मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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बुधवार, 24 जून 2020

नियति

 

 

नियति

 

 

नियतिवश हम कर लेते हैं

गलत विकल्पों का चुनाव

और भटकते रह जाते हैं,

बंचित रह जाते  हैं

सार्थक समाधान से

रह जाते हैं दुखी और अशांत

नियति का कुछ भी नहीं है विकल्प

अगर ऐसा होता तो

दुर्योधन मान लेता

 कृष्ण का समझौता प्रस्ताव

दे दिया होता बस पाँच गाँव

और टल जाता महाभारत

बंच जाते लाखों लोक कटने-मरने से

परंतु ऐसा हो न सका

क्यों कि अहंकारी दुर्योधन

पढ़ नहीं सका अपना भविष्य

होनी को कोई टाल नहीं सका

व्यास को सब पता था

परंतु कोई सुना नहीं

वह भी दिव्यचक्षु देकर चलते बने

 

युद्ध का परिणाम कितना दुखद था

सुखी कोई नहीं रहा

जीतने वाले भी हार गए

कोई अपना रहा नहीं

जिसके साथ विजय का सुख बाँट सकते

रक्तरंजित राज भोग नहीं सके

आखिर,सबकुछ त्यागकर चले गए

जब अहंकारवश

सही और गलत में नहीं कर पाते हैं फर्क

और

दूसरों का ऐश्वर्य, मान-सम्मान पर

करते रहते हैं प्रहार

तो होता है विनाश

समझने की जरूरत है कि

यह दुनिया लेने के लिए नहीं

देने का लिए है

लोभ के संवरण से

त्याग से ही

हम हो सकते है मुक्त

नियति के पाश से


24.6.2020

1 टिप्पणी:

  1. सुंदर भावपूर्ण कविता। ऐतिहासिक संदर्भ में महाभारत काल की विसंगतियों पर नियति के सबल अस्त्र से प्रहार तथा इतिहास समझने की एक नई दृष्टि।
    बधाई मिश्रा जी।

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