हमर
साहित्यिक यात्रा
सन्
२०१६मे हमर माएक चौरानबे सालक बएसमे देहान्त भए गेलनि। हुनकर देहावसानक बाद मोन
ततेक दुखी ओ अशान्त भए गेल जकर वर्णन असम्भव। लगभग चारि मास धरि राति-राति भरि
निन्न नहि भेल। कहिओ काल भोरुपहरमे आँखि लगैत छल, ओहो थोड़बे कालक
लेल। सगर राति ओहिना माने टकटकीए-मे...। सम्पूर्ण दिनचर्या अस्तव्यस्त भए गेल।
निःशव्द रातिमे जागल माथमे बितल बात सभ सिनेमाक रील जकाँ उभरैत रहैत छल। एहन
मानसिक स्थितिसँ उबरबामे एहि आलेख सबहक आश्रय भेटल। मोनक बात सभ लिखैत गेलहुँ।
सालक साल मोनमे गरल बात सभकें निकलबाक रस्ता भेटलैक। मोनमे । शुरुमे हम हिन्दी,अंग्रेजी आ मैथिली, तीनू भाषामे लिखलहुँ। फेर एकदिन हमर एकटा मित्र कहलनि –“आन भाषामे लिखनाहरक कोनो कमी नहि अछि। अहाँ मैथिलीमे लिखू । ई अपनसभक
मातृभाषा थिक । एहि भाषामे जे परेसानी होअए,मुदा अछि तँ अपन
। बातो सही बुझाएल । तकर बाद हम झुरझार मैथिलीएमे लिखि रहल छी।
मैथिलीमे अखन धरि हमर छब्बीसटा पोथी प्रकाशित अछि जाहिमे सतरहटा उपन्यास अछि। एकटा
आत्मकथा, दूटा संस्मरण,तीनटा निवंध संग्रह,एकटा यात्रा प्रसंग आ दूटा कथा संग्रह अछि। हमर प्रकाशित पुस्तकसभक
प्रकाशनवर्ष सहित विवरण निम्नलिखित अछिः
प्रकाशन वर्ष: |
प्रकाशित पोथी |
२०१७ |
१. ‘भोरसँ साँझ धरि’ (आत्म कथा) २. ‘प्रसंगवश’ (निवंध) ३.
‘स्वर्ग एतहि अछि’ (यात्रा प्रसंग) |
२०१८ |
४. ‘फसाद’ (कथा संग्रह) ५. `नमस्तस्यै’ (उपन्यास) ६. विविध प्रसंग (निवंध
संग्रह ) ७.महराज(उपन्यास) ८.लजकोटर(उपन्यास) |
२०१९
|
९.सीमाक ओहि पार(उपन्यास)१०.समाधान(निवंध
संग्रह) ११.मातृभूमि(उपन्यास) १२.स्वप्नलोक(उपन्यास) |
२०२० |
१३.शंखनाद(उपन्यास) १४.इएह थिक जीवन(संस्मरण)
१५.ढहैत देबाल(उपन्यास) |
२०२१ |
१६.पाथेय(संस्मरण) १७.हम आबि रहल छी(उपन्यास)
१८.प्रलयक परात(उपन्यास) |
२०२२ |
१९.बीति गेल समय(उपन्यास) २०.प्रतिबिम्ब(उपन्यास) २१. बदलि रहल अछि
सभकिछु(उपन्यास)२२.राष्ट्र मंदिर(उपन्यास) २३.संयोग(कथा संग्रह) २४.नाचि रहल छलि
वसुधा(उपन्यास) |
२०२३ |
२५.दीप जरैत रहए(उपन्यास)
२६.ठेहा परक मौलायल गाछ(उपन्यास)२७ पटाक्षेप |
एकर
अतिरिक्त हिन्दीमे हमर उपन्यास,न्याय की गुहार प्रकाशित अछि। हिन्दीमे लिखल दूटा उपन्यास अप्रकाशित अछि।
अंग्रेजीमे हमर दूटा किताब(Life is an Art आ
The Lost House )प्रकाशित
अछि। हिन्दी आ अंग्रेजीमे हमर बहुत रास रचना प्रतिलिपि वेवसाइटपर उपलव्ध अछि ।
https://hindi.pratilipi.com/user/rabindra-narayan-mishra-ed20wz4500
संप्रति
१०५ विभिन्न प्रकारक हिन्दी आ
अंग्रेजीमे हमर रचना एतए पढ़ल जा सकैत अछि जाहिमे कविता,कथा,उपन्यास,आ आलेख सामिल अछि। समय-समयपर अपन ब्लाग स्वान्तः सुखायपर हम लिखैत रहलहुँ
अछि। हिन्दी,अंग्रेजी आ मैथिलीमे हमर अनेक रचना एतए पढ़ल जा
सकैत अछि ।
https://mishrarn.blogspot.com/
मैथिलीमे
हमर बहुत रास मौलिक रचनासभ मिथिला मिहिरमे छपैत रहैत छल। मिथिला मिहिरक संदर्भित
प्रतिमे सँ किछु हमरा लगमे बाँचल रहि गेल
अछि । एकटा कविता(जीवन संघर्ष)२५ जुलाइ १९८२क छपल छल। प्रसंगवश ओहि कविताकेँ
उद्धृत कए रहल छी-
जीवन संघर्ष
(१)
सूर्य जे प्रातः उगल से विदा छल,
चिड़ै चुनमुन उतरि कऽ आकाशसँ,
निश्चिंत भावे गवै छल-
"जे करी
विश्राम दिन आवशेषपर अछि।"
(२)
मुदा ओ हाथसँ पाथर फोड़ै छल,
भोरेसँ संघर्षरत जीविका हित,
सोनितक विक्री करैछल,
कुहरितहुँ साँझो पड़ल ,धरि ओतहि छल।
(३)
पेट,अँतरी,पीठमे अंतर खतम छल,
दाँत झड़ि कए मुँहकेँ खधिआ केने
छल,
आँखिमे धसना धसल छल,आहार बिनु,
हाड़ोक हड्डी गलि रहल छल।
(४)
से कहि रहल छल, बातमे पीढ़ा भरल छल,
अतिशय तृषित मनदग्ध,देहक दुर्गति छल,
जे हमर जीवन कुटिल ओ क्लिष्ट केहन,
यद्यपि करी श्रम अनवरत धरि हाल
एहन,
(५)
हे मनुज़ तोँ उठह आबो आँखि खोलह,
देखह ने कोनो भेद अछि,प्रकृतिक कोनो आयाममे,
तद्यपि सुखक मारिचिकामे,विसरि जे तोँ मनुक्ख छह,
अपने सोनित मोहवश गट-गट पीवै छह।
१४ अगस्त १९८३क मिथिला मिहिरमे
हमर आलेख
`मिथिलाक संस्कृति’ छपल छल। २२ मइ १९८३क हमर
रचना बरियाती(व्यंग) छपल छल । (एहि रचनासभसँ संवंधित मिथिला
मिहिरक पृष्ठ सहित रचना हमर ब्लाग पर उपलव्ध अछि।)दरभंगासँ
प्रकाशित,मिथिला टाइम्समे हमर कथा ,क्रान्ति
विसर्जन,ओही समयमे छपल छल। कहबाक तात्पर्य जे बहुत पहिने
माने तैतालीस-चौआलिस साल पहिने हम लिखैत रहैत छलहुँ आ छपितो छलहुँ तकर प्रमाण
उपलव्ध अछि।
जनवरी
१९७८मे हमर पदस्थापना इलाहाबादमे भेल । हम मार्च १९८७ धरि ओतए रहलहुँ । तकर बाद
वापस दिल्ली आबि गेलहुँ । ओही बीच इलाहाबाद मे डाक्टर जयकान्त मिश्रजीसँ आ हुनकर
समस्त परिवारसँ बहुत नीक संपर्क छल । हुनके प्रेरणासँ हम बीसटा कथा आ एकटा उपन्यास
सन् १९८२सँ ८५क बीचमे लिखने रही। मुदा ओ सभ कतेको साल धरि पुस्तकाकारमे नहि छपि
सकल । मार्च १९८७मे हम बदली भए दिल्ली आबि
गेलहुँ। घरसँ कार्यालय आवागमनमे बहुत समय लागि जाइत छल। एहि ठाम जीवन-संघर्ष बढ़ि
गेल। मिथिला मिहिर बन्द भए गेल। अस्तु, ई कथा/ उपन्यास
सभ जस-के-तस पड़ल रहि गेल ।
एमहर
पुरनका पन्ना सभ पलटलहुँ तँ एकरा सभकेँ फेरसँ देखबाक अवसर भेटल। श्री उमेश मण्डलजी
बहुत परिश्रमसँ पुरान भेल पान्डुलिपि सभकेँ स्वच्छ प्रति टंकित केलाह जाहिसँ ई कथा
सभ इजोत देखलक। आखिर, डाक्टर उमेश मण्डलजी एकर
पाण्डुलिपिकेँ टंकित केलाह । तकर बादे ई पोथी प्रकाशित भए सकल । एतेक पुरान कागजपर
हाथसँ लिखल पाण्डुलिपिक फोटो ह्वाट्सअपपर निर्मली पठाएब आ तकरा टंकित करब बहुत
मोसकिल काज छल । हाथ रखितहि कागज लसकि जाइत छल। कतेको ठाम पेनसँ लिखलाहा ढबकि गेल
छल। किछु पन्ना तँ फाटिओ गेल छल । डाक्टर उमेश मंडलजी एहि कठिन काजकेँ अत्यन्त
परिश्रमपूर्वक आ उत्कृष्ट निष्ठासँ संपन्न केलनि । तकर बादे सन् २०१८मे फसाद (कथा
संग्रह) आ २०२२मे प्रतिबिम्ब(उपन्यास) क्रमशः
छपि सकल।
सन्
१९८७मे दिल्ली आबि गेलाक बाद हमर दैनिक दिनचर्या तेहन भेल जे लिखनाइ बला काज बहुत
दिन धरि बंद रहि गेल। कहिओ काल गाहे-बगाहे यदि लिखबो केलहुँ तँ ओ फाइलेमे
अप्रकाशिते रहि गेल। एमहर सेवानिवृत्तिक बाद सन् २०१६मे माएक देहान्तक बाद हमरा
मोनमे भेल जे फेरसँ मैथिलीमे लिखी। तहिआसँ हम नियमित लिखि रहल छी। लिखि लेलाक बाद
ओकरा टंकित करब,पुस्तकक आकार देब आ प्रकाशित कराएब बड़का समस्या छल। ओही समयमे डाक्टर
उमेश मंडलक जनतब भेटल । हुनकासँ संपर्क कएल । नित्य लिखलाक बाद हुनका मोबाइलपर
फोटो पठबैत छलिअनि। ओ तकरा टंकत करैत छलाह। तकरा हम फेर पढ़ैत छलहुँ । ओहिमे जरूरी
संशोधन करैत छलहुँ । तकर बाद ओ किताबक प्रूफ पठबैत छलाह ,से
हम कैकबेर पढ़ैत छलहुँ । ओहिमे बीच-बीचमे युनीनागरीपर ओहिमे सुधारो करैत छलहुँ ।
एहि तहरेँ लगातार पाँचटा किताब उमेशजीक सहयोगसँ छपि सकल। ओहि बीच हमरा युनीनागरीपर
टंकण करबाक नीक अभ्यास भए गेल। ओना हमरा अंग्रेजी टाइप करए पहिनेसँ अबैत छल। मुदा
देवनागरी टाइएिंग करबामे युनीनागरी साफ्टवेयरक बहुत योगदान अछि। असलमे ई साफ्टवेयर
हमरा २००९मे श्री गजेन्द्र ठाकुरजी पठओने रहथि। हम डाक्टर जयकान्त मिश्रजीपर एकटा
स्मरण लिखने रही। हाथसँ लिखल ओहि संस्मरणक फोटोकाँपी हुनका पठओने रहिअनि। तखने ओ
हमरा युनीनागरीक साफ्टवेयर पठओने रहथि । हम हुनके देल युनीनागरीक साफ्टवेयरमे काज
करबाक नीक अनुभव प्राप्त कए लेलहुँ । कालान्तरमे तकरे उपयोग कए हम मैथिलीक बीसटा किताब लिखलहुँ । एहिठाम ई कहब
युक्तिसंगत रहत जे हम पहिने कगजपर लिखैत छलहुँ । बादमे युनीनागरीसँ टाइप करबामे
अभ्यास भए गेलाक बाद सोझे लैपटापपर काज करैत रहलहुँ जाहिसँ कागज आ समय दुनूक बचति
भेल । काजक गुणवत्ता सेहो बढ़ल।
पछिला
सात सालमे हमर रचनासभ श्री गजेन्द्र ठाकुर द्वारा संपादित ई पत्रिका विदेहमे
निरंतर छपैत रहल अछि। हमर आत्मकथा(भोरसँ साँझ धरि),आ उपन्यास
नमस्तस्यै,महराज,लजकोटर ,मातृभूमि,बदलि रहल अछि सभ किछु विदेह पत्रिकामे
धारावाहिक पुनर्प्रकाशित होइत रहल अछि। अखनहु हमर उपन्यास,ठेहापरक
मौआएल गाछक धारावाहिक पुनर्प्रकाशन विदेह पत्रिकामे भए रहल अछि। एकर अतिरिक्त हमर
अनेक आलेख सेहो एहि पत्रिकामे छपल अछि। हमर सभटा पुस्तकक डिजिटल संस्करण विदेहक
पेटारमे राखल अछि आ निःशुल्क डाउनलोड कएल जा सकैत अछि । हैदराबादसँ श्री
सी.एम.कर्णजी आ हुनकर सहयोगीलोकनि द्वारा प्रकाशित पत्रिका `देसिल
बयना’मे हमर अनेक रचनासभ छपल अछि । मिथिलादर्शन कोलकातामे
हमर यात्रा प्रसंग(युरोप यात्रा आ कालापानी छपल छल। चेतना समितिक पत्रिका घर-बाहरमे सेहो हमर यात्रा प्रसंग(त्रिपुर सुंदरीक दरबारमे आ डाक्टर योगानन्द
वियोगीजीक वाल उपन्यास “ऊड़न छू गोलाक पुस्तक समीक्षा-ई
रहस्यमय संसार) छपल छल। एमहर मैथिली पुनर्जागणप्रकाशमे सेहो हमर किछु कथासभ छपल
अछि ।
समय-समयपर खास कए नवीन पुस्तकक प्रकाशनक बाद
फेसबुक/व्हाट्सएपपर चर्चा होइत रहल अछि। तकर किछु महत्वपूर्ण अंश संदर्भक हेतु
पुनःप्रेषित कए जा रहल अछि ।
प्रकाशित पुस्तकःबदलि रहल अछि सभ
किछु
प्रसिद्ध विद्वान एवम् मैथिलीक
महाकवि माननीय श्री बुद्धिनाथ झाजीक टिप्पणी (व्हाट्सएपक अरुणिमा साहत्यिक
गोष्ठीसँ उद्धृत):-
“मैथिली साहित्यक
एहेन 'एकांत सेवक' इएह टा। हिनक पोथी
सब मात्र गनतीक लेल नहि, ओकर गुणवत्ताक संग आवरण, छपाइ, सफाइ, सब किछु
उपरि-जुपरि।
सभ कीर्ति संग्रहणीय/ पठनीय अछि।
जय मैथिली”
प्रोफेसर डाक्टर भीमनाथ झा:“नव उपहारक स्वागत ।”
श्री लक्षमण झा सागर:”दू दर्जन सं बेसी मैथिलीक पोथी प्रकाशित छनि जकर कियो गोटे नोटिस नै लैत
छथि। मैथिली साहित्य के अभगदशा लिखल छैक।जे समाज अपन साहित्य आ साहित्यकारक सुधि
बुधि नै लेत। चर्चा धरि करबा मे कन्छी काटत तकर भगवाने मालिक।”
डाक्टर रमण झा: “रवीन्द्र नारायण मिश्रपर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ शोधकार्य भऽ
रहल अछि। सूचनार्थ।”
डाक्टर उमेश मंडल : “मैथिली साहित्यक उपन्यास विधा, जेकर भण्डार बहुत पैघ
नहि अछि, ताहिमे अपनेक अनवरण लेखन बहुत किछु अछि। की अछि,
केहेन अछि ओ तँ समीक्षक लोकनि कहता मुदा असाधारण ओ ह्लादकारी अछि,
से तँ सबहक मुहसँ निकलिए सकैए। सादर हार्दिक बधाइ...”
https://www.facebook.com/photo/?fbid=3022436554698002&set=a.1388340294774311
प्रकाशित पुस्तकःबीति गेल समय
https://www.facebook.com/photo/?fbid=2932602210348104&set=a.1388340294774311
प्रोफेसर डाक्टर भीमनाथ झा: “हम तँ एकरा उपन्यासक 'उपन्यासे' बुझै छी। कथा जा पूर्णताकेँ नहि प्राप्त क' लिऐ
ताधरि बढैत रहय, अर्थात् वार्ता सय राउंड तँ चलबेक चाही ।
समर्थन आ शुभकामना अपनेक संग अछि ।”
प्रोफेसर डाक्टर बिभूति आनन्द : “एहि ऊर्जा कें नमन”
प्रोफेसर डाक्टर रमण झा: “बहुत-बहुत शुभकामना आ बधाइ !”
डाक्टर उमेश मंडल:' बीति गेल समय' बहुत नीक शीर्षक…! हार्दिक बधाइ..!
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प्रकाशित पुस्तकःप्रलयक परात
https://www.facebook.com/photo/?fbid=2831911753750484&set=a.1388340294774311
प्रोफेसर (डाक्टर) भीमनाथ झा: “अहाँक लेखन ऊर्जाक अभिनन्दन...”
श्री हितनाथ झा: “संख्यात्मक दृष्टिएँ तँ हिनक पोथी डेढ़ दर्जन अछिये , गुणात्मक दृष्टिसँ सेहो हिनक लेखनी महत्वपूर्ण अछि । एकान्त साधक श्री
रवीन्द्र नारायण मिश्रजी संप्रति लिखिए रहल छथि से अनवरत । स्वागत ।”
केदार कानन : “हिनक रचनाशीलता मोहित आ प्रेरित करैत अछि ।”
प्रकाशित पुस्तकः'ढहैत देबाल'
प्रोफेसर डा. भीमनाथ झा: 'ढहैत देबाल' भने नाम राखि
लियौ अपने, हम तँ जोड़ाइत देबाल सैह मानब । तीन-चारि मासपर एक
पोथी--- मैथिली साहित्यक देबाल अपने जोड़ि रहलहुँ अछि । बधाइ!
प्रोफेसर डा.रमण झा:गद्यमे
उपन्यास आ पद्यमे महाकाव्य जँ केओ एकहुटा लिखि लैत छथि तऽ ओ यशस्वी साहित्यकार
कहबैत छथि आ जे जतेक अधिक संख्या बढ़बैत छथि से ततेक----। मैथिलीमे हमरा जनैत
विदितजी उपन्यासक संख्यामे सभसँ आगाँ छथि आ लगैए जेना अहीँ हुनका पकड़ि सकबनि। बहुत
बहुत बधाई आ शुभकामना।
प्रोफेसर डाक्टर बिभूति आनन्द : “मैथिलीक सौभाग्य जे अहाँ सन ऊर्जावान लेखक प्राप्त भेलै..”
https://www.facebook.com/photo?fbid=2615244298750565&set=a.1388340294774311
मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय
श्री लक्ष्मण झाजी लिखैत छथि(ह्वाट्सअपसँ उद्धृत):-
22/3/2022
“बरका काज क रहल
छी। असली मैथिलीक सेवा इएह छी। हमरा जानकारी अनुसार मैथिली साहित्यक उपन्यास विधाक
एतेक पोथी आर किनको नै छनि। से एक पर एक।
भगवती अहाँ के असीम उर्जा देथि आ
हमरा साहित्य के अहाँ आर अपन अनुपम कृत सब दैत रही। हमर असीम मंगल कामना!”
24/07/2022(ह्वाट्सअप)
प्रोफेसर(डा.) विजयेन्द्र झा: “मैथिली साहित्य अपनेक एहि 19 गोट
पोथीसॅ समृद्ध भेल आ' जहिआ कहियो मैथिली साहित्यक
इतिहास लिखल जाएत, तॅ मैथिली- साहित्यकारक श्रेणीमे अपनेक नामकें
अवश्य अमरत्व प्रदान करत। किओ एकटा
उपन्यास लिखि साहित्य मध्य अपन स्थान सुरक्षित करबा लैत छथि। ई तॅ संख्यामे चौदह गोट अछि। एहि सुकृतिक लेल सदा मैथिली साहित्य अपनेक ऋणी रहत।बहुत-बहुत शुभकामना।
प्रणाम!👏”
मैथिलीक
विद्वानलोकनिक हमर पुस्तकसभपर समीक्षा सेहो सेहो समय-समयपर छपैत रहल अछि। डा. योगानन्द झाजीक हमर मैथिली उपन्यास मातृभूमिक समीक्षा छपल छल जकर किछु
अंश प्रस्तुत कए रहल छी-
“स्वनामधन्य श्री
रबीन्द्र नारायण मिश्र बहुआयामी लेखक छथि । हिन्दी,मैथिली,
ओ अंग्रेजीमे समानाधिकार रखनिहार एहि एकान्तसेवी रचनाकारक दर्जनाधिक
पोथी प्रकाशित छनि जाहिमे अधिकांश प्रणयन ई मातृभाषा मैथिलीमे कयने छथि । विभिन्न
विधामे सिद्धहस्त श्रीमिश्र आत्मकथा,यात्रा-वृतान्त,निबन्ध-प्रबन्ध,कथा ओ उपन्यास आदि अनेक विधामे रचना
कयने छथि। खास कऽ हिनक रुचि उपन्यास विधाक प्रणयनमे छनि आ एहि विधामे ई मैथिलीक
उपवनमे क्रमशः नमस्तस्यै,महराज, लजकोटर,सीमाक ओहि पार,मातृभूमि,स्वप्नलोक
,शंखनाद, ढहैत देबाल, हम आबि रहल छी,प्रलयक परात,बीति
गेल समय आ प्रतिबिम्ब अभिदानसँ रंग-विरंगक पुष्प-पादप लऽ कऽ प्रस्तुत भेल छथि आ
आधुनिक मैथिली उपन्यास विधाकेँ समपुष्ट कयलनि अछि । हिनक उपन्यास सभ समाज ओ
राष्ट्रक अभ्युत्थानक प्रति हिनक चिन्तनक विराट आयाम केँ प्रस्तुत कयने अछि ।
मातृभूमि उपन्यासक माध्यमे ई मातृभाषा ओ मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक कर्त्तव्य
बुद्धिक परिष्कार दिस उन्मुख देखि पड़ैत छथि ।
उपन्यासक भाषा प्रसादगुण सम्पन्न,सहज ओ रोचक अछि । पात्र सभक मनोभावक विश्लेषणमे उपन्यासकार सफल भेल छथि।
वस्तु विन्यास युग जीवनक यथार्थपर आधारित अछि। मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक
दायित्वक उद्बोधन उपन्यासकारक जीवन-दर्शन ओ जननी-जन्मभूमिक प्रति सहज सिनेहकेँ
पल्लवित करैत अछि।”
हम आबि रहल छी(उपन्यास) पढ़लाक
बाद मैथिलीक मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ झा लिखैत छथि-
“अपनेक नव्यतम
उपन्यास 'हम आबि रहल
छी' हमरा लग आबि गेल अछि । पढ़बामे ततेक मन लागि गेल अछि जे
आन बेगरता भागि गेल अछि । ठीके, रोचकता तँ अपनेक लेखनीक
प्रमुख विशेषता थीके, जे एहूमे विद्यमान अछि-- एक तँ ई कारण
। दोसर ई जे एहिमे बूढ़ लोकक गूढ़ व्यथाक आख्यानक उत्थान, प्रस्थान
आ अवसान अत्यन्त आत्मीयता आ मार्मिकताक संग कयल गेल अछि । आजुक शिक्षित समाजक
बहुलांश कोना अपसंस्कृतिक मोहजालमे फँसि नाग जकाँ अपन प्रतिपालकोकेँ डँसि लैत अछि
आ अपनहुँ अन्तमे निराशाक नरकमे खसि आजीवन सिसकी भरैत रहैत अछि । परिवर्तनक एहि
बिरड़ोक अछैतो सनातन कर्त्तव्यबोध (यथा-- मातृपितृभक्ति, स्वावलंबन,
अपकारक बदला उपकार, तिरस्कारक उत्तर सत्कार
प्रभृति)क ध्वजा उधिया नहि गेलैक अछि, अपितु फहरा रहलैके अछि
। संयोग आ आकस्मिकता एकर कथानकक प्राण थिक । एक दिस पुत्र जत' प्रेमिकाक लौलमे अमेरिका धरि दौड़ मारैत छथि तैयो ओ हाथसँ पिछड़ि जाइत छनि आ
ई हकन्न कनैत छथि तँ दोसर दिस मायक गंगोत्रीमे जलसमाधि लेलाक कारणे पितो सायास
हुनक अनुसरण करैत छथि आ अटूट प्रेमक दृष्टान्त बनैत छथि । नाटकीयताकेँ सामान्य
पाठकमे उत्सुकता जगयबाक लेखकक कौशल रूपमे देखबाक थिक । अपनेक साहित्य-सभाक ई औपन्यासिक
नवरत्न मैथिली पाठकक चारू कात अपन चमक पसारैत रहय-- ताही शुभकामनाक संग हार्दिक
अभिनन्दन ।”
भीमनाथ
झा
25.6.2021
हमर पोथी,हम आबि रहल छी
पढ़लाक बाद प्रोफेसर डा.कीर्तिनाथ झाजी लिखैत छथिः
“सोझ कथानक। सरल
भाषा। अनेक नाटकीय मोड़, आ स्पष्ट संदेश।
एकहि बैसाड़ मे एहि पोथीक परायण
कयल।
विषयानुकूल कैनवास
आ नितान्त समसामयिक सामाजिक समस्या पर लिखल ई उपन्यास अंत धरि अहाँक
जिज्ञासा जगओने रहत।
उपन्यास लेखन मे सिद्धहस्त, आ निरंतर नव-नव उपन्यासक संग
उपस्थित होइत श्री मिश्रजीकें अनेक बधाई /साधुवाद।”
https://www.facebook.com/photo/?fbid=10227405720502325&set=a.10200225774380659%20%20Kirtinath%20Jha
एहीसाल प्रकाशित हमर उपन्यास,ठेहापरक मौलाएल
गाछपर श्री हितनाथ झाजीक समीक्षाक किछु अंश सेहो उद्धृत करैत प्रसन्नता भए रहल अछि
।
“हम एहि उपन्यासक
विषय--वस्तु दिस मात्र क्षेपक रूपमे लेलहुँ अछि, किन्तु जँ
अपने एहि उपन्यासकेँ पढ़बैक, तँ हिनक लेखनीक बिना प्रशंसा
कयने नहि रहि सकैत छी, जेना हमरा स्वयं हिनक एक उपन्यास
पढ़लाक बाद दोसर पढ़बाक व्यग्रता बढ़ि गेल ।
एतय हम उपन्यासमे की छैक , की होयबाक चाही ,की नहि होयबाक चाही ,ओहि दिस हम नहि जाय चाहब ,मुदा ई धरि अवश्य कहब आ से प्रो. भीमनाथ झाक शब्दमे जे एक पोथीक
प्रसंग लिखने छथि - " साहित्यकार जे
होयत , से चुप नहि रहत , मुँह खोलबे
करत ,साहसपूर्वक अपन भावना कागतपर उतारबे करत । बाजि तँ सकैत
अछि सभ , मुदा कहय थोड़केँ अबैत छैक । जकरा कहबाक लूरि छैक ,ओकर बात फोंक नहि जाइत छैक ,लोक बिच्चेमे छोड़ि क'
उठि नहि सकैत छैक । से जँ उठि गेल तँ बुझू कह' नहि अयलैक । ....!जँ पढ़ब शुरू करब तँ बिच्चेमे उठि जायब । नहि उठि सकब । आ
, सम्पन्न कयलाक बाद मनमे किछु अबस्से घुरघुराय लागत। से भेल
तँ भ ' गेलाह लेखक सफल । "
आ ,से " ठेहा
परक मौलाएल गाछ " पढ़लाक बाद अपने लोकनि सेहो मानबैक जे एकर लेखक पूर्ण सफल
भेल छथि।”
(https://www.facebook.com/photo/?fbid=6682323201824391&set=a.415366251853482 )
आरो अनेक विद्वान लोकनिक समीक्षा,पाठकीय प्रतिक्रिया हमरा समय-समयपर भेटैत रहल अछि। स्थान सीमित रहबाक
कारणे ओसभ उद्धृत नहि कए पाबि रहल छी। मुदा एतबा तँ कहब निश्चय जे हमर मैथिली
उपन्याससभपर अनेक विद्वान लोकनिक बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया रहल अछि जाहिसँ हम
आओर लिखबाक हेतु प्रेरित होइत रहलहुँ अछि । एहीक्रममे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त
झाजीक चर्च करब अत्यावश्यक अछि। ओ हमर सभटा किताब बहुत मनोयोगपूर्वक पढ़ैत रहलाह अछि
आ पढ़ि कए अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया सँ हमरा उत्साहित करैत रहलाह अछि। आदरणीय प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ
झाजी सेहो हमर अधिकांश किताब पढ़ि फोन कए वा लिखि कए अपन उद्गार व्यक्त करैत रहलाह
अछि। आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर रमण झाजीक उत्साहवर्धक शुभकामना तँ अबिते रहल अछि। मैथिलीक
प्रतिष्ठित साहित्यकार आ.श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी निरंतर हमर साहित्यिक प्रगतिक
हेतु उत्सुकता व्यक्त करैत रहलाह अछि । आदरणीय बुद्धिनाथ झाजी तँ कथे कोन । ओ तँ निरंतर
एहि प्रयासमे रहैत छथि जे हमर साहित्यकेँ उचित स्थान प्राप्त होअए। हिनके लोकनिक
आशीर्वादेक परिणाम थिक जे हम निरंतर लिखि पाबि रहल छी। आशा अछि जे हिनका लोकनिक
आशीर्वाद एहिना बनल रहत आ हम आर नीक-नीक पोथी लिखि सकब।
ई बात
सर्वविदित अछि जे मैथिलीमे पाठकक निरंतर ह्रास भेल जा रहल अछि। लोक पोथी कीनि कए
पढ़ए नहि चाहैत अछि। साहित्योमे राजनीति भरल जा रहल अछि। तखन लेखक करताह की?यात्रीजीसँ पटनामे केओ पुछलकनि- “बाबा मैथिलीमे आब
नहि लिखैत छिऐक?” ओ उत्तरमे कहलखिन-“मैथिलीमे
लिखब तँ कैकगोटे पढ़त ।” आ.मंत्रेश्वरजाजी अपन एकटा किताबक
भूमिकामे लिखने छथि-“मैथिलीमे लिखब लौल थिक ।” एही क्रममे स्वर्गीय राम लोचनठाकुरजी मिथिला दर्शनक एकटा संपादकीयमे
लिखने छलाह- “ लोक आब मैथिलीमे लिखबासँ
हटि रहल अछि। अपितु,एकाधटा किताब मैथिलीमे छपि गेलाक बादे
हिन्दी वा अंग्रेजीमे लिखनाइ शुरु कए दैत छथि।” ई सभ पढ़लाक
बाद मोनमे चिंता होएब स्वाभाविक । आखिर, ओ सभ तँ बहुत अनुभवक
बादे ई बातसभ बजलाह/लिखलाह ।
एहन
बात नहि छैक जे किछुगोटे हमरो उच्छन्नर नहि केलनि । अपितु,करिते रहैत छथि। कैकबेर बिना पोथी पढ़ने प्रतिक्रिया दैत छथि, कैकबेर पूर्वाग्रहित भए एहन-एहन वस्तु लिखि जाइत छथि जे उपन्यासमे कतहु
अछिए नहि । मुदा तेँ की? रचनात्मकता सदिखन विध्वंशक शक्तिसँ
जीतैत रहल अछि। आखिर तुलसीदासो तँ कहबे केलनि-“बंदौ संत
असंतन चरना ।” रमाचरितमानसक शुरुमे बेर-बेर असंतक प्रार्थान संतक संगे करैत रहलाह ।
अंतमे
हम अपन उपन्यास बिति गेल समयक पछिला पृष्ठपर उद्धृत पाँतिकेँ पाठक लोकनिक सम्मुख
राखि रहल छी जे संभवतः जीवनक अंतिम सत्य थिक-
सुख-दुख
जे किछु हमर भाग्यमे छल से आएल,गेल । हम आब नीकसँ बूझि गेल छी जे ई संसार माया अछि । केओ ककरो नहि अछि
एहिठाम । बस जेना नाटकक पात्र होअए। नाटक खतम,पात्र
खतम। जेना नाटकक नीक दृश्यसँ दर्शकगण
प्रसन्न भए जाइत छथि,कोनो कष्टप्रद दृश्यसँ दुखसँ नोर बहबए
लगैत छथि आ अंतमे सभकिछु ठामहि छोड़ि अपन-अपन घर वापस चलि जाइत छथि, तेहने थिक ई जीवन । आब चली। नाटक खतम अछि । आब बहुत हँसलहुँ,बहुत कनलहुँ । आब समय अछि शांत भए जेबाक । हम मंदिरक चौकीपर बैसल सएहसभ
सोचैत रहि गेलहुँ ।”
रबीन्द्र
नारायण मिश्र
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