दड़िभंगा प्रवास
दड़िभंगा
आबि जाएब बच्चामे बड़ीटा बात होइत छल। रहिका बाटे चुनिन्दा बस छल। ओइ बसक समय
बान्हल छेलइ। जँ ओ छुटि गेल तँ बाट तकैत रहू। टेकरक चलती आइ-काल्हि जकाँ तहिया
नइ छल। मधुबनी बाटे दड़िभंगा जेबाक रेबाज नहि छल। दड़िभंगा जाइत काल हवाई अड्डा
अबैत छेलइ। फटकीए-सँ बड़ीटा कारी, उज्जर रेघाबला झण्डा फहराइत देखाइत रहै छल। एकाध
बेर ओइठाम छोट-छीन हवाई जहाज देखने रहिऐक। हवाई जहाज ओइ समय एतेक मात्रामे नहि
चलैत छल। कहियो काल अकासमे हवाई जहाज देखाइत छल। बच्चा सबहक धियान अकस्माते ओइपर
पड़ि जाइत छल।
पहिल
बेर ट्रेनपर चढ़ि कऽ दड़िभंगासँ मुहम्मदपुर गेल रही। बाबू संगमे रहैथ। ट्रेनमे पहिल
यात्राक स्मरण अखनो एकटा होइत रहैत अछि। ट्रेन चलै तँ डोलै रहै, आ हमहूँ सभ डोली।
डरो होइत छल। नीको लगैत छल। साधरण किलासमे उड़ीसक भरमार रहैत छल।
दरभंगा द्वारवंगसँ बनल अछि। द्वार आ वंग माने वंगालक प्रवेश द्वारा (गेट वे ऑफ बंगाल) किछु गोरक कहब जे दरभंगा नाम द्वार ओ भंगासँ मिलि कऽ बनल अछि। १३२६ ईस्वीमे तुगलक आक्रमणक दौरान किलाघाटक आसपास किलाकेँ तोड़ि देल गेल रहए। १८६५ ईस्वी तक दरभंगा सरकार तिरहुतक भाग छल। तेकर बाद ई अलग जिला बनल। १८४५ ईस्वीमे दरभंगा सदर, १८४६ ई.मे मधुबनी, आ १८६७ ई.मे समस्तीपुर सवडिभीजनक निर्माण भेल। १९०८ ई. धरि दरभंगा पटना डिवीजनक हिस्सा छल। तेकर बाद ई तिरहुत डिविजनक हिस्सा भऽ गेल। १९७२ ई.मे मधुबनी, दरभंगा आ समस्तीपुर सवडिविजनकेँ अलग जिला बनि गेलाक बाद दरभंगा डिविजनक मुख्यालय बनि गेल।
दरभंगा महराज द्वारा बनौल गेल नरगौना पैलेश, आनन्दवाग भवन, बेला पैलेशक अतिरिक्त अनेको मन्दिर, तालाव एवं बाग-बगीचा दड़िभंगा शहरकेँ ऐतिहासिक महत प्रदान करैत अछि। श्यामा मन्दिर आस्थाक केन्द्र बिन्दु भऽ गेल अछि। मिथिला विश्वविद्यालय, अखिल भारतीय संस्कृत विद्यालय सहित अनेकानेक शिक्षण संस्थान दरभंगाक महत प्रदान करैत अछि।
दड़िभंगाक
संगे बहुत रास स्मरण जुड़ल अछि। विद्यार्थी जीवनमे १९६८ सँ १९७२ तक दड़िभंगामे
रही। प्राइवेट लॉज सभमे डेरा रहए। एक साल तक उमा सिनेमाक पाछाँ मिसर टोलामे उेरा
रहए। ओना तँ मकान मालिक बहुत नीक लोक रहैथ आ गाहे-वगाहे मदैत सेहो करैथ, मुदा कोठरीमे बिजली
जरैत देख ओ चिन्तित भऽ जाइ छला। बहुत राति धरि पढ़बाक कार्यक्रम होइत छल। हुनका
चिन्ता होनि जे बिजली जरा कऽ सुति गेला। बगलक कोठरीसँ अवाज दैथ हम जोरसँ हूँ कहि
कऽ ई बुझा दिऐन जे जगले छी। कएक बेर ऐ तरहक जखन भऽ जाइ तँ कहि दैथ-
“सुति जाह, आब बहुत राति भऽ
गेल।”
असलमे
हुनका हमर चिन्ता नइ रहैन, बिजली बेसी जरि रहल अछि, तइ चिन्तासँ परेशान भऽ
जाथि। कारण बिजलीक शुल्क, कोठरीक किरायामे शामिल छेलइ।
किछु
दिन पूनम सिनेमा हॉल लग एकटा प्राइवेट छात्रावासमे रही। ओइ समयमे पूनम सिनेमा हॉल बनियेँ
रहल छल। ओइठामसँ दड़िभंगा टावर नजदीक छल। दयाल भंडारक चुरा, दही आ पेरा स्मरण करैत
अखनो आनन्दित भऽ जाइ छी।
सी.एम. कौलेजक चर्चा होइ आ प्रो. शाहीजीक नाओं नहि आबए, से नहि भऽ सकैत अछि। शाहीजी रसायन शास्त्र विभागक अध्यक्ष छला। अनुशासनक मामलामे बहुत सख्त रहैथ। स्कूल जकाँ सबक देल जाइक। ऐगला किलासमे एक-एकटा विद्यार्थीक काज देखल जाइक, पूछताछ होइक। परिणामत: आर्गेनिक केमेस्ट्रीमे हम सभ पारंगत भऽ गेल रही आ परीक्षामे खूब नम्बर आएल। ओहि समयमे डॉ. एल. के. मिश्रजी प्रचार्य रहैथ। ओ अनुशासनक हेतु प्रसिद्ध छला।
सी.एम.
कौलेजमे पढ़ाइक स्तर ओइ समयमे बढ़ियाँ छल। यद्यपि आन कालैज सभमे हड़ताल होइत रहैत
छल, परीक्षामे नकल करबाक
खबरि सेहो बरबैर अबैत रहै छल, मुदा सी.एम. कौलेज एकर अपवाद छल। तेकर श्रेय काफी
हदतक प्राचार्य डॉ. एल. के. मिश्रजीक छेलैन। अनुशासनक मामलामे ओ टससँ मस नहि होइत
छला। ओइ समयमे विज्ञान एवं कला संकाय सभ एक्के छल। विद्यार्थी सभ खूब मिहनतसँ
पढ़ैत छला आ आगाँ नीक-नीक ठाम उच्चतर शिक्षण संस्थान सभमे नामांकन भऽ जाइत
छेलैन। इलाकाक समान्य परिवारसँ अबैबला विद्यार्थी सबहक हेतु ई वरदान छल। हमहूँ
जोर-सोरसँ परिश्रम कए इंजीनियरिंगमे प्रवेशक हेतु तैयारी केने रही। हमरा नीक नम्बर
एबो कएल। ओइ समय नम्बरक आधारपर इंजीनियरिंगमे नामांकन भऽ जाइत छल मुदा हम कतिपय
कारणसँ बहुत नीक नम्बर अनलाक बादो इंजीनियरिंगमे नामांकन नहि लऽ सकलौं। ई बात सन्
१९६९ ई.क थिक। तेकर बाद सी.एम. कौलेजक भौतिक शास्त्र (प्रतिष्ठा) मे आगाँक पढ़ाइ
करबाक निर्णय भेल आ ऐगला दू साल धरि ओहीमे लागल रहलौं।
डॉ.
सी.के.आर. वर्मा भौतिकी विभागक अध्यक्ष रहैथ। विद्यार्थी सभमे हुनका वैज्ञानिकक
मान्यता प्राप्त रहैन। कहल जाइत जे हुनकर रिसर्च विदेशी पत्रिकामे छपैत रहैन।
कुल मिला कऽ शिक्षक सभ मेहनती छला। सामान्यत: क्लास खाली नहि जाइत। मुदा
विषय-वस्तु ऐ तरहेँ नहि पढ़ाएल जाइ, जइसँ विद्यार्थीकेँ विषयक समझ होइक आ ओ ओइ विषयमे
किछु मौलिक समझ उत्पन्न कऽ सकितए अपितु परीक्षामे अधिकाधिक नम्बर अननाइ मूल
लक्ष्य छल। एकटा अध्यापक तँ पूरा नोट पढ़ैथ आ विद्यार्थी ओकरा लिखि लिअए। केतेको
प्राध्यापक सभ ट्यूशन करैत छला। बहुत रास विद्यार्थी ट्यूशन पढ़ैथ, ऐ लोभ सँ जे प्रैक्टिकलमे
खूब नम्बर दिया देता। मुदा किछु प्राध्यापक एकर अपवादो रहैथ। ईमानदारी ओ मिहनतसँ
पढ़ाइ कराबैथ। चेष्टा करैथजे विद्यार्थी सभकेँ विषय-वस्तुमे पैठ होइक। मुदा ओहन
शिक्षक कम रहैथ। डॉ. एल.के. मिश्रजी केँ प्राचार्य पदसँ हटि गेलाक बाद कौलेजमे
अराजकताक महौल आबि गेल। पढ़ाइ-लिखाइ चौपट। परीक्षा बेवस्था तँ तेना चरमराएल जेकर
चर्चो करब लज्ज्यास्पद। कएक सालक पछाइत नागर्माण आइ.ए.एस. अधिकारीकेँ बिहार
विश्वविद्यालयक उप कुलपति बनौल गेल, तेकर बाद हालत सुधरल।
बी.एस-सी.
आनर्सक लिखित परीक्षा समाप्त भेला बाद गाम आबि गेल रही। गाममे हमरा बड़ नीक छल।
अधिकांश पढ़ाइ, लिखाइ हम गामेमे करै
छेलौं, आ तइमे कोनो असुविधा
नहि होइत छल। बेसी एकान्तक प्रयोजन हो तँ नवका पोखैरपर भालसरी गाछ तरक छाहैर लग
चल जाइत रही।
प्रैक्टिकल
परीक्षाक तिथि घोषित नइ भेल छल। गाममे रहि कऽ कहीं परीक्षा छुटि ने जाए से चिन्ता
हुअ लगल छल। मुदा से नहि भेल। सही समयपर अपन ग्रामीण (जे ओही कौलेजमे विद्यार्थी
रहैथ)क माध्यमसँ प्रैक्टिकल परीक्षाक कार्यक्रमक सूचना भेटल आ सही समयपर हम ओइमे
भाग लऽ सकलौं। परीक्षो नीक भेल। समय-साल ओतेक खराप रहितो, बिना कोनो अतिरिक्त
प्रयाससँ हमरा ठीक-ठाक नम्बर आएल।
बी.एस.सी.
लिखित परीक्षाक दौरान हमर डेरा दोनार पोखैरक कातमे छल। ओइमे आरो कएकटा विद्यार्थी
सभ छला। ओइ समयमे भारत-पाकिस्तानक युद्ध चलि रहल छल। १६ दिसम्बरकेँ भारतीय फौज
बंगला देश जीत चूकल छल आ ओही दिन हमर लिखित परीक्षा समाप्त भेल रहए। ई एकटा
अद्भुत संजोग छल।
बादमे
हम टेलीफोन इन्सपेक्टरक नोकरी करबाक क्रममे टेलीफोन एक्सचेंज लहेरियासरायमे
ट्रेनिंगपर रही आ बलभद्रपुरमे डेरा रहए। अपेक्षाकृत शान्त ओ स्वच्छ मोहल्ला
छल। सामनेमे पोखैर। कनिक्के दूर हटि कऽ एक्सचेंज रहइ। टेलीफोन एक्सचेंजमे अधिकाश
काज हाथेसँ (मैनुअली) होइत छेलइ। ट्रेनिंगक पछाइत किछु दिन जमशेदपुर, फेर सुपौलमे काज
केलाक बाद ३जून १९७५ केँ डीहरी ऑफिस दड़िभंगा आबि गेलौं।
डीइटी ऑफिस कादिराबादमे छल। बस स्टैण्डसँ डीहरी ऑफिस पएरे आएब-जाएबक क्रममे दड़िभंगा
राजक महलमे बनल ललित नारायण विश्वविद्यालसँ जेबाक रस्ता रहइ। एतेक सम्पन्न
महाराजक एहेन दुर्गति भेल से सदिखन सोचाइत रहै छल। ओ चाहितैथ तँ दड़िभंगाक एवं
ओइठामक लोकक आइ दोसर भविस रहैत। तथापि महाराज रामेश्वर सिंहक चितापर बनल श्यामा
मन्दिर सबहक श्रद्धाक केन्द्र बनल अछि आ भक्त लोकनिक निरन्तर प्रवाह ओतए देखल
जा सकैत अछि।
सन्
१९७७ मे जखन केन्द्रिय सचिवालय सेवामे संघ लोक सेवा आयोगक माध्यमसँ हमरा चयनक
बाद गृह मंत्रालयसँ नियुक्ति पत्र भेटल तँ हम दड़िभंगामे टेलीफोन इन्सपेक्टरक
काज करैत रही। बेलामे हमर डेरा छल। हमर मकान मालिक दड़िभंगा राजमे खजांची छला।
सोचल जा सकैत अछि जे अपन समयमे हुनकर केतेक चलती रहल होएत। तखन तँ ओ वृद्ध भऽ गेल
रहैथ। आर्थिक हालत झूस भऽ गेल रहैन। मकानक एक भागमे अपने सपरिवार रहैथ आ तीनटा
कोठरीमे तीनटा किरायेदार छल जइमे एकटा हमहूँ रही। घरक पाछाँमे बड़ीटा पोखैर छल।
ओइमे कहियो-कहियो स्नान करए जाइत छेलौं अन्यथा अधिकांशसमय बेल पैलेशक अन्दरस्थित
पानिक टोंटी रहइ,
ओइमे भोरे-भोर स्नान करी। डी.ई.टी. दरभंगा कार्यालयमे लेखाधिकारी श्री
एस.पी.चटर्जी महोदयक सरकारी आवास ओहीठाम छल। ओ भोरे-भोर स्नान-ध्यानक पछाइत नित्य
पाठ करैत रहै छला।
दड़िभंगाक
बेला स्थित हमर डेराक कनियेँ हटि कऽ उत्तर दिस डॉ. लखन झाजी रहैत छला।
कहियो-कहियो हुनका ओइठाम सेहो जाइत रही। घरमे पुस्तक भरल छेलैन। असगरे ओ ओइ घरमे
रहैत छला। अपने भोजन बनबैथ, अपने सभ काज करैथ। डॉ. लखन झा बी.ए. पास केला बाद अक्सफोर्ड
विश्वविद्यालयमे एम.ए.क हेतु आवेदन देलखिन। हुनकर साक्षात्कारसँ प्रभावित भऽ
एम.ए. पासक डिग्री दऽ देल गेलैन आ सोझे पी.एच-डी.मे प्रवेश भेटि गेलैन।
डॉ.
लखनजी कर्पूरी ठाकुरजीक संगी रहथिन। ओ जय प्रकाश नारायणजीक संग समाजवादी आन्दोलनसँ
जुड़ल छला। कर्पुरी ठाकुरजी जखन बिहारक मुख्यमंत्री भेला तँ हुनका (लखनजीकेँ)
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयमे उप कुलपति बनौल गेल। ओ मात्र एक टका दरमाहा
लैत छला आ खराउँ (खराम) धोती पहीरि कऽ विश्वविद्यालय जाइत छला। हुनकर कार्यकालमे
दड़िभंगा महाराजक बनौल ऊँच-ऊँच देबालकेँ आधासँ अधिक ढाहि देल गेल। पता नहि, ऐसँ समाजक की उपकार
भेलइ..!
बादमे ओ
वेलाक घर खाली करि कऽ अपन गाम रसियारी चलि गेला।
सन्
१९७७ मे आपत्तिकालक बाद केन्द्रमे जनता दलक सरकार बनल रहइ। ओही समयक बाद हमरा
दिल्ली जेबाक रहए। दिल्लीक नोकरीमे जाइ की नहि, से असमंजसमे रही। ओइ समयमे
दिल्ली जाएब औझुका जकाँ आमबात नहि छल। कियो-कियो दिल्ली जाइत छल। दिल्ली चलि
जाएब से सोचि बेलाक डेरा छोड़ि देने रही। तेकर बाद किछु दिन अपन गौंआँ एवं मित्र
नारायणजीक संगे दड़िभंगा महराजक रामवाग स्थित काली मन्दिर लग बनल कोठरीमे रहलौं।
काली मन्दिर ओइ समयमे सुन्न लगैत छल। पचाढ़ीक पुजारी छला मन्दिरमे। ओ भोरेसँ
भाँग घोरए लगैत छला। मन्दिरक आगाँमे पोखैर छल। ओहीमे स्नान कऽ भगवतीक आराधनाक
सौभाग्य भेटैत छल। किछुए दिन ओइ डेरामे रहलाक बाद असमंजस दूर कऽ दिल्ली जेबाक
निर्णय कएल आ दड़िभंगाक नोकरीसँ इस्तिफा दऽ देल। तद्दुपरान्त ३१ जुलाइकेँ (१९७७)
दिल्ली विदा भेलौं।दड़िभंगाक नोकरी छोड़ि कऽ दिल्लीमे नोकरी करबाक निर्णय आसान नहि छल। जकरेसँ पुछिऐ, सएह तरह-तरह केर तर्क लऽ कऽ अस्थितर भऽ जाइत छल। मुदा किछु गोरेक स्पष्ट मत रहैन जे भविसक दृष्टिये दिल्ली जाएब बेसी नीक रहत। तखन हम दिल्ली विदा भेल रही।
ओइ दिन दड़िभंगा टीशनपर ट्रेन पकड़ए गेल रही तँ मेघसँ सम्पूर्ण अकास अच्छादित छल। टिपिर-टिपिर पानि पड़ैत छल।दड़िभंगा टीशनपर स्व रामनन्दन मिश्र एवं स्व. नूनू बच्चा सहित कएक गोरे हमरा विदा केने रहैथ। स्व. रामनन्दन मिश्रजी एवं स्व. नूनू बच्चासँ बड़ीकाल धरि गप होइत रहल। ओ दुनू गोरेक बीच जे आपसी छेलैन ओ गाममे सभ जनैत अछि। रामनन्दन मिश्रजी कुशाग्र बुधिक एवं संस्कार सम्पन्न बेकती छला। हमरासँ हुनका बहुत लगाव रहैन। जमशेदपुरमे हम टेलिफोन इन्सपेक्टर रही तँ ओ जँ ओइठाम अबैत छला तँ बिना भेँट केने आपस नहि होथि। दिल्ली एलाक बादो ई क्रम बनल रहल। हमर जीवन-संघर्षक यात्रामे ओ सकारात्मकताक सम्वर्धक छला। निरन्तर विकास करैत रहला आ अपन सन्तान सभकेँ सुन्दर संस्कार देलखिन। जइसँ हुनकर परिवार गामेमे नहि, इलाकामे प्रतिष्ठित अछि।
कनीकालक बाद गाड़ी आबि गेल आ हम बरौनी होइत दिल्ली हेतु प्रस्थान केलौं।
दड़िभंगा टावरपर परुकाँ गेल रही। ४५-४६ बर्खक बादो ओहिना बुझि पड़ल। दतमैन बिकाइत, चाह बिकाइत, आस-पासमे ओहिना रिक्शा...। गन्दगीक तँ ई हालत रहैत जे जँ भोरे-भोर टावारपर पहुँच जाएब तँ ठाढ़ नहि रहि सकब। आस-पासक सभटा कूड़ा-करकट ओत्तै जमा कएल जाइत अछि आ ओतए-सँ दस बजेक आस-पास नगरपालिकाक गाड़ीमे ओकरा उठौल जाइत अछि। ओइ भयावह दुर्गन्धसँ भगवान दड़िभंगा टावरकेँ मुक्ति दैथ से प्रार्थना।
घुमैत-घुमैत सी.एम. कौलेजक अन्दर सेहो गेल रही। थोर-बहुत परिवर्तन भऽ गेल अछि। अन्दरमे किछु नव भवन बनि गेल अछि। कामेश्वर भवन ओहिना। आस-पासक विभाग सभ जस-के-तस।
काली मन्दिरक पासमे आब होटल बनि गेल अछि। चाहरदिवारीक अन्दर बहुत रास तरह-तरहक दोकान सभ खुजि गेल अछि। लोक सभ जमीन कीनि अपन घर बना लेलक अछि। एक हिसाबे ओइठाम एकटा जन क्रान्ति भऽ चूकल अछि। किछु
दिन पूर्व हम ओइ होटलमे ठहरल रही। प्रात: भेने मन भेल जे दोबारा जा कऽ मन्दिर
परिसरकेँ देखी। सएह केलौं। ओइठाम जा कऽ भगवतीक दर्शन केला पछाइत बगलमे बनल कोठरी
दिस बढ़लौं। ओकर स्वरूप बहुत बदैल चूकल छल। एकटा वृद्ध भीतरसँ निकलला। बहुत उत्सुकता
पूर्वक हम कहलिऐन जे ३७ बर्ख पूर्व हम अहीठाम रहै छेलौं। मुदा हुनकर गप ओ गप्पक
तौर-तरीका सुनि क्षुब्ध रहि गेलौं।
हुनका
भेलैन जे कहीं हुनकर ओइठाम रहबाक अधिकार पर आक्रमण तँ ने भऽ रहल अछि? हम कहलिऐन जे ऐ मन्दिरपर
पहिने पचाढ़ीक पण्डितजी रहैथ। तँ ओ बजला-
“रहल हेता।”
फेर
हम कहलिऐन-
“हमहूँ ऐ बगलबला
कोठरीमे रहैत रही।”
ई सुनिते
जेना हुनक धैर्यक सीमान टुटए लगलैन। बहुत क्षुब्ध होइत बजला-
“तँ केहेन .............।”
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