पहिल नौकरी
दड़िभंगामे हम पाँच सालसँ
किछु बेसीए दिन रहलौं। तीन साल तँ सी.एम.कौलेजमे पढ़ैत विद्यार्थी रही। ओइ समय
विज्ञान, कला, वाणिज्य सभ संकाय
मिला कऽ एक्के कौलेज छल। सी.एम.कौलेज-दड़िभंगासँ हम बी.एस-सी. (भौतिकी प्रतिष्ठा)
पास केलौं। बी.एस-सी केला बाद आगू की करी ई समस्या छल। पीक्षाफल बिलमसँ एबाक कारणे
एम.एस-सी.क नामांकन सेहो बन्द भऽ गेल रहइ। ओहुना ओइ समैमे पढ़ाइ-लिखाइक क्षेत्रमे
सम्पूर्ण बिहारमे अराजकता छल। परीक्षामे नकल करब तथा नकल कराएब दुनू गौरवक गप छल।
विद्यार्थी सबहक अभिभावक सभ पुर्जी पहुँचबैले जान लगौने रहैथ। ऐ परिस्थितिमे
बिहारक तेतेक बदनामी भऽ गेल छल जे सहियो विद्यार्थीक योग्यतापर प्रश्न चिन्ह
लागि जाइत छल।
ओइ समयमे डाक-तार विभागमे
दूरभाष निरीक्षकक पदक रिक्तिक विज्ञापन निकलल रहइ। हम मधुबनी पोस्ट ऑफिसमे
आवेदन-पत्रक लेल एकटा आग्रह पोस्ट कार्डपर लिखि खसा देलिऐ। किछुए दिनमे
आवेदन-पत्र प्राप्त भेल।
आवेदन-पत्र प्राप्त होइते
भरि कऽ आइ.एस-सी.क अंक-पत्रक संग पठा देलिऐ।
आइ.एस-सी.क प्राप्तांकक
आधारपर ओइ पदपर चयन हेबाक रहइ। हमरा आइ.एस-सी. परीक्षामे बहुत नीक प्राप्तांक छल।
किछुए मासक बाद हमरा पटना टेलीफोन विभागसँ दूरभाष निरीक्षकक पदक हेतु नियुक्ति-पत्र
भेटल।
नियुक्ति-पत्र भेटलाक बाद असमंजसक
स्थिति बनि गेल,
कारण हम बहुत महात्वाकांक्षी रही। पैघ पदपर जेबाक इच्छा रहए, तइ हेतु तैयारीक
कार्यक्रम छल, मुदा हाथमे आएल
लक्ष्मीकेँ लात मारब नीक नहि, ई बात केतेको गोटे कहैथ। अछताइत-पछताइत ओइ नियुक्तिकेँ
स्वीकार करैत अगस्त १९७३मे राँची प्रशिक्षण हेतु चल गेलौं।
राँची टेलीफोन एक्सचेंजक
भूतलपर प्रशिक्षणक बेवस्था छल। ओइ प्रशिक्षणमे कएटा नीक-नीक विद्यार्थी सभ छला।
कए गोटा एम.एस-सी. सेहो केने रहैथ। सरकारी नौकरीक बात छेलइ। सभ आँखि मूनि कऽ पकैड़
लेलक।
राँचीमे छह मासक प्रशिक्षणक
बाद हमर तीन मासक बेवहारिक प्रशिक्षण-लहेरियासराय टेलीफोन एक्सचेंजमे भेल। ओइ
क्रममे बलभद्रपुर,
लहेरियासरायमे एकटा विद्यार्थीक संग डेरा रहए। एक दिन ओ विद्यार्थी गाम चलि गेला आ
हमरा कोठरीक कुंजी नहि रहए। लातसँ तेतेक जोरसँ केबाड़मे धक्का मारलिऐ जे टुटि गेल।
बादमे मकान मालिक नाराजगी व्यक्त केलाह, मुदा बात जेना-तेना शान्त भऽ
गेल।
ओइ प्रशिक्षणक दौरान फगुआमे
हम गाम एलौं आ २-३ दिन फाजिल रहि गेलौं। फोन विभागमे झाजी इन्जीनियरिंगक सुपरवाइजर
रहैथ। वएह हमर हाकिम छला। हमरा डराबए लगला। की जे प्रशिक्षण अधूरा रहि गेल, ब्रेक लागि गेल।
मुदा असलमे किछु नहि भेल। हमर प्रशिक्षण समयसँ पूरा भेल आ हम जमशेदपुरमे ३ मई १९७४
क पदभार ग्रहण कएल। ओहीठाम एकटा आर संगी पदभार ग्रहण केलैथ। सरकारी काज करबाक हमरा
किछु अनुभव नहि छल। एसडीओ फोन्स बड़ा करगर अधिकारी रहैथ। अपन डाँटसँ अधीनस्थ
सबहक सीटीपीटी गुम केने रहैत छला।
जमशेदपुर ओइ समयमे बिहारक
सुव्यवस्थित एवम् साफ-सुथरा शहरमे मानल जाइत छल। छुट्टीक दिन शहरमे केतौ-केतौ
घुमबाक कार्यक्रम बरबैर बनबैत रही। साक्ची ओ विष्टुपुरमे तरह-तरहक दोकान सभ छेलइ।
जुबली पार्कमे घुमब आनन्ददायी छल। ओइ पार्कमे टहलबसँ हम आनन्दक अनुभव करैत रही। एक
दिन मौका पाबि कऽ हम टाटा स्टीलक अन्दरसँ देखबाक अवसर सेहो प्राप्त कएल। अति
उच्च तापक्रमपर लोहाकेँ गला कऽ द्रव्य रूपेमे एकठाम-सँ-दोसरठाम जाइत देखलौं।
भयानक रूपसँ लाल रहैत छल ओ तरल लोहा।
हमर रूमेट सिगरेट पीबैत छला।
शुरूक एक मास तँ कहुना कऽ हुनका संग बितौल मुदा आगाँ बहुत दिन धरि हुनका संग चलब
सम्भव नहि बुझाएल। एक दिन हम हुनका स्पष्ट कहलिऐन जे या तँ अहाँ सिगरेट छोड़ू
नहि तँ अहॉंकेँ हम छोड़ि अलग डेरा लऽ लेब। ओ सिगरेट नहि, छोड़ि सकला आ हम अलग डेरा लऽ
लेलौं।
जमशेदपुरमे रहैत केन्द्रीय
सिभिल सर्भिसेजक (संघ लोक सेवा आयोगक) परीक्षा हेतु छुट्टीक काज छल। अधिकारीगण छुट्टी मना कऽ देला। अन्तमे हम बिना
अनुमतियेक ओतए-सँ घसैक गेलौं आ करीब एक मासक बाद परीक्षा दऽ कऽ आपस एलौं।
एसडीओ फोन्सकेँ मोटर साइकिलपर
अबैत देखलयैन, हुनका देखते देबाल फानि
कऽ एकटा दोकानपर बैस गेलौं। मोनमे तरह-तरह केर आशंका रहए। हम बाटे तकैत रही कि
हुनकर बुलाबा आबि गेल आ तरह-तरह केर उपदेश ओ देलाह।
एवम्-प्रकारेण लगभग आठ मास
धरि ओतए नौकरी केलौं,
पछाइत बाबूजीक प्रयाससँ हमर स्थानान्तरण जमशेदपुरसँ डीइटी दड़िभंगाक अधीन भऽ गेल।
मुदा एसडीओ फोन्स कार्यमुक्त करैमे नाकर-नुकुर करैत छला। हम जल्दीसँ जल्दी
दड़िभंगा आबि कार्यभार ग्रहण करए चाही। हमर सहकर्मीक सेहो स्थानान्तरण दड़िभंगे
भेल रहैन। ओ पहिने कार्यमुक्त भऽ ओतए पहुँच गेल छला। एसडीओ फोन्स हमरा लटकौने छेलैथ।
प्रात:काल भोरे-भोर हम डीइटीक
डेरापर पहुँचलौं। ओहीठाम लेखाधिकारी सेहो रहैत छला। हम हुनका सभटा बात कहलयैन। ओ
बहुत सहृदय बेकती छला। हमरासँ पुछलैन जे आखिर अहाँक बदली केना भेल। तँ कहलयैन जे
बाबूजी पटना जा कऽ किछु प्रयास केलैन जइसँ हमर स्थानान्तरण दड़िभंगा डिवीजन भेल
अछि। हमरा दड़िभंगा जाएब बहुत जरूरी अछि। आदि-आदि। सभ बात सुनि ओ आश्वासन देला जे
अहाँक आइ अबस्स कार्यमुक्ति कए देल जाएत। भेबो कएल सएह।
कार्यालय खुजिते ओ एसडीओ फोन्सकेँ
फोनपर आदेश देलखिन जइसँ ओ तिलमिला गेला। मुदा हमरा ओइ दिन ओइठामसँ कार्यमुक्त कए
देल गेल।
साँझमे बससँ दड़िभंगा विदा
भेलौं। दड़िभंगा पहुँचलापर पता लागल जे दुइएटा जगह खाली छइ। एकटा जयनगरमे आ दोसर
सुपौलमे। जयनगरक खाली पदपर हमर संगी अपन जोगार लगा लेलैन। आब रहि गेल सुपौल। कोनो
दोसर उपाय नहि देख हम सुपौलक रस्ता पकड़लौं। सहरसा बाटे सुपौल ट्रेनसँ जाएब ओइ
समयमे बेस टेढ़ काज छल। तथापि ओतए पहुँच कार्यभार ग्रहण कएल।
छोट-छीन टेलीफोन एक्सचेंज छल
जइमे किछु ऑपरेटर,
एकटा मेकेनिक पहिनेसँ कार्यरत छल। हम ओतए वरिष्ठतम बेकती छेलौं। सहरसामे उच्च
अधिकारी बैसैत छला जे
फोन द्वारा तरह-तरह केर आदेश पठबैत रहै छेलखिन।
सुपौल छोट-छीन नीक शहर
बुझाएल। ओइठामक माड़वाड़ी बासाक उत्तम ओ स्वादिष्ट भोजनक स्मरण कए अखनो जीहमे
पानि आबि जाइत अछि। ओइठाम रेलबे स्टेशनक ठीक सामने लाल कोठीक एकटा कोठरीमे हम आ
पोस्टमास्टर डेरा लेने रही। पोस्ट मास्टर बहुत कर्मठ छला। भोरे जाथि तँ देर
राति थाकल-झमारल अबैथ। हुनका
संगे तेकर बाद हँसी-ठठा होइत छल।
ओही डेरामे रहैत हमरा पोसुआ
कुकुर काटि लेलक आ दोसरे दिन ओ कुकुर मरि गेल। आब तँ बड़ चिन्तामे पड़ि गेलौं। नमगर-नमगर
चौदहटा सूई पेटक अँतरीमे लगबए पड़ल। एक दिन सुई लगबिते काल एकटा घटक आबि गेला। सूई
लगबैत देख लेला से चिन्तामे पड़ि गेलौं। ओना, कोनो कारणसँ ओ कथा नहि पटल।
किछु दिन बाद हमर ससुर अपन अनुज ओ एकटा आर बेकतीक संग विवाहक क्रममे हमरासँ गप करए
टेलीफोन एक्सचेंज- सुपौल आएल रहैथ। हुनका सभकेँ यथासम्भव स्वागत कएल। विवाहक आहटसँ
मोनमे प्रसन्नता छल। जे जे पुछला, सभ उत्तर देलिऐन।
साँझमे हमर पितिया ससुर
डेरापर सेहो एला। डेराक हालत तँ वर्णन जोग नहियेँ छल। ऊपरसँ हमरा गंजी मइल छल से
बात हमर ससुरकेँ पता लगलैन। ओ चिन्तामे पड़ि गेला, कारण ओ स्वयं बहुत साफ-सुथरा
रहैत छला।
सुपौलक दही आ पेरा बड़ नामी
छल। ऒहिठिमक अति स्वादिष्ट पेरा खेबाक स्मरण होइते अखनौं मुँहमे पानि आबि जाइत
अछि।
किछु दिनक बाद हमर स्थानान्तरण
सुपौलसँ दड़िभंगा डीइटी ऑफिसमे भऽ गेल। ३ जून १९७४ क हम डीइटी दड़िभंगाक कार्यालयमे
पदभार ग्रहण कए जखन गाम पहुँचलौं तँ दरबज्जापर अलगे प्रकारक गहमा-गहमी पसरल छल।
हमर संगी एवम् मित्र- लाल बच्चा (स्व. प्रो. विष्णु कान्त मिश्र) कहला जे हमर
बिआह ठीक भऽ गेल अछि। क्रमश: सभटा जानकारी भेटल। प्रात भेने माने ४ जून १९७५ केँ
हमर बिआह छल। कोनो जानकारी नहि हेबाक कारण हम ओही दिन कार्यालय जा एकाएक विवाहक
हेतु छुट्टीक आवेदन देलिऐ आ तखन रातिमे आठ बजे दड़िभंगासँ गाम एलौं...।
कार्यालयमे ई समाचार बिजलौका
जकाँ पसैर गेल। चारूकातसँ वधाइ दैत सहकर्मी लोकनि हमर आनन्दकेँ कएक गुना बढ़ा
देला।
गाम पहुँचते विवाहक तैयारीमे
लागि गेलौं। गाड़ी सभ लागल छल। बिरयाती तैयार छल आ बरक प्रतीक्षा छल। बरकेँ अबिते
धराधर विध सभ पूरा कएल गेल।
हमर पितिया ससुर हथधरीक हेतु
आएल रहैथ। ओ बिच्चे दरबज्जापर धोती-कुर्ता पहिरने हमर प्रतीक्षामे बैसल रहैथ।
आर-आर लोक सभ दरबज्जापर मुस्तैद छला। हमर मित्रगण सभ सेहो मौजूद छल।
हथधरी भेल। बरियाती सभ चटपट
गाड़ीमे बैसल। कुल १९ गोट बरियाती छल जे ओइ समयक हिसाबे बेसीए छल। नहि तँ पहिने
पाँचटा-सातटा बरियाती पर्याप्त होइत छेलइ। बरियातीक संख्या लऽ कऽ जे अपना समाजमे
रेबाज बदलल अछि से दुर्भाग्यपूर्ण, कारण सैकड़ोक तादादमे गाम-गामसँ बरियातीकेँ लादि कऽ कन्याक
पिताक माथपर पटैक देब कोनो वुद्धिमानी नहि कहल जा सकैत अछि। व्यर्थक परेशानीक
अलाबा आर्थिक क्षति सेहो होइत अछि, जेकर कोनो केकरो लाभ नहि।
..ओइ समयमे सीमित संख्यामे
बरियाती जाइत छल तँ ओकर शोभे अलग रहै छेलइ। एक-एक बेकतीपर पर्याप्त धियान देल
जाइत छल। बरियाती सबहक बेकतीगत परिचय होइत छल। आब तँ ढाकक ढाक बरियाती जाइ छैथ आ
दुपहरिये-रातियेमे खुआ-पिआ कऽ विदा कए देल जाइत छैन।
हमरा लोकनि दस बजे रातिमे पण्डौल
डीह टोल पहुँचलौं। गीत-नादक मनोरम वातावरणमे विवाहक प्रक्रिया सम्पन्न भेल। ऐसँ
जीवन संगिनीक रूपमे आशा मिश्र भेटली जे ओइ समयमे मात्र १७ बर्खक छेली आ हमर उमेर
२२ बर्ख छल। अद्यतन हमरा जिनगीमे ओ संगे सुख-दुखक सहभागी छैथ जइसँ हम नाना प्रकारक
झंझावातसँ उवैर जीवनक ऐ पड़ावपर ठाढ़ छी।
लगभग दस दिनक अवकाश समाप्तिपर
छल। विवाहोपरान्त हम गाम आएल रही। माय केतेक प्रसन्न भेल रहैथ तेकर वर्णन करब
असम्भव अछि। हमर पितिआइन सभ सेहो उत्सुकतावश कनियाँ ओ ओकर परिवारक विषयमे पुछैत
रहली...।
प्रात भेने कार्यालय गेलौं तँ
सभ कियो हमरा उत्सुकतासँ हाल-चाल पुछैत, फाटो सभ देखैथ। ऐ तरहेँ केतेको दिन बीति गेल।
एक दिन कार्यालयसँ झटैक कऽ
दड़िभंगा बस स्टेण्डपर बस पकड़ए जाइत रही कि पाछूसँ अबाज सुनबामे आएल-
“मिसरजी! सासुर जा रहल छी की?”
डेगक गतिक अनुमान कए ओ हमर
सासुरक यात्राक अन्दाज लगा लेला जे एकदम सही छल। दड़िभंगा कार्यालय लगमे रहबाक
कारण ओइठामसँ पण्डौल जाएब असान रहै छल। छुट्टी नहि लेबए पड़ैत छल।
डीइटी दड़िभंगा कार्यालयमे हम
करीब दू साल काज केलौं। काज तँ कोनो खास नहि छल। पुरान टेलीफोनक बकाया असूली करक
रहै छेलइ जइ लेल हमरा लगभग पूरा उत्तर बिहार मुफ्त भ्रमण करबाक हेतु पास भेटल छल। ओना, ओइ पासक उपयोग कियो
आन करैत छल आ हम अपन समय अपन समय प्रतियोगिता परीक्षा सबहक तैयारीमे लगबैत छेलौं।
पढ़ाइ-लिखाइ कखनो व्यर्थ नहि
जाइत छइ। सन् १९७६ क केन्द्रीय सचिवालय सेवा हेतु आयोजित संघ लोक सेवा आयोगक
एसीसटेन्ट ग्रेडक परीक्षा हम पहिले प्रयासमे पास कऽ लेलौं। किछु दिनमे नियुक्ति-पत्र
सेहो आबि गेल।
नियुक्ति-पत्र हाथमे अबिते
मनमे उठल- कार्यालय,
काज,
स्थान
सभ परिवर्तन भऽ जाएत। ई सोचि मोन आगू-पाछू करए लागल। अन्ततोगत्वा निर्णय कएल जे
दिल्लीए जेबाक चाही। ओइठाम अपना तँ जे हएत से हएत मुदा बच्चा सभकेँ पढ़ै-लिखैक बेहतर
अवसर भेटत। आदि-आदि।
सोच-विचारक बाद हम दड़िभंगाक
दूरभाष निरीक्षकक पद छोड़ि दिल्ली स्थित केन्द्रीय सचिवालय सेवाक सहायकक पदभार
ग्रहण करबाक निर्णय कएल। ई निर्णय केतेक सही रहल, केतेक नहि तेकर
विचार-विमर्शक आब समय नहि रहल। जे भेल से नीके भेल। गतं न सोचामि कृतं न मन्येत।
सही कहल गेल अछि जे विवाह भावी जीवनक दिशा दसा तय करैत अछि। यद्यपि हमरा लोकनिक
विवाह अभिभावक गण तय केने रहैथ, मुदा हम आब निश्चय कहि सकैत छी जे ओ सभ बहुत
वुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय केने छला। जीवन भरिमे हर समय हमर श्रीमती हमर संगे नहि
देलैन अपितु जीवन मार्गकेँ अपेक्षाकृत सुगम सेहो करैत रहली। हुनकर रचनात्मक सोच
एवम् शान्त मस्तिष्कक लाभ हमरा भरपूर भेटैत रहल अछि। केतेको जटिल समस्या सभपर
हुनकर राय बहुत कारगर होइत रहल अछि। बहुत सन्तोष पूर्वक सीमित आमदनीमे इमनदारीपूर्ण
जिनगी केना जीबी तेकर ओ उदाहरण छैथ।
हमर सासुर पण्डौल डीह टोल
रेलबे लाइनसँ थोड़बे दूरपर अछि। घरे बैसल अबैत-जाइत ट्रेन देखाइत रहैत अछि। जखन हम
सभ दिल्लीसँ पण्डौल आबी तँ रेलक आगमनक सूचना घरे बैसल हमर सासुरमे भेट जाइक।
भवानीपुरक महादेव मन्दिर सामने देखाइत रहैत अछि। केतेको गोटे नियमित भवानीपुर
जाइत रहै छैथ आ महादेवक जलढरी करै छैथ, घुमै-फिरै छैथ। असलमे गाम-घरमे लोकक जीबाक अन्दाज
अखनो अध्यात्मिकतासँ जुड़ल अछि। कोनो-ने-कोनो रूपे लोक उपवास, पूजा-पाठमे लगले रहै
छैथ। शिवरातिकेँ भवानीपुरमे जबरदस्त मेला लगैत अछि। स्थानीय आकाशवाणीसँ सद्य:
प्रशारण सेहो होइत अछि।
पण्डौल डीह बहुत ऊँचमे बसल
अछि। टोलक सामनेक जमीन सेहो घराड़ीमे उपयोग कएल जा सकैत अछि। एहेन अइल-फइल ओ ऊँच
घराड़ी कम गाममे देखल जाइत अछि।
पण्डौलमे आदम-जमानासँ रेलबे टीशन
अछि। मुदा रेलबे टीशनसँ डीहटोल एबामे बहुत समय ओ संघर्ष रहैत अछि। पण्डौल बजार
केतेक पुरान अछि से कहब कठिन। आवश्यकताक सभ वस्तु ओतए भेट जाइत अछि। उत्तम कोटिक
धोती ओइ बजारसँ आनि हम वर्षोसँ पहिरैत छी।
पण्डौल डीह ओ भवानीपुरक बीचक
एकपेरिया रस्तामे उरसामा डीह अबैत अछि। कहल जाइत अछि जे पाण्डव गुप्त बासमे
ऐठाम रहल रहैथ।
निश्चित रूपसँ कहल जा सकैत
अछि जे मनुखक जीवनमे विवाह एकटा निर्णायक बिन्दु होइत अछि। आइ-काल्हि तँ तरह-तरह
केर लोक परिचय आ की की मिलान करैत अछि, तथापि विवाह विच्छेदक संख्यामे निरन्तर बढ़ोत्तरी
भऽ रहल अछि। हम तँ किछु नहि देखलिऐ, मात्र कन्याँक एकटा छोट-छीन फोटो हमरा सासुरसँ आएल
छल, ओहो विवाह तय भेलाक
बाद। ई नहि कहल जा सकैत अछि जे आधुनिकतासँ प्रभावित वर्तमान विवाह सम्बन्धमे सभ
किछु गड़बड़ीए अछि,
मुदा ई बात तँ तय अछि जे केहनो नीक-सँ-नीक विवाहकेँ सफलतापूर्वक आगू चलेबाक हेतु
दुनू पक्षकेँ समझदारी आ समझौता जरूरी अछि, अन्यथा संकट उत्पन्न हएब
भारी बात नहि।
हमर ससुर (स्व. गणेश झा) ऐ
बातसँ चिन्तित भऽ गेल रहैथ जे हम दड़िभंगाक नौकरी छोड़ि कए दिल्ली जा रहल छी
मुदा किछुए दिनक बाद हम परिवारकेँ संगे लऽ अनलौं। जइसँ हुनका अतिशय प्रसन्नता
भेलैन।
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