मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

मोहभंग



मोहभंग



अप्रैल १९८७मे हम इलाहाबाबद(आब प्रयागराज)सँ दिल्ली स्थानांतरित भए दिल्ली आबि गेल रही । दिल्लीमे हमर पोस्टींग पटेल भवनमे काबीना सचिबालएक अधीन जेआइसीमे भेल रहए । तेसर तल्लापर स्थित ओ कार्यालयमे गोपनीय काजसभ होइत छल । तेँ ओहिठाम सुरक्षाक बेसी तामझाम रहैत छल । ओकर किछु भाग तँ अपनो कर्मचारी सभसँ फराक राखल जाइत छल । ओहि कार्यालयमे एनिहार प्रत्येक बाहरी आदमीक बेस जाँच-पड़ताल होइत छल ,जेना ओकर नाओँ,पता आदि एकटा बहीमे लिखए जाइक आदि,आदि । एहिसभ कारणसँ सचिबालयक कर्मचारीसभ ओहि कार्यालयमे पोस्टींगसँ बँचबाक प्रयास करथि । मुदा हम कोना बचितहुँ । ओतेक बात बूझलो नहि रहए । आदेश भेटल आ ओही दिन जा कए पदभार ग्रहण कएल । अवर सचिव श्री ओमप्रकाश गुप्ताजी बहुत खुस भेल रहथि । ओ बहुत दिनसँ प्रयासमे छलाह जे ककरो पोस्टींग होइ,से भेल रहैक । हुनके अधीन प्रशासन -एकक अनुभागमे अनुभाग अधिकारीक रूपमे हमर पदस्थापना भेल।  
पहिने तँ हम प्रशासन एक अनुभागमे गेलहुँ ,मुदा किछुए दिनमे उठापटक भेल। ओहिठाम काज केनिहार अनुभाग अधिकारी श्री एल.एन .अंचल अपन व्योंत मे सफल भेलथि । हमरा ओतए जइतहि गुणा-भाग कए ओ हमर पोस्टींग अपना स्थानपर करबा देलथि आ ओ स्वयं गृह मंत्रालय पहुँच गेलाह । हमर जगह एहि तरहेँ मासे दिनक भीतर बदलि गेल । खैर इहो सही । जे भेल से भेल । हम ओतए पहुँचि ओहिठामक अधिकारी ब्रिगेडिअर पुरीसँ भेंट  केलिअनि । पुरी साहेब बहुत मजेदार व्यक्ति छलाह । ओ मूलतः गोरखा रेजिमेंटक रहथि । हुनका अंदरमे सेना,एअर फोर्स आ नेभीक कर्नल रैंकक अधिकारीसभ काज करैत छलाह । हमरा देखितहि ओ बैसबाक हेतु कहितथि । मुदा ओ फौजी अधिकारीसभ ओहिना ठाढ़े रहितथि कारण हुनकासभकेँ बैसबाक हुकुम हमरा लगैछ ओ जानि-बुझि कए नहि देथि । भए सकैए ब्रिगेडिहर साहेब एहूमे किछु बात रहल होनि । हमरासँ ओ तीनू अधिकारी बहुत अदबसँ पेश आबथि । पुरी साहेब बहुत नफीस आदमी छलाह । हमरासँ हुनका सबदिन नीक संवंध रहलनि । करीब दूसाल हम हुनका अंदरमे काज केलहुँ । कहिओ ओ हमरा संगे बेअदबी नहि केलाह । ओ  गोर-नार छः हाथक मजगूत कद-काठीक व्यक्ति छलाह । फौजक अनुशासन तँ जनित होएब । से हुनका मे छल । ओ चाहैत छलाह जे हुनकर अधीनस्त अधिकारी सभ फौजे जकाँ अनुशासित रहथि ,जे एहिठाम संभव नहि रहैक। एहि कारणसँ हुनका ओतए कै गोटेसंगे बेस मोसकिल भए जानि । एकबेर तँ ओ एकटा अधिकारीसँ तमसा कए कोर्ट मार्शल करबका गप्प करए लगलाह । बहुत मोसकिलसँ हुनका बुझाएल गेल जे ई सीभील विभाग छैक,सेना नहि छैक आ एहिठाम ई संभव नहि अछि । ओ अधिकारी एहि समाचारकेँ सुनि सन्न रहथि। कहुना कए जोगाड़ लगाए अपन बदली गृह मंत्रालय करबा लेलाह । एहि तरहेँ हुनकर जान बाँचल ।
जेआइसीक पोस्टींग हमरा लेल बहुत  रमनगर छल । ओहिठाम स्वर्गीय भागवत झा आज़ादक पुत्र श्री यशोवर्धन  झा आजाद सेहो कार्यरत छलाह। क्रमशः हुनकासँ परिचय बढ़ैत गेल । ओ कैटा काजमे बहुत मदति करथि। ओहि कार्यालयमे काज करितहि हम मधुबनीमे मकान बनेबाक हेतु गृह निर्माण ॠण हेतु आवेदन देलिऐक जे आजादजीक सहयोगसँ तुरंत मंजूर भए गेल । श्री ओम प्रकाश गुप्ता,अवर सचिवजी हमर मधुबनीमे घर बनेबाक प्रस्तावक समर्थक नहि रहथि । हुनकर विचार रहनि जे हमरा दिल्लिएमे फ्लैट लेबाक चाही। ताहि हेतु ओ यमुनापार अपन सोसाइटीमे एकटा फ्लैटक जोगारो करबाक हेतु तैयार रहथि । मुदा हम हुनकर बात नहि मानि अपन निर्णयपर अडिग रहि गेलहुँ । ओ कहथि जे बहुत मोन अछि तँ जमीन लए कए छोड़ि दिऔक। हम हुनका श्लोक सुनेलिअनि॒:

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते |

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ||



हमर मित्र ओ सहकर्मी श्री लाथर साहेब सेहो कहति जे एहीठाम फ्लैट लए लिअ आ जँ मधुबनीएमे  रहबाक होएत तँ बादमे एकरा बेचि कए कै गुणा पाई भेटत । आब सोचैत छी तँ लगैत अछि जे ओसभ सही रहथि । हमर शुभचिंतक तँ रहबे करथि । मुदा आब ताहि बातसभक घमर्थन केलासँ की फैदा होएत?

का बरखा जब कृषि सुखाने।

समय बीति पुनि का पछताने ।।

जे बात जखन हेबाक तखने होइत छैक ,सेहो एकटा कटु सत्य थिक । फेर जीवनमे सभक सोच,परिस्थिति आओर रुचि फराक-फराक होइत अछि । जे किछु,हम अपन निर्णय पर अड़ल रही जे मधुबनीमे पहिल घर बनाएब । ताहि पाछू हमर ई सोचब रहए जे गाम लगमे घरकेँ प्राथमिकता देबाक चाही । तकरबाद चाहे जतए-जतए घर बनाउ । जेआइसीमे ओहि समय गृह निर्माणक ॠण आसानीसँ भेटि गेल । मधुबनीमे हमर ससुर(स्वर्गीय गणेश झा) रहैत छलाह । हम हुनका आग्रह केलिअनि जे  घर बनबए जोगर कोनो जमीन जँ नजरि पर आबनि तँ हमरा सूचित करथि। जे बात छैक,ओ बहुत तत्परतासँ एहि काजक निर्वाह केलथि आ थोड़बे दिनक बाद हमरा पत्र लिखलनि जे हुनका एकटा उपयुक्त जमीनक जानकारी प्राप्त भेलनि अछि । हम मधुबनी जा कए ओहि जमीन केँ देखलिऐक । मधुबनी  स्टेडिअमक लगीचेमे प्लाट काटि कए बिका रहल छलैक । ओहि समयमे सौंसे इलाका खाली रहैक । कतहु किछु नहि।
सवा कट्ठा जमीन के दाम छलैक पचीस हजार । हमरा लगमे तँ एकहुटा टाका नहि छल । बैनाक रूपमे पाँच हजार टाका देबाक छलैक जे हम ससुरजीसँ पैंच लेलहुँ । तकर थोड़बे दिनक बाद हमरा गृह निर्माण ॠणक पहिल किस्त भेटल आ हम ससुरजीक पाँच हजार आपस कए देलिअनि संगहि जमीनक बाँकी दाम सेहो ओकर मालिककेँ दए देलिऐक । किछुए दिनमे ओहि जमीनक निवंधन भए गेल । निवंधन होइत तकर कागज सरकार लग जमा भेल से ताबे जमा रहल जा धरि सूद समेत सभटा मूर कर्ज सधा नहि देलहुँ । एहि प्रकृयामे  करीब-करीब पचीस साल लागल । एकटा फैदा ई भेल जे कागज सुरक्षित सरकारक ओहिठाम राखल रहल । हमरा तकरो चिंता नहि करए पड़ल । मुदा कै गोटे कहथि जे कै गोटाकेँ कागज एनामे हरा जाइत छैक आ बाद मे बहुत मोसकिलमे पड़ि जाइत छथि ।
जमीन कीनि तँ लेलहुँ मुदा ओ तँ खेत छलैक । सभसँ पहिने ओकरा भरेबाक छलैक । फेर विचार भेलैक जे पहिने नीचासँ मकान बनाएब शुरु कएल जाए आ जखन मकान ऊपर अएतैक तँ माटि भराएब सुगम रहत । सएह कएल गेल । एहि तरहें बहुत गहींरसँ मकानक नीव पड़ल । जतेक मकान जमीनक नीचामे धँसल अछि ताहिमे आसानीसँ एक तल्ल मकान बनि जाइत वा तहखानामे चलि जाइत । मुदा एहिसँ मकान तँ मजगूत भेवे कएल । मकानक काज शुरु करबासँ पहिने भूमिपूजन कएल गेल जाहि हेतु हमरा गामक प्रसिद्ध विद्वान स्वर्गीय परमानंद झा आएल रहथि । हमर सासुक हाथे ओहि मकानक नीव देबाक बिध पुरा कएल गेल । हमसभ सपत्नीक ओहिठाम रही । हमर ससुर सेहो उपस्थित रहथि
मकान बला जमीनमे तँ तखनो धरि खेती होइत छल । आस-पासक गामक किओ ओहिमे रब्बी छिटने रहैक। ओ बहुत घना करए लागल । कहुना कए ओकरा किछु टका दए मनाओल गेल । काज प्रारंभ भेल। नित्यप्रति किछु गोटे ओहि बनैत मकानकेँ देखबाक हेतु आबथि । देखबाक उत्सुकता ओहू द्वारे बेसी रहनि जे ओ स्थान एकदम बिरान छलैक । दूर- दूर धरि कतहु किछु नहि छल । कनीके फटकी मुर्दासभ फेकल रहैत छल । हमर मकानक जगहक सामनेमे सेहो कहिओ काल मुर्दा जड़ाओल जाइत छल । कनी हटि कए कोनपर पोखरीक भीरपर सेहो मुर्दा जड़ाओल जाइत छल । कहक माने जे लोककेँ लगैक जे एहन जगहपर मकान किएक बना रहल छथि ? कै गोटे गाहे-बगाहे पुछबो करथि । स्थान तँ ओ भयाबह रहबे करैक मुदा हमरा विश्वास रहए जे जखन हमर ससुरजीकेँ ई स्थान नीक लगलनि अछि तँ ई निश्चय किछु विशेष होएत । हुनकामे निर्णय लेबाक विलक्षण दैबीगुण रहनि जे हुनकर व्यक्तिगत ओ पारिवारिक जीवनमे सफलताक मूलमंत्र छल । ओना हमरो ओ जगह बहुत आकर्षित केलक । आई तीस सालक बाद जौँ ओहि मोहल्लामे जाएब तँ लागत जे मधुबनीक सभसँ नीक स्थानपर आबि गेल छी । जतए दिने- देखार मुर्दा फेकल रहैत छल ताहिठाम आब हनुमानजी आ भगवान शिवक दिव्य मंदिर बनि गेल अछि । सौंसे मोहल्ला लोकसँ गज-गज करैत अछि । लगीचेमे मधुबनीक सभसँ नीक पब्लिक इसकूल अछि आ कहि ने की-की बनि गेल अछि? दुपहरिआमे जखन इसकूलमे छुट्टी होइत अछि तँ ओहिठाम ठाढ़ होएब पराभव । तरह-तरहक सबारी सँ विद्यार्थी सभ हो-हल्ला करैत अपन-अपन घर आपस जाइत रहैत छथि । घरे बैसल मेलाक दृष्य देखाइत रहैत अछि ।
माङनिक योगदानक चर्चा केने बिना एहि मकानक खिस्सा पूरा नहि भए सकैत आछि । ओहि सुन्न स्थानमे बनैत मकानक रखबारी करबाक हेतु माङनि गामसँ आएल रहथि । हुनकर कै पुस्त हमरा ओहिठाम काज करैत रहल । हमर परिवारसँ ओसभ सबदिन जुड़ल छलाह। हम नेन्नेसँ हुनका देखि रहल छलिअनि । बादमे बूढ़ भेलापर ओ बाबाजी भए गेलाह आ जटा बढ़ा कए तीर्थसभ घुमैत रहैत छलाह । ओहिमे जँ किछु आमदनी भए गेल तँ गाओँ जा कए अपन पत्नी(निकासीबाली)केँ दए दैत छलाह । फेर आपस तीर्थाटनमे लागि जाथि । दू बेर संगी महात्मासभक संगे वृंदावन जेबाक क्रममे ओ माएक समाद लए कए सरोजिनीनगर(दिल्ली)क हमर डेरापर आएल रहथि । सोचल जा सकैत अछि जे हुनका हमर परिवारक प्रति कतेक सिनेह रहनि । माङनिक बाबाजी हेबासँ पहिनेक बात छैक । मधुबनी मकानमे ओएह रखबार रहथि । एकटा नान्हिटा खोपड़ी बनाओल गेल रहैक जाहिमे दिन-राति ओ रहथि । ओतहि भानस-भात बनाबथि । ओहिबाटे अबैत जाइत लोकसभ  हुनकर दोस्त बनि गेल छल । कै गोटे हुनकासंगे चीलम पीबाक आनंद सेहो उठाबथि । जे रहैक मुदा ओहि मकानक निर्माणमे माङनिक जबरदस्त योगदान छल , नहि तँ ओहि सुन्नस्थानमे ई काज आगा बढ़िए नहि सकैत छल ।
मकान मधुबनीमे बनैक आ हम अपने दिल्लीमे काज करी । एहि कारणसँ ओहिठाम काज करेबामे बहुत परेसानी होइत छलैक । जखन-जखन छुट्टी भेल तँ काजकेँ  आगा कएल जाए । कै बेर तँ हमर अनुपस्थिति मे हमर सासुरक लोकसभ काज करबैत छलाह । हम जहिआ कहिओ मधुबनी जाइ,मकानक काज लगले रहैत छल। एकबेर हमर एकटा मित्र  विनोदमे कहलाह

हमसभ एकबेर मकान बनओलहुँ आ जिनगी भरि रहि रहल छी आ अहाँकेँ जखन देखैत छी एहि मकानमे काजे करबैत रहैत छी ।"

एहि मकानक निर्माणसँ लए कए अंतधरि हमर मित्र श्रीनारायणजीक सेहो बहुत योगदान अछि । काज करबाक हेतु मिस्त्री,पेंटरसँ लए कए सामानसभ कीनबामे ओ सदति  मदति करैत रहलाह । टाका आ समय दुनूक अभाव रहबाक कारणसँ कै किस्तमे काज भेल । मकानक लागत ततेक बढ़ि गेल जे सरकारक ॠणक अतिरिक्त एचडीएफसीसँ सेहो ॠण लेबए पड़ल । ॠणसभक भूगतानक मासिक किस्त बहुत भए गेलैक । खर्चाक पुर्वानुमान फेल भए गेल। एहि कारणसँ बहुत कष्टक स्थिति भए गेल । मकानमे खिड़की,केबार लागि गेल रहैक । मुदा ग्रिल नहि लागल रहैक। देबालपर सीमेंट नहि लागल रहैक । तखने ओकरा बिहार सरकारक माप- तौल विभागकेँ किरायापर देबए पड़ल। मकान किराया तँ लागि गेल मुदा किराया देबे नहि करैक । सालक-साल बिना किराया देने ओ सभ रहैत रहलाह। किराया भूगतानक हेतु किराया निर्धारण एसडीओ मधुबनी द्वारा होएब जरूरी छल । ओ किराया निर्धारण केँ सालों लटकेने रहलाह । हम एहि विषयमे श्री किशोर कुणालजीकेँ कहलिअनि । हुनकर हस्तक्षेपसँ किराया निर्धारण भेल मुदा किराया अपेक्षाकृत कम तय कए देलक । १५०० रुपया मासिक किराया देबाक गप्प ओ सभ गछने रहथि मुदा ओकर किराया निर्धारण ९७० रुपया मात्र कए देल गेल। संभवतः एसडीओ मधुबनी कुणालजीक हस्तक्षेपसँ तमसा गेलाह । किराया निर्धारणक बादो बहुत दिन धरि किरायाक भूगतान नहि भेल । तखन तंग भए हम ओकरा खाली करबाक हेतु लिखए लगलिऐक । बँकिऔता किरायाक भूगतानक हेतु सेहो वारंबार लिखैत रहलिऐक ।
लगभग साढ़ेतीन साल हमर मधुबनीक मकान माप- तौल विभागकेँ किरायापर रहल । ओहि बीचमे बहुत कोशिश केलहुँ जे किराया दिअए मुदा ओ सभ  टस सँ मस नहि होइत छल । बुझा गेल जे सोझ आङुरे घी नहि निकलए बला अछि । एमहर मकानक ॠणक किस्त कटए आ किराया भेटबे नहि करए । एहिबातसँ बहुत परेसानी भए गेल रहए । तखन की कएल जाए ? गृह मंत्रालयमे काज करैत बसाक साहेब आइएएस (अपर सचिव रहथि)सँ संपर्क भेल। ओ बादमे बिहार सरकारमे मुख्य सचिव भेलाह । हुनका कैटा पत्र लिखलिअनि । ओ ओही पत्रपर आदेश देलखिन जे मास दिनक भीतरे मकानकेँ खाली कए देल जाए आ बाँकी किराया सेहो दए देल जाए । तथापि मकान खाली नहि होअए,ने किराया भेटए । मधुबनीमे कलक्टर रहल छलाह बुर्जिआ साहेब । ओ बदली भए कए गृह मंत्रालयमे  उप-सचिवक पद पर आएल रहथि । एक बेर रविदिन कए हुनकासँ किछु काजेक प्रसंगे भेंट भेल । ओ हमरा चिन्हए लागल रहथि । हुनका हम अपन मकानक समस्या कहलिऐन । जे बात छैक, ओ तुरंत मधुबनीक कलक्टरक नामे चिठ्ठी देलथि आ हुनका फोनो केलखिन। ऊपरसँ मुख्य सचिवक आदेश रहबे करैक । एतेक प्रयासक बाद माप-तौल विभागबला सभ दोसर मकान ताकए लगलाह । मुदा हुनकासभकेँ किओ मकान किरायापर देबे नहि करए । बात जस के तस रहि गेल । हम फेर मधुबनीक कलक्टरसँ भेंट केलिअनि । ओ कहलाह जे हम तँ हुनकासभकेँ वैकल्पिक मकानो दिआ देलिअनि तखन की दिक्कति छैक? भेलैक जे वैकल्पिक मकान सरकारी विभागक छलैक आ ओहोसभ माप-तौल विभागकेँ कोनो बहाना बना कए मना कए देलकैक । ई बात माप-तौल निरीक्षक कलक्टर साहेबकेँ कहलखिन । मुदा कलक्टरसाहेब अड़ि गेलाह । ओ माप-तौलक स्थानीय निरीक्षककेँ हुकुम देलाह जे चौबीस घंटामे  हमर मकान खाली हेबाक चाही । सएह भेल । दू दिनक भीतरे हमर मकान खाली कए माप-तौल विभाग भच्छी गाओँमे चलि गेल । जाइत-जाइत निरीक्षकजी आग्रह केलाह जे हुनकर लगाओल गाछसभक रक्षा कएल जाएत । ओ भगवानकेँ धूप -आरती केलाह आ हमरा मकानक कुंजी सुंझा देलाह । मास दिनक अंदरे हमरा दिल्ली स्थित सरकारी आवासक पतासँ बाँकी किरायाक बैंक ड्राफ्ट सेहो भेटि गेल । एहि तरहें हम बड़का संकटसँ मुक्त भेलहुँ । नहि तँ किछुदिनसँ सप्ताहांत अवकाश होइते मधुबनीक मकानक चिंता होबए लागैत छल आ समाधान इएह होइत जे सोमदिन कार्यालय अबिते ककरो-ने-ककरो फेर एकटा चिठ्ठि लिखतहुँ । एहि काजमे हमर आप्त सचिव श्री प्रकाश चंद्र पाण्डेयजी बहुत मदति करैत रहलाह । तुरंत खूब बढ़िआ चिठ्ठी टंकित कए लए आनथि। ताहिसँ तात्कालिक मानसिक शांति भए जाइत छल । आओर जे होइ,नहि होइ ।
मकान खाली तँ भए गेल मुदा तकरबाद करीब अढ़ाए साल धरि खालिए रहि गेल, कारण मकानमे बहुतरास काज बाँकी रहैक । तथापि मोन चैन लगैत छल । फेर किरायेदार सँ बहुत मोसकिलसँ जान छुटल छल। मकानक कुंजीसभ हम अपन मित्र लालबच्चा(फ्रोफेसर विष्णुकान्त मिश्र)केँ दए दिल्ली आपस भए गेल रही । तकरबाद कै साल धरि ओ मकान बंद पड़ल रहल । एकदिन हमरा भैया(श्री शशिभूषण मिश्र)फोन केलनि- अहाँक मकानमे पाछु दिसक छिटकनी खुजल बुझाएल ।’’
 ई समाचार सुनि बहुत चिंता भेल । तकर बादो तुरंत मधुबनी जेबाक परिस्थिति नहि नहि रहैक । करीब छ मासक बाद जखन हम ओतए गेलहुँ तँ सौंसे मकानमे विद्यार्थीसभ भरल छल । ओ सभ कोनो परीक्षा देबाक हेतु राजस्थानसँ आएल चलाह आ किओ हुनकासभकेँ टाका लए मकानमे राखि देने रहनि । मकानक एक भागमे पड़ोसमे बनि रहल मकानक समानसभ राखल छल । बाहरसँ ताला ओहिना लटकि रहल छल । कोनो बाहरी व्यक्तिकेँ पता नहि चलि सकैत छलैक जे मकानमे  एतेक धमाचौकरी भए रहल अछि ।  हालत देखि कए गुम्म पड़ि गेलहुँ । विद्यार्थीसभकेँ  धमकलिऐक तँ ओ सभ ओहीदिन साँझ धरि झोड़ा-झपटा उठओलक आ चलि गेल । आब रहि गेल पड़ोसमे बनैत मकानक समानसभ । हम संवंधित व्यक्तिसँ भेंट करए चाहलहुँ मुदा हुनका बदलामे हुनकर ससुर अएलाह। ओ ओकालत कए रहल छलाह। हम हुनका कहलिअनि जे जँ किओ अहाँक मकानमे एना बिना कोनो जानकारीकेँ रहए लागत तँ केहन लागत? कहला -"बात तँ अहाँ वाजिब कए रहल छी । मुदा जखन समानसभ राखल छैक तँ ओकरा खाली करबामे किछु समय तँ लगतैक ।"

"कतेक समय चाही?"-हम पुछलिअनि ।

"दू दिन ।"

"एवमस्तु।"

ओ आदमी जबानक पक्का निकललाह आ दूदिनक भीतरमे सभटा चीजवस्तु निकालि लेलथि । एकबेर फेर मकान खाली तँ भए गेल मुदा ओकर भविष्य लए कए बहुत चिंता होबए लागल ।
किछु दिनक बाद टाकाक जोगार कए मकानमे छूटल जरूरी काजसभ करओलहुँ,जेना खिड़कीसभमे ग्रील लागल,अंदरक देबालसभमे सीमेंट लागल । नीचा सेहो सिमटी लागल । कहक माने जे मकान आब कोनो व्यक्तिकेँ रहए जोगर भए गेल छल । मुदा बिजली तँ अखनो नहि लागल छल । बिजली आफिस गेलहुँ । ओहिठाम एकटा झाजी ओभरसियर रहथि । हम अपन परिचय देलिअनि । गप्प-सप्पमे हमर साढ़ूक सेहो चर्च भेल । ओ बिजली विभागमे  अभियंता रहथि । ओभरसियार साहेब हुनकर बहुत प्रशंसा करए लगलाह । कहथि जे ओ तँ देवता छथि । हम हुनका अंदरमे काज केने छी । हमर एहिबातसँ बहुत  प्रशन्न रही जे  चलू एकटा परिचित व्यक्ति भेटि गेलाह आ बिजलीक काज आसानीसँ भए जाएत । फेर ओ कहलाह जे बिजली आफिस चलि जाउ आ जरूरी फीस जमा कए दिऔ । दू सँ तीन दिनमे काज भए जाएत । तुरंत बिजली आफिस जा  फीस जमा कए देलिऐक । ओतहि एकटा लाइनमेन गोलिआबए लागल । हम ओभरसियर साहेब दए कहलिऐक तँ ओ कहैत अछि-"हुनका चक्करमे रहब तँ घुमिते रहि जाएब । " बात ओ सही कहलक । हम हुनका तकैत रहि गेलहुँ । हमर छुट्टी खतम होबएपर छल । मुदा हुनकर कोनो अता-पता नहि छल । किओ कहलक जे ओ कोनो संवंधीक इलाज करेबाक हेतु दरभंगा गेल छथि , कहिआ अओताह से कोनो ठेकान नहि । हारिकए ओही लाइनमैनकेँ पकड़लहुँ । ओएह जेना-तेना काज केलक । ई सभ होइत-होइत हमर छुट्टी समाप्त भए गेल छल। हम आपस दिल्ली चलि अएलहुँ । मकानमे ताला मारि देलिऐक । हम अपन मित्र श्रीनारायणजीकेँ भार देलिअनि जे मकानक हेतु कोनो नीक किरायेदारक ध्यान करथि । से ओ केलाह । थोड़े दिनक बाद हमर ज्येष्ठपुत्र भास्कर मात्रिक(पण्डौल डीह टोल) गेलथि । हुनके सामनेमे श्रीनारायणजीक सहयोगसँ मकान किराया लागि गेल । किरायेदार छलाह -मधुबनीसँ लगे डुमरी गामक श्री नंदलाल मिश्रजी । ओ ओहि समयमे मधुबनीमे सरकारी विभागमे  कार्यरत रहथि ।
श्री नंदलाल मिश्रजी किरायेदार कम समांग बेसी रहथि । ओहि मकानक लगपासमे बिरान छलैक । रहि-रहिकए कतहु ने कतहु चोरीक घटना होइत रहैत छलैक । तथापि ओ अड़ल रहलाह । क्रमशः ओहिठाम आओर मकानसभ बनैत रहल । जतए मुर्दा रहैत छल ताहिठाम हनुमानजीकभव्य मंदिर बनि गेल । श्री नंदलाल मिश्रजीक कै बेर बदली होइत रहलनि । मुदा ओ हमर किरायेदार बनल रहलाह । हुनका मकान नीक लागनि आ हमरासभकेँ ओ विश्वस्त लोक लागथि । अपने रही नहि तखन तँ एहन लोकक मकानमे रहब एक हिसाबे बड़ पैघ मदतिए छल । ऊपरसँ किरायो ओ दैते छलाहे । कै बेर किराया बकिऔता भए जाइक । मुदा ओ पाइ-पाइक जोड़ि कए किराया दए देथि । एहि मामलामे ओ बहुत स्वच्छ छलाह । किरयाक अलावा बिजलीक बिलक भूगतान सेहो हुनके करबाक रहनि । ओ कोनो-ने-कोनो दिक्कतिसँ से नहि कए पाबथि । प्रायः बिल अएबे नहि करैक । बादमे तकर कारणसँ हुनका नाहकमे बेसी बिल देबए पड़लनि ।
श्री नंदलाल मिश्रजी हमर मकानमे तेरह वर्ख किरायदार रहलाह । सेवासँ निवृत भए गेलाह । तकरबादो किछु दिन ओ रहलाह । एहि बीचमे ओ अपन गाओँमे बेस भव्य मकान बनओलथि आ हमरा अनुपस्थितिएमे हमर सहमतिसँ ओ मकान खाली कए चलि गेलाह । हम श्रीनारायणजीकेँ मकानमे ताला लगाबक भार देने रहिअनि जे ओ बहुत तत्परतासँ निर्वाह केलाह । आठटा ताला ओहि मकानमे विभिन्न कोठरीमे लगाओल गेल। मकान खाली छल तेँ ओहो सावधानी पूर्वक से काज केलाह ।  सालभरि मकान खालिए रहि गेल ।  ओहि बीच किओ सभटा ताला तोड़ि देलक । मकानमे तँ किछु रहैक नहि ,मात्र एकटा बक्सामे सीड़क आ एकाधटा ओछाओन रहैक,से लेने चलि गेल । बक्सा ठामहि छोड़ि देलक । जखन हम ओतए गेलहुँ तँ बाहरसँ सभकिछु ठीके बुझाए । गेटपर हाथ दैते ओ खुजए लागल । केबारसभपर हाथ दैते केबारसभ खुजए लागल । केबारसभक दशा तँ देखएबला छल । ककरो कुंडी टुटल छल तँ ककरो किछु । पूरा मकान कहि नहि कतेको दिनसँ एहिना खाली आ खुजल छल ।
मकानक हालत देखि कए माथपर हाथ धए बैसि गेलहुँ । इएह थिक हमर जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी? मोने-मोन अपने पर हँसी लगैत छल। भला एहिमे अनकर की दोख? मकानक रक्षाक दायित्व हमर छल । खैर! जे भेल ,से भेल । आब आगा बढ़ल जाए ,से सोचि मकानक रंग-रोशनक काज शुरु कएल । । रातिक चौकीदारी करबाक हेतु आलम आ ओकर एकटा सहकर्मीकेँ रखलहुँ । प्रसंगवश आलमक नाओँ अबितहि एकटा एहन मेहनतकश ओ इमान्दार व्यक्तिक छवि मोनमे चमकि जाइत अछि जकरापर शत-प्रतिशत विश्वास कएल जा सकैत छल ,जे एकबेर काज शुरु केलक तँ बिना कोनो विश्रामकेँ दिनभरि लागल रहैत छल। एहन संस्कारी ओ कर्मठ कार्यकर्ता डिबिआ लए कए ताकब तैओ साइते भेटए । मकानमे कोन रंग कतए पड़ए आ कोन-कोन कंपनीक रंगक समान लागए सेहो हमर संगी श्रीनारायणजी मार्गदर्शन करथि । हालेमे ओ अपनो मकानक रंग-रोशन केने छलाह । ओएह रंगसभ मोटा-मोटी हम अपनो मकानक हेतु चुनलहुँ । 
मकान रंगा-ढंगा कए तैयार छल । आब की होएत? रहबाक तँ छलहे नहि तखन तँ किरायेदार चाही । संयोगसँ एकटा किरायदेार भेटि गेलाह । किराया कहब तँ हँसी लागि जाएत । जतेक रंग-रोशनमे खर्च भेल से तीनो सालक किरायामे आपस नहि हेबाक छल । मुदा मकान खाली रखबाक फल तँ देखिए लेने रही ,तैँ किरायापर दए देलिऐक । दूसाल बाद ओ सेवानिवृत भए अपन गाम चलि गेलाह आ मकान एकबेर फेर खाली भए गेल । एकसाल धरि मकान खालिए रहल । आब हमरा सेवा निवृत हेबाक समय लगीच छल तैँ सोचलहुँ जे अखन किरायापर नहि दिऐक । 
हम सेवा निवृत भेलहुँ । रहब कतए? मधुबनी की दिल्ली? परिवारमे सभक निर्णय दिल्लीक पक्षमे भेल। तथापि हम मधुबनीक मकानमे बाँचल लकड़ीक काज सभ करओलहुँ । पानिक टंकी  बैसेलहुँ । दोबारा पोताइ करओलहुँ । मोनमे ई रहए जे अबैत -जाइत रहब । मधुबनीसँ दिल्ली आपस हेबाक अंतिम दिन एकटा किरायेदार भेटि गेलाह । सभकेँ ओ पसिंद भेलखिन । बूढ़ रहथि । मधुबनीमे सरकारी काज करैत रहथि । आखिर फेर मकान किरायापर लागि गेल । हम निश्चिंत भए दिल्ली आबि गेलहुँ ।
ओहीबीच हमर माएक जाँघक हड्डी टुटि गेलासँ हुनकर मोन खराप रहए लगलनि । कै बेर गाम,दरभंगा आबा जाही होइत रहल । मकान किरायापर रहैक । किराया समयपर पठा देल करथि । दू सालक बाद ओ सेवानिवृत भए गेलाह । तकरबादो ओ मधुबनीमे रहए चाहैत छलाह । हमरा आब मकान बेसीदिन किरायापर राखब ठीक नहि बुझाइत छल । हुनका कै बेर कहलिअनि जे मकान खाली करथि । अगस्त २०१६मे ओ मकान खाली कए बगलेक एकटा दोसर मकानमे किरायापर चलि गेलाह । हमरा फोन केलाह । हम कहलिअनि जे कुंजी अपने लग रखने रहू । मकान खाली भए गेल,से हम मानि आगूक किराया नहि लेब । फेर थोड़े दिनक बाद हम मधुबनी गेलहुँ । मकानक कुंजी हुनकासँ लेलहुँ । मकानकेँ साफ करओलहुँ । एहीक्रममे हम श्रीनारायणजी लग चर्च केलिऐक जे हम एहि मकानकेँ बेचि देबए चाहैत छी कारण कतेक दिनधरि किरायेदारसभसँ निपटैत रहब । अपनेसभ जखन दिल्लिएमे रहब तखन एकर रख- रखाव क्रमशः बेसी मोसकिल होइत जाए। संयोग एहन भेलैक जे ई बात केना-ने-केना लगपासमे  रहनिहार लोकसभकेँ पता लगलैक ।
हम एहिबेर मधुबनी मकान बेचबाक उद्यश्यसँ नहि गेल रही । किरायेदार मकान खाली कए देने रहथि। मकानक कुंजी हुनकासँ लेबाक रहए  आ भए सकैत तँ किराया लगा दितिऐक । गाममे माए दुखित छलीह । हुनकोसँ भेंट करबाक छलहे । तैं मधुबनी पहुँचलहुँ । दिनमे गाम जाइ आ रातिमे अपन मधुबनी डेरापर आबि जाइ । ओहिदिन भोरे हम तैयार भए गाम जेबाक क्रममे रही कि ओही मोहल्लामे रहनिहार एकटा युवक एकटा अधबयसूक संगे अएलाह-

"मकान बेचबाक सोचि रहल छी की?''-ओ पुछैत छथि।

"जँ नीक ग्राहक भेटत तँ सोचि सकैत छी ।"

"हमसभ साँझमे गप्प करए आएब । ताबे बाबू गामसँ आबि जेताह ।"

"ठीक छैक।"

एतेक गप्प कए ओ चल गेलाह । हमहु गाम चलि गेलहुँ । साँझमे गामसँ आपस अएलहुँ । अन्हार भए गेल रहैक । हम विश्राम करबाक हेतु बैसले रही कि चार-पाँच गोटेके लेने ओ युवक फेर अएलाह । गामघरक घटकैतीबला दृष्य रहैक । कतेक दाम लेबैक । एतेक दाम तँ बेसी भए जेतैक । तरह-तरहक गप्प होइत रहल। फेर ओ योवक बजैत छथि -

"काल्हि आगाक गप्प करब।"

 गप्प-सप्पक क्रममे श्री नंदलाल मिश्रजीक चर्च भए गेल रहैक । ओ भोरे-भोर हुनका गामसँ पकड़ने अएलाह । ई हुनकर प्रभाव कहू वा संयोग कहू तकर दू घंटाक अंदरे मकान बिका गेल । तुरंत किछु बैना सेहो देलथि । एहिठाम ई कहब जे जे भेलैक से अप्रत्याशिते भेलैक । ओना हमरा मोनमे कतहु-ने-कतहु ई बात रहए मुदा एना तुरंत भए जेतेक से नहि सोचने रहिऐक । हम तँ मकानक मूल दस्ताबेजो नहि लए गेल रही । संयोगसँ ओकरसभक फोटोकाँपी रखने रही । ओहीसँ काज चलि गेल । मकान कीननाहर लोकनिक महानता कहबाक चाही जे ओ हमरापर एतेक विश्वास केलाह । तीन दिनक भीतरे बेचबाक सभटा प्रकृया पूर्ण भए गेल ।  सभ किछु ततेक जल्दी भए गेलैक जे श्रीनारायणजीकेँ एहि घटनाक किछु जानकारी नहि दए सकलिअनि ।
कहि नहि सकैत छी जे मधुबनीक मकानक हेतु हम स्वयं आ हमर समस्त परिवार कतेक कष्ट काटलनि। मकानक ॠण बहुत भए गेल  रहैक । मकानक लागत बजटसँ बहुत बेसी भागि गेल । फेर  सभटा खर्चा तँ दरमहे पर बजरैत चल । मकानसँ किराया नाममात्रक अबैत छल ,ओहो समयपर नहि । असलमे दिल्लीमे रहैत मधुबनीमे मकान बनाएब एकटा दुरूह काज छल । आर्थिक भार तँ हम असगरे सहलहुँ मुदा शारीरिक,मानसिक भार तँ के-के ने सहलथि, तकर की कहू? ककर- ककर नाओँ लिअ । मुदा हमर सासुरक सभगोटे तँ करिते रहलाह । श्रीनारायणजी सालक साल एहि काजमे हमरा मदति करैत रहलाह । हमरा कै बेर मोनमे होअए जे जँ हम ई मकान बेचैत छी तँ एहिपर पहिल हक हुनके छनि । हम हुनका कहबो केलिअने जे ओ मकान लए लेथि। मुदा हुनका तकर प्रयोजन नहि रहनि । मधुबनीमे उच्चकोटिक मकान ओ बनओने छथि । कतेक की करताह ? मधुबनीक मकान हमर संघर्ष ओ मनोरथक एकटा प्रतीक बनि गेल छल । करीब२८ बर्ख हम ओहि मकानक निर्माणसँ जुड़ल रहलहुँ । आब तँ जे हेबाक छल से भइए गेल मुदा जाइत-जाइत ओ मकान अपन ॠण चुका गेल आ हमरा कै मानेमे निश्चिन्तो कए गेल ।
जीवनमे कतेको एहन घटनासभ भेल जे अपना-आपमे एकटा शिक्षा बनि गेल । मधुबनीमे मकान बनाएब सेहो सएह भेल । जीवनमे भावना आ यथार्थमे संतुलन जरूरी थिक । हमरा लगैत अछि जे मधुबनीमे मकान बनाएब एकटा भावात्मक निर्णय छल जे यथार्थक धरातलपर टिक नहि सकल । जँ आर्थिक दृष्टिए सोचबेक तैओ ओहि समयमे  दिल्लीमे ओतबे टाका लगा देलासँ मधुबनीक तुलानमे दोबर फैदा जरुर दैत । मुदा बात फेर ओतहि अटकि जाइत अछि  । कतबो छटपटाएब जतबे हेबाक आ जखने हेबाक तखने होएत । यद्यपि हम मधुबनीक मकानमे नाममात्रे रहि सकलहुँ मुदा हमरा एहिबातसँ बहुत आनंद होइत रहल  जे मधुबनीमे ,गामक लगमे ,हमर मकान अछि । मुदा ततबेटा ,ओहिसँ कोनो आओर सुख नहि भेल,अपितु झंझटे होइत रहल । आइ ई मरम्मति भए रहल अछि तँ काल्हि किछु आओर भए रहल अछि । ई प्रकृया सालों चलैत रहल। हालात एहन भेल जे गाम आ गाम लगक मधुबनीक घर दुनूसँ हमर मोह टुटि गेल ।  हमरा लगैत अछि जे अंततोगत्वा सही निर्णय भेल जाहिमे हमर श्रीमतीजीक बहुत योगदान अछि ।
सन्१९९०मे मकान बनलाक बाद लगभग एक्कैस साल ओ किराया पर रहल । पाँच साल अहिना खालिए रहल। छब्बीस सालमे मोसकिलसँ छब्बीसो दिन हम ओहिमे रहि सकलहुँ कि नहि । ताहि हेतु एतेक झंझट सालों हम झेलैत रहि गेलहुँ । शुरुएमे कैटा मित्र लोकनिक बात जौँ मानि लितहुँ तँ भए सकैत अछि जे साइत दोसरे परिणाम होइत मुदा भावी प्रवल होइछ,से बात मानहि पड़त । सभबातक अनुमान नहि लगाओल जा सकैत अछि । सभ किछु ओहिना नहि घटित भए सकैत अछि , जेना हम-अहाँ चाहैत छी । जे भेल, जेना भेल  मुदा कालचक्र तेना घुमल जे मधुबनीमे रहबाक हमर स्वप्न सभदिन हेतु भंग भए गेल ।  ठीके कहल गेल अछि-

"सुनहु भरत भावी प्रवल, विहुसि कहे मुनिनाथ ।

हानि-लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें