकीर
सुखी और शांत
न चोरी का डर
न लुट जाने की चिंता
न ही कुछ भी पाने का दुराग्रह ।
परंतु,
अट्टालिकाओं में रहकर भी
कुछ और पाने के चक्कर में
हम रहते हैं परेशान,
यह हुआ ,वह भी होना चाहिए
के चक्कर में
रहते हैं अस्तव्यस्त
और किसी दिन
हाय- हाय करते
दुनिया छोड़ जाते हैं ।
हक मारकर दूसरों का
बढ़ा लेते हैं
संपन्नता और प्रभुत्व
फिर भी,
स्वनिर्मित अंतरविरोधों में
फँस सुखी हो नहीं पाते ।
इसलिए जरूरी है
जीवन को समझना
सकून चाहिए तो छोड़िए
यह सब
त्याग को अपनाइए
सही मान में वही हैं संपन्न
जो आश्रित नहीं
सम्मान की चाहत नहीं
और स्वयं संतुष्ट हैं ।
10.7.2020
सुंदर संदेश देती कविता।
जवाब देंहटाएंबधाई। ओम सपरा दिल्ली