जीवन यात्रा
जीवन एक यात्रा है
सभी चलते जा रहे हैं
कोई आगे कोई पीछे
यद्यपि पता नहीं है गंतव्य
और चलते-चलते हो जाते हैं विलुप्त
कोई भूलकर भी नहीं आता वापस
बताने कि उधर क्या था?
या कुछ है ही नहीं
जो गया बस चला ही गया
छोड़ गया हमें अपने हालपर ।
कि हम सोचते रहें
तलासते रहें
कि सही क्या है?
परंतु,कौन देगा उत्तर?
सभी तो स्वयं में हैं प्रश्न ।
किसी को नहीं पता कि
मृत्यु अपने आप में अंत है या नहीं ?
इसके बाद कुछ है कि नहीं?
मृत्यु के बाद कुछ बचा या नहीं ?
शरीर से पृथक आत्मा है या नहीं?
परंतु,क्या रखा है इन विवादों में ?
जो विद्यमान है
जिसे हम सद्यः देखते हैं
वह है आज का जीवन,
इसे सार्थक बनाइए
छोड़िए कल की चिंता
जो होना है सो होगा,
इसपर सोचते रहने से क्या लाभ?
सामने जो समस्या है
उसका समाधान कीजिए
काम,क्रोध ,लोभ को छोड़कर
शांति को अपनाइए,
जीवन का अर्थ ही बदल जाएगा
कलतक जो पराए थे
सब अपने बन जाएंगे ।
सब कुछ यहीं है
बात इसी पर है कि
आप क्या अपनाते हैं,
वही हवा पीकर सर्प बना लेता है विष
और
बेली के फूल से निकलता सुगंध है ।
जो है उसे तो जी लीजिए
समय पर सही निर्णय से
जीवन को सही दिशा दीजिए,
वह अपना गंतव्य पहुँचेगा
बिना किसी अपवाद के ।
सोचिए और समझिए कि
जीवन एक अवसर है
मुक्त होने का स्वयं से
और उनसे भी
जिसे हम चाहे अनचाहे
जीवन भर सहेजते रहे
और
चाहकर भी अपना न सके।
रबीन्द्र नारायण मिश्र
२५.५.२०२०
mishrarn@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें