सनकल
नहरिक काते-काते वो
चल जाइत छल। फाटल-चीटल नुआसँ देहक लज्जावरण दैत दुनू हाथे दुनू बच्चाकेँ कोरतर
दबने एक सुरे बढ़ल जाइत रहए। जेठक ठहा-ठही रौद। चारूकात कतहुँ क्यो नहि। मुदा ओ
अपसियाँत भेल बढ़ले जाइत छलै। कि भेलै ओकरा से नहि कहि? प्राय: ओ सासुरसँ रूसि गेल
छल। थाकल, ठेहियाएल वो पाकड़िक
छाहरि देखि बसि गेल। ओकर आँखिसँ नोर झर-झर खसय लागल। के पोछत ओकर नोर? सुनैत छल जे सासुरमे
लोककेँ बड़ सुख होइत छैक। सासु-ससुर, दिओर, दियादिनी सभ छलै ओकरा। मुदा सभ जेना जन्मी दुश्मन
रहैक ओकर। ओकर अनेरे खिदांस करब जेना ओकरा सभक धर्म रहैक। खेबो-पीबोक ओकरा कष्टे
छलैक। घरबला कमासुत छलैक। मुदा भैयारीमे सभसँ छोट होयबाक कारण परिवारक ऋृण ओकरापर
बहुत रहैक। भाए सभ गरीबीमे छलैक। तेँ जे
चारि-कौरी कमाइतो छल से कैठाम बँटि जाइत छलैक। स्त्रीसँ ओकरा प्रेम तँ छलैक मुदा
कालक प्रभाव ओकरो नहि छोड़लकै। समय बीतलासँ ओकरा सौन्दर्य-सौष्ठव कम भए गेल छलैक आ
ओकर ध्यान क्रमश: कोनो आन स्त्रीपर केन्द्रित होमए लागल छलैक। ओ स्त्री सुन्नरि तँ
छलै, संगहि ओकरामे आधुनिकताक
पुट सेहो छलैक, आंगिक चमत्कार छलैक
आ यौवनक मादकता ओकरा आकर्षणक केन्द्र बना देने छलैक...।
कोना-ने-कोना यैह बात
सभ ओकरा कानमे पड़लैक जे ओकरा पचाओल नहि भेलैक। दरिद्राक भार फराक, तंदुरूस्ती घटैत से
छलैक आ ओमहर घरबलाक उपेक्षापूर्ण आचरण...।
मोन जेना बेरक्त भए
गेल रहैक आ तँए एक दिन वो सासुरसँ काँखक तर बच्चाकेँ दबने भागि गेल।
नैहर धनिक तँ छलै
मुदा भाए सबहक राज। बाप मरि गेलै आ माए सेहो बुढ़ भए गेल छलैक। क्यो घरमे मोजर नहि
करइ। मुदा बेटीक तँ की नहिरे की सासुरे। आ तँए भागल-भागल जखन वो नैहर पहुँचल तँ
चारूकात गामक नव-पुरान लोक ओकरा घेरि लेलक।
“किछु सुनलिऐ? फलनमाक बेटी सासुरसँ
भागि अयलैक अछि।”
इत्यादि-इत्यादि, जकरा जे फुराइक से
बाजैत छलै। आर वो हतप्रभ बीच अँगनामे ठाढ़ रहए। के खोंइछ खोलत आ के पटिया ओछा कऽ
बैसय कहतैक। अपने घरमे वो पराया बनल छल। क्यो सहारा नहि बुझाइ।
ताबतमे प्राण दाइ
कतहुँसँ एलखिन आ कहलखिन-
“दूर जाइ जाउ। केहन
पाथर भए गेलहुँ अहाँ लोकनि...! बेटी डाटी छइक आइ आयल, काल्हि चल जायत। तकर अनादर
किऐक करैत जाइत छी।”
कैटा कनियाँ सभ आबि
गेल छलैक ओहि आँगनमे। तीनटा ओकर भाए छलैक।
भरि-भरि दिन वो जेठकाकेँ कोरा खेलबैत रहैत छलैक। जाड़क मासमे रौदमे तेल लऽ देह
मलैत रहए आ कनेको जहाँ बच्चाकेँ सर्दी होइक तँ जेना ओकर प्राण सन्न दय रहि जाइत
रहैक। मुदा आइ चारि-पाँच दिन अयला ओकरा भए गेल छलैक आ ताधरि जेठकासँ टोका-चाली नहि
भेलैक। भाए सभ तीनू तीन ठाम भए गेल छलैक आ
माएकेँ तीनू गोटे मिलि कऽ फराक खोड़िस दैत छलैक।
हारि कऽ जखन ओकरा
कोनो भाए नहि पुछलकै तँ माएक संगे रहए
लागल।माए तँ माए होइत छैक किने। रहि-रहि कऽ नोरक धार बहाबए लगैत छलैक। उच्च सुनैत
छलैक आ तेँ ओकरासँ जे खुलि कऽ गप्पो करैत सेहो नहि होइक। कारण जे ओकर बात कनियाँ
सभ सुनबाक हेतु टाट लागल रहैत छलैक। कहबी जे छैक जे गेलहुँ नेपाल आ कर्म गेल संगे।
सैह परि ओकरो भेलैक। सासुरमे सासु, ननदि आ दियादिनी तँ नहिरामे ई कनियाँ सभ ओकर जानक
जपाल भए गेल छलैक। तैयो माए लऽ कऽ छल। अहिठाम किछु आजादी तँ छलैक।
“सैह की हाल अछि ओकरा
सन-सन हजारो कन्याक जकरामे सासुर ने नहिरे- क्यो कतहुँ सहारा नहि होइत छैक?”
सैह सभ सोचैत रहए।
सोन दाई सोन दाई,
सौंसे गाममे सोर रहैत छलैक। गोर नार दप-दप छल वो। सिलाइ-कढ़ाइ सभ गुण ओकरामे छलैक।
मुदा गुणसँ की हो? टाकाक
विआह होइत छैक। बाप धनिक तँ छलैक मुदा कंजूस छलखिन। बेटीक भाग नहि देखलखिन आ एकटा
साधारण लोकसँ ओकर विआह करा देलखिन सौंसे गाम छिया-छिया कहलकै।
“सैह हौ, लोचनो बाबू, विचार घोरि कऽ पीबि
गेलाह। बेटीक भविष्यक कनियोँ विचार नहि केलाह। पाई तँ अबैत जाइत रहैत छैक।”
इत्यादि-इत्यादि।
बेटा सबहक भविष्यक चिन्ता जबरस्त छलनि। की होयत की नहि? बेटी तँ दोसर धर चल जाइत
छैक। आकरासँ वंशक रक्षा तँ नहि होइत छैक। मुदा बेटा तँ कुलक आधार छैक। सैह सभ
हुनकर पुरनका मिजाज सोचैत रहैत छल।
सासुरमे दरिद्रा चरम सीमापर
छलैक। सभ दियादिनी मरूआ कूटए। रोटी ठोकए। धनकुट्टी करए। द्विरागमनक पन्द्रह-बीस
दिन धरि तँ ओकरा क्यो किछु नहि कहलकै। मुदा कालक्रमे सभक व्यवहार कठोर होइत गेलैक।
पटिदारी छलैक किने। चारूकात सभ ओकरे निशाना बनाबए लागल।
“गे मैयो भरि दिन बैसल
रहतौ जेना फरफेसरक बहु हो..!”
घरबला जाबत काल रहैक
ताधरिक क्यो ओकरा किछु नहि कहितै। ओकरा काजपर जाइते फेर वैह रामा वैह खटोली। ओकरा बासन
छुआओल गेल आ क्रमश: ओ पार लगा कऽ चौका-बासनक काज करए लागल। मुदा ओहि घरमे तँ
पटिदारी छलैक। जेठकी दियादिनी बड़ क्रूड़ छलैक। ओकर इच्छा जे कुटनी-पिसनीमे सेहो
पार लगौक। किछु दिनक बाद ओकरा सन्तान हेबाक सम्भावना भेलैक। मुदा ताहिसँ की? भानस-भात, कुटनी-पिसनी आ
ताहिपर सँ सासु ओ ससुर तथा दियादिनी सबहक कटाह गप-सप्प।
सुनैत-सुनैत ओकर दम
फुलैत छल। मुदा करए की? ककरा कहितै अपन दुख। चारूकात अन्हारे-अन्हार बुझाइक।
जकर घरोबला ओकर पक्षमे नहि होइक ताहि स्त्रीगणक भगबाने मालिक होइत छैक आ सैह परि
ओकरो छलैक। ओना, नवमे ओकर घरबला बड़
आव-भाव रखलकै। नव-नव कपड़ा-लत्ता सभ चीज आनि-आनि दैत छलैक।
मुदा ओकरा ध्यान जेना
क्रमश: हटैत गेलैक। ओ एसगरे हकासलि-पियासलि भरि दिन आ दुपहर राति धरि काज करैत
रहैत छल। क्यो एहन नै भेटलैक जकरा अपन मोनक भाव कहितै, जकरा लग मोन भरि कनितै।
नैहरसँ कौओ पर्यन्त नहि अयनिहार।
“उपाय तँ छलैक। मुदा
बोराक आम आ बेरोमे मिथिलामे कोनो अन्तर नहि छैक। साँठि देनहि कल्याण। आ जँ एक बेर
ककरो गारामे बान्हि देलियन्हि तँ फेर जन्म भरिक लेल निचैन भए जाउ। धन्यवाद कही
मिथिलाक समाजकेँ जे एखनो धरि अपन स्त्री समाजकेँ एतेक निरघीन जीबन वितयबाक हेतु
मजबूर कऽ दैछ।”
यैह सभ बात ओकर मोनमे
उठैत रहैत छलैक।
ओमहर ओकर भाए सभ अपनामे भिन्न-भिनाउज कऽ लेलकै आ सभ
अपना-अपनीक धन जमा करैत छलैक। सभकेँ कोठा छलैक। जहिया ओ नैहरसँ कनैत विदा भेल छल
तहियो ओकर बापकेँ कोठा छलैक। मुदा अखन तँ ओकरा बुझाइत जेना दोसर ठाम आबि गेल हो।
चारूकात पोखरिया-पाटन छलैक। सैह, धन एतेक आ मोन कतेक छोट छै। ओकर भाए सबहक ठीके छै कहबी जे टाक आगू लोक सभ
सम्बन्ध बिसरि जाइत अछि।
किछु दिन नैहरमे
रहलाक बाद ओकर सासुरक लोक अयलैक। बड़ उपरागा-उपरागी भेलैक। आ ओकरा फेर लोक सासुर
लय गेलैक। मुदा एहिबेर तँ ओकर सासु बाढ़निये नेने ओकर स्वागत केलक। एवम्-प्रकारेण
आनो-आनो लोकक आचरण ओकरा प्रति कठोर होइत गेलैक। ओकर गहना सभ बेचि देल गेल रहैक आ
वो क्रमश: अकान ओ सुन्न भेल जाइत छल।
एक दिन ओकरा ने आगू
फुराई आ ने पाछू आ दिमाग बिजलीक करेन्ट जकाँ फेल कऽ गेलैक। ओ फेर भागल नैहर। एहि प्रकारे
नैहर-सासुर वो कैबेर केलक। सभठाम ओकरा उपेक्षा भेटैत छलैक। नैहरोसँ ओकर मोन उचटि
गेल रहैक। तेँ वो सोचलक जे बरे लग चली। जेना-तेना हराइत-भुतियाइत वो बरक डेरापर
पहुँचलतँ जे देखलक से देखि कऽ गुम्मे रहि गेल।
भोरक समय छलैक ओकर
घरबला कोनो दोसर स्त्रीक संग एसगर घरमे रहैक। ओ चोट्टे घुमि गेल आ भागल भागल-भागल
नहि जानि वो कतए गेल।
एमहर ओकर खोज-पुछारि होमए
लगलैक आ कएक दिनक बाद एकटा टीशनपर ओकरा लोक बैसल किछु-किछु रखने फाटल-चिटल कपड़ा
पहिरने देखलक। ओ ठहाका भरि कऽ हँसैत छलैक- जेना समस्त समाजपर वो हँसि रहल हो। ओकरा
ने कथुक लाज छलैक आ ने धाक। मुदा लोक सभ कहए लगलैक जे वो एकदम सनकि गेल छल। आ ओ
एकदम गुम्म भए गेलैक। तकर बाद फेर कहियो ककरोसँ नहि बजलकै।
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