शनिवार, 20 जून 2020

दिल्लीक दुरंगी दुनिआ

 

दिल्लीक दुरंगी दुनिआ

 

भोर होइते चारूकात लोकसभ गर्द पड़ए लगैत अछि । चारिबजे भोरेसँ लोकसभ कथु-ने-कथुक पाँतिमे ठाढ़ भए जाइत अछि । ककरो दूध लेबाक छैक,ककरो रेलक टिकट । ककरो कार्यालय जेबाक जल्दी छैक तँ ककरो कालेज जेबाक छैक । बस,रेल,कारसभक समय बान्हल छैक । तरह-तरहक इंतजामो छैक मुदा लोकक जनसंख्या ततेक छैक जे व्यवस्था धएले रहि जाइत छैक । बसमे चढ़बाक काल धकमधुक्का,अस्पतालमे डाक्टरसँ देखेबाक अछि तँ धकमधुक्का । अस्पतालमे देखेबाक अछि तँ चारि बजे भोरेसँ पाँतिमे लागि जाउ । माने कोनो एहन स्थान नहि भेटत जतए लोकक हुजुम नहि रहैत अछि,जतए अनगिनित लोक पाँति लगाए प्रतीक्षा नहि कए रहल अछि । ई तँ हाल अछि देशक राजधानी-दिल्लीक ।

दिल्लीमे जखन पैसि कए देखबैक तँ ओकर कैकटा विकृति देखाएत । अहाँक दुनिआ अपन फ्लैट धरि समटल रहत । अहाँक अगल-बगल के छथि,चोर छथि,कि उचक्का छथि कि कोनो विद्वान वा कलाकार छथि तकर कोनो जानकारी नहि भेटत । लोक सौंसे दुनिआकेँ नोति लेत मुदा पड़ोसीकेँ कोनो सूचना नहि रहत । जँ सीढ़ीपर कोनो पड़ोसी देखा जाएत तँ लगतैक जे आब की कएल जाए? ओ प्रयासपूर्वक नुका जाएत जाहिसँ भेंट ने भए जाए। बीच सड़कमे केओ ककरो छूरा मारि रहल अछि,कोनो महिलाकेँ कोनो लफंगा तंग कए रहल अछि, कि कोनो घर मे कोनो बूढ़केँ ओकरे परिवारक लोक फज्जति कए रहल अछि,केओ किछु नहि कहत , कात बाटे तेना ने ससरि जाएत जेना ओ किछु नहि देखलक,जेना किछु भेवे नहि कएल । सैकड़ों लोक कोनो घटनाकेँ देखत मुदा मौकापर एकटा गवाह नहि भेटत । तेहन बेदर्द थिक दिल्ली ।

दिल्लीक कोनो टीसनपर चलि जाउ नित्य लाखोंक तादातमे गाम-घरसँ पलायन कए मजदूर दिल्ली अबैत अछि । कैकगोटे तँ अपन गौंवाक संगे अबैत अछि । तकरासभकेँ अएलाक बाद रहबाक ठौर भेंटि जाइत अछि। मुदा दिल्ली अएनिहार बहुत रास एहन लोकसभ होइत अछि जकरा कोनो ठेकान नहि रहैत अछि,जे टीसनसँ कतए जाएत सेहो नहि बूझल रहैत छैक । प्रचंड इच्छाशक्तिक एकमात्र पूँजी लेने ओ सभ जीवन संग्राममे कुदि जाइत  अछि आ अंततोगत्वा, जीवि जाइत अछि । कैकगोटे तँ दिल्लीमे जेना-तेना अपन घरो बना लैत अछि ,अपन रोजगार बना लैत अछि मुदा सभ एहने भाग्यवान नहि होइत छथि । सोचिऔक ओकरासभक हेतु दिल्ली केहन क्रूर रहैत हेतैक जे माघक जाढ़मे रोडपर सुतबाक हेतु विवश रहैत अछि । बात ओतबे पर रहि जइतैक तँ बरदास्त कए लैत मुदा कैकबेर सुतलेमे ओकरापर ट्रक,बस वा कार गुजरि जाइत अछि आ ओ अभागल व्यक्ति फेरसँ सूर्योदय नहि देखि पबैत अछि ।

जँ कहिओ छुट्टी भेटए(ओना दिल्लीमे ककरो कहिओ आफियत रहैत नहि छैक) तँ चलि जाउ कोनो वृद्धाश्रम। ओहिठामक दृश्य देखिते रहि जाएब । ओतए काहि कटैत बूढ़सभ कोनो गरीब घरक नहि होइत छथि । ओसभ अपन जवानीमे कैकटा महल बना चुकल छथि,अपन पुत्रक सुख सुविधाक हेतु बैंकमे कड़ोरो टाका जमा केने छथि,कतेकोगोटेकेँ तँ अखनहुँ बड़का-बड़का कारोबार चलि रहल छनि । मुदा तेँ की? धीया-पुता बुझैत छनि जे ओसभ तँ ओकर अछिए आ ओकरे हेतैक ,ताहि लेल एहि बूढ़केँ कतेक दिन माथपर रखने रहब । कैकटा बूढ़ बेटाक मुँह देखबाक प्रत्याशामे मरि जाइत छथि । कैकटाकेँ अंतिम संस्कारोमे परिवारक केओ नहि आबि पबैत छनि । ओसभ विदेशमे बसि गेल छथिन,ओतएसँ आएब-जाएब बहुत मोसकिल । अपन मजबूरी बता कए संतोख कए लैत छथि । बाह रे! आधुनिक दिल्लीक आधुनिक लोक़ ।

दिल्लीक हाल पुछि रहल छी तँ कहि रहल छी । एकदिस एकसँ एक महल,सुविधा संपन्न कोठीसँ सजल मोहल्लासभ आ तकर सटले भेटत उजरल-उपटल लोकसभक खोपड़ीक शृंखला जकरा दिल्लीक भाखामे कहल जाइत अछि झुग्गी-झोपड़ी कालोनी । जतेक चोर,उचक्का,अपराधीसभ होइत छथि से सभ एहने ठाम नुकाएल रहैत छथि । अपराध करब हुनका लोकनिक मुख्य रोजगार छनि । ओकरेसभक संगे जेना-तेना  देहकेँ झपने ,पेट भरने  दिन-राति गारि मारि सुनैत जिनगी बितबैत रहलाह लाखों बिहारी मजदूरसभ अछि । कालक्रममे ओहीमेसँ किछुगोटे सुभ्यस्त भए गेलाह तँ फेर घुरिओ कए ओहिठाम नहि गेलाह । केओ नेता बनि गेलाह,ककरो दोकान खुजि गेलनि तँ केओ कोनो सरकारी कार्यालयमे छोट-मोट काज पकड़ि लेलनि । जिनका जोगार भए गेलनि,कोनो पैघ अधिकारीसँ संपर्क भए गेलनि तँ स्थायी सरकारी नौकरी सेहो भए गेलनि । से जँ नहिओ भेलनि आ नैमित्तिक आधारपर काज करैत छथि तैओ गाम जा कए हवा दैत छथिन जे ओ सरकारी काज करैत छथि । कैकगोटेकेँ तकर फाएदा भेलनि,नीक परिवारमे बिआह भए गेलनि । जखन ओ सहरमे कनिआ अनलनि आ ओ हुनकर हालति देखलखिन तँ छाती पीटैत रहि गेलीह ।

जे-से मुदा दिल्ली अएबाक क्रम लगातार बनले रहल । गामक-गाम उपटि कए दिल्ली आबि गेल । आब तँ ई हाल अछि जे गामसँ बेसी गौंवा दिल्लिएमे भेटि जेताह । मुदा दिल्ली अछि बेदर्द से तँ कहनहि छी । कोरोनाक कारण जखन सभकिछु बंद भए गेल तँ प्रवासी मजदूरसभक हाथ-पैर फुलि गेलैक । काज छुटि गेलैक । सरकारी सहायताक कतहु कोनो पता नहि । मालिकसभ काजसँ हटा देलकैक । एहन हालतिमे पहुँचलाक बाद सभकेँ अपन गाम मोन पड़लैक । भेलैक जे जेना-तेना गाम वापस चलि जाइ । सभ दिल्ली छोड़ि देलक । किछुगोटे गाम घुरबाक प्रयासमे रस्तेमे  मरि गेल । मुदा गाम-गामे होइत छैक । जे पहुँचि गेल से सभ बहुत उसासमे छल । बेसक एहिबेर ओकरासभक देहपर नवका जींस नहि रहैक, गमकौआ तेल माथमे नहि लागल रहैक मुदा गामक माटिमे  पैर पड़िते ओकरासभकेँ स्वर्गक सुख भेटलैक ।

दिल्लीक चारूकात बड़का-बड़का  अट्टालिका,मीलों नमगर ओभरब्रिज,सैकड़ों दोकानसँ सजल-धजल माल दिस देओ आकर्षित भए जाएत । ओकरा के बनओलक? ओएह बिहारी मजदूर जे आब कोरोनाक संकटमे जान बँचेबाक हेतु गाम वापस चलि गेल अछि । मुदा जखन ओ दिल्लीमे छल तखनहु ओहि मालमे ओ फेर नहि गेल,नहि किनि सकल कोनो दामी चीज-वस्तु , नहि लए सकल अपन शिशु हेतु कोनो आकर्षक खेलौना जकरा गाम गेलाक बाद ओ ओकर हाथमे दैत गर्वक अनुभव करैत ।  ई छैक दिल्लीक दुरंगी दुनिआक कटुसत्य ।

ओना दिल्लीमे भारतक इतिहासक गहींर दर्शन होइत अछि । कहि नहि कतेको राजा एतए अएलाह आ गेलाह मुदा दिल्ली ठामहि अछि । ऐतिहासिक महत्वक एकसँ एक वस्तु एहिठाम भेटत । मुदा से के देखैत अछि? गाम-घरसँ आएल जन-बनिहारसभ दिल्ली अबितहि पेटक जोगारमे जे लगैत अछि से लगले रहि जाइत अछि । आइ-काल्हि करैत ओकर जिनगी गुजरि जाइत छैक । दिल्लीमे रहितहुँ ओ किछु नहि देखि पबैत अछि । सही मानमे कहल गेल अछि - जे दिल्लीक लडू खेलक सेहो पछतओलक आ जे नहि खेलक सेहो ।

दिल्ली भने देसक राजधानी होअए,एकर कोनो अपन व्यक्तित्व नहि छैक । सौंसे विश्वक लोकसभ एतए आबि कए अपना हिसाबे जीबि रहल अछि । सभ अपन-अपन फ्लैटमे मुनल अछि । बगलमे की भए रहल अछि तकर कोनो जानकारी नहि,कोनो मतलबो नहि । जँ केओ मरिओ गेल तँ परेसानी तखने होइत छैक जखन लाससँ निकलैत दुर्गंधक कारण रहनाइ मोसकिल भए जाइत छैक । अन्यथासभ होटल जकाँ फराक-फराक जिनगी जीबैत रहैत अछि । पैघलोकक सभसँ प्रिय मित्र ओकर विदेशी जातिक कुकूर भए गेल अछि । ओकरे संगे जीबैत अछि,ओकरे संगे सुख-दुख बाँटबाक प्रयास मे लागल रहैत अछि । एहन संभ्रांत परिवेशमे रहनिहारक मोनमे  ओकर लगीचेमे झुग्गी बनाकए रहनिहार काजबालीक कोनो चिंता नहि ,कोनो मतलब नहि रहैत छैक । ओसभ तँ संपन्न वर्गक हेतु मात्र इस्तमाल करबाक वस्तु थिक , एक नहि तँ दोसर भेटि जेतैक ।

 सालक -साल दिल्लीमे रहलाक बादो अपन कनो पहिचान बनबएमे असफल रहबाक बाद प्रवासी मजदूर लोकनि कैकबेर वापस अपन गाम जेबाक विचार करैत छथि । मुदा कतेको बेर हुनकर ई इच्छा मोनमे धएले रहि जाइत छनि आ एकदिन परदेशेमे एहि संसारकेँ छोड़िकए चलि जाइत छथि । सौंसे जिनगीक संघर्ष यात्राक एकटा दुखद अंत भए  जाइत अछि । ककरा फुर्सति छैक जे ओकरा हेतु शोक मनाओत वा श्रद्धांजलि देत । एहन थिक ई बेदर्द दिल्ली ।

दोष दिल्लीक नहि थिक । ओ तँ सभदिनसँ राजदरवार रहल अछि । तरह-तरहक राजासभ एहि सहरपर अपन कब्जा जमओलक आ भारतपर शासन केलक । कहल जाइत अछि जे पाण्डवलोकनि सेहो एतहिसँ राज केलथि । पाण्डवकालीन कैकटा मंदिरसभ दिल्लीमे अखनो अछि । दिल्लीमे जेम्हरे जाएब ढहल-ढनमनाइत राज-प्रसादसभ अपन-अपन खिस्सा कहबाक हेतु आतुर भेटत । मुदा ककरा समय छैक जे ओकरसभक दारुण व्यथा-कथा सुनए आ अपनो मोनकेँ दुखी कए लिअए ।  राजा रहैक,राजबारा रहैक ,ओकरे नौकर-चाकर रहैक । मुदा आब समय बदलल छैक । सभ अपनाकेँ राजे मानैत अछि । कहैत अछि जे देशमे प्रजातंत्र आबि गेल छैक । संविधान बनि गेल छैक , सभ बरोबरि अछि । मुदा ई सभ  कागज-किताबमे सीमित छैक । वास्तविकता इएह छैक जे आम आदमीकेँ जे दिल्ली हाथ लगैत छैक से ततेक ने कठोर आ विद्रुप अछि जे ओकरा पाथरपर माथा फोड़ैत रहबाक हेतु विवश कए दैत छैक जखन कि ओतहि केओ श्रीमान दिन-राति गगनचुंबी महलमे  बैसल देशक प्रगतिक ढोल बजबैत रहैत छैक ।

उमीदेपर ई दुनिआ ठाढ़ छैक । तेँ हमसभ आशा करी (आ किएक नहि करी) जे एकदिन एहनो अएतैक जखन दिल्ली  सही मानेमे सुंदर भए जएतैक । दिल्लीक नीक अस्पतालसभ गरीबोक हेतु सुलभ होएतैक। गरीबोक नेनासभ पव्लिक इसकूलमे  पढ़तैक आ सभगोटेएकस्वरमे कहतैक-वाह रे दिल्ली!


20.6.2020


बुधवार, 17 जून 2020

मृत्यु से संवाद

मृत्यु से संवाद

 

जब लोगों ने बहुत ही डराया

कि मृत्यु से बचकर रहिए

यह कर देगा सर्वनाश

कुछ नहीं बचेगा उसके बाद

 तो मैंने सोचा कि क्यों नहीं

सीधे उनसे ही संवाद कर

पूछ लिया जाए-

मृत्युजी ! आपके बारे में जो चर्चाएं सुन रहा हूँ

क्या वह सही है?

क्या आप सचमुच बहुत क्रूर हैं?

क्या आप सचसच सबकुछ बताएंगे?

और कुछ नहीं तो कोई रास्ता ही बताएंगे

जिससे  मैं आपसे बच सकूं ।

मेरी बात सुनकर वे ठहाका लगाने लगे

कहने लगे-

यार! तुम कमाल के आदमी हो

आजतक किसी ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई

जो मुझसे आँख में आँख डालकर

इस तरह पूछ सके

वह भी मेरा ही प्रोफाइल

फिर मैंने कहा-

सीधे नहीं कह सकते तो

अपना फेसबुक प्रोफाइल का लिंक ही बता दीजिए

 हम खुद सारी जानकारी निकाल लेंगे

मृत्युजी फिर हँसे-

ये सारे प्रोफाइल अधूरे हैं

जिसदिन मैं इनका एकाउंट चेक करूंगा

देखना सबकुछ डिलीट मिलेगा

सिर्फ मैं ही रहूंगा अकेले

एक-एककर सबको विदा कर

फिर उन्होने इशारा किया

 फेसबुक पृष्ठ पर दायीं तरफ

जहाँ कुछ लोगों ने लिख रखा था-

लोक अकारण ही डरते हैं मृत्यु से

सभी लगे हैं जिसके निवारण में

परंतु,कोई न कोई उपाय वह कर ही लेता है

चल देता है कोई न कोई चाल ,

एक-से-एक प्रतापी, शूर-वीर

राजा,रंक फकीर

कुछ भी नहीं कर पाते हैं

मृत्यु का अनंत साम्राज्य

कर देता है सब को परास्त

मृत्यु उतना बुरा भी नहीं है,

है वह भी सौंदर्यमयी, ममतामयी

तमाम दुखों से हमें करता है मुक्त

सारे वंधनों से दिलाता है छुटकारा

शोक,लोभ,लाज सभी पीछे छूट जाते हैं ।

जीवन में तो दुख ही दुख है

 नान प्रकार के योग- वियोग का घटित होते रहना

अपने लोगों का विछुड़ना

प्रियपात्रों का दूर हो जाना

तरह-तरह के रोग-व्याधियों से ग्रसित हो जाना

लेकिन मृत्यु एक ही बार में

इन सबसे हमें देता है विश्राम ,

नहीं रह जाती है अपेक्षा

धन-संपत्ति,यश-प्रतिष्ठा

हो जाता है अर्थहीन

फिर भी हम चिंतित हो जाते हैं

मृत्यु के आहट से

निश्चय ही मृत्यु बहुत दुखदायी है

जब अपना कोई चला जाता है

वरना तो रोज ही कितने मरते रहते हैं

और किसी को कुछ भी असर नहीं होता है

असल में दुख का कारण ही मोह है

किसी को अपना समझने से उपजा हुआ मोह ही

हमें धकेलता है

नर्क में वारंबार

जो स्वतः छूट रहा है उसे जाने दीजिए

क्यों उससे चिपकने का कर रहे हैं प्रयास

जो जितना त्याग करता है

वही बनता है महान

 सभी रंगो को त्यागकर ही बनता है

सात्विकता का प्रतीक- श्वेत रंग

जो दे सकता है चिरंतन शांति

मृत्यु का भय हो सकता है समाप्त

जब हम समझने लगते हैं

 आत्मा का अमरत्व

और यह भी कि

शरीर का आना-जाना तो

बस एक क्षणिक पटाक्षेप है।

 

17.6.2020

 


शुक्रवार, 12 जून 2020

मजदूर

मजदूर

भूख और अपमान से त्रस्त

वे छोड़ गए थे सबकुछ

अपना घर,गाँव और परिवार

इसलिए कि

अपने ही लोगों से प्राप्त

अपमान और यातनाएं

हो गई थी असह्य

सामने में परिवार था असहाय

अन्न-जल के बिना

बच्चे पत्नी और माता-पिता

भरण-पोषण के बिना बन चुके कंकाल

हारकर एकदिन

वह रातों-रात निकल पड़ा था

कुछ भी नहीं था पाथेय

न था रेल-बस का कोई इंतजाम

पैदल स्टेसन पर

पहुँच गया था जैसे-तैसे

एक नंबर प्लेटफार्म पर  खड़ी थी

आठ डिब्बों वाली एक ट्रेन

जिसमें पहले से ही खचा-खच भरे थे लोग

साधारण डिब्बा में

बिना टिकट वह घुस गया था

पता नहीं कि

वह ट्रेन जाएगी कहाँ?

न उसे इस बात की परवाह थी

जहाँ जाना हो जाए

पर यहाँ से तो हटे ।

फिर तीसरे दिन

वह पहुँचा था मुम्बई

अर्द्धमृत

किसी सहयात्री ने दयाकर

साथ चलने को कहा था ।

समय कितना आगे बढ़ गया

आज बीस वर्ष हो चुके हैं

उसका परिवार मुम्बई का नागरिक है

वह किसी सेठ का नौकर है

अपने जैसे ही दस-बीस मजदूरों के साथ

किराये के छोटे से घर में रहता है

समय ठीक ही बीत रहा था

यदा-कदा आंदोलनकारी

कहते रहते थे-वापस जाओ

पर वह वापस कहाँ जाता?

गाँव में सब कुछ कब्जा हो चुका था

उसके अपने ही लोग

उसे प्रवासी मानकर

सब कुछ ले चुका था

पर कौन जानता था?

कि एकदिन पूरे दुनिया को

कोरोना ले लेगा अपने गिरफ्त में

मुम्बई  शहर उसे काटने दौड़ेगा

लाक डाउन में चली जाएगी उसकी नौकरी

और वह पैदल चल पड़ेगा

वापस अपने गाँव को

पर किस्मत भी क्या चीज है?

ट्रेन दरभंगा पहुँच तो  गया

परंतु वह उसमें नहीं था

उस में था

उसका प्राणहीन शरीर ,

उसका छोटा सा शिशु

वारंबार प्रयत्न करता रहा

हिला डुलाकर उसको जगाता रहा

लेकिन वह हिला नहीं

तबतक ट्रेन आगे जा चुकी थी

स्टेसन खाली हो चुका था

शिशु रोता रह गया

प्राणहीन पिता के वगल में

परंतु कोई उसे बचा नहीं सका

और थोड़ी देर में वह भी सो गया

सद-सर्वदा के लिए

चिर निद्रा में ।



 12.6.2020

गुरुवार, 11 जून 2020

माधवी नानी

माधवी नानी


हम नेना रही । कैकबेर दनानपर बैसल रहितहुँ कि हुनका किछु-किछु बड़बड़ाइत देखितिअनि । कैकबेर ओ किछु-किछु हमरो कहबाक प्रयास करितथि । मुदा हम नहि बूझि पबिऐक जे बात की छैक ?  कैकबेर भगवती लग पूजा करैत काल सेहो हुनका भनभनाइत देखिअनि । मुदा बात नहि फरिछाए । माएकेँ हुनकासँ बहुत लगाव रहनि । ओ हुनकासँ बहुत आदरपूर्वक गप्प करित थि । बादमे माए हुनकेसँ मंत्रो लेलथि । हुनका लेल माएकेँ जे पार लागनि से ओ करबो करितथि । मुदा हुनकर दुख तँ भितरिआ रहनि । तकर निवारण के करैत ?

कृषकाय,उज्जर धोतिमे लपटल हाथमे छोटसन लोटा लेने भोरे-भोर ओ कुट्टीपर स्नानकरबाक हेतु जाइत छलीह । नवका पोखरिबनि गेलाक बाद हमरासभक परिवारक अधिकांश लोक स्नान,पूजाक हेतु ओतहि जाथि । मुदा माधवीनानी सभदिन कुट्टिएपर जाइत रहलीह । माघक जाढ़ होइक वा भदवारिक पानि हुनका लोकनिक स्नान-पूजाक समयमे कोनो परिवर्तन नहि होइत छल । हुनका संगे हुनके बएसक दू-तीनटा आओर महिला स्नान करबाक हेतु कुट्टीपर जाइत छलि । स्नान-पूजा केलाक बाद ओ सभ तीन-चारि गोटे संगहि लौटथि तँ कैकबेर रस्तेमे भेंट भए जाइत छल । कारण हमहु नवका पोखरिपरसँ स्नान कए ओही समयमे वापस अबैत रहैत छलहुँ । कुट्टीपरसँ स्नान-पूजा केलाक बाद ओ हमर बिचला घरमे स्थापित भगवतीक पूजा करैत छलीह । तकरबादे ओ उतरबारिकात बनल अपन घर जाइत छलीह । आश्चर्य आ दुखक बाद थिक जे ओ घर हुनकर अपन घरारीपर नहि बनल छल । ओ जगह हमरा लोकनिक हिस्सामे छल आ बाबू हुनका तात्कालिक देने रहथिन ।

 नित्य अन्हरोखे कुट्टीपर भगवानक आरती होइत छल । घरी-घंटा बजैत छल । ताधरि सूर्योदय नहि भेल रहैत छल । सोचल जा सकैत अछि जे ओ सभ कतेक भोरे स्नानक हेतु कुट्टीपर पहुँचि जाइत छलि । कुट्टीपरहक बाबा ओहिठामक व्यवस्था चाक-चौबंद रखने छलाह ।  ओतए बहुत रास गाएसभक पालन होइत छल आ तकर दूधसँ पाएस बनैत छल । प्रसादमे ओहि पाएसकेँ कनी-कनी कए लोकसभकेँ देल जाइत । ततेक स्वादिष्ट रहैत छल जे होइत जे खाइते रही । मुँहमे जाइते बिला जाइत छल ।  ओ बाबा बहुत दिनधरि कुट्टीपर रहलाह आ एकदिन रातिएमे कुट्टीक बहुत रास समानसभ बैलगाड़ीपर लादि चुपचाप चलि जाइत रहलाह । लोकसभ कहलक जे नेपाल दिस हुनकर भाए बाबाजी रहथिन,ओतहि चलि गेलाह । कुट्टी खाली भए गेल । मुदा माधवीनानी आ हुनकर संगीसभक स्नान चलिते रहलनि ।

माधवीनानीक पति हमर बाबाक सहोदर रहथि । हमर बाबा(स्वर्गीय श्री शरण मिश्र) छओ भाइ रहथि । ओहिमेसँ एकटा माधवीनानीक पति सेहो रहथि । बिआहक बाद मात्र एकटा बेटीक जन्मक बाद ओ असमयेमे मरि गेल रहथि । ओहि समयमे अंग्रेजक बनाओल कानूनक अनुसार विधवाकेँ मात्र खोरिसक अधिकार छलैक । आओर किछु नहि। तेँ हुनकर ई हाल छल । एतेक संपन्न परिवारक पुतहु होइतहुँ ओ अत्यंत कष्टमे जीवन-यापन करैत छलीह । अपने लोकसभ कानूनक भर लैत हुनका किछु नहि देलखिन । नेनामे सुनिऐक जे एकबेर ओ मोकदमा सेहो केलथि मुदा हारि गेलीह । ओहिसमयमे कानूने तेहने रहैक ।

 पुस्तैनी संपत्तिमे हिस्सा नहि भेटबाक कारण हुनका हाकरोस करैत देखिअनि । हमरा नीकसँ मोन अछि जे पारिवारिक संपत्तिमे हिस्सा नहि भेटबाक कारण ओ कतेक बेकल रहैत छलीह। रहि-रहि कए कानए लगितथि। कहितथि-भगवान हमरा संगे तँ अन्याय केबे केलाह,घरोक लोक  बहुत जुलुम केलक। हमर घरबलाक हिस्सा पचा गेल । हुनका बेर-बेर श्राप दैत सेहो सुनिअनि। ओ श्राप सभकेँ पड़िए गेलनि। ओहि आङनक तीनू घरबासीक जे गति भेल से देखलक नगरक लोक ।

माधवीक माएक पोखरौनी बिआह भेल रहनि । हुनका सेहो मात्र एकटा संतान माधवी भेलखिन। माधवी अपन नानीकसंगे रहथि । संभवतः हुनकर माएक देहांत कमे बएसमे भए गेल रहनि (हम हुनका कहिओ नहि देखने रहिअनि) ।माधवी नानी नामसँ ओ जानल जाइत रहलथि । हुनकर नैहर बेतिआ रहनि । बहुत उच्च कुल-शीलक छलनि हुनकर नैहर । तेँ एतेक संपन्न परिवारमे हुनकर बिआह भेल छल । मुदा भाग्य दहिन नहि रहलनि । पतिक अकाल मृत्युक संगहि जीवनक समस्त सुख चलि गेलनि ।

माधवीक पति फौजमे रहथि । फौजमे पोस्टींगक दौरान ओ एकटा रेडिओ अनने रहथि । ऐहि समयमे रेडिओ ककरो-ककरो होइत छलैक । हमरे आङनमे उतरबारिकातसँ लालबाबाक घरक एक हिस्सामे ओ रहथि । ओकरे ओसारापर रेडिओ राखल जाइत चल । ओहिमे तरह-तरहक गीत-नाद सुनि लोक बहुत प्रभावित होइत । अफसोचक बात छैक जे माधवीनानी केँ घरारिओ नहि देल गेल रहनि । बहुतदिनक बाद जखन हुनकर नतिन जमाए (ठाकुरजी) जखन फौजसँ सेवानिवृत्त भेलाह तँ गामक उतरबारि कात कलमसँ सटले ओ घरारीक जमीन किनलनि। ओतहि घर बनओलनि । तकरबाद माधवी नानी सेहो ओतहि रहए लगलीह । कहि नहि हुनकर बएस कतेक रहनि। हमरा जनैत अस्सी सालसँ कम तँ नहिए रहल हेतनि । आधा देह झुकि कए जमीनक समानांतर भए गेल रहए । तेहनो हालतिमे गुरकैत-गुरकैत ओ हमरासभक आङन आबि जाइत छलीह ,कुट्टीपर स्नान करबाक हेतु चलि जाइत छलीह ।

हमर माए माधवीनानीसँ मंत्र लेने छलखिन । गुरु हेबाक कारण माए हुनका बहुत आदर करैत छलि । जखन अगल घरारीपर ओसभ अपन घर बना लेलनि तखनो माएक आवागमन बनल रहलनि । एकदिन ओतहि माधवीनानीक देहावसान भए गेलनि । बाबू हुनका आगि देलखिन । तकरबाद श्राद्धक समस्या उतपन्न भेल । माएक इच्छा रहैक जे हुनकर श्राद्धक व्राह्मण भोजन आ अन्य विधि-विधान ओही घरारीपर होबए जतए ओ रहैत छलीह । मुदा एकटा फरिकेन ताहि हेतु राजी नहि भेलथि । ओ अलगसँ अपने दरबाजापर व्राह्मण भोजन करओलनि । शेषलोकनि हुनकर अपन घरारिएपर श्राद्धक व्यवस्था केलनि । एहि संबंधमे किछुदिन जबरदस्त घोल-फचक्का भेल रहए । आपसी बैसार सेहो भेल । मुदा सहमति नहि बनि सकल । अ सलमे मरलाक बादो हुनकर स्वतंत्र आस्तित्वकेँ मानबाक हेतु किछुगोटे मानसिक रूपसँ तैयार नहि रहथि जखन कि आब ओहिमे कोनो खतरा नहि छलैक । ओ मरि चुकल रहथि । तखन हिस्सा लेबए थोड़े अबितथिन । 

माधवीनानीक नाम केओ नहि जनैत अछि । भरि जिनगी ओ माधवीनानीक रूपमे जानल गेलीह । हुनका एकटा बेटी भेलनि । तकरो कोनो पहिचान नहि भेलैक ,मुदा माधवीकेँ दूटा बेटा भेलनि । हमरा गाममे ओ सभ कतेको डीहीसँ बढ़ियाँ स्थितिमे छथि आ अपन नानीक स्मृतिकेँ बचओने छथि ।

 माधवीनानीक मरला ३७ साल भए गेल । कानूनक आरिमे हुनका संगे बहुत अन्याय भेल । हुनके कोन,ओहि समयमे जतेक विधवासभ होइत छलीह तिनकर सएह गति होइत छलनि । मुदा आबे की हालति बदलि गेल अछि ? एहि बीचमे हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियममे कतेको संशोधन भेल अछि । कानूनीरूपसँ पैत्रिक संपत्तिमे बेटा-बेटीकेँ बराबरक हक भए गेल अछि । मुदा व्यवहारमे अखनो हालति बहुत नहि बदलल अछि । यद्यपि किछु गोटे अपन हक हेतु कोट-कचहरी धरि जा रहल छथि मुदा सामान्यतः अखनो बेटीक डोली जँ उठि गेल तँ ओ वापस नैहर नहि आएत ,सासुरेमे स्वाहा भए जाएत-क सिद्धांतपर समाज ठाढ़ अछि। केओ-केओ अपवादोमे गनल जा सकैत छथि मुदा अपवाद तँ अपवादे थिक । अपवादिक मामिलाकेँ छोड़िकए बेटीसभक हाथ  अखनहुँ फोकले अबैत अछि । आशा करैत छी जे समाज आबो जागत जाहिसँ माधवीनानीसन लोकक आत्माकेँ शांति भेटतनि ।

 

 

 11.6.2020

 

 

 

सोमवार, 8 जून 2020

यह समय है

यह समय है

 

समय अपना प्रभाव

छोड़ता ही है,

क्या राजा,क्या रंक

सभी हैं मोहताज इसके

बिना किसी अपवाद के ।

कोई कितना भी था प्रतापी,

परंतु,वह बचा नहीं सका

 अपने आप को

उसके समस्त सामर्थ्य

हो गए निष्प्रबावी

और समय अपना

निशान छोड़ गया।

एक मामूली व्याधा ने

कृष्ण जैसे महाप्रतापी के

हर लिए प्राण

और वे निःसहाय देखते  रह गए ।

महावली अर्जुन को

मामूली लूटेरों ने कर दिया परास्त

बेकार हो गया गांडीव

विधवाओं,अवलाओं को लूटकर चले गए

और वे रह गए

असमर्थ,निरुपाय ।

परंतु,हमारा अहंकार

भ्रमित रखता है हमें

और हम निरंतर करते रहते हैं

घात-प्रतिघात उनपर

 जो हैं असमर्थ,असहाय ।

पर भूलिए मत

यह समय है

एक दिन आप स्वयं भी

होंगे इसके गिरफ्त में

कोई बचा नहीं पाएगा

हो चाहे कितना भी समर्थ

और अफसोस करते रह जाएंगे

हाय! मैंने यह क्या किया?

इसलिए होइए सचेत

बच सकते हैं तो बचाइए स्वयं को

व्यर्थ के आरोप-प्रत्यारोप से

जो अवसर मिला है

उसे मत गबाइए

कर लीजिए सदकार्य

जिस से हो सके कल्याण

उन सबों का

जो दुखी हैं,बंचित हैं

और आप भी संतुष्ट होकर

विदा लें

इस संसार से ।