शनिवार, 22 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक दोसर खेपः

 सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास  महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक दोसर खेपः



 

कमला ओ लखना पुबारिटोलक प्रसिद्ध भूतहा गाछीक पीपरक गाछपर रहि-रहि कए कानैत रहैत छलि आ ओहिठामसँ आबैत-जाइत लोकसभ कतेको बेर ओकरा हाकरोस करैत सुनैत छल। कमला आ मखनाकेँ एना हाकरोस करैत देखि मखनाक हृदयमे बहुत कष्ट भेलैक। ओ ओकरसभक इतिहास जनैत छल। एहन हाकरोस करैत ओ एसगर नहि छल। कतेको लोक महराज आ हुनकोसँ बेसी हुनकर सिपहसलारसभक अन्यायसँ त्रस्त छल। मखना स्वयं परेसान छल। मुदा कएल की जाए? किछु तँ प्रतिकार करक छलैक। तकर ब्योंतमे ओ लागि गेल। यमराजक ओहिठाम जाल पसारए लागल। यमराजकेँ ओकर गतिविधिपर शुरुएसँ शङ्का रहनि मुदा ओहो बेबस छलाह। सभठाम लोक जीति सकैत अछि मुदा घरनीसँ जितब बहुत मोसकिल काज थिक। मखना कोना-ने-कोना यमराजक घरनीकेँ पटा लेने छल। एहि कारणसँ ओकरा विरुद्ध ककरो नहि चलैत छल।

एकदिन दुपहरिआक समय रहैक। पुबारिटोलक लोटन महिस चरबए गेल रहए। गाछी लग पहुँचितहि कानबाक अबाज सुनि महिस परसँ धरफराक खसल। महिस चिकरए-भोकरए लगलैक। ओ महिसकेँ छोड़ि भूत-भूत..! बजैत इएह-ले ओएह-ले भागल। भागवाक क्रमे धोती खुजि कतए खसलैक से होस नहि रहलैक। कहुनाक नंग-धरंग अपन दलानपर पहुँचल। ओतए पहुँचितहि धराम दए खसि पड़ल आ बेहोस भए गेल।

गाममे गर्द पड़ि गेल। लोटनकेँ भूत गछारि देलक। भूत ओकरामे सन्हिआ गेल अछि। दूपहरिआमे भूतहा गाछी जेबेक नहि छलैक,” तरह-तरहक बातसभ गामक लोक कए रहल छल। ओहिठाम क्रमशः लोकक करमान लागि गेल। लोटनक ऊपर पानिक छिड़काव कएल गेल। पंखासँ हबा कएल गेल। मुदा ओ टस-सँ-मस नहि भेल। कैकगोटे कहए लागल जे एकरापर देवीक प्रकोप छैक,केओ कहैक जिन सबार भए गेलैक,केओ किछु,केओ किछु। ताबतेमे गामक प्रसिद्ध भगता कालू ओहिठामसँ गुजरि रहल छल। लोकक भीड़ देखि साइकिलसँ उतरि पुछलकैक-

"की बात?"

"कलममे महिंष चरबए गेल छलैक। ओतहि कोनो भूत गछारि लेलकै" -लोकसभ बाजल। से सुनितहि कालू भगता ताल-पतरा करए लागल। मंत्र पढ़ए लागल। कनीकालमे लोटना फुरपुरा कए उठि गेल। गमछासँ देह झाड़लक आ बिदा भेल जेना किछु भेले नहि रहैक। लोकसभ अबाक छल। कालू मोंछ पिजबैत बाजलः

"गामक सीमानमे भूत पैसि गेल अछि। बँचि कए रहैत जाउ।"

संयोगसँ हम ओही समय इसकूलसँ लौटि रहल छलहुँ। ताबे लोकक भीड़ छटि गेल छल।

लोटनकेँ पुछलिऐकः"की भेलैक?

“की जाने गेलिऐक?” -लोटन बाजल।

"एतेक लोक कथी लेल जमा भेल छल?"

लोटन किछु नहि बाजल। ताबे हमर माए ओतए आबि गेलि आ हमरा धिचने चलि गेलि।

ओहि दिनक बाद जखन कखनो केओ भूतहा गाछी दिस जाइत ओकरा ककरो कानबाक अबाज सुनाइत। एहि बातसँ गौआँसभ ततेक डरा गेल छल जे दिनोमे ओमहरसँ लोक आबा-जाही कम कए देलक। बहुत आवश्यक होइतैक तँ हनुमान चालीसा पढ़ैत कहुना कए ओहो दू-तीन गोटे संगे जाइत। ओ गाछी इलाकामे चर्चित भए गेल छल। आमक मासमे सोड़हि-के- सोड़हि आम पड़ल रहैत छल,केओ उठओनिहार नहि। सड़ि-सड़ि कए आम फेकाइत छल। नढ़िआ-कुकुरसभ आम खा-खा कए एकहि संगे भूकए लगैत छल जे आओर भयाओन लगैत छल।

मुदा हमरा रहल नहि होअए। हमर बाबा,दाइ,बाबू सभक सारा ओही गाछीमे छल। ओ हमर पुस्तैनी गाछी छल। नेनेसँ हम बाबूक संगे ओहिठाम आमक रखबारी करए जाइत छलहुँ। कैक दिन असगरो आमक रखबारी करैत छलहुँ। कहाँ कहिओ किछु विद्दति भेल? आबि ई गप्प-सप्प सुनैत रहैत छी। की पता एहूमे किछु बात होइक?

माएकेँ हम ई बात कतेको बेर कहलिऐक मुदा ओ अंठा दैक। बेसी कहितिऐक तँ कहैत- तूँ एहिसभ बात पर एतेक नहि सोचै। पढ़ाइमे मोन लगा जाहिसँ भविष्य बनतौ। की करितहुँ? चुप भए जाइ। मुदा सौंसे गामकेँ कोना चुप कए दितिऐक? सभ एकस्वरसँ ओकरा भूतहा गाछी कहैक। एक हिसाबे गामक लोकसभ ओहि गाछीकेँ बारि देने छल।q


Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time .However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle . Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक प्रथम खेपः

 महराज

छोट सन गाम पुबारिटोलमे कमला आओर लखनाक सुखी संपन्न परिवार छल। लखना दस बिघा मड़ौसी जमीन जोतैत छलाह। लखनाक एक पैर सदरिकाल खेते-खरिहानमे रहैत छल। हुनकर संपन्नता गामेक किछुगोटेकेँ नीक नहि लगैत छलनि। ओ सभ कैक बेर झूठ-मूठकेँ मोकदमामे लखनाक नाम दए दैत छलाह मुदा ओ जेना-तेना बचैत गेलाह। आस्तिक लोक छलाह। सभमास सत्यनारायण भगवानक पूजा करैत छलाह आ संकटसँ उबारक हेतु हुनकर कृतज्ञ रहैत छलाह।
समय सभ दिन एकरंग नहि रहैत अछि। ओसभ केना-ने-केना लचरि गेलाह। किछु ॠण सेहो भए गेलनि। ओहने दिकदारीक समयमे महराजक लगान नहि दए सकलाह। हुनकर पाछू पड़ल दिआदवादकेँ ई मौका हाथ लगलैक। महराजक ओहिठाम नालिस भेल। लगान नहि देबाक कारण हुनकर सभटा जमीन-जायदाद औनेपौने दाममे नीलाम भए गेल। महराजक सिपहसलारसभ ढ़ोल बजा-बजा कए सभटा जमीन बेचि देलक। लखना एहि आघातकेँ बरदास नहि कए सकलाह आ किछुए दिनमे एहि संसारसँ चलैत बनलाह। हुनकर पत्नी कमला तँ पहिनेसँ अथबल छलीह। चलि-फिरि नहि होनि। पक्षाघातसँ वामअंग बेकार छलनि। लखनाक आकस्मिक देहावसानकेँ ओ नहि सहि सकलीह आ किछुए दिनमे हुनको प्राणांत भए गेलनि।
देखिते-देखिते एकटा जुड़ल-अटल घर उजड़ि गेल। भोजनो दुर्लभ भए गेल । एहन खिस्सा लखनेक नहि छल। गाम-गाम एहिना कतेको लोक महराजी जुलुमक सिकार भेलथि आ जीविते नरकक भोग भोगि रहल छलाह। महराजकेँ कोनो मतलब नहि। पता नहि हुनका किछु बुझलो रहनि कि नहि? की पता हुनकर सिपहसलारसभ मनमानी करैत रहल हो? ककर हिम्मति छल जे महराज लग सिकाइत करत। जे कनीको किछु करत ओहिसँ पहिने ऊपर पहुँचा देल जाइत छल।
लखना ओ कमला मरिओ कए अपन लोक-वेदसँ फराक नहि भए सकलाह। रहि-रहि कए ओ सभ गामेक लगीचमे घुमैत रहैत छलाह। अपन जजातिपर नजरि लगओने रहैत छलाह। हाकरोस करैत रहैत छलाह जे हुनकर संतानसभक अधिकारकेँ अन्यायपूर्वक बेदखल कए देल गेल। मोनमे कतहुँ उमीद रहनि जे कहिओ हुनकर कोनो संतान एहि अन्यायक प्रतिकार करत आ तखने हुनकर आत्माकेँ मुक्ति हेतनि।
यद्यपि ओकरासभकेँ मरला कतेको वर्ष भए गेल मुदा गामक, अपन लोकक मोह ओकरा गाम झिकने आनि लैत छल। गाम आबएकाल ओ देखैत छल जे महराजक महल चारूकात पसरिते जा रहल छल। बड़का-बड़का देबालसभ ठाढ़ भए गेल छल। की-की ने भए गेल छल, मुदा देबालक ओहिकात लोक बेबस छल,जीवितो जीवनक संपूर्ण सुखसँ वंचित छल। कतेको लोककेँ हार-पाँजर एक भेल छल। से सभ देखि कए ओ आओर दुखी भए जाइत छल,कैक बेर ठोहि पारि कए कानए लगैत छल। तथापि ओ गामक मोह छोड़ि नहि पाबि सकल छल।
एहिना एकराति ओसभ अपन गाम दिस जेबाक इच्छुक छलाह। कमला बजलीह- "चलू ने अपन गाम?”
“पता ने आब के-के हेताह? कोन रुपमे गाम होएत? ककरो चिन्हबो करबैक कि नहि? आ फेर जौं किछु उल्टा-पुल्टा समाचार भेटि गेल तँ अनेरे दुखमे पड़ि जाएब।" -लखना बाजल।
“एतेक केओ सोचए? हमरा लोकनि छी प्रेतात्मा। बौआएब तँ अपन सभक कपारेमे लिखल अछि?"
“ऐं! की कहलिऐक?"
“ध्यान कतए अछि?"
“ऐ! इएह अपनसभक घर लगैत अछि। लगीचमे चभच्चा देखि रहल छी। मुदा हरिक घर नहि देखा रहल अछि?"
“हमरातँ बहुत चीज नहि देखा रहल अछि? फुलबाड़ी जकरा हम दिन-राति पानि दैत रहैत छलहुँ कहाँ अछि? ओलार जतए महिस बन्हाइत छल ओहो निपत्ता अछि। कतेको नव-नव घर देखि रहल छी। कहीं दोसर गाम तँ नहि आबि गेलहुँ?"
“धुत् तोरीके। सुनैत नहि छिऐक के खोखसि रहल छैक?"
“के छैक?"
“किछु देखा नहि रहल छैक? मुदा खोखसबाक अबाज तँ आबि रहल अछि।"
“से तँ सत्ते।"
“मुदा छै की।"
“रातुक अर्धपहर छैक। किछु भए सकैत छैक? की पता कोनो आओर प्रेतात्मा घुमि रहल होइक? जिन होइक,ब्रह्म पिशाच होइक,तेँ सावधाने रहब।"
"बात तँ सही कहि रहल छी, किछु संभव अछि।"
अबाज बढ़िते गेल। ठन..ठन...झम..झम...।"
“हमरा डर लगैत अछि...।"
“प्रेतो भए कए डर लागि रहल अछि?"
“इएह तँ एहि जोनिक विशेषता अछि जे एतए सभ किछु अपने-आप होइत रहैत अछि। अहाँ तँ आब पुरान भेलहुँ। ई सभ बूझल हेबाक चाही।"
“दाइ गे दाइ...। ई के अछि...। नमगर-नमगर हाथ बढ़ओने जा रहल अछि।"
“थम्हु, टार्च बारि रहल छी।"
“टार्च कतएसँ आएल?"
“बड्ड अपाटक छी। श्राद्धमे दान भेल रहैक से बिसरा गेल?"
ढन-ढनकेँ अबाज बढ़िते गेल। कनी कालमे बड़ी जोड़केँ अन्हड़ आएल आ सभ किछु उड़ा कए लेने चलि गेल।
“भागू-भागू, केओ पछोड़ कए रहल अछि...।"
आओर दुनू गोटे बिला गेल।
राति भरि कमला ओ लखना गामक लगीचमे घुमैत रहि गेल मुदा नीचाँ नहि उतरि सकल। लगैक जेना कोनो प्रचंड शक्ति ओकरासभकेँ रोकि रहल अछि। किछु देखा नहि रहल छलैक। दुनू गोटेक मोन औनाए लगलैक। एहन तँ कहिओ नहि भेल छल। देखल-सुनल गामक रस्तामे ई की सभ भए रहल छैक? दुनू गोटेक चिंता एकहि बातक रहैक, जे आखिर ओकर वंशजसभ केँ कोनो संकट तँ नहि आबि गेल? एहिबातसँ ओसभ व्यग्र छल।
“कैक बेर कहलहुँ जे आब गाम-घरकेँ बिसरि जाउ। ओहिठाम आब की राखल छैक? तीन पुस्त गुजरि गेल। अपनासभकेँ के चीन्हत? मुदा अहाँक मोन मानिते नहि अछि।" -लखना कहलकै।
"बुझै तँ छीऐक मुदा मोन नहि मानैए" -कमला बाजलि।
“प्रेत जोनिमे हम अहाँ छी। एतए लोक अपन मोनक किछु नहि कए सकैत अछि। भूख- प्यास सभ लगैत अछि मुदा समाधान कथुक अपना हाथमे नहि अछि।"
“से तँ छैक मुदा बौअनकेँ बिसरि नहि पाबि रहल छी।"
"अहाँकेँ ई की सभ फुराइत रहैत अछि? के थिक बौअन?"
"सएह कहू, बौअन बिसरा गेल?"
"हमरा किछु मोन नहि पड़ रहल अछि?"
“बहुत आश्चर्यक गप्प थिक जे लोक अपनो संतानकेँ बिसरि जाइत अछि।”
“बिसरि नहि जाइत अछि, बिसरा जाइत छैक। ई मृत्युलोक नहि छैक, प्रेतलोक छै।”
ओकरासभकेँ गप्प-सप्प होइते रहैक कि लगलैक जेना ठनका खसि रहल छैक। अन्हड़ उठि रहल छैक। चारूकात भयाओन ध्वनि सन्न-सन्न कए पसरि रहल अछि।
"भागू, भागू।"
"की भेलैक?"
"सुनि नहि रहल छिऐक?"
"की छैक...?
ओ एतबा बाजले छलि कि मखना सामने प्रकट भेल- “गोर लगैत छी।"
“के छह?' -लखना पुछलकैक।
"हम छी कालू भगताक भाए, मखना।"
से कहि आगू बढ़ि गेल। ओ मृत्युलोकसँ ककरो प्राण घिचने जा रहल छल। यमपाश भजैत हरहराइत आगाँ बढ़ल जा रहल छल कि कमला ओ लखना हाकरोस करैत देखाएल रहैक।
(क्रमशः...)
रबीन्द्र नारायण मिश्र

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मंगलवार, 14 मार्च 2023

Blessed!

 

Blessed!

 

 

In the early Morning

When the first rays of the Sun

Have just sneaked into your bed room

While You are sitting on the sofa

Along with your wife

Sipping together morning tea

And exchange pleasantries

You are really lucky and blessed.

 

Your grandchild comes running to you

Sits in your lap

He smiles, he jumps,

he falls, he weeps

And asks for so many things

Chokolates, Kurkure, biscuits

Keeps uttering half spoken words so beautifully

You really experience a Heaven on the Earth.

 

Someone heartbroken

And fed up with life

Is on the brink of collapse

May not survive

Your single affectionate word

Can rekindle hope in him

Infuse love for life  

And save him

That gives you satisfaction par excellence

 

When a victim of road accident

Lying in the midst of road

In the pool of blood

Unattended

Half unconscious

Your slight attention and helping hand

Can save his life

You really become a messenger of God!

 

You can give a little

To someone actually needy

Unable to feed his child for the last several days

And save them from starvation

You enjoy the eternal bliss never experienced.

 

Thus, small things

Makes a lot of difference

Might change the course of life

Of a man deprived and in actual need

If we provide a helping hand

It gives us tremendous peace of mind

And a lot of satisfaction

And adds to the values of our lives

That makes the world

Really an abode of God!

 

Rabindra Narayan Mishra

mishrarn@gmail.com

शनिवार, 6 अगस्त 2022

इएह नियति छल

इएह नियति छल हम केन्द्र सरकारमे विभिन्न पदपर विभिन्न विभागमे लगभग साढ़े उनचालीस वर्ष नौकरी केलहुँ । सेवानवृत्तिक बादो फेरसँ स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेटक पदपर दिल्ली उच्च न्यायलसँ चयन भेल आ तीन साल चारि महिना धरि दिल्लीक विभिन्न न्यायालयमे हम ई काज केलहुँ। पैंसठि वर्षक आयु भेलापर इहो काज सठि गेल। एतेक समयमे कतेको तरहक नीक लोक-बेजाए लोक भेटैत रहलाह । कतेको लोक अएलाह-गेलाह । मुदा किछुगोटे जीवनमे तेना ने जुड़ि गेलाह जकर कल्पनो हम नहि केने रही । ओहिमे नगवासक श्री नारायण झाजी , पिंडारुछ गामक प्रोफेसर(डाक्टर) विनय कुमार चौधरीजी , ओहि समयमे गृह मंत्रालयमे कार्यरत दरभंगा लग पतोर गामक बासी मिसरजी(श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र),इलाहाबादक श्री संजीव सिन्हा जी , आ न्याय विभागमे कार्यरत मुजफ्फरपुर लगक श्री मदन मोहन सिन्हाजी बिसरने नहि बिसरा सकैत छथि । बिना कोनो स्वार्थकेँ ई लोकनि जीवन भरि हमरा सभ तरहें सहयोग करैत रहलाह । एकरे कहल जा सकैत अछि पूर्वजन्मक संवंध । भए सकैत अछि जे ई लोकनि पहिलके जन्मसभसँ हमर अपन रहल होथि । एहन घटना कोनो हमरे संगे भेल होएत से बात नहि छैक । सभ व्यक्तिक संग जीवन मे किछु-ने-किछु चमत्कार होइत अछि जकर व्याख्या करब मोसकिल थिक। हिनका लोकनिक अतिरिक्तो बहुत रास एहन लोकसभ संपर्कमे अएलाह जिनकासँ बहुत तरहक उपकार होइत रहल । ककर-ककर नाम लेल जाए । एहि पोथीमे प्रसंगवश एहने किछुगोटेक स्मरण भेल अछि । मुदा बहुतगोटेक बारेमे हम नहि लिखि सकलहुँ । तकर मूल कारण प्रकाशकीय समस्या कहि सकैत छी । मुदा तकर माने नहि जे ओ सभ कोनो मानेमे कम महत्वपुर्ण छलाह । अवसर अएलापर भविष्यमे हुनको लोकनिपर लिखवाक प्रयास कएल जाएत । जीवन चलिते अछि सहयोगसँ । एकटा मनुक्खक निर्माणमे कतेको लोकक योगदान रहैत अछि । माता-पिता तँ जन्म दैत छथि,पालन-पोषण करैत छथि । मुदा संस्कार आ शिक्षा तँ समस्त समाजसँ भेटैत अछि । सभ वंदनीय छथि,प्रशंसाक पात्र छथि जिनका बिना एतेकटा समय नीकसँ बितबाक कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल । दुर्गामाताकेँ शत्रुसँ लड़बाक हेतु समस्त देवतालोकनि अपन-अपन अस्त्र-शस्त्र प्रदान केलनि । तकरबादे ओ युद्धमे उतरलीह आ विजयी भेलीह । तहिना एहि जीवन युद्दमे सफलताक पाछू छोट-पैघ अनेको लोकक योगदान रहैत अछि । जन्मसँ मृत्यु पर्यंत समाजक सहयोगक बिना केओ एकडेग नहि बढ़ि सकैत अछि । हमरा लोकनिक उच्च विद्यालय एकतारामे गणितक शिक्षक श्री जटाशंकर झाजीक ॠण कोना सधा सकैत छी जे हमरा गणितमे तेहन पक्का कए देलाह जे आगू कतेको वर्ष धरि हमरा फएदा करैत रहल । हमरा गामक कतेको लोकसभ(जे आब एहि लोकमे नहि छथि) हमरा निरंतर उत्साहित करैत रहलाह,कैकबेर मदति केलाह,तिनकर उपकारकेँ कोना बिसरल जा सकैत अछि । हमर पितिऔति काका स्वर्गीय पंडित चंद्रधर मिश्रजीक प्रेरणादायी विचारसँ हम कतेक उपकृत भेल छी तकर की वर्णन करू । बाबूक कैकटा संगीसभ जेना स्वर्गीय श्यामलाल यादव (अड़ेर,ब्रह्मोत्तरा),स्वर्गीय कृष्णदेव नारायण सिंह(एकतारा),स्वर्गीय मार्कंडेय भंडारी (अड़ेर,सिनुआरा टोल )सभक अनेको उपकार हमरापर अछि । एही तरहें नौकरीक क्रममे कतेको प्रिय-अप्रिय घटनासँ बहुत शिक्षा भेटैत रहल । तकरासभकेँ कोना बिसरब? जहिना कतेको लोकसभ बिना कोनो लोभ-लालचकेँ हमरा मदति केलनि आ हमर जीवन यात्राकेँ सुगम बनबएमे सहयोगी भेलथि तहिना हमहु जतए मौका भेटए अनका मदति करी सएह सुंदर समाधान भए सकैत अछि। हम से प्रयास केबो केलहुँ । हम ताहिमे कतेक सफल आ सही रहलहुँ से तँ ओएहसभ कहि सकैत छथि । मुदा अपना मोनमे संतोष तँ रहिते अछि जे हमर परिस्थिति छल ताहिमे जे जखन कएल जा सकैत छल से हम केलहुँ । हमरा जहिना किछुगोटे स्वतः मदति करैत रहलाह,तहिना किछुगोटे अकारण हमरा परेसान करैत रहलाह । अखनो कखनहु जखन कैकटा बितल बातसभ मोन पड़ैत अछि तँ रोमांच भए जाइत अछि । आखिर ओ सभ एना किएक केलाह? मुदा छोड़ू ओ बात सभ । जीवन अछिए कतेकटा? जँ सएहसभ सोचैत रहि जाएब तँ सोचिते रहि जाएब । किछु नीक नहि कए सकब । नीक बनबाक लेल,नीक करबाक हेतु बहुत किछु छोड़ए पड़ैत अछि । ओहिना जेना श्वेत रंग सातो रंगकेँ छोड़ि कए सात्विकताक ग्रहण करैत अछि। मानलहुँ जे ई ओतेक आसान नहि छैक,तथापि एकटा उच्च आदर्श तँ मोनमे रखबेक चाही । तखने जीवनमे आनंद उठा सकैत छी । भोरे नओ बजेसँ साँझ छओ बजे धरि वा ओहूसँ बेसी समय लोकक कार्यालयमे बितैत अछि । ताहिसँ एक घंटा पहिने आ एकघंटा बादक समय कार्यालय आबए-जाएमे बितैत अछि । कार्यालय बिदा होबएसँ पहिने भोरे उठलाक बाद लोक नित्यकर्मसँ निवृत भए अपना आपकेँ कार्यालय जेबाक हेतु तैयार करैत अछि। कार्यालयसँ घर अएलाक बादो घंटा-दूघंटा धरि कार्यालयक थकान भगबएमे लागि जाइत अछि। कहक माने जे सोमसँ शुक्र दिन धरि कमसँ कम बारह घंटा समय कार्यालयमे वा ओकर तैयारीमे बिति जाइत अछि । एतेक थाकल-ठेहिआएल जखन लोक घर अबैत अछि तँ बेसी किछु करबाक स्थितिमे नहि रहि जाइत अछि । कनी-मनी परिवारक लोकसभ सँ गप्प-सप्प केलाक बाद लोक भोजन केलक आ सुतबाक हेतु चलि गेल । एहि तरहें पाँचदिन बितलाक बाद अबैत अछि शनिक दिन । ओहो तखन जखन कि पाँचदिनक कार्य दिवस होइक । जँ से नहि अछि तखन तँ बस सप्ताहमे एकहिटा दिन बचि जाइत अछि । मुदा आब अधिकांश कार्यालयमे पाँचदिन कार्यदिवस होइत छैक । तेँ लोक सप्ताहमे पाँचदिन काज केलाक बाद सप्ताहांत होबएबला छुट्टीक बहुत उत्सुकतासँ प्रतीक्षा करैत छथि । शनि-रविक दिन अपना हिसाबसँ सुतैत आ उठैत छथि । जतए मोन होइत छनि ,ओतए घुमैत छथि । माल-सीनेमा वा कोनो पर्यटन स्थल जाइत छथि । देखिते-देखिते फेर सोमक दिन आबि जाइत अछि । तकर बाद ओएह दैनिक कार्यक्रम शुरु भए जाइत अछि । ओहिना भोरे उठब,ओहिना समयपर कार्यालय पहुँचब । दिनभरि ओतए कुटौनी करब आ साँझमे थाक-झमारल वापस अपन घर आएब । एहि तरहे आइ-काल्हि करैत-करैत कतेको वर्ष बिति गेल। कोन-कोन विभागसभ ने घुमैत रहलहुँ। अंततोगत्वा, सेवानिवृत्त भए गेलहुँ । एहि तरहे देखिते-देखिते एतेकटा जीवन बिति गेल । ई जीवन चमत्कारसँ भरल अछि । एहिमे की कहिआ होएत,के अहाँक मित्र भए जाएत,के शत्रु भए जाएत तकर किछु व्याख्या करब मोसकिले नहि असंभव थिक । हमरा अपने जीवनमे एहन-एनह घटना घटल,एहन-एहन लोकसभसँ उपकार/ अपकार भेल जकर कोनो कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल । आब जखन उनटि कए पाछा देखैत छी तँ हमरा द्वारा समय-समयपर कएल गेल कैकटा निर्णय गलत लगैत अछि । मुदा पचास वर्ष पूर्व जे हमर सोच छल,परिस्थिति छल ,ताही हिसाबे ने निर्णय लितहुँ ,से लेल गेल होएत । आब जखन परिणामक समीक्षा करैत छी तँ स्वयंपर हँसी लगैत अछि । एक तँ परिस्थितिक निर्माण अपना हाथमे नहि छल,फेर तकरबाद कएल गेल प्रयास-कुप्रयासक परिणाम सेहो अपना हाथमे नहि छल । मुदा ई कोनो हमरे संग भेल होएत से बात नहि छैक । पृथ्वीपर विद्यमान समस्त जीव-जन्तु प्रारव्धक अधीन छथि । ककरा कखन की होएत से किछु नहि कहल जा सकैत अछि? बाढ़ि अबैत छैक,लाखो जीव-जन्तुक जीवन नष्ट भए जाइत अछि । आखिर ओ जीव-जन्तुसभ की सोचैत होएत?ओकरसभक की दोष रहैत छैक जे देखिते-देखिते लाखोंक संख्यामे बाढ़िक पानिमे दहा जाइत अछि। मुदा प्रकृतिक विभीषिकाक तँ बुझलहुँ जे ओहिपर ककरो वश नहि रहैत अछि मुदा जे समस्यासभ हमसभ स्वयं जीवनमे ठाढ़ कए लैत छी,तकर की जबाब देल जा सकैत अछि? कहि सकैत छी जे इएह नियति छल । हमर इलाहाबादमे नौकरी करए जाएब,जखन की हम दरभंगासँ दिल्लीक केन्द्रीय सचिवालय सेवामे नौकरी करए गेल रही सेहो एकटा नियति छल । हमरा ओहिठाम सुख-दुख भोगबाक छल । शत्रु-मित्र जे बनल,से बनबाके छल । एहीठाम कहल जा सकैत अछि जे लोक कैक जन्मक कर्मसँ बान्हल रहैत अछि,जे बिना चाहने ओकर पछोड़ करैत रहैत छैक । जीवनक बहुत रास घटनाक कोनो व्याख्या हमरा लोकनि नहि कए सकैत छी। भावी कहि सकैत छी ,प्रारव्ध कहि सकैत छी। मुदा जीवनमे आघात-प्रतिघात सभकेँ सहए पड़ैत छैक,से जकरासँ जकरा भए जाइक । एकर कोनो हिसाब नहि कएल जा सकैत अछि । जखन जिनगीक पन्ना वापस उनटबैत छी तँ सोचिते रहि जाइत छी । सोचलिऐक किछु,भेलैक किछु । ई बात कोनो हमरे संगे भेल से बात नहि छैक । जीवन छैहे तेहने। एकर कोनो निजगुत रस्ता नहि अछि,ई कोनो पहिनेसँ खींचल डरीरपर चलए बला नहि अछि । एक हिसाबे ई आबारा थिक,जे मोन हेतैक सएह करत । प्रकृतिमे सभठाम मोटा-मोटी इएह हाल छैक । जखन मोन हेतैक मेघ बरसि जाएत,जखन मोन हेतैक भयानक गर्मी पड़ए लागत आ कखनो तेहन जाढ़ धरत जे होएत जे एकचारिओमे आगि लगा कए हाथ सेकि ली । बाह रे जिनगी! हम सोचैत रहैत छी जे जँ हम दिल्ली नहिए जइतहुँ तँ कोनो घाटामे नहि रहितहुँ । हमर कैकटा मित्र मधुबनी,दरभंगामे जिनगी भरि रहलाह आ की नहि कए गेलाह? मुदा फेर ओएह बात? सभक अपन-अपन भाग्य,सभक अपन-अपन कर्म । जीवनकेँ कोनो तय सीमामे व्याख्या नहि कएल जा सकैत अछि । मानि लिअ जे केओ आइएएस कइए गेल तँ की ओ सुखी रहबे करत तकर कोन ठेकान? कोनो ठेकान नहि? कैकटा आइएएस आत्महत्या कए लैत छथि? कैकटा आइआइटी इंजिनीयर अकाल मृत्युक शिकार भए जाइत छथि । तेँ जीवन जे भेटल अछि तकरा मात्र अफसोच करैत बिता लेब,कोनो नीक बात नहि कहल जा सकैत अछि । असल बात तँ ई थिक जे सभक जीवनक दशा ओ दिसा पूर्वसँ तय अछि आ सभ किछु ओही तरहें होइत अछि जेना ओकरा हेबाक रहैत अछि । प्रकृतिक व्यवस्थामे कोनो दुविधा नहि रहैत अछि । ओ तँ हमसभ स्वयं मोहवश उतपन्न कए लैत छी । हम जखन नौकरीमे गेलहुँ तँ शुरु-शुरुमे बहुत परेसानी होअए। ई नहि बूझल रहए जे एहि पेशामे सभकेँ डाँट-फाँट होइते रहैत अछि । केओ कतबो पैघ अधिकारी होथि,हिनका हुनकर वरिष्ठ कहिओ-ने-कहिओ कोनो-ने-कोनो त्रुटि पकड़ि किछु-ने-किछु कहबे करतिन । ई एहि पेशाक संस्कार थिक । तेँ एकरा बेसी ध्यान नहि देबाक छलैक । मुदा हम तँ अपन माता-पिताक बहुत दुलारु संतान रही । परिस्थितिवश, एक्कैसम वर्षेसँ नौकरी करए लागल रही । जँ कोनो बातपर अधिकारी डाँटि देथि तँ बहुत कष्टमे पड़ि जाइ । गाम-घरसँ फटकी रहए पड़ए सेहो बहुत कष्टक कारण रहए । असलमे हमरा शुरुमे नौकरी करबाक लूरि नहि रहए । अधिकारी,सहकर्मी आ अधीनस्थ कर्मचारी सभक संग अलग-अलग व्यवहार करब नहि बुझिऐक । क्रमशः एहि माहौलसँ समन्वय करब आबि गेल । तकरबाद नौकरी करब ओतेक मोसकिल नहि रहल । मुदा ताहि प्रयासमे व्यक्तित्वक मौलिकता सेहो क्षीण होइत गेल । सरकारी सेवामे तँ आदमीकेँ एकटा मसीन जकाँ बना देल जाइत अछि । एकर सभसँ नीक शिक्षा हमरा एकटा कार्यालयमे कार्यरत मालीसँ भेटल । ओकरा किछु कहिऐक तकर जबाब “यस सर”मे दैत छल । हम एकबेर पुछलिऐक जे ओ एना किएक करैत अछि । जबाबमे ओ कहलक जे ओकरा एकटा अधिकारी सिखा देने रहथिन जे सरकारी कार्यालयमे केओ किछु कहए तँ तकर उत्तरमे ‘यस सर` कहि देल करी । ओ सएह करए । कहबी छैक जे जखन धोती पहिरए जोकर होइत अछि तँ ओ फाटए लगैत अछि । खिआइति -खिआइति ओकर ताग महिन भए जाइत छैक,धोती चिक्कन भए जाइत छैक । मुदा ओ घात-प्रतिघात सहबा जोगर नहि रहि जाइत अछि आ कनिको जोर पड़ितहि फाटि जाइत छैक । सएह बात जीवनोपर लागू होइत छैक। से कोना? तँ कहिए दैत छी । युवावस्थामे लोककेँ बहुत ऊर्जा रहैत छैक । लोक खतरा उठा सकैत अछि । मुदा जीवनक अनुभव कम रहबाक कारण उल्टा-पुल्टा निर्णय भए जाइत छैक । अनुभव होबएमे समय लगैत छैक,सौंसे जीवन बिति जाइत छैक । मुदा ताधरि समये नहि रहि जाइत छैक जे लोक सुधार कए सकए। तेँ चाही जे अनुभवी लोकनिक विचार ली,हुनकर ज्ञान सँ फएदा उठाबी । नेना जकाँ आङुर जराए कए आगिसँ बँचबाक शिक्षा नहि ली । आब जखन पाछू घुमि कए सोचैत छी तँ लगैत अछि जे कैकटा एहन गलतीसभ भेल जाहिसँ बँचल जा सकैत छल । मुदा आब ओहिपर सोचलासँ की फएदा? जे हेबाक छल से भेल । समय समाप्त अछि। जीवनक अंतिम अध्याय चलि रहल अछि । ई बात तँ निर्विवाद अछि जे एहि संसारमे केओ असालतन नहि रहल । जे आएल से गेल । तखन जे अवसर भेटल अछि तकरा नीक सँ नीक उपयोग कए लेबे बुधिआरी थिक । बहुत लोक से प्रयास करितो छथि । बहुत लोक प्रयास कइओ कए प्रारव्धवश बेसी नहि कए पबैत छथि । लोक सोचबाक हेतु विवश भए जाइत छथि जे एहुनका संगे एना किएक होइत छनि? ई जीवन बहुत रहस्यात्मक अछि । केओ जनमिते अछि संपन्न घरमे जतए ओकरा सभ किछु स्वतः सुलभ रहैत अछि । तँ केओ जनमिते सड़कपर मजदूरी करैत अपन माएक संगे रहए पड़ैत छैक । भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषः । अहाँ कतबो किछु कए लेब मुदा जँ भाग्य दहिन नहि रहल तँ अहाँ ठामहि रहि जाएब । एक सँ एक धनीक,विद्वान,उच्चपदपर आसीन लोक सभ किछु अछैत दुखी रहि जाइत छथि आ मामुली खेतिहर जन-बनिहार निचैन फोंफ कटैत अछि । ओतहि श्रीमान लोकनि सभ किछु सुविधाक अछैत भरि राति करौट बदलैत रहि जाइत छथि । तेँ मात्र भौतिक उपलव्धिएसँ जीवन सुखी नहि भए सकैत अछि । मनुक्खकेँ चाही मोनमे सकून ,निश्चिंतता आ सभसँ बेसी शांति । सभ कथाक अंत होइत अछि । नीक-बेजाए सभ समय बिति जाइत छैक । मुदा ओकर स्मरण बाँचल रहि जाइत छैक । चाहे कतबो पैघ लोक होथि ,हुनको जीवनमे उठापटक होइते छनि,उत्थान-पतन होइते छनि । सुख-दुखक क्षण अबिते छनि । चाहे कतबो संपन्न लोक होथि,कतहु-ने-कतहु हुनको अभाव रहिए जाइत छनि । एहिसभसँ बहुत शिक्षा भेटैत अछि – “हे मनुक्ख! अहाँ अपन सीमान सँ परिचित रहू । अहंकारवश गलती पर गलती नहि करैत जाउ । उलटि कए पाछू ताकू । साइत किछु सुधार अपनामे कए सकी । जे किछु अपराधवोध मोनमे गड़ि गेल अछि,ताहिसँ मुक्तिक मार्ग ताकू । तखने सही मानेमे अहाँ सुखी भए सकब ।” हमर उनहत्तरिम वर्ष चलि रहल अछि । एहि अवधिमे जे केओ जाहि रूपमे भेटलाह सभ स्मरण होइते रहल अछि,होइते रहत। सही मानेमे ओ सभ धन्यवादक पात्र छथि जे हमरा कहिओ कोनो रूपमे मदति केलाह । संगहि ओहो कम धन्यवादक पात्र नहि छथि जे बेबजह यदा-कदा परेसान करैत रहलाह । साइत ओ हमर आंतरिक शक्तिकेँ जगबैत रहलाह जाहिसँ हम आओर दृढ़तासँ जीवन संग्राममे जुटल रहि सकलहुँ । अन्यथा तँ कहि नहि हम कतए रहितहुँ ?एहि दीर्घकालीन जीवन यात्रामे भेटल बहुत रास स्मृति शेष हमर पाथेय थिक जकर बलें हमरा विश्वास अछि जे आगामी शेष समय सेहो नीकसँ कटि जाएत। जाइत-जाइत Francis Duggan क बहुत उपयुक्त आ प्रेरणादायी कविता Thank you life!पढ़ैत चली – Thank you life! I have had a good innings and I have a nice wife And if I die tomorrow I will have had a good life I am not financially wealthy or I am not in poverty I thank you life you have been quite good to me In my life's seventh decade this is quite a long time Some forty years beyond my physical prime Lucky as far as health goes without ache or pain I do not have any cause for to complain So many poor people doing it tougher than me Homeless and hungry and in dire poverty Born as the children of the lesser gods Every day they have to battle the odds Compared to many I am lucky indeed Of any of life's necessities I am not in need. Francis Duggan

सोमवार, 1 अगस्त 2022

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लेखक परिचयः https://mishrarn.blogspot.com/2020/04/blog-post_20.html ----------------------------------------------------------------------------------------------==== समय-समयपर खास कए पुस्तकक प्रकाशनक बाद फेसबुक/व्हाट्सएपपर चर्चा होइत रहल अछि । तकर किछु महत्वपूर्ण अंश संदर्भक हेतु पुनःप्रेषित कए जा रहल अछि । प्रकाशित पुस्तकःबदलि रहल अछि सभ किछु प्रसिद्ध विद्वान एवम् मैथिलीक महाकवि माननीय श्री बुद्धिनाथ झाजीक टिप्पणी (व्हाट्सएपक अरुणिमा साहत्यिक गोष्ठीसँ उद्धृत):- “मैथिली साहित्यक एहेन 'एकांत सेवक' इएह टा। हिनक पोथी सब‌ मात्र गनतीक लेल नहि, ओकर गुणवत्ताक संग आवरण, छपाइ, सफाइ, सब किछु उपरि -जुपरि। सभ कीर्ति संग्रहणीय/ पठनीय अछि। जय मैथिली” डाक्टर भीमनाथ झा नव उपहारक स्वागत । Lakshman Jha Sagar दू दर्जन सं बेसी मैथिलीक पोथी प्रकाशित छनि जकर कियो गोटे नोटिस नै लैत छथि।मैथिली साहित्य के अभगदशा लिखल छैक।जे समाज अपन साहित्य आ साहित्यकारक सुधि बुधि नै लेत।चर्चा धरि करबा मे कन्छी काटत तकर भगवाने मालिक। Dr Raman Jha रवीन्द्र नारायण मिश्रपर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ शोधकार्य भऽ रहल अछि। सूचनार्थ । Dr Umesh Mandal मैथिली साहित्यक उपन्यास विधा, जेकर भण्डार बहुत पैघ नहि अछि, ताहिमे अपनेक अनवरण लेखन बहुत किछु अछि। की अछि, केहेन अछि ओ तँ समीक्षक लोकनि कहता मुदा असाधारण ओ ह्लादकारी अछि, से तँ सबहक मुहसँ निकलिए सकैए। सादर हार्दिक बधाइ... https://www.facebook.com/photo/?fbid=3022436554698002&set=a.1388340294774311 प्रकाशित पुस्तकःबीति गेल समय https://www.facebook.com/photo/?fbid=2932602210348104&set=a.1388340294774311 भीमनाथ झा हम तँ एकरा उपन्यासक 'उपन्यासे' बुझै छी। कथा जा पूर्णताकेँ नहि प्राप्त क' लिऐ ताधरि बढैत रहय, अर्थात् वार्ता सय राउंड तँ चलबेक चाही । समर्थन आ शुभकामना अपनेक संग अछि । Dr Bibhuti Anand एहि ऊर्जा कें नमन डाक्टर Raman Jha बहुत-बहुत शुभकामना आ बधाइ ! डाक्टर Umesh Mandal ' बीति गेल समय' बहुत नीक शीर्षक..! हार्दिक बधाइ..! -------------------------------------------------------------------------------------- प्रकाशित पुस्तकःप्रलयक परात https://www.facebook.com/photo/?fbid=2831911753750484&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा अहाँक लेखन ऊर्जाक अभिनन्दन... हितनाथ झा संख्यात्मक दृष्टिएँ तँ हिनक पोथी डेढ़ दर्जन अछिये , गुणात्मक दृष्टिसँ सेहो हिनक लेखनी महत्वपूर्ण अछि । एकान्त साधक श्री रवीन्द्र नारायण मिश्रजी संप्रति लिखिए रहल छथि से अनवरत । स्वागत । Dr Sharad Purohit आप को तो कई भाषा पर भी कमान्ड है, सभी पर भी लिखे ,पता नही आपका यह हूनर हमे पहले पता क्यो नही चला ? छूपे रुस्तम| Sp Dey Your literary journey is at full spree. Let your creativity be immortal Hari Pal Really you have a great creative writing skill.Remsrkale work.Keep it up. Congratulations for new addition in your treasure of valuable writings. प्रकाशित पुस्तकःप्रतिबिम्ब https://www.facebook.com/photo/?fbid=3017902635151394&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा स्वागत Dr Gangesh Gunjan बहुत-बहुत बधाइ आ शुभकामना ! डाक्टर Dhanakar Thakur उत्तम कार्य Pritam Nishad सुस्वागतम्... सतत् सुमंगलम्... प्रकाशित पुस्तकःहम आबि रहल छी https://www.facebook.com/photo?fbid=2770012903273703&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा स्वागतम् हमर उपन्यास -"हम आबि रहल छी" पढ़लाक बाद मैथिलीक मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ झा लिखैत छथि- अपनेक नव्यतम उपन्यास 'हम आबि रहल छी' हमरा लग आबि गेल अछि । पढ़बामे ततेक मन लागि गेल अछि जे आन बेगरता भागि गेल अछि । ठीके, रोचकता तँ अपनेक लेखनीक प्रमुख विशेषता थीके, जे एहूमे विद्यमान अछि-- एक तँ ई कारण । दोसर ई जे एहिमे बूढ़ लोकक गूढ़ व्यथाक आख्यानक उत्थान, प्रस्थान आ अवसान अत्यन्त आत्मीयता आ मार्मिकताक संग कयल गेल अछि । आजुक शिक्षित समाजक बहुलांश कोना अपसंस्कृतिक मोहजालमे फँसि नाग जकाँ अपन प्रतिपालकोकेँ डँसि लैत अछि आ अपनहुँ अन्तमे निराशाक नरकमे खसि आजीवन सिसकी भरैत रहैत अछि । परिवर्तनक एहि बिरड़ोक अछैतो सनातन कर्त्तव्यबोध (यथा-- मातृपितृभक्ति, स्वावलंबन, अपकारक बदला उपकार, तिरस्कारक उत्तर सत्कार प्रभृति)क ध्वजा उधिया नहि गेलैक अछि, अपितु फहरा रहलैके अछि । संयोग आ आकस्मिकता एकर कथानकक प्राण थिक । एक दिस पुत्र जत' प्रेमिकाक लौलमे अमेरिका धरि दौड़ मारैत छथि तैयो ओ हाथसँ पिछड़ि जाइत छनि आ ई हकन्न कनैत छथि तँ दोसर दिस मायक गंगोत्रीमे जलसमाधि लेलाक कारणे पितो सायास हुनक अनुसरण करैत छथि आ अटूट प्रेमक दृष्टान्त बनैत छथि । नाटकीयताकेँ सामान्य पाठकमे उत्सुकता जगयबाक लेखकक कौशल रूपमे देखबाक थिक । अपनेक साहित्य-सभाक ई औपन्यासिक नवरत्न मैथिली पाठकक चारू कात अपन चमक पसारैत रहय-- ताही शुभकामनाक संग हार्दिक अभिनन्दन । -- भीमनाथ झा. 25.6.2021 Rewati Raman Jha अद्भुत उपलब्धि आ योगदान ! साधुवाद। -------------------------------------------------------------------------------------------------------------- प्रकाशित पुस्तकःपाथेय https://www.facebook.com/photo/?fbid=2723986184543042&set=a.1388340294774311 Gangesh Gunjan आत्मिक बधाइ आ शुभकामना। Lakshman Jha Sagar अहां त पोथीक जांक लगा देलियै।समाज एहि पोथी सब परहथि।मूल्यांकन करथि। तखन दोसर पारी शुरु करी।ई हमर सुझाव। Ravindra Bhushan Joshi Pranam sahitya purush! CSS mein chipe rahe ? Phir jeevant ho uthe prabhuwar ? Dhanya, Dhanya Dhanya! Bandhuwar ! Sp Dey Let your literary career grow more and more Prakash Chandra Pandey Sir, we are really lucky to have such a memorable collection from you Shailendra Jha सोलहम पुस्तक बारे मे जानकारी प्राप्त कऽ अत्यधिक खुशी भेल। पुस्तक सोलहन्नी पाथेय हो,ई मंगल कामना। Krishan Dutt Sharma बहुत बहुत बधाई! अच्छा काम कर रहे हो। अपनी संस्कृति को जिवित रखना आने वाली पिढियो के लिए धरोहर हैं! ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ प्रकाशित पुस्तकःसीमाक_ओहि_पार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4296014813758350&id=100000496204662 Ujjwal Kumar Jha Favorites · December 25, 2020 · पोथी-परिचय #सीमाक_ओहि_पार #मैथिली_उपन्यास श्रीमान रबीन्द्र नारायण मिश्र जीक उपन्यास "सीमाक ओहि पार" पढ़लहुँ, एखन धरिक पढल उपन्यासमे ई सभ सँ पृथक आ अदभुत लागल, हिनक रचना एकटा एहन लोकमे प्रवेश करबैत अछि जतय कल्पनाक चरम स्थितिक बोध होइत अछि, अदभुत लेखन शैलीमे लेखक, पाठककेँ सीमाक ओहि पार लऽ जाके जीवनक अनेको सत्यसँ अवगत करबैत छथि। भूत, वर्तमान आ भविष्य संगहि महाकाल, पूर्वजन्म आ पुनर्जन्म आदिकेँ माध्यमसँ लेखक पाठक वर्ग केँ पूर्ण जिज्ञासु बनल रहवाक लेल विवश करैत छथि। लेखक कहैत छथि जे ई संसार रहस्यमयी अछि, ककरो किछु तऽ ककरो किछु आर बूझल छैक, सम्पूर्ण ज्ञान ककरा छैक ? सीमाक ओहि पार उपन्यास, मनोज आ रागिनीक प्रेम प्रसंगके इर्द-गिर्द घुमैत अछि जाहिमे लेखक अन्य पात्रक प्रवेश एतेक सुंदर ढंगसँ कएने छथि जे पाठकवर्गकेँ अवश्य अचम्भित करतन्हि, कतयो-कतयो तऽ पाठक पाछुक पृष्ठ उनटा पुनः पढ़वा पर विवश भऽ जेताह। उपन्यासक नायक लग एकटा पिपही छन्हि जकर माध्यमसँ लेखक संदेश देवाक प्रयास कएलन्हि अछि जे पिपही हमर सभक निर्णयात्मक बुद्धि अछि। लेखक एहि उपन्यासक माध्यमसँ समाज आ व्यक्ति विशेष केँ संदेश देबामे सेहो पूर्णतः सफल भेल छथि। लेखक कहैत छथि जे जाधरि हमसभ अपनासँ हटि कए नहि सोचबैक ताधरि बौआइते रहब। लेखकक बताओल दिव्यलोक सकारात्मकताक आ परिचायक थिक जतय सुख, शांति आ आनंदक अनुभव होइत अछि आ अंधलोक नकारत्मकताक प्रतिरूप थिक जतय दुख, अशांति ओ तनाव भरल अछि। लेखक, भारत सरकार केँ उप- सचिव पद सँ सेवानिवृत छथि आ कतेको उपन्यास, निबंध- संग्रह आ संस्मरण लिखि अपन विशिष्ट योगदान समृद्ध मैथिली साहित्यकेँ निरंतर दऽ रहलाह अछि, हिनक लेखन शैलीक इ अदभुत विशेषता एहि उपन्यासक माध्यमसँ पाठक वर्गकेँ अबस्स रूचिगर लगतन्हि। पोथीक नाम- सीमाक ओहि पार (मैथिली उपन्यास) लेखक- श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र Rabindra Narayan Mishra मूल्य 250 ------------------------------- #maithilibooks © Ujjwal Kumar Jha Kedar Kanan हिनक रचनाशीलता मोहित आ प्रेरित करैत अछि प्रकाशित पुस्तकः'ढहैत देबाल' https://www.facebook.com/photo?fbid=2615244298750565&set=a.1388340294774311 भीमनाथ झा 'ढहैत देबाल' भने नाम राखि लियौ अपने, हम तँ जोड़ाइत देबाल सैह मानब । तीन-चारि मासपर एक पोथी--- मैथिली साहित्यक देबाल अपने जोड़ि रहलहुँ अछि । बधाइ ! Gangesh Gunjan आत्मिक बधाइ आ शुभकामना ! Raman Jha गद्यमे उपन्यास आ पद्यमे महाकाव्य जँ केओ एकहुटा लिखि लैत छथि तऽ ओ यशस्वी साहित्यकार कहबैत छथि आ जे जतेक अधिक संख्या बढ़बैत छथि से ततेक----। मैथिलीमे हमरा जनैत विदितजी उपन्यासक संख्यामे सभसँ आगाँ छथि आ लगैए जेना अहीँ हुनका पकड़ि सकबनि। बहुत बहुत बधाई आ शुभकामना। Bibhuti Anand मैथिलीक सौभाग्य जे अहाँ सन ऊर्जावान लेखक प्राप्त भेलै... Kirtinath Jha बहुत-बहुत बधाई. एहिना लिखैत रही, Lakshman Jha Sagar अहिना लेखकिय उर्जा बनल रहय।साधुबाद! Bhawesh Chandra MishraRabindra Narayan Mishra बहुत बहुत बधाइ रविन्द्र जी।बहुत प्रसन्नताक बात। Vishnu Kant Mishra हीरा -मोतीसॅ मैथिली साहित्यक संगहि आनो साहित्य के अपने अहिना भरैत रही Kedar Kanan बहुत बहुत बधाइ Uday Chandra Jha Vinod बधाई। Pandit Raghvendra Jha १०+५=१५ दस इन्द्रिय मे पाँच ज्ञानेंद्रिय पाँच कर्मेंद्रिय सँ मज़बूत कऽरहल अछि :ढहैत दिवाल;। Sp Dey Congratulations! Mishra ji. Your penchant for literary activities will mark you with fame and laurels in Maithili Literature. Wish you a long life and a still longer literary career https://www.facebook.com/photo?fbid=2615244298750565&set=a.1388340294774311 -----------------------------------------------------------------------------------------------