मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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बुधवार, 3 जनवरी 2018

लक्षमण रावजी से भेंट !



 





लक्षमण रावजी से   भेंट !

लक्षमण रावजी से कुछ दिन पूर्व मेरी उनके चाय की दूकान पर भेंट हुई।मैंने उनसे  पूछा कि उन्हें हिन्दी में साहित्य अकादमी पुरस्कार अभी तक क्यों नहीं मिल सका?उन्होने कहा कि वे कभी इस चक्कर में पड़े ही नहीं,अन्यथा वे साहित्यिक कार्य जो अभी तक कार सके,नहीं कर पाते।उन्हें किसी पुरस्कार की कोई लालसा नहीं है। साहित्यरचना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है,जिसमे वे सभी बाधाओं को पारकार सफल हैं।उन्होंने अभी तक २६ किताबें लिखी है जिनमें ५ सफल उपन्यास हैं।
अभी हाल में ही मैंने उनकी दो किताबें-रामदास और रेणु पढ़ी है।क्या जादू है इनके कलम में जनाब़ ! एकबार शुरु करने पर बिना समाप्त किए उठा नहीं गया। शब्दों का चयन,घटनाओं का जिवन्त प्रस्तुतिकरण  इन्हें बेमिशाल बना देती हैं।
अब उनकी किताबें धरल्ले से बिकती हैं।वे अपनी पुस्तकें खुद प्रकाशित करते हैं। अहंकार तो उनको छूआ तक नहीं है् ।इतनी सफलता के बाबजूद वे अभी भी चाय बेचते हैं और हरेक ग्राहक को इतनी सरलता से स्वागत करते हैं कि कोई भी दंग रह जाय।
मैंने उनसे पूछा कि वे इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं?उन्होंने हँसते हुए कहा कि इसके पीछे ४० साल की उनकी तपस्या है।वे नहीं चाहते कि कोई भी उन्हें किसी पुरस्कार दिलाने का प्रयास करे। वे ऐसा कर गुजरना चाहते हैं कि मरने के बाद लोग उन्हे याद करें।
सचमुच प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं रहती हैं।


https://www.youtube.com/watch?v=ZfbPJBhN_fs




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