संगम
तीरे
पत्नीक संग डेढ़ सालक बच्चा आ किछु मोटा-चोंटा सहित
इलाहाबाद टीसनपर पहुँचलहुँ। हमर अनुज(सुरेन्द्र नारायण मिश्र) दरभंगासँ हमरा मदति करए आएल रहथि। दिल्लीसँ स्थानान्तरणक बाद नव निर्मित कार्यालय कर्मचारी चयन आयोगमे
योगदान करबाक हेतु हम इलाहाबाद सपरिवार बिना कोनो डेरा तकने आएल रही। आब सोचैत छी तँ अपनो हँसी लगैत अछि, आश्चर्यो होइत अछि जे केना
नान्हिटा बच्चा ओ पत्नीकेँ इलाहाबाद टीसनपर छोड़ि डेरा ताकए विदा भेलहुँ..!
पहिल बेर अही क्रममे स्व० डा. जयकान्त मिश्रजीसँ हुनकर आवास ‘तिरभुक्ति’ पर भेँट भेल। हुनकासँ भेँट भेलापर लागल जेना कतेको सालसँ परिचित होथि।
सभ काज छोड़ि कए हमरासँ गप्प करैत रहलाह। परिवारक अन्य सदस्य सभ
स्वागतमे लागल रहलाह। एक अपरिचित मैथिलक एतेक स्वागत के करत?
स्व० जयकान्त बाबूक प्रयाससँ हमरा लोकनिकेँ ओही दिन साँझ
धरि दड़ियागंजमे डेरा भेटल। ओहिठामसँ टीसन आपस जा परिवारकेँ अन्य सदस्य, सामान सहित डेरामे प्रवेश केलहुँ।
दिन भरिक संघर्षसँ हम सभ बहुत थाकि गेल रही आ जेना-तेना भोजन कए शान्ति पूर्वक सुति रहलहुँ। प्रात:काल स्टेनली रोड
स्थित कर्मचारी चयन आयोगक कार्यालय पहुँचलहुँ। ओ कार्यालय स्थापित भए रहल छल, अस्तु कार्यालय चलेबाक हेतु मूल
वस्तु जेना कुर्सी, टेबुल धरि नहि छल। एकटा अधिकारी छलाह जे ओहि
कार्यालयमे एक दिस सपरिवार रहैत छलाह। क्रमश: किछु कर्मचारी सभ अएलाह। टेबुल, कुर्सीक ब्यवस्था भेल। किछु
स्थानीय नैर्मिातक कर्मचारी राखल गेल। आ कार्यालय चलि पड़ल। किछुए दिनमे नव भर्तीक
विज्ञापनक आधारपर आयोजित लिखित परीक्षाक हेतु आवेदन पत्रसभ आबए लागल। थोड़बे दिनमे
एकटा कोठरी आवेदनपत्रक लिफाफासँ भरि गेल।
किछु दिनक बाद कर्मचारी चयन आयोगक क्षेत्रीय निदेशक
बनि कए– आइएएस अधिकारी अएलाह। कारी-कारी करगर मोछ, गोटनार भुट्ट आ बेसी काल गुमसुम
रहएबला। हुनका अएलाक बाद कार्यालयक तेजीसँ प्रगति होबए लागल। कार्यालयमे कर्मचारी कम छल आ काज एकाएक बढ़ि
गेल छल जाहि कारणसँ लोक सभ तनावमे रहैत छल। चूँकी परीक्षाक तिथि पहिने घोषित भए
जाइत अछि, तेँ सभ काज समयवद्ध ढंगसँ करबाक छल। तहिआ कम्पूटरक आगमन नहि भेल छल। सभ काज हाथेसँ होइत रहए। हालत ई
छलैक जे निदेशकजी स्वयं नित्य सैकड़ोक तादादमे प्रवेश पत्र लिखैत छलाह ,अनकर कथे कोन। परीक्षाक ब्यवस्था
करब कोनो जबार भोज करबसँ बेसी कठिन काज छल।
एतेक व्यस्तताक बाबजूद ओ कार्यालय आगू चलि पड़ल मुदा
निदेशकजी निरन्तर पारिवारिक कारणसँ उदास रहैत छलाह आ अन्ततोगत्वा
थोड़बे दिनक बाद दिल्ली आपस चलि गेलाह। हुनकर प्रेम बिआह
छल जे नहि टीकि सकल। प्रेमक आवेशक अंजाम कतेको बेर बहुत कुटिल होइत अछि।
उफानमे रहएबला जोड़ी कएक बेर एक-दोसरक हत्या कए दैत अछि। नित्यप्रति एहन घटना होइत रहैत अछि, तथापि लोक प्रेम करैत अछि। जँ प्रेम
त्यागसँ अभिभूत नहि भेल, तँ ओ अस्थिर हेबे करत। के हारत, के जीतत तकर कोनो माने नहि, मुदा सर्जनात्मकताक तँ अन्त भइए जाएत...। दुनू गोटे
अतिशिक्षित ओ संभ्रान्त परिवारक छलाह। स्वयं बहुत योग्य रहथि मुदा जीवनक व्यतिक्रमकेँ नहि सम्हारि सकलाह। भावी प्रवल। ऐहि प्रकरणकेँ स्मरणसँ दृदयमे कएक बेर
अखनो कचोट भए जाइत अछि।
कार्यालयमे एकाएक ततेक काज आबि गेल आ काज केनिहार लोक
ततेक कम छल जे बहुत अस्तव्यस्तता भए गेल। रविओ दिन छुट्टी नहि होइत छल। कखनो काल तँ दिल्ली घुरि जेबाक इच्छा होइत छल। दड़ियागंजसँ स्टेनली रोड
स्थित कार्यालय आएब-जाएब कठिन काज छल।
एक्कापर चढ़ि कए बेसी काल यात्रा होइत छल, तथापि समय तँ लगिते छल। तेँ कार्यालयक लगपास डेरा ताकए लगलहुँ। आखिर किछु दिनमे
१७, नयाममफोड़गंज
हमर डेरा भेल। ममफोड़गंज इलाहाबादक संभ्रान्त आवासीय मोहल्लामे सँ मानल जाइत अछि। लगपासमे नीक
लोक सभ छल। मकान मालकिन वृद्धा, स्वतंत्रता सैनानी छलीह, जिनका सभ गुरुजी कहनि, कारण ओ शिक्षक छलीह। सेवा निवृत भए गेल रहथि। मासमे एक दिन पैंशन लेबए
लेल जखन ओ जाथि तँ लगैक जे ओ दिव्य व्यक्ति ठाढ़ अछि। आन दिन विक्षिप्त
जकाँ एकटा कोठरीमे सिमटल रहैत छलीह। भूतलपर दोसर किरायादार छल। छतपर
खाली जगहमे गोइठा भरल छल। कुलमिला कए ई आवास सुखद छल।
इलाहाबाद विश्वविद्यालयक भूतपूर्व कुलपति स्व. ए.वी. लाल, अर्थशास्त्र विभागक विभागाध्यक्ष
डा. महेश प्रसाद, प्रसिद्ध महिला रोग विशेषज्ञ डा. रमा
मिश्र इत्यादि सभ लग-पासमे रहथि। निगम चौराहा लगेमे छल। मिठाइक दोकान घरेलू
समान इत्यादि सभ किछुक दोकान सेहो लगीचेमे। कार्यालयसँ ममफोड़गंज स्थित हमर डेरा पैदल ५-७ मिनटक रस्ता छल। अस्तु, आवागमनक समय ओ खर्चा दुनू बाँचए
लागल। क्रमश: लगपासक लोक सभसँ परिचय होबए लागल आ जीवन यात्रा अपेक्षाकृत सरलतासँ आगू बढ़ल।
छुट्टी दिनमे लगपास एमहर-ओमहर आएब-जाएब प्रारम्भ भेल। मोतीलाल नेहरू रिजनल इन्जीनियरिंग
कौलेजमे हमर पितियौत भातिज पढ़ैत छलाह। कहिओ काल हुनकासँ भेँट-घाँट करए छात्रावास
चलि जाइ। ओतए गेलापर अफसोच होबए लागए जे नीक अंक रहतहुँ हम एहि इन्जीनियरिंग कौलेजमे अपन नाम नहि लिखबा सकलहुँ।
गामक एकटा फौजी कहिओ काल अबैत रहैत छलाह। सासुरक किछु सम्बन्धी सेहो भेट गेलाह।
हमर स्कूलिया संगी इन्जीनियरिंग पास कए इलाहाबादेमे नौकरी पकड़ि लेने रहथि। एहि तरहें पूर्व परिचित लोक सभसँ सम्पर्क भए गेलाक बाद कार्यालयसँ हटि कए समाज भए गेल जे क्रमश: बढ़िते
गेल, ताहिसँ
इलाहाबादमे रहब मनलग्गू भए गेल छल।
इलाहाबाद कार्यालयमे काज बहुत छल। रविओ दिन व्यस्तता रहैत छल, कारण अधिकांश परीक्षा रविए दिन होइत छलैक। कखनो काल सोची जे
हम दिल्ली छोड़ि इलाहाबाद किएक अएलहुँ? प्राय: मोनमे रहए जे गाम लग रहत।
खर्चा कम होएत वा इलाहाबाद धार्मिक स्थान अछि, तेँ अध्यात्मिकताक विकासमे सहायक रहत।
आध्यात्मिक दृष्टिसँ किछु विशेषता तँ इलाहाबादकेँ अछिए। प्रतिवर्ष
माघमे संगममे जबरदस्त मेला लगैत अछि। कहाँ-कहाँसँ सन्त-महात्मा, गृहस्थ सन्यासी लाखोक संख्यामे ओतए आबि कए मास करैत छथि। भजन-कीर्तन करैत छथि। गाम-घरक चिन्तासँ बेफिक्र लोक एकटा अद्भुत
आनन्दक अनुभव करैत अछि। माघ मेलाक अवधिमे कहिओ-कहिओ विशेष स्नान होइत अछि। ओहि दिन तँ लगैत अछि जेना समुद्र संगम दिस
अग्रसर भए रहल अछि। माघ मेलामे रंग-रंगक सन्त-महात्माक समागम होइत छल। ओहिमे
देवराहा बाबाक नाम के नहि जनैत अछि? हुनकर बएसक बारेमे कहल जाइत अछि
जे ओ कतेक दिन जीला तकर ककरो सही अनुमान नहि अछि। डा. राजेन्द्र प्रसाद २-३ सालक
रहथि तँ हुनकर पिता बाबा लग लए गेल रहथिन आ बाबा हुनका देखिते कहि उठला जे ई तँ राजा होएत। सन् १९५४ इस्वीमे भारतक राष्ट्रपति भेलाक बाद ओ
बाबाक दर्शन केने रहथि। ओही समयक समस्त प्रख्यात नेता सभ बाबाक दर्शन हेतु अबैत
रहैत छलाह। ओ घन्टो पानिमे डुबकी लगओने रहैत छलाह। हुनका योग सिद्ध रहनि आ सामने
ठाढ़ व्यक्तिक मोनक बात बुझि जाइत छलाह। कहल जाइत अछि जे बाबा पानिपर चलि सकैत
छलाह, योग क्रिया
द्वारा एक स्थानसँ दोसर स्थान जा सकैत
छलाह। मंचपर बैस कए बाबा भक्त सभकेँ प्रसाद फेकैत रहैत छलाह। ककरो-ककरो
माथपर पैर रखि कए आशीर्वाद दैत छलाह। एहन व्यक्ति बहुत सौभाग्यशाली मानल जाइत छलाह।
देवराहा बाबाक सम्बन्धमे हमर एकटा निदेशक महोदय सद्य:
घटनाक वर्णन करैत कहलाह जे एकबेर हरिद्वारमे बाबा आएल रहथि। ओ ओहिठाम मेला अधिकारी छलाह। एकटा हाथी बताह
भए गेल छल। लोक सभ कोनो तरहेँ ओहि हाथीकेँ नियंत्रित नहि कए पाबि रहल छलाह। बाबाक कान धरि ई समाचार गेल। ओ हाथीक हेतु एकटा
केरा देलखिन मुदा ककरो ओहि पागल हाथीक लग जेबाक साहस नहि होइत छल। बाबाक एकटा भक्त सिपाही ओ केरा लए हाथी दिस बढ़ल। हाथी ओकरा देखिते
हाथसँ बाबाक देल केरा लए कए खा लेलक आ एकदम शान्त भए गेल। एहि तरहें रंग-रंगक प्रसंग बाबाक बारेमे
सुनबामे अबैत छल। जाबे इलाहाबादमे रही, ताबे सभ साल बाबाक दर्शन माघ मेलामे होइत रहल। एहि लेल ममफोड़गंजसँ माघ मेला
क्षेत्र कएक बेर पएरे जाइत रही, कएक बेर रस्तामे एक्का कए ली। एक बेर सोचैत रही जे जा तँ रहल छी, मुदा एतेक दूरसँ फेर पएरे केना
आएब। ततबेमे देखैत छी जे हमर परिचित एकटा व्यक्ति हमरा दिस बढ़ि रहल
छथि आ आग्रह करए लगलाह जे आपस हुनके संगे साइकिलपर चलब। १९ जून १९९० क योगिनी
एकादशीक दिन बाबा ब्रम्ह्लीन भए गेलाह। एहि तरहें भारतक एक महान सन्तसँ प्रत्यक्ष दर्शन सम्भव नहि रहल, मुदा हुनकर स्मृति हमर इलाहाबाद
प्रवाससँ सभ दिनक लेल जुड़ि गेल। बाबाकेँ खेचड़ी विद्या सिद्ध छल जाहि कारण हुनका
भूख ओ आयुपर नियंत्रण छलनि।
इलाहाबादमे रहैत प्रभुदत्त ब्रह्मचारीसँ भेँट-घाँटक
सौभाग्य सेहो भेटल। ओ सन्त तँ छलाहे, धार्मिक,
अध्यात्मिक विषयक सैकड़ो पुस्तकक लेखक सेहो छलाह। हुनकर लिखल
भगवती कथाक दुनू खण्ड देवराहा बाबाक मंच लग प्रसाद स्वरुप लोक कीनैत छल। बाबा ओहिमे हाथ लगा कए सम्बन्धित व्यक्तिकेँ दैत कहथिन-
“जा कलियान होइ। एकरा पढ़ऽ।”
प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजीक आश्रम
झूँसीमे छल। ओहि आश्रम द्वारा संस्कृत महाविद्यालय चलैत छल, जाहिठाम विद्यार्थी सभकेँ नि:शुल्क शिक्षा देल जाइत छल। एक बेर हम अपन
अनुज (धीरेन्द्र
नारायण मिश्र)क संगे ओतए गेल रही। प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी
हुनकर शिक्षाक बारेमे पुछलखिन आ आ ई जानि जे ओ उत्तर मध्यमा
केने छथि ,आग्रह केलखिन जे शास्त्रीक पढ़ाइ हुनकर संस्कृत
महाविद्यालयसँ करथि । मुदा ओ ताहि लेल तैयार नहि भेलाह।
कृष्णाष्टमीक अवसरपर हम सभ सपरिवार प्रभुदत्त
ब्रह्मचारीजीक आश्रम गेल रही। आश्रममे कृष्णाष्टमीक पर्व मनाओल जा रहल छल। करीब ४
बजे ओ बाहर अएलाह आ हमरा सभकेँ हुनकासँ भेँट भेल। ब्रह्मचारीजी आग्रह
जे हम सभ कृष्णजन्म देखबाक लेल आश्रमेमे रूकि जाइ, मुदा किछु काल धरि ठहरि हम सभ आपस
डेरा आबि गेलहुँ। एकर बादो यदा-कदा हम हुनकर आश्रमपर जाइत रहैत छलहुँ। ओहि
आश्रमक अध्यात्मिक वातावरणक आनन्द लैत रहैत छलहुँ। संगममे स्नान, माघ मेलाक मास भरिक आयोजन, आ संत महात्माक दर्शन इलाहाबाद रहैत स्वत: उपलब्ध छल जकर लाभ हमरा यथा-सम्भव होइत रहल।
डा. जयकान्त मिश्रसँ भेँट इलाहाबाद अबिते
भेल। ई भेँट-घाँट अनवरत बनल रहल। मैथिल मात्रसँ हुनकर सिनेहक ई प्रमाण छल। कएक बेर
हुनका ओहिठाम मैथिली भाषाक मूर्धन्य विद्वान लोकनिसँ भेँट-घाँट सेहो भए जाइत छल।
क्रमश: हुनकर समस्त परिवारसँ तँ ततेक सम्पर्क भए गेल जे लगैत छल जेना हुनकर कोनो निकट सम्बन्धी
होइ, ई सभ विशेषता
हुनकर छलनि। एहिमे हमर योगदान की कहल जा सकैत अछि? मधुर वाणी, उदार हृदय ओ अपनत्वसँ सरावोर ब्यवहार ककरो आकर्षित कए सकैत छल। प्राय:
सभ सप्ताह खास कए छुट्टी दिन हुनका ओहिठाम जाइत रहैत छलहुँ। ओहो कएक
बेर हमरा डेरापर सपरिवार अबैत रहैत छलाह।
डा. जयकान्त मिश्रजी अंग्रेजीक प्राध्यापक छलाह। इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे विभागाध्यक्ष पदक
हेतु हुनका मोकदमाबाजीक सामना करए पड़ल। हुनके विभागक किओ प्राध्यापक इलाहाबद विश्वविद्यालयमे
मोकदमा कए विभागाध्यक्षक पदक हेतु हठ केने छल, मुदा ओ हारि गेल। अंग्रेजीक
व्याख्यता रहतहुँ मैथिली आ मिथिलाक प्रति हुनकर अनुराग जगजाहिर अछि।
हुनका ओहिठामसँ मैथिलीमे ५-७ पृष्ठक एकटा पत्रिका निकलैत छल। हुनकर समस्त परिवार
ओहि पत्रिकाक तैयारीमे लागल रहैत छल। ओकरा सैंकड़ो लोककेँ पठाओल जाइत छल। एकाध बेर
हमहु ओहि काजमे लागल रही।
प्रोफेसर सुनीति कुमार चैटर्जी बॄहत मैथिली शब्दकोशक लेल अपन प्राक्कथनमे कहलथि : "His name will be handed down to posterity
in India as the greatest benefactor of Maithili at present day after that of
the illustrious George Abraham Grierson, and will earn for him gratitude of
sixteen millions of Maithili speakers in the first instance and of the
scholarly world of the whole of India, in the second."
प्रतिवर्ष विद्यापति पर्व समारोह इलाहाबादमे मनाओल
जाइत छल,जाहिमे जयकान्त बाबू बढ़ि-चढ़ि कए सामिल होइत छलाह। मुदा ओहिमे कतेको बेर गुटबन्दी
भए जाइत छल। हुनकर पिता म. म. डा. उमेश मिश्रजीक बरखीक भोजमे हम अबस्स आमंत्रित
रहैत छलहुँ। भोजो बहुत नीक होइत छल। बहुत नेम-टेमसँ हुनकर पत्नी भोजक आयोजन करैत छलीह। अस्तु, हमर इलाहाबादक स्मृतिक डा.
मिश्रजी एकटा अमिट अंग भए गेलाह तँ कोनो आश्चर्य नहि।
इलाहाबादक चर्च होइक आ डा. जयकान्त मिश्रजीक ज्येष्ठ पुत्र डा. रूद्रकान्त मिश्रजीक चर्च नहि करी तँ ई हुनका संगे बड़का अन्याय होएत। रूद्रकान्तजी स्वभावसँ एकदम शान्त छलाह। संस्कारसँ तेजस्वी, कर्मठ, परिश्रमी आ भावुक। पितासँ सपरिवार अलग रहैत छलाह। पहिल पत्नीक असमयमे
निधन भए गेल रहनि। ओहि पक्षमे एकटा कन्या रहए। दोसर बिआह सँ सेहो सखापात रहनि। बच्चा सभ
संस्कारी। रसूलाबादमे गंगा स्नान करैत, गंगामे गायत्री जप करैत हुनका कएक
दिन देखिअनि। संस्कृतक विद्वान छलाह। इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे संस्कृतक व्याख्याता छलाह। ओ बहुत
परिश्रमी
छलाह।
अपन कार्यालयमे परीक्षाक उत्तर पुस्तक जाँचमे कएक
बेर हुनका बजबिअनि। बहुत एकाग्रतासँ ओ काज करैत छलाह। हुनकर काजमे एकटा गलती नहि
पाबि सकैत छी। हमरासँ बहुत पटैत छलनि आ कएटा नितान्त व्यक्तिगत गप्प सभ हमरासँ करथि ।
एकबेर हम सपत्नी हुनकर डेरापर गेल रही। बहुत स्वागत भेल। हलुआ से स्वादिष्ट छल जे
आइ धरि जीहमे पानि आबि जाइत अछि। बहुत रास गप्प-सप्प भेल। किछु दिनक बाद ओहि हलुआक
प्रशंसा डा. जयकान्त मिश्रजी ओहिठाम कएल। तुरन्त ओतहु हलुआ बनल। कहक माने जे एहिठामक हलुआ सेहो कम नहि...।
रूद्रकान्तजी दिल्ली आएल रहथि। हुनकर पहिल पत्नीसँ कन्याक बिआह क आमंत्रण देबाक हेतु। हम ओहि कार्यक्रममे गेल
रही। दिल्लियेमे बिआह -कार्यक्रम भेल रहए। हुनकर समस्त परिवारसँ भेँट भेल। रूद्रकान्तजीसँ बहुत दिन बाद फोनपर गप्प भेल। डा. जयकान्त मिश्रजीकेँ साहित्य आकदमीसँ २००० इस्वीमे भाषा सम्मान भेटल रहनि। ताहि क्रममे ओ सभ
दिल्ली आएल रहथि। हम भेँट करए गेलहुँ मुदा कनीक देरी भए गेल छल
आ पता लागल जे किछुए काल पर्वू ओ सभ इलाहाबादक हेतु प्रस्थान कए चुकल छथि। किछु दिनक बाद सुनएमे आएल जे रूद्रकान्तजी नहि रहलाह।
ऑफिस तँ ऑफिस होइत अछि। चाहे ओ प्रयागमे होइक वा दिल्लीमे। इलाहाबाद आबएसँ पर्वू सोचने
रही जे ओ धार्मिक स्थान अछि आ ओहिठामक लोक सभ बहुत संस्कारी हेताह। किछु एहन लोक
भेटबो केलाह। इलाहाबादक धार्मिक प्रसांगिकता अखनो अछिए। तेँ किछु हदतक हमर ई सही छल। मुदा कार्यालयक अन्दर जे
वातावरण छल, (आपसी सिरुफुरौअल कहि सकैत
छी) से तँ नर्के छल। एकटा निदेशक महोदय (जे आइ.एस. अधिकारी
रहथि) कहलाह जे कलक्टरक रूपमे काज करबामे हुनका ओतेक दिक्कत नहि भेल
जतेक १३ आदमीकँ एहि कार्यालयमे भए रहल अछि। अधिकारी, कर्मचारी सभ युवक छलाह। ककरो बेसी
अनुभव नहि रहए। काज से बहुत रहए। तनावक एकटा प्रमुख कारण सेहो छल। मुदा असल कारण
छलाह एकटा कर्मचारी जे दुनिआ भरिक तिकरमवाज छलाह। जँ ककरो तंग करक हेतु २०
किलोमीटर पएरो चलए पड़त तँ ओ ताहि लेल तैयारे रहैत छलाह।
कार्यालयक गुटबन्दी पराकाष्ठापर छल। छोटसन कार्यालयमे मानवीय सम्बन्ध ततेक जटिल छल
जकर वर्णन नहि। निदेशक सभ आइ.ए.एस. अधिकारी होइत छलाह, मुदा मानवीय सम्बन्धक ओझरी सरकारी
आदेशसँ नहि सोझरा सकैत छल। मोटा-मोटी दू भागमे कार्यालयक लोक सभ बँटि गेल रहथि। किओ नव कर्मचारी आबए तँ दुनू गुट ओकरा पटबएमे लागि जाइत। अहीक्रममे हमर कौलेजक
सहपाठी स्मरण भए जाइत अछि। सी.एम. कौलेज दरभंगासँ ओहो पढ़ल छलाह। दरभंगामे घर रहनि। नौकरी भेलाक बाद कर्मचारी चयन आयोग
इलाहाबादमे पदस्थापित भेलाह। मुदा मोटा-मोटी ओ दोसर गुटमे चलि गेलाह। बादमे ओ आइ.ए.एस परीक्षाक
माध्यमसँ आयकर विभागमे नियुक्त भेला आ तकर बाद कहिओ भेँट नहि भेलाह। कार्यालयक एहन
उठा-पटकक बीच ९ वर्षक समय केना कटल से आश्चर्य...।
एक राति करीब २ बजे हम भभा कए हँसि पड़लौं। श्रीमतीजीक निन्न टुटि गेलनि। निन्न
टुटिते पुछलीह-
“की भेलैक, अहाँ एना किए हँसि रहल छी?” असलमे ओहि दिन कार्यालयमे मारि-पीट भए गेल रहए, जकर स्मरणसँ हँसी लागि गेल रहए। कार्यालयक दूटा कर्मचारीक बीच
बाता-बाती होइत- होइत मारि-पीट होबए लागल। हल्ला सुनि कार्यालयक सभसँ पैघ अधिकारी, निदेशक महोदय जे आइ. ए॰एस. छलाह,
कोनो बहन्ने खसकि गेलाह। सभ गोटे मुहाँ-मुहीं देखैत रहल । एकटा सज्जनक हाथ टुटि
गेल। ओ एफ.आई.आर. करबाक हेतु थाना विदा भेलाह। हुनकर
अपेक्षा रहनि जे हम हुनका संगे थाना गबाहीमे चली, मुदा
हमरा से पसिन नहि भेल आ ने हम ओहि झंझैटमे पड़ए चाही,
अस्तु गाहे-बगाहे मौका ताकि कए हम घटना स्थलसँ खसकि डेरापर चलि अएलहुँ। एहि बातसँ पीड़ित कर्मचारी बहुत नाराज भेलाह आ बहुत दिन
धरि
एहि बातकेँ
मोनमे गाड़ने रहलाह।
नौकरीक शुरूआती दौड़मे दरमाहा कम छल। समयोपरि काज
केलाक बाद किछु पैसा अतिरिक्त भेट जाइत छल। असलमे अधिकारीगण एकरा एकटा हथियारक
रूपमे इस्तेमाल करैत छलाह। जे हुनकर अनुकूल लोक छल ओकरा असानीसँ समयोपरि भेट
जाइत छल। हमरा सबहक एकटा संगी (जे दरभंगेक छलाह) चलाक-चुस्त रहबाक कारणेँ बिना अतिरिक्त काज
केनहु समयोपरि प्राप्त कए लैत छलाह। कार्यालयोक समयमे ओ
पढ़ैत रहैत छलाह। प्रतियोगिता परीक्षा सबहक तैयारीमे लागल रहैत छलाह आ अन्तत: आइ.ए.एस. परीक्षा पास कए ओ बहुत आगाँ बढ़ि गेलाह। समयोपरि काज कार्यालयमे
संवेदनशील मुद्दा छल। एकबेर समस्त कर्मचारीक अगुआ बनि हम कार्यालयमे हड़ताल करबा
देलिऐक। परीक्षाक समय लगीच रहए। उम्मीदवार सबहक प्रवेश पत्र जारी हेबक छल मुदा
कार्यलयमे काज ठप। मान-मनौअलक बाद हड़ताल समाप्त भेल। मुदा हड़तालमे सहयोगी हेबाक
कारण हमरा बहुत दिन धरि तंग कएल गेल।
एक दिन हम श्रीमतीजीकेँ डाक्टरसँ देखबए गल रही। कार्यालय आबएमे बिलम्ब भए गेल। जखन
ओतए पहुँचलहुँ तँ देखलहुँ जे पूरा कार्यालयक कर्मचारी बाहर ठाढ़ अछि।
निदेशक महोदय सेहो कुर्सी लगा कए बाहरेमे बैसल छलाह। मोनमे उठल- माजरा की अछि? माथ ठनकल। तरह-तरहकेँ बात सोचाए लागल। थोड़ेक आगाँ
बढ़लहुँ तँ किओ कानमे फुसफुसा कए कहलनि-
“ताला सभ कुंजीक अभावमे बन्दे रहि गेल अछि!”
जल्दीसँ डेरा आपस जा कए कुंजीक गुच्छा अनलहुँ। कोठरी सभ खोलल गेल। निदेशक
महोदय अपन कोठरीमे बैसलाह। तकर बाद असगरमे बजा कए हमरा अपन नाराजगी व्यक्त केलाह। एहन सन्तुलित आ संयत व्यक्ति कम होइत अछि। लगभग
तीन साल हुनका संगे काज करबाक अवसर भेल। प्राय: पहिलबेर हुनका तमसाइत देखलिअनि। असलमे चौकीदार कुंजीक झाबा बिना
हमर जानकारीकेँ हमर बच्चाकेँ पकड़ा देने रहए। हमरा एहि बातक जानकारी नहि छल। मुदा गड़बड़ी तँ भइए गेलइ।
कार्यालयक रोकड़क हिसाव तथा पैसाक लेन-देन हेतु एकटा
कर्मचारी छलाह जे जँ रातिओकेँ कतहु देखा जइतथि तँ भूतक प्रत्यक्ष दर्शनक आभास होइत। कारी, भुट्ट,
बीड़ी पीबैत आ टंकक पर निरन्तर टिपिर-टिपिर करैत। अपन काजमे परिश्रमी आ माहिर रहबाक कारण अधिकारी सभ
ओकरा मानै। तकर दुरुपयोग ओ लोककेँ तंग करबामे करैत छल। कोनो बिल दिऔ, ओ ताकि कए गलती निकालि दैत, दाबापर कैंची चला दैत, एहिसँ ओकर परपीड़क स्वभावकेँ आनन्द होइत रहए। लोक सभ ओकरासँ तंग तँ रहए मुदा कएल किछु नहि होइक । जखन प्रशासनक अधिकारी हम भेलहुँ तँ पहिने मौका भेटते ओकरापर आक्रमण कए देल। भेलैक ई जे ओकर कोनो काजमे
सुधारक परामर्श देलिऐक तँ ओकरा बड्ड खराप लगलै। चिकरए, भेकरए लागल जे ओकरा एहि काजसँ हटा देल जाए, हम ने इएह देखलहुँ ने ओएह, तुरन्त आदेश निकालि ओकरा जगह दोसर कर्मचारीकेँ खजॉंची बना
देलिऐक। आब तँ ओ साँप जकाँ छटपटाए लागल, डिरियाइत घुमैत रहल। कतए-कतएसँ सिफारिस लगेलक, मुदा हम अड़ि गेलिऐक। ओकरा हटए पड़लै।
इलाहाबाद स्थित कर्मचारी चयन आयोगक कार्यालयक मुखिया
निदेशक आइ.ए.एस. अधिकारी होइत छलाह। १९८७ इस्वीमे हमरा चलि अएलाक बाद ओहिमे आन-आन सेवाक अधिकारी सभ सेहो नियुक्त
भेलाह। ओहि पदपर ओएह व्यक्ति अबैत छलाह जिनकर इलाहाबादमे घर वा परिवार
रहए। हम ९ साल ओहि कार्यालयमे रहलहुँ जाइ अन्तरालमे चारिटा निदेशक संगे कार्य
करबाक अवसर भेटल। ओहि चारूमे एकटा प्रोन्नत द्वारा आइ.ए.एस. बनल छलाह। ओहिसँ पूर्व
ओ प्रान्तीय सेवा (पी.सी.एस.)मे रहथि। हुनकर पिता उच्च न्यायालयक सेवानिवृत्त जज रहथिन। ओ पिताक एक मात्र सन्तान छलाह। बहुत ताम-झामसँ रहथि। ओहि समयमे मूलत: फिएट
वा एम्बेसडर कारक चलनि छलैक। हुनका लगमे फिएट कार छलनि,
जाहिसँ चालक हुनका कार्यालय आनए आ लए जाए। दुपहरियाक भोजन सेहो घरे जा कए करथि। कार्यालयमे जखन ओ
पदस्थापित भेल रहथि तँ कएक दिन धरि थूकदानीक लेल हंगामा भेल रहए। थुकदानी
कोन नियमक अधीन कीनल जाए? हारि कए ओ अपन घरेसँ थुकदानी लए अनलाह। हुनका पान खेबाक आदति रहनि, तेँ पिकदानी राखब अनिवार्य छल।
कार्यालयमे ओ कोनो रूचि नहि राखथि। सभ अधीनस्थ अधिकारीपर छोड़ि देने रहथि।
एमहरसँ प्रस्ताव आएल तँ ओहिपर दसखत आ ओमहरसँ आएल तँ ओहूपर दसखत। कएक बेर तँ एहन होइत जे एक्के विषयपर विपरीत आदेशपर ओ दसखत कए दैत छलाह। कहिओ काल हुनकर घर
जेबाक अवसर प्राप्त होइत छल। रसूलबाद स्थित गंगाक घाटसँ सटले विशाल ओ सुन्दर हुनकर
घर छल। बादमे पता लागल जे सेवानिवृत्तिक बाद ओ अपन घर बेचि लेलाह आ
राजस्थानमे अपन पैतृक स्थानपर रहए लगलाह। कार्यालयमे हुनका निष्पृह रहबाक कारणे
कार्यालयक महौल खरापे होइत गेल। मानवीय सम्बन्धमे कटुता बढ़ैत रहल आ किछु गोटे
दिन-राति एक दोसरक टाँग खिचौअलमे लागल रहलाह।
सन् १९८५ इस्वीमे कर्मचारी चयन आयोग, इलाहाबादक समक्ष प्रस्ताव छल जे बिहारमे दूटा नव परीक्षा
केन्द्र स्थापित कएल जाए। ओहीमे एकटा केन्द्र दरभंगा वा मुजफ्फरपुरमे ओ दोसर दुमका वा भागलपुरमे। हमरासँ
तत्कालिन निदेशक महोदय एहि विषयपर परामर्श मंगलनि। हमर आग्रहक अनुसार दरभंगा आ दुमकामे परीक्षा केन्द्रक
स्थापना भेल। दरभंगामे परीक्षा आयोजनक ब्यवस्था हेतु पर्यवेक्षकक रूपमे
हम दरभंगा गेलो रही। दरभंगामे ५-६ टा परीक्षा केन्द्र छल जाहिमे हजारोसँ बेसी
परीक्षार्थी भाग लेलाह। किछु केन्द्रपर परीक्षा ब्यवस्था स्तरीय नहि छल तथापि
जेना-तेना काज ससरल। दरभंगामे परीक्षा केन्द्रक स्थापनासँ सैकड़ो स्थानीय
विद्यार्थी सभकेँ कर्मचारी चयन आयोगक माध्यमसँ नौकरी भेटल, अन्यथा हुनका पहिने अही परीक्षा
हेतु पटना जाए पड़ैत छल। दुमका केन्द्रमे अपेक्षाकृत कम उम्मीदवार रहैत छल,
तेँ बादमे ओ परीक्षा केन्द्र हटा देल गेल। दुमकाक जगह भागलपुरमे परीक्षा
केन्द्र बनल जे सफल रहल।
सन् १९८१क लगपास ओहि कार्यालयमे किछु नव लोक सबहक
पदस्थापना भेल जाहिमे प्रमुख छलाह- श्री संजीव सिन्हा, एम.ए;
एल.एल.बी.। ओ इलाहाबादक एकटा प्रतिष्ठित परिवारसँ अबैत छलाह। हुनक समस्त परिवार
अति शिक्षित आओर वरिष्ठ अधिकारी सभ छलाह। हुनकर एकटा बहिनोइ भारत सरकारमे सचिव
पदसँ सेवानिवृत्त भेलाह। हुनकार ब्यवहार ओ विचारसँ ओहि कार्यालयक
वातावरणमे तँ जे सुधार भेल से भेल, मुदा हमरा तँ जबरदस्त समर्थन भेटल। हुनकासँ
मित्रता अखन धरि ओहिना चलि रहल अछि। बीचमे ओ दिल्ली स्थानान्तरित भए कए अएलाह, फेर आपस इलाहाबाद गेलाह, हम दिल्ली चलि अएलहुँ, मुदा हमरा लोकनिक पारस्परिक
सम्बन्ध ओहिना मधुर बनल अछि। हुनकर समस्त परिवारसँ हमरा क्रमश: सम्पर्क भए गेल जे अद्यावधि बनल अछि।
कार्यालयक ओहन विकट वातावरणमे एहन नीक लोक भेटलाह से ईश्वरक चमत्कारे कहक चाही।
हमरा जीवनमे किछु गोटे एहन भेटलाह जे बिना कोनो स्वार्थे
निरन्तर मदति करैत रहलाह। हमरा प्रति सद्भावना रहलनि आ
संकटक समयमे सहोदर जकाँ ठाढ़ रहलाह। निश्चय कोनो जन्मक हमर पूण्यक ई फल रहल होएत।
दरभंगामे नौकरी करैत काल पिण्डारूछक डा. विनय कुमार चौधरीजी, इलाहाबादक श्री संजीव सिन्हाजी
ओ दिल्लीमे काज करैत काल श्री मदन मोहन
सिन्हाजी आओर हमरे नामधारी मिश्रजी (मूलत: दरभंगा लगक पतोरगामक रहनिहार) हमर जीवनमे प्रात: स्मरणीय
छथि। के कहैत अछि जे कार्यालयमे दोस्ती नहि होइत छैक? किंवा ओहिठामक सम्बन्ध चलता होइत
अछि। काजसँ काज मतलब राखए-बला परिवेशमे बेसी अपेक्षा सम्भवो नहि अछि आ ने राखक चाही। परन्तु उपरोक्त व्यक्ति सभ विभिन्न
समयमे कार्यालयमे हमरा भेटलाह आ जीवन भरिक हेतु घनिष्ट मित्र बनल रहलाह।
इलाहाबाद कार्यालयक महौल खराप करएमे एक व्यक्तिक बहुत
योगदान छल। आब ओ एहि दुनिआमे नहि छथि मुदा जखन कखनो हुनकर चर्चा होइत अछि तँ ओ बात सभ मोन पड़िते अछि।
गामक परिवेशसँ हम एकबेर दिल्ली तकर बाद इलाहाबाद आबि गेल रही। नौकरी केना कएल जाइत
अछि, तकर व्यवहारिक
अनुभव नहि छल आ ने ओहि वातावरणमे कहिओ रहलहुँ। दिन राति मेहनत करी, शत- प्रतिशत इमानदारीसँ काज करी, ककरो अहित नहि करी, तथापि अधिकारी लोकनि खूब
प्रसन्न नहि रहथि, कारण कोनो बात भेल आ ठाँइ-पठाँइ लड़ि
जाइ, मुहेँपर सही बात बाजि दिऐ,
कएक बेर सही विषयपर आक्रमक सेहो भए जाइ, एहि सभ कारणसँ अधिकारी लोकनिकेँ अहंपर चोट पड़ैत छलनि आ
सभ मौका पाबि कए तंग करथि। कएक बेर बाजिव हक देबामे बाधा ठाढ़ कए
देथि आ किछु नहि तँ व्यंगे कए देथि। कहक माने जे काजसँ अधिकारीक अहंक रक्षा सरकारी
कार्यालयमे अधिक महत्वपूर्ण होइत अछि, से बात जाबे बुझलिऐक, ताबे बहुत देरी भए गेल छल।
कार्यालयक काज हेतु माटाडोर गाड़ी छल। ओकर चालक सज्जन
व्यक्ति छलाह। प्रशासनक काज हमरा जिम्मा छल, तेँ गाड़ी ओ चालक हमर नियंत्रणमे रहैत छल। निदेशक महोदयक
लेल अलगसँ गाड़ी नहि छल। आइ.ए.एस. अधिकारी होइतो ओ स्कूटरसँ कार्यालय अबैत छलाह।
एक दिन एकाएक गाड़ी हुनकर घरपर पार्क भेल आ ओ गाड़ीक
उपयोग अपना अधीन कए लेलाह। हमरा एकर जानकारी नहि छल भोरे किछु काजसँ कतहु जेबाक हेतु गाड़ी तकलहुँ तँ पता लागल जे गाड़ी नहि अछि। हमरा
बहुत तामस भेल। चालककेँ डाँट-फटकार कए देलिऐक। ओ नून-तेल लगा कए निदेशक महोदयकेँ चुगली कए देलक। सुनबामे आएल जे हुनका घर जा कए रंग-बिरंगक उपराग देलक। परिणाम
भेल जे निदेशकजी बहुत क्रुद्ध भए गेलाह। ओहुना ओ हमरासँ अप्रसन्ने रहैत छलाह। एहि घटनाक बाद हमर हुनकर सम्बन्ध
कहिओ पटरीपर नहि आएल। आब सोचैत छी तँ हँसी लगैत अछि- अपनोपर, हुनकोपर।
कार्यालयमे जे छल से छल, मुदा ओहिसँ हटि कए हमर एकटा स्वस्थ, सुयोग्य लोकक समाज बनि गेल छल जाहिसँ तमाम कष्ट अभाव आ
संघर्षक बीच हमरा मोन लगैत छल। डा. सुभद्र झाजी गाहे-बगाहे इलाहाबाद अपन माझिल
पुत्र (भास्करजी)क ओहिठाम अबैत रहैत छलाह। हुनकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसरमे
डेरा छल। एकबेर करीब ११ बजे दिनमे हम सुभद्र बाबूसँ भेँट करए भास्करजीक डेरापर
गेलहुँ तँ डाक्टर साहेब कहलाह जे ओ लगातार ९ घन्टासँ अध्ययन कए रहल छथि। मैथिलीक
शब्दकोषसँ सम्बन्धित किछु काजमे लागल छलाह। एकबेर सुभद्र बाबूकेँ हम नोत देने
रहियनि। डेरासँ ओ असगरे विदा भेलाह। भास्करजी पाछाँ विदा भेलाह आ हमर नयाकटरा
स्थित डेरापर पहिने पहुँच गेलाह। सुभद्र बाबूक कोनो पता नहि छल। भास्करजी परेसान रहथि। हुनका ताकए हेतु एमहर, ओमहर वौआइत छलाह कि सुभद्र
बाबूकेँ नीचाँमे हमर नाम लए कए चिचियाइत सुनलहुँ। घर पहुँच कए कहए लगलाह जे गलतीसँ ओ बगलमे कनी हटि कए धोबी घाटपर चलि गेल छलाह। असलमे
ओ मकान धोबीक छल, से गप्प हम हुनका कहने रहियनि। कनी कालक बाद भाष्करजी सेहो आपस अएलाह आ तखन भोज-भात भेल। हमर डेरा
देखि कए सुभद्र बाबू कहथि जे केराक घौरमे जेना पातसँ पात
निकलैत अछि, तहिना तोरा डेरामे कोठरीसँ कोठरी निकलैत अछि। गप्पक क्रममे कहलथि जे
सेवानिवृत्तक बाद हेतु पाण्डिचेरीमे घर बनाबह। हुनका पाण्डिचेरी बहुत पसिन छलनि।
एहि तरहेंजखन-कखनो ओ इलाहाबाद अबैत छलाह तँ हमर-हुनकर भेँट-घाँट होइत रहैत छल, जे निश्चय आनन्ददायी छल।
“Life is
an endless struggle.
If you
stop struggling,
You are
firished.”
उपरोक्त कथन एकदम सत्य अछि। जीवन संघर्षक अन्तहीन यात्राक प्रत्येक डेग आगाँक यात्राक पथ प्रदर्शक
बनि जाइत अछि। एहन कमे लोक छथि जे बनल-बनाएल सभ किछु प्राप्त कए लैत छथि। मुदा
हुनका ओ आनन्द कदापि नहि भए सकैत छनि जे कठोर संघर्षक बाद प्राप्त
छोटो-मोटो उपलब्धिसँ होइत अछि। इमानदारीसँ परिश्रमक
कए जीवन-यापन करब तलवारक धारपर चलब थिक। लेकिन यदि
आदमीमे साहस होइत, दृढ़ निश्चय होइत, ईश्वरमे आस्था होइत तँ संघर्ष रंग लबैत अछि। कहबी छैक
जे “Say not the struggle availeth
not.” नहि कहू जे संघर्ष रंग नहि अनैत अछि, अबस्स अनैत अछि, देर-सबेर भए सकैत अछि। ताइ
लेल धैर्य चाही।
इलाहाबाद विश्वविद्यालयक प्रख्यात उपकुलपति स्व. ए.वी. लाल कहिओ काल साक्षात्कार
लेबए कर्मचारी चयन आयोग अबैत छलाह। ओही क्रममे कएक बेर हम हुनका ओहिठाम जाइत
छलहुँ। हुनकर घर गेलापर बहुत शान्तिक आभास होइत छल। हुनका धिआ-पुता नहि छलनि। पत्नी आ ओ अपने बहुत शान्तिसँ रहैत
छलाह। स्वभावक सरलताक कोनो वर्णन नहि। एकबेर भोपाल साक्षात्कारक क्रममे हम सभ
संगे अतिथि गृहमे रहल रही। भोपाल संगे घुमल रही।
दिल्ली अएला पश्चात कतेको दिनक बाद पता लागल जे हुनकर पत्नीकेँ
हुनके नौकर हत्या कए देलक। भेलैक ई जे ओ अपने कतहु बाहर रहथि। घरमे पत्नी असगरे रहथिन। आल्मीरासँ किछु
पाइ निकालि कए नौकरकेँ तरकारी आनक हेतु देलखिन। ओहि आल्मीरामे
रूपैआक गड्डी ओकरा देखा गेलइ। ओ लालचमे पड़ि कए कोनो भारी चीजसँ हुनकर माथपर चोट केलक जाहिसँ हुनकर ठामहि मृत्यु भए गेलनि। नौकरबा सभटा रूपैआ-पैसा लए कए फरार। ओहि नोकरक पिताकेँ आ ओकरो स्व. ए.बी.लालजी इलाहाबाद
विश्वविद्यालमे नौकरी धरओने रहथि। बहुत दिनसँ ओ सभ हिनका परिवारसँ जुड़ल छल।
मुदा लोभमे आबि गेल। सभ बफादारी मिनटोमे बिला गेलइ। मुदा फबलै नहि। पकड़ा गेल।
आजन्म काराबास भेलैक। मुदा एक निर्दोष आदमी तँ मारल गेल। वृद्धावस्थामे ए.बी.लालजीकेँ घोर कष्ट
लिखल रहनि।
“ऐ भाई जरा देख के...। आदमी से जानबर ज्यादा वफादार है..।”
जाहि व्यक्तिक पूरा परिवारकेँ ओ संरक्षण देने छलाह, आजिविकाक प्रबन्ध केने छलाह आ
संगे रखैत छलाह ओएह विश्वासघात कए गेल। भावी प्रवल।
ई जीवन बड़
विचित्र अछि। स्मृतिक आँगनमे जतइ ठाढ़ होइत छी, धँसि जाइत अछि। रंग-बिरंगक
घटनाक्रम सभ माथाकेँ गछारि लैत अछि। की लिखू, केतबा लिखू
आकि चुप्पे रहि जाउ। रंग-रंगक घटना क्रम सभ होइत रहल। नीको लोक सभ कालचक्रमे
पिसाइत रहलाह। एक सँ एक मुर्ख, गमार, बैमान आ उचक्काकेँ फलैत-फुलैत देखलिऐ। किछु नहि बुझाइत अछि जे आखिर
की-सँ-की भए जाइत अछि। निश्चय जीवन दू-दूना चारि नहि अछि।
भए सकैए कएक जन्मक हिसाब-किताब होइत होइक। सत्य की अछि,
से तँ भगवाने जानथि।
ओहि समयमे इलाहाबादक चर्चित व्यक्तिमे सँ एकटा छलाह, राम सहाय, सेवानिवॄत आइ.ए.एस.। ओ फौजी छलाह। फौजसँ सेवानिवृत्तिक पश्चात आइ.ए.एस.मे आएल रहथि। इलाहाबाद विश्वविद्यालयक उपकुलपति बनाओल गेल
रहथि। आओर कतेको महत्वपूर्ण पद सभपर ओ रहलाह मुदा हुनकामे अहं नामक चीज नहि छल।
हुनकासँ गप्प-सप्प केलासँ बहुत उत्साह होइत छल। एकबेर कोनो काजे हुनका ओहिठाम गेल
रही। हुनकर पत्नी नौकर-चाकरक अछैत स्वयं चाह बनौलथि, अपने हाथे चाह परसलथि आ गप्प-सप्पक
दौरान तेना कए मिलि गेलीह जे लगैत रहए कतेको बरखक पुरान जान-पहचान अछि। निरन्तर प्रसन्न रहैत छलाह। कखनो तनाव नहि। हम एहि प्रसन्नताक रहस्यक बारेमे पुछलिअनि तँ ओ कहलनि-
“एकर दूटा कारण अछि- पहिल तँ हमर पत्नी छथि जे निरन्तर हमरा संग दैत रहलीह आ दोसर हमर अहंकार रहित ब्यवहार।
हम एक सँ एक पदपर रहलहुँ मुदा सामनेबला व्यक्तिसँ बराबरीक ब्यवहार कएल। पदक अहंकार
हमरापर कहिओ हाबी नहि भेल। जखन जे समस्या आएल, ओकर तुरन्त ओ सरलतम समाधान करब हमर स्वभाव अछि। एहिसँ हमर माथ
निरन्तर चिन्तामुक्त रहैत अछि।”
एक दिन हुनका पैंट-सर्ट पहिरने कटरा स्थित लक्ष्मी
सीनेमा लग साइकिल चलबैत देखलिअनि। सीभील लाइन्ससँ कटरा साइकिलेसँ आबि गेल रहथि। ई चुश्ती-फुर्ती ओहि बएसमे कतए भेटत? एहन-एहन लोक पृथ्वीपर ईश्वरक
बरदान थिक। निश्चय किछु एहन नीक लोक सभ छथि जिनका भरोसे पृथ्वी माता सभ अन्याय सहि जाइत छथि आ जीवन चक्र चलैत
रहैत अछि।
इलाहाबाद विश्वविद्यालयक सहायक उपकुलपति टी.पतिजी
गणितक विद्वान छलाह। सीधा-सादा पएरे चलएबला व्यक्ति छलाह। कएक बेर साक्षात्कारक
क्रममे ओ कर्मचारी चयन आयोग अबैत छलाह। साक्षात्कारक बाद पएरे आपस भए जाइत छलाह।
लगेमे मिठाइक एकटा दोकान खुजल छल। पूरा आग्रह कए कए ओ मिठाइक दोकानपर लए जाथि। हुनका लगमे एकटा सूची रहैत छल जाहिमे
इलाहाबादक कोन मिठाइक दोकानमे कोन मधुर बढ़िआँ भेटैए तकर जानकारी छल। दोकानपर ओहि सूचीकेँ देखि ओ
मिठाइक आदेश करथि। बादमे ओ इलाहाबाद विश्वविद्यालयक उपकुलपति सेहो भेलाह।
असलमे इलाहाबाद विद्या, कला, संस्कृति आ अध्यात्म हेतु युग-युगसँ ख्यात रहल अछि। निराला, महादेवी वर्मा, पंत इत्यादि एक-सँ-एक विद्वान ओहिठाम भेलाह। एहन ऐतिहासिक स्थलपर रहि कए हमरा निश्चय बहुत आनन्द होइत छल। कार्यालयक उठा-पटकमे
ओतहि छोड़ि ओहिसँ हटि कए एकटा सुन्दर समाज हमरा उपलब्ध भए गेल छल।
आपति काल परेखिय चारी,
धरिज धर्म मित्र ओ नारी।
तुलसी बाबाक उपरोक्त कथनी एकदाम सटीक अछि। धैर्य अछि, अनवरत संघर्ष करबाक चेष्टा अछि,
तँ कोनो प्रश्न नहि अछि जे अहाँ गन्तव्य धरि नहि पहुँचब। अबस्से पहुँचब। आ सत्य पुछी तँ सही रस्तापर चलबाक संकल्प अपने आपमे विजयक आभास कए दैत अछि।
एकबेर हमर
ससुर इलाहाबद आएल रहथि। हुनका संगे हुनकर अनुज रहथिन। हमर
श्रीमतीजीकेँ आपसी यात्रामे नैहर जेबाक रहनि। टीसन जेबाक हेतु हम रिक्शा आनए गेलहुँ। कनिक्के दूर आगु कुकुर
काटि लेलक। तथापि रिक्शा अनलहुँ आ हुनका लोकनिकेँ विदा कए देलियनि। हुनका सभकेँ पता नहि चललनि जे हमरा कुकुर
काटि लेलक अछि, अन्यथा नहि जइतथि। आब हम असगर भए गेल रही। ओहि समयमे कुकुर कटला बाद
अँतरीमे १४टा नमका सूइ लगैत छलैक। एकबेर पहिनौं सुपौलमे १९७५ ई.मे हमरा कुकुर कटने
छल। १४ टा सूइ ओहि बेर पड़ल छल। मुदा ओहि सूइक कोनो विकल्प नहि छल। कोताही केलापर
रैबीज हेबाक डर छल। गाममे एक व्यक्तिकेँ रैबीजसँ मरैत देखने रही। से सोचि चिन्तामे पड़ि जाइत छलहुँ।
हमर डेरासँ १० किलोमीटर दूर नगरपालिका अस्पतालमे
रैबीजक सूइ लगैत छल। एक दिनक बाद सूइ लगबक हेतु जाए पड़ैत छल। ओहिमे कार्यालयक
एकटा कर्मचारी हमरा बहुत मदति केलाह। ओ अपन साइकिलसँ हमरा लए जाथि, सूइ लगबा देथि आ आपस डेरा धरि पहुँचा देथि। पेटमे सौंसे गुल्ठी
भए गेल छल। मकान मालकिन बोतलमे पानि गरमा कए दैत छलीह जाहिसँ पेटकेँ सेकल करी। क्रमश: ईहो समय बीति गेल।
पता नहि, कुकुरकेँ हमरासँ कोन जन्मक वैर छैक। तेसर बेर फेर दिल्लीमे आरकेपुरम डेराक लगमे
कार्यालयसँ आपस अबैत काल नान्हिटा कुकुर बहुत तेजीसँ हमरा दिस आएल आ झपट्टा मारलक। कुकुर तेसर बेर
काटि लेने छल। सभ काज छोड़ि कए चोट्टे सी.जी.एच.एस. जा कए सूइया लेलहुँ। ताबत सूइक आकार बदलि गेल छल। छोटका
सूइ मात्र ६ टा लेबाक छल। लगेमे सी.जी.एच.एस. छल, तेँ बहुत फेतरत नहि भेल। डाक्टरक कहब छलैक जे जतेक बेर कुकुर, बानर काटत ततेक बेर फेरसँ सूइ लेब
अनिवार्य अछि। आब तँ कुकुरकेँ देखिते साकंछ भए जाइत छी, जाहिसँ चारिम बेर सूइया नहि लेबए
पड़ए।
हम
इलाहाबादमे ९ साल रहलहुँ। चारि साल गुरुजीक मकानमे किरायेदार छलहुँ, १७ नयाममफोड़गंज, इलाहाबाद। तीन साल तँ निचैन भए कए रहलहुँ मुदा तकर बाद तंग करए लागल जे मकान खाली करू।
यद्यपि हम अपना भरि किराया समयपर देबक हेतु बहुत साकांक्ष रही। कोनो तरहेँ तंग नहि
करिऐक मुदा ओकरा मोनमे मकानक चिन्ता होइत रहए। डर होइ जे मकान चलि जाएत। कतबो बुझबिऐक
मुदा ओकर मोन नहि बुझि पबइ। हमरा ओहि मकानमे बहुत नीक लगैत छल। मुदा नित्य प्रतिक
झंझटसँ मोन तंग भए गेल आ कनी दूर हटि कए एकटा छोटसन मकान किरायापर लेलहुँ। ओकर किराया
अपेक्षाकृत कम छल। कोठरीक आगाँ बड़ीटा छत छल जाहिमे कुर्सी धए कए बैसार होइत छल। मकान मालिकक सेवानिवृत्त पुरातत्व विभागक अधिकारी छलाह।
बहुत सौम्य आ सहृदय व्यक्ति। हमरा सबहक बहुत
ध्यान राखथि। एहि डेरामे आबि कए बहुत शान्ति भेल। किराया कम रहलासँ उसास सेहो भेल।
लगभग २ साल हम ओहि डेरामे रहलहुँ।
हमर सबहक डेराक ठीक सामने ऊपरमे एकटा सज्जन सपरिवार
रहैत छलाह। हुनकर छोटसन बच्चा इसकुलमे पढ़ैत छल। इसकुलक सवक पूरा करबाक क्रममे ओ अपन बच्चाक जे दुर्गति
करैत छलाह जे बिसरल नहि जा सकैए। प्रति दिन पढ़ाइक अन्त मारि-पीटसँ होइत छल। पता नहि, ओहि बच्चाक की भविष्य भेल?
अपन जीवनक महात्वाकांक्षा ओ भूतकालक असफलताक चोट निर्दोष बच्चापर
बजारि कए अपने बच्चाक भविष्य नष्ट केनिहार ओ असगरे नहि छथि।
माता-पिताक ई बुझक चाही जे एहि तरहक ब्यवहारसँ बच्चाक दिमाग कुंठित भए जाइत अछि, असफलताक भाव ओकरा घेरि लैत अछि आ
एकटा व्यक्तित्व निर्माणसँ पहिनहि नष्ट भए जाइत अछि। एहने बच्चा सभ पैघ भए कुण्ठाग्रस्त
भए आन-आनसँ बदला लैत रहैत अछि।
एहने एकटा उदाहरण हमरा दिल्लीमे भेटल। हम गृहमंत्रालयमे अधिकारी छलहुँ। हमर निदेशक
महोदय प्रोन्नत आइ.ए.एस. अधिकारी छलाह। ब्यवहारमे बहुत कर्कस, बात-बातमे गारि देब हुनक स्वभाव
छल। बुझेबे ने करए जे एहि व्यक्तिक संग केना समय कटत? क्रमश: हुनकर व्यक्तित्व बुझएमे आएल, आपसी सम्पर्क बढ़ल तँ एकदिन कहलाह जे हुनकर एहन ब्यवहार ओ अशुद्ध भाषाक हेतु हुनकर
पिता जिम्मेदार छथि। हुनकर पिता पाकिस्तानसँ भारत आएल रहथिन। हिन्दू कालैज दिल्लीसँ पढ़ल रहथिन आ मंत्रालयमे अधिकारी रहथिन। बचपनमे
हुनका संगे बहुत सख्ती ओ गारि-मारि करथिन जाहि कारणेँ हुनकर स्वभाव एहन भए गेल जे
सबहक हेतु कष्टकारी छल। धिआ-पुताक संगे कएल गेल ब्यवहार ओकर व्यक्तित्वक अंग भए
जाइत अछि।
हमर एहि डेराक सामने भूतलपर गैरेजमे एकटा चतुर्थ वर्गीय
कर्मचारीक परिवार रहैत छल। नित्यप्रति साइकिलसँ ओ कार्यालय जाइत छल। कार्यालय जाइत
काल पूरा परिवार ओकरा विदा करैत छल। परिवारमे बुढ़ माए, पत्नी आ कएटा बच्चा सभ छल। ओतेक
छोट जगहमे सभ गोटे बहुत आनन्दसँ रहैत छल। साँझमे कार्यालयसँ ओकर आपसी पर परिवारमे
जोर-जोरसँ ठहाकासँ लग-पासक वातावरणमे अद्भुत आनन्द पसरि जाइत छल।
थोरेक दिनक बाद हमरा सभकेँ कार्यालयसँ सटले नयाकटरा
मोहल्लामे एकटा धोबीक मकान किरायापर
भेटल। ओहिमे भनसा घर छोड़ि कए तीनटा कोठरी छल, छत छल आ किराया सेहो ठीके-ठाक छल।
कर्यालयसँ पाँच मिनटमे घर आबि जाइत छलहुँ। नयाकटरा स्थित हमर डेराक मकान मालिक
धोबी छलाह। बड़ीटा परिवारमे किओ पढ़ल-लिखल नहि छल। सबहक मुखिया बुढ़िया माए छलैक।
एकबेर हम किरायाक रसीदक मांग कएल, जाहिसँ आयकर(इनकमटैक्स)मे छूट भेटैत। कनियेँ-कालमे जोरसँ
हल्ला भेल! पुछलिअनि जे की भेलैक? भेल ई रहैक जे किरायाक रसीदक
मांगसँ ओ सभ भयभीत भए गेल जे मकान हाथसँ गेल आ ताहि चिन्तामे आपसमे लड़ए लागल। हम हुनका कहलिअनि जे कहियौ जे रसीद नहि चाही। से
कहिते देरी तुरन्त एकदम शान्ति भए गेल। इलाहाबादक
प्रसिद्ध गणितज्ञ स्व. गणेश प्रसादक ओ सभ धोबी छल आ ओएह मकान बनबएमे मदति केने रहथिन। क्रमश: ऊपरमे किछु आओर
कोठरी सभ बनओलक जाहिमे हम किरायेदार छलहुँ।
सटले वगलमे श्रीवास्तवजी रहैत छलाह। ओ सभ बहुत नीक
लोक छलाह। कहिओ काल टीवी देखबाक इच्छा भेलापर हम सभ ओहिठाम चलि जाइत रही। चित्रहार
सप्ताहमे दू दिन होइत छल। टीभी देखू आ चाहो पीबू। पहिल बेर चन्द्रमापर गेल
भारतीयसँ इन्दिरा गाँधीजीक वार्तालापक सद्य प्रसारण हम ओतहि देखने रही। क्रमश:
टीभीक चलन बड़ी तेजीसँ बढ़ि रहल छल। घरे-घरे टीभीक एन्टिना टँगाइत छल। सभ दोकानपर
टीभी बिकाइत छल। हमर ज्येष्ठ पुत्र ‘भास्कर’
छतपर लए जाथि आ सभ घरपर लागल एन्टिना देखाबथि। हमहु दोकान सभपर टीभीक मूल्यक सर्वे करैत रहलहुँ। कारी, उज्जर (स्वेत-श्याम) टीभीक जमाना
छलैक। ओकरा रंगीन टीभीमे परिवर्तित होबए-मे बहुत समय लागि गेल।
इलाहाबादक फगुआ बहुत आकर्षक होइत छल। पुरुकिया आ नाना
प्रकारक पकवानक संग रंगमे सराबोर शहर मदमस्त ढंगमे फगुआ मनबैत छल। लॉडस्पीकरसँ
पूरा मोहल्ला हल्ला होइत रहैत छल आ झुंडक-झुंड लोक सभ रंग खेलाइत एक
ठामसँ दोसर ठाम अबैत-जाइत रहैत छलाह। गाम-घरमे जहिना पहिने फगुआ मनाओल जाइत छल, लगभग ओहिना इलाहाबादोमे धूम
धर्ड़क्का होइत छल। आब तँ गामोमे फगुआ नि:शब्द भए गेल अछि। झालपर फाग सुनबामे
नहि अबैत अछि। जोगीरा नहि गाओल जाइत अछि। शराब बन्दीक बाद डगमग-डगमग चलैत लोक सभ
देखबामे नहि अबैत अछि। फगुआ दिन गाम फोन कएल तँ पता लागल जे सभ किछु शान्त अछि। कोनो धू-धर्ड़क्का नहि। सभ
अपन-अपन असोरापर बैसल पुरुकिया आ मालपूआक आनन्द लैत छथि।
इलाहाबाद प्रवासक महत्वपूर्ण घटनाक्रममे हमर कनिष्ठ
पुत्रक जन्म छल। जन्मक समय लगीच अएलापर माए गामसँ अएली। कमला नेहरू अस्पताल- इलाहाबादक
प्रख्यात अस्पताल अछि। ओहीठाम हुनका भर्ती कराओल गेल। माए संगे रहथि। २-३ दिन
रहलाक बाद डाक्टर सभ अस्पतालसँ ई कहि कए आपस कए देलक जे अखन समय लागत। मूल कारण अस्पतालक हड़ताल
रहैक, जाहि कारणसँ
मरीज सबहक देख-रेख कठिन भए गेल छल। घर पहुँचले रही कि तुरन्त दोबारा अस्पताल जाए पड़ल। अस्पतालमे बहुत कम डाक्टर छलाह। हड़ताल चलिते रहए। सी.जी.एच.एस.सँ हुनका हेतु
दबाइक बोतल सभ अनने रही। ओहिमे सँ एकटा चढ़बति देरी स्वस्थ्य खराप होबए लागल। रच्छ भेल जे एहि गड़बड़ीक तुरन्त पता लागि गेल आ डाक्टर सबहक तत्परतासँ हुनकर जान बँचि गेल।
डाक्टर सभ विचार-विमर्श कए कए कहलक जे शल्य चिकित्सा द्वारा बच्चाक जन्म होएत। ताहि लेल प्रात:काल भोरेसँ अस्पतालमे
तैनात रही। डाक्टरक परामर्शक अनुसार शल्य चिकित्साक सामग्री सभ
कीनलहुँ। अस्पतालमे बेहोशी डाक्टरकेँ नहि रहबाक कारण ऑपरेशनमे देरी भए रहल छल।
एलेनगंजमे डाक्टरक घरपर जा कए बहुत प्रयास केलहुँ, मुदा जखने हुनका आबक इच्छा भेलनि
तखने अएली। ऑपरेशन टीमक नेतृत्व डा. शशिवाला श्रीवास्तव करैत छलीह। ओ इलाहाबादक सफल तथा नामी डाक्टर छलीह। हम हुनकर पिताक किरायेदार रहल रही। ऑपरेशनक समयमे हमर कार्यालयसँ
कएक गोटे उपस्थित रहि भरपूर मदति केलाह जाहिमे श्री संजीव सिन्हाजीक योगदान
अविस्मरणीय अछि। ओहि समयमे हमर आधा परिवार हुनके ओहिठाम रहैत छल। हमर ज्येष्ठ
पुत्र चि०भास्करक परीक्षा भए रहल छलनि। ओहि समयमे हुनक पत्नी(श्रीमती स्मृति सिन्हाजी) पूरा भार उठेने रहलीह जाहिसँ ओ ओतहि रहि परीक्षा
नीकसँ दए सकलाह।
किछु कालक बाद एकटा नर्स हँसैत बाहर निकलल आ
पुत्र-जन्मक सूचना देलक। २० अप्रैल १९८५ क ११:३0 मिनटपर हमर छोट पुत्र क्षितिजक
जन्म भेल। एहिसँ कतेक आनन्द भेल, तकर वर्णन नहि कएल जा
सकैत अछि। तुरन्त निजी वार्डमे कोठरीक ब्यवस्था
कएल आ बच्चाक संग जच्चाकेँ ओतए आनल गेल। दिन भरि भुखल रही। संगम जा कए हनुमानजीक दर्शन केलाक बादे भोजन कएल। तकर बाद तँ देखनिहरक ढवाहि लागि गेल।
इलाहाबादक ई विशेषता थिक जे लोकमे भावुक लगाव बेसी होइत छैक, आ बेरपर आनो-आनो लोक ठाढ़ भए जाइत
अछि। अगल-बगलमे रहएबला पड़ोसी, परिचित,
कार्यालयक सहकर्मी, अधीनस्थ कर्मचारी सभ एकाध बेर अस्पताल अबस्स अएलाह।
इलाहाबादमे आकाशवाणीमे कार्यरत कार्यक्रम अधिकारी डा.
श्याम विद्यार्थीजी सँ आकाशवाणी युववाणी कार्यक्रमक रिकर्डिंगक दौरान भेँट भेल।
सकारात्मक सोच ओ सरल स्वभावक कारण हुनकासँ अनायासे मित्रता भए गेल। यदाकादा
आकाशवाणीसँ हमर कार्यक्रम होइत रहैत छल। स्थानीय अखबारमे सेहो कएकटा लेख कहिओ काल
छपैत छल। कार्यालयक बाद हमर ई सभ मनोरंजन छल। डा. श्याम विद्यार्थी राजस्थानक
रहनिहार छलाह आ संघ लोक सेवा आयोगसँ आकाशवाणीमे राजपत्रित पदपर नियुक्त भेल छलाह।
ओहि समयमे डा. मधुकर गंगाधर आकाशवाणीक निदेशक छलाह। ओ पूर्णियाक छलाह आ किछु दिनक
बाद स्थानान्तरित भए दिल्ली चलि गेलाह।
पटनासँ निकलैबला प्रसिद्ध मैथिली सप्ताहिक “मिथिला मिहिर”मे हमर कएकटा कथा, लेख आ कविता सेहो छपल।
बादमे मिथिला मिहिर बन्द भए गेल आ हम दिल्ली स्थानान्तरित भए गेलहुँ। तकर बाद एहि तरहक गतिविधि कम भए गेल।
कार्यालयक वागवानीक देख-भालक हेतु एकटा नैमित्तिक कर्मचारी
छल। ओ गाहे-बगाहे हमर बच्चा सबहक मनोरंजन सेहो करैत रहैत छल। ओकर खूबी ई छल जे
प्रत्येक बातमे ओ कहैत ‘यस सर!’। एक दिन ओकरा पुछलिऐ जे तूँ ई कला कतए सीखलह? कहलक जे पूर्वमे ओ एकटा बहुत पैघ
अधिकारीक ओहिठाम काज करैत छल। ओएह ओकरा ‘यस सर!’ कहबाक
आदति लगा देलखिन। जँ ओकर खिलाफो कोनो बात होइत तँ ओकर उत्तर ओ ‘यस सर!’ मे
दैत छल।
असलमे ‘यस सर!’
सरकारी कार्यालयक रामवाण थिक। केहनो संकटसँ अहाँ ‘यस सर!’क सहयोगसँ उबरि सकैत छी।
सरकारी कार्यालयमे अधिकारी सभकेँ काजसँ बेसी हुनकर अहं तुष्टि जरूरी होइत अछि।
अहाँ दिन राति काज करू आ अधिकारीसँ अहंक टकरावमे फसि गेलहुँ तँ सभ गुड़-गोबर। नीक ब्यवहार तँ उचित थिक, मुदा बात एतबेपर नहि थमि जाइत
अछि। जी-हजुरीक बिना नीक कार्य मूल्यांकन नहि होइत अछि। एहन किओ बिरले हेताह जे काजक आधारपर श्रेष्ठता
तय करैत हेताह।
जीवनमे सभ किछु गणितीय गणना जकाँ नहि चलैत अछि। सभ
किछु सोचले नहि होइत अछि आ जे भए जाइत अछि से कए बेर अप्रत्याशित रहैत अछि।
प्रातर्भवामि
बसुधाधिप चक्रवर्ती
सोहं व्रजामि विपिने जटिल तपस्वी।
भगवान राम द्वारा कहल उपरोक्त वाक्य हमरा-अहाँपर
ओहिना लागू होइत अछि। जे हेबाक छैक से होएत। होनी किओ रोकि नहि सकैत अछि। तथापि जीवनमे हाथ-पर-हाथ धए बैसलो नहि जा सकैत अछि।
दरभंगासँ दिल्ली नौकरी करए गेल रही। ओहिठामसँ थोड़बे दिनमे प्रयास कए कए इलाहाबाद आबि गेलहुँ आ एहिठाम ९ वर्ष रहलहुँ। आब
अपनो आश्चर्य लगैत अछि जे केना ओहि वातावरणमे एतेक दिन रहि सकलहुँ। असलमे कार्यालय
तँ जे छल से छल, मुदा बाहर एकटा नीक सामाजिक
परिवेश बनि गेल छल जाहिसँ बहुत भावनात्मक समर्थन भेट जाइत छल। आ कहबी छैक जे
अन्हेर गाएक राम रखबार।
अन्तिम २ साल जे निदेशक छलाह, हुनकासँ हमरा एकदम नहि पटल।
यद्यपि हम परिश्रम पूर्वक ओ इमानदारीसँ काज करी तथापि ओ असन्तुष्ट रहथि आ तंग करथि। हमर बदली
हेतु दिल्ली मुख्यालय लीखि देलखिन। हम दिल्लीसँ डराइ जे केना गुजर होएत, तेँ ओहनोमे इलाहाबादे रहए चाही मुदा से नहि भेल आ फरबरी
१९८७ मे हमर स्थानान्तरण दिल्ली गृह मंत्रालय भए गेल।
इलाहाबाद हमरा गाम-घर लगैत छल। बहुत नीक समाज भए गेल
छल। कार्यालयमे कनी-मनी झंझट तँ सभठाम रहिते छैक, ओकरा सहिए रहल छलहुँ। बच्चा छोट रहए। हम
ओहिठामसँ हटए नहि चाही, परन्तु निदेशक महोदय हाथ धो कए हमरा पाछू पड़ल रहैत छलाह। कार्यालयमे दू गुट छल। स्पष्टत:
ओ हमर घोर विरोधी गुटक संग भए गेल छलाह। वरिष्ठ अधिकारीक हेतु ई उचित नहि छल, मुदा हुनका हमरा खिलाफ किछु भेटनि
नहि तेँ खिसिआएल बिलाड़ि जकाँ...। विरोधी सभकेँ
हमरा खिलाफ हावा देथि। हमरासँ काज हटा कए विरोधी खेमाकेँ दए देथि। मुदा लोक हमरा संगे जे छल से छल, हुनका डरे हटल नहि, मुदा हुनका हाथमे प्रशासकीय चाबुक छल, जकर गलत
उपयोग ओ हमरा परास्त करए लेल करथि।
बदलीक खिलाफ हम अध्यक्ष, कर्मचारी चयन आयोगकेँ आवेदन देल।
हम ईहो लिखलिऐ जे जँ बदली होइक तँ हमर घोर विरोधीक सेहो होनि मुदा निदेशक ओकर पक्ष लए लेथि। असलमे निदेशकजीकेँ हमरासँ
डर होइन। एकबेर ओ कहलाह जे हम घरेमे रही आ ओ हमरा पूरा दरमाहा दए देल करताह। मुदा हम कहलिअनि जे काज करब हमर अधिकार अछि। बिना
काज केने हम वेतन किएक लेब?
एहि विषयपर अध्यक्ष, कर्मचारी चयन आयोगसँ दिल्लीमे हम भेँट केलहुँ। ओ भेँट करएकाल
तुरन्त एकटा अधिकारीकेँ बजा लेलाह जे इलाहाबादमे पूर्वमे
रहथि आ निदेशकसँ परिचित छलाह। परिणाम भेल जे अध्यक्षजीसँ भेल हमर सभटा गप्प
इलाहाबाद निदेशकजीक कानमे चलि गेलनि। हम ओतेक खुलि कए हुनकासँ गप्पो नहि कए सकलहुँ।
इलाहाबाद आपस अएलहुँ तँ निदेशकजी ततेक घबड़ाएल छलाह जे स्वयं हमर कक्षमे पहुँचला आ रंग-रंगक
आश्वासन देबय लगलाह। मुदा सचमे ओ डरा गेल रहथि। डरेबाक हेतु ओ स्वयं जिम्मदार छलाह। हम तँ अपन आस्तित्वक हेतु संघर्षशील
रही। अन्ततोगत्वा हमर इलाहाबादसँ बदली भए गेल।