चीटी चढ़ए पहाड़
ई
संसार अपना-आपमे आश्चर्यसँ भरल अछि । एहन कोनो वस्तु नहि भेटत जाहिमे प्रकृतिक
विचित्रताक अनुभूति नहि होइत हो । से जँ नहि होइत तँ चिरै चुनमुन सँ लए कए समस्त
जीव पर्यंत जनमिते अपन माएक संगे कोन सटि जाइत? बाघसँ लए कए गाए पर्यंत अपन
संतानक रक्षाक हेतु एना व्यग्र नहि रहैत। केहन अजगुत छैक जे छोट-छोट जीब-जन्तुसभ अपन संतानकेँ एमहर-ओमहर
नुकओने फिरैत अछि जे ओकरा शत्रुसँ बचाओल जाए,मनुक्खतँ कथे कोन ?
एतेक
तरहक विचित्रतासँ भरल एहि संसारमे किछु तँ छैक जे ई चलि रहल छैक । आखिर ओ की अछि?
ई
प्रश्न कहि नहि कहिआसँ समस्त मानवक मोनकेँ खोचारि रहल अछि। हमरासभ तँ नित्यप्रतिक
जीवनमे तेनाकए लागल रहैत छी जे बुझाइते नहि अछि जे कोना भोर भेलैक आ कखन साँझ भए
गेल । मुदा से सभ प्रकृतिक व्यवस्थाक अनुकूल स्वतः स्वभाविक रूपेँ होइत रहैत अछि आ
से तेहन नियमसँ होइत अछि जे कहिओ कखनो एकहु सेकेंड हेतु सूर्य भगवानकेँ विलंव होइत
किओ नहि देखलक,नहि सुनलक ।
सोचिऔ जे जँ से होइतैक तँ एहि शृष्टिमे प्रलय नहि भए जाइत? तारा, ग्रह सभ एकटा व्यवस्थाक अनुकूल निरंतर चलैत
रहैत अछि। जाहि कारणसँ कखनो टकरावक परिस्थिति नहि अबैत अछि । एकटा हमसभ छी जे
अनेरे एक दोसरसँ टकराइत रहैत छी । किएक?
घमंड
कही,अज्ञानताकही ,जे कही । मुदा अछि ई दुखद। हमरा लोकनि निरंतर
व्यर्थक चिंतामे पड़ल रहैत छी,कै बेर दुखित भए
जाइत छी ,राति-राति भरि जागल रहैत
छी जे पता नहि आब की होएत? जे हेबाक छैक से
हेतैक आ से भए कए रहत चाहे हम ओकरा पसिंद करी वा नहि करी । नियतिकेँ स्वीकार कए एवम्
इश्वरमे आस्था रखलासँ जीवनमे बहुत तरहक परेसानीसँ बचल जा सकैत अछि । जे वस्तु हमर
पसिंदक भेल से नीक आ जे से नहि भेल तँ आओर नीक कारण ओकरा इश्वरक इच्छा बूझि
स्वीकार कए लेलासँ बहुत रास मानसिक तनावसँ हमसभ बँचि सकैत छी । छैक कि नहि ई सत्य
बात?
आइ
काल्हि लोक तरह-तरहक मानसिक परेसानीसँ गुजरि रहल छथि । बात-बातमे भाइ- भाइमे गोली
चलि जाइत अछि । कनीमनी संपत्तिक बटबारामे
कोट-कचहरी धरि बात पहुँचि जाइत अछि । गाम-गाम गोलैसी होबए लगैत अछि । एना
किएक होइत अछि? एही लेल जे
हमसभ जथापातकेँ सर्वस्व बूझि रहल छी। नीक विचार ककरो सोहाइत नहि
छैक । सब चहैत अछि जे ओ गामक सबसँ पैघ धनीक भए जाए ,चाहे जेना होइ । ककरो ई
सोचबाक पलखति नहि छैक जे आखिर अन्यायपूर्वक उपार्जित संपत्तिसँ हम सुखी रहिओ सकब
कि नहि ?
जीवनमे
अध्यात्मिकताक अभावसँ लोक कोनो तरहसँ धन बटोरएमे लागल रहैत छथि । एहि लोभक कारण नीक
-बेजाए किछुक ज्ञान हुनकासभकेँ नहि रहि जाइत अछि । सबाल अछि जे एतेक धन जमा कइओ कए
जखन शांति नहि भेटैत अछि तखन की करी?
धनक
महत्व छैक ,मुदा एतेक नहि जे कोनो कर्म कए ओकरा पाछा पड़ल रही । एहन लोक अनेको प्रकारक
कुक्रम करैत छथि आ अन्ततोगत्वा स्वतः निर्मित ससरफानीमे फँसि नष्ट भए जाइत छथि ।
कोनो
जीव -जन्तुमे सोचबाक विचारबाक क्षमता नहि अछि । मनुक्खमे ओ शक्ति अछि जे ओ बीताल वा आगा होबएबला घटनाक बारेमे सोचि विचारि
सकैत अछि । नीक-अधलाहक विभेद कए सकैत अछि ।
दूर्भाग्यक बात थिक जे जाहि विचार शक्तिक उपयोग मानव कल्याण हेतु भए सकैत छल सएह शक्ति
विध्वंशकारी भए गेल अछि । एक सँ एक घातक हथिआर बना कए राखल गेल अछि । एटम बम
बनि कए तैयार अछि । एकसँ एक मिसाइल बनि गेल अछि जाहिसँ देखिते-देखिते मानवाताक विध्वंस
भए सकैत अछि। मुदा लोक आँखि मुनि कए चलल जा रहल अछि । सत्य कही तँ आइ मानवता हाकरोस
कए रहल अछि आ समस्त मानव समाज बेबस भए गेल अछि,साइत इएह नियति होइक ।
किओ
कतबो पैघ होअए वा कतबो छोट,प्रकृतिक नियमसभपर
समान रूपसँ बिना कोनो अपवादकेँ लागू होइत अछि । जे जनमल अछि से मरत । ई अकाट्य नियम
थिक । एक सँ एक धनिक लोक समय अएलापर एहि दुनियाँसँ सभ किछु एतहि छोड़ि कए चलि जाइत
छथि । सबाल अछि जे ई बात बुझितहुँ हमसभ एतेक बेचैन किएक रहैत छी,दिसरक हक किएक मारि देबए चाहैत छी ? उत्तर सभकेँ बूझल छैक। ई कोनो नव समस्या नहि
अछि मुदा मनुक्खक स्वार्थ ओकरा तेना कए आन्हर केने रहैत अछि जे ओ आगू-पाछू किछु सोचि
नहि पबैत अछि । एहन नहि हेतैक जे जखन प्रलय हेतेक तँ ओ अनकेधरि सीमित रहत । कहक मतलब
जे अनिष्टक संग्रह जँ हमसभ करैत रहब तँ ओकर झटका हमरो भोगहि पड़त । जखन एटम बम फुटतैक
तँ ओ थोरे चिन्हा परिचय कए लोकक संघार करत ।
अस्तु,शुभ भावनाक संग जीवनमे आगा चलैत रहलासँ लक्ष्य
प्राप्ति सुगम होइत अछि संगे जीवनमे स्मृद्धिक संग शांति सेहो भेटैत अछि । अपन उर्जाकेँ
सकारात्मक रुखि दैत रहलासँ मनुक्ख एक सँ एक आश्चर्यजनक उपलव्धि प्राप्त करैत अछि आ
संसारमे अमर भए जाइत अछि। जरूरी एहिबातक अछि जे हम अपन दृष्टिकोणकेँ व्यापक करी आ जहिना
अपना हेतु नीक सोचैत छी तहिना अनको लेल सोचिऐक । एहीमे कल्याण अछि,अपनो आ अनको ।
मनुक्ख
जखन इश्वरसँ जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरामे असीम शक्तिक शृजन होइत अछि । ओकर
आत्मशक्तिमे चमत्कारिक विकास होइत अछि आ ओ कखनो अपनाकेँ असगर नहि पबैत अछि । ओना
सच पूछी तँ मनुक्खक बेसी कष्ट ओकर स्वनिर्मित होइत अछि । कोनो काल,केहनो संकटमे जँ हमरा मोनमे ई भाव रहए जे ओ हमरा संगे छथि तँ हमसभ साहसपूर्वक
संकटकेँ पार कए विजयश्री हासिल कए सकैत छी । “राम नाम के कृपा से सिंधु तरय पाषाड़
" ई एकदम सत्य अछि । सच पूछी तँ जीवनक समस्त
दुखक एकमात्र समाधान इश्वरमे
विश्वास अछि ।
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