मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

जीवन चक्र   



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जीवन चक्र   

जखन मनुखक जन्‍म होइत अछि तखन ओकरा संग साँसरहैत अछि परन्‍तु कोनो नाम नहि, मुदा जखन ओकर मृत्‍यु होइ छै तखन ओकरा संग नामरहैत अछि परन्‍तु साँस नहि। साँसनामक बीचक ऐ यात्राक नाओं जीवन थिक। आब सबाल अछि जे ऐ जिनगीकेँ अहाँ केना जीबै छी, एकर की उपयोग करै छी...।

केतेको गोटे स्‍वनिर्मित अभावमे जीबैत रहै छैथ आ ताजन्‍म ओकर प्राप्‍ति हेतु सफल, असफल  चेष्टा करैत रहै छैथ। केतेको गोटे केकरो चेला भऽ जाइ छैथ, केकरो समर्थक किंवा अनुरागी भऽ जाइ छैथ, आ आँखि मुनिकऽ पाछाँ-पाछाँ चलैत रहै छैथ। जाबे होश होइ छैन ताबे कएकबेर साए हाथ एहींर-रूद्यसँ अवाज लगबैत रहै छैथ।

समस्‍त जीव-जन्‍तुकेँ प्रकृतिक वरदान स्‍वरूप जीवन भेटैत अछि। छोट वा पैघ जिनगी जेकर जे छै से जीवैत अछि आ चलि जाइत अछि। एकटा  मनुक्खे अछि जे नाना प्रकारक फसादमे पड़ि जीवनक आनन्‍दसँ कएकबेर वंचित रहि जाइत अछि।

जीवनक प्रादुर्भाव एवम्‍ ओकर विकास यात्रा एकटा आश्चर्यजनक प्रक्रिया अछि। छोटसँ छोट कीड़ी-मकौड़ीसँ लऽ कऽ हाथी-मगरमच्‍छ सन-सन विशालकाय जीव सभ ऐ निर्माण एवम्‍ विकासक प्रक्रियामे सहयोगी अछि। नान्‍हिटा चुट्टीकेँ देखियौ- अनवरत चलैत रहैत अछि। ओकर रस्‍तामे व्‍यवधान करियौ, रस्‍ता बदैल लेत मुदा ठाढ़ नहि हएत। पंक्ति वद्ध हजारक हजार चुट्टी चलिते जाइत अछि। केतए जा रहल अछि? प्राय: जीवनक खोजमे निरन्‍तर प्रयत्नशील रहैत अछि। प्रकृतिमे स्‍वत: सोभाविक रूपसँ जीव मात्रक जीवन रक्षा एवम्‍ आवश्‍यकता पूर्तिक वैज्ञानिक बेवस्‍था अछि।

जइ जीवकेँ जेहेन आवश्‍यकता अछि, तइ प्रकारक शरीरक रचना भेल अछि। केकरो पैघ दाँत अछि तँ केकरो पैघ सूढ़। केकरो शरीरपर काँट सन-सन रौंआँ लागल रहैत अछि। प्रकृति माता अपन समस्‍त सन्‍तानक जीवन-रक्षाक अद्भुत बेवस्‍था केने छैथ।

ऐ संसारमे निरन्‍तर किछु-ने-किछु घटित होइत रहैत अछि। सामान्‍यत: हमरा लोकनि निरपेक्ष रहैत छी। जे होइ छै से होइ छइ। बात तखन बदैल जाइत अछि, जखन ओइ घटनाक सम्‍बन्‍ध अपनासँ होइत अछि। नाना प्रकारक जीव-जन्‍तु जन्‍मैत अछि, मरैत अछि, मुदा हमरा लेल धनि सन। मुदा जौं परिवारमे खास कऽ अपन लोककेँ सन्‍तानक जन्‍म होइछ तँ लोक उत्‍साहित भऽ जाइत अछि। आनन्‍द मनबए लगैत अछि। नाच-गान करैत अछि। वएह हाल मृत्‍युक संगे होइत अछि। दिन-राति लोक मरैत अछि। कोनो चर्चा नहि होइत अछि। जे मरलै से मरलै, हम थोड़े मरब। सभकेँ मरितो देख लोककेँ अपन मृत्‍युक अन्‍दाज नहि भऽ पबैत छइ। तइ मानसिकताक कारण जँ निकटक बेकतीक मृत्‍यु भऽ जाइत अछि तँ लोक हतप्रभ भऽ जाइत अछि। लोक भगवानकेँ दोष देबए लगैत अछि।

एकबेर हम डॉ. शुभद्र झाजीक संगे इलाहावाद पएरे केतौ जाइत रही। रस्‍तामे पुछलिऐन-

अहाँक हिसाबे भगवान छैथ कि नहि?”

ओ कहला-

हमरा हिसाबे तँ भगवान नहि छैथ आ जौं छैथ तँ बड़ बइमान छैथ।

पुछलिऐन-

से किएक?”

ओ आगू कहला-

पेटमे जे बच्‍चा मरि जाइत अछि, तेकर कोन दोष? आ जँ दोष रहिते छै तँ ओकर जन्‍म होबए दितथिन आ तखन ओ अपन कर्मक फल भोगैत। पेटेमे मरि जेबाक की औचित्‍य?”

खाएर जे छै छै मुदा मृत्‍यु तँ होइते रहै छइ। ओइपर केकरो बस नहि रहल आ ने हएत।

लोक केतए-सँ आएल, केतए जाएत? ई शाश्वत प्रश्‍न अछि। लोक नित्‍य-प्रति उठैत अछि, ऐ उमेदमे जे ओ अहिना रहत, मुदा सत्‍य तँ यएह अछि जे साँझ धरि जीवनक एक दिन कम भऽ गेल रहैत अछि।

मृत्‍यु एक दुखद प्रसंग अछि निकट सम्‍बन्‍धीसँ समाजिक, परिवारिक सम्‍पर्कक एकाएक पूर्ण विराम लागि जाइत अछि। कएक बेर मृत्‍युक भयसँ चिन्‍ता, अवषाद वा निराशाक भाव पसैर जाइत अछि। किछु लोककेँ मृत्‍युक बाद पूर्व कर्मक अनुसार स्‍वर्ग वा नर्क जेबाक चिन्‍ता सेहो ग्रसित केने रहैत अछि।

मृत्‍युक कारण अनेको भऽ सकैत अछि। दुर्घटना, विमारी, हत्‍या, आत्‍म हत्‍या आ से सभ नहि तँ वृद्धावस्‍था। उम्रक संग-संग जीवन रक्षक तत्व सभ घटि  जाइत अछि। विमारीसँ प्रतिरोधक क्षमता क्षीण भऽ जाइत अछि। शरीरक अंग प्रत्‍यंग क्रमश: काज केनाइ छोड़ि दैत अछि, जेकर परिणति मृत्‍युमे भऽ जाइत अछि।

कहबी छै जे टिटही टेकल पर्वत।चिड़ै अपन टाँग उन्‍टा अकास दिस कऽ कऽ सुतैत अछि, जे जँ अकास खसत तँ ओ रोकि लेत। यएह हाल मनुखक अछि। सौंसे जिनगी अपसियाँत रहैत अछि जे ओकरा बिना दुनियाँक काज नहि चलत ओ रहत तखने कोनो काज हएत अन्‍यथा दुनियाँ ठामहि धँसि जाएत। मुदा जीवनक सत्‍य किछु आर अछि।

केकरो लेल ई दुनियाँ ठाढ़ नहि रहैत अछि। जखन जवाहर लाल नेहरू प्रधान मंत्री छला तँ लोकमे चर्चा होइक जे नेहरूजीक बाद देश केना चलत? मुदा ई चिन्‍ता व्‍यर्थ साबित भेल। देश चलि रहल अछि।

लोक अबैत अछि, जाइत अछि, परन्‍तु संसारक चक्र निरन्‍तर गतिमान रहैत अछि। समय केकरो प्रतीक्षा नहि करैत अछि। भोर, साँझ, इजोरिया, अन्‍हरिया अनवरत होइत रहैत अछि। जीवन-यात्राक केतौ-ने-केतौ अन्‍त तँ भेनाइए अछि। केतेक बेर लोक स्‍वयं थाकि जाइ छैथ, ओ विश्रामक निरन्‍तरता हेतु स्‍वत: मृत्‍युकेँ आलिंगन कए लैत छैथ। उदाहरण स्‍वरूप आ. विनोव भावे जे अनशन कए प्राणक त्‍याग कए देलैन।

स्‍वामी विवेकानन्‍द, आदि शंकराचार्य सन-सन महान अध्‍यात्‍मिक बेकती सभ कमे उमेरमे चलि जाइत रहला। महात्‍मा गाँधी सन त्‍यागी ओ निष्‍ठावान बेकतीक हत्‍या कऽ देल गेल। तीन-तीन गोली लगलाक बाबजूद ओ राम-राम कहैत प्राणक त्‍याग केलैन। अस्‍तु मृत्‍यु कखन, केकरा केना हएत एवम्‍ कोन परिस्‍थितिमे हएत तेकर कोनो ठेकान नइ अछि मुदा ई बात पक्का अछि जे मृत्‍यु हएत, जखन हो, जेना हो, जेतए हो। गीतामे तँ कहल गेल अछि जे मृत्‍युक समय ओ स्‍थान पूर्व निर्धारित अछि।

विज्ञान एवम्‍ तकनीकीक विकाससँ जीवन एवम्‍ मृत्‍यु सेहो प्रभावित भेल अछि। पहिने मामूली विमारीसँ लोक मरि जाइत छल। सुलबाई, मलेरियाक कोनो इलाज नहि छल। हैजा, तपेदिक सन संक्रामक विमारीसँ गामक-गाम सुडाह भऽ जाइत छल। क्रमश: तरह-तरह केर दबाइक अविष्‍कार भेल। लोकक आयुमे इजाफा भेल। लेकिन नव-नव आर केतेको घातक विमारी सभ बाहर भऽ गेल, जेकर तोड़ विज्ञानक पास नहि अछि।

अस्‍पतालक सुविधा एवम्‍ चिकित्‍साक बेहतर उपलब्‍धिसँ लोक कएबेर स्‍वस्‍थ भऽ दीर्घ जीवनकेँ प्राप्‍त केलक मुदा केतेको मामलामे विमार बेकती अस्‍पतालेमे घिसियौर कटैत रहै छैथ। ने ऐ पार ने ओइ पार।अत्‍यन्‍त बेमार बेकतीकेँ इच्‍छा मृत्‍युक मांगक चर्चा होइत रहैत अछि। कहक मतलब जे विज्ञानक पराकाष्‍ठा मृत्‍युक पुरुषार्थकेँ कम नहि कऽ सकल।

समयक चपेट तेहेन निरन्‍तर ओ प्रवल अछि जे एकर परिणामक कल्‍पनो नहि कएल जा सकैत अछि। जहिना परमाणु बमसँ विध्‍वंस होइत, आ गामक-गाम लुप्‍त भऽ जाइत, समयक अचूक आघात/प्रतिघात कोनो बमसँ कम नहि अछि। सौंसे गामसँ घरे-धरे लोक बिला गेल। गनि कऽ देखल जाए तँ साइदे कियो पुरान लोक भेटता, केतए गेला सभ गोटे। मुदा परमाणु बमक विध्वंस मात्र अनिष्‍टकारी होइत अछि, बाल-बच्‍चा, वृद्धमे कोनो विभेद नहि कऽ पबैत अछि। विनाशक बाद दूर दूर तक श्रृजनक संभावना नहि रहि जाइत अछि।

प्रकृति प्रदत्त विनाशक संगे श्रृजन भाए-बहिन जकाँ संगे चलैत अछि। जँ एकटा पात झड़ैत अछि तँ दसटा हरियर कंचन पल्‍लवसँ गाछ समृद्ध भऽ जाइत अछि। लोक बीतल बातकेँ बिसैर आगाँक तैयारीमे लागि जाइत अछि।

अद्वैतवादीक अनुसार आस्‍तित्‍व केवल अनन्तक  अछि, शेष सभ माया थिक। कोनो जड़ वस्‍तुक यथार्थ व्रह्म छैथ, एवम्‍ प्रकारेण जीवन रहए नहि रहए, ओकर आस्‍तित्‍वपर अन्‍तर नहि होइत अछि। 

समं पश्‍यन् सर्वत्र समवस्‍थितमीश्वरम्।

न हिनस्‍त्‍यात्‍मनात्‍यानं ततो याति परांगतिम्।।

                (गीता १३/१८)

जे सर्वत्र ईश्वरकेँ सभ भावसँ सर्वत्र अवस्‍थित देख ओ आत्‍मा द्वारा आत्‍माक हिंसा नहि करै छैथ, से मुक्त भऽ जाइ छैथ।

कहक माने जे मोनेक ऊपर सभ बात निर्भर करैत अछि। घटनासँ बेसी ओइपर हमर दृष्‍टिकोणसँ ओकर महत्‍व कम बेसी भऽ जाइत अछि। जीवनमे जहिना तरह-तरहक घटना घटित होइत रहैत अछि, तहिना जन्‍म ओ मृत्‍यु सेहो होइते रहैत अछि। समस्‍या घटनासँ नहि अपितु घटना विशेषक लगावसँ होइत अछि।

इहैब तैर्जित सर्गो येषां साम्‍ये स्‍थितं मन:

निर्दोष हि समं ब्रह्म तस्‍मात्‍ ब्रह्मणि ते स्‍थित:

गीता ५/१९

जिनकर मन साम्‍यभावमे अवस्‍थित अछि, ओ ऐठाम जीवन मृत्‍युक संसारचक्रकेँ जीत लेलाह अछि, चूँकि ब्रह्म निर्दोष ओ सर्वत्र  सम छैथ, अस्‍तु ओ ब्रह्ममे अवस्‍थित छैथ। कहक माने जे मोनमे नीक भाव होइ तँ मनुक्खे जीवन-मरणक प्रभावसँ हटि ब्रह्मलीन भऽ जाइत अछि। जीवनमे प्रतिपल परिवर्तन होइत रहैत अछि। लोकक सोच समयक संगे बदलैत रहैत अछि। जइ बातकेँ लोक बच्‍चाक समयमे नीक कहैत अछि, मुदा पैघ भऽ ओही बातपर ओकर विचार बदैल जाइत अछि। वृद्धकेँ युवावस्‍थाक गप-सप्‍प सोचि हँसी लागि जाइत छइ। कहक माने जे मनुखक मौखिक अस्‍तित्‍व निरन्‍तर बदैलते रहैत अछि। जँ कोनो उपायसँ मृत्‍युपर बस चलितै तँ कोनो बड़का आदमी नहि मरैत। धन्ना सेठ सभ अमर बुटी खा-खा कऽ अमर भऽ जाइत आ गरीब, गुरबा सभ नहि जीबैत। मुदा मृत्‍यु एकटा एहेन प्रश्‍न चिन्‍ह अछि जेकर जवाब केकरो लग नहि अछि। राजा, रंक आ फकीर सभ हतप्रभ भऽ एकरा स्‍वीकार करैत अछि, कोनो विकल्‍पो नहि छइ।
हम सभ बच्‍चामे सुनिऐ- पुरान घर खसे, नव घर उठे। ई फकरा जीवन-मरणक चक्रपर पूर्णत: लागू होइत अछि। जहिना बुढ़-पुरान लोक सभ चलि जाइ छैथ, ओहिना किंवा ओहूसँ बेसी तेजीसँ नव जीवनक सृजन होइत अछि। जहिना पतझड़क बाद नव पल्‍लवसँ गाछ वृक्ष हरियर भऽ जाइत अछि, ओहिना गाम-घर नवजात शिशुक जन्‍मसँ हरल-भरल रहैत अछि। अर्थात्‍ सभ जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ। जे हेबाक छैक से होइत अछि। ऐपर माथा-पच्‍ची व्‍यर्थ। कियो जीविते सुसम्‍पन्न परिवारक अंग भऽ जाइत अछि, तँ कियो रस्‍ता कातमे जन्‍मेसँ समय बितबैले मजबूर भऽ जाइत अछि। रामकृष्‍ण परमहंशसन महात्‍मा कैंसरसँ पीड़ित भऽ असाध्‍य कष्‍ट भोगलैथ। महात्‍मा गाँधी सन शान्‍तिक समर्थक हिंसाक शिकार भऽ गेला आ हत्‍याराक गोलीसँ हुनक मृत्‍यु भेल।

ई सभ देख-सुनि मानए पड़त जे एक्के जन्‍मक नहि अपितु अनेकानेक जन्‍मक कर्मफल मनुक्खे पछोर केने रहैत अछि। केतेक मनुख साधारण प्रयास करिते लक्ष्‍य प्राप्‍त कए लइ छैथ तँ कियो जीवन भरि कष्‍टमे रहि कऽ दुनियासँ चलि जाइ छैथ। ई सभ केना आ किएक होइत अछि, तेकर सटीक उत्तर देब बड़ कठिन अछि। मुदा भाग्‍यक विचित्रताक कोनो जवाब नहि अछि।

भाग्‍यं फलति सर्वत्र, न विद्या न च पौरुष:।

पैछला-ऐगला जन्‍म कियो देखलक नहि, मात्र अनुमाने लगौल जा सकैत अछि मुदा वर्तमान जीवनमे जे किछु देख-सुनि रहल छी से आश्चर्यसँ भरल अछि।

निमत्त मात्रं भव्‍य साचिन।

जन्‍मसँ प्रारम्‍भ आ मृत्‍युसँ अन्‍त होइत ऐ जीवन-यात्राक पुनरावृति हएत, नहि हएत...। तैपर तरह-तरहक मत अछि। मुदा ई तय अछि जे ऐ जीवनमे बहुत किछु देखबा-सुनबामे अबैत अछि, जइसँ वर्तमान जीवनकेँ सुखी ओ शान्‍त कएल जा सकैत अछि। अशान्‍तस्‍य कुतो सुखम्‍!

अस्‍तु हमर पूर्वज लोकनि शान्‍तिक हेतु प्रार्थना करैत रहला।

जे किछु ऐ जीवनमे प्राप्‍त अछि, से अपना आपमे अद्भुत अछि, अद्वितीय अछि।

आगाँ के देखलक अछि
?




१४.४.२०१७  







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