गाम
गाममे बहुत गोटे
अनचिन्हार भए गेल छल। धिया-पुता सभ जे धरिया पहीरने घुमैत रहैत छल, से सभ फुटि कए जबान भए
गेल छल आ बुढ़-पुरान लोक क्रमश: विदा भए रहल छलाह। क्रमिक किन्तु अनवरत परिवर्तन
प्रकृत्तिक नियमक पराक्रमसँ सभ प्रभावित छल।
लोचन बाबा, तिला बाबू, बुढ़िया काकी सभ
एक-एक कए चल गेलाह। बहुत कम पुरना लोक बँचि गेल छल। मुदा ई गप्प हमरे किएक एतेक
परिछायल बुझा रहल छल। गाममे बहुत लोक अछि। सभक समक्ष ई घटना भेलैक अछि आ होइत
रहलैक अछि। प्राय: समयक अन्तरालक कारण बारह वर्षक अवधिक कारण हमरा बेसी अन्तर बुझा
रहल अछि। छोटो-छोटो घटना सभ एकटा आकार ग्रहण कए लेने अछि।
पोखरिक भीरपर बैसल हम
यैह सभ सोचि रहल छलहुँ, गामसँ बहुत किछु निपत्ता भए गेल छल। दुपहर रातिमे
गुलचनमा चौकीदारक जबरदस्त आबाज-
“जगले रहब। यौ ऽऽऽ।”
दुपहरिया रातिमे
घरे-घर घुमि जाइत छल। आ चिकरैत-
“फल्लाँ बाबू छी औऽऽऽ।”
भोरुकबा उगैत
त्रिकण्ठ बाबाक परातीक स्वर सौंसे गामकेँ भोर हेबाक सूचना दैत आ किछु कालक बाद बाद
झमा झम, झमाझम, टन-टन टनटन घड़ी-घण्टा
सुनबामे अबैत। मन्दिरपर बाबा भगवानक आरती करितथि। भोरे-भोर सभ ठिठुरैत मन्दिरसँ बाहर होइतथि।
फेर भोर भेल छल। मुदा
१२ वर्षक अन्तराल छल।
हम ओहिना ओही पोखरीक
भीरपर गेल रही। की भए गेल? सात बाजि गेल। घड़ी-घण्टाक स्वर नहि, प्रातीक एकहुटा आखर
नहि सुनायल। चौकीदारक कतहुँ कोनो पता नहि। जे पोखरि हरियर कंचन पानिसँ भरल रहैत छल
सैह उजारसन लगैत छल।
यैह सभ सोचि रहल
छलहुँ कि बड़ी जोरसँ हल्ला भेल। जैह-सैह चौक दिस दौग रहल छल। कै गोटासँ पुछलिऐक।
क्यो किछु कहबा लेल तैयार नहि छल। ककरा फुर्सति छलैक। सभ अफसियाँत..!
हल्ला जोर पकड़ने जा
रहल छल।
ताबे देखबामे आयल जे
१५-२० गोटे लाठी-भाला
लेने गरजैत आगाँ बढ़ि रहल छलाह। ओमहरसँ मरर कका अयलाह।
“की भेलैक मरर कक्का?”
“लड़ाइ भए गेलैक अछि। कैक
दिनसँ तनातनी छलैक,
मुदा आइ फैसला भए कए रहत। ”
“मुदा झगड़ाक कारण?”- हम पुछलियैक।
अहाँ बाबू बाहर रहैत
छी। अहाँ की बुझबैक। अहिठामक हवा विचित्र अछि। अनीनमा क बेटा गोवर्धन बाबूक
प्रौत्रक काज नहि गछलक। बस कि गोवर्धन बाबू पुरनका अबाज देलखिन्ह। छौड़ा अरि गेल।
लाठी पकड़ि लेलक। ताहिपर वो किछु बजलाह-
“कि छौड़ा लेने लाठी
मारि देलक। ओहि दिनसँ समा बन्हा रहल अछि।”
ओ बाजिये रहल छलाह कि
ठाँय- ठाँयक आबाज भेल। कनिके कालमे थानामे तीनटा लाश पड़ल छल। लोक जहाँ-तहाँ भागि रहल
छल।
दू-तीन दिन धरि एकरे
चर्चा होइत रहल। गामक बहुत रास जबान सभ भागि गेल। कहाँ दनि बहुत गोटेपर वारन्ट भए
गेल छलैक।
साँझ भए गेल छल।
गामसँ बहुत रास लोक भागि गेल छल। मन्दिरपर एसगर बैसलरही कि मरर कका पहुँचलाह।
“की बाबू, किएक गुम-सुम छी?”
“आउ, मरर कका।”
मरर कका बैसलाह। गामक
एकटा वृद्धतम लोकमेसँ अवशेष मरर कका ओहि गाममे बहुत किछु देखलाह आ कहि नहि की की आओर
देखताह।
“आओर गामक की हाल?”
“गामक की हाल रहत। समय
बहुत बदलि गेल। आब तँ हमरा लोकनि चलबे करी ओहीमे कल्याण।”
“धिया-पुता की कए रहल
छथि?”
“सभ कमाइ छथि। सबहक
परिवार फराक-फराक छनि।”
“अहाँ ककरा संगे छी?”
“ककरा संगे रहब? हम तँ पेण्डुलम भए
गेल छी। एक-एक मासक पार लगैत अछि। जहिआसँ अहाँक काकी स्वर्गवासी भेलीह तहिया घिघरी
काटि रहल छी। आँखिमे मोतिआबिन्द भए गेल अछि। साँझ परितहि अन्हार भए जाइत अछि। फेर गप्प
हैत।”
ई बजैत-बजैत ओ उठि
गेलाह।
१२ वर्ष पहिनहि मरर
ककाक समय मोन पड़ि रहल छल। गामक प्रतिष्ठित लोकमेसँ छलाह। सभ बालक प्रतिभाशाली
एवम् होनहार। साँझे-साँझ नित्य ओहि मन्दिरपर कीर्तन होइत छल आ मरर कका अवश्य ओहिमे
रहितथि।
कनिककाल आओर बैसल
रहलहुँ। आठ-दसटा अधवयसू सबहक हल्ला बुझायल। सड़कपर सभ गरिअबैत आगा बढ़ि रहल छल। सभ
तारी पीबि कए बुत्त रहए।
काते-कात गामपर
पहुँचलहुँ। मोन थाकल लागि रहल छल। सुति रहलहुँ।
भोर भेने पोखरि दिसि
जाइत रही। गामक अन्तिम छोरपर पाँच-सातटा छोट-छोट खोपड़ी ओहिना-क-ओहिना छल। अपरिवर्तित।
कतेक गोटे धनिक भेल,
कतेक गरीब भए कए गामसँ बिलटि गेल मुदा वो सभ ओहिना-क-ओहिना बाँसक बासन बनेबामे
तल्लीन छल। ओकर बच्चा सभ ओहिना उघार, माटिमे लेटा रहल छल। यैह सभ सोचि रहल छलहुँ कि फोकना
डोम हमरा देखलक। चीलमक सोंट लगा कए खोंखैत बाजि उठल-
“परिणाम मालिक, कहिआ अलियै?”
तीन दिन भए गेलैक। आ
हम आगा बढ़ि गेलहुँ।
पोखरि दिसिसँ आबि
स्नान-ध्यान कएल। मधुबनी जेबाक छल। कनिके आगा बढ़ल छलहुँ कि फूटरक मायक कनबाक आबाज
सुनलहुँ। खोपड़ी तर बैसल कानि-कानि किछु कहि रहल छेलीह। हमरा देखि सोर पारि लेलीह।
“की भेल काकी? किएक कानि रहल छी?”
“की कहूँ, अपना घरक बात बजैत
संकोच होइत अछि। तीन साँझसँ घरमे किछु नहि भेल अछि। हमरा लोकनि दुनू गोटे फराक छी।
मालिकसँ दसटा टका मंगलिअनि तँ गरजि उठलाह।”
ई कहैत-कहैत ओ ठोह
पारि कए कानय लगलीह। हमरा नहि रहि भेल। हुनका प्रणाम कय आगा बढ़ि गेलहुँ।
हे भगवान! की भए गेल एहि
गामकेँ? मनुष्यता जेना भागि
गेल। जतै देखू उलटे हबा बहि रहल छल।
रिक्सासँ मधुबनी जाइत
रही। यैह सभ सोचैत-सोचैत निन्न परि गेल। रिक्सा आर.के.कालेजसँ आगा छल। एतबेमे तिलक
भाइ नजरि पड़लाह। मुदा टोकबाक साहस नहि भेल। कहि नहि की की आओर सुनय पड़य। दिन भरि
मधुबनीमे रहलहुँ। साँझ भए रहल छल। मुदा गाम जयबाक साहस नहि भए रहल छल।
दू दिन धरि
मधुबनियेमे रहि गेलहुँ। साँझमे टहलैत काल मन्दिर गेल रही। भगवतीक दर्शन कएल। घाटपर
बैसल रही। साँझो उत्तर दिसि बड़ नीक घर सभ नजरिमे आबि रहल छल। मोन भेल घुमी। आगा
बढ़लहुँ। सुन्नर-सुन्नर सुसज्जित घर।
पीच रोड। स्ट्रीट
लाइट। छोटी पटना लागि रहल छल। बारह साल पूर्व ओहिठाम खत्ता छल। बाढ़िक समयमे समुद्र
भय जाइत छल वो जगह। चारूकातक गामसँ श्रीमान लेाकनिक जमघट भए गेल छल ओहिठाम।
संयोगसँ अपना गामक देबन बाबू नजरिमे अयलाह। घरक दरबज्जासँ निकलि रहल छलाह। कहि
उठलाह-
“कहिआ अयलह?”
कहलियनि-
“चारि-पाँच दिन भेल।”
गप्प आगा बढ़ए लागल। कहलाह-
“की कहैत छह?
आब गाम रहए-जोकर नहि
रहल। तँए एहीठाम एकटा छोट-छीन घर बना लेलहुँ। कोठरीसँ बड़की भौजी आबाज देलीह-
“ठाढ़ किएक छी? अहाँक तँ अपन घर
अछि।”
घरमे प्रवेश करितहि
छगुन्तामे पड़ि गेलहुँ। सोफासेट
- टीभी, डाइनिंग टेबुल ..की की नहि छल।
गप्प-सप्प होइत रहल।
चाह-जलखै सभ भेल।
गप्पक क्रममे
पुछलिअन्हि-
“मरर ककाकेँ एतहि किएक
नहि राखि लैत छिऐन?”
काकी तर-दए बाजि
उठलीह-
“हुनका गाम छुटिते नहि
छन्हि! की करी?”
मरर ककाक ज्येष्ट
पुत्र देबन भाइ बड़ प्रतिभाशाली छलाह। मुदा एक युगक अन्तराल पिता पुत्रकेँ धारक दू
कातपर राखि देने छल।
रातिक आठ बाजि गेल
छल।
हम हुनका सभसँ विदा लए
पुन: मधुबनीक डेरापर चल गेलहुँ। रास्ता भरि अपन गाम आ काली मन्दिरक आगूक खत्तामे
भेल एक युगक अन्तरालक परिवर्तन मोनमे बेर-बेर अबैत रहल। गामकेँ की भए गेल? हे भगबान! कोन भूत एकरा धए लेलक? लोक एना किएक कए रहल अछि? काली मन्दिरक चभच्चा
छोटी पटना भए गेल। गाम एना किएक रहि गेल। गाम माने की? संघर्ष, शोषण, ईर्ष्या, द्वेषक अतिवाद।
छुट्टी समाप्त भए रहल
छल। रेलगाड़ीपर बिदा भेलहुँ। अपन संघर्ष स्थली दिसि- जहिठामसँ दूरीक कारण
चन्द्रमाक धरातल जकाँ अपन गाम सुन्नर लागए लगैत अछि।
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