अच्छे दिन आएंगे!
पिछले डेढ़ साल से पूरा विश्व
कोरोना महामारी के वजह से घोर संकट से गुजर रहा है । क्या अमेरिका, क्या
युरोप ,सभी इस संकट से परेशान हैं । पूरे विश्व में भारी तबाही मची हुई
है । लाखों लोग इस विमारी से मर
चुके हैं । अनगिनित संख्या में लोग इस बिमारी से संक्रमित हो चुके
हैं । कोरोना महामारी ने संपूर्ण विश्व के
परिदृश्य को बदल दिया है । सोचने की बात है कि मानवता पर इतने बड़े संकट क्यों और कैसे आ
गया? कल तक जो देश अपने ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में उपलव्धियो
का बखान करते नहीं थकते थे ,वे सभी के सभी,विना किसी
अपवाद के धारासायी हो गए । कई विकसित देशों में अस्पतालों के बाहर कोरोना से
संक्रमित मरीज तड़प-तड़प कर मर गए। आखिर हो भी क्या सकता था ?
किसी ने सायद ही सोचा हो कि एकाएक इतने तादाद में लोक गंभीर रूप से विमार हो
जाएंगे । पहले किसी-किसी को भेंटिलेटर तक जाने
की जरूरत होती होगी । अब तो इस बिमारी ने आइसीयू और भेंटिलेटर को आम जरुरत की चीज
बना कर रख दिया है । असल में इस बिमारी का
कोई निश्चित इलाज है ही नहीं । सारे विश्व में पैरफैला चुके इस विमारी के वचाव के
लिए टीके का अविष्कार भी बड़ी तेजी से किया गया । परंतु,भारत जैसे
विशाल आवादी बाले देश में टीकाकरण भी आसान नहीं है । लगभग १३५ करोढ़ के आवादी बाले
इस देश में सब को टीका लगाना एक बहुत बड़ी चुनौती है ।
कोरोना जैसे वहुरुपिए ने सारी
दुनिया को तबाह कर रखा है । अमेरिका जैशे प्रभुत्वशाली देश में लाखों लोग इस
विमारी के चपेट में आ कर अपनी जान गवाँ बैठे । पिछले साल जब यह महामारी भारत में
कम हो गया था तो हम सभी निश्चिंत हो गए । जहाँ-तहाँ भीड़ इकट्ठा होने लगी । लोगों
ने आवश्यक एतिहात बरतना छोड़ दिया । महाकुंभ जैसे आयोजन होने लगे । चुनावों में
इकट्ठा हो रहे लोगों की भीड़ ने हद ही कर दी । परिणाम सामने है। कोरोना के दूसरे
लहर में लाखों लोगो ने अपनी जान गमा दी । इस बार के लहर में मरने बालों में कम
उम्र के काफी लोग थे । दिल्ली जैसे महानगर
का तो यह हाल था कि इलाज कराने के लिए लोग जैसे-तैसे इस शहर को छोड़कर जहाँ-तहाँ
चले गए । एम्बुलेंस के लिए अनाप-सनाप दाम लिए गए । जरूरी दबाइओं की बात तो छोड़िए,आक्सीजन
मिलना भी मुश्किल हो गया । अस्पतालों के सघन चिकित्सा कक्षों में इलाज करबा रहे
लोगों को अचानक आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो गई जिस से कितने ही लोग मर गए जो अन्यथा
सायद बँच जाते । परंतु,इस सब के लिए हम सरकार को जिम्मेबार ठहरा कर निश्चिंत
नहीं हो सकते हैं । जब इतना बड़ा संकट आ गया तो हम ने क्या किया? यह
सबाल अत्यंत ही महत्वपूर्ण है ।
खेदकी बात है कि कुछ लोग अपने
निहित स्वार्थों के चलते कोरोना जैसे महामारी का भी राजनीतिकरण कर दिया है । जहाँ कोई त्रुटि
होती है कि वे केन्द्र सरकार को कोसने लगते हैं । सरकारों की
अपनी सीमाएं हैं । सबकुछ के लिए केन्द्र सरकार
को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। कई राज्यों में तो विपक्षी दलों की सरकारे
हैं । क्या उन राज्यों की स्थिति बेहतर है ? इसका उत्तर
सबको पता है । इसलिए इस मसले पर राजनीति नहीं होना चाहिए । सामान्य आदमी को उससे
कोई लाभ होने बाला भी नहीं है। लेकिन राजनीतिक लोगों को तो हर मसले में राजनीतिक
लाभ और हानि के दृष्टि से देखने की आदत है । लोक शक्ति का ऐसा दुरुपयोग जनतांत्रिक
व्यवस्थाओं की खामी ही है । यही कारण है कि दिल्ली में आक्सीजन
केआवंटन में स्थानीय सरकार ने बढ़ा-चढ़ाकर मांग पेश कर दी । उच्चतम न्यायालय तक ने
उनकी बातों का समर्थन कर दिल्ली को आक्सीजन दिलबाया । लेकिन अब सुनने में आ रहा है
कि दिल्ली सरकार को आवंटित आक्सीजन से बहुत कम आक्सीजन की जरूरत थी । अन्य राज्यों
की जरूरतों को अनदेखी कर दिल्ली को अधिक आक्सीजन देना पड़ा था जिस के कारण काफी
दिक्तों का सामना करना पड़ा । तात्पर्य यह है कि जनता को अपनी रक्षा खुद करने की
पहल करनी होगी । आपका जीवन बचा रहे ,इसके लिए सब से जरूरी यही है कि आप
जो कर सकते हैं सो तो करें । पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है। परिणाम सबके सामने है ।
कोरोना का जो दूसरा झटका लगा
वह हमसबों के लापरवाही का ही फल था । इस दौरान लाखों लोगों ने अपनी जान गँवा दी ।
सारी व्यवस्था चरमरा गयी । गंभीर रूप से विमार लोगों कोभी अस्पताल में जगह नहीं
मिला । लोग दिल्ली जैसे शहर को छोड़कर जहाँ-तहाँ भागते नजर आए । कई लोग तो रास्ते
में ही जान गँवा बैठे । सारी दुनिया ने भारत में घटित इस भयावह दृश्य को देखा । इस
से हमारी प्रतिष्ठा तो धूमिल हुई ही ,देश को गंभीर आर्थिक क्षति उठाना
पड़ा । कौन नहीं चाहेगा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो? पर
सो हो कैसे?
यह सभी जानते हैं कि कोरोना
का कोई सही इलाज किसी को पता नहीं है । यह एक नई विमारी है । कहते हैं कि यह चीन
के प्रयोगशाला में दुर्घटनावश बाहर आ गया । पता नहीं सच क्या है ? परंतु
इतना तो अब सब को पता है कि इस विमारी से जान बचाने का सर्वोत्तम उपाय वचाव ही है
। घर में रहिए,सुरक्षित रहिए । बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलिए ।
अगर बाहर जाना ही पड़े तो मास्क जरूर लगाइए । हाथ साफ रखिए । हाथ को मुँह,नाक
और आँख के पास मत ले जाइए । दुसरों से दो गज की दूरी रखिए । ये बातें वारंबार
सरकार द्वारा प्रचारित की जा रही हैं ।। फिर भी बहुत कम लोग ही इसका ठीक से पालन
करते हैं। मास्क पहनने के तरीकों पर ध्यान दीजिएगा तो हँसी आ जाएगी । कुछ लोग तो
उसे दाढ़ी के नीचे लटकाए रहते हैं । कुछ लोग जो मुँह ढकते भी हैं तो नाक खुला रहता
है ताकि उन्हे स्वच्छ हवा मिलता रहे । पर उन्हे यह मालुम होना चाहिए कि उसी स्वच्छ
हवा के साथ कोरोना का भाइरस भी आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है और अगर आप
संक्रमित हैं तो छीकते वक्त पता नहीं कितने और लोगों को संक्रमित कर सकते हैं ।
मास्क पहनना कोई खानापुरी नहीं है । वर्तमान
परिस्थिति में यह एक अनिवार्यता है । मास्क पहनिए,अच्छा मास्क
पहनिए और साथ-साथ वचाव के अन्य उपायों का पालन कीजिए । अगर लोग ऐसा करें तो इस
महामारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है । पर ऐसा हो नहीं रहा है । जैसे
ही हालात सुधरते नजर आते हैं ,लोग सब कुछ भूल जाते हैं । परिणाम सामने है ।
आज न कल मानव समाज इस विमारी
के ऊपर भी विजय पाएगा ही । परंतु,यह नहीं मालूम कि तबतक हम किस रूप
में इस दुनिया में होंगे,होंगे भी की नहीं यह कोई नहीं जानता
है । अभी ही बहुत सारे लोगों ने अपने इष्ट,मित्र और संवंधी खो दिए हैं ।
लोगों को एक-दूसरे को सांत्वना देने के लिए शब्द नहीं हैं । क्या कहें,किस-किस
से कहें? जो इस विमारी के चपेट में आकर दुनिया को छोड़ गए भला अब उनका
क्या कर सकते हैं? बेशक बिमारी रूक जाए परंतु जो गए सो तो लौट कर नहीं आ
सकते। पता नहीं और कितने लोगों को इस तरह हमें गँवाना पड़े । इसलिए जरूरी है कि
अपने और अपने परिचितों के जीवन रक्षार्थ
जो भी संभव है वे किए जाएं । बहुत सारे लोग जो आवश्यक संयम कर सके,अभी
बँचे हुए हैं । पर कुछ लोग तमाम संयम के बाबजूद नहीं
बचाए जा सके । परंतु,हमें इन बातों से हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है । हम
संभव प्रयास करें और शांत रहें । अकारण भयभीत रहना वा जरूरत से ज्यादा सोचते रहना
भी उचित नहीं है । हम आशावान रहें ,ईश्वर में भरोसा बनाए रखें । अच्छे
दिन आएंगे और जरूर आएंगे ।
रबीन्द्र
नारायण मिश्र,
ग्रेटर
नोएडा
३०.६.२०२१
mishrarn@gmail.com