शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

मोहभंग



मोहभंग



अप्रैल १९८७मे हम इलाहाबाबद(आब प्रयागराज)सँ दिल्ली स्थानांतरित भए दिल्ली आबि गेल रही । दिल्लीमे हमर पोस्टींग पटेल भवनमे काबीना सचिबालएक अधीन जेआइसीमे भेल रहए । तेसर तल्लापर स्थित ओ कार्यालयमे गोपनीय काजसभ होइत छल । तेँ ओहिठाम सुरक्षाक बेसी तामझाम रहैत छल । ओकर किछु भाग तँ अपनो कर्मचारी सभसँ फराक राखल जाइत छल । ओहि कार्यालयमे एनिहार प्रत्येक बाहरी आदमीक बेस जाँच-पड़ताल होइत छल ,जेना ओकर नाओँ,पता आदि एकटा बहीमे लिखए जाइक आदि,आदि । एहिसभ कारणसँ सचिबालयक कर्मचारीसभ ओहि कार्यालयमे पोस्टींगसँ बँचबाक प्रयास करथि । मुदा हम कोना बचितहुँ । ओतेक बात बूझलो नहि रहए । आदेश भेटल आ ओही दिन जा कए पदभार ग्रहण कएल । अवर सचिव श्री ओमप्रकाश गुप्ताजी बहुत खुस भेल रहथि । ओ बहुत दिनसँ प्रयासमे छलाह जे ककरो पोस्टींग होइ,से भेल रहैक । हुनके अधीन प्रशासन -एकक अनुभागमे अनुभाग अधिकारीक रूपमे हमर पदस्थापना भेल।  
पहिने तँ हम प्रशासन एक अनुभागमे गेलहुँ ,मुदा किछुए दिनमे उठापटक भेल। ओहिठाम काज केनिहार अनुभाग अधिकारी श्री एल.एन .अंचल अपन व्योंत मे सफल भेलथि । हमरा ओतए जइतहि गुणा-भाग कए ओ हमर पोस्टींग अपना स्थानपर करबा देलथि आ ओ स्वयं गृह मंत्रालय पहुँच गेलाह । हमर जगह एहि तरहेँ मासे दिनक भीतर बदलि गेल । खैर इहो सही । जे भेल से भेल । हम ओतए पहुँचि ओहिठामक अधिकारी ब्रिगेडिअर पुरीसँ भेंट  केलिअनि । पुरी साहेब बहुत मजेदार व्यक्ति छलाह । ओ मूलतः गोरखा रेजिमेंटक रहथि । हुनका अंदरमे सेना,एअर फोर्स आ नेभीक कर्नल रैंकक अधिकारीसभ काज करैत छलाह । हमरा देखितहि ओ बैसबाक हेतु कहितथि । मुदा ओ फौजी अधिकारीसभ ओहिना ठाढ़े रहितथि कारण हुनकासभकेँ बैसबाक हुकुम हमरा लगैछ ओ जानि-बुझि कए नहि देथि । भए सकैए ब्रिगेडिहर साहेब एहूमे किछु बात रहल होनि । हमरासँ ओ तीनू अधिकारी बहुत अदबसँ पेश आबथि । पुरी साहेब बहुत नफीस आदमी छलाह । हमरासँ हुनका सबदिन नीक संवंध रहलनि । करीब दूसाल हम हुनका अंदरमे काज केलहुँ । कहिओ ओ हमरा संगे बेअदबी नहि केलाह । ओ  गोर-नार छः हाथक मजगूत कद-काठीक व्यक्ति छलाह । फौजक अनुशासन तँ जनित होएब । से हुनका मे छल । ओ चाहैत छलाह जे हुनकर अधीनस्त अधिकारी सभ फौजे जकाँ अनुशासित रहथि ,जे एहिठाम संभव नहि रहैक। एहि कारणसँ हुनका ओतए कै गोटेसंगे बेस मोसकिल भए जानि । एकबेर तँ ओ एकटा अधिकारीसँ तमसा कए कोर्ट मार्शल करबका गप्प करए लगलाह । बहुत मोसकिलसँ हुनका बुझाएल गेल जे ई सीभील विभाग छैक,सेना नहि छैक आ एहिठाम ई संभव नहि अछि । ओ अधिकारी एहि समाचारकेँ सुनि सन्न रहथि। कहुना कए जोगाड़ लगाए अपन बदली गृह मंत्रालय करबा लेलाह । एहि तरहेँ हुनकर जान बाँचल ।
जेआइसीक पोस्टींग हमरा लेल बहुत  रमनगर छल । ओहिठाम स्वर्गीय भागवत झा आज़ादक पुत्र श्री यशोवर्धन  झा आजाद सेहो कार्यरत छलाह। क्रमशः हुनकासँ परिचय बढ़ैत गेल । ओ कैटा काजमे बहुत मदति करथि। ओहि कार्यालयमे काज करितहि हम मधुबनीमे मकान बनेबाक हेतु गृह निर्माण ॠण हेतु आवेदन देलिऐक जे आजादजीक सहयोगसँ तुरंत मंजूर भए गेल । श्री ओम प्रकाश गुप्ता,अवर सचिवजी हमर मधुबनीमे घर बनेबाक प्रस्तावक समर्थक नहि रहथि । हुनकर विचार रहनि जे हमरा दिल्लिएमे फ्लैट लेबाक चाही। ताहि हेतु ओ यमुनापार अपन सोसाइटीमे एकटा फ्लैटक जोगारो करबाक हेतु तैयार रहथि । मुदा हम हुनकर बात नहि मानि अपन निर्णयपर अडिग रहि गेलहुँ । ओ कहथि जे बहुत मोन अछि तँ जमीन लए कए छोड़ि दिऔक। हम हुनका श्लोक सुनेलिअनि॒:

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते |

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ||



हमर मित्र ओ सहकर्मी श्री लाथर साहेब सेहो कहति जे एहीठाम फ्लैट लए लिअ आ जँ मधुबनीएमे  रहबाक होएत तँ बादमे एकरा बेचि कए कै गुणा पाई भेटत । आब सोचैत छी तँ लगैत अछि जे ओसभ सही रहथि । हमर शुभचिंतक तँ रहबे करथि । मुदा आब ताहि बातसभक घमर्थन केलासँ की फैदा होएत?

का बरखा जब कृषि सुखाने।

समय बीति पुनि का पछताने ।।

जे बात जखन हेबाक तखने होइत छैक ,सेहो एकटा कटु सत्य थिक । फेर जीवनमे सभक सोच,परिस्थिति आओर रुचि फराक-फराक होइत अछि । जे किछु,हम अपन निर्णय पर अड़ल रही जे मधुबनीमे पहिल घर बनाएब । ताहि पाछू हमर ई सोचब रहए जे गाम लगमे घरकेँ प्राथमिकता देबाक चाही । तकरबाद चाहे जतए-जतए घर बनाउ । जेआइसीमे ओहि समय गृह निर्माणक ॠण आसानीसँ भेटि गेल । मधुबनीमे हमर ससुर(स्वर्गीय गणेश झा) रहैत छलाह । हम हुनका आग्रह केलिअनि जे  घर बनबए जोगर कोनो जमीन जँ नजरि पर आबनि तँ हमरा सूचित करथि। जे बात छैक,ओ बहुत तत्परतासँ एहि काजक निर्वाह केलथि आ थोड़बे दिनक बाद हमरा पत्र लिखलनि जे हुनका एकटा उपयुक्त जमीनक जानकारी प्राप्त भेलनि अछि । हम मधुबनी जा कए ओहि जमीन केँ देखलिऐक । मधुबनी  स्टेडिअमक लगीचेमे प्लाट काटि कए बिका रहल छलैक । ओहि समयमे सौंसे इलाका खाली रहैक । कतहु किछु नहि।
सवा कट्ठा जमीन के दाम छलैक पचीस हजार । हमरा लगमे तँ एकहुटा टाका नहि छल । बैनाक रूपमे पाँच हजार टाका देबाक छलैक जे हम ससुरजीसँ पैंच लेलहुँ । तकर थोड़बे दिनक बाद हमरा गृह निर्माण ॠणक पहिल किस्त भेटल आ हम ससुरजीक पाँच हजार आपस कए देलिअनि संगहि जमीनक बाँकी दाम सेहो ओकर मालिककेँ दए देलिऐक । किछुए दिनमे ओहि जमीनक निवंधन भए गेल । निवंधन होइत तकर कागज सरकार लग जमा भेल से ताबे जमा रहल जा धरि सूद समेत सभटा मूर कर्ज सधा नहि देलहुँ । एहि प्रकृयामे  करीब-करीब पचीस साल लागल । एकटा फैदा ई भेल जे कागज सुरक्षित सरकारक ओहिठाम राखल रहल । हमरा तकरो चिंता नहि करए पड़ल । मुदा कै गोटे कहथि जे कै गोटाकेँ कागज एनामे हरा जाइत छैक आ बाद मे बहुत मोसकिलमे पड़ि जाइत छथि ।
जमीन कीनि तँ लेलहुँ मुदा ओ तँ खेत छलैक । सभसँ पहिने ओकरा भरेबाक छलैक । फेर विचार भेलैक जे पहिने नीचासँ मकान बनाएब शुरु कएल जाए आ जखन मकान ऊपर अएतैक तँ माटि भराएब सुगम रहत । सएह कएल गेल । एहि तरहें बहुत गहींरसँ मकानक नीव पड़ल । जतेक मकान जमीनक नीचामे धँसल अछि ताहिमे आसानीसँ एक तल्ल मकान बनि जाइत वा तहखानामे चलि जाइत । मुदा एहिसँ मकान तँ मजगूत भेवे कएल । मकानक काज शुरु करबासँ पहिने भूमिपूजन कएल गेल जाहि हेतु हमरा गामक प्रसिद्ध विद्वान स्वर्गीय परमानंद झा आएल रहथि । हमर सासुक हाथे ओहि मकानक नीव देबाक बिध पुरा कएल गेल । हमसभ सपत्नीक ओहिठाम रही । हमर ससुर सेहो उपस्थित रहथि
मकान बला जमीनमे तँ तखनो धरि खेती होइत छल । आस-पासक गामक किओ ओहिमे रब्बी छिटने रहैक। ओ बहुत घना करए लागल । कहुना कए ओकरा किछु टका दए मनाओल गेल । काज प्रारंभ भेल। नित्यप्रति किछु गोटे ओहि बनैत मकानकेँ देखबाक हेतु आबथि । देखबाक उत्सुकता ओहू द्वारे बेसी रहनि जे ओ स्थान एकदम बिरान छलैक । दूर- दूर धरि कतहु किछु नहि छल । कनीके फटकी मुर्दासभ फेकल रहैत छल । हमर मकानक जगहक सामनेमे सेहो कहिओ काल मुर्दा जड़ाओल जाइत छल । कनी हटि कए कोनपर पोखरीक भीरपर सेहो मुर्दा जड़ाओल जाइत छल । कहक माने जे लोककेँ लगैक जे एहन जगहपर मकान किएक बना रहल छथि ? कै गोटे गाहे-बगाहे पुछबो करथि । स्थान तँ ओ भयाबह रहबे करैक मुदा हमरा विश्वास रहए जे जखन हमर ससुरजीकेँ ई स्थान नीक लगलनि अछि तँ ई निश्चय किछु विशेष होएत । हुनकामे निर्णय लेबाक विलक्षण दैबीगुण रहनि जे हुनकर व्यक्तिगत ओ पारिवारिक जीवनमे सफलताक मूलमंत्र छल । ओना हमरो ओ जगह बहुत आकर्षित केलक । आई तीस सालक बाद जौँ ओहि मोहल्लामे जाएब तँ लागत जे मधुबनीक सभसँ नीक स्थानपर आबि गेल छी । जतए दिने- देखार मुर्दा फेकल रहैत छल ताहिठाम आब हनुमानजी आ भगवान शिवक दिव्य मंदिर बनि गेल अछि । सौंसे मोहल्ला लोकसँ गज-गज करैत अछि । लगीचेमे मधुबनीक सभसँ नीक पब्लिक इसकूल अछि आ कहि ने की-की बनि गेल अछि? दुपहरिआमे जखन इसकूलमे छुट्टी होइत अछि तँ ओहिठाम ठाढ़ होएब पराभव । तरह-तरहक सबारी सँ विद्यार्थी सभ हो-हल्ला करैत अपन-अपन घर आपस जाइत रहैत छथि । घरे बैसल मेलाक दृष्य देखाइत रहैत अछि ।
माङनिक योगदानक चर्चा केने बिना एहि मकानक खिस्सा पूरा नहि भए सकैत आछि । ओहि सुन्न स्थानमे बनैत मकानक रखबारी करबाक हेतु माङनि गामसँ आएल रहथि । हुनकर कै पुस्त हमरा ओहिठाम काज करैत रहल । हमर परिवारसँ ओसभ सबदिन जुड़ल छलाह। हम नेन्नेसँ हुनका देखि रहल छलिअनि । बादमे बूढ़ भेलापर ओ बाबाजी भए गेलाह आ जटा बढ़ा कए तीर्थसभ घुमैत रहैत छलाह । ओहिमे जँ किछु आमदनी भए गेल तँ गाओँ जा कए अपन पत्नी(निकासीबाली)केँ दए दैत छलाह । फेर आपस तीर्थाटनमे लागि जाथि । दू बेर संगी महात्मासभक संगे वृंदावन जेबाक क्रममे ओ माएक समाद लए कए सरोजिनीनगर(दिल्ली)क हमर डेरापर आएल रहथि । सोचल जा सकैत अछि जे हुनका हमर परिवारक प्रति कतेक सिनेह रहनि । माङनिक बाबाजी हेबासँ पहिनेक बात छैक । मधुबनी मकानमे ओएह रखबार रहथि । एकटा नान्हिटा खोपड़ी बनाओल गेल रहैक जाहिमे दिन-राति ओ रहथि । ओतहि भानस-भात बनाबथि । ओहिबाटे अबैत जाइत लोकसभ  हुनकर दोस्त बनि गेल छल । कै गोटे हुनकासंगे चीलम पीबाक आनंद सेहो उठाबथि । जे रहैक मुदा ओहि मकानक निर्माणमे माङनिक जबरदस्त योगदान छल , नहि तँ ओहि सुन्नस्थानमे ई काज आगा बढ़िए नहि सकैत छल ।
मकान मधुबनीमे बनैक आ हम अपने दिल्लीमे काज करी । एहि कारणसँ ओहिठाम काज करेबामे बहुत परेसानी होइत छलैक । जखन-जखन छुट्टी भेल तँ काजकेँ  आगा कएल जाए । कै बेर तँ हमर अनुपस्थिति मे हमर सासुरक लोकसभ काज करबैत छलाह । हम जहिआ कहिओ मधुबनी जाइ,मकानक काज लगले रहैत छल। एकबेर हमर एकटा मित्र  विनोदमे कहलाह

हमसभ एकबेर मकान बनओलहुँ आ जिनगी भरि रहि रहल छी आ अहाँकेँ जखन देखैत छी एहि मकानमे काजे करबैत रहैत छी ।"

एहि मकानक निर्माणसँ लए कए अंतधरि हमर मित्र श्रीनारायणजीक सेहो बहुत योगदान अछि । काज करबाक हेतु मिस्त्री,पेंटरसँ लए कए सामानसभ कीनबामे ओ सदति  मदति करैत रहलाह । टाका आ समय दुनूक अभाव रहबाक कारणसँ कै किस्तमे काज भेल । मकानक लागत ततेक बढ़ि गेल जे सरकारक ॠणक अतिरिक्त एचडीएफसीसँ सेहो ॠण लेबए पड़ल । ॠणसभक भूगतानक मासिक किस्त बहुत भए गेलैक । खर्चाक पुर्वानुमान फेल भए गेल। एहि कारणसँ बहुत कष्टक स्थिति भए गेल । मकानमे खिड़की,केबार लागि गेल रहैक । मुदा ग्रिल नहि लागल रहैक। देबालपर सीमेंट नहि लागल रहैक । तखने ओकरा बिहार सरकारक माप- तौल विभागकेँ किरायापर देबए पड़ल। मकान किराया तँ लागि गेल मुदा किराया देबे नहि करैक । सालक-साल बिना किराया देने ओ सभ रहैत रहलाह। किराया भूगतानक हेतु किराया निर्धारण एसडीओ मधुबनी द्वारा होएब जरूरी छल । ओ किराया निर्धारण केँ सालों लटकेने रहलाह । हम एहि विषयमे श्री किशोर कुणालजीकेँ कहलिअनि । हुनकर हस्तक्षेपसँ किराया निर्धारण भेल मुदा किराया अपेक्षाकृत कम तय कए देलक । १५०० रुपया मासिक किराया देबाक गप्प ओ सभ गछने रहथि मुदा ओकर किराया निर्धारण ९७० रुपया मात्र कए देल गेल। संभवतः एसडीओ मधुबनी कुणालजीक हस्तक्षेपसँ तमसा गेलाह । किराया निर्धारणक बादो बहुत दिन धरि किरायाक भूगतान नहि भेल । तखन तंग भए हम ओकरा खाली करबाक हेतु लिखए लगलिऐक । बँकिऔता किरायाक भूगतानक हेतु सेहो वारंबार लिखैत रहलिऐक ।
लगभग साढ़ेतीन साल हमर मधुबनीक मकान माप- तौल विभागकेँ किरायापर रहल । ओहि बीचमे बहुत कोशिश केलहुँ जे किराया दिअए मुदा ओ सभ  टस सँ मस नहि होइत छल । बुझा गेल जे सोझ आङुरे घी नहि निकलए बला अछि । एमहर मकानक ॠणक किस्त कटए आ किराया भेटबे नहि करए । एहिबातसँ बहुत परेसानी भए गेल रहए । तखन की कएल जाए ? गृह मंत्रालयमे काज करैत बसाक साहेब आइएएस (अपर सचिव रहथि)सँ संपर्क भेल। ओ बादमे बिहार सरकारमे मुख्य सचिव भेलाह । हुनका कैटा पत्र लिखलिअनि । ओ ओही पत्रपर आदेश देलखिन जे मास दिनक भीतरे मकानकेँ खाली कए देल जाए आ बाँकी किराया सेहो दए देल जाए । तथापि मकान खाली नहि होअए,ने किराया भेटए । मधुबनीमे कलक्टर रहल छलाह बुर्जिआ साहेब । ओ बदली भए कए गृह मंत्रालयमे  उप-सचिवक पद पर आएल रहथि । एक बेर रविदिन कए हुनकासँ किछु काजेक प्रसंगे भेंट भेल । ओ हमरा चिन्हए लागल रहथि । हुनका हम अपन मकानक समस्या कहलिऐन । जे बात छैक, ओ तुरंत मधुबनीक कलक्टरक नामे चिठ्ठी देलथि आ हुनका फोनो केलखिन। ऊपरसँ मुख्य सचिवक आदेश रहबे करैक । एतेक प्रयासक बाद माप-तौल विभागबला सभ दोसर मकान ताकए लगलाह । मुदा हुनकासभकेँ किओ मकान किरायापर देबे नहि करए । बात जस के तस रहि गेल । हम फेर मधुबनीक कलक्टरसँ भेंट केलिअनि । ओ कहलाह जे हम तँ हुनकासभकेँ वैकल्पिक मकानो दिआ देलिअनि तखन की दिक्कति छैक? भेलैक जे वैकल्पिक मकान सरकारी विभागक छलैक आ ओहोसभ माप-तौल विभागकेँ कोनो बहाना बना कए मना कए देलकैक । ई बात माप-तौल निरीक्षक कलक्टर साहेबकेँ कहलखिन । मुदा कलक्टरसाहेब अड़ि गेलाह । ओ माप-तौलक स्थानीय निरीक्षककेँ हुकुम देलाह जे चौबीस घंटामे  हमर मकान खाली हेबाक चाही । सएह भेल । दू दिनक भीतरे हमर मकान खाली कए माप-तौल विभाग भच्छी गाओँमे चलि गेल । जाइत-जाइत निरीक्षकजी आग्रह केलाह जे हुनकर लगाओल गाछसभक रक्षा कएल जाएत । ओ भगवानकेँ धूप -आरती केलाह आ हमरा मकानक कुंजी सुंझा देलाह । मास दिनक अंदरे हमरा दिल्ली स्थित सरकारी आवासक पतासँ बाँकी किरायाक बैंक ड्राफ्ट सेहो भेटि गेल । एहि तरहें हम बड़का संकटसँ मुक्त भेलहुँ । नहि तँ किछुदिनसँ सप्ताहांत अवकाश होइते मधुबनीक मकानक चिंता होबए लागैत छल आ समाधान इएह होइत जे सोमदिन कार्यालय अबिते ककरो-ने-ककरो फेर एकटा चिठ्ठि लिखतहुँ । एहि काजमे हमर आप्त सचिव श्री प्रकाश चंद्र पाण्डेयजी बहुत मदति करैत रहलाह । तुरंत खूब बढ़िआ चिठ्ठी टंकित कए लए आनथि। ताहिसँ तात्कालिक मानसिक शांति भए जाइत छल । आओर जे होइ,नहि होइ ।
मकान खाली तँ भए गेल मुदा तकरबाद करीब अढ़ाए साल धरि खालिए रहि गेल, कारण मकानमे बहुतरास काज बाँकी रहैक । तथापि मोन चैन लगैत छल । फेर किरायेदार सँ बहुत मोसकिलसँ जान छुटल छल। मकानक कुंजीसभ हम अपन मित्र लालबच्चा(फ्रोफेसर विष्णुकान्त मिश्र)केँ दए दिल्ली आपस भए गेल रही । तकरबाद कै साल धरि ओ मकान बंद पड़ल रहल । एकदिन हमरा भैया(श्री शशिभूषण मिश्र)फोन केलनि- अहाँक मकानमे पाछु दिसक छिटकनी खुजल बुझाएल ।’’
 ई समाचार सुनि बहुत चिंता भेल । तकर बादो तुरंत मधुबनी जेबाक परिस्थिति नहि नहि रहैक । करीब छ मासक बाद जखन हम ओतए गेलहुँ तँ सौंसे मकानमे विद्यार्थीसभ भरल छल । ओ सभ कोनो परीक्षा देबाक हेतु राजस्थानसँ आएल चलाह आ किओ हुनकासभकेँ टाका लए मकानमे राखि देने रहनि । मकानक एक भागमे पड़ोसमे बनि रहल मकानक समानसभ राखल छल । बाहरसँ ताला ओहिना लटकि रहल छल । कोनो बाहरी व्यक्तिकेँ पता नहि चलि सकैत छलैक जे मकानमे  एतेक धमाचौकरी भए रहल अछि ।  हालत देखि कए गुम्म पड़ि गेलहुँ । विद्यार्थीसभकेँ  धमकलिऐक तँ ओ सभ ओहीदिन साँझ धरि झोड़ा-झपटा उठओलक आ चलि गेल । आब रहि गेल पड़ोसमे बनैत मकानक समानसभ । हम संवंधित व्यक्तिसँ भेंट करए चाहलहुँ मुदा हुनका बदलामे हुनकर ससुर अएलाह। ओ ओकालत कए रहल छलाह। हम हुनका कहलिअनि जे जँ किओ अहाँक मकानमे एना बिना कोनो जानकारीकेँ रहए लागत तँ केहन लागत? कहला -"बात तँ अहाँ वाजिब कए रहल छी । मुदा जखन समानसभ राखल छैक तँ ओकरा खाली करबामे किछु समय तँ लगतैक ।"

"कतेक समय चाही?"-हम पुछलिअनि ।

"दू दिन ।"

"एवमस्तु।"

ओ आदमी जबानक पक्का निकललाह आ दूदिनक भीतरमे सभटा चीजवस्तु निकालि लेलथि । एकबेर फेर मकान खाली तँ भए गेल मुदा ओकर भविष्य लए कए बहुत चिंता होबए लागल ।
किछु दिनक बाद टाकाक जोगार कए मकानमे छूटल जरूरी काजसभ करओलहुँ,जेना खिड़कीसभमे ग्रील लागल,अंदरक देबालसभमे सीमेंट लागल । नीचा सेहो सिमटी लागल । कहक माने जे मकान आब कोनो व्यक्तिकेँ रहए जोगर भए गेल छल । मुदा बिजली तँ अखनो नहि लागल छल । बिजली आफिस गेलहुँ । ओहिठाम एकटा झाजी ओभरसियर रहथि । हम अपन परिचय देलिअनि । गप्प-सप्पमे हमर साढ़ूक सेहो चर्च भेल । ओ बिजली विभागमे  अभियंता रहथि । ओभरसियार साहेब हुनकर बहुत प्रशंसा करए लगलाह । कहथि जे ओ तँ देवता छथि । हम हुनका अंदरमे काज केने छी । हमर एहिबातसँ बहुत  प्रशन्न रही जे  चलू एकटा परिचित व्यक्ति भेटि गेलाह आ बिजलीक काज आसानीसँ भए जाएत । फेर ओ कहलाह जे बिजली आफिस चलि जाउ आ जरूरी फीस जमा कए दिऔ । दू सँ तीन दिनमे काज भए जाएत । तुरंत बिजली आफिस जा  फीस जमा कए देलिऐक । ओतहि एकटा लाइनमेन गोलिआबए लागल । हम ओभरसियर साहेब दए कहलिऐक तँ ओ कहैत अछि-"हुनका चक्करमे रहब तँ घुमिते रहि जाएब । " बात ओ सही कहलक । हम हुनका तकैत रहि गेलहुँ । हमर छुट्टी खतम होबएपर छल । मुदा हुनकर कोनो अता-पता नहि छल । किओ कहलक जे ओ कोनो संवंधीक इलाज करेबाक हेतु दरभंगा गेल छथि , कहिआ अओताह से कोनो ठेकान नहि । हारिकए ओही लाइनमैनकेँ पकड़लहुँ । ओएह जेना-तेना काज केलक । ई सभ होइत-होइत हमर छुट्टी समाप्त भए गेल छल। हम आपस दिल्ली चलि अएलहुँ । मकानमे ताला मारि देलिऐक । हम अपन मित्र श्रीनारायणजीकेँ भार देलिअनि जे मकानक हेतु कोनो नीक किरायेदारक ध्यान करथि । से ओ केलाह । थोड़े दिनक बाद हमर ज्येष्ठपुत्र भास्कर मात्रिक(पण्डौल डीह टोल) गेलथि । हुनके सामनेमे श्रीनारायणजीक सहयोगसँ मकान किराया लागि गेल । किरायेदार छलाह -मधुबनीसँ लगे डुमरी गामक श्री नंदलाल मिश्रजी । ओ ओहि समयमे मधुबनीमे सरकारी विभागमे  कार्यरत रहथि ।
श्री नंदलाल मिश्रजी किरायेदार कम समांग बेसी रहथि । ओहि मकानक लगपासमे बिरान छलैक । रहि-रहिकए कतहु ने कतहु चोरीक घटना होइत रहैत छलैक । तथापि ओ अड़ल रहलाह । क्रमशः ओहिठाम आओर मकानसभ बनैत रहल । जतए मुर्दा रहैत छल ताहिठाम हनुमानजीकभव्य मंदिर बनि गेल । श्री नंदलाल मिश्रजीक कै बेर बदली होइत रहलनि । मुदा ओ हमर किरायेदार बनल रहलाह । हुनका मकान नीक लागनि आ हमरासभकेँ ओ विश्वस्त लोक लागथि । अपने रही नहि तखन तँ एहन लोकक मकानमे रहब एक हिसाबे बड़ पैघ मदतिए छल । ऊपरसँ किरायो ओ दैते छलाहे । कै बेर किराया बकिऔता भए जाइक । मुदा ओ पाइ-पाइक जोड़ि कए किराया दए देथि । एहि मामलामे ओ बहुत स्वच्छ छलाह । किरयाक अलावा बिजलीक बिलक भूगतान सेहो हुनके करबाक रहनि । ओ कोनो-ने-कोनो दिक्कतिसँ से नहि कए पाबथि । प्रायः बिल अएबे नहि करैक । बादमे तकर कारणसँ हुनका नाहकमे बेसी बिल देबए पड़लनि ।
श्री नंदलाल मिश्रजी हमर मकानमे तेरह वर्ख किरायदार रहलाह । सेवासँ निवृत भए गेलाह । तकरबादो किछु दिन ओ रहलाह । एहि बीचमे ओ अपन गाओँमे बेस भव्य मकान बनओलथि आ हमरा अनुपस्थितिएमे हमर सहमतिसँ ओ मकान खाली कए चलि गेलाह । हम श्रीनारायणजीकेँ मकानमे ताला लगाबक भार देने रहिअनि जे ओ बहुत तत्परतासँ निर्वाह केलाह । आठटा ताला ओहि मकानमे विभिन्न कोठरीमे लगाओल गेल। मकान खाली छल तेँ ओहो सावधानी पूर्वक से काज केलाह ।  सालभरि मकान खालिए रहि गेल ।  ओहि बीच किओ सभटा ताला तोड़ि देलक । मकानमे तँ किछु रहैक नहि ,मात्र एकटा बक्सामे सीड़क आ एकाधटा ओछाओन रहैक,से लेने चलि गेल । बक्सा ठामहि छोड़ि देलक । जखन हम ओतए गेलहुँ तँ बाहरसँ सभकिछु ठीके बुझाए । गेटपर हाथ दैते ओ खुजए लागल । केबारसभपर हाथ दैते केबारसभ खुजए लागल । केबारसभक दशा तँ देखएबला छल । ककरो कुंडी टुटल छल तँ ककरो किछु । पूरा मकान कहि नहि कतेको दिनसँ एहिना खाली आ खुजल छल ।
मकानक हालत देखि कए माथपर हाथ धए बैसि गेलहुँ । इएह थिक हमर जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी? मोने-मोन अपने पर हँसी लगैत छल। भला एहिमे अनकर की दोख? मकानक रक्षाक दायित्व हमर छल । खैर! जे भेल ,से भेल । आब आगा बढ़ल जाए ,से सोचि मकानक रंग-रोशनक काज शुरु कएल । । रातिक चौकीदारी करबाक हेतु आलम आ ओकर एकटा सहकर्मीकेँ रखलहुँ । प्रसंगवश आलमक नाओँ अबितहि एकटा एहन मेहनतकश ओ इमान्दार व्यक्तिक छवि मोनमे चमकि जाइत अछि जकरापर शत-प्रतिशत विश्वास कएल जा सकैत छल ,जे एकबेर काज शुरु केलक तँ बिना कोनो विश्रामकेँ दिनभरि लागल रहैत छल। एहन संस्कारी ओ कर्मठ कार्यकर्ता डिबिआ लए कए ताकब तैओ साइते भेटए । मकानमे कोन रंग कतए पड़ए आ कोन-कोन कंपनीक रंगक समान लागए सेहो हमर संगी श्रीनारायणजी मार्गदर्शन करथि । हालेमे ओ अपनो मकानक रंग-रोशन केने छलाह । ओएह रंगसभ मोटा-मोटी हम अपनो मकानक हेतु चुनलहुँ । 
मकान रंगा-ढंगा कए तैयार छल । आब की होएत? रहबाक तँ छलहे नहि तखन तँ किरायेदार चाही । संयोगसँ एकटा किरायदेार भेटि गेलाह । किराया कहब तँ हँसी लागि जाएत । जतेक रंग-रोशनमे खर्च भेल से तीनो सालक किरायामे आपस नहि हेबाक छल । मुदा मकान खाली रखबाक फल तँ देखिए लेने रही ,तैँ किरायापर दए देलिऐक । दूसाल बाद ओ सेवानिवृत भए अपन गाम चलि गेलाह आ मकान एकबेर फेर खाली भए गेल । एकसाल धरि मकान खालिए रहल । आब हमरा सेवा निवृत हेबाक समय लगीच छल तैँ सोचलहुँ जे अखन किरायापर नहि दिऐक । 
हम सेवा निवृत भेलहुँ । रहब कतए? मधुबनी की दिल्ली? परिवारमे सभक निर्णय दिल्लीक पक्षमे भेल। तथापि हम मधुबनीक मकानमे बाँचल लकड़ीक काज सभ करओलहुँ । पानिक टंकी  बैसेलहुँ । दोबारा पोताइ करओलहुँ । मोनमे ई रहए जे अबैत -जाइत रहब । मधुबनीसँ दिल्ली आपस हेबाक अंतिम दिन एकटा किरायेदार भेटि गेलाह । सभकेँ ओ पसिंद भेलखिन । बूढ़ रहथि । मधुबनीमे सरकारी काज करैत रहथि । आखिर फेर मकान किरायापर लागि गेल । हम निश्चिंत भए दिल्ली आबि गेलहुँ ।
ओहीबीच हमर माएक जाँघक हड्डी टुटि गेलासँ हुनकर मोन खराप रहए लगलनि । कै बेर गाम,दरभंगा आबा जाही होइत रहल । मकान किरायापर रहैक । किराया समयपर पठा देल करथि । दू सालक बाद ओ सेवानिवृत भए गेलाह । तकरबादो ओ मधुबनीमे रहए चाहैत छलाह । हमरा आब मकान बेसीदिन किरायापर राखब ठीक नहि बुझाइत छल । हुनका कै बेर कहलिअनि जे मकान खाली करथि । अगस्त २०१६मे ओ मकान खाली कए बगलेक एकटा दोसर मकानमे किरायापर चलि गेलाह । हमरा फोन केलाह । हम कहलिअनि जे कुंजी अपने लग रखने रहू । मकान खाली भए गेल,से हम मानि आगूक किराया नहि लेब । फेर थोड़े दिनक बाद हम मधुबनी गेलहुँ । मकानक कुंजी हुनकासँ लेलहुँ । मकानकेँ साफ करओलहुँ । एहीक्रममे हम श्रीनारायणजी लग चर्च केलिऐक जे हम एहि मकानकेँ बेचि देबए चाहैत छी कारण कतेक दिनधरि किरायेदारसभसँ निपटैत रहब । अपनेसभ जखन दिल्लिएमे रहब तखन एकर रख- रखाव क्रमशः बेसी मोसकिल होइत जाए। संयोग एहन भेलैक जे ई बात केना-ने-केना लगपासमे  रहनिहार लोकसभकेँ पता लगलैक ।
हम एहिबेर मधुबनी मकान बेचबाक उद्यश्यसँ नहि गेल रही । किरायेदार मकान खाली कए देने रहथि। मकानक कुंजी हुनकासँ लेबाक रहए  आ भए सकैत तँ किराया लगा दितिऐक । गाममे माए दुखित छलीह । हुनकोसँ भेंट करबाक छलहे । तैं मधुबनी पहुँचलहुँ । दिनमे गाम जाइ आ रातिमे अपन मधुबनी डेरापर आबि जाइ । ओहिदिन भोरे हम तैयार भए गाम जेबाक क्रममे रही कि ओही मोहल्लामे रहनिहार एकटा युवक एकटा अधबयसूक संगे अएलाह-

"मकान बेचबाक सोचि रहल छी की?''-ओ पुछैत छथि।

"जँ नीक ग्राहक भेटत तँ सोचि सकैत छी ।"

"हमसभ साँझमे गप्प करए आएब । ताबे बाबू गामसँ आबि जेताह ।"

"ठीक छैक।"

एतेक गप्प कए ओ चल गेलाह । हमहु गाम चलि गेलहुँ । साँझमे गामसँ आपस अएलहुँ । अन्हार भए गेल रहैक । हम विश्राम करबाक हेतु बैसले रही कि चार-पाँच गोटेके लेने ओ युवक फेर अएलाह । गामघरक घटकैतीबला दृष्य रहैक । कतेक दाम लेबैक । एतेक दाम तँ बेसी भए जेतैक । तरह-तरहक गप्प होइत रहल। फेर ओ योवक बजैत छथि -

"काल्हि आगाक गप्प करब।"

 गप्प-सप्पक क्रममे श्री नंदलाल मिश्रजीक चर्च भए गेल रहैक । ओ भोरे-भोर हुनका गामसँ पकड़ने अएलाह । ई हुनकर प्रभाव कहू वा संयोग कहू तकर दू घंटाक अंदरे मकान बिका गेल । तुरंत किछु बैना सेहो देलथि । एहिठाम ई कहब जे जे भेलैक से अप्रत्याशिते भेलैक । ओना हमरा मोनमे कतहु-ने-कतहु ई बात रहए मुदा एना तुरंत भए जेतेक से नहि सोचने रहिऐक । हम तँ मकानक मूल दस्ताबेजो नहि लए गेल रही । संयोगसँ ओकरसभक फोटोकाँपी रखने रही । ओहीसँ काज चलि गेल । मकान कीननाहर लोकनिक महानता कहबाक चाही जे ओ हमरापर एतेक विश्वास केलाह । तीन दिनक भीतरे बेचबाक सभटा प्रकृया पूर्ण भए गेल ।  सभ किछु ततेक जल्दी भए गेलैक जे श्रीनारायणजीकेँ एहि घटनाक किछु जानकारी नहि दए सकलिअनि ।
कहि नहि सकैत छी जे मधुबनीक मकानक हेतु हम स्वयं आ हमर समस्त परिवार कतेक कष्ट काटलनि। मकानक ॠण बहुत भए गेल  रहैक । मकानक लागत बजटसँ बहुत बेसी भागि गेल । फेर  सभटा खर्चा तँ दरमहे पर बजरैत चल । मकानसँ किराया नाममात्रक अबैत छल ,ओहो समयपर नहि । असलमे दिल्लीमे रहैत मधुबनीमे मकान बनाएब एकटा दुरूह काज छल । आर्थिक भार तँ हम असगरे सहलहुँ मुदा शारीरिक,मानसिक भार तँ के-के ने सहलथि, तकर की कहू? ककर- ककर नाओँ लिअ । मुदा हमर सासुरक सभगोटे तँ करिते रहलाह । श्रीनारायणजी सालक साल एहि काजमे हमरा मदति करैत रहलाह । हमरा कै बेर मोनमे होअए जे जँ हम ई मकान बेचैत छी तँ एहिपर पहिल हक हुनके छनि । हम हुनका कहबो केलिअने जे ओ मकान लए लेथि। मुदा हुनका तकर प्रयोजन नहि रहनि । मधुबनीमे उच्चकोटिक मकान ओ बनओने छथि । कतेक की करताह ? मधुबनीक मकान हमर संघर्ष ओ मनोरथक एकटा प्रतीक बनि गेल छल । करीब२८ बर्ख हम ओहि मकानक निर्माणसँ जुड़ल रहलहुँ । आब तँ जे हेबाक छल से भइए गेल मुदा जाइत-जाइत ओ मकान अपन ॠण चुका गेल आ हमरा कै मानेमे निश्चिन्तो कए गेल ।
जीवनमे कतेको एहन घटनासभ भेल जे अपना-आपमे एकटा शिक्षा बनि गेल । मधुबनीमे मकान बनाएब सेहो सएह भेल । जीवनमे भावना आ यथार्थमे संतुलन जरूरी थिक । हमरा लगैत अछि जे मधुबनीमे मकान बनाएब एकटा भावात्मक निर्णय छल जे यथार्थक धरातलपर टिक नहि सकल । जँ आर्थिक दृष्टिए सोचबेक तैओ ओहि समयमे  दिल्लीमे ओतबे टाका लगा देलासँ मधुबनीक तुलानमे दोबर फैदा जरुर दैत । मुदा बात फेर ओतहि अटकि जाइत अछि  । कतबो छटपटाएब जतबे हेबाक आ जखने हेबाक तखने होएत । यद्यपि हम मधुबनीक मकानमे नाममात्रे रहि सकलहुँ मुदा हमरा एहिबातसँ बहुत आनंद होइत रहल  जे मधुबनीमे ,गामक लगमे ,हमर मकान अछि । मुदा ततबेटा ,ओहिसँ कोनो आओर सुख नहि भेल,अपितु झंझटे होइत रहल । आइ ई मरम्मति भए रहल अछि तँ काल्हि किछु आओर भए रहल अछि । ई प्रकृया सालों चलैत रहल। हालात एहन भेल जे गाम आ गाम लगक मधुबनीक घर दुनूसँ हमर मोह टुटि गेल ।  हमरा लगैत अछि जे अंततोगत्वा सही निर्णय भेल जाहिमे हमर श्रीमतीजीक बहुत योगदान अछि ।
सन्१९९०मे मकान बनलाक बाद लगभग एक्कैस साल ओ किराया पर रहल । पाँच साल अहिना खालिए रहल। छब्बीस सालमे मोसकिलसँ छब्बीसो दिन हम ओहिमे रहि सकलहुँ कि नहि । ताहि हेतु एतेक झंझट सालों हम झेलैत रहि गेलहुँ । शुरुएमे कैटा मित्र लोकनिक बात जौँ मानि लितहुँ तँ भए सकैत अछि जे साइत दोसरे परिणाम होइत मुदा भावी प्रवल होइछ,से बात मानहि पड़त । सभबातक अनुमान नहि लगाओल जा सकैत अछि । सभ किछु ओहिना नहि घटित भए सकैत अछि , जेना हम-अहाँ चाहैत छी । जे भेल, जेना भेल  मुदा कालचक्र तेना घुमल जे मधुबनीमे रहबाक हमर स्वप्न सभदिन हेतु भंग भए गेल ।  ठीके कहल गेल अछि-

"सुनहु भरत भावी प्रवल, विहुसि कहे मुनिनाथ ।

हानि-लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ ।।

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

लोकतंत्र का महाभारत


लोकतंत्र का  महाभारत



भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है । संबैधानिक व्यवस्थाओं के अनुसार  हमारे देश में केन्द्र सरकार और राज्यों में अलग-अलग सरकारों का प्रावधान है। केन्द्र और राज्य सरकारों के अधिकार और कार्यक्षेत्र बंटे हुए हैं । केन्द्रीय सरकार/ राज्य सरकारों के  गठन के लिए लोकसभा और विधानसभाओं  का चुनाव प्रत्येक पाँच साल पर कराना होता है । अगर जरुरी हुआ तो मध्यावधि चुनाव भी कराये जा सकते हैं। संबैधानिक व्यवस्थाओं के अनुकूल ही देश में अगले लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव मई २०१९ में कराया जाना है। यद्यपि चुनाव की विधिवत अधिसूचना अभी नहीं हुई है ,फिर भी पूरे देश चुनावी माहौल में रंगा नजर आने लगा है । सत्ता पक्ष और विपक्ष तरह-तरह की घोषणाएं कर रही हैं सभी जनता को आकर्षित करने के लिए लोक-लुभावन वादे भी करते जा रहे हैं ।  चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है । देश में लोकतंत्र को बनाए रखने का यही साधन है । इसलिए जो कुछ हो रहा है वह सामयिक ही है । परंतु चिंता की बात यह है कि देशभर में अभी से कटुतापूर्ण वातावरण बनता जा रहा है । 
देश के सब से पुराने और साठ साल तक देश  राज करने बाले कांग्रेस पार्टी पर चार पुस्तों से एक ही परिवार राज कर रहा हे । यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि इतना पुराने राष्ट्रीय दल अपने लिए एक परिवार से हटकर कई नेता नहीं ढूंढ़ सका। पारिवारिक सदस्यों की पकड़ और मजबूत करने के लिए उसी परिवार के एक अन्य सदस्य को महासचिव बनाकर चुनावी मैदान में उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य की कमान सौंप दी गई ,वह भी ऐसे समय जब यह कहने के पर्याप्त कारण हैं कि ऐसा करते समय उनके दिमाग में जरूर यह बात रही होगी कि एकबार राजनीति में आ गये तो पारिवारिक सदस्यों पर आर्थिक अपराधों से जुड़े तरह-तरह के आरोपों से बचने का बहुत ही आसान बहाना मिल जाएगा। वे आसानी  से कह सकते हैं कि हमलोगों से  राजनीतिक बदला लिया जा रहा है । सब से चिंता की बात यह है कि देश में भ्रष्टाचार को अब सहजता से लिया जाने लगा है । एसे लोग जेल जाते समय ऐसी भाव भंगिमा बनाते हैं जैसे कि वे स्वतंत्रता सेनानी हों । 
पिछले कुछ महिनों से कांग्रस अध्यक्ष लगातार राफेल सौदे के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे हैं । देश के चुने हुए प्रधानमंत्री के बारे में इस तरह की बातें  बिना पुख्ता सबूत के करते रहना देश हित में नहीं है , वह भी तब जब कि इस मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय स्पष्ट कर चुका है कि इसमें किसी भी प्रकार से कोई गड़बड़ी नहीं हुई है । जब  आब इस के बाद जेपीसी की बात उठाना और कुछ,कुछ कहते रहने का साफ माने यह निकलता है कि कांग्रेस पार्टी के नेता खासकर कांग्रस अध्यक्ष  इस मुद्दे को लोकसभा के आनेबाले चुनाव तक चलाते रहना चाहते हैं ताकि कुछ लोगों में भ्रम पैदा करने में वे सफल हो सकें । पता नहीं वे इस मकसद में कितना कामयाब हो पाते हैं लेकिन इतना तो तय है कि इस तरह के दुषप्रचार से देश की प्रतिष्ठा को व्यापक क्षति पहुँची है । अगर कांग्रस अध्यक्ष के पास इस मामले में सबूत थे तो उन्होंने इसे उच्चतम न्यायालय के सामने क्यों नहीं रखा? इस बात में विश्वास करने के पर्याप्त कारण हैं कि उनमे पास कोई सबूत है ही नहीं,बस वे जैसे,तैसे एक ही झूठ बार-बार दोहराए जा रहे हैं । ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि विपक्ष के पास मोदी हटाओ के सिवा कोई और मुद्दा है ही नहीं।
हाल ही में सीबीआइ के अधिकारियों के साथ कोलकाता में कोलकाता पुलिस द्वारा की गई कार्यबाई कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है । वहाँ के पुलिस आयुक्त से पूछताछ करने गये सीबीआइ के अधिकारियों के साथ धक्कामुक्की की गई,उन्हें थाना ले जाया गया और घंटो वहाँ उन्हें पुलिस हिरासत में रखा गया । उतना ही नहीं,पुलिस ने वहाँ के सीबीआइ के संयुक्त निदेशक के सरकारी आवास को भी घेरे रखा जिस वजह से उनके पारिवारिक लोगों को घंटो दहशत में रहना पड़ा । यह मामला उच्चतम न्यायालय तक गया और कोलकाता के पुलिस आयुक्त को सीबीआइ के सामने शिलांग में पेश होने का आदेश दिया गया। इस से स्पष्ट है कि सीबीआइ को कोलकाता के पुलिस आयुक्त के पास पूछताछ के लिए जाना सही था । अब उनको शिलांग  में सीबीआइ के पास पेश होना होगा । इस से यह भी स्पष्ट है कि माननीय न्यायालय को भी कोलकाता में इसके लिए उचित  माहौल का अभाव लगा । इसी विषय पर वहाँ के मुख्यमंत्री का सरेआम धरना पर बैठना तमाम लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन तो है ही, देश के संघीय ढांचा का भी खुल्लमखुल्ला चुनौती है । सबाल है कि जब देश ही नहीं बचेगा तो लोकतंत्र कहाँ से बंच पायेगा? लेकिन दुख  की बात यह है कि इन नेताओं को तो चुनाव जीतने के अलावा और कुछ दीखता ही नहीं है । पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेताओं को राजनैतिक रैलियाँ निकालने,बैठक करने में तरह-तरह से दिक्कतें पैदा की जा रही है । कई राष्ट्रीय नेताओं के हेलीकाप्टर को उतरने नहीं दिया जा रहा है । यहाँ तक कि प्रधान मंत्री के रैलियों में भी पर्याप्त सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की जाती है। आश्चर्य बात है कि ऐसे कार्य करने बाले लोग भी मोदीजी को अलोकतांत्रिक बताने में सब से आगे हैं । इस सब से स्पष्ट है कि इन के करनी और कथनी में कहीं से साम्य नहीं है । 
आन्ध्र प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री चार साल तक एनडीए के साथ थे । सभी को पता है कि बीजेपी को अपने दम पर पूर्ण बहुमत लोकसभा में प्राप्त था और सरकार चलाने के लिए किसी अन्य दल की आवश्यकता नहीं थी । फिर भी एनडीए के घटक दलों को केन्द्रीय सरकार में शामिल किया गया और वे हुए भी। उन्होंने सायद सोचा कि भागते भूत की लंगोटी ही सही । परिस्थिति ही ऐसी बन गई की एनडीए के घटक दलों के पास सौदेबाजी की शक्ति नहीं रह गई । जिसको जो विभाग मिले ,सबों ने लेने में ही भलाई समझी । जब पूरे चार साल तक राजसुख भोग लिया तो उनको  एकाएक अपने राज्य को विशेष दर्जा दिलाने की सुधि आई । उन्हें लगने लगा कि उनके राज्य के साथ बहुत ही अन्यायपूर्ण व्यवहार  केन्द्र सरकार कर रही है । फिर तो उन्होंने ऐसा समा बांधा कि एनडीए से नाता ही नहीं तोड़ा,क्या-क्या कहने लगे यह सभी जानते हैं । अब तो ऐसा लगता है कि मोदीजी हट गये तो उनके राज्य में स्वर्ग आ जाएगा । अगर ऐसा ही था तो वे चरसाल तक चुप क्यों रहे? साल-दोसाल काफी था । असल में चुनावी गणित को प्रमुखता देते हुए ही सारे लोक अपना भविष्य का निर्णय ले रहे हैं । इस में कुछ गलत भी नहीं है ,परंतु लोकतांत्रिक समाज में यह सबों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने व्यवहार में शालीनताऔर ईमान्दारी का परिचय दें । मतभेद व्यक्त करते हुए मर्यादाओं का ध्यान भी रखा जा सकता था खासकर जब चारसाल तक आप कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे थे,केन्द्र सरकार में शामिल थे। जाहिर है कि राजनीतिक स्वार्थ या अहं के टकराव को राज्य हित  का बहाना बनाकार लोगों को भ्रमित करना एक आम बात हो गई है और यह बात केवल वहीं तक सीमित नहीं रह गई है।
सभी जानते हैं कि बिहार के चर्चित चारा घोटाला में कुछ महत्वपूर्ण लोग क्यों जेल में बंद हैं । बिहार के गरीब जनता के पैसों को चरबाहा विद्यालय और जानबारों के चारा खरीदने के नाम पर सरेआम लूटा गया । यह लूट सालों चलती रही । भला हो कुछ ईमानदार अधिकारयों का, जिन्होंने इस लूट को पकड़ा और नौकरी को जोखिम में डालकर उचित कानूनी कार्रवाई की । बहुत सारे ऐसे मामलों में सालों चली कानूनी प्रकृया के बाद अदालतों ने उनको  एवम् अन्यों को इस  भयानक भ्रष्टाचार के मामलों में सजा देने में कामयाब रही । अभी भी कुछ मामलों में फैसला होना बाँकी है । अगर कोई भी उपाय होता तो भ्रष्टाचारी बँच निकलते पर वे ऐसा नहीं कर सके क्यों कि अभी भी ईमान्दार अधिकारी और न्यायाधीश देशहित को सर्वोपरि रखकर काम करते हैं। ऐसे ही  लोगों के बजह ये लोग सलाखों के पीछे जीने के लिए मजबूर हैं । मजबूरी में उनके लोगों को यह स्वीकार करना पड़ा है परंतु वे जेल से बँच निकलने की भरपूर कोशिश अभी भी करने से बाज नहीं आ रहे हैं । अब उन्हें लगने लगा है कि मोदीजी के रहते तो कानूनी फंदों से बँच निकलना नामुमकीन है तो लोकसभा का चुनाव आशन्न देखकर उमीद लगाए हुए हैं की कोई ऐसी सरकार केन्द्र में बन जाए जिससे वे जमानत पर ही सही जेलों से बाहर हो सकें । आश्चर्य की बात है कि इस तरह भ्रष्टाचार के मुकदमो में सजा पाए लोग भी मोदीजी को ईमानदारी से काम करने की सलाह देते है । वे अपने समर्थकों को यह बताने से भी नहीं चूकते हैं कि मोदीजी के बजह से ही उनको फँसाया गया है । इसे आप क्या कहेंगे? निश्चय ही ये लोग मान बैठे हैं कि वे जब और जैसा चाहेँ अपने अंध समर्थकों को मूर्ख बनाते रह सकते हैं । परंतु उन्हें इस बात का अंदाज होना चाहिए की देश की जनता अब बहुत सजग है । वह वारंबार अपना मत बड़ी स्पष्टता से प्रकट भी कर रही है । लेकिन तब सत्य को समझ कर भी वे जनता को मूर्ख समझने की कोशिश करते हुए पाए जाते हैं। लेकिन भ्रम की इस स्वनिर्मित  मायाजाल से वे कब तक सच्चाई को दबा सकते हैं? । यही कारण है कि वे आज इतने हताश दिख रहै हैं ।
उत्तरप्रदेश में लोकसभा के अस्सी सीटों का चुनाव होना है । जातीय आधार पर मतों का ध्रुवीकरण सुनिश्चित करने के लिए बासपा और सपा ने आपस में गठवंधन किआ है । इस से कांग्रेस को बाहर रखा गया है।उनका कहना है कि वहाँ कांग्रेस के पास जनाधार है ही नहीं फिर उनको साथ लाकर क्या होगा? कांग्रेस के लोग उनको आगे लाकर चुनावी परिदृष्य को कितना प्रभावित कर सकेंगे यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन यह तो तय है कि उत्तरप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में ही महागठवंधन फेल होता नजर आ रहा है और चुनाव में कई पक्षों के होने की संभावना बढ़ती नजर आ रही है। इस तरह स्पष्ट है कि इस चुनावी महाभारत में सभी पार्टियां मोदीजी को पदच्युत करने के लिए कटिवद्द लग रही हैं। पर सबाल है कि क्या देश की जनता भी उनके साथ जाने के लिए तैयार है । इस प्रश्न का जबाब तो लोकसभा के चुनाव के परिणाम के आने के बाद ही मिल सकता है । पर इतना तो साफ है कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री से लोहा लेने के लिए सारे विपक्षी नेताओं को एकजुट होने के लिए विवश होना पर रहा है । फिर भी वे इस सबों पर अकेले ही भारी पड़ते लग रहे हैं। देश में मान लीजिए महागठबंधन बनाकर वे तमाम विपक्षी पार्टियाँ केन्द्र में मोदीजी को हराने में सफल हो भी जाती हैं तो क्या वे एक सफल सरकार दे पाने की स्थिति में होंगे? अगर आप इनलोगों से पुछेंगे तो जबाब यही देते हैं कि इन सारी बातों पर चुनाव के बाद मिनटों मे निर्णय ले लिया जाएगा,कोई दिक्कत नहीं आएगी,आदि,आदि। वे इसके अलावा कुछ और कह भी नहीं सकते हैं,क्योंकि वहाँ दर्जन से भी ज्यादा प्रधामंत्री के प्रत्याशी मौके की ताक में घूम रहे हैं ।
देश चुनावों के दौरान बूथ कब्जा करने के दौर से बड़े मुश्किल से बाहर आ पाया है । इस के लिए शत-प्रतिशत योगदान इभीएम मशीनों का है । चुनाव में इन मशीनों को लगाने का फैसला कांग्रेस सरकारों के दौरान ही हुए थे,उसी दौरान ये मशीन  खरीदे गये और इनका सफलतापूर्वक उपयोग भी हुआ । चुनाव पर चुनाव इन्हीं मशीनों के सहारे होते रहे । यहाँ तक कि सन् २०१४ के लोकसभा और उसके बाद हुए कई विधानसभाओं के चुनावों में भी इन मशीनों का सदा-सर्वादा की तरह उपयोग होते रहे । परंतु, सन् २०१७ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा में विपक्षी दलों को कराड़ी हार के बाद उन्होंने हार का टिकड़ा इभीएम मशीनों पर फोड़ना शुरु कर दिया । ऐसा इसीलिए कया गया कि मतदाता खासकर अपने समर्थकों को भुलावा में रखने और अपनी गिड़ती हुई साख को बचाने के लिए इनके पास कुछ भी विकल्प नहीं दिख रहा था । तभी से योजनावद्ध ढंग से इभीएम मशीनो को हैक करने की झूठी खबरें चलाई जा रही है । कभी दिल्ली की विधानसभा में तो कभी लंदन तक में इस मशीन की तथाकथित निकंम्मेपन की जानकारी प्रचारित की जात है । निश्चय ही इसके लिए काफी खर्चा भी किया जाता होगा । कोई इस तरह का नाटक मुफ्त में क्यों करेगा? दुख की बात यह है कि जब इन अफवाहों का संज्ञान लेते हुए देश के चुनाव आयोग ने सभी दलों को इभीएम मशीन के तकनीकी विश्लेषण हेतु आमंत्रित किया तो विपक्षी दलों ने इस में पर्याप्त रूचि नहीं दिखाई । एसा होना ही था ,क्यों कि उनको इस मशीन को सही साबित करना ही नहीं है । उनका एकमात्र मकसद जनता और अन्य लोगों में यह भ्रम फेला देना है कि चुनाव ठीक से होते ही नहीं अन्यथा वे ही चुनाव जीतते ,आदि,आदि । आश्चर्य की बात यह है कि जब  और जहाँ विपक्षी चुनाव जीतते हैं वहाँ की इभीएम मशीन कैसे ठीक काम करने लगती है और वे गलत चुनाव को सही कैसे मान लेते हैं,चुपके अपनी सरकार क्यों बना लेते हैं ,क्यों नहीं यह कहकर इस्तिफा दे देते हैं कि इस मशीन से चुनाव कराया गया ,इसलिए यह सही नहीं है?
विपक्षी दल यह भी नहीं  सोचते हैं कि इस तरह के गलत प्रचार से विदेशों में भारत की खासकर  हमारे चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा। देश की प्रतिष्ठा रहे या जाय,उनको तो हर हाल में खुद को सही और सरकार को गलत साबित करना ही है । इस तरह की हठधर्मिता और पूर्वाग्रहित कार्य से देश का सर्वनाश तो  होगा ही उन दलों का भविष्य भी सुरक्षित नहीं रह सकता है । उनको यह समझना चाहिए कि देश में लोकतंत्र जिंदा है तभी वे सरकार के खिलाफ इस तरह बोल पा रहे हैं और आने बाले चुनावों में अपनी जीत का सपना देख पाते है । परंतु सत्ता हथिआने का सरल मार्ग अपनाकर देश की जनता को इस कदर मूर्ख बनाने की कोशिश उल्टा ही पड़ेगा ।
जिस तरह ठीक चुनाव से पहले तथाकथित असहिष्णुता  की बातें जोड़ पकड़ लेती हे उस से यह कहीं-न-कहीं शक जरुर पैदा होता है कि यह सब प्रायोजित तो नहीं है? विहार के विधानसभा के चुनाव के समय देश के कई लेखकों ने अपने पुरस्कार लौटाने शुरु किए । जैसे ही विहार का चुनाव संपन्न हो गया वे सभी इस तरह चुप हो गये जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो । अगर सचमुच के वे लोग इस मामले मैं चिंतित थे तो इस आंदोलन को आगे बढ़ाते और अपने लक्ष्य तक पहुँचने तक जारी रखते । परंतु ऐसा नहीं हुआ । अब फिर थोड़े दिन पहले ठीक उसी प्रकार से सीनेमा जगत के एक चर्चित कलाकार ने असहिष्णुता की बात उठाई है । कुछ लेखक,वुद्धिजीवी ने देश में फैल रहे इस समस्या की ओर ध्यान दिलाते हुए संकट को इतना गंभीर बताया है कि इस से उनके बच्चों के भविष्य को भी खतरा लगने लगा है । इस में कोई शक नहीं लगता है कि बिहार के चुनाव के तरह लोकसभा के चुनाव को प्रभावित करना ही उनका मूल लक्ष्य है और चुनाव संपन्न होते ही ये सभी दृष्यपटल से ऐसे ही गायब हो जाएंगे जैसे कि बिहार विधानसभा के चुनाव के बाद  गायब हुए थे ।
वारंबार यह कहा जा रहा है कि देश की तमाम संबैधानिक संस्थाएं खतरे में है । यह कहने बाले क्या खुद इस के लिए जिम्मेदार नहीं है? भारत के उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव  लाने बाले कौन थे और उन्होंने ऐसा क्यों किया था ? सभी जानते हैं कि वे लोग मुख्य न्यायाधीश को सकते में रखना चाहते थे । जब फैसला उनके पक्ष में हो तो सही नहीं तो सब कुछ गलत । ऐसे लोगों से क्या उम्मीद लगा सकते हैं?देश में आपत्तिकाल क्यों लगाया गया? पूरा देश जेलखाने में तब्दील कर दी गई । लोक अपनी बात रख नहीं सकते थे । हालात ऐसी थी कि कोई अगर सच बोलता तो जेल जाएंगे । वही लोग आज कह रहे हैं कि संबैधानिक संस्थाएं खतरे में है । 
जरूरी इस बात की है कि लोग संस्थाओं के ऊपर स्वार्थबश दबाब लगाना बंद करें । चुनाव आयोग हो,उच्चतम  न्यायालय हो,सीबीआइ हो सभी को व्यर्थ के विवादों में घसीटने से बचना चाहिए । तभी देश में लोकतंत्र फल-फूल सकता है । ठीक है, चुनाव महत्वपूर्ण है ,चुनाव के दौरान मतभेद की अभिव्यक्ति भी जरुरी हो सकता है लेकिन ऐसा नहीं लगना चाहिए की हम किसी शत्रु देश से भिड़े हुए हैं। सभी अपने ही देश के नागरिक है और सब से ऊपर राष्ट्रहित है,ऐसा भाव लेकर हमें चलान ही चाहिए । तभी हम सार्थक सावित हो सकते हैं । 
भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान स्थिति की यह विचित्रता है कि यहाँ पर चुनाव होता ही रहता है । जब-जब चुनाव होगा आचार संहिता भी लगेगा । उस दौरान उस क्षेत्र की सरकार कोई नीतिगत निर्णय लेने से असमर्थ हो जाएगी । फिर चुनाव होगा,उसके परिणाम आयगा । कोई जीतेगा,कोई हारेगा । लोकतांत्रिक पद्धति अपनाने बाले सभी देशों में ऐसा ही होता है। पर दुनियाँ में ऐसा सायद ही कोई देश होगा जहाँ हर साल किसी--किसी राज्य में चुनाव होता रहता हो । उतना ही नहीं लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव के अतिरिक्त राष्ट्रपति का चुनाव,उपराष्ट्रपति का चुनाव और पता नहीं क्या-क्या चुनाव होता ही रहेगा । फिर आप ही बताइए की कोई भी सरकार काम कब करेगी? विकास की बातें तो चुनावी घोषणापत्र में होंगे पर उनका कार्यान्वयन कब होगा और कौन करेगा ? सभी लोग तो चुनाव में उल्झे रहते हैं । फिर देश की समस्यायें जस की तस नहीं रह जायेंगी तो और क्या उम्मीद की जा सकती है ? इसलिए जरूरी है कि चुनावी  महाभारत में मर्यादा बनाए   रखा जाए और देशहित को प्रमुखता देते हुए संबैधानिक संस्थाओं को व्यर्थ के विवाद में न घसीटा जाए ।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की आजादी के लिए हजारों लोगों ने अपने कुर्वानी दी थी । कितने युवकों को इसीलिए फाँसी पर चढ़ा दिया गया कि वे देशभक्त थे,वंदे मातरम गाना चाहते थे । आज जब हम आजाद हैं, हम एकबार फिर वैसी गलती नहीं दुहराएं जो पहले हो चुके हैं और जिस वजह से हम हजारों साल गुलाम रहे । आइए, हम सब मिलकर लोकतंत्र के इस पर्व का सही उपयोग करें ताकि इस से एसा समाधान हो जिस से देश  मजबूत हो   और भावी पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज बिरासत के रूप में छोड़ जाँए ताकि वे हम पर गर्व करें।



रबीन्द्र नारायण मिश्र

mishrarn@gmail.com


मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

बिसारिए न हरि नाम

बिसारिए न हरि नाम

यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ||

गीताक ई अंतिम श्लोक अछि । ओना तँ गीताक एक-एक शव्द अर्थपूर्ण ओ जीवनदायी अछि मुदा एहि अंतिम श्लोकमे एकहिठाम संजयक मुँहे सभकिछुक सारांश कहि देल गेल अछि । विजय ओकरे जतए भगवान श्रीकृष्ण छथि । महाभारत युद्धमे दुर्योधनकेँ युद्धक परिणामक चिंता छलनि । रहि-रहि कए ओ संजयसँ एतबे पुछैत रहैत छलाह जे युद्ध क्षेत्रमे हुनकर पुत्रसभक की हाल अछि? ओ सभ जीत सकताह की नहि? संजय साफे कहैत छनि जे एहि युद्धमे संख्या ओ शस्त्रवलक कोनो अर्थ नहि गेल अछि । विजय,विभूति ओ श्री ओतहि होएत जतए भगवान श्रीकृष्ण छथि,जतए धनुर्धारी अर्जुन छथि ,कारण हुनके संगे धर्म अछि ।
चिंता करब मनुक्खक कमजोरी थिक । जाहि  व्यक्ति वा वस्तुसँ लोककेँ जतेक बेसी लगाव रहैछ तकरा विषयमे ओ ततेक बेसी सोचैत अछि । सोचलासँ होइते की छैक?किछु नहि ,अपितु बसी सोचैत रहब तँ स्वास्थ्य सेहो गड़बड़ेबाक संभावना भए जाइत अछि । मुदा मोन अछि जे मानिते नहि अछि   लोक वारंबार चिंता करैत रहैत अछि । असलमे चिंता करब नकारात्मक प्रवृत्ति थिक । एहिसँ किछु फैदा  नहि होइत अछि । तथापि लोक स्भाववश चिंता करिते अछि ।
जीवन भरि प्रयास केलाक बादो कै बेर होइत छैक जे हम की केलहुँ? कहीं हमर जिनगी व्यर्थ तँ नहि चलि गेल? कै बेर लोके खीधांस करैत भेटत ।" एह! की केलहुँ? कोनो पोखर -इनार खुनेलहुँ की? आदि,आदि?
आब पोखरि-इनार खुनेबाक जमाना नहि रहलैक । पहिलुका समयमे एकर महत्व एहि लेल छलैक जे लोक केँ एहिसँ जीवनमे सुविधा होइक । आब तँ समय बदलि गेल । सभक घर-आंङनमे चापाकल छैक,सौचालय-स्नानगृहक व्यवस्था छैक,तखन किओ पोखरि दिस किएक जाएत? समयक अनुसार लोकक अपेक्षा बदलि जाइत छैक। एकहि जिनगीमे लोककेँ पिछला बातसभ कै बेर अप्रासंगिक लागए लगैत छैक।तखन की करब? जखन जे भेलैक,से भेलैक,ओहिपर माथापच्ची केनाइ व्यर्थ थिक। लोक की कहैत छथि वा की कहताह ताहि हिसाबे चलब तखन तँ भए गेल । जरुरी अचि जे अपन मोनकेँ स्थिर कए सोची जे हमर की कर्तव्य अछि,हम की कए सकैत छी । अहाँ अपन हालतकेँ सभसँ नीकसँ अपने बुझि सकैत छी । तैँ जे अपना ठीक बुझाए सएह करबाक चाही आ जे बात बीति गेल तकरा बारे मे सोचि-सोचि समय नहि बिताबक चाही ।
सुख-दुख तँ जीवनमे लगले रहैत अछि । एहन नहि होइत अछि जे सभदिन अन्हरिए रहए । जँ धैर्यपूर्वक समयक संगे चलैत रहब तँ आइ ने काल्हि इजोरिओ अएबे करत । कहबाक माने जे धैर्यपूर्वक सही दिशामे प्रयासरत रहलासँ हाथक रेख सेहो बदलि जाइत अछि । कोनो जरुरी नहि अछि जे हम जएह चाहबै सएह हेतैक । मुदा जे भए रहल अछि तकरा सहर्ष स्वीकार कए, बिना बेसी उठापटककेँ जीवन जीवाक कला विकसित कएल जा सकैत अछि । मोनमे संतोख होअए तँ कनीकोमे लोक शांतिपूर्वक जीवन चला सकैत अछि। आखिर किओ किछु लादि कए अपना संगे नहि लए जा सकल,ने आगुओ किओ लए  जाएत । ई बात सभ बुझैत अछि । तखन समस्या कथीक अछि? मोनक फेर छैक आओर किछु नहि । दोसर संगे  जे हम अपनाकेँ तौलए लगैत छी सएह कष्टकारी प्रयोग भए जाइत अछि । सभक अपन कर्म छैक । अपन-अपन भाग्यसँ लोक जीवैत अछि । एहिमे ककरोसंगे घेंटजोड़ी करबाक कोन काज। कोनो जरुरी नहि जे जकरा हमसभ बहुत सुखी आ संपन्न बूझैत छी से सही मानेमे सुखी होथि । अंदरक हाल तँ ओ स्वयं कहि सकैत छथि। कहबी छैक जे –
"राजा दुखी,प्रजा दुखी योगीकेँ दुख दुन्ना ।
कहत कबीर सुनो भाइ साधो,एकहु घर नहि सुन्ना ।।
आस्तिक वुद्धि आ भगवानमे विश्वास रहलासँ पैघ सँ पैघ संकटपर विजय पाओल जा सकैत अछि । जीवन अपना आपमे बहुत रहस्यात्मक अछि । कखनो किछु,कखनो किछु होइते रहैत अछि । ओहि सभकेँ शांतिपूर्वक निबाहैत जीवन यात्राकेँ गंतव्य धरि पहुँचाएब एकटा महान यज्ञ थिक । एहन बात नहि छैक जे गरीबेकेँ कष्ट रहैत छैक । जीवनमे दुख-सुख लागले रहैत अछि । की पैघ की छोट सभ एहि अवस्थासँ प्रभावित होइत छथि । तखन केहनो अवस्थामे जिनकर विश्वास बनल रहैत अछि से बेसी सहजतासँ टपि जीवनमे आगू बढ़ि जाइत छथि । जिनका से नहि होइत अछि वो तरह-तरहसँ परेसान भए जाइत छथि । कै गोटे तँ अवसादग्रस्त भए जाइत छथि । कतेकोगोटे आत्महत्या धरि कए लैत छथि । जीवन संघर्षमे एहि बातकेँ सदिखन ध्यान राखबाक चाही जे हम असगर नहि छी,इश्वर हमरा संगे छथि  आ ओएह पार लगओताह ।
"हारिए न हिम्मत, बिसारिए न हरि नाम ।
जाहि विध राखे  राम,ताहि विध रहिए ।।"

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

प्रभुदत्त ब्रह्मचारी







प्रभुदत्त ब्रह्मचारी



अलीगढ़ जिलाक एकटा गरीब ब्राह्मण परिवारमे सन् १९८५मे प्रभुदत्त ब्रह्मचारीक जन्म भेल रहनि । शुरुएसँ संस्कृतमे हुनका बहुत रूचि रहनि । ताहि हेतु ओ मथुरा,वृंदावनक कतेको गुरुकुल गेलाह । अंततः ओ काशीक गुरुकुल पहुँचलाह जतए हुनकर करपात्रीजी संगी रहथिन । स्वतंत्रता आंदोलनमे ओ सकृय रहलाह आ ताहिक्रममे  जेलो गेलाह । जवाहरलाल नेहरु जेलमे हुनकर संगे रहथिन । प्रभुदत्त ब्रह्मचारी परिब्राजकक जिनगी जीबैत विभिन्न स्थानक यात्रा करैत रहलाह । ओहिक्रममे हुनका महान संत उरिया बाबा आ हरिबाबासँ भेंट भेलनि । हिनका दुनूगोटेसँ ब्रह्मचारीजीकेँ बहुत प्रेरणा भेलनि आ हुनके सभक प्रेरणासँ ज्ञान प्राप्त करबाक हेतु ओ हिमालय चलि गेलाह ।

हमसभ जखन नेन्ना रही तँ बाबूजी बरोबरि प्रभुदत्त ब्रह्मचारीक चर्चा करैत छलाह। ओहि समयक मानल संतमे हुनकर नाम छल । चर्चाक क्रममे ओ कहितथि जे कोना ओ हिन्दू कोड बिलक मामलापर नेहरुजीक खिलाफमे लोकसभाक चुनाव १९५२मे लड़ल रहथि । संगमक ओहिपार पूलसँ लोक झूसी जाइत अछि । गंगाक कातमे हुनकर आश्रम छल । ओतहि एकटा संस्कृत महाविद्यालय सेहो ओ चलबैत छलाह । तहिएसँ ओ स्थान संकीर्तन भवनक नाओँसँ जानल जाइत अछि। गाहे-वगाहे हुनकर चर्चा होइते रहैत छल ।  समाचार पत्रसभमे हुनका बारेमे छपैत रहैत छल । ओही समयमे हुनकर लिखल किताब "शोक नाश" पढ़बाक अवसर भेटल । अद्भुत  किताब छल ओ । एहिमे ओ अपना संगे घटल एकटा दुखद प्रसंगक वर्णन केने छथि । दक्षिण भारतक अपन एकटा भक्तक ओहिठाम ट्रेनसँ जाइत काल किछु सहयात्रीसभ हुनका संगे सीटक विवादक क्रममे हुनकर झोटा पकड़ि कए ततेक जोर-जोरसँ खिचलक जे सौंसे माथक केससभ ऊखरबाक हालत भए गेल । दर्दसँ ओ छटपटाइत चलाह । इसारासँ ओ कै बेर ओकरा मना करथि । मुदा ओ अत्याचार करैत रहल । ओहि असह्य पीड़ाकेँ ओ सहैत रहि गेलाह । किछु बाजिओ नहि सकलाह,कारण ओहि समय ओ मौनमे रहथि,बाजि नहि सकैत छलाह । जखन ट्रेनसँ उतरबाक काल हुनकर स्वागतमे भक्तक भीड़ लागि गेल आ से बात ओ लड़ाका यात्री देखलक तँ ओकरा अपन गल्तीक अंदाज भेलैक । ओ हुनकर पैर पर खसि पड़ल । महात्माजी ओकरा आशीर्वाद दैत अपन भक्तसभक संगे चलि गेलाह। ककरो किछु नहि कहलखिन।

शोक नाश पुस्तकमे बर्ह्मचारीजी अपन आश्रममे रहैत एकटानेन्नाकेँ अकस्मात गंगामे नहाइत काल डुबि जेबाक प्रसंगक वर्णन करैत लिखैत छथि जे ओहि बालककेँ ओ  दिन-राति ध्यान रखैत छलाह । नित्यप्रति ओ गंगा स्नान करैत छल । ओहिदिन हुनके संगे नहाइत-नहाइत ओ गंगाक पानिक घुर्मीमे फँसि गेल आ डुबल से डुबले रहि गेल । आस-पास ठाढ़ गोताखोरसभ बहुत तकलक,अपनाभरि बहुत प्रयास केलक मुदा ओ कतहु नहि भेटल। एहि तरहेँ दुर्घटनामे ओहि नेन्नाक आकस्मिक मृत्युसँ महात्माजी बहुत दुखी भेलाह । कै दिन अन्न-जल ग्रहण नहि केलाह । फेर लोकेसभ हुनका बुझओलक जे एकटा सन्यासीक लेल एतेक शोक करब उचित नहि । ओहि बालकक स्मृतिमे संकीर्तन भवनमे भगवानक नवाह कएल गेल । आश्चर्यक बात जे ओहि बालकक पिता एहि समाचारसँ उद्वेलित नहि भेल आ कहैत रहि गेल जे महात्माजीक आश्रयमे ओकर मुक्ति भए गेल एहिसँ बेसी भाग्यक बात आोर की भए सकैत छल ?

पहिलबेर हमरा हुनकासँ १९७८ ई०मे भेंट भेल । ओहि समयमे हमर पोस्टींग प्रयागराजमे रहए । हमरासंगे हमर अनुज रहथि । ओ विस्तारसँ हमरासँ गप्प-सप्प करैत रहलाह । संगहि हमर अनुजसँ सेहो हुनकर पढ़ाइ-लिखाइक बारेमे पुछऔत रहलखिन । आग्रह केलखिन जे ओ हुनकार संस्कृत कालेजमे शास्त्रीमे नाओँ लिखा लेथि । मुदा ताहि हेतु ओ तैयार नहि भेलाह । हमसभ घंटा-दूघंटा ओहिठाम बिता कए आपस अपन डेरा चलि आएल रही । तकर बाद कै बेर हम हसगर आ परिवारक संगे हुनकासँ भेंट करबाक हेतु जाइत रहलहुँ। संकीर्तन भवन पर गेलासँ एकटा अद्भुत सात्विक आनंदक अनुभव होइत छल । कै बेर तँ ओ लिखबा मे व्यस्त रहैत छलाह । हमरा सभक गेलापर  किओ चेला जा कए हुनका कहतनि जे भक्तसभ आएल छ थि तँ ओ बाहर आबि जइतथि । संकीर्तन भवनमे जन्माष्टमीक पर्व धूमधामसँ मनाओल जाइत छल । कै बेर बेर हमहु ओहिमे सामिल भेल रही ।

संत तँ ओ छलाहे,अपना समयकेँ उत्कृष्ट लेखकमे सेहो हुनकर सुमार होइत छल । करीब दू सए पोथी ओ लिखने छथि । साहित्यिक क्षेत्रमे हुनकर योगदानक बहुत प्रशंसा भेल आ हुनका कैटा पुरस्कार सेहो भेटल।

हुनकर प्रमुख पुस्तकमे भगवती कथा (११८  खण्ड),भगवत चरित सप्ताह(मूल) , भागवत चरित सटीक (दू भाग),महात्मा कर्ण ,महावीर हनुमान ,चैतन्य चरितावली, आदि प्रसिद्ध अछि । देबराहा बाबा माघ मेलामे हुनकर भागवत चरित सटीक दुनू खण्ड आशीर्वाद स्वरुप भक्तगणकेँ कीनबाक प्रेरणा दैत छलाह ।

ब्रह्मचारीजीक वसंतगाँव स्थित आश्रममे हनुमानजीक विशाल मुर्तिक स्थापना करबाक हेतु मुर्ति दक्षिण भारतक कर्कलासँ आनल गेल छल । कै महिनाक प्रयासक बाद ओहि विशालकाय मुर्त्तिकेँ वसंतगाँव स्थित आश्रममे ठाढ़ कएल गेल । ओहि समयमे ब्रह्मचारीजी प्रयागमे माघक कल्पवास कए रहल छलाह। ओ माघभरि ओतए नित्य गंगामे स्नान करैत छलाह । तथापि ओ वसंतगाँव स्थित आश्रममे हनुमानजीक मुर्त्तिक स्वागत हेतु २४ जनबरी १९९०क अएलाह । हनुमानजीक विशालकाय मुर्त्ति देखि कए ओ भावविभोर  भए गेलथि । मुदा माघक स्नान संगममे करबाक रहनि । तैँ ओ ओतए ओही राति लौटि गेलाह । माघमेलाक बाद ओ सुनरेखा गाँव स्थित सौबरी ॠषिक आश्रमक जीर्णोद्धार कार्यक्रममे भाग लेबए अएलाह आ तकर बाद वृंदावन चलि गेलाह । ओहिठाम हुनकर स्वस्थ्य बहुत तेजीसँ खराप होबए लागल । देवराहा बाबा एहि समाचारकेँ सुनि बहुत दुखी रहथि । ओ निरंतर हुनकर हालचाल लैत रहलाह । परंतु ओ दबाइ खेबासँ साफे मना कए देने रहथि । खराप स्वास्थ्यक बाबजूद ओ ओहिठामसँ वसंतगाँव स्थित अपन आश्रम अएलाह आ हनुमानजीक पास भावविभोर भए कानए लगलाह । हुनकर आग्रहपर भक्तसभ हुनका कुर्सीपर बैसाकए हनुमानजीक परिक्रमा करओलथि। दोसर दिन भोरे ११ मार्च १९९०क ओ एहि संसारकेँ छोड़ि अनंतमे विलीन भए गेलाह । प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी अपना समयके यशस्वी विद्वान,लिखक आ प्रतिष्ठित संत छलाह । जीवनभरि कोनो-ने-कोनो रूपमे ओ समाजक सेवा करैत रहलाह । ओ  सनातन धर्मक एकटा मजगूत खाम्ह छलाह । हुनकर निधनसँ देश ओ संस्कृतिक अपार क्षति भेल । हुनकर चलाओल गेल काजसभकेँ हुनक शिष्य एवम् प्रशंसक लोकनि आगा बढ़बैत रहथि सएह हुनकर प्रति सही मानेमे श्रद्धांजलि होएत ।