मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक तेसर खेपः

 

 

 

माएकेँ बरोबरि बाबू लेल पुछैत रहैत छलिऐक। हमर बाबू कतए छथि? किएक नहि अबैत छथि? जाबे अबोध रही ताबे माए किछु-किछु कहि कए पोल्हा दैत छलि। आब तँ हम इसकूल जाइत छी। पाँचमाक विद्यार्थी छी। दसम वर्ष भेल। किछु-किछु बातसभ बूझि रहल छी। माएकेँ हमर जिज्ञासा शांत करब उचित बुझेलैक। ओहि दिन इसकूलसँ आबि झोड़ा पटकि भोजन करबाक हेतु बैसले रही की अपने बाजए लगलि-

"तोहर पिता तोहर जन्मक किछु दिनक बादे मरि गेल रहौक।"

"की भेलैक? बाबू किएक मरि गेलखिन?"

"गाममे हैजा फैलि गेल रहैक। कतेकोगोटे दुखित पड़ल। किछुगोटे बाँचिओ गेल। मुदा तोहर पिता के जे हैजा धेलक से रुकबाक नामे नहि लेलक, चौबीस घंटा रद्द-दस्त होइते रहल।"

"कोनो इलाज नहि भेलैक?"

"की इलाज होइतैक? गाममे ने डाकटर रहैक ने बैद?"

"तखन?"

"गामक पुबारिमे ब्रह्मबाबा बसैत छथिन, तकरे गोहरबैत रहलिऐक। कतेक उचती-बिनती केलिऐक। तोहर दाइ भगवती लग भरि राति छाती पिटैत रहलखिन। रहि-रहि कए बेहोस भए जाथिन। भगवती! हे भगवती ! एहन अन्याय नहि करू हे भगवती! हमर प्राण लए लिअ, हमर बच्चाकेँ बकसि दिअ हे भगवती!- से सभ कहैत छाती पिटैत रहि गेलि।

"फेर?"

"फेर की होइतैक? तोहर पिताक हालति खराबे होइत चलि गेलनि। भोर होइत-होइत नारी घिचा गेलनि। साँस बन्द भए गेलनि आ ओ एकहि बेरमे आँखि उन्टा देलखिन। हम तँ कनैत-कनैत बेहाल रही। एहि घटनासँ सौंसे गाम सन्न रहि गेल। तोहर दाइ हाकरोस करैत रहलीह। हमरा तँ कतेको दिन-धरि भूख-पिआस सभ खतम भए गेल। लगैक जे हमरो जान नहि बाँचत। मुदा हम तँ छी कठजीब। एहनो विपत्तिकेँ झेलि गेलहुँ।

 हम माए संगे ई सभ गप्प करिते रही कि कालू भगता कतहुँसँ घुमैत-फिरैत आबि गेल।

महराज लोकक समस्त संपदाकेँ हरण कए अपनहिमे मस्त छलाह। गाम-घरमे शिक्षाक घोर अभाव छल। डाक्टर,बैद डिबिआ लए कए तकनो नहि भेटि सकैत छल। तेहन परिस्थितिमे लोकक मजबूरीक फएदा धूर्त, उचक्कासभ नाना प्रकारक छल,प्रपंच कए उठाबैत छल। ओझा-गुनी, डाइन-भगता संकटमोचक छल।

एहने संकटमोचक छल-कालू भगता। जेहने देखएमे कारी छल तेहने ओकर मोनो मलिन छलैक। जतहिँ स्त्रीगण रहैत ओतहि चुक्की मारि कए बैसि जाइत आ शुरु भए जाइत। गोल मुँह, चपटल नाक, इएह-इएह मोटक बाँहि, भुट्ट आ चतरल देह ओ देखबामे भूत-प्रेतसँ कम भयाओन नहि लगैत छल। जिला-जबारमे भगतैमे ओकर नाम छल। सोम आ शुक्रक अपने ओहिठाम भगतै करैत छल जाहिमे परोपट्टाक कारनीसभ ओकरा गोहरबैत रहैत छल। सभकारनी चाउर, दालि, अल्लु अनैत छल। एहि तरहेँ बोरा भरि-भरि अन्न-पानि भगता लए जाइत छल। ओहीमे सँ ओहि दिनक ओकरा ओतए भण्डारा होइत छल। कारनी आ ओकरा संगे आएल ओकर लोकसभक भोजनक ओरिआन रहैत छल।

ककरो किछु समस्या तँ ककरो किछु, मुदा परेसाने लोकसभक ओतए आएब-जाएब होइत छल। सोम-शुक्रक अलाबा ओ आन दिन गाम-गाम बजाहटि भेलापर जाइत छल। ककरो भूत झाड़लक तँ कतहुँ जिनक प्रकोपक समाधान केलक।

हमरासभकेँ गप्प-सप्प करैत देखि ओ अपने बकए लागल-

"तोरासभकेँ बड़का संकट घेरने छौ, बँचि कए रहिअह।"

की कहलिऐक?" हमर माए बाजलि।

"समय पर अपने बुझा जेतह।"

से कहि भगता ओहिठामसँ ससरि गेल। माएक मोन उदास भए गेलैक। भगता की कहि गेल, किएक कहलक, सोचैत रहि गेल।

कालू भगता कनिके दूर गेल होएत कि एकटा अजोध गहुमन साँप छत्र काढ़ि कए ओतए ठाढ़ भए गेल। हम जाबे चिचिआइ, माएकेँ सतर्क करितहुँ,ताबे तँ अनर्थ भए गेल। साँप माएकेँ हबक्का मारलक। दहिना जांघसँ खून टप-टप खसए लागल। माए ओहिठाम बेहोस भए खसि पड़लि।

देखिते-देखिते ई समाचार सौंसे गाम बिजलौका जकाँ पसरि गेल। जे जतहि छल, सभ हमर दरबाजापर जमा भए गेल। एकदिस हमर माए बेहोस पड़ल छलि,दोसर दिस करमान लागल लोक। मुदा ककरो किछु नहि फुराइक जे कएल की जाए? केओ किछु, केओ किछु बजैत रहल। ताबतेमे लोटना चटिबाहकेँ पकड़ने आएल। धराधर चाटी चलए लागल। मंत्र पढ़ि-पढ़ि चटिबाह घुरमि-घुरमि कए झाड़-फूक करैत रहल, मुदा किछु नहि भेल। कनिके कालमे हमर माएक देह निष्प्राण भए गेल।

एतेक कम बएसमे माता-पिता दुनू खतम भए गेल छल। पिताक तँ किछु नहि देखने रहिऐक मुदा माएकेँ सामनेमे मरैत देखि लागल जेना ठनका खसि पड़ल। लोक-वेदसभ जमा होमए लागल। माएक अन्तिम संस्कार करबाक तैयारी शुरु भेल।

गाम-धरक लोकक एहन समयमे बहुत सहयोग भेटल। सभटा ओरिआन गौंवेसभ केलक। आगाँ-आगाँ हम आ पाछू-पाछू माएक लहासकेँ चारि गोटे उठओने "राम नाम सत्य है " कहैत आगू बढ़ल जा रहल छल।

 संयोगसँ कालू भगता ओहिठामसँ जाइत देखाएल। कालू केँ देखितहि लोकसभ ओकरा गरिआबए लागल। सभक कहब छलैक जे ओकरे जादू-टोनाक कारण हमर माएक जान गेल, कारण ओ देवी-देवा पोसैत छल। भगतै करैत छल आ डाइनो छल, कहाँ दनि अष्टमीक रातिमे गाछ हकैत छल। केओ किछु,केओ किछु कहिते रहि गेल।

देखिते-देखिते माए जरि कए खाक भए गेलीह। हम निरंतर कनैत रहि गेलहुँ। लोकसभ अपना भरि बोल-भरोस दैत रहल। मुदा गुंड़क मारि धोकरे जनैत अछि। हमर सर्वश्व माए छलीह, से देखिते-देखिते चलि गेलीह।

अंतिम संस्कारक विधि-विधान समाप्त भेल। माएकेँ सारा केँ जड़ैत, धधकैत छोड़ि हम गौंवा सभहक संगे बिदा भेलहुँ। माए सभदिनक हेतु छुटि गेलीह। हम एकदम एसगर रहि गेलहुँ। एगारह दिन धरि झर-झर नोर खसैत माएक श्राद्ध करैत रहि गेलहुँ।

श्राद्ध संपन्न भए गेल। पाहुनसभ बोल भरोस दए अपन-अपन गाम चलि गेलाह। रहि गेलाह मात्र हमर मामा। ओहो कतेक दिन रहितथि। नौकरी करैत छलाह। अपना गामक मिडिल इसकूलमे मास्टर छलाह। शिक्षाप्रेमी छलाह। हमर हालति देखि बहुत दया भए गेलनि आ हमरा अपने संगे अपन गाम लेने चलि गेलाह।

मामा संगे जेबा काल हमर दिआदसभ बहुत प्रसन्न रहथि। भेलनि जे आब एकर बस्तु-जातसभ लेबामे कोनो कष्ट नहि होएत। भेबो केलैक सएह। से बात फराके कहब..।

गामसँ निकलैत काल माएक साराक लगीच दए जेबाक रहैक। ओतए पहुँचितहि पैरमे जेना कैंच लागि गेल। आगू ससरले नहि होअए। मामा ई बात चट दए बूझलखिन आ हमर गलामे हाथ धए कहए लगलाह-

"श्रीकांत हम छी ने। तूँ कथुक चिंता नहि कर।"

 हमरा भेल जेना मामाक मुँहसँ माएक आत्मा बाजि रहल होइक। हम मामा दिस बकर-बकर तकैत रहलहुँ। आँखिसँ नोर ढ़बर-ढ़बर खसैत रहल। फेर मामा हिम्मति देलनि। कहलनि –

"माता-पिता ककरो सभ दिन नहि रहैत छैक। परंतु नीक काज कए तूँ अपन माए-बापक आत्माकेँ शांत कए सकैत छह। हुनकर आशीर्वाद लए सकैत छह।"

मामाक बात हमरा मोनमे गड़ि गेल। करवद्ध भए माएकेँ प्रणाम केलहुँ आ मामा संगे ओतएसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।q



 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

महराज उपन्यास कीनबाक हेतु क्लिक करू-

https://pothi.com/pothi/node/195795

 

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें