मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

दिल्‍ली आगमन   






दिल्‍ली आगमन   

दिल्‍ली एकटा ऐतिहासिक महानगर अछि। सौंसे देशसँ लोक जीवन-यापन हेतु एतए अबैत अछि। वर्तमान समयमे ई देशक राजनीतिक केन्‍द्र बिन्‍दु अछि। ऐठाम प्राचीन एवं आधुनिक सभ्‍यताक समागम अछि। पुरना दिल्‍लीमे अखनो मुगल समयक छाप भेट जाइत अछि। कुतुव मिनार, लाल किला हुमायुक मकबरा दिल्‍लीक अतीतक स्‍मरण करबैत अछि। ओत्तै मेट्रो रेल, नेहरू स्‍टेडियम, लोटस टेम्‍पल, बड़का बड़का मौल, फ्लाइ ओभर इत्‍यादि दिल्‍लीक आधुनिक कालक विकास यात्राक प्रमाण अछि।

पाण्‍डवक समयमे दिल्‍लीकेँ इन्‍द्रप्रस्‍थ कहल जाइत छल। ११९२ ई.मे दिल्‍लीपर मोहम्‍मद गोरीक कब्‍जा भऽ गेलइ। १२०६ ई.मे दिल्‍ली साल्‍तनक स्‍थापना भेल। १३९८ ई.मे तैमुरद्वारा दिल्‍लीपर आक्रमणक संग सल्‍तनक अन्‍त भऽ गेल। अन्‍तिम सल्‍तनक लोदी वावरसँ हारि गेला। १५२६ ई.मे पानीपतक लड़ाइक बाद मुगल साम्राज्‍यक स्‍थापना भेल। १८०३ ई.मे दिल्‍ली अंग्रेजक अधीन भऽ गेल। १९११ ई.मे भारतक राजधानी कलकत्तासँ दिल्‍ली आबि गेल।  

एहेन ऐतिहासिक रूपे समृद्ध शहर जेबाक, ओइठाम रहबाक एवं विकास करबाक इच्‍छा मनमे रहबे करए, अत: तीव्र अभिलाषाक संग हम दिल्‍ली विदा भेल रही। दिल्‍लीक विषयमे लोक सबहक तरह-तरह केर धारणा रहइ। बहुत दूर तँ छइहे। खर्चो-बर्च बढ़ि जेबाक अन्‍दाज सही छल। परिवारमे बहुत दिन धरि हम दिल्‍ली जाइ वा नहि जाइ, ऐ विषयपर चर्च होइत रहल। हमर पिताजीकेँ दिल्‍लीमे जा कऽ नौकरी करब एकदम पसिन नइ रहैन। दड़िभंगामे टेलीफोन इन्‍सपेक्‍टर बनल रही से हुनका बेहतर बुझाइत रहैन। गामक लग रहब, भेँट-घाँट होइत रहत। पाइयो बाँचत इत्‍यादि...।

ओना, किछु हद तक हुनक सोच ठीके रहैन मुदा हम दिल्‍ली जाए चाही, कारण ओइठाम बेहतर भविसक सम्‍भावना बुझाइत रहए। प्रतिस्‍पर्धा परीक्षा सबहक तैयारीक बेहतर अवसर भेट सकै छल। किछु दुरदर्शी लोकक मन्‍तव्‍य छेलैन जे दिल्‍ली अबस्‍स जेबाक चाही। ओइठाम वेहतर भविस हएत। धिया-पुताकेँ वेहतर शिक्षाक अवसर भेटत। अपनो आगू बढ़ि सकब। मुदा कहब छै जे दिल्‍लीक लड्डू जे खेलक सेहो पछताएल आ जे नइ खेलक सेहो पछताएत। किछु हद धरि से सही।  

दड़िभंगासँ बरौनी होइत हम दिल्‍ली आएल रही। ऐसँ सन् १९७२ ई.मे पहिल बेर स्पेशल क्लास रेलवे अपरेन्टीसक संघ लोक सेवा आयोगक साक्षात्‍कारक क्रममे हम दिल्‍ली आएल रही। ओइ समयमे जे.एन.यू. दिल्‍ली स्‍कूल ऑफ इन्‍टरनेशनल स्‍टडीज रहइ। सप्रु हाउसमे हमर गौंआँक मित्र विद्यार्थी छला। हुनके संगे चारि दिन ओइ छात्रावासमे रहि कऽ शाहजहाँ रोड स्‍थितसंघ लोक सेवा आयोग जाइ छेलौं। सप्रु हाउसमे बहुत रास विदेशी विद्यार्थी सभ सेहो छला। हमरा ओइ वातावरणमे असोकर्ज होइत छल, अन्‍यथा ओइठाम बहुत सुविधा रहइ आ हमरा बहुत नीकसँ रखने रहैथ। दोबारा हुनकासँ भेँट नहि भेल। बादमे पता लागल जे ओ ऐ्एन्यू्मे प्रोफेसर भऽ गेल रहैथ।

२ अगस्‍त १९७७ ई.मे हम दिल्‍ली पहुँचल रही। हमर गामक कोरियानी टोलक एक गोरे दिल्‍लीमे रहै छला। रातिमे हुनके ओइठाम रहल रही। सम्‍भवत: ओ मंगोलपुरीमे रहै छला। एक्के पाँतिमे छोट-छोट केतेको घर सभ छल। बहुत रास लोक सभ। चारि बजे भोरे कियो चिकैर-चिकैर कऽ सभकेँ उठा रहल छेलइ। प्राय: ड्यूटीपर जेबाक हेतु। ३ अगस्‍त १९७७ ई.के हम पहिल बेर दिल्‍ली स्‍थित नार्थ ब्‍लॉकमे नौकरी ग्रहण केलौं। ओइ दिन बर्खा होइत रहै आ नार्थ ब्‍लॉक अबैत-अबैत हम अधभिज्‍जू भऽ गेल रही।

नार्थ ब्‍लॉकक वर्णन की कएल जाए। ब्रिटिश साम्राज्‍य द्वारा भारतपर शासन करबाक शक्ति केन्‍द्र छल नार्थ ओ साउथ ब्‍लॉक। हायसीना पर्वतपर बनल- एक तरफ विशालकाय राष्‍ट्रपति भवन आ दुनू समानान्‍तर ठाढ़ नार्थ ओ साउथ ब्‍लॉक।

सन्‍ १९११ ई.मे भारतक राजधानी दिल्‍ली स्‍थानान्‍तरणक पछाइत दिल्‍लीक नवनिर्माणक जिम्‍मा लाइटनकेँ देल गेलैन। ओ राष्‍ट्रपति भवन (ओइ समयक भाइसराय हाउस) क निर्माण केलाह। हर्वर्टवेकर दच्‍छिन अफ्रिकासँ आबि कऽ हुनकर सहयोगीक रूपमे काज करए लगला।

नार्थ एवं साउथ ब्‍लॉकक निर्माणक जिम्मा वेकरकेँ देल गेल। कालान्‍तरमे दुनू गोटेमे मतभेद भऽ गेल। फाइटन चाहै छला जे नार्थ ब्‍लॉक, साउथ ब्‍लॉक वाइसराय हाउसक हिसाबसँ कम ऊँच बनै जइसँ राजपथसँ ओकरा अनचोके देखल जा सकइ। मुदा वेकरकेँ ई बात पसिन नहि छेल आ अन्‍ततोगत्‍वा वेकरेक चलल। नार्थ ब्‍लॉक, साउथ ब्‍लॉकक ऊँचाई भाइसराय हाउसक बरबैर राखल गेल।

भारतक राजधानी दिल्‍ली स्‍थानान्‍तरणक बाद उत्तरी दिल्‍लीमे बनल अस्‍थायी सचिवालयसँ भारतक शासन चलल। ब्रिटिश भारतक विभिन्न भागमे कार्यरत कर्मचारी सभकेँ दिल्‍ली आनल गेल ओ गोल मार्केटमे हुनका लोकनिक आवासक निर्माण भेल।

पुरना सचिवालयमे बादमे दिल्‍ली सरकारक कार्यालय रहल। १९३१ ई.मे भारतक शासन नार्थ ब्‍लॉक, साउथ ब्‍लॉकसँ होमए लगल। ओही आसपास सन्‍ १९२१ ई.मे संसद भवनक निर्माण प्रारंभ भेल।

नार्थ ब्‍लॉक ओ साउथ ब्‍लॉकक निर्माण एक्के रंग अछि। भूतलक अलावा दू सतह आरो अछि। प्रथम तलपर सामान्‍यत: वरिष्‍ठ अधिकारी एवं मंत्रीगणक कार्यालय अछि। जखन सुरक्षा बेवस्‍थामे एतेक सख्‍ती नहि छल, तखन सामन्‍य आदमी नार्थ ब्‍लॉकक मुख्‍य द्वारासँ होइत आरपार निकैल जाइत छल। मुख्‍य द्वारसँ घुसिते अन्‍दर गोलाकार खाली स्‍थान अछि जइमे तापक्रम अपेक्षाकृत कम रहैत अछि आ गरमीमे लोक सभ ओइमे बैस कऽ सुस्‍ताइत अछि। आबक सुरक्षा परिवेशमे नार्थ ब्‍लॉक वा साउथ ब्‍लॉकमे प्रवेश बहुत कठिन काज थिक। 

यदि अहाँकेँ नार्थ ब्‍लॉकक भूगोलक सही जानकारी नहि अछि, तँ अपनेकेँ वौआ जाएब आसान बात अछि। विभिन्न स्‍थानसँ सरकारी काजसँ नार्थ ब्‍लॉक एनिहार अधिकारी लोकनिसँ केतेको बेर सम्‍बन्‍धित स्‍थान वा कक्षक जानकारी लैत देखिऐन। नार्थ ब्‍लॉक ठीक सामने बामा कातमे इण्‍डिया गेट अछि। नार्थ ब्‍लॉकसँ उतैर कऽ कनिक्के आगू बढ़ू तँ विजय चौक अछि, जेतए गणतंत्र दिवस समारोहक बाद वीटींग रीट्रीटक आयोजन कएल जाइत अछि।

नार्थ ब्‍लॉकमे पहिल बेर गेलाक बाद श्री विनय सेखडीजीसँ भेँट भेल जे हमरा आवश्‍यक कागत सभपर दस्‍तखत करा कऽ नव नौकरीमे पदभार ग्रहण करौलैथ। नार्थ ब्‍लॉकक पैघ-पैघ कक्षक अन्‍तहीन श्रृंखला देख हम गुम रही। केतौ कियो चिन्‍हारे नहि छल। किछु बुझल नहि छल। सत् पुछल जाए तँ हमरा ठक-विदरो (चक-विदोर) लागि गेल रहए। कार्यभार ग्रहण कऽ हमर बैसक  इण्‍डिया गेटक एकदम सामने पड़ै छल। कोठरीमे बैसले-बैसल इण्‍डिया गेट देखल जा सकै छल।

कखनो काल अवर सचिव महोदय ओइ कोठरीमे आबैथ आ कहैथ जे अहाँ केतेक भाग्‍यवान छी जे बैसले-बैसल इण्‍डिया गेटक दर्शन करैत रहै छी। ओइ समयमे अवर सचिवक बड़ धाक रहइ। हम तँ एतेक डराएल ओ अपसियाँत रहै छेलौं जे किछु काज करब कठिन छल। भारत सरकार लिखल देख कऽ होइत छल जे आब की हएत। भारत सरकारक मंत्रालयमे भारत सरकार नहि लिखल जेतै तँ आर की लिखल जेतइ? क्रमश: ई स्‍थिति सामान्‍य भेल।

गृह मंत्रालय, नार्थ ब्‍लॉकमे पदभार ग्रहण करबाक दौरान जे भेट भेल से क्रमश: दोस्‍तीमे बदैल गेल।  गोरनार, मेहनती एवं इमानदार अधिकारी छला श्री सेखडीजी। जलंधर शहरक निवासी छला आ योजना रहनि जे सेवा निवृत्तिक बाद ओहीठाम शेष समय बिताएब। हुनकर धिया-पुता सभ अति शिक्षित छेलखिन। मुदा संयोग देखू, निदेशक पदसँ सेवा निवृत्ति भेलाक चारि-पाँच मासक अन्‍दरे हुनकर स्‍वर्गवास भऽ गेल। एक दिन भोरे टहैल कऽ आएल रहैथ आ घर पहुँचते छातीमे दर्द भेलैन आ जाबे किछु लोक बुझितै ओ मरि गेला। सभ योजना धाएले रहि गेल। एहेन क्षणभंगुर जीवनक हेतु लोक कतेक योजना बनबैत रहैत अछि..! युधिष्‍ठिरक यक्ष प्रश्‍नक उत्तर जे निरन्‍तर मरैत देखितो लोक अपनाकेँ ओइ नियमसँ फराक बुझैत अछि! केतेक सटीक  अछि!

शेखरीजीक स्‍मरण सदैत होइत रहैत अछि ।हुनक असामयिक निधनसँ हमर एकटा मित्रे नहि अपितु एकटा नीक सलाहकार सदा सर्वदाक लेल अनन्‍तमे बिला गेल छल।

३ अगस्‍त १९७७ ई.के नार्थ ब्‍लॉकमे कार्यभार ग्रहण कऽ हम साँझमे अपन गौंआँक ओइठाम गेलौं। ओ मोतीनगरमे रहै छला। परिवारो संगे रहैन। एक्केटा कोठरी किरायापर लेने छला। अपना भरि पूरा सत्‍कार केलाह। रातिमे भोजनक बाद हम बाहर खाटपर सुति रहलौं। एकाध दिन अहिना बीतल। तेकर बाद वएह अपन मकान मालिकक एकटा फ्लैट मोती नगरमे किरायापर दिया देलैन।

दिल्‍लीमे आवासक बेवस्‍था भऽ गेला बाद आश्वस्‍त भेलौं। मोती नगरसँ नार्थ ब्‍लॉक ८० नम्‍बरक बस चलैत छल। ओइ समयमे बस नार्थ ब्‍लॉकमे एकदम नजदीक तक अबैत छल। उतरू आ दस डेग चलिते नार्थ ब्‍लॉकक अन्‍दर आबि जाउ।

ओइ समय दिल्‍लीक सुरक्षात्‍मक वातावरण आइ-काल्‍हि जकाँ नइ छल। मोती नगरमे राति-राति भरि लोक सभ अपन फ्लैटक आगाँ खाट लगा कऽ सुति रहै छल। मुदा हम कार्यालय, बाहर ओ घर सभठाम नव वातावरण, नव लोक एवम्‍ अलग जीवन शैलीक कारण अपसियाँत रही। कखनो-कखनो अफसोच होइत छल जे दड़िभंगाक नौकरी छोड़ि कऽ दिल्‍ली किएक एलौं?

मोतीनगरमे डेराक अगल-बगलक लोकसँ कोनो परिचय नहि छल। रातिके छतपर सुति रही। खाटपर सतरंजीक तरमे लोहाक डंडा नुका कऽ रखने रही जे जँ कोनो संकट औत तँ देखल जेतइ। एक राति एकटा पड़ोसीसरदारजीभेँट करए आएल। खाटपर बैसल की ओ लोहाक रौड निच्‍चाँ खसि पड़लै। ओकरा संशय बढ़ि गेलइ, जे की बात छिऐ? दोसर दिन भेनेओ हमर मकान मालिक ओतए पहुँचल। मकान मालिक ओकरा आश्वस्‍त केलकै तखन ओ चैन भेल।

कार्यालयमे अपन लेाक ताकबाक प्रयास करए लगलौं तँ वित्त मंत्रालयमे एकटा झाजी भेटला। बुढ़ लोक। मैथिलीमे बजबाक प्रयास कएल, मुदा ओ मैथिली नइ बुझथिन। कहला जे २-३ पुस्‍त पहिनहि हुनका लोकनिक पुर्वज गाम-घर छोड़ि जयपुरेमे बसि गेल रहैथ। हुनका मैथिली बुझए तँ अबैत छेलैन मुदा बाजि नहि सकैथ। हुनकर डेरा आर.के.पुरममे छल। ओत्तौ गेलौं। हुनकर परिवारमे सभ कियो मैथिली सीखए चाहैत छला, मुदा तेकर उचित सुविधा नहि भऽ रहल छेलैन।  किछु दिन बाद कोइलखक श्री आर.आर. झाजी नार्थ ब्‍लॉक, वित्त मंत्रालयमे भेटला। हुनकासँ गप करिते मोन बहुत आश्वस्‍त भेल। दड़िभंगा लगक हमरे नामधारी मिसरजी भेटला। हुनका सभसँ जे सम्‍पर्क भेल से अद्यावधि बनल अछि।

यद्यपि दिल्‍लीक धक्कम-धुक्काबला जिनगीसँ अपसियाँत रही, मुदा तत्‍काल कोनो विकल्‍पो नहि छल। जेतइ देखू, लोक पाँति बना कऽ ठाढ़ अछि। दूधक पाँति तँ चारि बजे भोरेसँ लागब शुरू भऽ जाइक। डी.एम.एस. दूध कनीक सस्‍त होइत छल। मुदा तइ हेतु टोकन लेमए पड़ैत छल जे आसान नहि छल। जेतइ जाउ तेतइ पाँति लागल लोक सभ भेटत। कार्यालयमे भरि दिन काज करू आ तेकर बाद शुरू भऽ जाउ पाँतिमे। बसमे चढ़बासँ पहिने पाँति लगाउ। जँ छुट्टी हेबासँ पाँच मिनट पहिने आबि गेलौं तँ आसानीसँ बसमे सीट भेट जाएत, नहि तँ ठाढ़े धक्का-मुक्की करैत घर पहुँचब। हमर अधिकारी एकटा मद्रासी छला। अपने बजैथ आ अपने बुझैथ।

दिल्लीक धक्कामुक्कीसँ हम तंग भय गेल रही।ओइ समयमे कर्मचारी चयन आयोगमे इलाहाबाद हेतु किछु लोकक पदस्‍थापना हेबाक रहइ। हम दर्खास्‍त देलिऐ आ हमर स्‍थानान्‍तरण ओइठाम भऽ गेल। सन्‍ १९७८ ई.क ९ जनवरीकेँ हम इलाहाबाद कर्मचारी चयन आयोग पहुँचलौं।

पाँच महिना धरि दिल्‍लीमे रहलाक बाद हम इलाहाबाद चलि गेल रही। ऐ अल्‍प अवधिमे दिल्‍लीक जानकारी प्राप्‍त करब आसान नहि। ओइठाम दिल्‍लीमे प्रदूषण चरमसीमापर छल। अकास धुआँसँ भरल रहै छल। रातियोमे तारा नहि देखल जा सकै छल। दिन भरि काज भेलाक बाद डेरा लौटैत-लौटैत कपड़ा सभ बेहद मैल भऽ जाइत छल। यद्यपि आब दिल्‍लीक जनसंख्‍या तहियाक तुलनामे बहुत बढ़ि गेल अछि, अपेक्षाकृत वायुमण्‍डल कम प्रदूषित अछि। अकास साफ देखाइत अछि एवं यातायातक बेवस्‍था (खास कऽ मेट्रोक कारण) बहुत बेहतर भऽ चूकल अछि। ओइ समयमे दिल्‍लीमे सरकारी आवासक बहुत पैघ प्रतीक्षा सूची छल।

२०-२५ साल नौकरी केलाक बाद जा कऽ सरकारी आवास भेटैत छल। बहुत रास बात सभ रहल हएत जे हम स्‍वेच्‍छासँ दिल्‍लीसँ स्‍थानान्‍तिरित भऽ इलाहाबाद चलि गेलौं। मुदा दिल्‍ली तँ दिल्‍ली थिक। सन १९८७ मे आपस स्‍थानान्‍तरण दिल्‍ली भऽ गेल आ फेरसँ अपनाकेँ एतए बेवस्‍थित करए पड़ल। प्राय: इलाहाबाद गेनाइ कोनो बहुत लाभकारी नहि रहल।

सन्‍ १९७७ क चुनाव हारि गेलाक बाद स्‍व. श्रीमती इन्‍दिरा गॉंधी अपन आवासपर सुलभ भऽ गेल रहथि आ बहुत रास लोक हुनकासँ भेँट करए हुनकर आवासपर जाइत छल। हमहूँ सभ अपन परिवारक संग इन्‍दिराजीक आवासपर गेल रही। ओतए कियो आम जनता बेरोक-टोक चल जाइत छल। हमहूँ सभ पहुँच गेल रही। मुदा संजोगवश ओ डेरापर नइ रहैथ। बाहरेसँ हुनकर आवास देख आपस भऽ गेलौं। तीन मूर्ति भवन, तेकर बगलमे बनल अन्‍तरिक्ष शाला, राजघाट, सफदरजंगक मकबरा, लोदी गार्डेन, नेहरू पार्क, कुतुबमीनार, लोटस टेम्‍पल, योगमाया मन्‍दिर इत्‍यादि सभ जगह घुमलौं। ओइ समयमे केतौ आएब-जाएब सुरक्षा दृष्‍ट्रिमे आसान छल। अस्‍तु, यथासाध्‍य हम मुख्‍य-मुख्‍य स्‍थान सभ देखलौं।

जनवरी १९७८ ई.क बात छी, ट्रेनसँ दिल्‍लीसँ इलाहाबाद विदा होइत बहुत आनन्‍दित भेल रही। संगे पत्नी ओ बच्‍चा सेहो। एवम्‍ प्रकारेण हम दड़िभंगासँ दिल्‍ली एलौं, मुदा किछुए मासमे इलाहाबाद चल गेलौं। इलाहाबादमे ९ बर्ख धरि रहला बाद मार्च १९८७ ई.मे दिल्‍ली आपस एलौं। मुदा ऐपर चर्चा फेर कखनो करब।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें