भूमिका
ई कथा सभ हम
सन् १९८२ सँ १९८४ क बीचमे इलाहाबादमे लिखने रही।ओहि समयमे हमर कथा,आलेख सभ मिथिला मिहिरमे छपि जाइत छल।मिथिला मिहिर बंद भए गेल।हम बदली भए
दिल्ली आबि गेलहुँ।घरसँ कार्यालय आबा -जाहिमे बहुत समय लागि
जाइत छल।एहि ठाम जीवन संघर्ष बढि गेल। अस्तु ,ई कथा सभ जसके
तस पडल रहल।एमहर पुरनका पन्ना सभ पलटलहुँ तऽ एकरा सभकेँ फेरसँ देखबाक मौका भेटल।
साहित्य समाजक
दर्पण होइत अछि।ओहिमे तत्कालिन सामाजिक परिवेशमे होइत उठापटकक चर्च स्वाभाविक अछि।
ओहि क्रममे समाजक विभिन्न वर्ग/समुदायक उल्लेख यदा- कदा भेल अछि।आशा अछि,ओकरा ताहि रूपमे लेल जाएत। एहि
कथा सभमे लेल गेल नाम,ठाम ओ कथानक काल्पनिक थीक।ई कथा सभ
कोनो व्यक्ति विशेषक जीवन पर आधारित नहि अछि ।
श्री उमेश
मंडलजी (बेरमा)बहुत परिश्रमसँ पुरान भेल पान्डुलिपि सभकेँ
स्वच्छ प्रति टंकित केलाह जाहि सँ ई कथा सभ इजोत देखलक। एहि हेतु हुनका धन्यवाद, आशीर्वाद ।
एहि कथा
सभकेँ प्रस्तुत कए बहुत नीक लागि रहल अछि।आशा अछि ,पाठक लोकनिकेँ
नीक लगतनि।
रबीन्द्र नारायाण
मिश्र
ग्रेटर नोएडा
२६.०१.१०१८
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