मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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सोमवार, 25 नवंबर 2019

व्रह्मांड और मैं


व्रह्मांड और  मैं



वैसे तो यह दुनिया रहस्यों से भरा हुआ है,लेकिन मनुष्य स्वयं रहस्यों में भी महान रहस्य है । यह प्रश्न हमारे लिए नया नहीं है । यह बात भी सही है कि अपने-अपने तरीके से लोगों ने इसकी व्याख्या करने की कोशिश की है। लेकीन अभी तक कोई भी नहीं कह सकता है कि इस विषय पर  अमुक व्याख्या सही है या किसी खास व्यक्ति कहना मानने योग्य नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि सभी लोग अंधकार में ही इस सबाल का जबाब ढूंरने का प्रयत्न कर रहे हैं । बड़े-बड़े विद्वान,ज्ञानी-ध्यानी जीवन के रहस्यों को अपने तरीका से सुलझाने में लगे रहे । किसी ने कहा-

आत्मा अमर है ।

किसी ने कहा- शरीर ही सब कुछ है । शरीर नष्ट हुआ तो सब नष्ट हो जाता है । फिर इसके फिर से आने का सबाल ही कहाँ पैदा होता है?”

गलत कौन है,सही कौन है यह व्याख्या करना उतना ही कठिन है जितना कि यह प्रश्न स्वयं है । सच जो भी हो परंतु इतना तो तय है कि हम जिसे जीवन भर देखते रहते हैं,जिस से हमरा जीवन भर जुड़ाव रहता है और जसके द्वारा हमराी इस दुनिया में पहचान है वह हमारा शरीर ही है और वही मृत्यु के बात समाप्त हो जाता है । उस में से निकलकर आत्मा बची रह जाती है और हमारा असली आस्तित्व आत्मा में ही स्थापित है ,इस बात को प्रमाणित करना हमारे-आप के वश में नहीं लगता है ।

सत्य जो भी हो, परंतु यह बात तो तय है कि आजतक कोई भी एकबार इस दुनिया से जाने के बाद लौटकर नहीं आया जिस से पता चलता कि मृत्यु के बाद वह किस हालात में है? क्या उसे मृत्यु से पहले की बातें अभी भी याद हैं? क्या वह अपने निकट संबंधियों के लिए अभी भी चिंता करता है? क्या उसे जीवने के दौरान किए गए अच्छे या बुरे कामों का फल प्राप्त हुआ या हो रहा है ? ऐस आजतक कुछ भी नहीं हुआ । सब कुछ महज कल्पनाओं पर आधारित लगता है । यह करोगे तो वस होगा या अमुक आदमी को उसके बुरे कर्मों का फल मिल रहा है । संसार में जो भी जन्म लिया है ,वह एकदिन मर जाता है । इस दौरान वह स्वभाव और परिस्थिति के वशीभूत होकर नाना प्रकार के कार्यों में लगा रहता है । पर अंतिम परिणाम यही होता है कि वह सबकुछ छोड़कर चला जाता है । कुछभी साथ नहीं ले जाता है । आया है सो जाएगा,राजा रंक फकीर ।

इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मरने के बाद आप का क्या होता है? आप फिर से कहीं जन्म लेते हैं या सब कुछ तभी समाप्त हो जाता है जब आप इस शरीर को छोड़ते हैं । जो सद्यः दिख रहा है,जिसे हम नित्य प्रति महसूस करते हैं ,वह है हमरा कर्म । हम जैसा करते हैं,वैसा भोगने के लिए विवश हैं । कोई भी इस नियम का अपवाद नहीं है । हो भी नहीं सकता है । देर -सवेर सबको जीवन के अकाट्य सत्य को मानना पड़ता है,समझना पड़ता है ।

अभी तक विज्ञान भी ठीक से नहीं समझ पाया है कि आखिर यह व्रह्मांड कब बना,कैसे बना? इसका फैलाव कहाँ तक हैं? कभी-कभी छिटपुट जानकारी वैज्ञानिक देते रहते हैं जिसके अनुसार कभी हजारो-लाखो मील दूर कोई ग्रह-नक्षत्र के बारे में जानकारी होने की खबर होती है । लेकिन सच कहा जाए तो अभी भी इस व्रह्माण्ड के बारे में सही जानकारी सायद ही किसी के पास हो? सभी अंधेरे में ही हाथ टटोलते नजर आ रहै हैं । पर जो जानकारी वैज्ञानिक तरीकों से मिल चुकी है उसके अनुसार भी कम चौकाने वाली बात नहीं है । लाखों-कड़ोरो तारा मंडल व्रह्माण्ड में यत्र-तत्र फैले हुए हैं । इतने बड़े व्ह्माण्ड के एक बहुत ही छोटे हिस्से में हमारी पृथ्वी है । हम वहाँ एक बहुत ही सीमित भाग में रहकर  सब कुछ जानने का अहं पालते रहते हैं । यह भ्रम के सिवा कुछ भी नहीं है । इस अनंत संसार में हमरा जीवन सागर के एक बूंद के तरह है। फिर व्यक्ति के अहं का क्या औचित्य है? व्रह्मांड के अनंतता को स्वीकार कर ही हम महानता को प्राप्त कर सकते हैं ।


रविवार, 24 नवंबर 2019

डाइन


डाइन



हमसभ नेनेसँ डाइनक बारेमे सुनैत अएलहुँ अछि । डाइनिसँ बँचि कए रही,ओकर हाथसँ किछु नहि खाइ,ओकर नजरिसँ पराके रही ,नहि तँ गेल घर छी । कखन प्राण लए लेत तकर हिसाब नहि। हालत तँ ततेक खराप रहेक जे कोनो कारणसँ किओ दुखित भए गेल,घरमे चोरी भए गेल, वा किओ मरि-हरि गेल तँ सभक कारण कोनो-ने-कोनो डाइनि वा एहने किछुकेँ मानल जाइत छल । समाधान छलाह भगता,तांत्रिक,ओझा-गुनी  । समाजमे व्याप्त अशिक्षा आ अज्ञनताक कारणेँ एहि तरहक बातसभक खूब बरक्कति होइत छल । जँ ककरो घरमे चोरी भए गेल तँ तकरो समाधान ओझा-गुनी करैत छलाह । चटिबाहसँ बट्टा चलाओल जाइत छल । मंत्रक प्रभाव तेहन सटीक आ कड़गर होइत छल जे ओ जेमहर-जेमहर चोर गेल रहैत छल ताहि बाटे घुमए लगैत छल आ अंतमे चोरकेँ घरमे वा ओकरे लग-पासमे पहुँचि जाइत छल जाहिसँ चोरक बारेमे स्पष्ट अनुमान लोक लगा लैत छलाह । कहबाक जरूरी नहि बुझाइत अछि जे एहन काजसभक परिणाम कै बेर बहुत घातक होइत छल । कैटा निर्दोष लोक समाजमे अपमानित भए जिबाक हेतु विवश होइत छलाह ।

सामान्यतः ई देखल जाइत अछि जे निकट संबंधीमे आपसी कटुता बढ़ि गेलाक बाद कोनो स्त्रीक समगे तरह-तरहक खिस्सासभ जोड़ि देल जाइत अछि  । जेना कि ओ तँ हकल डाइन छैक , राति कए गाछ हकैत छैक , ओकरा तँ हम अष्टमी रातिमे नंगटे नचैत देखलिऐक । कालक्रमे ई सभ बात ततेक फैल जाइत अछि जे ओहि महिलाक लग-पास जेबासँ लोक डराइत अछि । ओकर देल पानि नहि पीबए चाहैत अछि । ओकरा हाथसँ भोजन करबाक तँ प्रश्ने नहि उठैत अछि । एहिसभक कारणें ओ महिला समाजमे एसगरि भए बहुत रास प्रतारणा सहैत रहैत छथि ।

कैठाम देखल जाइत अछि जे दियादी झगड़ाक बाद कोनो महिलाकेँ डाइन घोषित कए देल जाइत अछि । किछु षड़यंत्र कए एहन दृष्य बना देल जाइत अछि जे लोकसभ भ्रमित भए जाइत छथि आ तथाकथित डाइनसँ फटकी रहए लगैत छथि । गाम-घरमे लोकसभ एहन  महिलाक ओहिठआम नोत खेबासँ बचैत रहैत छथि आ ओकरा सेहो नोत नहि दैथ छथि ।  आखिर एना किएक कएल जाइत अछि? जबाब भेटत-अहाँ बाहर रहैत छी । गामक लोकक छिज्जा कीजाने गेलिऐक ? फलनमाकघरबाली तँ रातिभरि श्मशानमे बैसल रहैत छैक । मुर्दासभक संगे मंत्र सिद्ध करैत रहैत छैक । नहि विश्वास होअए तँ रातिमे हमरासंगे चुपचाप चलब । जखन अपने आँखिसँ देखि लेबैक तँ विश्वास भए जाएत ।

सबाल अछि जे आखिर एहिसभ बातमे कतेक सत्यता थिक आ जँ से नहि अछि तँ एना किएक होइत अछि? हमरा हिसाबसँ तँ एहिसब बातमे कोनो सत्यता नहि अछि । कै बेर हम स्वयं अन्हरोखे एहन स्थानसभ पर जाइत रही जतए लोक एहन संभावना कहैत रहैत छल । मुदा हमरा कहिओ किछु नहि अभरल । ने कोनो प्रकारक क्षति भेल। तेँ एहि तरह गप्पसभ मात्र दुष्टताक अतिरिक्त किछु नहि अछि । लोक अपन दियादी औल चुकता करबाक हेतु एहि तरहक दुष्प्रचार करैत अछि । दुर्भाग्यक बात थिक जे मूलतः अज्ञानतावश एहि तरहक दुष्प्रचारकेँ जन समर्थन सेहो भेटि जाइत अछि । रहल बात ई जे आखिर लोक एना किएक करैत छथि? तकर की कहल जाए? मुदा एतबा तँ निश्चय जे आपसी दुश्मनी वा इर्ष्या-द्वेषवश एहन घटनासभ होइत अछि आ अज्ञनतावश किंवा अंधविश्वासक वशीभूत भए लोकसभ एकरा सही मानि लैत छथि ।

निश्चित रूपसँ समाजमे व्यप्त अशिक्षा आ अंधविश्वासेक परिणाम थिक जे एखनो लोकसभ डाइन वा एहि तरहक वस्तुसभक मान्यता दैत छथि । ततबे नहि ओहि चलते कैटा लोकक जिनगी बरबाद भए जाइत अछि । कै बेर तंत्र-मंत्रक चक्करमे पड़ि कए निर्दोषक नेनासभक वलप्रदान धरि दए देल जाइत अछि । एहिसँ पैघ अन्याय की भए सकैत अछि? अस्तु,ई जरूरी अछि जे समाजमे एहि तरहक कुवृतिक प्रति लोककेँ सतर्क कएल जाए जाहिसँ निर्दोष व्यक्तिक जीवन आ प्रतिष्ठाक रक्षा कएल जा सकए ।