“अन्यायोक कोनो सीमा होइत अछि।”
ई शब्द थिक मैथिलीक प्रसिद्ध विद्वान लेखक,समालोचक आदरणीय डाक्टर श्री
योगानन्द झाजीक जे ओ फोनपर हमरा किछु साल पूर्व कहने रहथि। हुनकर इसारा केमहर छल से सोचल जा सकैत अछि।असलमे ओ पहिल
व्यक्ति छलाह जे स्वेच्छासँ हमर पोथीपर समीक्षा लिखलनि।उपरोक्त गप्पक किछु दिनक
बाद ओ स्पीडपोस्टसँ अपन हाथसँ लिखल हमर उपन्यास,मातृभूमिक समीक्षा पठओने रहथि।
कहलथि जे हमर पोथीसभ पढ़ैत रहलाह अछि। बहुत दिनसँ ओहिपर लिखबाक सोचि रहल छलाह।
मातृभूमि उपन्यासपर समीक्षा लिखि कए बहुत दिनसँ अपने लग रखने रहथि।इच्छा छलनि जे
ओकरा हमरा हाथे मे देताह।परन्तु, दिल्ली दिस अएबाक संयोग नहि बनि रहल छलनि।तेँ ओ
आब डाके सँ पठा रहल छथि।बादमे ओ हमर उपन्यास,बदलि रहल अछि सभ किछुक समीक्षा सेहो
लिखलनि जे अनेक पत्रासभमे छपल छल।
सन् २०१८मे आदरणीय डाक्टर योगानन्द
झाजी दिल्ली आएल रहथि। हमरा फोनो केलाह।हम हुनकासँ भेंट करबाक लेल सभास्थल(इंदिरा
गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र ) गेबो केलहुँ। मुदा ओ कार्य्रक्रममे व्यस्त रहथि, भेंट नहि भए सकल।हम एक
घंटा ओतए रहि वापस भए गेल रही। बादमे हुनकासँ फोनपर कैक बेर गप्प-सप्प होइत रहल।हम
जखन कखनहु हुनका अपन किताब पठबिअनि तँ ओ तकर पहुँचनामा अबस्स सूचित करथि।ओ
समय-समयपर कैक बेर किताब पढ़ि अपन पाठकीय प्रतिक्रियासँ सेहो अवगत करबैत रहलाह।
आदरणीय डाक्टर योगानन्द झाजीसँ पहिल बेर साक्षात भेंट भेल मार्च २०२४मे
जखन कि हम दरभंगा किछु काजसँ गेल रही।हुनकासँ भेल हमर प्रथम भेंटक चर्चा हम कतहु
आन लेखमे कए चुकल छी,तेँ पुनरावृति नहि करैत एतबे लिखि रहल छी जे हुनका बारेमे जे
हमर श्रद्धा आ सिनेह छल से ओहि भेंटक बाद आर मजगूत भए गेल।हम हुनकर
विनम्रता,मैथिलीक प्रति अनुरागकेँ नहि बिसरि सकैत छी। ओ बेर-बेर ई बात दोहरओलनि जे पोथीसभ मोफतमे नहि
बाँटबाक चाही। मोफतमे भेटल वस्तुक लोक महत्व नहि दैत छैक।एहन पोथीकेँ लोक नहि
पढ़ैत छैक।संगे लेखकक आर्थिक क्षति तँ होइते छैक। मुदा लेखको की करए?किताब छपि कए
आबि गेल छैक। ओकर बंडलसभ घरक सीमित स्थानकेँ छेकने जा रहल छैक।गृहस्वामिनी फराके
चिचिआ रहल छथि। खरचा तँ जे भेल से भेबे कएल ,ऊपरसँ अनेक तरहक परेसानी से होइत रहैत
अछि। तेँ किछु आर खरचा कए किताबसभ पार्सल द्वारा संभावित पाठक धरि पहुँचाओल जाइत
अछि। मुदा तकर परिणाम?नहि चर्चा करब बेसी नीक।
हम कैक बेर अपन पोथीसभक बंडल पार्सलसँ हुनका पठा दैत छलिअनि।ओ ओहि
पोथीसभकेँ चुनिन्दा लेखक,समीक्षक लोकनिकेँ दैत छलखिन आ आग्रह करैत छलखिन जे तकर पहुँचनामा हमरा जरूर देथि।बहुत गोटे से
केबो केलनि।आदरणीय शशिबोध मिश्र ‘शशि’जी तँ हमर उपन्यास,लजकोटरपर समीक्षो लिखलनि आ
बादमे जखन दिल्ली अएलाह तँ भेंटो केलनि।मुदा बहुत रास विद्वान लोकनि जिनका हमर
पोथी ओ देलखिन ,अपन पाठकीय प्रतिक्रिया नहि दए सकलथि। एक बेर किछु कार्यवश योगानन्द
बाबू पटना गेल रहथि तँ ओहिठामक तीनटा प्रमुख मैथिली पुस्तक विक्रेतासभसँ भेंट कए
हमर उपन्याससभ देलखिन आ आग्रह केलखिन जे हमर पोथीसभक विक्रयक उचित व्यवस्था करथि।
मुदा से सभ किछु नहि भेल। ओ सभ किछु तेहन संकतो नहि देलनि।एमहर किछु दिनसँ एकगोटेक
फोन जरूर आबि रहल अछि। देखा चाही जे तकर
किछु सार्थक परिणाम आबि सकत कि नहि।
पाँच अप्रेल २०२५क मधुबनीमे सगर राति दीप जरए कार्यक्रम हेबाक
रहैक। उम्मीद रहए जे ओहिठाम योगानन्द झाजीसँ सेहो भेंट हेबे करत। मुदा ओ ओतए नहि भेटलथि। तखन दू दिनक बाद हुनकासँ भेंट करबाक लेल
कबिलपुर,लहेरिआसराय स्थित हुनकर घरपर गेलहुँ। दूपहरक बारह बजेक आस-पासक समय रहैक।
हम हुनका ओहिठाम करीब घंटा भरि छलहुँ। ओहि बीचमे ओ कैकटा स्थानीय
साहित्यकारलोकनिकेँ हमर आगमनक बारेमे कहलखिन,मुदा ओ सभ कतहु आर व्यस्त छलाह।
दरभंगामे आयोजित किछु साहित्यिक कार्यक्रमसभक जनतब सेहो हुनका मारफत भेटल।आर कैक
तरहक गप्प-सप्प भेल।जलखै,चाह-पान तँ भेबे केलैक,पोथीक आदान-प्रदान सेहो भेलैक। बाहरमे
रिक्सा बला प्रतीक्षा कए रहल छल। ओकरा रोकि लेने रहिऐक कारण ओहि रौदमे ओकरा बिना
चलब मोसकिल छल। तेँ कनी जल्दीए हुनकासँ बिदा लेलेहुँ। ओ हमरा बहुत पटकी धरि अरिआति
देलथि।
दूबर-पातर,सरल अत्यन्त साधारण लिबासमे योगानन्द बाबू व्यवहारमे अद्भुत
विनम्र छथि।अपनत्व भाव तँ भरल रहैत छनि। हुनकासँ गप्प कए लगैत रहैत अछि जेना
खाँटी,सुच्चा मैथिलसँ मुखातिब छी। मैथिलीक साहित्यक आकाशक चमकैत सूर्य थिकाह
आदरणीय योगानन्द झाजी। हुनकर एक-एक रचना,आलेख,समीक्षा,शोध निवंध पाठकपर अमिट चाप
छोड़ैत अछि। तकर मूल कारण थिक जे ओ जे किछु लिखैत छथि से गंभीर अध्ययनक बाद आ पूरा
मनोयोगपूर्वक, ऊपर -झापर किछु नहि।तेँ पाठक हुनकर रचनासभकेँ पढ़ि कए सोचबाक लेल
विवश भए जाइत छथि।
एक बेर फेर एहन सुच्चा मैथिलीप्रेमीसँ भेंट भेल से हमर सौभाग्य।ईश्वर एहन
महान व्यक्तित्वसँ मिथिलाकेँ भरि देथि से प्रार्थना।
योगानन्द बाबूसँ भेल भेंट विषयक अपन आलेखक लिंक जखन हम फेसबुकपर देलिऐक तँ
किछु विद्वान लोकनिक बहुत मार्मिक आ प्रेरक प्रतिक्रिया आएल जकरा उद्धृत कए रहल छी-
प्रोफेसर (डाक्टर) श्री भीमनाथ झा-
“वास्तवमे श्री योगा बाबूक प्रति जे भावना अपने व्यक्त कयल अछि, से शत-प्रति-शत यथार्थ थिक। ओ लोके हीरा छथि।”
आदरणीय श्री लक्ष्मण झा ‘सागर’-
“योगानन्द झाजी मैथिली साहित्यक अनमोल खजाना
छथि!!”
आदरणीय श्री नन्द कुमार राय-
“मैथिली भाषा आ साहित्यक एकान्त साधक, लोक साहित्यक
मर्मज्ञ विद्वान, प्रसिद्ध अनुवादक, समीक्षक
आ सभसँ बढ़ि सहृदयी व्यक्तित्वक धनी योगानन्द झा मैथिली साहित्यक ओ अनमोल रत्न छथि
जनिक माँ मैथिलीक प्रति कर्तव्यनिष्ठाकेँ लेखनीक माध्यमसँ कथमपि जगजियार नहि कएल
जाए सकैछ।”
https://www.facebook.com/photo?fbid=3820619828213000&set=a.1388340294774311
रबीन्द्र नारायण मिश्र
१२।०५।२०२५