मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 30 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक चारिम खेपः

 


 

आइ ओहि घटनाक पाँच साल भए गेल। माएक पाँचम बरखी भए रहल छल। हमर मामा विधि-विधानसँ बरखीक व्यवस्था केने रहथि। सौंसे गामक ब्राह्मण भोजनक हेतु आमंत्रित रहथि। खूब नीक जकाँ काज भेल। थैह-थैह भए गेल। मुदा हमर मोन भोरेसँ उदास छल। काज करैत-करैत आँखि लागि गेल। सपना देखए लगलहुँ। लागल जेना माए आबि कए ठाढ़ छथि, कहि रहल छथि- श्रीकांत कथुक चिंता नहि करह। हम सदरिकाल तोरे लग छी।

एतेक बाजि ओ हमर हाथ धए लेलीह। लाल टुह-टुह भगवती सन हुनकर आकृति देखैत बनैत छल। हम हुनका साष्टांग प्रणाम करए उठलहुँ कि मामाकेँ माथसँ हमर हाथ टकरा गेल। ओ हमरे लग सुतल छलाह। मामा अकचकाक उठलाह- की भेल?”

 "माए…!" -एतबा बाजि हम बेसुध भए गेल रही। बैद बजाओल गेलाह। ओझा गुनी सेहो भेल। हम क्रमशः सामान्य होइत गेलहुँ। मुदा रहि-रहि कए माएक कहब मोन पड़ैत रहैत छल।

ओहि दिन इसकूलसँ आएल रही। दसमाक परिणाम आएल छल। हम प्रथम श्रेणीमे उतीर्ण केने रही । सौंसे मामागाममे हल्ला भए गेल छल। मामाक सभ प्रशंसा कए रहल छल। हम असारापर बैसल अखबार देखैत रही। ताबे माएक अबाज सुनाइ पड़ल, जेना कहि रहल छथि- श्रीकांत! हरि कतए अछि?"ताबते जोरकेँ हल्ला भेलैक। गाममे मारि भए गेल छलैक। कनीके कालमे मामा लहु-लुहान भेल पड़ल छलाह। हरि कोनो काजसँ बजार गेल छलाह। काज कए लौटि रहल छलाह। गामक लगीच आबि गेल छलाह कि चओरमे चारि-पाँचटा लठैतसभ घेरि लेलकनि आ दे दनादन,दे दनादन,लाठीक वर्षा कए देलक। ओ तँ रच्छ भेल जे कनीके कालक बाद इसकूलमे छुट्टी भेल आ चटिआसभकेँ अबैत देखि ओ सभ हरिकेँ ओही हालतिमे छोड़ि कए भागि गेल। मास्टर साहेबकेँ रक्तरंजित देखि चटिआसभ चिकरए-भोकरए लागल। लग-पास बहुत लोकक करमान लागि गेल। इसकूलसँ मास्टरसभ दौड़ल अएलाह। सभ छगुन्तामे छल। हरि सन निर्विवाद लोकपर एहन घातक प्रहार ! एना किएक भेल? के केलक?

हरिक बहुतरास जथा-पात महराजक सिपहसलारसभ नीलाम कए बेचि देने छल। रहि-रहि कए ओकरा ई बात ध्यान अबैत रहैत छल। एहि प्रकारसँ दरिद्र भेनिहार कोनो ओ एसगरे नहि छल। गाम-गाम एहन लोकसभ भरल छल जकर एहने इतिहास छल। गाहे-बगाहे ओ अपन आक्रोश व्यक्त करैत रहैत छलाह। एहिबातसँ कुपित भए जमींदारक लठैतसभ हुनकापर आक्रमण कए देलक।

हरिकेँ मारि कए तिनू बदमास लंक लागि कए भागि रहल छल। बीचमे धार छलैक। भादव मास छल। धारमे पानि भरल छल। धारमे कुदि गेल। ऊपरसँ मेघ बरसए लगलैक। तथापि ओसभ हेलि गेल आ पता नहि कतए जाए ऊपर भेल। पुलिस बहुत प्रयास केलकैक मुदा केओ नहि पकड़ाएल। पुलिससभ सभ घुड़ल आ हरिकेँ ओही जीप पर लादि कए अस्पताल लेने चलि गेल।

हरिकेँ ऊपर कएल गेल एहि घातक प्रहारक समाचार केना-ने-केना पुलिस मोहकमामे ऊपर धरि पहुँचि गेल। कहाँदनि जासूसी खबरि भेटलैक जे एहि घटनामे जन विद्रोहक संभावना अछि। एसपी, कलक्टर सभ दन-दन कए घटनास्थल पर पहुँचल। लोकसभकेँ पूछ-ताछ होमए लागल। केओ कोनो निजगुति बात नहि कहैक। एसपी तमसा गेल आ जएह सामने अबैक तकरे पकड़ि कए थाना लेने चलि गेल।

एहिबातसँ लोकमे आक्रोश आओर बढ़ि गेल जे पुलिसक उच्च अधिकारी निर्दोष लोकसभकेँ पकड़ि कए थानामे बंद कए देने अछि। गाम-गामसँ लोकसभ जुटए लागल। सभ मिलि कए थानाकेँ घेरि लेलक। ओहि भीड़मे कैकटा अगिमुत्तूसभ छल। ओसभ गोली-बारुदसँ लएस छल। दना-दन फटक्का फुटबाक अबाज भेलैक आ पुलिससभ लंक लागि कए भागल। थाना धू-धू कए जरए लागल। एसपी, कलक्टर सभ फेल भए गेलाह। किछु काल लेल एहन लगलैक जेना गुंडासभक राज भए गेल। पुलिस लगमे कमे लोक छलैक। केओ ई नहि सोचि सकल जे एकटा मामुली घटना एहन रुखि लए लेत। मुदा जे हेबाक से भए गेल रहैक।

एहि हंगामाक खबरि महराजक ओहिठाम धरि गेल। एहि घटनाक्रमसभसँ ओ बहुत विचलित छलाह। की पता काल्हि जा कए ई सभ राज-काजमे संकट ने ठाढ़ करए" -महराज सोचथि। अस्तु, ओ अपन सिपहसलारसभकेँ सरकारक उच्च अधिकारीसभ लग पठओलथि जाहिसँ एकरा नीकसँ दबा देल जाए। महराजक प्रयास कारगर भेल। महराज आओर हुनकर सिपहसलारक सह पाबि सरकारी महकमाक रुखि बहुत आक्रामक भए गेल। दूपहर राति धरि पुलिसक उच्च अधिकारीसभक बैसार होइत रहल। निर्णय भेल जे गौआँसभकेँ सबक सिखाओल जाए। रते-राती पुलिसबलकेँ गामपर छापामारीक हेतु पठाओल गेल। दूपहर रातिमे पुलिस सभ दन-दन करैत गाममे प्रवेश केलक। लुच्चा,लफंगासभ तँ पहिने घर धए लेने छल। मुदा पुलिसकेँ तँ लोकसभकेँ सबक सिखेबाक रहैक से जतए जे भेटलैक तकरा पकड़ने चलि गेल। दूटा पुलिसक जीपमे एगारह गोटेकेँ पकड़ि कए सोझे एसपी लग लेने चलि गेल। एसपी साहेब प्रसन्न भेलाह। सभकेँ रातिभरि राजपुरामे पुलिस हाजतमे राखल गेल। ओकरासभ पर दुनियाँ भरिक धारा लगा देल गेल। देशद्रोहसँ लए हत्याक प्रयासक धारा लगाओल गेल। पुलिसक क्रोधक क्रूड़तम प्रतिफल सामने छल।

हालति तेहन छल जे केओ- ककरो सुधि लेनहार नहि रहलैक। गाममे जे केओ बाँचल छल सभ भागल। मात्र स्त्रीगण, बच्चा ओ वयोबृद्ध लोकसभ गाममे रहि गेलाह। कालू भगता सेहो अन्दर छल। गाममे लोक सभ फुसफुसेबो करैक जे कहाँ गेलैक ओकर भगतै?तेहन छल तँ रोकि लैत पुलिसकेँ। बँचा लैत अपनोकेँ तखन ने?

मुदा कालू तँ जहलोमे अपन रस्ता पकड़ि लेलक। जहलक अधिकारीसभकेँ कोना-ने-कोना जाइते देरी मिला लेलक। साँझक नित्य ओकर भगतै होमए लागल। ओहूठाम कारनीसभक पाँति लागि गेल। की जहल, की गाम, कालू भगत अपन भगतैसँ सभकेँ गुम केने छल।

ई बात एसपी साहेबकेँ कान धरि पहुँचल। पहुँचैक रहैक । एसपी जेलरकेँ बजओलक। ओहि समयमे आओर केओ नहि छल।

"जहलमे की सभ भए रहल अछि?" -एसपी पुछलकैक।

"सरकार! झूठ नहि कहब। जहिआसँ ई भगता जहलमे आएल रोज रातिकँ हमर डेरामे भूत-प्रेत चक्कर लगा रहल अछि। काल्हि तँ हद्दे भए गेलैक?” -जेलर बाजल।

"की भेलैक? तोरा एहिना सभठाम भूते देखाइत रहैत छह? जहन नौकरी जेतह तखनसभ भूत झड़ि जेतह। अपन भाभटि जल्दी समटह।" -एतबा कहि एसपी साहेब जेलरकेँ ओतएसँ भगा देलकैक।

एसपी साहेबसँ डाँट खा कए जेलर अपन डेरा पहुँचले छल कि ओकर घरबाली सरकारी डेराक बाहरे ठाढ़ छलि।

"बाहर किएक ठाढ़ छी?" -जेलर बाजल।

"घर रहए जोकर नहि अछि"।

"की भेल?"

"अपने जा कए देखि लिअ।"

अन्दर जाइत जेलरकेँ माथा घुमए लगलैक। सौँसे घरमे अक्कर-बक्कर भड़ल छलैक। ओछाएन पर की- की ने फेकल छलैक। ततबे नहि भानस धरि नहि छोड़ने छलैक। मुँहथरे पर मरल कौआ खसल छलैक। ई सभ देखि कए जेलरक माथा सुन्न भए गेलैक।

जेलर बाबूकेँ किछु नहि फुराइक। ओमहर एसपी साहेबक ठेङा तँ एमहर भूत-प्रेतक आतंक। ओकरा तँ लगैक जे चिंतासँ हृदयाघात भए जेतैक। डेरामे घरबाली असगरे रहैत छलैक। जेलर बाबू अपने जेलक समस्यासभमे व्यस्त रहैत छलाह। जहिआसँ कालू भगता जहल आएल नित्य नव-नव फसाद होमए लागल। पुलिसक उच्च अधिकारी सेहो किंकर्तव्यविमूढ़ भए गेल रहथि। हुनकोसभकेँ मोनमे ई बात घुमए लागल- किछु बात तँ छैक अन्यथा जेलर बाबू एतेक परेसान किएक रहितैक?" मुदा सामना-सामनी जखन जेलर होथि तँ ओसभ ओकरे डाँटि देथि, कोनो आओर रस्तो नहि छलनि। सरकारी काज तँ चलेबाक छलनि। मुदा कालू भगत एसगरे सभपर भारी पड़ि रहल छल। सभसँ खराब हालति तँ जेलरबाबूक रहैक। जेलमे कालू भगताक डर,घरमे घरनी परेसान आ बाहर अधिकारीसभ कस्तन केने। कखनोक तँ मोन ततेक उचटि जाइक जे होइक जे फाँसी झूलि  जाए। फेर सम्हरए। डर होइक जे कहीं भूत-प्रेतक असरि तँ नहि भए रहल अछि।

जेलरक कमजोरी कालू भगता बूझि गेल। ओ तँ लोकक मोन तारि लेबामे माहिर छल। रहि-रहि कए ओ जेलर बाबूकेँ डराबए लागल। हद तँ तखन भए गेल जखन जेलरक सामनेमे कालू भगता महिला वार्डक कैदीसभकेँ झाड़-फूक शुरु कए देलक आ ओ मूकदर्शक बनल रहल। कालू भगता नीकसँ ओकरा अपन चांगुरमे लए लेलकैक। कालक्रमे कालूक प्रभावमे पूरा जहलक कैदी सभ आबि गेल। महिला कैदीसभ तँ आगूए-आगूए रहैत छल। ककरो साहस नहि होइक जे कालू भगतकेँ टोक देत। के अनेरे अनिष्ट बेसाहति? जेलरबाबू रोज कालीमाताकेँ प्रार्थना करथि जे ई कैदीसभ छुटि जाए। ओकीलोसभकेँ यथासाध्य उत्साहित करथि, मुदा तेहन-तेहन धारासभ लागल छल जे ककरो जमानति नहि होइक। जेलर माथ ठोकि लिअए?

घरबालीकेँ साहस दैक। हनुमान चालीसाक कैटा किताबसभ आनि कए सिरमामे राखि देलकैक। मुदा जेलरक घरबाली कोंढ़केँ कमजोर रहैक। ताहीबातक जेलरकेँ चिंता रहैक। कहीं एहन ने होइक जे ओ ड्युटी करैत रहए आ घरबालीक संगे किछु अनिष्ट भए जाइक। तेँ ओ सोचलक जे कालू भगताकेँ मिला कए राखल जाए। ओकर घरबाली केँ किछु भए गेलैक तँ के काज देत? q




 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

महराज उपन्यास कीनबाक हेतु क्लिक करू-

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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक तेसर खेपः

 

 

 

माएकेँ बरोबरि बाबू लेल पुछैत रहैत छलिऐक। हमर बाबू कतए छथि? किएक नहि अबैत छथि? जाबे अबोध रही ताबे माए किछु-किछु कहि कए पोल्हा दैत छलि। आब तँ हम इसकूल जाइत छी। पाँचमाक विद्यार्थी छी। दसम वर्ष भेल। किछु-किछु बातसभ बूझि रहल छी। माएकेँ हमर जिज्ञासा शांत करब उचित बुझेलैक। ओहि दिन इसकूलसँ आबि झोड़ा पटकि भोजन करबाक हेतु बैसले रही की अपने बाजए लगलि-

"तोहर पिता तोहर जन्मक किछु दिनक बादे मरि गेल रहौक।"

"की भेलैक? बाबू किएक मरि गेलखिन?"

"गाममे हैजा फैलि गेल रहैक। कतेकोगोटे दुखित पड़ल। किछुगोटे बाँचिओ गेल। मुदा तोहर पिता के जे हैजा धेलक से रुकबाक नामे नहि लेलक, चौबीस घंटा रद्द-दस्त होइते रहल।"

"कोनो इलाज नहि भेलैक?"

"की इलाज होइतैक? गाममे ने डाकटर रहैक ने बैद?"

"तखन?"

"गामक पुबारिमे ब्रह्मबाबा बसैत छथिन, तकरे गोहरबैत रहलिऐक। कतेक उचती-बिनती केलिऐक। तोहर दाइ भगवती लग भरि राति छाती पिटैत रहलखिन। रहि-रहि कए बेहोस भए जाथिन। भगवती! हे भगवती ! एहन अन्याय नहि करू हे भगवती! हमर प्राण लए लिअ, हमर बच्चाकेँ बकसि दिअ हे भगवती!- से सभ कहैत छाती पिटैत रहि गेलि।

"फेर?"

"फेर की होइतैक? तोहर पिताक हालति खराबे होइत चलि गेलनि। भोर होइत-होइत नारी घिचा गेलनि। साँस बन्द भए गेलनि आ ओ एकहि बेरमे आँखि उन्टा देलखिन। हम तँ कनैत-कनैत बेहाल रही। एहि घटनासँ सौंसे गाम सन्न रहि गेल। तोहर दाइ हाकरोस करैत रहलीह। हमरा तँ कतेको दिन-धरि भूख-पिआस सभ खतम भए गेल। लगैक जे हमरो जान नहि बाँचत। मुदा हम तँ छी कठजीब। एहनो विपत्तिकेँ झेलि गेलहुँ।

 हम माए संगे ई सभ गप्प करिते रही कि कालू भगता कतहुँसँ घुमैत-फिरैत आबि गेल।

महराज लोकक समस्त संपदाकेँ हरण कए अपनहिमे मस्त छलाह। गाम-घरमे शिक्षाक घोर अभाव छल। डाक्टर,बैद डिबिआ लए कए तकनो नहि भेटि सकैत छल। तेहन परिस्थितिमे लोकक मजबूरीक फएदा धूर्त, उचक्कासभ नाना प्रकारक छल,प्रपंच कए उठाबैत छल। ओझा-गुनी, डाइन-भगता संकटमोचक छल।

एहने संकटमोचक छल-कालू भगता। जेहने देखएमे कारी छल तेहने ओकर मोनो मलिन छलैक। जतहिँ स्त्रीगण रहैत ओतहि चुक्की मारि कए बैसि जाइत आ शुरु भए जाइत। गोल मुँह, चपटल नाक, इएह-इएह मोटक बाँहि, भुट्ट आ चतरल देह ओ देखबामे भूत-प्रेतसँ कम भयाओन नहि लगैत छल। जिला-जबारमे भगतैमे ओकर नाम छल। सोम आ शुक्रक अपने ओहिठाम भगतै करैत छल जाहिमे परोपट्टाक कारनीसभ ओकरा गोहरबैत रहैत छल। सभकारनी चाउर, दालि, अल्लु अनैत छल। एहि तरहेँ बोरा भरि-भरि अन्न-पानि भगता लए जाइत छल। ओहीमे सँ ओहि दिनक ओकरा ओतए भण्डारा होइत छल। कारनी आ ओकरा संगे आएल ओकर लोकसभक भोजनक ओरिआन रहैत छल।

ककरो किछु समस्या तँ ककरो किछु, मुदा परेसाने लोकसभक ओतए आएब-जाएब होइत छल। सोम-शुक्रक अलाबा ओ आन दिन गाम-गाम बजाहटि भेलापर जाइत छल। ककरो भूत झाड़लक तँ कतहुँ जिनक प्रकोपक समाधान केलक।

हमरासभकेँ गप्प-सप्प करैत देखि ओ अपने बकए लागल-

"तोरासभकेँ बड़का संकट घेरने छौ, बँचि कए रहिअह।"

की कहलिऐक?" हमर माए बाजलि।

"समय पर अपने बुझा जेतह।"

से कहि भगता ओहिठामसँ ससरि गेल। माएक मोन उदास भए गेलैक। भगता की कहि गेल, किएक कहलक, सोचैत रहि गेल।

कालू भगता कनिके दूर गेल होएत कि एकटा अजोध गहुमन साँप छत्र काढ़ि कए ओतए ठाढ़ भए गेल। हम जाबे चिचिआइ, माएकेँ सतर्क करितहुँ,ताबे तँ अनर्थ भए गेल। साँप माएकेँ हबक्का मारलक। दहिना जांघसँ खून टप-टप खसए लागल। माए ओहिठाम बेहोस भए खसि पड़लि।

देखिते-देखिते ई समाचार सौंसे गाम बिजलौका जकाँ पसरि गेल। जे जतहि छल, सभ हमर दरबाजापर जमा भए गेल। एकदिस हमर माए बेहोस पड़ल छलि,दोसर दिस करमान लागल लोक। मुदा ककरो किछु नहि फुराइक जे कएल की जाए? केओ किछु, केओ किछु बजैत रहल। ताबतेमे लोटना चटिबाहकेँ पकड़ने आएल। धराधर चाटी चलए लागल। मंत्र पढ़ि-पढ़ि चटिबाह घुरमि-घुरमि कए झाड़-फूक करैत रहल, मुदा किछु नहि भेल। कनिके कालमे हमर माएक देह निष्प्राण भए गेल।

एतेक कम बएसमे माता-पिता दुनू खतम भए गेल छल। पिताक तँ किछु नहि देखने रहिऐक मुदा माएकेँ सामनेमे मरैत देखि लागल जेना ठनका खसि पड़ल। लोक-वेदसभ जमा होमए लागल। माएक अन्तिम संस्कार करबाक तैयारी शुरु भेल।

गाम-धरक लोकक एहन समयमे बहुत सहयोग भेटल। सभटा ओरिआन गौंवेसभ केलक। आगाँ-आगाँ हम आ पाछू-पाछू माएक लहासकेँ चारि गोटे उठओने "राम नाम सत्य है " कहैत आगू बढ़ल जा रहल छल।

 संयोगसँ कालू भगता ओहिठामसँ जाइत देखाएल। कालू केँ देखितहि लोकसभ ओकरा गरिआबए लागल। सभक कहब छलैक जे ओकरे जादू-टोनाक कारण हमर माएक जान गेल, कारण ओ देवी-देवा पोसैत छल। भगतै करैत छल आ डाइनो छल, कहाँ दनि अष्टमीक रातिमे गाछ हकैत छल। केओ किछु,केओ किछु कहिते रहि गेल।

देखिते-देखिते माए जरि कए खाक भए गेलीह। हम निरंतर कनैत रहि गेलहुँ। लोकसभ अपना भरि बोल-भरोस दैत रहल। मुदा गुंड़क मारि धोकरे जनैत अछि। हमर सर्वश्व माए छलीह, से देखिते-देखिते चलि गेलीह।

अंतिम संस्कारक विधि-विधान समाप्त भेल। माएकेँ सारा केँ जड़ैत, धधकैत छोड़ि हम गौंवा सभहक संगे बिदा भेलहुँ। माए सभदिनक हेतु छुटि गेलीह। हम एकदम एसगर रहि गेलहुँ। एगारह दिन धरि झर-झर नोर खसैत माएक श्राद्ध करैत रहि गेलहुँ।

श्राद्ध संपन्न भए गेल। पाहुनसभ बोल भरोस दए अपन-अपन गाम चलि गेलाह। रहि गेलाह मात्र हमर मामा। ओहो कतेक दिन रहितथि। नौकरी करैत छलाह। अपना गामक मिडिल इसकूलमे मास्टर छलाह। शिक्षाप्रेमी छलाह। हमर हालति देखि बहुत दया भए गेलनि आ हमरा अपने संगे अपन गाम लेने चलि गेलाह।

मामा संगे जेबा काल हमर दिआदसभ बहुत प्रसन्न रहथि। भेलनि जे आब एकर बस्तु-जातसभ लेबामे कोनो कष्ट नहि होएत। भेबो केलैक सएह। से बात फराके कहब..।

गामसँ निकलैत काल माएक साराक लगीच दए जेबाक रहैक। ओतए पहुँचितहि पैरमे जेना कैंच लागि गेल। आगू ससरले नहि होअए। मामा ई बात चट दए बूझलखिन आ हमर गलामे हाथ धए कहए लगलाह-

"श्रीकांत हम छी ने। तूँ कथुक चिंता नहि कर।"

 हमरा भेल जेना मामाक मुँहसँ माएक आत्मा बाजि रहल होइक। हम मामा दिस बकर-बकर तकैत रहलहुँ। आँखिसँ नोर ढ़बर-ढ़बर खसैत रहल। फेर मामा हिम्मति देलनि। कहलनि –

"माता-पिता ककरो सभ दिन नहि रहैत छैक। परंतु नीक काज कए तूँ अपन माए-बापक आत्माकेँ शांत कए सकैत छह। हुनकर आशीर्वाद लए सकैत छह।"

मामाक बात हमरा मोनमे गड़ि गेल। करवद्ध भए माएकेँ प्रणाम केलहुँ आ मामा संगे ओतएसँ आगू बढ़ि गेलहुँ।q



 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

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शनिवार, 22 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक दोसर खेपः

 सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास  महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक दोसर खेपः



 

कमला ओ लखना पुबारिटोलक प्रसिद्ध भूतहा गाछीक पीपरक गाछपर रहि-रहि कए कानैत रहैत छलि आ ओहिठामसँ आबैत-जाइत लोकसभ कतेको बेर ओकरा हाकरोस करैत सुनैत छल। कमला आ मखनाकेँ एना हाकरोस करैत देखि मखनाक हृदयमे बहुत कष्ट भेलैक। ओ ओकरसभक इतिहास जनैत छल। एहन हाकरोस करैत ओ एसगर नहि छल। कतेको लोक महराज आ हुनकोसँ बेसी हुनकर सिपहसलारसभक अन्यायसँ त्रस्त छल। मखना स्वयं परेसान छल। मुदा कएल की जाए? किछु तँ प्रतिकार करक छलैक। तकर ब्योंतमे ओ लागि गेल। यमराजक ओहिठाम जाल पसारए लागल। यमराजकेँ ओकर गतिविधिपर शुरुएसँ शङ्का रहनि मुदा ओहो बेबस छलाह। सभठाम लोक जीति सकैत अछि मुदा घरनीसँ जितब बहुत मोसकिल काज थिक। मखना कोना-ने-कोना यमराजक घरनीकेँ पटा लेने छल। एहि कारणसँ ओकरा विरुद्ध ककरो नहि चलैत छल।

एकदिन दुपहरिआक समय रहैक। पुबारिटोलक लोटन महिस चरबए गेल रहए। गाछी लग पहुँचितहि कानबाक अबाज सुनि महिस परसँ धरफराक खसल। महिस चिकरए-भोकरए लगलैक। ओ महिसकेँ छोड़ि भूत-भूत..! बजैत इएह-ले ओएह-ले भागल। भागवाक क्रमे धोती खुजि कतए खसलैक से होस नहि रहलैक। कहुनाक नंग-धरंग अपन दलानपर पहुँचल। ओतए पहुँचितहि धराम दए खसि पड़ल आ बेहोस भए गेल।

गाममे गर्द पड़ि गेल। लोटनकेँ भूत गछारि देलक। भूत ओकरामे सन्हिआ गेल अछि। दूपहरिआमे भूतहा गाछी जेबेक नहि छलैक,” तरह-तरहक बातसभ गामक लोक कए रहल छल। ओहिठाम क्रमशः लोकक करमान लागि गेल। लोटनक ऊपर पानिक छिड़काव कएल गेल। पंखासँ हबा कएल गेल। मुदा ओ टस-सँ-मस नहि भेल। कैकगोटे कहए लागल जे एकरापर देवीक प्रकोप छैक,केओ कहैक जिन सबार भए गेलैक,केओ किछु,केओ किछु। ताबतेमे गामक प्रसिद्ध भगता कालू ओहिठामसँ गुजरि रहल छल। लोकक भीड़ देखि साइकिलसँ उतरि पुछलकैक-

"की बात?"

"कलममे महिंष चरबए गेल छलैक। ओतहि कोनो भूत गछारि लेलकै" -लोकसभ बाजल। से सुनितहि कालू भगता ताल-पतरा करए लागल। मंत्र पढ़ए लागल। कनीकालमे लोटना फुरपुरा कए उठि गेल। गमछासँ देह झाड़लक आ बिदा भेल जेना किछु भेले नहि रहैक। लोकसभ अबाक छल। कालू मोंछ पिजबैत बाजलः

"गामक सीमानमे भूत पैसि गेल अछि। बँचि कए रहैत जाउ।"

संयोगसँ हम ओही समय इसकूलसँ लौटि रहल छलहुँ। ताबे लोकक भीड़ छटि गेल छल।

लोटनकेँ पुछलिऐकः"की भेलैक?

“की जाने गेलिऐक?” -लोटन बाजल।

"एतेक लोक कथी लेल जमा भेल छल?"

लोटन किछु नहि बाजल। ताबे हमर माए ओतए आबि गेलि आ हमरा धिचने चलि गेलि।

ओहि दिनक बाद जखन कखनो केओ भूतहा गाछी दिस जाइत ओकरा ककरो कानबाक अबाज सुनाइत। एहि बातसँ गौआँसभ ततेक डरा गेल छल जे दिनोमे ओमहरसँ लोक आबा-जाही कम कए देलक। बहुत आवश्यक होइतैक तँ हनुमान चालीसा पढ़ैत कहुना कए ओहो दू-तीन गोटे संगे जाइत। ओ गाछी इलाकामे चर्चित भए गेल छल। आमक मासमे सोड़हि-के- सोड़हि आम पड़ल रहैत छल,केओ उठओनिहार नहि। सड़ि-सड़ि कए आम फेकाइत छल। नढ़िआ-कुकुरसभ आम खा-खा कए एकहि संगे भूकए लगैत छल जे आओर भयाओन लगैत छल।

मुदा हमरा रहल नहि होअए। हमर बाबा,दाइ,बाबू सभक सारा ओही गाछीमे छल। ओ हमर पुस्तैनी गाछी छल। नेनेसँ हम बाबूक संगे ओहिठाम आमक रखबारी करए जाइत छलहुँ। कैक दिन असगरो आमक रखबारी करैत छलहुँ। कहाँ कहिओ किछु विद्दति भेल? आबि ई गप्प-सप्प सुनैत रहैत छी। की पता एहूमे किछु बात होइक?

माएकेँ हम ई बात कतेको बेर कहलिऐक मुदा ओ अंठा दैक। बेसी कहितिऐक तँ कहैत- तूँ एहिसभ बात पर एतेक नहि सोचै। पढ़ाइमे मोन लगा जाहिसँ भविष्य बनतौ। की करितहुँ? चुप भए जाइ। मुदा सौंसे गामकेँ कोना चुप कए दितिऐक? सभ एकस्वरसँ ओकरा भूतहा गाछी कहैक। एक हिसाबे गामक लोकसभ ओहि गाछीकेँ बारि देने छल।q


Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time .However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle . Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक प्रथम खेपः

 महराज

छोट सन गाम पुबारिटोलमे कमला आओर लखनाक सुखी संपन्न परिवार छल। लखना दस बिघा मड़ौसी जमीन जोतैत छलाह। लखनाक एक पैर सदरिकाल खेते-खरिहानमे रहैत छल। हुनकर संपन्नता गामेक किछुगोटेकेँ नीक नहि लगैत छलनि। ओ सभ कैक बेर झूठ-मूठकेँ मोकदमामे लखनाक नाम दए दैत छलाह मुदा ओ जेना-तेना बचैत गेलाह। आस्तिक लोक छलाह। सभमास सत्यनारायण भगवानक पूजा करैत छलाह आ संकटसँ उबारक हेतु हुनकर कृतज्ञ रहैत छलाह।
समय सभ दिन एकरंग नहि रहैत अछि। ओसभ केना-ने-केना लचरि गेलाह। किछु ॠण सेहो भए गेलनि। ओहने दिकदारीक समयमे महराजक लगान नहि दए सकलाह। हुनकर पाछू पड़ल दिआदवादकेँ ई मौका हाथ लगलैक। महराजक ओहिठाम नालिस भेल। लगान नहि देबाक कारण हुनकर सभटा जमीन-जायदाद औनेपौने दाममे नीलाम भए गेल। महराजक सिपहसलारसभ ढ़ोल बजा-बजा कए सभटा जमीन बेचि देलक। लखना एहि आघातकेँ बरदास नहि कए सकलाह आ किछुए दिनमे एहि संसारसँ चलैत बनलाह। हुनकर पत्नी कमला तँ पहिनेसँ अथबल छलीह। चलि-फिरि नहि होनि। पक्षाघातसँ वामअंग बेकार छलनि। लखनाक आकस्मिक देहावसानकेँ ओ नहि सहि सकलीह आ किछुए दिनमे हुनको प्राणांत भए गेलनि।
देखिते-देखिते एकटा जुड़ल-अटल घर उजड़ि गेल। भोजनो दुर्लभ भए गेल । एहन खिस्सा लखनेक नहि छल। गाम-गाम एहिना कतेको लोक महराजी जुलुमक सिकार भेलथि आ जीविते नरकक भोग भोगि रहल छलाह। महराजकेँ कोनो मतलब नहि। पता नहि हुनका किछु बुझलो रहनि कि नहि? की पता हुनकर सिपहसलारसभ मनमानी करैत रहल हो? ककर हिम्मति छल जे महराज लग सिकाइत करत। जे कनीको किछु करत ओहिसँ पहिने ऊपर पहुँचा देल जाइत छल।
लखना ओ कमला मरिओ कए अपन लोक-वेदसँ फराक नहि भए सकलाह। रहि-रहि कए ओ सभ गामेक लगीचमे घुमैत रहैत छलाह। अपन जजातिपर नजरि लगओने रहैत छलाह। हाकरोस करैत रहैत छलाह जे हुनकर संतानसभक अधिकारकेँ अन्यायपूर्वक बेदखल कए देल गेल। मोनमे कतहुँ उमीद रहनि जे कहिओ हुनकर कोनो संतान एहि अन्यायक प्रतिकार करत आ तखने हुनकर आत्माकेँ मुक्ति हेतनि।
यद्यपि ओकरासभकेँ मरला कतेको वर्ष भए गेल मुदा गामक, अपन लोकक मोह ओकरा गाम झिकने आनि लैत छल। गाम आबएकाल ओ देखैत छल जे महराजक महल चारूकात पसरिते जा रहल छल। बड़का-बड़का देबालसभ ठाढ़ भए गेल छल। की-की ने भए गेल छल, मुदा देबालक ओहिकात लोक बेबस छल,जीवितो जीवनक संपूर्ण सुखसँ वंचित छल। कतेको लोककेँ हार-पाँजर एक भेल छल। से सभ देखि कए ओ आओर दुखी भए जाइत छल,कैक बेर ठोहि पारि कए कानए लगैत छल। तथापि ओ गामक मोह छोड़ि नहि पाबि सकल छल।
एहिना एकराति ओसभ अपन गाम दिस जेबाक इच्छुक छलाह। कमला बजलीह- "चलू ने अपन गाम?”
“पता ने आब के-के हेताह? कोन रुपमे गाम होएत? ककरो चिन्हबो करबैक कि नहि? आ फेर जौं किछु उल्टा-पुल्टा समाचार भेटि गेल तँ अनेरे दुखमे पड़ि जाएब।" -लखना बाजल।
“एतेक केओ सोचए? हमरा लोकनि छी प्रेतात्मा। बौआएब तँ अपन सभक कपारेमे लिखल अछि?"
“ऐं! की कहलिऐक?"
“ध्यान कतए अछि?"
“ऐ! इएह अपनसभक घर लगैत अछि। लगीचमे चभच्चा देखि रहल छी। मुदा हरिक घर नहि देखा रहल अछि?"
“हमरातँ बहुत चीज नहि देखा रहल अछि? फुलबाड़ी जकरा हम दिन-राति पानि दैत रहैत छलहुँ कहाँ अछि? ओलार जतए महिस बन्हाइत छल ओहो निपत्ता अछि। कतेको नव-नव घर देखि रहल छी। कहीं दोसर गाम तँ नहि आबि गेलहुँ?"
“धुत् तोरीके। सुनैत नहि छिऐक के खोखसि रहल छैक?"
“के छैक?"
“किछु देखा नहि रहल छैक? मुदा खोखसबाक अबाज तँ आबि रहल अछि।"
“से तँ सत्ते।"
“मुदा छै की।"
“रातुक अर्धपहर छैक। किछु भए सकैत छैक? की पता कोनो आओर प्रेतात्मा घुमि रहल होइक? जिन होइक,ब्रह्म पिशाच होइक,तेँ सावधाने रहब।"
"बात तँ सही कहि रहल छी, किछु संभव अछि।"
अबाज बढ़िते गेल। ठन..ठन...झम..झम...।"
“हमरा डर लगैत अछि...।"
“प्रेतो भए कए डर लागि रहल अछि?"
“इएह तँ एहि जोनिक विशेषता अछि जे एतए सभ किछु अपने-आप होइत रहैत अछि। अहाँ तँ आब पुरान भेलहुँ। ई सभ बूझल हेबाक चाही।"
“दाइ गे दाइ...। ई के अछि...। नमगर-नमगर हाथ बढ़ओने जा रहल अछि।"
“थम्हु, टार्च बारि रहल छी।"
“टार्च कतएसँ आएल?"
“बड्ड अपाटक छी। श्राद्धमे दान भेल रहैक से बिसरा गेल?"
ढन-ढनकेँ अबाज बढ़िते गेल। कनी कालमे बड़ी जोड़केँ अन्हड़ आएल आ सभ किछु उड़ा कए लेने चलि गेल।
“भागू-भागू, केओ पछोड़ कए रहल अछि...।"
आओर दुनू गोटे बिला गेल।
राति भरि कमला ओ लखना गामक लगीचमे घुमैत रहि गेल मुदा नीचाँ नहि उतरि सकल। लगैक जेना कोनो प्रचंड शक्ति ओकरासभकेँ रोकि रहल अछि। किछु देखा नहि रहल छलैक। दुनू गोटेक मोन औनाए लगलैक। एहन तँ कहिओ नहि भेल छल। देखल-सुनल गामक रस्तामे ई की सभ भए रहल छैक? दुनू गोटेक चिंता एकहि बातक रहैक, जे आखिर ओकर वंशजसभ केँ कोनो संकट तँ नहि आबि गेल? एहिबातसँ ओसभ व्यग्र छल।
“कैक बेर कहलहुँ जे आब गाम-घरकेँ बिसरि जाउ। ओहिठाम आब की राखल छैक? तीन पुस्त गुजरि गेल। अपनासभकेँ के चीन्हत? मुदा अहाँक मोन मानिते नहि अछि।" -लखना कहलकै।
"बुझै तँ छीऐक मुदा मोन नहि मानैए" -कमला बाजलि।
“प्रेत जोनिमे हम अहाँ छी। एतए लोक अपन मोनक किछु नहि कए सकैत अछि। भूख- प्यास सभ लगैत अछि मुदा समाधान कथुक अपना हाथमे नहि अछि।"
“से तँ छैक मुदा बौअनकेँ बिसरि नहि पाबि रहल छी।"
"अहाँकेँ ई की सभ फुराइत रहैत अछि? के थिक बौअन?"
"सएह कहू, बौअन बिसरा गेल?"
"हमरा किछु मोन नहि पड़ रहल अछि?"
“बहुत आश्चर्यक गप्प थिक जे लोक अपनो संतानकेँ बिसरि जाइत अछि।”
“बिसरि नहि जाइत अछि, बिसरा जाइत छैक। ई मृत्युलोक नहि छैक, प्रेतलोक छै।”
ओकरासभकेँ गप्प-सप्प होइते रहैक कि लगलैक जेना ठनका खसि रहल छैक। अन्हड़ उठि रहल छैक। चारूकात भयाओन ध्वनि सन्न-सन्न कए पसरि रहल अछि।
"भागू, भागू।"
"की भेलैक?"
"सुनि नहि रहल छिऐक?"
"की छैक...?
ओ एतबा बाजले छलि कि मखना सामने प्रकट भेल- “गोर लगैत छी।"
“के छह?' -लखना पुछलकैक।
"हम छी कालू भगताक भाए, मखना।"
से कहि आगू बढ़ि गेल। ओ मृत्युलोकसँ ककरो प्राण घिचने जा रहल छल। यमपाश भजैत हरहराइत आगाँ बढ़ल जा रहल छल कि कमला ओ लखना हाकरोस करैत देखाएल रहैक।
(क्रमशः...)
रबीन्द्र नारायण मिश्र

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