शुक्रवार, 30 मई 2025

लाउडस्पीकर बजैत रहल

 

 

लाउडस्पीकर बजैत रहल

लाल मुरेठा बन्हने हाथमे ड़डा लेने अंट-संट बजैत एकटा युवक आ लगपासमे हतप्रभ किछु लोकसभ।

“अकस्मात ई कतए सँ आबि गेलैक?ई छै के?”

 हम अपन मधुबनी डेरासँ सभटा देखि रहल छलहुँ। ततबे मे ओ पंडितजीकेँ पिटाई सेहो कए देलक आ चिकरिते रहि गेल-

“सामने आबि जो जकरा हिम्मति होउ। आइ नओ-छओ भइए जाए।”

थोड़बे कालमे कनीके काल पहिने बंद भेल लाउडस्पीकर फेरसँ आर बेसी जोरसँ बाजए लागल। ओ युवक विजयी मुद्रामे थोड़े काल ओतहि घुमैत रहल,बड़बड़ाइत रहल। लोकसभ चुप-चाप सभटा देखैत रहि गेल। ककरो प्रतिरोध करबाक साहस नहि भेलैक।ओकर चिकरब-भोकरब सुनि किछु गोटे ओहि ठामसँ घसकिओ गेल।

हमरा बात बुझबामे देरी नहि भेल। ओ युवक स्थानीय दबंग छल जकरा डरे हनुमान मंदिरक पुजारी आ आसपासक लोकसभकेँ अबाज बंद छलनि।

ई बात अछि छओ अप्रैल २०२५क।असलमे करीब घंटा भरि पहिने हम सगर राति दीप जरए कार्यक्रमसँ वापस आएल रही।राति भरिक जगरना छल। देह काज नहि कए रहल छल। भेल जे चाह पिअब तखन किछु उसास होएत। ताहि लेल रस्ते सँ दूध लेने आएल रही। छोटू आटो बलाकेँ पहिने कहने रहिऐक। ओ दूधक दोकान लग आटो रोकलक। दूध लेलहुँ।लगीचे मे सजमनि बिका रहल छलैक। सेहो कीनलहुँ आ डेरा वापस आबि गलहुँ। मुदा एहि ठाम तँ श्रीमतीजीक हालति बहुत खराप छलनि। ओ राति भरि जगले रहथि। सामने मे हनुमान मंदिरमे राति भरि लाउडस्पीकरपर भजन-कीर्तन होइत रहल।तकर परिणाम भेल जे लगपास रहनिहार  कैक गोटेक मोन खराप भए गेलनि।मुदासभ बेबस छल। केओ प्रतिरोध नहि केलक। से सोचि हमरा बहुत आश्चर्य लागि रहल छल।

“एहन कोन पूजा भेल जे लोकक जानपर बनि जाइक।”-हमरा मोने-मोन सोचाएल।आश्चर्य एहि बातसँ भेल जे सालक-साल ओहि ठाम रहि रहल लोकसभ केओ किछु बाजि नहि रहल छलाह,अपितु कष्ट सहनाइ बेसी सही लागि रहल छलनि।कहि नहि हुनका लोकनिक की विवशता छलनि?बादमे पता लागल जे श्रीनारायणजीक श्रीमतीजी रातिएमे ओकरासभकेँ बहुत आग्रह केने छलखिन।कहने रहथिन-

“श्रीनारायणजीक मोन खराप छनि।लाउडस्पीकरक अबाज कम कए दिऔक।”कनी काल लाउडस्पीकरक अबाज कम कइओ देने रहैक। मुदा थोड़बे कालक बाद फेर ओएह हाल।

हमर श्रीमतीजीक माथक दर्द कम हेबाक नामे नहि लए रहल छल।हुनकर परिस्थितिसँ दुखी हम अपन डेरासँ तमतमाएल बाहर भेलहुँ। मंदिर लग किछु गोटे पहिने सँ ठाढ़ रहथि। हम सोझे मंदिर लग गेलहुँ आ भजन कए रहल कीर्तनिआसभकेँ लाउडस्पीकरक अबाज कम करबाक लेल कहलिऐक।ओहिमे सँ एक गोटे बाजल-

“अहाँ केहन मनुक्ख छी?कीर्तनमे लाउडस्पीकर नहि बजतैक तँ कथीमे बजतैक? ई कोनो बेर-बेर तँ हेतेक नहि। अहाँ अनेरे हल्ला केने छी।”

“हम स्वयं हनुमानजीक भक्त छी। कीर्तन होइ ताहिमे कोनो दिक्कति किएक हेतैक? ई तँ नीक बात छैक। मुदा ई कतए लिखल छैक जे लाउडस्पीकर बजबे करए, भने लोकक जान चलि जाइक?”

“जे कीर्तन करबा रहल छथि तिनकासँ गप्प करू।हमसभ एहि मामिलामे किछु नहि कए सकैत छी।”

ओ सभ आपसमे किछु-किछु बड़बड़ाइत रहल आ कीर्तनो करैत रहल।हम तुरंत सामने मे  कनीके फटकी कीर्तन करओनिहारक ओहिठाम पहुँचलहुँ। कैक बेर घंटी बजओलापर एकटा महिला बाहर भेलीह। हम हुनका कहलिअनि-

“ई की करबा रहल छी?ई कोन धर्म भेलैक जाहिमे सभक जान खतरामे पड़ि जाइक? अहाँकेँ पता अछि जे लगपासक कैकटा महिला रातिएसँ दुखित पड़ल छथि। हुनका सभक प्राण अवग्रहमे छनि।यदि लाउडस्पीकर नहिए बजतैक तँ की पूजा नहि हेतैक?”

“जा कए बंद करबा दिऔक।”

“हम ओही ठामसँ आबि रहल छी। ओ सभ तँ अहीं लग पठा देलक।कहलक जे अहीं कीर्तन करबा रहल छी। जे करबैक से अहीं करबैक।”

“हम तँ कहलहुँ ने जे जा कए बंद करबा दिऔक।”

हमरा संगे मंदिरक पुजारी सेहो छलाह।हम हुनका कहलिअनि-

“आब सुनलिऐक ने?”

“चलू ने। फेर कहबैक।बंद तँ ओएहसभ करत।”

हम वापस मंदिर लग पहुँचलहुँ। ताधरि लगीचमे रहनिहार दू गोटे सेहो आबि गेल छलाह। ओहो सभ कीर्तनासभकेँ लाउडस्पीकर बंद करबाक लेल कहलखिन। आखिर ओहीमे सँ केओ उठि कए लाउडस्पीकर बंद कए देलक। तुरंत माहौल बदलि गेल। चारू कात शांति पसरि गेल। कीर्तन सेहो हल्लुक अबाजमे चलिते रहल। हम विजयी मुद्रामे अपन डेरा वापस भेलहुँ। मुदा ई सभ बेसी काल नहि चलल। थोड़बे कालक बाद लाउडस्पीकर फेर बाजि रहल छल आर बेसी जोरसँ।हमर श्रीमतीजी माथक दर्दसँ छटपटा रहल छलीह। हुनका लेल दबाइ आनब जरूरी छल,मुदा बाहर निकलबामे डर होइत छल-

“कहीं ओ हमरे पर ने तामस उतारि दिअए?”

ओही इलाकामे किछुए दिन पहिने लगपासमे एक आदमीकेँ आपसी विवादमे छुरा मारि कए हत्या कए देल गल रहैक। ओ गेल रहए शांतिक प्रयास करए।दू गुटमे झंझटिकेँ शांत करेबाक प्रयासमे जान चलि गेलैक। से सभ सोचि  चिंतित छलहुँ। मुदा हुनका लेल दबाइ तँ अनबेक छल,से पैरे बिदा भेलहुँ। मधुबनीमे भोरुका उखरामे बेसी दोकान बंदे रहैत अछि। संयोगसँ थाना मोर लगक दबाइक दोकान खुजल छल। हुनकासँ जरूरी दबाइसभ कीनलहुँ   रिक्सासँ वापस डेरा लग आबि गेलहुँ । हुनका दबाइसभ देलिअनि। ओ दबाइ खेलाक आधा घंटाक बाद कनीक आश्वस्त भेलथि। फेर चाह बनल। माहौल कनी हल्लुक भेल। मुदा लाउडस्पीकर बजिते रहल।जकरा जे होउ।

साँझमे एहि घटनापर श्रीनारायणजीसँ गप्प भेल।ओ कहए लगलाह-

“एहि ठाम थाना-पुलिससभ सेहो किछु नहि करैत छैक।तेँ लोकसभ सभ किछु सहि जाइत अछि।अनुचित बात देखिओ कए मूकदर्शक बनल रहि जाइत अछि।शांतिक लेल लोक लग इएह सर्वोत्तम विकल्प छैक,नहि तँ लड़ैत रहू,झंझटिसभमे पड़ैत रहू।”

जे होइ,मुदा ई स्थिति बहुत दुखद अछि।मधुबनी आ आसपासक इलाकामे लाउडस्पीकरपर गाना-बजाना होइत रहब आम बात थिक।कखनहु माहौल शांत रहिते नहि अछि।सोचल जा सकैत अछि जे विद्यार्थी,दुखितलोकसभकेँ कतेक परेसानी होइत हेतनि।जरूरी अछि जे प्रशासन,समाजसेवी संगठन आ समाजक गण-मान्य लोकसभ एहि समस्यापर विचार करथि  जाहिसँ ध्वनि-प्रदूषण किछुओ नियंत्रण संभव भए सकए।

२९।५।२०२५

मंगलवार, 27 मई 2025

अकस्मात चलि जाएब शैलेन्द्र झाजीक




अकस्मात चलि जाएब शैलेन्द्र झाजीक 

के जनैत छल जे मधुबनी टीसनपर हम हुनका अंतिम यात्रापर बिदा कए रहल छी। मुदा नियति अपन गर्भमे सएह नुकओने छल। ओहि दिन(२८ फरबरी २०२५) हम भोरे कारसँ श्रीमतीजीक संगे जनकपुर गेल रही। ओही दिन दू बजे शल्लुकेँ पत्नी सहित मुम्बई जेबाक छलनि। मधुबनी टीसनसँ ट्रेन पकड़बाक छलनि। हमरा कनीको उम्मीद नहि छल जे हम मधुबनी ताधरि वापस भए सकब। मुदा संयोग एहन भेल जे हमसभ जनकपुर,धनुषा घुमि कए तीन  बजे धरि मधुबनी वापस आबि गेल रही। मधुबनी पहुँचहि बला रही कि हम हुनका फोन केलिअनि। ओ कहलाह-

“हमसभ अखन मधुबनीए टीसनपर छी। ट्रेन घंटा भरिसँ बेसीए विलंबसँ चलि रहल छैक।”

हमरा से जानि बहुत प्रसन्नता भेल। हमरा भेल जे आब हुनकासँ टीसनपर भेंट भए जाएत। वाहन चालककेँ कहलिअन-

“हमरा मधुबनी टीसने पर छोड़ि देब।”

“ठीक छैक।”

हम श्रीमतीजीकेँ मधुबनी डेरापर छोड़ि कए वापस टीसन पहुँचलहुँ। ओहि ठाम प्लेटफार्म टिकट लेलहुँ। दस टाका खुल्ला नहि छल। खिड़कीपर बैसल बाबूकेँ से बात कहलिअनि।ओ कहलाह-

“कोनो बात नहि। अपने वापसीमे टाका दए देबैक।”

ओ हमरा प्लेटफार्म टिकट देलनि।हम तुरंत प्लेटफार्म  नंबर दूपर पहुँचि गेलहुँ। ओहिठाम शल्लु(शैलेन्द्र झा)  सपत्नीक बेंचपर बैसल छलाह।संगेमे गामसँ  एक गोटे आएल  छलखिन।हम सभ बड़ी काल धरि गप्प सप्प करैत रहलहुँ। फोटो सेहो खिचल गेल। करीब घंटा भरिक बाद ट्रेनक आगमनक सूचना प्रसारित भेल। जयनगर दिससँ छुक-छुक करैत ट्रेन आबि गेल। ओ ट्रेनमे चढ़ि गेलाह। हमकिछु काल ओतहि ठाछ़ ट्रेन दिस देखैत रहि गेलहुँ। ओ हमरा प्लेटफार्मपर ठाढ़ देखलनि आ  फोनसँ कहलनि-

“आब कतेक काल ठाढ़ रहबह। ट्रेनमे हमसभ आश्वस्त भए गेल छी।आब चलबे करतैक।”

हम तकर बाद प्लेटफार्मपर सँ बिदा भए गेलहुँ ।थोड़बे कालमे ट्रेन ससरि रहल छल। हम बाहरसँ हुनकासभकेँ देखबाक चेष्टा कए रहल छलहुँ।मुदा से संभव नहि भए रहल छल। आखिर ट्रेन आगू बढ़ैत गेल आ थोड़बे कालमे अदृश्य भए गेल। हमहूँ बाहर भेलहुँ। प्लेटफार्म टिकट बला खिड़कीपर जा कए बाबूकेँ दस टाका देलिअनि आ आटोसँ अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।

ई घटना २८ फरबरी २०२५क अछि। शल्लु पछिला दू सप्ताहसँ गाममे छलाह। ओ एहि ठाम कैकटा पारिवारिक कार्यक्रममे सामिल हेबाक लेल मुम्बईसँ आएल छलाह। ओ अपन गाम जेबाक कार्यक्रमक बारेमे हमरा पहिने जानकारी देने रहथि। तेँ जखन मधुबनी हमरा जेबाक कार्यक्रम बनल तँ भेल जे हुनकोसँ भेंट होएबे करत। पन्द्रह फरबरीक रातिमे ओ मुम्बईसँ गाम पहुँचल रहथि। सत्तरह फरबरीक हुनकासँ फोनपर गप्प भेल। ओ गाम आबि गेल छथि से पक्का भए गेल। तखन हम प्रात भेने मधुबनीसँ गाम पहुँचलहुँ तँ हुनका फोन केलिअनि। ओ एकटा बच्चाक संगे अपने पहुँचि गेलाह। हाथमे एकटा  बेंत लेने ओ बहुत धीरे-धीरे चलैत छलाह। हम दुनू गोटे करीब घंटा भरि बतिऔलहुँ। तकर बाद हमसभ जीबूजी(हुनकर छोट भाए) क बनि रहल नव मकान देखबाक लेल बिदा भेलहुँ। ओहिठाम गाछक छाहरिमे हमसभ बैसलहुँ। ओतहि हुनको हिस्साक जमीन छनि। ओहिपर मकान बनेबाक विषयमे ओ कहलाह-

“आलोकसँ गप्प भेल छल। ओ कहलाह जे जमीन बटा गेलै ने।आब हमरापर छोड़ दिअ।”

कहबाक तात्पर्य जे ओहो अपना हिसाबसँ ओतए मकान बना लेताह।आर-आर बातसभ होइत रहल। किछु काल ओहि ठाम बैसलाक बाद हमसभ वापस घर दिस बिदा भेलहुँ।रस्तामे हुनकर फोटो सेहो खिचलहुँ।ओहि फोटोकेँ देखि कए लगैत अछि जेना ओ अनन्त यात्रापर निकलि गेल होथि। मुदा से पहिनेसँ के बुझि सकैत छल?नियति अपन काज करैत रहैत अछि। बीचमे फेर हुनकासँ भेंट भेल। ओहि दिन हमसभ लालबच्चाक ओहिठाम भौजी(हुनकर श्रीमतीजी) सँ भेंट करए गेल रही।ओहि ठाम युगलजी सेहो रहथि। हमसभ बड़ी काल धरि ओहिठाम बैसल गप्प -सप्प करैत रहि गेल रही। एकटा समय छल जखन हम,लालबच्चा आ शल्लु ओहीठाम घंटो बैसल रहैत छलहुँ। काकाजी सेहो आबि जइतथि।गप्प-सप्प चलैत रहैत। कैक बेर भोजनो ओतहि भए जाइत छल। आब समय चक्र बहुत आगू बढ़ि गेल अछि। ने काकजी छथि,ने लालबच्चा।हुनका लोकनिक अभाव के पूरा कए सकत? मुदा भौजी रहथि। ओ अपना भरि बहुत ध्यान देलनि। जलखै-चाहसभ सेहो भेलैक। फेर हमसभ वापस अपन घर दिस बिदा भेलहुँ।शल्लुकेँ हुनका घर धरि पहुँचा देलिअनि आ हम मधुबनी चलि गेलहुँ।

शल्लु  २८ फरबरी २०२५ कए  मुम्बई चलि गेलाह। मुदा हम मधुबनी-गामे मे छलहुँ। गामपर काज चलि रहल छल। ओहू दिन हम गाम गेल रही। गाम पहुँचलाक  थोड़ काल बाद मोबाइल खोललहुँ तँ जीबूजी(हुनकर अनुज)क पठाओल एकटा वीडियो देखाएल। ओकरा खोलिते अवाक रहि गेलहुँ।

“ई की?”

“ई की?”

शल्लुक लास एकटा डिब्बामे बंद पड़ल छल। ओ एहिना जीवंत लागि रहल छलाह। बात बुझि गेलिऐक। हुनकर देहान्त भए चुकल छलनि। तुरंत जीबूजीकेँ फोन केलिअनि। ओ कहलनि-

“ओ भोरे फरीदाबाद साढ़ूक पुत्रक बिआहमे सामिल हेबाक लेल हबाइ यात्राक लेल सामानसभ सरिओलनि।तकर बाद किछु जलखै केलनि। ओतबेमे  मोन कनी गड़बड़ बुझेलनि। ओ ई बात श्रीमतीजीसँ कहलखिन। ओ वास बेसीन लग गेलाह। हुनका रद्दमे खून निकलि गेलनि। तकर बाद  ओ ठामहि खसि पड़लाह। जाबे केओ किछु बुझितए,किछु करितए ओ एहि दुनिआसँ जा चुकल छलाह। ई सभ एतेक जल्दी भेल जे किछु नहि कएल जा सकल। बादमे ओ अस्पताल लए जाएल गेलाह। मुदा डाक्टर हुनका मृत घोषित कए देलकनि।”

मोन दुखसँ भरि गेल छल। किछु बाजल नहि होअए। तुरंत शल्लुक ओहिठाम गेलहुँ। ओहिठाम हुनकर अग्रज-नरेन्द्रजी उदास,चुपचाप अपन घरक  सीढ़ीए पर बैसल छलाह। हम किछु काल ओहिठाम हुनका संगे अपन-अपन दुख बटलहुँ।हुनका मौन श्रद्धांजलि देलिअनि आ अपन घर वापस चलि अएलहुँ।

एहि तरहेँ हमर वालसखा आ आजीवन मित्रक अंत भए गेल छल। सोचल जा सकैत अछि जे ई कतेक कष्टपूर्ण अनुभव छल हमरा लेल।मुदा कएल की जा सकैत छल? मृत्यु एकटा एहन प्रश्न अछि जकर उत्तर आइ धरि केओ नहि ताकि सकल ,जकर प्रकोपसँ केओ नहि बँचि सकल।इएहसभ सोचि कए मोनकेँ शांत करबाक प्रयास करैत अछि। जीवन तँ चलिते रहैत छैक,मुदा जे चलि जाइत अछि तकर स्थान सभ दिन लेल रिक्ते रहि जाइत छैक।तकर कोनो विकल्प नहि छैक। तेँ ने जीवनकेँ क्षणभंगुर कहल जाइत छैक।

शल्लु(शैलेन्द्र झा) हमरासँ दस मास पैघ छलाह। एहि हिसाबे ओ चौहत्तरि वर्षसँ कनी बेसीए दिन जीलाह। हुनकर जन्म बहुत प्रतिष्टित आ संपन्न परिवारमे भेल छलनि। हुनकर बाबा स्वर्गीय कमलाकान्त झाजी बहुत आदरणीय लोक छलाह। हुनकर आ राम बाबूक दोस्ती ओहि समयमे जगजाहिर छल। दुनू गोटे घंटो हमरा घर लगक कोनटापर ठाढ़ गप्प करैत रहि जाइत छलाह।कखनहु राम बाबू हुनका ओहिठाम जइतथि तँ कखनहु कमलाकान्त बाबू राम बाबूक ओहि ठाम ।शल्लुक पिता शिक्षक रहथि। अड़ेर मिडिल इसकुलमे ओ हमरासभकेँ छठा किलासमे  ज्यमिति पढ़ओने रहथि। दुर्भाग्यवश, ओ कमे बएसमे स्वर्गीय भए गेलाह। हुनकर मृत्युक दृश्य अखनहु हमरा मोन अछि।उत्तरबरिआ कोठलीमे ओ पड़ल रहथि,दर्दसँ परेसान।हुनकर मृत्युक समयमे जाड़क मास छलैक। हम अपन दनानपर  पुआरपर बैसल रही। लोकसभ हुनका अंतिम संस्कार लेल लए जा रहल छलनि। तकर किछुए दिनक बाद शल्लुक मैट्रिकक परीक्षा भेल रहनि। ओ ओहि परीक्षामे प्रथम श्रेणीसँ उत्तीर्ण भेल रहथि। पिताक असमय मृत्युक बाद हुनकर परिवारमे आर्थिक संघर्ष बढ़ि गेल रहनि। तथापि ओ आर०के०कालेज मधुबनीसँ बी०एससी(गणितमे प्रतिष्ठा)  उत्तीर्ण केलनि । तकर बाद ओ बिना किछु अवलंबकेँ जीविकाक जोगारमे घर छोड़ि देलनि।दिल्लीमे भोगेन्द्र झाजीक डेरापर किछु दिन रहलथि। फेर हुनके संगे मुम्बई चलि गेलाह। भोगेन्द्रजी तँ अपन कार्यक्रमक अनुसार आगू बढ़ि गेलाह,मुदा शल्लु मुम्बईमे  जमि गेलाह। ओ ओहि ठाम बहुत धैर्यपूर्वक सालो संघर्ष केलनि। ओतहि कपड़ा मीलमे काज शुरू केलनि।बादमे ओहि मीलकेँ सरकार अपना हाथमे लए लेलकैक। ओ क्रमशः ओही ठाम विधि अधिकारी बनि गेलाह। अपन गामक,परिवारक बहुत लोकसभकेँ ओ नौकरी धरओलनि।अपन छोट भाए लोकनिक शिक्षा आ रोजगार लेल बहुत तत्पर रहलथि।तकरे परिणाम भेल जे कालान्तरमे हुनकर पूरा परिवार फेरसँ हरिआ गेल। सभ भाए आ हुनकर धिआ-पुतासभ नीक-नीक पदपर पहुँचि गेलाह।हुनकर अनुज जीबूजी तँ जिला शिक्षा अधिकारीक पद सुशोभित केलनि।

शल्लुक प्रथम बिआह भच्छीमे भेल रहनि। हम आ  लालबच्चा ओहि बिआहमे बरिआती गेल रही। मुदा हुनकर ओ पत्नी अपन प्रथम संतानक जन्मक समयमे गामे मे स्वर्गीय भए गेलखिन। एहि घटनासँ शल्लु बहुत दुखी भेल रहथि। ओ बच्चा टुगर भए गेल। मुदा भगवान जकरा रक्षा करए चाहैत छथि तकरा सभ जोगार भए जाइत छैक। शल्लुक दोसर बिआह नवकरही भेलनि। हम ओहूमे बरिआतीमे गेल रही। हुनकर ओ पत्नी ओहि नवजात शिशुकेँ अपनो संतानसँ बेसी प्रेम आ करुणासँ पालन केलथि। एहन अनुकरणीय उदाहरण ओ अपन जीवनमे व्यवहारसँ प्रस्तुत केलनि। तकरे परिणाम भेल जे ओ वालक बहुत तेजस्वी आ सुयोग्य भेलाह आ संप्रति बहुत उच्च पदपर गुड़गाँवमे काज कए रहल छथि। शल्लुक दोसर बिआहसँ दूटा कन्या आ एकटा पुत्र भेलखिन। ओहोसभ बहुत नीक शिक्षा प्राप्त केलनि आ बढ़िआसँ व्यवस्थित छथि।

सेवानिवृत्तिक बाद शल्लु फेरसँ करीन तीन साल विधि सलाहकारक रूपमे ओही कंपनीमे काज केलनि। ओतहि जाइत काल एक दिन ट्रेनसँ पिछड़ि कए खसि पड़लथि । जान बँचि गेलनि,मुदा जांघक हड्डी टूटि गेल रहनि। जेना-तेना दीर्घकालीन चिकित्साक बाद ओ बेंतक सहायतासँ चलि लैत छलाह,मुदा दिक्कति तँ भइए गेल रहनि। स्वभावसँ आध्यात्मिक रहबाक कारण जीवनक उठा-पटकक बीचो ओ निरंतर शांत रहैत छलाह।से शांति अंतोमे हुनकर आननपर झलकैत छल।मुम्बईमे रहि ओ मैथिलीक गतिविधिसँ निरंतर जुड़ल रहैत छलाह। मैथिली पत्रिकाक संपादनक काज ओ बहुत दिन धरि करैत रहलाह।आदरणीय डाक्टर धनाकर ठाकुरक नेतृत्वमे संचालित अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषदक आनलाइन साप्ताहिक बैसारमे ओ नियमित सामिल होइत रहैत छलाह आ अधिकांश एहन बैसारक अध्यक्षता ओएह करैत छलाह।हुनकर आकस्मिक निधनसँ धनाकर बाबू सहित कतेको गणमान्य लोकनि अपन शोक  व्यक्त केलनि।हमर गाममे तँ ई समाचार सुनितहि लोकसभ शोकमग्न भए गेलथि। सभ एतबे कहथि-

“अखने तँ आएल छलखिन।केहन नीक छलखिन।”

मुदा फेर ओएह बात कहब।मृत्युक कोन हिसाब छैक। ई संसारे मृत्यु भुवन थिक।जे आएल अछि से जाएत। सही कहल गेल अछि-

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ||

एहि तरहेँ एकटा सार्थक,सफल  परोपकारी जीवन जीबि कए  शल्लु अचानक हमरासभकेँ छोड़ि चलि जाइत रहलाह। निस्सन्देह आब सशरीर ओ हमरा लोकनिक बीचमे नहि छथि,मुदा हुनकर सफल संघर्ष गाथा ,स्नेहपूर्ण व्यवहार आ परोपकारी प्रवृति सभ दिन मोन राखल जाएत आ आगामी समयमे बहुत लोकक लेल प्रेरणाक श्रोत बनल रहत।

।।ओम् शांतिः।।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

२७।०५।२०२५

















Simati Hui Ye Ghadiyan

शल्लुक नवकरही बिआहक रातिमे ई गीत लाउडस्पीकरपर बजाओल गेल छल। 





रविवार, 25 मई 2025

श्री उदय चन्द्र झा ‍’बिनोद’

 

श्री उदय चन्द्र झा ‍’बिनोद’

मधुबनीसँ गाम(अड़ेर डीह) जेबाक क्रममे निश्चित रूपसँ मैथिलीक प्रख्यात कवि,लेखक आदरणीय श्री उदय चन्द्र झा,विनोद,जीक स्मरण भए जाइत छल। गाममे हम कैक गोटे लग हुनकर चर्चा केलिऐक ।ओ सभ हुनका जनैत छलखिन।हुनकर घरो देखल छलनि।असलमे अड़ेर आ रहिका तँ घर-आङन जकाँ अछि। अड़ेरसँ कपिलेश्वर जाएब,चाहे मधुबनी जाएब,चाहे दरभंगा जाएब वा सौराठ जाएब,रहिका जाए पड़त।फेर विनोदजी तँ बहुत प्रसिद्ध आ लोकप्रिय छथि।बेरा-बेरी कैक गोटे  हुनकर घरक पता पता देलनि। तथापि,सही ठेकाना नहि बुझाएल। हम जखन कखनहु रहिका पहुँचए बला रही तँ फटकीए सँ ठिकिआबए लागी। आखिर एक बेर ओ अपन घरक ओसारापर कुर्सीपर बैसल देखेलाह। सामान्यतः हम साझी आटोपर बैसल रहैत छलहुँ तेँ ओकरा बीचमे रोकब मोसकिल भए जाइत छल। एहि तरहेँ मास दिन बीति गेल। तकर बाद निश्चय केलहुँ जे काल्हि हुनकासँ अबस्स भेंट करब। ताहि लेल पहिने सँ हुनका सूचित करबाक लेल फोन केलिअनि। ओ तुरंत फोन उठा लेलनि।गप्प-सप्पसँ लागल जेना कतेक दिनसँ एक-दोसरकेँ जनैत होइ।ओना हम हुनका अपन पोथीसभ कैक बेर पठओने रहिअनि।फेसबुकपर ओ ओहि प्रसंगमे लिखनो रहथि। मुदा भेंट नहि रहए।फोनपर परिचय-पातक बाद कहलिअनि-

“हम अपनेसँ काल्हि भेंट करए चाहैत छी।”

“आउ ने।”

“ठीक छैक। तँ काल्हि एगारह बजेक आसपास अबैत छी।”

प्रात भेने छोटू आटो बलाकेँ फोन केलिऐक। ओकर आटोसँ गाम धरि जाएब।बीचमे रहिकामे विनोदजीक ओहिठाम घंटा भरि रूकब। से सभ बात ओकरा परिछा कए कहि देलिऐक। हम लगभग एगारह बजे हुनका ओहिठाम पहुँचि गेलहुँ। ओ सभ दिन जकाँ धोती-कुरता पहिरने अपन घरक ओसारापर बैसल किताब पढ़ि रहल छलाह। हम हम हुनका प्रणाम केलिअनि। ओ तुरंत हमरा चिन्हि गेलाह। हम हुनका अपन उपन्यास,जयतु जानकी आ ठेहा परक मौलाएल गाछ देलिअनि। ओहो अपन कविता संग्रह,जुलुम भए गेलै देलनि। हुनकर पुत्र सेहो आबि गेल रहथिन।हुनकोसँ परिचय भेल। गप्प-सप्पक क्रममे ओ कहलनि-
“अहाँ हमर प्रिय लेखक छी।”

हुनका मुँहे से सुनि हम कनी चकित जरूर भेलहुँ,मुदा बहुत नीक लागल।एतेक पैघ साहित्यकार जखन कहि रहल छथि तँ सोचिए कए कहने हेताह।हम कहलिअनि-

“गामक एतेक लगीचमे रहबाक कारण आ ओहुना अपने हमरा लोकनिक साहित्यिक अभिवावक छीहे। अपने एहिना आशीर्वाद दैत रही।”

करीब घंटा भरि हमसभ गप्प-सप्प करैत रहलहुँ। मैथिलीक प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता स्वर्गीय यशोधर झाजीक चर्चा सेहो भेल।हुनकर घर ,परिवारक बारेमे बहुत रास जानकारी हुनकासँ भेटल।ओहि बीचमे गरम-गरम चाहो भेलैक। आब जेबाक समय छल। आटो बला अगुता रहल छल। अस्तु,हुनकासँ बिदा लए गाम बिदा भेलहुँ।

व्यवहार कुशल,  विनम्र आ बहुत सहज स्वभावक विनोदजीसँ भेल ई भेंट बहुत आनन्ददायक आ उत्साहवर्धक रहल। ओकर बादो प्रायः नित्य गाम अबैत-जाइत हम हुनका ओही ठाम बैसल देखिअनि। बेसी काल कोनो-ने-कोनो किताब पढ़ैत देखिअनि। रहिकामे साहित्यिक गतिविधिक मुख्य केन्द्र आदरणीय विनोदजी रहलाह अछि। हुनकर मार्गदर्शनमे सालोंसँ ओहि ठाम विद्यापति पर्व मनाओल जाइत अछि। एहू बेर रहिकामे विद्यापति पर्व बहुत धूमधामसँ मनाओल गेल। हमरा से सभ अखबारमे पढ़बाक अवसर भेटल। हमरा रहिकासँ अबैत-जाइत मोन भेल रहए जे जा कए देखिऐक।मुदा नहि जा सकलहुँ,,,।ओहि समयमे हुनकर ओसारापर बेस हब-गब देखाएल रहए। बादमे हुनकर देल कविता संग्रह पढ़लहुँ।  बहुत रसगर कवितासभ अछि।कैकटा कवितामे निराशा भाव सेहो पढ़बामे आएल। ओहीमे ओ ठीके कहने छथि-गाम अखनहु जीबैत छै,ओहिना छै ,एक बेर देखिऔक तँ आबि कए।-से बात तँ हम स्वयं देखलिऐक एहि बेर। अखनहु एहि ठामक तरकारीसभमे बहुत स्वाद छैक।भोज-भात खूब होइत छैक। मुदा लोकसभ बेलसि भए गेल छैक। केओ ककरो ओहि ठाम नहि जाइत छैक।फगुआमे जोगिरा गबैत लोक नहि देखाइत छैक। से सभ भाव हुनकर कवितामे कैक ठामअनुगुंजित भए रहल अछि। हुनकासँ भेल भेंट बहुत सार्थक रहल। आशा अछि,हुनकासँ फेर भेंट भए सकत। ओ स्वस्थ रहथि आ दीर्घकाल धरि हमरा लोकनिकेँ मार्गदर्श करैत रहथि,से ईश्वरसँ प्रार्थना।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

२५।०५।२०२५




 

शनिवार, 24 मई 2025

छोटू आटो बला

 

छोटू आटो बला

 

मधुबनीसँ गाम अबैत-जाइत हम बेसी काल साझी आटोमे बैसल रहैत छलहुँ। किशोरीलाल चौकसँ अड़ेर चौक धरिक यात्राक लेल ओ मात्र तीस टाका लैत छल।जखन कोनो सामान संगमे रहैत छल वा श्रीमतीजी संगे रहैत छलीह तखन आटो आरक्षित कए लैत छलहुँ।कहिओ काल चरिचक्कासँ सेहो जाइत छलहुँ। मुदा महग  हेबाक कारण ओकर बेसी उपयोग नहि करैत छलहुँ। ताहि लेल सीमाक आटो बला-छोटूक सेवा लैत छलहुँ। छोटू आटो बलाकेँ हमर मधुबनीक डेरा आ गामक घर देखल भए गेल छलैक। संगहि ओकरा संगे आपसी सामंजस्य सेहो भए गेल रहए। सामान्यतः ओकरा भोरे किंवा एक दिन पहिने अपन यात्राक समय बता दैत छलिऐक आ ओ समयपर उपस्थित भए जाइत छल। जखन कोनो दोकानसँ सामान कीनबाक होइत छल तँ ओतहि बजा लैत छलिऐक जाहिसँ ओकर समय खराप नहि होइक। एहि तरहेँ जरूरी  सामानसभ मधुबनी गिलेशन बाजार वा आसपासक दोकानसँ कीनि कए बहुत सुगमतासँ हम गाम लेने चलि जाइत छलहुँ।

छोटू आटो बलासँ हमर संपर्क क्रमशः बढ़ैत गेल।  ओ एकटा समांग जकाँ काज करए। अकस्मात एक दिन फोन केलापर बड़ी काल धरि घंटी बजैत रहि गेलैक। घंटी घनघनाइत रहल आ बंद भए गेल। केओ ओमहरसँ उत्तर नहि देलक। एक बेर फेर प्रयास केलहुँ।तखन ओकर पत्नी फोन उठओलनि  कहलथि-

“छोटू तँ समस्तीपुर जहलमे अछि।”

हम से सुनि बहुत चकित रही।छोटू तँ एहन लोक नहि बुझाइत छल।पातर-छितर,हँसमुख आ विनम्र युवक अछि ओ। दिन भरि परिश्रम करैत अछि। इमानदारीसँ अपन काज कए जीवन चलबैत अछि,अपन बच्चासभकेँ पढ़बैत अछि।तखन की भेलैक? ओ जहल किएक गेल? हम ई बात ओकर पत्नीसँ पुछलिऐक। ओ कहलीह-

“राँटी रेलवे गुमती लग ओकरा रेलवे पुलिस बला पकड़ि लेलकै।ओकर आटोकेँ जब्त कए लेलकै आ ओकरा समस्तीपुर जहलमे बंद कए देने छैक।”

“आखिर भेलैक की?”

“रेलवे बला पुलिस झूठ केसमे फँसा देने छैक। टक्कर मारलकै केओ आ फँसा देलकै ओकरा।”

“ओह ।ई तँ बहुत गलत भेलैक। आब की हेतैक?कहिआ धरि छुटतैक छोटू?”

“आब जखन पकड़ाइए गेल छै तँ टैम लगबे करतै।थाना,पुलिस हेतै।कहि नहि कहिआ धरि छुटतै।”

आब की करितहुँ?छोटूक रहलासँ मदति भए जाइत छलए।सामान लए गाम जाएब आसान भए जाइत छल। बीचमे आन-आन आटो बलाक मदति लेलहुँ ।ओना अपना इलाकामे आब आटो भरल अछि। मिनट-मिनटपर मधुबनीसँ अड़ेर-बेनीपट्टीक लेल आटो चलैत अछि। मुदा ओ रोड अछि खतरनाक। दुर्घटनाक समाचार अबिते रहैत अछि।असलमे सभ ततेक जल्दीमे बुझाइत रहैत अछि जे जान खतरामे कए लैत अछि,अपनहु आ यात्रीओक।मुदा कएल की जाए?

लगभग एक सप्ताह समस्तीपुर जेलमे रहलाक बाद छोटू आटोबलाकेँ जमानतिपर छोड़ि देल गेलैक। ताहि लेल ओकरा परिवारकेँ बहुत खर्चा करए पड़लैक।कर्जा लेबए पड़लैक। आखिर छोटू जहलसँ छुटि गेल। घर अबिते हमरा फोन केलक।ओकर फोन सुनि बहुत नीक लागल।हम ओकर हाल-चाल पुछलिऐक।

“आखिर भेलैक कोना?”

“की कहू मालिक? हमर कोनो गलती नहि छल। हमरासँ आगू बला टक्कर मारलकै आ भागि गेलै।हम तँ मोफतमे फँसा देल गेलहुँ।आटो से पकड़ि लेने अछि।”

“आटो किएक नहि छुटि रहल छह?की कहैत छह?”

“बहुत पाइ मांगि रहल छलै।हम से कोना दितियै।तेँ हमरा जहल पठा देलक।मुदा हमहूँ केस करबा देलिऐ घर बालीसँ।”

छोटू आटो बला सरिपहु परेसान छल। ओकर रोजी-रोटी मोसकिलमे पड़ि गेल  छलैक।ऊपरसँ कर्जा सेहो भए गेलैक।मुदा ओ हिम्मति बनओने रहल। एकटा दोसर आटो किरायापर लेलक। जी-जानसँ परिश्रम करए लागल। आब ओकर आटो पहिनोसँ बेसी चलि रहल छलैक।कहलक-

“टाइमे नै रहै छै।कतेक भारा उठेबै?दू बजे दिन धरि बारह सए कमा लै छिऐ।ओहिमे सँ तीन सए मालिककेँ होइत छै।तैओ नओ सए बँचि जाइत छै।”

छोटू आटो बला आब किरायाक रिक्सा चला रहल छल। ओकर आटो अखनहु थानामे बंद छलैक। पुलिस,कोर्टक चक्कर चलिए रहल छैक। सभकेँ चाही बहुत-बहुत टाका। छोटू से नहि दए पाबि रहल छैक।मुदा छोटू आटो बला हिम्मति नहि हारल।ओकर साहस बनल रहलैक। ओ परिश्रमपूर्वक अपन परिवारक पालन कए रहल छल।संगे कोर्ट पुलिसक चक्कर सेहो लगा रहल छल।

 नओ मई कए एहि बेरक ग्राम यात्राक अंतिम बेर मधुबनीसँ अपन गाम हम फेर ओकरे आटोसँ गेल रही। तखन धरि ओकर आटो नहि छुटल रहैक। गाम पहुँचि हम ओकरासँ बिदा लेलहुँ। तीन सए किरायाक अतिरिक्त दू सए टाका इनाम देलिऐक। कहलिऐक-

“अहाँ बहुत मदति केलहुँ। हम आब दिल्ली चलि जाएब। मुदा फेर आएब।ताधरि अहाँक आटो सेहो छुटि गेल रहत। हम सभ फेर अहाँक मदति लेबे करब। ”

छोटो आटो बलाकेँ दू सए टाका अनापेक्षित भेटि गेल रहैक ।ऊपरसँ नीक-नीक,उत्साहवर्धक  गप्प सेहो।ओ बहुत प्रसन्न छल। हमरा प्रणाम केलक , किछु-किछु पुछबो केलक ।फेर चलि जाइत रहल ,अपन जीवन संघर्षमे आगू।हम अखनो कैक बेर ओकरा बारेमे सोचैत रहैत छी। ई सोचि दुखी भए जाइत छी जे केना ओकरा सन-सन जीवन-संघर्षमे जुटल युवकसभ अनेरे परेसानीमे पड़ि जाइत छथि आ हुनका उचित न्याय समयसँ नहि भेटि पबैत छनि।से के सुनत,ककरा समय छैक एहन गरीबक बातपर ध्यान देबाक?

२२।५।२०२५

मंगलवार, 13 मई 2025

डाक्टर योगानन्द झा

 


डाक्टर योगानन्द झा

“अन्यायोक कोनो सीमा होइत अछि।”

ई शब्द थिक मैथिलीक प्रसिद्ध विद्वान लेखक,समालोचक आदरणीय डाक्टर श्री योगानन्द झाजीक जे ओ फोनपर हमरा किछु साल पूर्व कहने रहथि। हुनकर इसारा  केमहर छल से सोचल जा सकैत अछि।असलमे ओ पहिल व्यक्ति छलाह जे स्वेच्छासँ हमर पोथीपर समीक्षा लिखलनि।उपरोक्त गप्पक किछु दिनक बाद ओ स्पीडपोस्टसँ अपन हाथसँ लिखल हमर उपन्यास,मातृभूमिक समीक्षा पठओने रहथि। कहलथि जे हमर पोथीसभ पढ़ैत रहलाह अछि। बहुत दिनसँ ओहिपर लिखबाक सोचि रहल छलाह। मातृभूमि उपन्यासपर समीक्षा लिखि कए बहुत दिनसँ अपने लग रखने रहथि।इच्छा छलनि जे ओकरा हमरा हाथे मे देताह।परन्तु, दिल्ली दिस अएबाक संयोग नहि बनि रहल छलनि।तेँ ओ आब डाके सँ पठा रहल छथि।बादमे ओ हमर उपन्यास,बदलि रहल अछि सभ किछुक समीक्षा सेहो लिखलनि जे अनेक पत्रासभमे छपल छल।

 सन् २०१८मे आदरणीय डाक्टर योगानन्द झाजी दिल्ली आएल रहथि। हमरा फोनो केलाह।हम हुनकासँ भेंट करबाक लेल सभास्थल(इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र ) गेबो केलहुँ। मुदा ओ कार्य्रक्रममे व्यस्त रहथि, भेंट नहि भए सकल।हम एक घंटा ओतए रहि वापस भए गेल रही। बादमे हुनकासँ फोनपर कैक बेर गप्प-सप्प होइत रहल।हम जखन कखनहु हुनका अपन किताब पठबिअनि तँ ओ तकर पहुँचनामा अबस्स सूचित करथि।ओ समय-समयपर कैक बेर किताब पढ़ि अपन पाठकीय प्रतिक्रियासँ सेहो अवगत करबैत रहलाह।

आदरणीय डाक्टर योगानन्द झाजीसँ पहिल बेर साक्षात भेंट भेल मार्च २०२४मे जखन कि हम दरभंगा किछु काजसँ गेल रही।हुनकासँ भेल हमर प्रथम भेंटक चर्चा हम कतहु आन लेखमे कए चुकल छी,तेँ पुनरावृति नहि करैत एतबे लिखि रहल छी जे हुनका बारेमे जे हमर श्रद्धा आ सिनेह छल से ओहि भेंटक बाद आर मजगूत भए गेल।हम हुनकर विनम्रता,मैथिलीक प्रति अनुरागकेँ नहि बिसरि सकैत छी।  ओ बेर-बेर ई बात दोहरओलनि जे पोथीसभ मोफतमे नहि बाँटबाक चाही। मोफतमे भेटल वस्तुक लोक महत्व नहि दैत छैक।एहन पोथीकेँ लोक नहि पढ़ैत छैक।संगे लेखकक आर्थिक क्षति तँ होइते छैक। मुदा लेखको की करए?किताब छपि कए आबि गेल छैक। ओकर बंडलसभ घरक सीमित स्थानकेँ छेकने जा रहल छैक।गृहस्वामिनी फराके चिचिआ रहल छथि। खरचा तँ जे भेल से भेबे कएल ,ऊपरसँ अनेक तरहक परेसानी से होइत रहैत अछि। तेँ किछु आर खरचा कए किताबसभ पार्सल द्वारा संभावित पाठक धरि पहुँचाओल जाइत अछि। मुदा तकर परिणाम?नहि चर्चा करब बेसी नीक।

हम कैक बेर अपन पोथीसभक बंडल पार्सलसँ हुनका पठा दैत छलिअनि।ओ ओहि पोथीसभकेँ चुनिन्दा लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ दैत छलखिन आ आग्रह करैत छलखिन जे  तकर पहुँचनामा हमरा जरूर देथि।बहुत गोटे से केबो केलनि।आदरणीय शशिबोध मिश्र ‘शशि’जी तँ हमर उपन्यास,लजकोटरपर समीक्षो लिखलनि आ बादमे जखन दिल्ली अएलाह तँ भेंटो केलनि।मुदा बहुत रास विद्वान लोकनि जिनका हमर पोथी ओ देलखिन ,अपन पाठकीय प्रतिक्रिया नहि दए सकलथि। एक बेर किछु कार्यवश योगानन्द बाबू पटना गेल रहथि तँ ओहिठामक तीनटा प्रमुख मैथिली पुस्तक विक्रेतासभसँ भेंट कए हमर उपन्याससभ देलखिन आ आग्रह केलखिन जे हमर पोथीसभक विक्रयक उचित व्यवस्था करथि। मुदा से सभ किछु नहि भेल। ओ सभ किछु तेहन संकतो नहि देलनि।एमहर किछु दिनसँ एकगोटेक  फोन जरूर आबि रहल अछि। देखा चाही जे तकर किछु सार्थक परिणाम आबि सकत कि नहि।

पाँच अप्रेल २०२५क मधुबनीमे सगर राति दीप जरए कार्यक्रम हेबाक रहैक। उम्मीद रहए जे ओहिठाम योगानन्द झाजीसँ सेहो भेंट हेबे करत। मुदा ओ ओतए  नहि भेटलथि। तखन  दू दिनक बाद हुनकासँ भेंट करबाक लेल कबिलपुर,लहेरिआसराय स्थित हुनकर घरपर गेलहुँ। दूपहरक बारह बजेक आस-पासक समय रहैक। हम हुनका ओहिठाम करीब घंटा भरि छलहुँ। ओहि बीचमे ओ कैकटा स्थानीय साहित्यकारलोकनिकेँ हमर आगमनक बारेमे कहलखिन,मुदा ओ सभ कतहु आर व्यस्त छलाह। दरभंगामे आयोजित किछु साहित्यिक कार्यक्रमसभक जनतब सेहो हुनका मारफत भेटल।आर कैक तरहक गप्प-सप्प भेल।जलखै,चाह-पान तँ भेबे केलैक,पोथीक आदान-प्रदान सेहो भेलैक। बाहरमे रिक्सा बला प्रतीक्षा कए रहल छल। ओकरा रोकि लेने रहिऐक कारण ओहि रौदमे ओकरा बिना चलब मोसकिल छल। तेँ कनी जल्दीए हुनकासँ बिदा लेलेहुँ। ओ हमरा बहुत पटकी धरि अरिआति देलथि।

दूबर-पातर,सरल अत्यन्त साधारण लिबासमे योगानन्द बाबू व्यवहारमे अद्भुत विनम्र छथि।अपनत्व भाव तँ भरल रहैत छनि। हुनकासँ गप्प कए लगैत रहैत अछि जेना खाँटी,सुच्चा मैथिलसँ मुखातिब छी। मैथिलीक साहित्यक आकाशक चमकैत सूर्य थिकाह आदरणीय योगानन्द झाजी। हुनकर एक-एक रचना,आलेख,समीक्षा,शोध निवंध पाठकपर अमिट चाप छोड़ैत अछि। तकर मूल कारण थिक जे ओ जे किछु लिखैत छथि से गंभीर अध्ययनक बाद आ पूरा मनोयोगपूर्वक, ऊपर -झापर किछु नहि।तेँ पाठक हुनकर रचनासभकेँ पढ़ि कए सोचबाक लेल विवश भए जाइत छथि।

एक बेर फेर एहन सुच्चा मैथिलीप्रेमीसँ भेंट भेल से हमर सौभाग्य।ईश्वर एहन महान व्यक्तित्वसँ मिथिलाकेँ भरि देथि से प्रार्थना।

योगानन्द बाबूसँ भेल भेंट विषयक अपन आलेखक लिंक जखन हम फेसबुकपर देलिऐक तँ किछु विद्वान लोकनिक बहुत मार्मिक आ प्रेरक प्रतिक्रिया आएल जकरा उद्धृत कए रहल छी-

प्रोफेसर (डाक्टर) श्री भीमनाथ झा-

“वास्तवमे श्री योगा बाबूक प्रति जे भावना अपने व्यक्त कयल अछि, से शत-प्रति-शत यथार्थ थिक। ओ लोके हीरा छथि।”

आदरणीय श्री लक्ष्मण झा ‘सागर’-

“योगानन्द झाजी मैथिली साहित्यक अनमोल खजाना छथि!!”

आदरणीय श्री नन्द कुमार राय-

“मैथिली भाषा आ साहित्यक एकान्त साधक, लोक साहित्यक मर्मज्ञ विद्वान, प्रसिद्ध अनुवादक, समीक्षक आ सभसँ बढ़ि सहृदयी व्यक्तित्वक धनी योगानन्द झा मैथिली साहित्यक ओ अनमोल रत्न छथि जनिक माँ मैथिलीक प्रति कर्तव्यनिष्ठाकेँ लेखनीक माध्यमसँ कथमपि जगजियार नहि कएल जाए सकैछ।”

https://www.facebook.com/photo?fbid=3820619828213000&set=a.1388340294774311

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१२।०५।२०२५

 

 

 

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 


गुरुवार, 1 मई 2025

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

 

प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झा

पछिला कतेको  सालसँ आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीसँ हमरा संपर्क अछि।हम हुनका अपन कोनो पोथी पठओने रहिअनि। ओ ओहि पोथीकेँ तुरंत पढ़ि हमरा फोन केलनि  आ अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि। तकर बाद तँ हम हुनका अपन किताबसभ नियमित पठबति रहलिअनि।  ओ ओकरा पढ़ि फोनपर अपन प्रतिक्रिया दैत रहलाह।ताहि संगे बड़ी काल धरि गप्प-सप्प,हास्य-व्यंग होइत छल। ओ सदिखन प्रसन्न आ आनन्दपूर्ण अवस्थामे रहैत छलाह। सभसँ प्रभावित करबाक बात तँ ई रहैत छल जे सभ तरहेँ संपन्न आ एतेक वरिष्ठ रहितहु हुनकामे अहंक कनीको  लवलेश नहि रहैत छनि। हुनकर सहज आ सरल व्यवहारसँ के नहि प्रभावित भए जाएत?स्वाभाविक छल जे हुनका प्रतिए हमर आदर बढ़ैत गेल।हुनकर बात-व्यवहार हमरा बहुत आकृष्ट केलक ।हुनकर सकारात्मक रुखि आ उत्साहवर्धनसँ हमरा  सृजनशील रहबाक  प्रेरणो भेटैत रहल। हम जे निरंतर आ नियमित  लिखैत रहलहुँ अछि ताहिमे हुनकर बहुत योगदान छनि। ओ हमर पठाओल  किताबसभ पढ़ैत रहलाह आ पढ़लाक बाद अपन मंतव्य दैत रहलाह जे बहुत लाभकारी सिद्ध  भेल।

हम मैथिलीमे लिखल अपन पोथीसभ हुनके नहि,अपितु अनेक विद्वान,मैथिलीक प्रोफेसर ,लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ पठबैत रहलिअनि अछि। ओहिमे बहुत कम लोक छथि जे पार्सल पहुँचलापर पहुचनामो देथि,पढ़बाक  तकर बाद अपन प्रतिक्रिया देबाक बात तँ छोड़ू। मुदा किछु गोटे एकर अपवादो छथि, जाहिमे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक नाम हमरा दृष्टिमे औअलि अछि। कारण किछु गोटे शुरूमे जरूर उत्साह देखओलनि,मुदा बादमे ओ हिलओलो,डोलओलोपर किछु नहि केलथि। मैथिली पाठक लोकनिक मध्य एहन संवादहीनता निश्चित रूपसँ बहुत दुखद अछि। आखिर पोथी तँ पाठकेक लेल लिखल जाइत अछि। यदि पाठक ओकरा पढ़थि,ओहिपर अपन मंतव्य स्पष्टता आ इमान्दारीसँ राखथि तखन तँ बाते किछु आओर होइत। मुदा से अछि नहि। परिणाम अछि जे किछु लोक जे अंट-संट लिखि दैत छथि आ जिनका किछु लोकक वरदहस्त प्राप्त छनि,सएह चलैत रहैत अछि।एहन परिस्थितिमे साहित्यिक जगतमे खास कए मैथिलीमे इन्द्रकान्त बाबू सन लोकक उपस्थिति बहुत माने रखैत अछि,बहुत आवश्यको अछि।

हमरे नहि अपितु अनेक नव,अज्ञात रचनाकारकेँ उत्साहित करबाक लेल माननीय इन्द्रकान्त बाबू सभ दिन मोन राखल जेताह। हम हुनकर एहि गुणक अनुशंसा,प्रशंसा अपन परिचित दूटा रचनाकार(कवि राज किशोर मिश्रजी आ आदरणीय कामेश्वर चौधरीजीसँ केने रहिअनि। ओहो सभ हुनकर संपर्कमे अएलथि। हुनके सभक सेहो बहुत नीक  अनुभव भेलनि। ई अछि हुनकर उदार आ जीवंत व्यक्तित्वक आभा जकर सानिध्यमे जे केओ गेलथि से निश्चित रूपसँ प्रभावित भेलथि,आनन्द उठओलथि आ लाभान्वित भेलथि।

इन्द्रकान्त बाबू कोरोना कालक समयमे २०२२मे दिल्ली आएल रहथि। ओ हमरा सूचितो केलनि,मुदा हमरा मोनमे कोरोनाक ततेक भय छल जे हुनका लग जेबाक साहस नहि भेल।ओ मास दिन लगीचेमे नोएडामे रहि कए वापस पटना चलि गेलथि ।हमरा बादमे एहि बातक बहुत अफसोच भेल रहए।

“भेंट करबाक चाहैत छल,जे होइतैक,देखल जइतैक।”-मोनमे सोचाए। मुदा जानक डर मामुली नहि होइत अछि, से भुक्तभोगीए कहि सकैत छथि। कोरोना तेहन आतंक पसारने छल जे सालक-साल संपूर्ण विश्वकेँ हिला कए राखि देलक,हमर कोन कथा?

अपन नोएडा-दिल्ली प्रवासक समयमे इन्द्रकान्त बाबू निरंतर संपर्कमे रहलाह। किछुओ नव बात होइतैक तँ अबस्से कहितथि।ओ कहथि जे कोना हुनकर सोसाइटीमे बूढ़सभक मध्य  प्रसिद्ध भए गेल छथि,कोना ओ हुनका लोकनिकेँ अपन कविता पाठसँ प्रभावित केलनि। अनेक तरहक समाचारसभ कहैत रहलथि। हुनकासँ भेंट नहि भेल,मुदा मोनमे ई निर्णय भए गेल जे पटना जाए जतेक जल्दी संभव होएत  हुनकासँ अबस्स भेंट करबनि।

समय बीतैत गेल,मुदा पटना जेबाक कार्यक्रम नहि बनि सकल। आखिर एहि बेरक ग्राम यात्राक बीचमे किछु दिनक लेल पटना जेबाक कार्यक्रम बनओलहुँ।फगुआसँ पहिने ‍१० मार्च २०२५ कए पटना पहुँचलहुँ। ओहिसँ एक दिन पहिने इन्द्रकान्त बाबूक फोन आएल छल। हम अपन संभावित कार्यक्रमक बारेमे कहलिअनि। ओ कहलाह-

“बहुत नीक समाचार देलहुँ। हमहूँ बहुत उत्सुक छी,अपनेसँ भेंट करबाक लेल। मुदा एगारह तारीख कए हम एकटा उपनयनक क्रममे बाबा वैद्यनाथ धाम जाएब आ  बारह तारीख कए लौटब।तकर बाद अबस्स भेंट भए सकत। ओना बारहो तारीख कए साँझक बाद भेंट भए सकत कारण हम ताधरि लौटि गेल रहब। ”

सभ बातक ध्यानमे रखैत हम तेरह तारीख कए हुनकासँ भेंट करबाक कार्यक्रम बनओलहुँ। ताहिसँ पूर्व हुनका फोन केलिअनि। ओ एक-दू बजेक अएबाक आग्रह केलनि।हम दू बजे एकटा आटोसँ हुनकर    डेरापर बिदा भेलहुँ। आटो चालक मुसलमान छलाह,मुदा रहथि बहुत नीक। ओ इन्द्रकान्त बाबूक राजेन्द्र नगर,पटना स्थित घरक लगीच धरि पहुँचा देलनि। मुदा तकर बाद हमसभ एमहर-ओमहर बौआए लगलहुँ।तकर कारण छल जे हमरा हुनकर घरक सही ठेकाना नहि छल। ने हम हुनकासँ से पुछि सकलिअनि। हमरा लग हुनकर डाक पता छलहे आ ओहि पतापर हम कैक बेर किताबसभ पठा चुकल छी। मुदा पार्सल आ मनुक्खमे फरक होइत छैक। आसपासक रोडक जनतब नहि रहबाक कारण हम करीब घंटा भरि बौआइति रहि गेलहुँ। एहि बीचमे हम हुनका अनेक बेर फोन केलिअनि। मुदा ओ फोन उठेबे नहि करथिन। फोनक घंटी बजैत-बजैत बंद भए जाइक। हम हुनकर दोसर मोबाइल नंबरपर फोन केलहुँ,हुनकर दिल्ली स्थित पुत्रक मोबाइलपर फोन केलहुँ। किछु आर गोटेकेँ सेहो फोन केलिअनि। मुदा सभ प्रयास व्यर्थ साबित भेल। हम आब बहुत परेसान भए गेल रही। लगपासमे केओ हुनकर घरक हुलिआ नहि बताबए। भेल जे आब वापस अपन डेरा लौटि जाइ कि एतबेमे हुनकर फोन आबि गेल।हुनकर ध्यान मोबाइल फोनमे हमर अनेक मिसकालपर गेलनि।ओ स्वयं हमर  पहुँचबामे भए रहल विलंबसँ चिंतित छलाह-

“रस्ता भुतला गेलिऐ की?”

“हमसभ लगीचे मे कतहु छी,मुदा अहाँक घर नहि ताकि पाबि रहल छी।”

“हमरा अंदाज लागि गेल। भारतीजी घंटा भरिसँ अहाँक प्रतीक्षा करैत-करैत चलि गेलाह। कोनो बात नहि।अहाँ फोन वाहन चालककेँ दिऔक।”

हम फोन वाहन चलाककेँ दैत छी। ओ रस्ताक सही जनतब हुनकासँ लेलक आ  पाँच मिनटक भीतरे हमरा अपन गंतव्य लग पहुँचा देलक।हम आटोसँ उतरैत छी तँ देखैत छी जे इन्द्रकान्त बाबू स्वयं गंजी-धोती पहिरने सड़कक कातमे हमर स्वागतमे ठाढ़ छथि। हुनकर बेचेनी स्पष्ट देखल जा सकैत छल। हम आटो बलाकेँ किराया दैत छी आ   अपन सामानसभक संगे हुनका पाछू-पाछू बिदा भए जाइत छी।सामनेमे रेलक आवागमन देखल जा सकैत छल।असलमे ओ स्थान राजेन्द्र नगरे रेल टीसनक पछुआर थिक।हम सामान सहित हुनकर भूतल स्थित घरमे हुनके संगे पहुँचैत छी।

भूतलपर स्थित हुनकर निवासपर  पहुँचतहि हमरा पाग,डोपटा पहिरा कए ओ स्वागत करैत छथि। हुनकर पौत्र तकर वीडियो बनबैत छथि,फोटो खिचैत छथि। तकर बाद ओ अपन लिखित पुस्तकसभ दैत छथि। हमहूँ अपन नवीनतम उपन्यास,यज्ञसेनी,हुनका देलिअनि। सभ घटनाक फोटो हुनकर खिचलथि,तकरासभकेँ बादमे   हमरो मोबाइलपर पठा देलथि। कहि नहि सकैत छी ,कतेक अपनत्व भाओसँ ओ हमरा स्वागत केलनि। रसगुल्ला,गुलाब जामुन,पेरा,खजूर खाउ,जतेक खाउ ,टेबुलपर राखल अछि। संगे हुनकर ओहूसँ बेसी मधुर व्यवहारसँ आनन्दक वर्षा भए रहल छल। करीब दू घंटा हम ओतए रहलहुँ। ओही बीच कामेश्वर चौधरीजीक फोन दिल्लीसँ आबि गेलनि। फोनपर भेल हुनकर वार्तालापपसँ सोनामे सुगंध लागि गेल। आब साँझ पड़ि रहल छल। हम हुनकासँ आशीर्वाद लए डेरा वापस बिदा भेलहुँ। ओ फेर हमरा सड़क धरि अरिआति देलनि। हुनकर विनम्रता आ सिनेहसँ हम अभिभूत छलहुँ। रस्ता भरि हुनकर ध्यान अबैत रहल।

फेसबुकपर हम आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ  भेंटक जनतब देलिऐक तँ अनेक विद्वानलोकनिक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देखबामे आएल जाहिमे सँ किछु एहिठाम उद्धृत कए रहल छी-

आदरणीय प्रोफेसर भीमनाथझा-

भाग्यशाली तँ अहाँ छीहे। तकर एक प्रमाण ईहो। 'मिथिलाक रवीन्द्र'सँ सम्मानित हैब सामान्य बात नहि भैलै। ताहूमे एहि रंगदिवसपर...। हम तँ हिनका 'सर्वतंत्रस्वतंत्र' बुझै छियनि, महामहोपाध्यायोसँ पैघ। भविष्यमे हमरो लोकनि द' लोक कहत, जँ कहत तँ यैह जे ईहो सभ 'इन्द्रकान्त युग'क थिका।”

आदरणीय प्रोफेसर रमण झा

“बहुत -सुन्दर! आदरणीय इन्द्रकान्त बाबू स्वयं विद्वान छथि आ विद्वानक सम्मान करए जनैत छथि-

विद्वानेव हि जानाति विद्वज्जन परीश्रमम्।

न हि वन्ध्या विजानाति गर्भिणी प्रसवव्यथाम्।।

दुनू साहित्यकारकेँ बधाइ आ शुभकामना!

आदरणीय विनोदानन्द झा

“आदरणीय इन्द्रकान्तजीक ई विनम्रता सभकेँ भावुक कऽ दैत अछि। बधाइ।

(https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=pfbid027E4AdNnvDK32X15nkHrNZv3fPVudZSGpHMyo2vH38JCymy1pb34U8hwDFJQkLfw6l&id=100007950603547&rdid=JHtSnPJf4yfbcwqP#)

भेंट-घाँटक क्रममे आदरणीय प्रोफेसर इन्द्रकान्त झाजीसँ हुनके रचित किछु कवितासभ सुनबाक सुअवसर भेटल। कविताक किछु प्रमुख पाँति छल-

बूढ़ छी

बुढारी मे

उर्जावान छी

आँखि कान ठीक अछि

पढ़ै छी

लिखै छी

कवि सम्मेलनमे गरजै छी

हार्ट हमर अछि बड़ मजगूत

कते बूढाकेँ

हम मरैत देखने छी

हम डरै नहि छी

कन्हा दै छी

प्रसन्न रहै छी

हमरा ने कोनो बिमारी अछि

आइ काल्हि रह रहाँ हाइब्लडप्रेसर

लो बल्डप्रेसर आ डाइबीटीज

लोक सब केँ तंग करैए

मुदा हमरासँ कोसो दूर रहैए

हम खूब प्रेमसँ पनतुआ रसगुल्ला

चाभैत रहैत छी

आनन्दक जीवन बितबै छी।

(हम बूढ़ छी पृष्ठ ६०)

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बूढ़ छी

बुढ़ारी जीवन

जीबैक सलुक

हम जानै छी,

धिया-पुताक

सब बात हम मानै छी

बंशी बजबै छी

बाँसक नहि

चैनक बंशी

जखन जे दैए

खाए लै छी

नहि दैए

लोटा भरि पानि

पीब लै छी

ढ़ेकार करै छी

ककरो विरोधमे

किछु नहि बाजै छी

हमर बिरोधमे बाजैए

सुनियो कए अन्ठबै छी

सुखमय जीवन जीबै छी

(हम बूढ़ छी, पृष्ठ ८८)

ऊपरोक्त पाँतिसभमे आदरणीय इन्द्रकान्त झाजीक जीवनमे संतुष्टि भाओ आ वृद्धावस्थोमे जीवंतता बनओने रहबाक गूण स्पष्ट झलकैत अछि। जेहने सरस आ सार्थक कवितासभ ओ लिखैत छथि,वस्तुतः तेहने आनन्दमय जीवन ओ जीबैत छथि। इएह कारण अछि जे हुनकर कवितासभ पढ़ला,सुनलासँ जीवनमे उल्लास, उत्साह बढ़ैत अछि। जीवनक रहस्य बुझबामे,गुणबामे सफल ई कवितासभ सरिपहु अद्भुत अछि। इएह सभ सोचैत हम पटनाक केन्द्र सरकारक होलीडेहोम स्थित अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।रस्ता भरि आ डेरापर पहुँचलाक बादो बड़ीकाल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ-  सही मानेमे जतबे महान,ततबे विनम्र ,सरल आ व्यवहार कुशल छथि ओ ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१ -५-२०२५